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Sunday, 22 December, 2024
होमफीचर'किस पर भरोसा करें?' - सेना और सशस्त्र प्रतिरोध के बीच फंसे हैं म्यांमार के सीमावर्ती कस्बों के लोग

‘किस पर भरोसा करें?’ – सेना और सशस्त्र प्रतिरोध के बीच फंसे हैं म्यांमार के सीमावर्ती कस्बों के लोग

सैन्य ठिकानों पर प्रतिरोध समूहों के लगातार हमलों ने नागरिकों को भारत भागने के लिए मजबूर कर दिया. जो रुके, वे नहीं जानते कि किसके साथ जाएं और जो चले गए, वे नहीं जानते कि कब लौटेंगे.

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चम्फाई: मिजोरम के चम्फाई जिले के सीमावर्ती शहर ज़ोखावथर से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर – एक जातीय सशस्त्र संगठन चिन नेशनल आर्मी (सीएनए) के गुरिल्ला, म्यांमार के चिन राज्य के फलम जिले के ख्वामावी शहर की धूल भरी सड़कों पर तेजी से चल रहे थे.

उनकी चाल में देशभक्ति और गर्व की भावना साफ झलक रही थी, उन्होंने स्थानीय निवासियों के साथ बातचीत की, कुत्तों पर हाथ फेरा, प्रतिरोध समूहों के लिए नए स्थापित कार्यालय में एकत्र हुए और ज़ोखावथर से लगभग 3 किलोमीटर दूर सुंदर रिह दिल झील के पास समय बिताया. म्यांमार और भारत को जोड़ने वाले तियाउ नदी पर बने पुल के प्रवेश बिंदु पर एक चिन गुरिल्ला पहरा दे रहा था.

प्रतिरोध सेनानी पेड़ों से ढकी पहाड़ियों से घिरे सीमा क्षेत्र की खोज कर रहे हैं और फलम के व्यापारिक शहरों में लोगों के बीत माहौल का पता लगा रहे हैं.

लेकिन यह कहानी का एक पक्ष है. सीमावर्ती शहर की नागरिक आबादी म्यांमार की सेना और प्रतिरोध बलों के बीच युद्ध से हमेशा डरी रहती है. वे भविष्य में होने वाली किसी भी घटना के बारे में अंदाज़ा लगाने में असमर्थ है और यह नहीं जानते कि किस पर भरोसा किया जाए. नाम न छापने की शर्त पर ख्वामावी के एक सैलून मालिक ने कहा, “हम अपने विचार साझा नहीं करना चाहते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि किस पर भरोसा करें. कुछ लोग सेना का समर्थन करते हैं और कुछ प्रतिरोध समूहों के साथ हैं.”

म्यांमार 1948 से गृहयुद्ध की चपेट में है. यह 1962 से 2011 के बीच सैन्य शासन के अधीन था. फरवरी 2021 में, सेना ने आंग सान सू की की नागरिक सरकार को गिराकर फिर से सत्ता पर कब्जा कर लिया. अब, जैसा कि कहा जाता है, जुंटा को जातीय सशस्त्र समूहों द्वारा कई मोर्चों पर निरंतर हमले के रूप में अपने सबसे बड़े खतरे का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें लोकतंत्र समर्थक लड़ाके भी शामिल हैं. 27 अक्टूबर को, जुंटा विरोधी ताकतों के इस गठबंधन – जिसे थ्री ब्रदरहुड एलायंस कहा जाता है – ने सैन्य चौकियों पर समन्वित हमले किए और कई सीमावर्ती शहरों पर कब्जा कर लिया, जिसे वे ‘ऑपरेशन 1027’ कहते हैं. तब से हमले जारी हैं.

पिछले महीने, CNA सहित म्यांमार के सैन्य-विरोधी प्रतिरोध बलों ने चिन राज्य में सुरक्षा चौकियों को निशाना बनाया था. हिंसा के कारण सैकड़ों लोग सुरक्षा के लिए भारत आ गए, जिसके बारे में भारत ने पिछले सप्ताह चिंता व्यक्त की, लेकिन लोकतंत्र की वापसी के लिए अपना समर्थन दोहराया. जो लोग रुके, वे इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि वे किसके साथ जाएं, और जो चले गए, वे निश्चित नहीं हैं कि वे कब लौटेंगे.

