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Sunday, 28 April, 2024
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निकाह हलाला और बहुविवाह के बैन के बाद, यूनिफॉर्म सिविल कोड कर सकता है हिंदुओं को नाराज़

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आयोग के अध्यक्ष, न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान (सेवानिवृत्त) ने संकेत दिया है कि इनकी रिपोर्ट हिंदू समुदायों के बीच भी ‘अनुचित व्यवहार’ पर ध्यान केन्द्रित करेगी।

नई दिल्लीः भारतीय कानून आयोग हिन्दुओं की कुछ व्यक्तिगत प्रथाओं के साथ-साथ उन पर एक समान नागरिक संहिता के संभावित असर की जाँच करने के लिए तैयार हो गए है, एक ऐसा फैसला, जो कुछ हिंदू समूहों को संभवतः परेशानी में डाल सकता है।

कानून आयोग ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह विवादित इस्लामी प्रथाओं जैसे निकाह हलाला और बहुविवाह जो उनके मसौदा यूसीसी से बाहर हैं, को छोड़ देगा, जैसा कि अब ये अदालत में हैं इसलिए विचाराधीन हैं। हालांकि, आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान (सेवानिवृत्त) ने संकेत दिया है कि इनकी रिपोर्ट हिंदू समुदायों के बीच भी ‘अनुचित व्यवहार’ पर ध्यान केन्द्रित करेगी।

चौहान ने दिप्रिन्ट को बताया कि, “रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य सभी धर्मों में लिंग न्याय सुनिश्चित करने और परिवारिक प्रथाओं में संशोधन लाने के लिए होगा।”

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एक समान नागरिक संहिता पर वाद-विवाद, काफी हद तक अल्पसंख्यकों पर ध्यान केंद्रित करता है। इस मुद्दे पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया की मांग करते समय, कानून आयोग ने ‘मैत्री करार’ जैसे हिंदू प्रथाओं को भी सूचीबद्ध किया था, लेकिन चौहान ने कहा कि ज्यादातर प्रस्तुतियाँ मुस्लिमों की व्यक्तिगत प्रथाओं से संबंधित थीं।

मैत्री करार, जिसे मैत्री अनुबंध के रूप में भी जाना जाता है, गुजरात में एक तरह की अनुबंध प्रणाली है जहाँ एक पुरूष या एक स्त्री का संबंध वैध होता है, भले ही वे दोनों शादीशुदा ही क्यूं न हों।

आयोग के एक अन्य अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “लोग इस बारे में नहीं सोच रहे है कि एक समान नागरिक संहिता (यूसीसी) हिंदुओं को कैसे प्रभावित करेगी,” उन्होंने यह भी कहा कि लोगों के मन में यूसीसी पूरी तरह से तीन तलाक (ट्रिपल तलाक) और निकाह हलाला के बारे में है”।

सूत्रों ने बताया है कि हिंदू अविभाजित परिवारों को दी गई कर छूट की भी रिपोर्ट में जांच की जाएगी।

अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के कमल फारूकी, जो एक समान नागरिक संहिता के विचार के मुखर आलोचक हैं, ने कहा, “बेशक, एक समान नागरिक संहिता हिंदुओं को प्रभावित करेगा,”। उन्होंने कहा कि “हम उनसे (भाजपा से) कह रहे हैं कि वे पहले एक समान नागरिक संहिता के लिए हिंदुओं को मनाएं, फिर बाद में अल्पसंख्यकों पर विचार करें।

घोषणा पत्र का एक वादा

अपने 2014 के घोषणापत्र के एक वादे को ध्यान में रखते हुए, जून 2016 में भाजपा सरकार ने कानून आयोग से पूछा कि क्या भारत में एक समान नागरिक संहिता पेश की जा सकती है।

“भाजपा का मानना है कि तब तक लिंग समानता नहीं हो सकती जब तक भारत में एक समान नागरिक संहिता को लागू ना कर दिया जाए जो देश में सभी महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है और भाजपा ने एक समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने, सर्वोत्तम परंपराओं को आकर्षित करने और आधुनिक समय के साथ सामंजस्य रखने की अपनी बात दोहराई है। “पार्टी ने यह अपने घोषणापत्र में कहा था।

हालांकि, भाजपा ने लैंगिक न्याय के लिए जोर दिया है, जो हमेशा मुस्लिम महिलाओं पर ही देखा जाता है। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में, भाजपा सरकार ने तर्क दिया कि तीन तलाक और बहुपत्नी प्रथा को समाप्त कर दिया जाना चाहिए क्योंकि वे “असंवैधानिक, भेदभावपूर्ण और लिंग समानता और महिलाओं की गरिमा को नुकसान पहुंचाते हैं”।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्काल तलाक पर प्रतिबंध लगाने के बाद जब यह कानून संसद में पेश हुआ तब इसकी अवहेलना हुई, जहाँ कांग्रेस ने विपक्षी विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करी। यह मामला संसद में लंबित पड़ा हुआ है।

पार्टी के नेता अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय में निकाह हलाला और बहुपत्नी की प्रथाओं के खिलाफ याचिका दायर की थी, उन्होंने कहा कि कानून आयोग का सीमित शासनादेश भाजपा को राजनीतिक रूप से आघात पहुंचाने वाला नहीं है। अदालत ने याचिका सुनने पर सहमति व्यक्ति की है।

उन्होंने कहा कि तलाक-ए-बिद्दत (तत्काल तालक) को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया है, आयोग को तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-एहसान की प्रथाओं की जांच करनी होगी, जो कि इस्लामी तलाक का एकतरफा रूप हैं।

उपाध्याय ने कहा, “यह आदेश हिंदू, मुस्लिम और ईसाई महिलाओं के लिए अलग-अलग अधिकार रखने के लिए संवैधानिक रूप से सक्षम नहीं है।” उन्होंने कहा कि “एक समान संहिता (शासनादेश) को लागू करने के लिए सत्तर साल पर्याप्त हैं।”

हालांकि, चौहान ने कहा कि भारत में एक समान नागरिक संहिता को लागू करना एक आसान कार्य नहीं होगा। उन्होंने कहा कि “संविधान में प्रथागत कानूनों को लेकर कई अपवाद हैं। यहां तक कि अगर हम एक समान नागरिक संहिता बनाते हैं तो हम इन अधिकारों और अपवादों को दूर नहीं कर सकते हैं।”

2019 के आम चुनाव से पहले लगभग एक साल से पहले ही अगस्त 2018 में उम्मीद है कि आयोग अपनी अवधि समाप्त होने से पहले ही अपनी रिपोर्ट पेश कर देगा। हालांकि, सदस्यों ने इस बात पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि रिपोर्ट वास्तव में कब पेश की जाएगी।

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