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Wednesday, 24 September, 2025
होमफीचरवर्ल्ड बनिया फोरम का मकसद—अगला अडाणी और अंबानी तैयार करना, 1991 के बाद का भारत अब हसल पर चलता है

वर्ल्ड बनिया फोरम का मकसद—अगला अडाणी और अंबानी तैयार करना, 1991 के बाद का भारत अब हसल पर चलता है

अब सिर्फ अंबानी-अडाणी जैसे बड़े बिज़नेस हाउस काफी नहीं. कम्युनिटी के MSME भी दुनिया चलाना चाहते हैं और नॉन-बनिया बिज़नेस प्लेयर्स को पीछे छोड़ना चाहते हैं.

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गुरुग्राम: यह एक बिज़नेस कॉन्क्लेव था, लेकिन सिर्फ बनियों के लिए. गुरुग्राम के आईटीसी होटल के बॉलरूम में हर चेहरा उम्मीद से भरा था और हर हैंडशेक में एक संभावित डील की झलक थी. चारों तरफ फुसफुसाहट थी—“इनसे बात करो, काम आएंगे” या “नंबर ले लो, बिना लिए मत जाना.”

यह वर्ल्ड बनिया फोरम (डब्ल्यूबीएफ) का कॉन्क्लेव था और वहां मौजूद हर बनिए का बस एक ही मकसद था—ऐसी डील करना जो उन्हें अगला अंबानी-अडाणी बना दे. मोदी के भारत में अब महत्वाकांक्षा और बड़ी है.

एक युवा उद्यमी ने अपने हाथ में बिज़नेस कार्ड थामे अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर रमेश अग्रवाल से कहा, “आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा सर. मैं चावड़ी बाज़ार में छोटा सा बिज़नेस करता हूं. आपकी कंपनी को सर्विस देना चाहूंगा.” उनके पीछे सूटेड-बूटेड बिज़नेसमैन की लाइन लगी थी—सबके कार्ड तैयार, पिचेज़ प्रैक्टिस्ड.

देश के बड़े-बड़े बिज़नेस और ब्रांड्स के संस्थापक—अंबानी, अडाणी, बिड़ला, जिंदल सभी बनिया कम्युनिटी से हैं, लेकिन अब यह काफी नहीं. अब कम्युनिटी के माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज़ (एमएसएमई) भी जाग चुके हैं. उनका एक ही गोल है—दुनिया चलाना और नॉन-बनिया बिज़नेस प्लेयर्स को पीछे छोड़ना.

बनिए जंघाओं से पैदा हुए. जैसे जांघे पूरे शरीर को संभालती हैं, वैसे ही बनिए पूरे बिज़नेस और भारत की जीडीपी को थामे हुए हैं

– डब्ल्यूबीएफ के को-फाउंडर सोनल गर्ग

यहीं से वर्ल्ड बनिया फोरम की शुरुआत हुई. यह बनियों का ‘दावोस’ है. हर महीने बिज़नेसमैन, इन्वेस्टर्स, लॉयर्स, अकैडमिक्स इकट्ठा होते हैं और उन मुद्दों पर चर्चा करते हैं जो कम्युनिटी की तेज़, मज़बूत और बड़ी ग्रोथ में रुकावट डालते हैं. यह नेटवर्किंग, नेम-ड्रॉपिंग और फ्लेक्सिंग का मंच है—पूरी तरह ‘हसल’ मोड में.

कम्युनिटी फिर से अपने सुनहरे दौर को पाना चाहती है, लेकिन 1991 के बाद के इंडिया ने एंटरप्रेन्योरशिप की ऐसी लहर पैदा की है जिसमें जातीय नेटवर्किंग की उतनी अहमियत नहीं रही. अज़ीम प्रेमजी, नारायण मूर्ति, शिव नाडर जैसे नॉन-बनिया बिज़नेसप्लेयर इस ‘मेक बनियाज़ ग्रेट अगेन’ प्रोजेक्ट को चुनौती दे रहे हैं. इसी ज़रूरत को समझते हुए सोनल गर्ग और नितिन गोयल ने 2023 में वर्ल्ड बनिया फोरम की शुरुआत की और उन्हें यकीन है कि वैश्य पैदा ही बिज़नेस करने के लिए हुए हैं.