पिछले हफ्ते, मिजोरम के नव-शपथ ग्रहण करने वाले मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने कहा कि उनकी सरकार म्यांमार से आए शरणार्थियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान करना जारी रखेगी.

12 नवंबर को चिन डिफेंस फोर्सेज (सीडीएफ) और सहयोगियों द्वारा कब्जा किए जाने से पहले म्यांमार सेना के कम से कम 30 सैनिक रिहखवदार के ख्वामावी से सटे एक शहर में कंपनी मुख्यालय में थे. ऐसा माना जाता है कि अन्य 40-50 अस्थायी शिविर या ख्वामावी गांव के तियाउ शिविर में थे, जिस पर उसी दिन कब्जा कर लिया गया था.

सीमावर्ती बस्तियों के पास हवाई बमबारी और गहन गोलाबारी ने सैन्य और नागरिकों दोनों को तियाउ के पार भागने के लिए मजबूर कर दिया. संयुक्त अभियान पांच प्रतिरोध समूहों द्वारा चलाया गया जिसमें लगभग 150 चिन लड़ाके – सीएनए, सीडीएफ-हुआलंगोरम, सीडीएफ-ज़ानियाट्रम, पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ)/पीडीए-टिडिम और सीडीएफ-थैंटलांग की ड्रोन टीम शामिल थे.

26 नवंबर की रात को भारत-म्यांमार मैत्री पुल के ऊपर लगाए गए ‘वेलकम टू चिनलैंड’ के विजय चिन्ह को उतार दिया गया. चिन सेनानियों में से एक ने कहा, इस चिन्ह के कारण “कई चिंताएं” थीं, क्योंकि इसने मीडिया का ध्यान आकर्षित किया था.

इसके स्थान पर तीन चिन राष्ट्रीय झंडे लगाए गए. चिन की पहचान का प्रतीक हॉर्नबिल सर्दियों की हवा में बहते हुए, ‘लिबरेटेड जोन’ में नए आगंतुकों की खबर लेकर आते हैं, ये एक शब्द है जिसका इस्तेमाल सैन्य शासन से मुक्त अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थानों को इंगित करने के लिए किया जाता है.

Three Chin national flags visible from the India-Myanmar Friendship Bridge | Karishma Hasnat | ThePrint
भारत-म्यांमार मैत्री पुल से दिखाई दे रहे तीन चिन राष्ट्रीय झंडे | करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

गुरिल्ला लड़ाके ख्वामावी और रिहखावदार कस्बों की नागरिक आबादी की प्रतिक्रिया से प्रसन्न हैं.

थांटलांग के रहने वाले सीएनए के 23 वर्षीय कैप्टन नहेमायाह ने कहा, “हम अलग-अलग जिलों से आए हैं. जब से हमने शिविरों पर कब्जा किया है तब से लेकर आज तक – बहुत बदलाव आया है. वे हमारा 100 प्रतिशत समर्थन करते हैं और हमारे साथ खड़े हैं.”

एक अन्य CNA प्रतिरोध सेनानी, 19 वर्षीय क्यावलिन ने कहा, “कुछ लोग हमें घर भी आमंत्रित करते हैं.”


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‘कुछ बहादुर, कुछ बहुत डरे हुए हैं’

एक रिटायर्ड सरकारी शिक्षक और रिहख्वादर में इवेंजेलिकल मेथोडिस्ट चर्च के पादरी, रेवरेंड लालसाविचुआंगा, जो पिछले 36 वर्षों से शहर में रह रहे हैं और काम के लिए म्यांमार और भारत भर में बड़े पैमाने पर यात्रा करते हैं, उन्हें 1993 की स्थिति याद है – जब तातमाडॉ का शासनकाल था (अब Sit-Tat), म्यांमार का सैन्य अभिजात वर्ग अब अपने छठे वर्ष में प्रवेश कर गया.

लालसाविचुआंगा ने याद किया, “जब 1993 में सेना ने सत्ता संभाली, तो रिख्वादर शिविर के सैनिकों ने ग्रामीणों को बाड़ बनाने और परिसर को साफ करने का आदेश दिया. वे हमेशा हमें ऐसे उद्देश्यों के लिए नियुक्त करते हैं जिनमें बूबी ट्रैप के लिए पुंजी स्टिक बनाना भी शामिल है. हालांकि तब उन्होंने ज्यादा परेशान नहीं किया, लेकिन हमारी स्वतंत्रता प्रतिबंधित थी. मैं एक बार पक्षियों का शिकार करने के लिए जंगल में गया था, तब जुंटा ने मुझ पर अपनी गुलेल से उन्हें निशाना बनाने का आरोप लगाया.”

