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Thursday, 21 November, 2024
होमफीचरआज के भारत में आयुर्वेद को कौन चुनौती दे रहा है? मिलिए केरल के डॉक्टर सिरिएक एब्बी फिलिप्स से

आज के भारत में आयुर्वेद को कौन चुनौती दे रहा है? मिलिए केरल के डॉक्टर सिरिएक एब्बी फिलिप्स से

डॉक्टर एब्बी फिलिप्स वैसे तो एक एलोपैथिक हेपेटोलॉजिस्ट हैं, लेकिन केरल और सोशल मीडिया पर लोग उन्हें आयुर्वेदिक दवाओं से लीवर को होने वाले नुकसान से जागरूक करने वाली शख्सियत के तौर पर जानते है. उन्हें इसके लिए आयुर्वेद-होम्योपैथी इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से धमकियां भी मिलती रही हैं.

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आयुर्वेद का भंडाफोड़ करने वाले डॉक्टर सिरिएक एब्बी फिलिप्स होना आसान नहीं है. ऐसे समय में तो बिलकुल नहीं जब आयुर्वेद की महिमा का गुणगान करने में सरकारी महकमा और एक बड़ा राजनीतिक दल पूरे-जोर-शोर के साथ लगा हो.

ऐसा करना बेवजह नहीं है. उनके सामने ऐसे कई मामले आए हैं. पिछले पांच सालों से केरल के एलोपैथिक हेपेटोलॉजिस्ट और क्लिनिशियन-वैज्ञानिक एब्बी फिलिप्स वैकल्पिक दवाओं के इस्तेमाल से होने वाली जटिलताओं से पीड़ित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. वह 2019 से आयुर्वेद, होम्योपैथी, सिद्ध और यूनानी इलाज पर अपने ट्विटर हैंडल – @theliverdr से सर्जिकल स्ट्राइक कर रहे हैं.

अपने तीखे और अक्रामक रवैये के साथ, एब्बी फिलिप्स गुड़ या हल्दी या गिलोय जैसे घरेलू उपचारों के बारे में प्रचलित धारणाओं को खारिज करते हैं. वह उन मामलों पर चर्चा करते हैं जहां इन अवैज्ञानिक उपचारों के कारण मरीजों को खासी परेशानियों को सामना करना पड़ा है, आम मिथकों को तोड़ते हुए रिसर्च स्टडी और वैज्ञानिक पेपर पोस्ट करते हैं, भ्रामक बातों को उजागर करते हैं या रामदेव के पतंजलि उत्पाद विज्ञापनों में किए गए अप्रमाणित दावे और होम्योपैथी या आयुर्वेद के फायदों के बारे में बार-बार किए जाने वाले दावों को आगे बढ़ाने वाले किसी भी व्यक्ति पर कड़ी कार्रवाई करते हैं. ‘उनकी इस दखलंदाजी की वजह से ये साल होम्योपैथी के लिए काफी मुश्किल भरा रहा है, जिससे होम्योपैथ को एक बड़ी सामाजिक/करियर क्षति हुई है’ जब यह सवाल डॉ से किया गया तो उन्होंने क्या किया? उन्होंने स्टैंड-अप कॉमेडियन काजोल श्रीनिवासन के साथ एक इंटरव्यू में दो मिनट की ‘माफी’ मांगी और कहा ‘होम्योपैथी दुनिया का सबसे लंबे समय तक चलने वाला सर्कस है.’

आयुर्वेद के खिलाफ एब्बी फिलिप्स की लड़ाई 2017 में शुरू हुई जब शराब न पीने वाले एक ग्रुप में शराब से लिवर खराब होने वाले लक्षण दिखाई दिए. जांच के बाद एब्बी और उनकी टीम ने पाया कि आयुर्वेद की गोलियां इसका कारण थीं. तब से, उन्होंने लोगों को इस छद्म वैज्ञानिक ‘चिकित्सा’ के हानिकारक प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करने को अपना मिशन बना लिया.

एब्बी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘हमें लगता है कि हर्बल सुरक्षित है. भले ही यह प्रभावी न हो, लेकिन यह शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाएगा. मैं बस इसी सोच को बदलना चाहता हूं.’

वह अब केरल और सोशल मीडिया पर आयुर्वेद से लीवर को होने वाले नुकसान के बारे में सजग करने वाली शख्सियत बन गए हैं. अपने इस प्रयास में आयुर्वेद-होम्योपैथी इंडस्ट्री से काफी कुछ सुनने को मिला है. उन्हें धमकियां और कानूनी नोटिस भी मिले हैं.