डब्ल्यूबीएफ फाउंडर्स नितिन गोयल (बाएं) और सोनल गर्ग | फोटो: साकीबा खान/दिप्रिंट
डब्ल्यूबीएफ फाउंडर्स नितिन गोयल (बाएं) और सोनल गर्ग | फोटो: साकीबा खान/दिप्रिंट

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी उनके साथ खड़ी दिखीं. पिछले महीने हुए वर्ल्ड बनिया फोरम फाउंडेशन डे 2.0 में गुप्ता को स्पेशल गेस्ट बुलाया गया था. हालांकि, ऐन मौके पर एक मीटिंग के कारण वे नहीं आ सकीं.

कई बनियों को लगता है कि वे इंडिया स्टोरी से छूट रहे हैं और अब ज़रूरी है कि “उठती हुई लहर सभी बनिया नावों को ऊपर उठाए.” तभी यह व्यापारी समाज अपने इतिहास के वादे को पूरा कर पाएगा.

चांदनी चौक में रिटेल बिज़नेस चलाने वाले गर्ग ने कहा, “यह सच है कि बनिए अमीर हैं, लेकिन यह भी सच है कि भारत की 90% संपत्ति सिर्फ 10% लोगों के पास है और उनमें भी कुछ ही बनिए हैं. हम बाकी 90% बनिए हैं और हम एक-दूसरे को ऊपर उठाना चाहते हैं. बहुत प्रतिस्पर्धा है. यह ग्रुप बनियों का है और बनियों के लिए है.”


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बिज़नेसमैन से आगे

पहली और दूसरी पीढ़ी के बनिया उद्यमियों के लिए वर्ल्ड बनिया फोरम सिर्फ एक नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि बनिया बिज़नेस की एलीट दुनिया का दरवाज़ा बन चुका है.

सिर्फ 23 साल की उम्र में हर्ष गुप्ता इस कॉन्क्लेव के सबसे कम उम्र और सबसे ज़्यादा डिमांड वाले बिज़नेसमैन थे. स्मार्ट कपड़े पहनकर, हॉलवे में लगे अपने स्टॉल के पास खड़े होकर वे हर विजिटर का स्वागत कर रहे थे.

उन्होंने कार सेल्समैन जैसी प्रैक्टिस्ड पिच में कहा, “खुद से अपने फाइनेंशियल पोर्टफोलियो को मैनेज करने का टाइम नहीं है? तो एसआईपी यात्रा ट्राय कीजिए.” उनकी कंपनी SIP यात्रा एक वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी है.

उनका स्टॉल बहुत आकर्षक नहीं था, लेकिन उनके पास नंबर थे: हर्ष इस समय फोरम के अंदर 40 बिज़नेस फैमिलीज़ की वेल्थ मैनेज कर रहे हैं.

हर्ष ने कहा, “मेरे क्लाइंट्स हमारी कम्युनिटी के कुछ सबसे बड़े नाम हैं. उन्होंने मुझ पर भरोसा किया क्योंकि मैं बनिया हूं. अगर कोई और होता तो वो इन्वेस्ट करने से पहले दो बार सोचते.”

और यही वो डब्ल्यूबीएफ का मकसद बताते हैं: बनियों को बिज़नेस देना, बनियों से ही रिसोर्स लेना और पूरी तरह बाहरी लोगों को दूर रखना. ये एक इन-ग्रुप है, जिसके सपने ग्लोबल हैं.