Reverend Lalsawichuanga outside his home in Myanmar border town Rihkhawdar | Karishma Hasnat | ThePrint
रेवरेंड लालसाविचुआंगा म्यांमार के सीमावर्ती शहर रिख्वादर में अपने घर के बाहर | करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

72 वर्षीय चर्चमैन के लिए, “सैन्य शासन और उसके कुकर्मों” के कारण लोकतंत्र को भारी झटका लगा है. उन्होंने कहा कि लेकिन समय के साथ, ग्रामीण सेना की उपस्थिति के आदी हो गए थे, जिससे “आपसी समझ” की भावना को बढ़ावा मिला – इतना कि जब उनके सभी पड़ोसी और परिवार के सदस्य ज़ोखावथर में भाग गए, तो लालसाविचुआंगा और उनके दामाद वहीं रह गए.

उन्होंने कहा, “जब से ग्रामीणों को लड़ाई के बारे में पता चला, वे भाग गए, लेकिन जुंटा ने कभी भी इस क्षेत्र को निशाना नहीं बनाया जिसके बाद हमें सुरक्षित महसूस हुआ और अब हम बंदूकों की आवाज़ के आदी हैं.”

पादरी ने अपनी आपबीती सुनाई जब लड़ाई शुरू हो गई थी और रिख्वादर युद्ध के मैदान में बदल गया था. यह सब शुरू होने से पहले, रेवरेंड ने अपनी पत्नी और बच्चों को ज़ोखावथर भेज दिया था. लालसाविचुआंगा ने कहा, “12 नवंबर की रात – रविवार का दिन था और हमें चर्च जाना था, लेकिन स्थानीय युवाओं ने हमें सतर्क कर दिया. हम घर पर रहे और सो गए. हालांकि हम गोलीबारी की आवाज़ सुन सकते थे, फिर भी हम सोये रहे. उस रात, मेरी पत्नी और बच्चे फोन करते रहे और हमें दूसरी तरफ आने के लिए कहते रहे. लेकिन मैं वहीं रुका रहा.”

उन्होंने आगे कहा, “अगली सुबह, लगभग सभी ग्रामीण भाग गए थे. उनमें से कुछ को क्रॉस-फायरिंग में गोली लगने से चोटें आईं. केवल मैं, मेरा दामाद और एक अन्य ग्रामीण वहां रुके रहें. कुछ घंटों के बाद रिख्वादर शिविर में गोलीबारी बंद हो गई, लेकिन तियाउ शिविर में जारी रही. हमने उस दिन दो बार लड़ाकू विमान और हमलावर हेलीकॉप्टर देखे. आख़िरकार मैं बाहर गया और ज़ोखावथार में अपने परिवार के साथ शामिल हो गया.”

लालसाविचुआंगा के पड़ोसी, सागांग क्षेत्र के 41 वर्षीय के मोइया ने कहा कि सेना ने लोगों को परेशान नहीं किया क्योंकि “ग्राम प्रधान और युवाओं की जुंटा के साथ अच्छी समझ है.”

उन्होंने कहा, “युद्ध से पहले भी, नियमित गोलीबारी होती थी. हम जुंटा कैंप के करीब रहते हैं, लेकिन हमें सुरक्षित महसूस होता है. स्थिति शांत होने पर हम तुरंत (ज़ोखावथर से) घर लौट आए.”

हालांकि, लालसाविचुआंगा ने स्वीकार किया कि कई कारणों की वजह से लोगों के सेना के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं. उन्होंने कहा, “हमारे गांव में पानी की पाइप लाइन सैन्य शिविर के सामने से गुजरती है. हमें जांच करने से रोकने के लिए जुंटा कर्मियों ने पाइप के अंदर एक बम रख दिया था. जब हमने पूछा तो उन्होंने इस बारे में न जानने का नाटक किया. उनके भागने से पहले, सैनिकों ने सटीक स्थान बताए बिना, हमें सूचित किया कि उन्होंने यहां-वहां बम रखे हैं. हम नहीं जानते कि वे कहां हैं.  पानी की सपलाई अभी भी प्रभावित है.”