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भारत में एक मुश्किल लड़ाई

एब्बी ट्विटर पर ‘द लिवर डॉक’ के नाम से जाने जाते हैं. पर उनकी बढ़ती उपस्थिति ने उनके संदेश को दूर-दूर तक फैला दिया है. उनके बेबाक रवैये और हंसी-मजाक में कटाक्ष करते हुए अपनी बात रखने लहजे ने उनके कई प्रशंसक बना लिए हैं.

वह कहते हैं, यह आसान काम नहीं है. वैसे तो छद्म विज्ञान (pseudoscience) दुनिया भर में एक समस्या है, लेकिन यह भारत में एक अलग ही रूप धारण कर लेता है. वह कहते हैं, ‘यह धर्म, संस्कृति और अब राजनीति से गहराई तक जुड़ा हुआ है.’ इस धर्मयुद्ध में उनकी पसंद का हथियार विज्ञान है. वैसे तो आयुर्वेदिक चिकित्सा में भारी धातु की उपस्थिति के जोखिम के बारे में लोगों को काफी कुछ पता है लेकिन वह नहीं जानते कि अश्वगंधा, गिलोय, हल्दी जैसी जड़ी-बूटियां शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं. एब्बी बताते हैं, ‘ये हर्ब्स नई परेशानियां पैदा कर सकती हैं या पहले से शरीर में मौजूद रोगों को और बढ़ा सकती हैं.’

पिछले हफ्ते (16दिसंबर) को उनका सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला ट्वीट ‘मिथकों’ को तोड़ने के लिए था- गुड़ चीनी से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक नहीं है, जूस डिटॉक्स और डिटॉक्स वॉटर सब बेकार की चीजें हैं.

अब उनके दूसरे ट्वीट की तरफ आते हैं. इसमें उन्होंने च्यवनप्राश बिस्कुट की एक तस्वीर को कैप्शन दिया था: ‘मैं इसे खाने की बजाय बिना एनेस्थीसिया के अपना विजडम टूथ निकलवाना पसंद करूंगा.’

हर्बल दवाओं के एक सक्रिय, मुखर आलोचक और आयुर्वेद के एक चिकित्सक ने कहा. ‘एब्बी के क्लिनिक को एक नोडल फार्माकोविजिलेंस सेंटर के रूप में मान्यता दे दी जानी चाहिए जहां आयुष कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए भेजा जा सकता है.’

‘अमीर और शक्तिशाली’ बनाम एब्बी

2014 में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए राजनीतिक प्रयास काफी तेज हो गए थे. आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) का गठन भी इसी साल किया गया था. 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार ने वैकल्पिक दवाओं को विकसित करने के लिए मंत्रालय को 144 करोड़ रुपये भी आवंटित किए थे. लेकिन एब्बी की रिसर्च का दावा है कि दवाओं की अति लीवर के नुकसान का कारण बनती हैं, जो कभी-कभी घातक भी हो सकती है.

अभी हाल ही में, पीएम मोदी ने दो अन्य आयुष संस्थानों के साथ गोवा में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान का उद्घाटन किया.

एब्बी अच्छे से जानते हैं कि कौन और क्या चीजें उनके खिलाफ है.

वरिष्ठ सहयोगियों ने उन्हें चेतावनी दी कि उनकी सक्रियता उन्हें ‘आयुष लॉबी और सरकार से खतरे’ में डाल देगी. राष्ट्रवादी डॉक्टरों ने उन्हें हतोत्साहित किया, लेकिन एब्बी अपने मिशन पर डटे रहे.

अंग प्रत्यारोपण विभाग, अमृता संस्थान में कार्यरत एस. सुधींद्रन याद करते हुए बताते हैं कि एक बार ‘समृद्ध और शक्तिशाली’ आयुर्वेद लॉबी ने ‘हेपेटोलॉजी कम्युनिकेशंस’ पत्रिका में गिलोय पर लिखे एब्बी के लेखों में से एक को वापस ले लिया था.

सुधींद्रन ने कहा, ‘धमकियों के बावजूद अपने काम को करते रहने की उनकी प्रतिबद्धता उन्हें बाकी सबसे अलग करती है. हममें से ज्यादातर लोग ऐसी घटना के बाद रुक जाते हैं. लेकिन एब्बी ने पत्रिका के संपादकों के खिलाफ शिकायत की. उनमें लॉबी के खिलाफ खड़े होने का साहस था.’