हर्ष ने 15 साल की उम्र से इन्वेस्ट करना शुरू किया. वे दूसरी पीढ़ी के बिज़नेसमैन हैं और उनका कहना है कि बनिये बिज़नेस स्किल्स लेकर पैदा होते हैं. उनके पहले क्लाइंट अजनबी नहीं थे—वे उनके टीचर्स, प्रिंसिपल और वेस्ट दिल्ली स्कूल के उनके साथी स्टूडेंट्स के परिवार थे और उनका फेवरिट गेम? शेयर मार्केट.

हर्ष के लिए डब्ल्यूबीएफ एक “पीपल प्रोफाइल” जैसा है—बनिया वर्ज़न ऑफ LinkedIn और यही वो जगह थी जहां उन्होंने अपने पब्लिक स्पीकिंग के डर का सामना किया.

उन्होंने कहा, “मैं इसमें बहुत बुरा था, लेकिन डब्ल्यूबीएफ ने सब बदल दिया. मैंने कॉन्क्लेव में 400 से ज़्यादा लोगों को एड्रेस किया.”

अब वे हर महीने सेंट्रल दिल्ली के चेल्म्सफॉर्ड क्लब में होने वाली मीटिंग्स में सबसे पहले पहुंचते हैं.

लेकिन सिर्फ हर्ष ही नहीं. 53 किलोमीटर दूर, नोएडा में 45 साल की ज्योति अग्रवाल भी वर्ल्ड बनिया फोरम की एक्टिव फॉलोअर हैं. अपने आईफोन पर उन्होंने डब्ल्यूबीएफ का व्हाट्सएप ग्रुप टॉप पर पिन कर रखा है और वे इसके सभी सोशल मीडिया चैनलों को फॉलो करती हैं.

अग्रवाल, जो अर्जुन टॉइज़ एंड फर्नीचर की ओनर हैं, 2024 में फोरम से जुड़ीं. उन्होंने और उनके पति शाश्वत ने 2010 में अपना बिज़नेस शुरू किया था. ये फर्स्ट-जनरेशन सेटअप था, जो दिल्ली-एनसीआर में स्कूलों के फर्नीचर सप्लाई करता था. मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फनगर से आने वाले कपल का बिज़नेस सफर एक दशक तक बड़े बनिया समुदाय से कटा हुआ रहा.

उन्होंने कहा, “डब्ल्यूबीएफ के साथ सब बदल गया. ये पहली बार था जब हमें सच में कनेक्शन महसूस हुआ—सिर्फ बिज़नेसमैन के तौर पर नहीं, बल्कि बनियों के तौर पर.”

वे हर ट्रेनिंग सेशन में जाने लगीं, कम्युनिटी लीडर्स और अनुभवी उद्यमियों के मोटिवेशनल टॉक्स ध्यान से सुनने लगीं. जल्द ही उनकी कंपनी को श्रीराम ग्लोबल स्कूल और क्वीन मैरीज़ स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से बल्क ऑर्डर्स मिलने लगे.

उन्होंने कहा, “अभी हम भारत के नामी स्कूलों को फर्नीचर सप्लाई करते हैं.”

लेकिन हर्ष गुप्ता और ज्योति अग्रवाल की कहानी में एक कॉमन धागा है—दोनों ने डब्ल्यूबीएफ को पहली बार इंस्टाग्राम ऐड से खोजा.

फोरम के ऐड पोस्टर में लिखा था, “The Brightest Business Leaders are walking into the room… The Biggest Business networking event of the year.”

सिर्फ एक क्लिक में दोनों इस क्लोज़-निट बिज़नेस कम्युनिटी का हिस्सा बन गए.


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बनियों में बनिये

पश्चिम विहार स्थित डब्ल्यूबीएफ ऑफिस में लगे एक स्टैंडी पोस्टर पर लिखा है: “वर्ल्ड बनिया फोरम. ए प्लेटफॉर्म टू ट्रांसफॉर्म.”

अंदर एक केबिन में हेमंत शर्मा अपनी पांट लोगों की मार्केटिंग टीम के साथ बैठे हैं. यही लोग बनियों को जोड़ने की सबसे बड़ी ताकत हैं.