दोनों रिख्वादार पड़ोसी सतर्क रहें. उन्होंने अनुमान लगाया कि शहर का सन्नाटा कभी भी गरजते जेट विमानों की आवाज से टूट सकता है. लालसाविचुआंगा ने कहा, “मुझे जवाबी कार्रवाई से ज्यादा डर नहीं लगता, लेकिन हम सतर्क हैं क्योंकि जुंटा जेट विमानों ने हमेशा कब्जे वाले ठिकानों पर बम गिराए हैं.”

मोइया ने कहा, “कुछ लोग बहादुर हैं, लेकिन कुछ बहुत डरे हुए रहते हैं. यही कारण है कि वे भारत में भाग जाते हैं और ज़ोखावथार को सुरक्षित पाते हैं.”

उन्होंने याद किया कि कलाय, हखा, फलम और टेडिम के मुख्य केंद्र सैन्य शासन के अधीन हैं. “मैं बहुत सुरक्षित महसूस नहीं करता क्योंकि सेना के मुख्य केंद्रों पर अभी तक कब्ज़ा नहीं हुआ है. यदि वे स्थान पीडीएफ के अंतर्गत आते हैं, तो जुंटा निश्चित रूप से रिखावदार में बम गिराएगा. यह सीमावर्ती व्यापारिक शहर है और सेना के लिए महत्वपूर्ण है.”

‘पता नहीं कब वापस लौटेंगे’

म्यांमार सीमा के किनारे के गांवों के निवासियों के लिए, भारत कोई विदेशी देश नहीं है. जातीयता और रिश्तेदारी के बंधन तियाउ नदी के दोनों किनारों पर समुदायों को बांधते हैं. चाउ और अरसा (चावल और चिकन) दोनों तरफ के रेस्तरां में परोसे जाते हैं. मछली, बत्तख और यहां तक कि ऑक्टोपस भी हैं जो चिन राज्य की सीमा से लगे सागांग क्षेत्र के कलायम्यो (कलाय) से आते हैं.

इससे व्यवसाय प्रभावित हुआ है. कुछ दुकानें खुली थीं, लेकिन ग्राहक कम थे. पब और भोजनालयों में काम करने वाले स्थानीय निवासी आगंतुकों की सेवा के लिए इंतजार कर रहे थे.

हाल के हवाई हमलों के बाद, अधिक लोग रिह दिल झील से तीन किलोमीटर दूर ज़ोखावथर में आ गए हैं.

A view of Champhai, the blue hills in the background are Myanmar | Karishma Hasnat | ThePrint
चम्फाई का एक दृश्य, म्यांमार के बैकग्राउंड में नीली पहाड़ियां | करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

मिज़ो और चिन लोगों के बीच एक लोकप्रिय कहावत है, जिसे उन्होंने स्कूल में सीखा है – “रिह झील मिज़ोरम की सबसे बड़ी झील है, लेकिन यह बर्मा में है.” दिल के आकार की यह झील भारत और म्यांमार दोनों में रहने वाले समुदायों के लिए एक पूजनीय स्थल है.

आइजोल के एक स्थानीय निवासी ने कहा, “हमारे पूर्वज रिह के किनारे रहते थे.” लोगों का मानना है कि यह झील आत्माओं का घर है.

चम्फाई जिला प्रशासन के अनुसार, 20 नवंबर को कुल 1,012 लोग ज़ोखावथर भाग गए. वे रिख्वादर, ख्वामावी, हैमुअल और फलम के परिधीय गांवों से आते हैं.

फरवरी 2021 में तख्तापलट के बाद से, म्यांमार के लगभग 6,201 विस्थापित, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं, अस्थायी आश्रयों, किराए के घरों में या ज़ोखावथर में सीमा के भारतीय हिस्से में अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं. कई लोग अपने देश लौट चुके हैं तो कई लोग फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि कहां जाना हैं.

रिहखावदार के 70 वर्षीय लालरुआथंगा – जो मार्च से ज़ोखावथर में एक राहत शिविर में रह रहे हैं, ने कहा कि “हमें नहीं पता कि कब लौटना है. क्योंकि हम नहीं जानते कि आगे क्या होगा. हमें संघर्ष खत्म होने तक यहीं रहना है.”

