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Saturday, 9 November, 2024
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5 सालों के लिए प्रतिबंधित: कौन हैं मणिपुर में सक्रिय मैतेई विद्रोही समूहों और क्या हैं उनकी मांगें

सुरक्षा विश्लेषक का कहना है कि मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा को देखते हुए एमएचए का मैतेई संगठनों पर प्रतिबंध 'एहतियाती कदम' है या विद्रोहियों को बातचीत की मेज पर लाने के लिए 'बैलेंसिंग ऐक्ट' है.

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इम्फाल: गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा इस सप्ताह प्रतिबंधित किए गए नौ “मैतेई चरमपंथी संगठनों” में से कुछ मणिपुर के सबसे पुराने और सबसे शक्तिशाली विद्रोही संगठन हैं, जिनके कैडर कथित तौर पर चल रहे जातीय तनाव के बीच राज्य में लौट आए हैं.

हालांकि, इनमें से कुछ संगठनों में पहले के समय में मतभेद देखा गया है, लेकिन उनका उद्देश्य काफी हद तक एक ही है: मणिपुर का एक संप्रभु राज्य. गृह मंत्रालय के अनुसार, इन संगठनों का “घोषित उद्देश्य” “सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से मणिपुर को भारत से अलग करके एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना करना और मणिपुर के स्वदेशी लोगों को इस तरह के अलगाव के लिए उकसाना है.”

गृह मंत्रालय ने 13 नवंबर 2023 को एक राजपत्र अधिसूचना में नौ मैतेई संगठनों पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया कि वे “भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक” गतिविधियों में संलग्न थे.

अधिसूचना में आगे कहा गया है कि यदि तुरंत नियंत्रित नहीं किया गया, तो संगठन ‘नागरिकों की हत्या और पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को निशाना बनाने, अंतरराष्ट्रीय सीमा पार से अवैध हथियारों और गोला-बारूद की खरीद और उनकी गैरकानूनी गतिविधियों के लिए जनता से जबरन वसूली व भारी धन संग्रह शामिल हो सकते हैं.’ .’

यूएपीए के तहत प्रतिबंधित संगठन हैं: पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जिसे आम तौर पर पीएलए के नाम से जाना जाता है, और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ); यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा, मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए); पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ़ कंगलेइपक (PREPAK) और इसकी सशस्त्र शाखा, ‘रेड आर्मी’; कांगलेइपक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी) और उसकी सशस्त्र शाखा, जिसे ‘रेड आर्मी’ भी कहा जाता है; कांगलेई याओल कनबा लुप (केवाईकेएल); समन्वय समिति (कोरकॉम) और एलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कांगलेइपाक (एएसयूके).

एक सुरक्षा विश्लेषक ने दिप्रिंट को बताया कि गृह मंत्रालय की अधिसूचना को या तो मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा को देखते हुए एक “एहतियाती कदम” कहा जा सकता है या मैतेई विद्रोहियों को बातचीत की मेज पर लाने के लिए एक “बैलेंसिंग ऐक्ट” कहा जा सकता है – जो सशस्त्र कुकी समूहों से निपटने के केंद्र सरकार द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण के समान है.

नाम न बताने की शर्त पर सुरक्षा विश्लेषक ने कहा,“यह केंद्र सरकार की ओर से एक संतुलनकारी काम भी हो सकता है, क्योंकि यह वर्तमान में कुकी विद्रोही समूहों के साथ बातचीत में लगी हुई है, जिन्होंने 2008 में सरकार के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. पांच साल की समय अवधि मैतेई विद्रोही समूहों के साथ इसी तरह के समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं.”

यह प्रतिबंध मणिपुर में मैतेई और कुकी के बीच जातीय हिंसा के मद्देनजर लगाया गया है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग विस्थापित हुए. खुफिया सूत्रों के मुताबिक, राज्य की पहाड़ियों और घाटी में सभी विद्रोही शिविरों में भर्ती में भी तेजी देखी जा रही है.

लगाया गया निषेध: पीएलए और आरपीएफ

रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ) पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की राजनीतिक शाखा है, जिसका गठन 1978 में मणिपुर को “मुक्त” कराने के लिए किया गया था. यह पूर्वोत्तर में सक्रिय अलगाववादी विद्रोही समूहों में से एक है जो सरकार की शांति वार्ता की पेशकश को अस्वीकार करता रहता है.