आयुर्वेद में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाली जड़ी-बूटी गिलोय पर अपने विचारों को लेकर एब्बी को आयुष मंत्रालय की तरफ से मानहानि की धमकी भी मिली थी. प्रधानमंत्री कार्यालय को सितंबर 2021 में एक पत्र मिला था, जिसे आयुष मंत्रालय को भेज दिया गया था. एब्बी को फरवरी 2022 में केरल स्टेट मेडिकल काउंसिल फॉर इंडियन सिस्टम्स ऑफ मेडिसिन से भी नोटिस दिया गया था. लेकिन अक्टूबर में उन पर लगे सभी आरोपों को वापस ले लिया गया.

अगर हम कहें कि इस तरह के हमलों और पीछे न हटने की उनकी लगन के साथ- साथ उनके पास स्पीड डायल पर एक वकील भी है, तो आपको हैरानी नहीं होनी चाहिए.

वह मिशन फॉर एथिक्स एंड साइंस इन हेल्थकेयर (एमईएसएच) के अध्यक्ष हैं, जो पूर्व होम्योपैथ आरिफ हुसैन थेरुवथ द्वारा शुरू किए गए समान विचारधारा वाले व्यक्तियों का एक समूह है.

एब्बी कहते हैं, ‘मेरे साथ एक वकील हैं, जो एमईएसएच का हिस्सा है. जब भी मैं या कोई अन्य सदस्य कानूनी पचड़े में पड़ जाता है, तो वह बिना किसी स्वार्थ के हमारा साथ देता है.’ वह आगे बताते है कि बड़े मामलों के लिए सभी सदस्य पैसा लगाते हैं. मसलन जैसे अभी होम्योपैथिक दवाओं के खिलाफ एक रिट याचिका मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट में है. इस याचिका में बच्चों में कोविड के इलाज के लिए आर्सेनिकम एल्बम को सरकार की तरफ से मिली रजामंदी को चुनौती दी गई है. पहली बार अक्टूबर 2021 में केरल उच्च न्यायालय में दायर की गई थी. जब इसे खारिज कर दिया गया, तो एबी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने मार्च में आयुष मंत्रालय को अधिसूचित किया था.


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लैब पर हमला और धमकियां

उन्हें बदनाम करने की कोशिश तो लगातार चलती ही रहती है. इसके अलावा प्रताड़ना और रोज-रोज की नोक-झोंक भी उनकी रोजाना की जिंदगी का हिस्सा बन गई है.

एब्बी याद करते हैं कि जब उत्पादों का टेस्ट करने के लिए0 तैयार की जा रही लैब का नाम और जगह लीक हो गई तो होमियोपैथ का समर्थन करने वाला एक ग्रुप लैब में घुस गया. उसने कर्मचारियों को परेशान करना शुरू कर दिया और फेसबुक पर हिंसा से जुड़ी तस्वीरें पोस्ट कीं गईं.

उन्होंने उस जगह को बदल दिया और नए स्थान के बारे में किसी को भनक तक नहीं लगने दी.

वह बताते हैं, ‘मुझे किसी का एक गुमनाम पत्र मिला था. उसमें उन्होंने मेरे पैर तोड़ने की धमकी दी थी..’

आयुर्वेद को नकारने वाला केरल का यह ईसाई डॉक्टर दो तरफ से असुरक्षित है. उन्हें न सिर्फ ‘कॉमी (कम्युनिस्ट)’ और ‘पाकिस्तानी’ कहा जाता है, बल्कि एक बार तो सोशल मीडिया पर उन्हें ‘आज का खिलजी’ तक कह डाला था. ऑनलाइन बैकलैश से निपटने का उनका तरीका सिर्फ ट्रोल्स को ब्लॉक करना है.

वह यहां तक कैसे पहुंचे

एब्बी फिलिप्स विज्ञान की ओर जाकर इस आने वाले शोर को रोक देते हैं. वह खुद को एक चिकित्सक-वैज्ञानिक के रूप में रखते है. एक डॉक्टर जो मरीजों का इलाज करता है और रिसर्च करता है. कम उम्र से ही उनमें वैज्ञानिक स्वभाव पैदा करने का श्रेय वह अपने पिता डॉ. फिलिप ऑगस्टाइन को देते हैं. गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट ऑगस्टाइन ने 2010 में पद्म श्री जीता था.