उन्होंने कहा, “ज़ोखावथार के अन्य शिविरों में, चोरी जैसे कुछ मुद्दे सामने आए हैं. लेकिन यहां (हमारे शिविर) हमें किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. स्थानीय लोग हमारे साथ अच्छे हैं और दयालु भी.”

जिला प्रशासन वर्तमान में शिविरों में लोगों की “वास्तविक संख्या” का पता लगाने के लिए ज़ोखावथर के नौ गांवों में एक सर्वेक्षण कर रहा है. इससे पहले अप्रैल में, ज़ोखावथार में विस्थापित म्यांमार नागरिकों के लिए सबसे बड़े आश्रय को तियाउ नदी के पास एक खेत से उच्च भूमि पर स्थानांतरित कर दिया गया था. शिविर में बिजली और पानी की सारी सुविधाएं हैं.


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शरणार्थियों का जीवन

दिप्रिंट से बात करते हुए, चम्फाई के डिप्टी कमिश्नर जेम्स लालरिंचन ने कहा कि अधिकारी शिविर के लोगों के बीच अन्य आबादी के साथ मिलकर रहने के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हमने म्यांमार के विस्थापित लोगों के लिए जिले भर में कई जागरूकता शिविर आयोजित किए हैं. हमें उन्हें सिखाना है कि हमारे साथ कैसे रहना है, हमारे बीच कैसे रहना है. जीवनशैली में कई अंतर हैं…यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) विस्थापित लोगों के साथ इन मुद्दों को उठाने का बहुत अच्छा काम कर रहा है.”

हालांकि, लालरिंचन ने सावधानी बरतने की बात कही. “अभी तक तो, हम बिल्कुल अच्छा कर रहे हैं. लेकिन यह चिंता की बात होगी अगर यह सालों-साल चलता रहे. मुख्य बात यह है कि म्यांमार में शांति हो और उनके मूल निवासी अपने वतन वापस जाएं. हम वह सब कर रहे हैं जो हम कर सकते हैं, यहां तक कि बच्चों को शिक्षा भी प्रदान कर रहे हैं. जब भोजन की बात आती है, तो गैर सरकारी संगठन आगे आते हैं और जो भी संभव हो योगदान देते हैं. कुछ लोग अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं, इसलिए इससे कुछ हद तक चीजें आसान हो गई हैं.”

उन्होंने कहा, “काम के संदर्भ में, केवल अस्थायी चीजों की अनुमति है. वे यहां स्थायी रूप से नहीं रह सकते. अधिकतर, वे निर्माण स्थलों पर मजदूर के रूप में लगे हुए हैं. कुछ के पास अच्छे कौशल हैं.”

कुछ शिविरों के स्थान ने प्रशासन के लिए उन्हें पहाड़ों के झरने के पानी से जोड़ना संभव बना दिया है. लालरिंचना ने बताया कि मौजूदा बुनियादी ढांचा मेज़बान आबादी और सीमावर्ती शहर में शरण लेने वाले लोगों दोनों के लिए पर्याप्त नहीं होता, अगर इसमें प्राकृतिक तंत्र मौजूद नहीं होते.

रिहख्वादर शहर का वनलुइया (58) मार्च में ज़ोखावथर में पड़ोसी लालरुआथंगा के शिविर में शामिल हुआ था. उन्होंने उम्मीद जताई कि नई मिजोरम सरकार उन्हें “बिना पक्षपात के शांति से रहने” देगी.

उन्होंने कहा, “हवाई हमले हमारे क्षेत्र में कभी भी हो सकते हैं. हम अपनी आजीविका के लिए खेती करते थे. अब हम पहले जैसा काम करने के लिए वापस नहीं लौट सकते. हम उम्मीद करते हैं कि नई शपथ लेने वाली मिजोरम सरकार बिना किसी पूर्वाग्रह के पहले की तरह शांति और न्याय सुनिश्चित करेगी. हम बेहतर जीवन जीना चाहते हैं.”

मिजोरम विधानसभा चुनाव के नतीजों से अन्य लोग अप्रभावित हैं. ख्वामावी के बाइबिल स्कूल शिक्षक, 35 वर्षीय पॉल लालमिंगथांग ने कहा, “मैं सरकार बनाने वाली किसी भी पार्टी से खुश हूं, क्योंकि वे सभी पूरा प्रयास करते हैं. कोई भी व्यक्ति, और कोई भी पार्टी पूर्ण नहीं होती.”

