जयपुर: छोटा लड़का जयपुर के बाहर अपने दो-कमरे के घर के नंगे फर्श पर पैर पर पैर चढ़ा कर बैठा है और अपनी स्कूल की पाठ्यपुस्तक के पहले पन्ने पर बार बार उंगली घुमाता है पाठ पर लगातार अपनी उंगली घुमाता है. अभी उसने पढ़ना नहीं सीखा है . तो, उसकी बहन उसे पढ़कर सुनाती है. “हम भारत के लोग,” वह संविधान की प्रस्तावना की पहली पंक्ति पढ़ते हुए कहती हैं. छह वर्षीय अब्दुल रहमान उसके बाद दोहराता है.
अभी एक सप्ताह ही हुआ है जब उनके पिता, चूड़ी-निर्माता मोहम्मद असगर की चलती ट्रेन में रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के कांस्टेबल चेतन सिंह ने दिल दहला देने वाले घृणित अपराध में गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिसमें दो अन्य मुसलमानों की भी मौत हो गई थी. लेकिन उस बच्चे को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है. वह अपनी किताब से नज़र नहीं उठाता. वह समझ नहीं पा रहा है कि इतने सारे मेहमान उसके घर के आसपास क्यों मंडरा रहे हैं. हत्याओं की खबर से पूरा इलाका सदमे में है. पड़ोसी अलग-अलग कोनों में झुंड बनाकर खड़े होकर एक-दूसरे से कानाफूसी कर रहे हैं. कुछ छात्र कार्यकर्ता भोजन और कैश भी परिवार के लिए लेकर आते हैं.
अब तक, सभी ने शूटिंग का भयावह वायरल वीडियो देखा है, जहां असगर जयपुर-मुंबई सेंट्रल सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन के अंदर खून से लथपथ पड़े हुए दिखाई दे रहे हैं. और कॉन्स्टेबल सिंह उनके पास खड़े होकर मुस्लिम यात्रियों को चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे: “यदि आप भारत में वोट करना चाहते हैं या रहना चाहते हैं, तो मैं कह रहा हूं कि मोदी और योगी दो हैं.”
इस वीडियो का असगर के परिवार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है.
असगर की पत्नी उमैसा खातिम पूछती हैं, “मैंने अपने पति की हत्या का वीडियो देखा है. यह मेरे दिमाग में चलता रहता है. मैंने बच्चों को वीडियो नहीं दिखाया है. वे इसे सहन नहीं कर पायेंगे. मेरे पति की क्या गलती थी? उसकी पहचान? दाढ़ी?”
ट्रेन में हुई ये बात की और सेंसलेस हत्याएं भारत में मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती नफरत का हिस्सा हैं जो समय-समय पर गौ रक्षा या लव जिहाद की चिंताओं के रूप में सामने आती हैं. हत्या के इन कृत्यों के साथ गर्व की एक चिंताजनक भावना भी जुड़ी हुई है – जैसा कि कॉन्स्टेबल सिंह ने प्रदर्शित किया है. उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया – हत्या, धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देना और अपहरण, अन्य.
त्रासदी की एक कहानी
पिछले सप्ताह में, खातिम अपने आंसुओं को सिर्फ बहने देने के लिए अकेले कुछ पल बिताने के लिए तरस रही हैं. लेकिन उसे अपने पांच बच्चों – जिनमें से दो 10 साल से कम उम्र के हैं – रोते हैं और अपना ध्यान आकर्षित करने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. वह घर में बिना रुके घूमती है, शुभचिंतकों की संवेदनाएं स्वीकार करती है, बच्चों को फर्श से उठाती है और अपने आंसुओं को बरबस रोकने की कोशिश में लगी रहती है.
उसका बच्चा रहमान कभी उसका साथ नहीं छोड़ता. वह कहती हैं, जब रात में सभी सो जाते हैं तब वह चुपचाप रोती हैं, अक्सर अपना मुंह तकिए से ढक लेती हैं.
इस त्रासदी ने उसे एक अंतहीन और दर्दनाक इंतज़ार में धकेल दिया है.
वह कहती हैं, “सुबह मैं खिड़की से बाहर देखती हूं और असगर के लौटने की उम्मीद में सड़क की ओर देखती रहती हूं.”
खातिम और असगर चूड़ी बनाने वाले लोगों में शामिल होने के लिए 2022 में अपने गृहनगर बिहार के मधुबनी से जयपुर की भट्टा बस्ती आए थे उन्होंने एक मशीन खरीदी, अपने जैसे प्रवासी श्रमिकों की एक कम आय वाली बस्ती देखी, और 6,000 रुपये प्रति माह पर एक घर किराए पर लिया, जहां से वे अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हुए चूड़ियां बनाते थे.