एब्बी के सहयोगी भी उनके वैज्ञानिक नजरिए की सराहना करते हैं. किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के एडिशनल प्रोफेसर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी यूनिट, डॉ. अजय कुमार पटवा कहते हैं. ‘वह अपने मरीजों पर तब तक किसी भी इलाज का इस्तेमाल नहीं करते हैं जब तक कि उन्होंने इसे वैज्ञानिक रूप से उचित नहीं ठहराया गया हो और जब तक कि उन्होंने खुद से परखा न हो.’

लेकिन कई लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वह सिर्फ वैज्ञानिक तरीके की वकालत करने के इस मिशन पर हैं. उन लोगों के मुताबिक, इसके पीछे कोई बड़ा मकसद या ताकत जरूर है. वह कहते हैं कि अगर ऐसा कुछ नहीं है तो वह एक सेल्फ प्रमोटर और अटेंशन सीकर है.

केरल के एक आयुर्वेद व्यवसायी-सह-कार्यकर्ता का आरोप है कि आयुष के खिलाफ एब्बी का रुख ‘प्रचार के लिए’ है. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘वह टेस्ट करने के लिए सही प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते हैं और दावा करते हैं कि उनकी स्टडी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में छपी है. आयुष मंत्रालय ने भी उनके खिलाफ बोला है.’

लेकिन कनाडाई बायोटेक स्टार्टअप में काम करने वाले वैज्ञानिक डॉ. लिबिन अब्राहम उनकी इन बातों से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि अकादमिक पेपर की गहन जांच-पड़ताल की जाती है. उन्होंने एब्बी के पेपर को उसी जांच के माध्यम से परखा है. लिबिन ने बताया, ‘उनका काम और डेटा बहुत व्यापक और काफी बारीकी से तैयार किया गया है.’

आयुर्वेद चिकित्सक भी कहते हैं कि सिर्फ आयुर्वेद पर उंगली उठाना सही नहीं है क्योंकि लिवर की बीमारी कहीं से भी आ सकती है. लेकिन एब्बी के सहयोगियों का कहना है कि आयुर्वेदिक दवाओं की वजह से खराब हुए लीवर वाले मरीज के इलाज से पहले वह हमेशा अन्य संभावनाओं को खारिज कर देते हैं.

जब एब्बी के आयुर्वेद में ‘प्रशिक्षण की कमी’ या उनकी साख की ओर इशारा किया गया, तो उन्होंने अपने मित्र के एक उद्धरण के साथ जवाब दिया: ‘यह विचार कि डॉक्टरों को नीमहकीम के बारे में राय व्यक्त नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे उस नीमहकीमी में ट्रेंड नहीं हैं’ बकवास है. यह सीधे हमारे मरीजों की सेहत से खिलवाड़ करता है. हमें इसके बारे में बात करने का अधिकार है.’

बेंगलुरु स्थित रमैया इंडिक स्पेशलिटी आयुर्वेद (आरआईएसए) अस्पताल के निदेशक जीजी गंगाधरन ने एब्बी के रिसर्च को ‘हास्यास्पद’ बताया.

गंगाधरन ने कहा, ‘एब्बी जड़ी-बूटी के एक मॉलिक्यूल को अलग करते है और कहते हैं कि इससे प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. लेकिन आयुर्वेद समग्र रूप से जड़ी-बूटियों को निर्धारित करता है., एक रासायनिक घटक को अलग करना और पूरी जड़ी-बूटी को जहरीला के रूप में कैटेगराइज करना हास्यास्पद है.

उन्होंने कहा कि छह महीने तक गिलोय खाने पर उन्होंने कम से कम 100 मामले देखे हैं जहां लिवर की कार्यक्षमता में सुधार हुआ है.

गंगाधरन ने यह भी कहा कि आयुर्वेद मानता है कि किसी जड़ी-बूटी या जड़ी-बूटी का गलत संदर्भ में सेवन खतरनाक हो सकता है. ‘अपने आप में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं है.’