अपनी जीत के तुरंत बाद, ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के नेता और मिजोरम के नए सीएम लालडुहोमा ने संवाददाताओं से कहा कि उनकी सरकार मानवीय आधार पर म्यांमार और बांग्लादेश के शरणार्थियों और मणिपुर के विस्थापित लोगों को आश्रय प्रदान करना जारी रखेगी. इस मामले पर चर्चा के लिए उनके जल्द ही नई दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिलने की उम्मीद है.

राज्य गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 31,300 से अधिक म्यांमार नागरिक और 1,100 से अधिक बांग्लादेशी नागरिक वर्तमान में मिजोरम में शरण ले रहे हैं. लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह संख्या बहुत अधिक हो सकती है.


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रिख्वादर अब एक भुतिया शहर है

एक पखवाड़े पहले चिन लड़ाकों द्वारा म्यांमार के रिख्वादर और ख्वामावी इलाकों में सैन्य शिविरों पर कब्जा करना सिट-टाट (म्यांमार बलों) के लिए एक शर्मनाक घटना है. लेकिन प्रतिरोध की जीत की एक कीमत चुकानी पड़ी है.

रिख्वादर एक भुतिया शहर में बदल गया है, जहां बंद सरकारी कार्यालय हैं और लोगों के घरों में ताले लगे हुए हैं, जहां फूलों के गमले ठंड में सूखने के लिए छोड़ दिए गए हैं. कुछ परिवार सीमा के भारतीय हिस्से से लौट आए हैं और उन्होंने आगंतुकों के लिए अपने दरवाजे खुले रखे हैं.

रिख्वादर और खावमावी की कुल आबादी 6,000 से कुछ अधिक होने का अनुमान है. 28 नवंबर को इस संवाददाता की यात्रा के दौरान दोनों स्थान असामान्य रूप से शांत दिखे.

ध्वस्त किए गए शिविरों में एक अवास्तविक माहौल था, जहां रिहख्वादर के वार्ड नंबर 1 में रिह शिविर या म्यांमार सेना का कंपनी मुख्यालय, और ख्वामावी के पास वार्ड नंबर 2 में तियाउ शिविर थे. रिह शिविर, रिह दिल झील के पास स्थित है, जो मिजोरम में ज़ोखावथर से लगभग दो मील की दूरी पर है, या शहर तक केनबो बाइक की सवारी से पांच मिनट की दूरी पर है.

The Rih camp, the company headquarters of the Myanmar military in Rihkhawdar, demolished by Chin fighters | Karishma Hasnat | ThePrint
रिह कैंप, रिहख्वादर में म्यांमार सेना का कंपनी मुख्यालय, चिन सेनानियों द्वारा ध्वस्त किया गया | करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

उत्तर पश्चिम म्यांमार एक दूरस्थ और बड़े पैमाने पर अविकसित क्षेत्र बना हुआ है, खासकर भारत और बांग्लादेश की सीमा से लगे पहाड़ी क्षेत्र में, जो कई जातीय समूहों का घर है. 1990 के दशक की शुरुआत से, सैन्य जुंटा ने इस क्षेत्र पर अधिक नियंत्रण स्थापित करने की मांग की है, सड़कों के निर्माण और सैन्य अड्डों और चौकियों की स्थापना के साथ. सेना न केवल जातीय विद्रोह को कुचलना चाहती थी, बल्कि भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों का भी विस्तार करना चाहती थी.

पादरी लालसाविचुआंगा का मानना था कि अगले साल के अंत तक, पीडीएफ़ “चिन राज्य पर शासन करेगा”.

उन्होंने कहा, “नागरिक और पीडीएफ मिलकर म्यांमार के लिए लड़ते हैं. और यदि पीडीएफ़ की जीत होती है, तो हम आज़ादी में रहेंगे. प्राकृतिक संसाधन सभी सैन्य जुंटा के नियंत्रण में हैं और लोगों के लिए उपयोग नहीं किए जाते हैं. हम इसके साथ जिएंगे और अपना लक्ष्य हासिल होने पर अमीर बन जाएंगे.”