ये लोग बनिया बिज़नेसमैन को टारगेट करते हुए ऐड भेजते हैं. इसके बाद एक सेल्सपर्सन उनसे संपर्क कर उन्हें पूरा कॉन्सेप्ट समझाता है.

शर्मा ने बताया, “मेटा हमें जाति, रंग या धर्म के आधार पर ऐड टारगेट करने की इजाज़त नहीं देता, लेकिन हम बिज़नेस, स्किल्स और बिहेवियरल पैटर्न्स के आधार पर ऐड टारगेट कर सकते हैं. इसी तरह हम भारत के जनरल बिज़नेस पॉपुलेशन तक पहुंचते हैं.”

वर्ल्ड बनिया फोरम का स्टैंडी | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट
वर्ल्ड बनिया फोरम का स्टैंडी | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट

डब्ल्यूबीएफ अपनी ऐड स्ट्रैटेजी पर बहुत मेहनत करता है और मिडिल-क्लास बनियों के लिए अब मोनोपॉली काम नहीं कर रही, इसलिए वो नेटवर्किंग बढ़ाने पर काम कर रहे हैं.

‘इंडियाज़ न्यू कैपिटलिस्ट्स’ किताब में हरीश दामोदरन लिखते हैं कि 1991 की आर्थिक उदारीकरण के बाद बिज़नेस जो कभी “जाति व्यवस्था के पेशागत खांचे” में बंधे थे, अब ज़्यादा जातियों के लिए खुलने लगे और परंपरागत पेशों से दूर होने लगे.

दामोदरन लिखते हैं, “1991 के बाद का उदारीकरण नए उद्यमियों के लिए बाढ़ के दरवाज़े खोल लाया और नॉलेज-बेस्ड इकॉनमी के बढ़ने से अलग-अलग बैकग्राउंड और माइंडसेट के नए बिज़नेसमैन सामने आए.”

गर्ग ने हंसते हुए कहा, “देखो, बनियों को कभी पता ही नहीं था कि विज्ञापन क्या होता है. अब हम ये स्किल भी सीख रहे हैं.” दो अगस्त को गुरुग्राम के आईटीसी होटल में होने वाले दूसरे फाउंडेशन डे से पहले दिल्ली में 30 जगहों पर पोस्टर चिपकाए गए—कनॉट प्लेस और RML हॉस्पिटल जैसी बड़ी जगहों पर भी.

ये ऐड फेसबुक और इंस्टाग्राम दोनों पर चलते हैं, लेकिन इसमें एक शर्त है: जैसे ही कोई बिज़नेसमैन ऐड पर क्लिक करता है, उसे डब्ल्यूबीएफ वेबसाइट के लैंडिंग पेज पर ले जाया जाता है, जहां पहला सवाल होता है—क्या आप बनिया हैं? अगर जवाब हां है, तो एक फॉर्म भरने के लिए आता है. पिछले एक हफ्ते में शर्मा ने ऐसे दर्जन भर बनिया क्लिक को लीड में बदला है.

फॉर्म में बिज़नेस डीटेल्स, जॉब प्रोफाइल और फोन नंबर मांगा जाता है. फिर एक सेल्सपर्सन कॉल कर फॉर्म समझाता है और वहीं से असली प्रोसेस शुरू होता है.

चावड़ी बाज़ार में हार्डवेयर और फर्नीचर स्टोर के मालिक शुभांग गुप्ता ने कहा कि एक टीम उनके ऑफिस आकर डीटेल्स वेरिफाई करके गई और बिज़नेस के स्केल की पुष्टि करके गई. यही स्क्रीनिंग उन बनियों को अलग करती है जिनका कोई ठोस बिज़नेस या मार्केट प्रेज़ेंस नहीं है.

दो साल पहले कम्युनिटी का हिस्सा बने गुप्ता ने कहा, “हम बनियों पर फोकस करते हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं पर जिनका बिज़नेस अच्छा हो. हम हर बनिये को अपने फोरम में नहीं लेते.”

