हसुडी औसानपुर (उत्तर प्रदेश): अवंतिका कुमारी अब आईएएस अधिकारी नहीं बनना चाहतीं. उन्होंने अंतरिक्ष, तारे और उपग्रहों जैसी कुछ और रोमांचक चीज़ें खोज निकाली हैं.
नेपाल सीमा पर पूर्वी-उत्तर प्रदेश के हसुडी औसानपुर गांव की 14-वर्षीया छात्रा भारत की पहली ग्रामीण अंतरिक्ष प्रयोगशाला से ग्रेजुएट करने वाले 30 छात्रों के पहले समूह का हिस्सा हैं. इसके लिए बस एक बॉलीवुड फिल्म, बड़े सपने देखने की हिम्मत रखने वाले छात्रों का एक ग्रुप, उनका समर्थन करने वाला एक ग्राम प्रधान और दो साल पहले बाल दिवस पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा की गई आस्था की छलांग की ज़रूरत थी. अब, वे एक स्थानीय मौसम केंद्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं और देख रहे हैं कि क्या ड्रोन का इस्तेमाल बाढ़ की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है.
सिद्धार्थनगर की ये शर्मीली किशोरी, जिसे 2018 की नीति आयोग की रिपोर्ट में देश के सबसे कम विकसित जिलों में रखा गया था, रॉकेट, ड्रोन और हवाई जहाज के बारे में बड़बड़ाती है. वे उपग्रह डिजाइन पर एक या दो सबक दे सकती हैं और बुनियादी दूरबीन बनाना जानती हैं.
अवंतिका के जवाब एक ही शब्द के होते हैं जब तक कि बातचीत अंतरिक्ष और विज्ञान पर नहीं आ जाती.
उन्होंने कहा, “लगभग दो साल पहले, अगर आपने मुझसे पूछा होता कि मैं बड़ी होकर क्या बनना चाहती हूं, तो मैं आपको बताती कि मैं एक टीचर या शायद एक आईएएस अधिकारी बनना चाहती हूं. ज्यादातर बच्चों का यही जवाब होता.”
लेकिन, अब, अवंतिका सितारों की ओर बढ़ रही है.
उनमें से कुछ इस पर और चर्चा करने आए. जब मैंने उनकी रुचि देखी, तो मैंने उन्हें हमारे गांव में भी इसी तरह का अंतरिक्ष प्रोग्राम बनाने के लिए इसरो को पत्र लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.
—दिलीप त्रिपाठी, हसुडी औसानपुर गांव के प्रधान
छात्रों ने इसरो को कैसे मनाया
हसुडी औसानपुर गांव में सिर्फ कच्ची सड़कें हैं. नालियां खुली हैं और ज़्यादातर घरों के पेंट उखड़ा है, लेकिन खुले मैदान के बीच में एक नीली इमारत सूरज की रोशनी में चमकती है. यह भारत का पहला प्राथमिक विद्यालय है जिसकी अपनी अंतरिक्ष प्रयोगशाला है.
इस विचार का बीज 2019 में पड़ा, जब गांव के प्रधान दिलीप त्रिपाठी ने विद्या बालन और अक्षय कुमार अभिनीत बॉलीवुड फिल्म मिशन मंगल देखी. फिल्म को आलोचकों ने नकार दिया, लेकिन त्रिपाठी के मन में भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम के बारे में और जानने की इच्छा जागी.
छात्रों के ईमेल पर इसरो की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं थी. त्रिपाठी के अनुसार, वैज्ञानिकों के बीच यह भावना थी कि व्योमिका अंतरिक्ष अकादमी निजी स्कूलों के लिए तैयार किया गया एक बेहतरीन अंतरिक्ष प्रोग्राम है.
वो इंटरनेट पर खोजने गए, जहां उन्हें व्योमिका स्पेस एकेडमी पर एक लेख मिला, जो इसरो द्वारा समर्थित एक शैक्षणिक मंच है, जो छात्रों को विज्ञान और अंतरिक्ष की पढ़ाई में करियर बनाने के लिए संसाधन प्रदान करता है. त्रिपाठी ने एक गांव के प्रोग्राम के दौरान अकादमी का ज़िक्र किया और उसे भूल गए, लेकिन बच्चों को याद था.
त्रिपाठी ने कहा, “उनमें से कुछ इस पर और चर्चा करने आए. जब मैंने उनकी दिलचस्पी देखी, तो मैंने उन्हें हमारे गांव में भी इसी तरह का अंतरिक्ष प्रोग्राम बनाने के लिए इसरो को पत्र लिखने के लिए प्रोत्साहित किया.”