घनी झाड़ियों के बीच से एक संकरा रास्ता ख्वामावी के पास एक बार अच्छी तरह से मजबूत तियाउ शिविर की ओर जाता था. रास्ते में, ज़मीन पर हवाई बमबारी का प्रभाव देखा जा सकता था, जहां एक शिविर के पास एक गड्ढा, और एक क्षतिग्रस्त कब्रिस्तान हैं.

शिविर के चारों ओर सब कुछ प्रथम विश्व युद्ध और गुरिल्ला युद्ध रणनीति की प्रतिष्ठित विशेषताओं से गूंज उठा – जिसमें सैंडबैग बंकर, कांटेदार तार और बूबी जाल, हमलावरों के खिलाफ चेतावनी देने के लिए तार की बाड़ पर टिन के डिब्बे का उपयोग करके परिधि बाधाएं शामिल हैं.

इन छोड़े गए शिविरों में से एक में ताजा बगीचे की उपज के अवशेष थे, जिसमें विध्वंस के दौरान खोदे गए शकरकंद, एक तोड़फोड़ किए गए स्टोररूम में राख, एक नीला प्लास्टिक का घड़ा और एक चाय के कप के अलावा रसोई की मेज पर कुछ सूखी सामग्री थी. सैनिकों ने भागने में कोई समय बर्बाद नहीं किया होगा, साइट पर मौजूद एक चिन लड़ाकू के सैनिक ने भागने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तार वाली बाड़ में एक छेद की ओर इशारा किया.

One of the abandoned camps | Karishma Hasnat | ThePrint
छोड़े हुए शिविरों में से एक | करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

जब शिविरों पर हमला हुआ तो लगभग 45 म्यांमार सेना के जवानों ने भारत में प्रवेश किया था. उन्होंने 13 नवंबर को मिजोरम पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और बाद में उन्हें असम राइफल्स के अर्धसैनिक बल को सौंप दिया गया, जिससे म्यांमार में उनकी वापसी संभव हो गई.

बंकरों और खाइयों के पास हरे हेलमेट और कवच की प्लेटें, चावल का एक फटा हुआ थैला और एक शर्ट जो एक सैनिक की वर्दी का हिस्सा था, जो अति व्यस्त शिविरों में भयावह तस्वीरें बनाने के लिए बनाया गया था. जहां कुछ बिना फटे ड्रोन बम नज़र आ रहे थे.

An unexploded drone bomb | Karishma Hasnat | ThePrint
एक अविस्फोटित ड्रोन बम | करिश्मा हसनत | दिप्रिंट

एक चिन सैनिक ने कहा जो मिशन का हिस्सा था, “इस विशेष ऑपरेशन के लिए, प्रत्येक बल ने खुद को तैयार किया. 10 नवंबर से हमने योजना बनानी शुरू कर दी थी. हमने पहले भी ऐसे मिशनों का सामना किया था और उससे अनुभव प्राप्त किया था. योजना के मुताबिक, हम 12 नवंबर की शाम को निकले और सुबह 9 बजे तक जुंटा कैंप पर कब्जा करने की योजना बनाई. लेकिन हमें समय लगा और शाम 5 बजे तक हम इसे पकड़ने में सफल रहे. हमें देरी हुई क्योंकि जुंटा ने हमें रोकने के लिए अलग-अलग रणनीति का इस्तेमाल किया.”

उन्होंने कहा, “हमने युद्ध के मैदान पर ज्यादा क्षति के रोक लिया. नियमों के अनुसार, हम नागरिकों को पूर्व सूचना नहीं दे सकते हैं, लेकिन जब युद्ध चल रहा हो तो हम किसी भी संभव तरीके से उनकी रक्षा करने की पूरी कोशिश करते हैं.”

तियाउ शिविर में पहरा दे रहे एक गुरिल्ला सेनानी ने एक मार्ग के किनारे लगाए गए संभावित बारूदी सुरंगों को पार कर लिया, जबकि अन्य लोग पीछे चले गए. थोड़ी दूरी पर, एक खदान विस्फोट के कारण कथित तौर पर एक ग्रामीण ने अपने पैर की उंगलियां खो दीं.

हाल के हमले में हताहतों की संख्या की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की जा सकी है, लेकिन कार्रवाई में मारे गए म्यांमार सेना के एक सैनिक को कथित तौर पर रिह झील के किनारे शिविर में दफनाया गया था.