खैर! कोई कुछ भी कहे लेकिन एब्बी के मरीज़ उनकी वकालत करते हैं. सुनीता एंटनी को कुवैत में एक एलोपैथिक डॉक्टर ने पीलिया के लिए आयुर्वेदिक दवा ‘हिमालय लिव 52’ खाने के सलाह दी थी. इसे खाने के बाद उनके लक्षण और बिगड़ गए. वह कहती हैं, ‘एब्बी से मिलने से पहले मैं लगभग एक साल तक अपनी बीमारी से जूझती रही थी.’ ठीक हो जाने के बाद आज वह एब्बी को अपना जीवन दाता मानती है.

एक हफ्ते तक की गई जांच से पता चला कि दरअसल असली अपराधी वह गोलियां थीं. उन्होंने कहा, ‘मैं चौंक गई थी, लेकिन मैंने उन्हें तुरंत लेना छोड़ दिया.’

एब्बी का कहना है कि लिव 52 पहले से मौजूद लिवर की बीमारी का बढ़ा देता है. उनके पास 28-ट्वीट का एक पूरा थ्रेड है जो बताता है कि इन गोलियों में जड़ी-बूटियों का संयोजन असुरक्षित क्यों है.

उनके पास आने वाले सभी लोगों को आयुर्वेदिक दवाओं की वजह नुकसान नहीं हुआ है. लेकिन वे सभी एंटी-हर्बल मेडिसिन के असर को लेकर सावधान है और एब्बी विचारों का समर्थन करते हैं. ऐसे ही एक मरीज हैं अनिल कुमार पीडी, जिन्होंने चार साल पहले एब्बी से पहली बार परामर्श लिया था.

‘मुझसे कहा गया था कि मेरे पास सिर्फ तीन महीने बचे हैं. फिर एक रिश्तेदार ने मुझे एब्बी के पास भेजा. वह मेरे लिए भगवान की तरह हैं.’

काम और जिंदगी के बीच संतुलन

उनके ट्विटर बैनर में लीवर पकड़े हुए उनका एक एनिमेटेड संस्करण है. ऑर्गन पर उनका फोकस भारतीय आयुर्वेद से लेकर जर्मन होम्योपैथिक तक कई लोगों को पीछे हटाता हुआ प्रतीत होता है.

एब्बी ने बताया, ‘दशकों पहले मैं ऑनलाइन डिज़ाइन प्रतियोगिताओं के लिए दुनिया भर के कलाकारों के साथ सहयोग करता था.’ उस दौरान मिले दक्षिण अफ्रीकी कलाकार से बैनर बनाने की शुरुआत करना उन्हें आज भी याद है.

ट्विटर उनके वैज्ञानिक स्वभाव का मंदिर है, उनका इंस्टाग्राम वह जगह है जहां उन्होंने अपना लैब कोट एक तरफ लटका दिया है. यह उनके परिवार, खाने, उनके गेमिंग सेट-अप और उनके कई कुत्तों की तस्वीरों से भरा हुआ है.

एब्बी को पीसी गेमिंग का शौक है. उन्होंने अपने लिए तकनीक से भरा और ‘आरजीबी लाइटिंग’ के साथ एक प्रभावशाली कस्टम सेट-अप बनाया हुआ है. उनका घर और स्टूडियो पॉप-कल्चर कलेक्टेबल और ग्राफिक उपन्यासों से भरा पड़ा है.

एक और विषय जिसके बारे में वह लगातार बातें कर सकते है वह है कुत्ते. एब्बी ने अगस्त में 32-ट्वीट थ्रेड के साथ अपने डेलमेटियन ज्यूपिटर के निधन पर शोक जताया था. फिलहाल उनके घर में चार कुत्ते हैं, जिनमें से तीन जुपिटर के पिल्ले हैं – चेस, चेरी और चीता. चौथा हीरो नाम का एक पग है.

एब्बी के दरवाजे पर लगातार प्रोजेक्ट दस्तक दे रहे हैं. उनके क्लीनिक में मरीजों का तांता लगा रहता है और उन्होंने इस साल अभी-अभी अपना 16वां पेपर प्रकाशित किया है. ट्विटर पर, लोग नियमित रूप से उनसे वैकल्पिक चिकित्सा को ‘अनुमोदित’ करने के लिए कहते हैं. एक ऐसा अनुमोदन जो उनसे कभी नहीं मिल सकता है.

लेकिन फिलहाल तो उन्होंने एक नए प्रोजेक्ट के लिए ट्विटर थ्रेड्स से कुछ समय के लिए ब्रेक लिया हुआ है. दरअसल यह एक बुक है, जिसे वह एक साल में खत्म करना चाहते हैं.

(इस फ़ीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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