खातिम याद करती हुई कहती हैं कि घर पर चूड़ियां बनाते समय, असगर अक्सर खातिम को अपनी पसंदीदा चूड़ियां उपहार में देते थे. वह उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं, “दो कमरे हमारे लिए कुछ नए थे. बिहार में, हम बांस से बनी एक झोपड़ी में रहते थे.”
इस साल, उन्होंने गद्दे और बिस्तर का सपना देखा था, अब वे फर्श पर सोना नहीं चाहते थे. इसलिए परिवार ने चूड़ियां बेचकर जो कुछ भी हो सकता था उसे बचाने की कोशिश की, लेकिन पैसा पर्याप्त नहीं था. वे किराया देने में असमर्थ थे और कर्ज में डूबते जा रहे थे.
तभी असगर ने चूड़ी बनाना छोड़ने का फैसला किया. उन्होंने पिछले महीने पुणे की एक मस्जिद में सफ़ाईकर्मी की नौकरी पाई, बिस्तर पर सोने के अपने सपने को टाल दिया और अपना बैग पैक कर लिया.
30 जुलाई के उस मनहूस दिन वह रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुआ. पति को दरवाजे पर खड़ा देखकर खातिम अलविदा कहने के लिए उठी, लेकिन बच्चे उसका दुपट्टा खींचते रहे. जल्दी में, वह ऊपर की ओर भागी, अपनी खिड़की खोली, और केवल उसे जाते हुए देखती रही और हाथ ही हिला पाई. असगर, अपने सभी बैग और सामान के साथ, गली से नीचे चला गया, और समय-समय पर उसकी ओर देखता रहा. और फिर ओझल होता चला गया.
रेलवे स्टेशन पर, उसने खातिम को फोन करके बताया कि उसके फोन की बैटरी खत्म हो रही है. वह पुणे पहुंचकर फोन करेगा.
खातिम अपने सफेद दुपट्टे से अपनी सूजी हुई आंखों को रगड़ कर पोछते हुए कहती हैं, “उन्होंने कहा कि मुझे बच्चों और अपना ख्याल रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रहमान हर दिन स्कूल जाए. उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जिससे मुझे लगा कि उसे इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि आगे क्या होने वाला है.”
यह भी पढ़ें: मुस्लिमों को निशाना या फिर अतिक्रमण विरोधी अभियान?: हिंसा के बाद कार्रवाई के चलते नूंह सुर्खियों में है
‘जिन्न बोतल से बाहर’
8 अगस्त को, बोरीवली सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने उसी ट्रेन में अपराध स्थल को फिर से री-क्रिएट किया जहां सिंह ने 31 जुलाई को सुबह 5 बजे असगर, दो अन्य मुस्लिम पुरुषों और उनके वरिष्ठ अधिकारी सहायक उप-निरीक्षक टीका राम मीना को गोली मार दी थी.
फोरेंसिक जांच से पुष्टि हुई कि यह सिंह ही थे जिन्होंने “घृणास्पद टिप्पणियां” की थीं जिन्हें वीडियो क्लिप में सुना जा सकता है.
जब एक्सप्रेस ट्रेन मुंबई की ओर बढ़ रही थी, तब उन्होंने अपनी स्वचालित राइफल से 12 राउंड फायरिंग की. असगर सिंह उसका आखिरी शिकार था.
एक यात्री द्वारा चेन खींचने के बाद कांस्टेबल ने भागने की कोशिश की, लेकिन ट्रेन रुकने पर मुंबई के मीरा रोड रेलवे स्टेशन के पास आरपीएफ और जीआरपी कर्मियों ने उसे पकड़ लिया.
इस घटना की विपक्षी दलों ने निंदा की है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ”नफरत का जिन्न अब बोतल से बाहर आ गया है और इसे वापस डालने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत होगी.”
सिंह का मानसिक स्वास्थ्य भी मीडिया की गहन जांच के दायरे में आया. टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि कांस्टेबल को “असामान्य मतिभ्रम का सामना करना पड़ता था और उसे गंभीर एंग्जाइटी डिसोर्डर का पता चला है”. लेकिन इसका खंडन मुंबई के मिड-डे की एक रिपोर्ट द्वारा किया गया: “आरपीएफ कांस्टेबल स्वस्थ दिमाग का है, मुसलमानों से नफरत करता है”.
मिड-डे की रिपोर्ट के अनुसार, कांस्टेबल, जो उत्तर प्रदेश के हाथरस का रहने वाला है, को उन लोगों को मारने का कोई अफसोस नहीं है. घृणा अपराध पर अभी तक संसद में चर्चा नहीं हुई है.