म्यांमार सेना की 268 लाइट इन्फैंट्री बटालियन (एलआईबी) के इस शिविर में चिन राष्ट्रीय ध्वज आसमान के नीचे लहरा रहा था. कहा जाता है कि पकड़ा गया रिह सैन्य शिविर “50 वर्ष से अधिक पुराना” था.

चिन सैनिक ने कहा, “जैसा कि हमने उनके शिविर पर कब्जा कर लिया है, यह उम्मीद है कि जुंटा हमारे लिए आएगा. लेकिन, हम अपनी जमीन की रक्षा करने और पद संभालने के लिए हमेशा तैयार हैं. हालांकि वे दोबारा आ सकते हैं, लेकिन शिविर पर दोबारा कब्ज़ा करना असंभव है क्योंकि हमने इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया है.”

 ‘चिन राज्य हमेशा चिन राज्य ही रहेगा’

जबकि अग्रिम पंक्ति के चिन गुरिल्ला हर जीत के साथ युद्ध का अनुभव प्राप्त कर रहे हैं, नागरिक आबादी ने चिन राज्य में विभिन्न जातीय सशस्त्र संगठनों के बीच मतभेदों के बारे में चिंता जताई है.

सीडीएफ लड़ाके अम्ब्रेला यूनियन, चिनलैंड संयुक्त रक्षा समिति (सीजेडीसी) के भी सदस्य हैं, जिसका गठन तख्तापलट के महीनों बाद किया गया था. जो प्रोटोकॉल निर्धारित करने और किसी भी गलतफहमी या संघर्ष के लिए समूहों के बीच मध्यस्थता करने के लिए काम करता है. इसमें चिन राज्य की नौ टाउनशिप और विभिन्न छोटी जनजातियों के प्रतिनिधि शामिल हैं. पिछले महीनों में, कुछ समूहों के बीच असहमति की घटनाएं हुई हैं, जिनमें कई बार ज़मीनी स्तर पर “समन्वय की कमी” को जिम्मेदार ठहराया जाता है.

जब इस संवाददाता ने जनवरी में फलम में चिन नेशनल डिफेंस फोर्स (सीएनडीएफ) शिविर का दौरा किया, तो पता चला कि हालांकि समूहों का चिन राष्ट्र निर्माण का एक सामान्य उद्देश्य है, लेकिन लक्ष्य प्राप्त करने का तरीका अलग है. सीएनडीएफ चिन नेशनल ऑर्गनाइजेशन (सीएनओ) की सशस्त्र शाखा है, जिसका गठन 13 अप्रैल, 2021 को हुआ था.

पादरी लालसवीचुआंगा ने कहा, “एकता बनाए रखने के लिए, उनके पास अच्छा प्रशिक्षण होना चाहिए… उन्हें आज्ञाकारी होना चाहिए और किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए. विभिन्न सीडीएफ के प्रमुख नेताओं को एक-दूसरे के साथ घनिष्ठ संबंध रखने चाहिए और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए…तब हम सभी में एकता होगी.”

इस बीच, पहले उद्धृत एक अन्य रिहखावदार निवासी वनलुइया ने कहा कि स्थानीय निवासियों ने सैन्य शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए सीडीएफ को अपना समर्थन देने का वादा किया है.

उन्होंने कहा, “आज तक, प्रतिरोध सेनानी हमारे साथ अच्छे हैं, और मित्रवत भी. लेकिन हम भविष्य के बारे में नहीं जानते. हम उनसे ज्यादा उम्मीद करने की हिम्मत नहीं करते क्योंकि स्प्रिंग रेवोलुशन अभी भी जारी है. केवल एक चीज जो हम कर सकते हैं वह है अपना समर्थन देना.”

लालसाविचुआंगा ने आशा व्यक्त की कि चिन राज्य के लोग हमेशा एकजुट रहेंगे. “…हमें उम्मीद है कि विजय यात्रा जारी रहेगी… स्वतंत्रता मिलने के बाद, चिन राज्य, एनयूजी एक अलग संविधान का मसौदा तैयार कर सकता है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि चिन राज्य हमेशा चिन राज्य ही रहेगा, और सभी जनजातियां एकजुट रहेंगी. आत्मनिर्णय का अधिकार प्रबल होना चाहिए.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस फीचर को अंग्रेंज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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