नई दिल्ली: पाकिस्तान में इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम, 2016 में संशोधन करने के बाद नए अध्यादेश की मीडिया, नागरिकों और मानवाधिकार आयोग ने कड़ी आलोचना की है. वो इस कानून को ‘अलोकतांत्रिक’ बता रहे हैं.
कुछ लोगों ने कानून को ‘दमनकारी’ कहा है, डॉन न्यूज़ के एक पत्रकार ने इमरान खान सरकार से यह तक कह दिया है कि ‘अपने सभी अध्यादेशों के साथ जहन्नुम में जाओ.’
रविवार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने एक अध्यादेश जारी किया जिसके तहत जिन टीवी चैनल्स के पास पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी (पीईएमआरए) लाइसेंस थे उन्हें 2016 एक्ट के तहत दी गई छूट को खत्म कर दिया. इमरान खान सरकार का दावा है कि इससे सोशल मीडिया पर ‘फर्जी खबरों’ पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी.
हालांकि इसके उलट पत्रकारों और विपक्षी दलों का मानना है कि यह कदम असहमत विचारों का दमन करती है क्योंकि यह सरकार की आलोचना को दंडनीय बनाता है.
Britishers ruled india and did not made these type of laws but fascists ruling Pakistan made this law. Go to hell with all your ordinances. Shame
President promulgates ordinance to regulate social media as minister warns against indulging in 'fake news' https://t.co/ejZkVKPHcM— Imran Gabol (@gabolizm) February 20, 2022
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असहमति पर अंकुश लगाने का नया हथियार?
अध्यादेश के तहत, इलेक्ट्रॉनिक अपराध निवारण अधिनियम, 2016 में चार बुनियादी संशोधन किए गए हैं, जबकि एक पूरी नई धारा जोड़ी गई है जिसमें फेक न्यूज या व्यकित का उपहास करने को इलेक्ट्रॉनिक अपराध की श्रेणी में डाला गया है.
फेक न्यूज देने वाले को तीन साल से पांच साल की सजा होगी और इसके तहत पीड़ित की जगह कोई भी व्यक्ति केस दर्ज कर सकता है.
नए अध्यादेश में अपराध गैर जमानती है. मामले पर जल्द से जल्द फैसला लेना होगा जिसके लिए अधिकतम अवधि छह महीने तय की गई है. ट्रायल कोर्ट को हर महीने मामले की अपडेट रिपोर्ट उच्च न्यायालय को देनी होगी और मामले में देरी के कारणों और बाधाओं को भी बताना होगा.
मीडिया जोइंट एक्शन कमिटी जिसमें पाकिस्तान की कई मीडिया संस्थान शामिल हैं उसने इस कानून का यह कहते हुए विरोध किया है कि यह सरकार द्वारा मीडिया और बोलने की आजादी समेत असहमितियों का दमन है.
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने ट्वीट कर कानून की आलोचना की.
The proposed laws that aim to increase the jail term for online criticism of the state from two to five years, and make it a non-bailable offence, are undemocratic and will inevitably be used to clamp down on dissenters and critics of the government and state institutions. pic.twitter.com/hFLYidal1m
— Human Rights Commission of Pakistan (@HRCP87) February 20, 2022
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मीडिया और विपक्ष के मिले ‘सुर’
पाकिस्तान ऑब्जर्वर ने अपने संपादकीय में पाकिस्तान टेलिकम्युनिकेशन अथॉरिटी को और मजबूत करने की वकालत करते हुए लिखा कि ‘यह भी देखा और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि विरोधियों को निशाना बनाने या दंडित करने के लिए इन कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए, जैसा कि हमारे देश में बढ़ते ध्रुवीकरण के कारण से एक संभावना हो सकती है.’
पाकिस्तान टुडे ने अपने संपादकीय में लिखा कि ‘ऐसा लगता है कि सरकार एक पत्थर से दो परिंदो को मारने की कोशिश कर रही है. प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को नियंत्रित करने के इसके पिछली कोशिशों को अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा सेंसरशिप के प्रयासों के रूप में निंदा की गई थी. लेकिन दूसरा कानून ईसीपी द्वारा पीएम को अपने पैतृक मियांवाली नहीं जाने की सलाह देने की प्रतिक्रिया के रूप में नजर आता है क्योंकि पंजाब में चुनाव होने वाले थे. यह भी मुमकिन है कि विपक्ष की पीएम के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की धमकी समीकरण में आ जाए क्योंकि जिस तरह विपक्ष उनके खिलाफ अपना खेल बढ़ा रहा है, वह खुद को नियंत्रण करने के रूप में नए उपकरण से लैस करेगा.’
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की नेता मरयम नवाज ने दावा किया कि यह कानून इमरान सरकार के खिलाफ ही इस्तेमाल में आएगा. उन्होंने लिखा कि ‘यह सरकार जो अभी कानून बना रही है कहने को तो मीडिया और विपक्ष की आवाज को बंद करने के लिए है मगर यह कानून इमरान एंड कंपनी के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले हैं, फिर मत कहना कि बताया नहीं.’
یہ حکومت جو بھی قوانین بنا رہی ہے کہنے کو تو میڈیا اور اپوزیشن کی آواز بند کرنے کے لیے ہے مگر یہ قوانین عمران اینڈ کمپنی کے خلاف استعمال ہونے والے ہیں۔ پھر نا کہنا بتایا نہیں!
— Maryam Nawaz Sharif (@MaryamNSharif) February 20, 2022
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सीनेटर शेरी रहमान भी कानून की आलोचना करने वालों में शामिल हैं. उन्होंने लिखा कि ‘आगे भी असहमति को बंद करने के लिए सरकार साइबर अपराध कानूनों में संशोधन करने के लिए एक और राष्ट्रपति के अध्यादेश का उपयोग कर रही है जो व्यापक और कठोर होगा. कोई गलती न करें, यह साइबर शिकार से कमजोर लोगों की रक्षा करने के बारे में नहीं है, बिल्कुल उसके उलट है.’
In its bid to shut down dissent even further the Govt is using another presidential ordinance to amend cybercrime laws that will be sweeping and draconian in scope. Make no mistake,this is not about protecting the vulnerable from cyber predations; quite the opposite. #gagorderlaw
— SenatorSherryRehman (@sherryrehman) February 20, 2022
वहीं इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की दक्षिण एशिया कानूनी सलाहकार रीमा उमर ने इस कानून को ‘दमनकारी’ बताया.
Pakistan has just made its criminal defamation law under PECA even more oppressive by:
1. Expanding scope from “natural persons” to all persons
2. Increasing penalty to up to 5 yrs
3. Making it cognizable, non-bailable
4. In some cases, allowing ANY person to become complainant— Reema Omer (@reema_omer) February 20, 2022
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