छात्रों के ईमेल पर इसरो की प्रतिक्रिया उत्साहजनक नहीं थी. त्रिपाठी के अनुसार, वैज्ञानिकों के बीच यह भावना थी कि व्योमिका स्पेस एकेडमी निजी स्कूलों के लिए तैयार किया गया एक प्रमुख अंतरिक्ष प्रोग्राम था.
त्रिपाठी ने याद करते हुए कहा, “बच्चे निराश थे. उन्हें लगा कि छात्रों में कोर्स की मांगों को पूरा करने की योग्यता नहीं होगी.”
लेकिन छात्र इसरो को गलत साबित करने के लिए दृढ़ थे.
उन्होंने एक और ईमेल भेजा. इस बार एक अनुरोध के साथ- ‘हमें खुद को साबित करने दें’. उन्होंने इसरो से एक परीक्षा आयोजित करने के लिए कहा और अगर उचित संख्या में छात्र इसे पास करते हैं, तो अंतरिक्ष संगठन को उनके गांव को अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम में शामिल करना होगा.
इसरो कुछ ज़्यादा नहीं कर सका — 90 छात्रों ने परीक्षा दी; 55 पास हुए और इस तरह अंतरिक्ष लैब और एक पूर्ण अंतरिक्ष एजुकेशन प्रोग्राम की स्थापना की यात्रा शुरू हुई.
इसरो इंजीनियर राकेश राज, जो शुरुआती कोर्स डायरेक्टर में से एक हैं, ने कहा,“एक निर्धारित प्रोग्राम है, लेकिन छात्रों ने स्तर को एक पायदान ऊपर किया है. वे नए विचार और सवाल लेकर आते हैं, जो हमें बेहतर बनाने में मदद कर रहे हैं.”
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रोज़मर्रा के जीवन में विज्ञान
प्रोग्राम को स्वीकृति मिलने के बाद, इसरो की टीमें आईं और उन्होंने पुराने, ढहते स्कूल भवन का चेहरा बदल दिया. अगले कुछ महीनों में दीवारों को रंगा गया, कंप्यूटर लाए गए और लैब को तैयार किया गया.
अंतरिक्ष लैब में बच्चे अपनी दैनिक समस्याओं को हल करने के लिए विज्ञान की मदद लेते हैं. यह अक्सर कक्षा की सीमाओं से परे सबक लेता है.
स्कूल के एक टीचर मनोज कुमार ने कहा, “दुनिया के बारे में उनका अनुभव शहर के स्कूलों में हमने जो देखा है, उससे बहुत अलग है. वे व्यावहारिक समस्याओं के साथ आते हैं, जो हमें कोर्स से परे सोचने पर मजबूर करता है.” कुमार कक्षा में सहायता करने के लिए व्योमिका कार्यक्रम के तहत इसरो द्वारा प्रशिक्षित आठ शिक्षकों में से एक थे, जबकि यह समूह स्कूल से प्रोग्राम को चलाता है, इसरो के गेस्ट टीचर्स कामकाज की देखरेख करते हैं.
हाल ही में प्रोग्राम के लिए पात्र बनीं 12-वर्षीय कक्षा 6 की छात्रा गरिमा ने बाढ़ की समस्या को हल करने में एक अवसर देखा. हर साल, नेपाल से आने वाली बाढ़ के कारण गांव के किसानों को फसल का काफी नुकसान होता है. इन बाढ़ों के बारे में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि वे छोटे पैमाने पर आती हैं और उनका प्रभाव भी कम होता है.
उन्होंने अपने टीचर्स से पूछा कि क्या नुकसान को कम करने के लिए कोई पूर्व चेतावनी प्रणाली बनाई जा सकती है.
हमें बताया गया कि पूर्व चेतावनी प्रणाली (गांव को प्रभावित करने वाली छोटी-छोटी बाढ़ों का पूर्वानुमान लगाने के लिए) में अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप की ज़रूरत हो सकती है, लेकिन हमें दिखाया गया कि ड्रोन का उपयोग कैसे नुकसान की निगरानी के लिए किया जा सकता है
— हसुडी औसानपुर उच्च प्राथमिक विद्यालय की कक्षा 6 की छात्रा गरिमा
गरिमा ने अपने ड्रोन-संचालन कौशल का प्रदर्शन करते हुए कहा, “हमें बताया गया था कि प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के लिए अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप की ज़रूरत पड़ सकती है, लेकिन हमें दिखाया गया कि ड्रोन का उपयोग कैसे नुकसान की निगरानी के लिए किया जा सकता है.” व्योमिका अकादमी अब गांव में इस तरह के स्टेशन की स्थापना के लिए रसद पर काम करने के लिए विशेष सत्रों की व्यवस्था कर रही है, जिसका प्रबंधन छात्रों द्वारा किया जाएगा.