लेकिन ये मेंबरशिप मुफ्त नहीं आती: गोल्ड के लिए 15,000 रुपये और डायमंड के लिए 1,25,000 रुपये, सालाना. फर्क सिर्फ फीस का नहीं, बल्कि मौकों का है. डायमंड मेंबर्स के बिज़नेस को इवेंट्स में की-पार्टनर के तौर पर हाईलाइट किया जाता है, जो गोल्ड मेंबर्स को नहीं मिलता. वेबसाइट पर साफ-साफ लिखा है कि क्या-क्या मिलेगा: ब्रांडिंग चांस, प्रोफेशनल वर्कशॉप्स, डायरेक्टरी में नाम, बिज़नेस लिस्टिंग और नेटवर्किंग इवेंट्स.

असल में डब्ल्यूबीएफ खुद एक बिज़नेस है. गर्ग ने कहा, “ये बनियों को जोड़ने की कम्युनिटी है, लेकिन हम पैसे भी कमा रहे हैं और उसी को इन्वेस्ट करके इसे बनियों के लिए मंज़िल बना रहे हैं.”

टर्निंग प्वाइंट

पिछले साल जब खुशबू अग्रवाल वर्ल्ड बनिया फोरम से जुड़ीं, तब वह अपने इंश्योरेंस बिज़नेस को बढ़ाने में संघर्ष कर रही थीं. तभी उन्होंने गर्ग से संपर्क किया.

अग्रवाल ने कहा, “मैं एक स्वतंत्र बिज़नेसवुमन बनना चाहती थी.”

लेकिन डब्ल्यूबीएफ से जुड़ने की उनकी वजह थोड़ी अलग थी. उन्होंने माना कि एक महिला होने के नाते, वे अक्सर अपने बिज़नेस फैसलों पर शक करती थीं.

उन्होंने कहा, “मर्दों को बिज़नेस की ज्यादा समझ होती है. औरतों को कम पता होता है, इसलिए यह प्लेटफॉर्म मेरे लिए मददगार साबित हुआ.”

डब्ल्यूबीएफ कॉन्क्लेव में नेटवर्किंग करते व्यापारी | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट
डब्ल्यूबीएफ कॉन्क्लेव में नेटवर्किंग करते व्यापारी | फोटो: सागरिका किस्सू/दिप्रिंट

हर अगस्त में डब्ल्यूबीएफ के सदस्यों को अपनी सालाना सदस्यता रिन्यू करनी होती है, लेकिन अग्रवाल ने इसे एक महीने पहले ही जुलाई में ही रिन्यू कर लिया. डब्ल्यूबीएफ से जुड़ना उनकी ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गया.

इंश्योरेंस सलाहकार होने के अलावा अब अग्रवाल सिल्वर-कोटेड सामान का बिज़नेस भी करती हैं और इस आइडिया का श्रेय वे गर्ग को देती हैं.

उन्होंने कहा, “मेरे बच्चे क्लास 11 और 12 में हैं और मुझे घर पर रहकर उनका ध्यान रखना होता है. इसलिए मैंने सोचा ऐसा बिज़नेस शुरू करूं, जो घर से चलाया जा सके.”

जल्द ही उनके सिल्वर प्रोडक्ट्स बिकने लगे. शुरुआत भी फोरम से ही हुई. दरअसल, उनके पहले ग्राहक खुद गर्ग ही बने.

‘हर कोई बनिया है’

दो दोस्तों सोनल गर्ग और नितिन गोयल ने एक बिज़नेस नेटवर्किंग इवेंट में हिस्सा लिया. वहीं से वर्ल्ड बनिया फोरम का आइडिया आया.

गोयल ने याद किया, “तभी हमने सोचा कि बनिया कम्युनिटी के लिए भी क्यों न एक फोरम हो, जैसे जैन का ‘जैन इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (JITO)’ है और उस ऑर्गनाइजेशन की वैल्यू अरबों में है.”