पीएलए के गठन के एक साल बाद स्थापित आरपीएफ बांग्लादेश में निर्वासित सरकार चलाती है.

पूर्वोत्तर में सबसे मायावी गुरिल्ला नेताओं में से एक, इरेंगबाम चाओरेन – जो इस साल फरवरी में अपनी मृत्यु के समय आरपीएफ के अध्यक्ष थे – का मानना था कि “शांति वार्ता के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं है”. हालांकि यह पता नहीं चल पाया है कि चाओरेन ने अंतिम सांस कहां ली, सुरक्षा विश्लेषकों ने दिप्रिंट को बताया कि हो सकता है कि उन्होंने अपने अंतिम दिन म्यांमार के मांडले में बिताए हों. विश्लेषकों ने कहा कि कुछ आरपीएफ नेता म्यांमार से भी काम करते हैं, हालांकि यह एक मैतेई संगठन है, लेकिन पीएलए खुद को एक ‘ट्रांस-ट्राइबल संगठन’ होने का दावा करता है.

पीएलए/आरपीएफ के सदस्यों ने मणिपुर की संप्रभुता के लिए हथियार उठाने की प्रतिज्ञा की है और मैतेई, नागा और कुकी-चिन्स सहित सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया है. आरपीएफ/पीएलए भी राज्य के उन कुछ विद्रोही समूहों में से एक है जो गुटों में विभाजित नहीं हुए हैं.

लगभग 2,000 कैडरों की अनुमानित ताकत के साथ, पीएलए/आरपीएफ को पूर्वोत्तर में सबसे बड़े सक्रिय विद्रोही समूहों में गिना जाता है.

आरपीएफ की स्थापना के कुछ समय बाद ही इस क्षेत्र में विद्रोह में तेजी देखी गई. 1980 के सितंबर में, मणिपुर सरकार ने पूरी घाटी को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया और सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (एएफएसपीए), 1958 लागू कर दिया.

26 अक्टूबर 1981 को आरपीएफ, पीआरईपीएके और केसीपी को गैरकानूनी संगठन घोषित किया गया था.

1990 में, PLA/RPF ने राज्य में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. पूर्ण शराबबंदी लागू करने और बलात्कार के आरोपियों को मार गिराने के अलावा, उनके काडर ने नशीली दवाओं के तस्करों के खिलाफ भी जोरदार अभियान चलाया.

सुरक्षा विश्लेषकों के अनुसार, यह संगठन यूएनएलएफ, पीआरईपीएके, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम-इंडिपेंडेंट (उल्फा-आई) सहित पश्चिम दक्षिण पूर्व एशिया (डब्ल्यूईएसईए) और म्यांमार स्थित काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) में सक्रिय अन्य विद्रोही समूहों के साथ गठजोड़ बनाए रखता है. आम बोलचाल में WESEA में पूर्वोत्तर भारत, भूटान, उत्तरी बंगाल और म्यांमार शामिल हैं.

आईसीएम द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल 11 नवंबर तक 14 घटनाओं के मामले में 21 पीएलए कैडरों को गिरफ्तार किया गया था.


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‘बाहरी लोगों’ का निष्कासन चाहते हैं: PREPAK

पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (PREPAK) एक मणिपुर स्थित सशस्त्र विद्रोही समूह है जिसका गठन 9 अक्टूबर 1977 को आर.के. तुलाचन्द्र के नेतृत्व में किया गया था. इसकी मांगों में एक स्वतंत्र मातृभूमि और राज्य से ‘बाहरी लोगों’ का निष्कासन शामिल है.

1986 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में तुलाचंद्र के मारे जाने के बाद संगठन निष्क्रिय हो गया. उनकी मृत्यु के बाद, एस. वांगलेन संगठन के ‘कमांडर-इन-चीफ’ बन गए.

तब से PREPAK कई विभाजनों से गुज़रा है. मई 2011 में, PREPAK के ‘सहायक सचिव’ (प्रचार) और प्रचार प्रभारी ‘मेजर’ एन. सुनील ने एक पहाड़ी जिले में एक प्रेस बैठक में घोषणा की कि संगठन को PREPAK (प्रगतिशील) के रूप में फिर से नामित किया गया है.