छात्रों ने ग्रामीणों को अपनी वैज्ञानिक गतिविधियों में भी शामिल किया है. अपनी लैब में दूरबीनों के साथ, वे गांव के चौक पर नियमित रूप से तारा-दर्शन कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.
अवंतिका ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब हम छोटे थे, तो हमारी दादी हमें बताती थीं कि चंद्रमा पर काले निशान वहां रहने वाली एक बूढ़ी महिला की छाया हैं. एक और संस्करण है जहां निशान एक विशाल पीपल के पेड़ का प्रतिबिंब थे.”
इन तारा-दर्शन रातों में गांव के बुजुर्ग दूरबीन से चंद्रमा को देखते हैं और चंद्र सतह पर क्रेटर देखते हैं.
उन्होंने कहा, “अब उन्हें पता चल गया है कि ये काले बिंदु न तो कोई बूढ़ी औरत हैं और न ही कोई पेड़. यह सिर्फ गड्ढों वाली चंद्र सतह है.”
भविष्य की योजनाएं
हसुडी औसनपुर उच्च प्राथमिक विद्यालय (कक्षा 1 से 8) के छात्र माध्यमिक शिक्षा के लिए जिले के अन्य संस्थानों में जाते हैं.
अवंतिका के सभी भाई-बहन और चचेरे भाई-बहन पड़ोसी गांव के सरकारी हाई स्कूल में चले गए, लेकिन विज्ञान में उनकी रुचि और शिक्षा के कारण अवंतिका को अधिक प्रतिस्पर्धी कॉन्वेंट स्कूल में जगह मिल गई. वे अपने नए स्कूल तक पहुंचने के लिए पैदल और बस से 15 किलोमीटर की यात्रा करती हैं.
हमने मौसम पूर्वानुमान केंद्र स्थापित करने की अपनी योजना पर चर्चा की है. भारत मौसम विज्ञान विभाग, IMD द्वारा जारी किए गए अधिकांश पूर्वानुमान पूरे जिले के लिए हैं. यह स्थानीय नहीं है. हम गांव के लिए एक मौसम केंद्र शुरू करना चाहते हैं, जहां हम प्रारंभिक चेतावनी जारी कर सकें
— अवंतिका कुमारी, छात्रा
उन्होंने कहा, “काश मैं अंतरिक्ष लैब में काम कर पाती और यहां के टीचर्स से और अधिक सीख पाती, लेकिन मुझे इस बात की भी खुशी है कि मेरी पढ़ाई ने मुझे बेहतर स्कूल में जाने का मौका दिया.” अब, वे एक दिन इसरो में वैज्ञानिक बनने के लिए अपना भविष्य संवार रही हैं.
अवंतिका के साथ गांव की स्कूली पढ़ाई पूरी करने वालीं एक अन्य छात्रा पायल ने प्रवेश परीक्षा और इंटरव्यू पास करने के बाद वाराणसी के एक निजी स्कूल में प्रवेश प्राप्त किया.
और भले ही वे अब अंतरिक्ष लैब प्रोग्राम का हिस्सा न हों, लेकिन वे अपने सीखे हुए ज्ञान को गांव में लागू करने के लिए तैयार हैं.
अवतिंका ने कहा, “हमने मौसम पूर्वानुमान केंद्र स्थापित करने की अपनी योजना पर चर्चा की है. IMD द्वारा जारी किए गए अधिकांश पूर्वानुमान पूरे जिले के लिए हैं. यह स्थानीय नहीं है. हम गांव के लिए एक मौसम केंद्र शुरू करना चाहते हैं, जहां हम प्रारंभिक चेतावनी जारी कर सकें.”
वे उस दिन का सपना देखती हैं जब गांव का कोई ग्रेजुएट इसरो रॉकेट पर अंतरिक्ष में उड़ान भरने में सक्षम होगा.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “भारत की योजना चंद्रमा पर इंसान को उतारने की है. एक दिन हममें से कोई भी वो व्यक्ति हो सकता है.”
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