आइडिया बनने के बाद अगली चुनौती थी नाम तय करना. तीन महीने की बहस के बाद नाम चुना गया. ‘अग्रवाल फोरम’ और ‘गुप्ता फोरम’ जैसे नाम आए और रिजेक्ट हो गए. फिर गर्ग ने सुझाव दिया कि इसे वर्ल्ड बनिया फोरम कहा जाए.

उन्होंने कहा, “क्योंकि बनिया शब्द सबको कवर कर लेता है. जैन, मारवाड़ी सब, जो एक ही कल्चरल रूट्स से आते हैं.”

मारवाड़ी, जैन, गुप्ता, अग्रवाल सब बनिया हैं. हमारी दिल्ली सीएम बनिया हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी बनिया हैं. वे गुजरात की व्यापारी बिरादरी से आते हैं.

— सोनल गर्ग

तब से दोनों ने अपनी पहचान गर्ग या अग्रवाल से हटाकर सिर्फ बनिया के तौर पर अपनाई. गर्ग ने कहा, “हमें बनिया कहिए. हम बनिया हैं और इसमें कोई शर्म नहीं. हम बिज़नेस करते हैं और पैसा खर्च भी करते हैं लेकिन प्रैक्टिकली, मुनाफा सोचकर.”

यह उनका ‘जाति को फिर से अपनाने का आंदोलन’ है और इसकी वजह भी है. गोयल ने कहा कि बनिये आपस में बंटे हुए थे. डब्ल्यूबीएफ के दफ्तर में बैठे हुए उन्होंने कहा, “वे एक-दूसरे से मदद नहीं लेते. मारवाड़ी गुप्ता के पास बिज़नेस के लिए नहीं जाएगा, लेकिन नॉन-बनिये के पास आसानी से चला जाएगा. ये अनहेल्दी कॉम्पिटीशन और ईगो हमारे बिज़नेस ग्रोथ में रुकावट डाल रहे थे.”

दूसरे फाउंडेशन डे कॉन्क्लेव से पहले, गर्ग और गोयल ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से तीन बार मुलाकात की. वहीं से उन्हें आत्मविश्वास मिला.

गर्ग ने कहा, “हमने उन्हें फोरम की प्रेजेंटेशन दिखाई. उन्होंने कहा कि बनियों को साथ आता देखकर खुशी हुई. उन्होंने हमें तीसरी बार भी बुलाया.” वे अक्सर अपने कॉन्क्लेव और मीटिंग्स में गुप्ता का चुनावी भाषण उद्धृत करते हैं.

गर्ग ने पूछा, “रेखा गुप्ता ने कहा था ‘मैं बनिया की बेटी हूं, दिल्ली चला लूंगी.’ तो फिर तुम खुद को बनिया कहने से क्यों डरते हो.”

अब यह जोड़ी सबको ‘बनिया’ बैनर के नीचे लाने के मिशन पर है और उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी भी बनिया हैं. गर्ग ने कहा,

और अब वे तीसरे फाउंडेशन डे सेरेमनी की तैयारी कर रहे हैं. इस बार वे खास मेहमान के तौर पर या तो गौतम अडाणी या मुकेश अंबानी को बुलाना चाहते हैं. गर्ग ने कहा, “अगर वे हमारे फाउंडेशन समारोह में आएंगे तो यह हमारे फोरम के लिए बड़ी बात होगी. वे बनिया कम्युनिटी के हीरो हैं.”

उभरते उद्यमी हर्ष गर्ग, अंबानी को रोल मॉडल मानते हैं. उन्होंने कहा, “मैं भी अंबानी सर जैसा फेमस होना चाहता हूं और बड़ा बिज़नेस करना चाहता हूं.”ट

यह “बनिया बेसिक्स” सीरीज़ की दूसरी रिपोर्ट है, जो भारत की व्यापारी बिरादरी के बदलते चेहरे पर तीन हिस्सों में प्रकाशित हो रही है.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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