यह कहते हुए कि इससे PREPAK प्रतीक या स्थापना दिवस में कोई बदलाव नहीं होगा, सुनील ने यह भी घोषणा की कि PREPAK (प्रो) ‘स्वतंत्रता के लिए संघर्ष’ के लिए प्रतिबद्ध रहेगा, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मणिपुर स्थित सभी क्रांतिकारियों का एक संयुक्त मोर्चा प्रस्तुत करने के लिए जनता की इच्छा के अनुसार रीब्रांडिंग की गई है.

वर्तमान में, PREPAK (प्रो) का नेतृत्व इसके ‘अध्यक्ष’ लोंगजाम पालिबा एम द्वारा किया जाता है.

2001 में, संगठन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री राधाबिनोद कोइजम की युद्धविराम की पेशकश को अस्वीकार कर दिया था और तब से भारत सरकार के साथ किसी भी बातचीत से इनकार कर दिया है जब तक कि मणिपुर की ‘स्वतंत्रता’ को एजेंडे में शामिल नहीं किया जाता है.

म्यांमार में शिविर: यूएनएलएफ

मणिपुर में सबसे पुराना ज्ञात मैतेई विद्रोही समूह, यूएनएलएफ का गठन ‘स्वतंत्र, संप्रभु मणिपुर’ की स्थापना के लिए 24 नवंबर को अरंमबाम समरेंद्र के नेतृत्व में किया गया था. यह पूर्वोत्तर में सक्रिय सबसे बड़े अलगाववादी संगठनों में से एक है, जिसके म्यांमार के सागांग क्षेत्र के साथ-साथ बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में कई शिविर हैं.

इसके नेता अरंबाम समरेंद्र की 10 जून 2001 को इंफाल में अज्ञात आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी.

सत्तर और अस्सी के दशक में, यूएनएलएफ ने मुख्य रूप से लामबंदी और भर्ती पर ध्यान केंद्रित किया. और 1990 में, इसने भारत से मणिपुर की ‘मुक्ति’ के लिए एक सशस्त्र संघर्ष शुरू किया. उसी वर्ष, इसने मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) नामक एक सशस्त्र विंग का गठन किया.

यूएनएलएफ में 1990 के दशक के मध्य में एक औपचारिक विभाजन देखा गया जब संगठन के तत्कालीन ‘महासचिव’ राज कुमार मेघेन के भरोसेमंद लेफ्टिनेंट एन. ओकेन ने अलग होकर कांगलेई यावोल कन्ना लुप (केवाईकेएल) का गठन किया. बाद में PREPAK ने दोनों के बीच शांति स्थापित की.

मणिपुरी शाही परिवार के वंशज मेघेन उर्फ सनायिमा ने बाद में यूएनएलएफ के ‘अध्यक्ष’ के रूप में पदभार संभाला.

2010 में मेघेन को बांग्लादेश में पकड़े जाने और भारत को सौंपे जाने के बाद, खुंडोंगबाम पामबेई ने ‘अध्यक्ष’ की भूमिका निभाई.

2021 में, संगठन दो भागों में विभाजित हो गया: एक गुट संगठन की केंद्रीय समिति के प्रति जवाबदेह था और दूसरा पाम्बेई के नेतृत्व में था.

उग्रवाद से संबंधित मौतें 10 साल के उच्चतम स्तर पर

दिप्रिंट ने पहले रिपोर्ट दी थी कि कैसे मणिपुर में संघर्ष ने जातीय आधार पर विभाजित सशस्त्र विद्रोही समूहों के बीच संगठित झड़पों की बाढ़ ला दी है.

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (एसएटीपी) पर प्रकाशित दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट (आईसीएम) के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में उग्रवाद के कारण होने वाली मौतें 10 साल के उच्चतम स्तर पर हैं.

11 नवंबर 2023 तक, पोर्टल ने मणिपुर में उग्रवाद से संबंधित घटनाओं के लिए 139 मौतों को जिम्मेदार ठहराया. इनमें 68 नागरिक, 54 विद्रोही, 16 सुरक्षा बल के जवान और एक अनजान व्यक्ति शामिल था.

इस वर्ष की शुरुआत से राज्य में हुए अधिकांश हमलों की जिम्मेदारी मान्यता प्राप्त विद्रोही समूहों ने नहीं ली है.

मणिपुर में उग्रवाद से संबंधित 80 प्रतिशत से अधिक मौतें 2010 से पहले दर्ज की गई थीं, पिछले पांच वर्षों में इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, सेनापति और उखरुल सहित सात जिलों में कोई मृत्यु नहीं हुई है.

हालांकि, 3 मई को मुख्य रूप से घाटी में रहने वाले मैतेई और पहाड़ी जिलों में कुकी जनजातियों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद से राज्य भर में कम से कम 180 लोग मारे गए हैं और 1,100 से अधिक घायल हुए हैं.

इस अस्थिर परिदृश्य ने मणिपुर में उग्रवाद के संबंध में चिंताओं को फिर से जगा दिया है, जिससे विशेष रूप से घाटी-आधारित विद्रोही समूहों (वीबीआईजी) के साथ शांति समझौते की अपील की जा रही है.

मीडिया के कुछ हिस्सों में आई खबरों के मुताबिक, वीबीआईजी के समूह समन्वय समिति (कोरकॉम) के तहत प्रतिबंधित संगठनों के मैतेई विद्रोही राज्य में लौट आए हैं.

कोरकॉम में PREPAK और उसके प्रगतिशील गुट (PREPAK प्रो), आरपीएफ और UNLF शामिल हैं. माना जाता है कि केसीपी और केवाईकेएल सहित अन्य समूह, जो पहले कोरकॉम का हिस्सा थे, भी गतिविधि फिर से शुरू कर रहे हैं.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्वोत्तर के अधिकांश अन्य विद्रोही समूहों की तरह, ये संगठन धन के लिए स्थानीय लोगों और व्यापारियों से जबरन वसूली करते हैं.

कथित तौर पर मणिपुर में हिंसा के कारण घाटी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में विद्रोही समूहों और उनके जमीनी कार्यकर्ताओं द्वारा जबरन वसूली की मांग में वृद्धि हुई है.

जैसा कि गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है, केंद्र सरकार का मानना है कि “यदि इन संगठनों पर तत्काल अंकुश और नियंत्रण नहीं किया गया, तो वे अपने अलगाववादी, विध्वंसक आतंकवादी और हिंसक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए अपने कैडरों को संगठित करने का अवसर लेंगे”.

पहले जिसका जिक्र किया गया है उन सुरक्षा विश्लेषक ने कहा, “दोनों समुदायों के विस्थापित लोगों को सभी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करने के साथ, मणिपुर में विद्रोही संगठनों को कैडर की भर्ती के लिए उपजाऊ जमीन मिल गई है और वे समाज में अपनी स्थिति फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.”

इससे पहले, केंद्र सरकार ने 15 मई 2019 को एक गजट अधिसूचना में उन्हीं मैतेई विद्रोही समूहों को – जिसमें उनके विभिन्न मोर्चों, विंगों और गुटों को शामिल किया था – “गैरकानूनी संघ” घोषित किया था.

हालांकि 2019 की अधिसूचना में प्रतिबंध की अवधि का जिक्र नहीं किया गया था, लेकिन इसमें 13 नवंबर 2018 के गजट अधिसूचना में की गई घोषणा का उल्लेख किया गया था, जो गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत घोषणा की पुष्टि करती है.

नाम न छापने की शर्त पर एक मैतेई लेखक ने कहा कि गजट अधिसूचना में मणिपुर सरकार द्वारा मैतेई विद्रोही समूह के साथ शांति वार्ता शुरू करने की अटकलें लगाई गई थीं.

लेखक ने दिप्रिंट को बताया, “वे (केंद्र सरकार) पिछले कई वर्षों से ऐसा कर रहे हैं. इस बार एकमात्र अंतर, प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ाने की अधिसूचना की भाषा और घोषणा का है. हो सकता है कि इस अवधि में सरकार इन समूहों को ख़त्म करने या उनमें से कुछ को बातचीत की मेज पर लाने के बारे में सोचे. हम सुनते रहे हैं कि मणिपुर सरकार एक विद्रोही गुट के साथ बातचीत शुरू कर रही है. उनमें से कुछ लोग मुख्यधारा में लौटने की योजना भी बना रहे होंगे.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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