पिछले हफ्ते पूरे जयपुर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. 6 जुलाई को जयपुर की भट्टा बस्ती में हजारों मुस्लिम इकट्ठा हुए और परिवार के लिए 1 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की. आदर्श नगर से कांग्रेस विधायक रफीक खान भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए और केंद्र सरकार से सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया.
कथित तौर पर अशोक गहलोत सरकार ने परिवार को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये दिए. खातिम कहती हैं, ”कांग्रेस नेता महेश जोशी ने हमसे मुलाकात की और जिला कलेक्टर ने पैसा दिया.”
लेकिन मृतक की पीड़ित पत्नी को निराशा हाथ लगी है.
“5 लाख रुपये से क्या होगा? अशोक गहलोत ने कोई कड़ा बयान नहीं दिया है. मेरे 5 बच्चे हैं, और मैंने अपने पति को खो दिया है, जो मेरे परिवार का कमाने वाला था,” वह कहती हैं. “अपराध आरपीएफ कांस्टेबल द्वारा किया गया था जो हमारी सुरक्षा के लिए बना है.”
बिहार में, परिवार नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को वोट देता था, जो पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन में था. उन्होंने बिहार के सीएम से उनकी मदद करने का अनुरोध किया है.
पुलिस आयुक्त कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन चल रहा है. कुछ कार्यकर्ता और नागरिक समाज के सदस्य नारे लगा रहे हैं और हाथों में तख्तियां लिए हुए हैं जिन पर लिखा है, “डर से आजादी हक है हमारा” और “संप्रदाय ताकतें मुर्दाबाद”. खातिम की बहन रौनक प्रवीण भी उनमें से एक हैं. सौ से अधिक लोग न्याय, नफरत की राजनीति से मुक्ति और शांति से रहने का अधिकार मांग रहे हैं.
लेकिन आक्रोश और सदमा समय के साथ ख़त्म हो जाएगा, और खातिम यह जानती हैं.
वह कहती हैं, ”लोग जल्द ही भूल जाएंगे.” वह चाहती हैं कि सरकार उनकी चार बेटियों और बेटे की जिम्मेदारी ले और उन्हें रहने के लिए घर दे.
खातिम उदास होकर कहती हैं,“अभी एक सप्ताह ही हुआ है और मेरे पति पहले ही सरकार के लिए एक नंबर बन गए हैं. एक गिनती बन गई है.”
संदेह और भय व्याप्त है
खातिम के पड़ोसी आते-जाते रहते हैं – एक कमरे में बुर्का पहने महिलाएं, दूसरे में पुरुष – अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए. उसके पिता पुरुषों से मिलते हैं, उनका हाथ पकड़ते हैं और उन्हें गले लगाते हैं. कुरान के बगल वाली शेल्फ पर असगर की एक पासपोर्ट आकार की तस्वीर रखी हुई है. स्कूल की पाठ्यपुस्तकें और आधे खुले आलू चिप्स के पैकेट फर्श पर बिखरे हुए हैं. बच्चे लगातार रोते रहते हैं.
खातिम की बड़ी बेटी हर दो घंटे बाद कमरे की सफाई करती रहती है. खातिम करवटें बदलते हुए सोने की कोशिश करती हैं और अक्सर चिल्लाती है, “उसकी गलती क्या थी? वह दिन में पांच बार नमाज पढ़ता था”.
उसे अच्छी तरह याद है कि कैसे उसे इस त्रासदी के बारे में बताया गया था.
31 जुलाई को खातिम ने अपने बच्चों को चाय परोसी ही थी कि उन्हें मुंबई पुलिस का फोन आया. फोन करने वाले ने कहा, “आपके पति को ट्रेन में मार दिया गया है.” और खातिम टूट गई.
वह याद करती हैं. “मैंने खिड़की से बाहर देखा और पड़ोसियों को अपने घर के बाहर इकट्ठा होते पाया. उन्होंने इसे समाचार पर देखा था. मेरी दुनिया बिखर गई है.”
महज 10 दिनों में भट्टा बस्ती बदल गई है. हवा संदेह और भय से भरी हुई है. बाहरी लोगों को बेचैनी से देखा जाता है.
63 वर्षीय किराना स्टोर के मालिक मोहम्मद फ़र्कुद्दीन कहते हैं, “अगर यह असगर के साथ हो सकता है, तो कल यह हममें से किसी के साथ भी हो सकता है. हम अब पुलिस पर भी भरोसा नहीं कर सकते.” उन्हें मोहम्मद नईम ने रोका, जो अपनी दाढ़ी काटने पर विचार कर रहे थे. “मैं शॉर्टकट और संकरी गलियों से मुख्य शहर में जाने से बचता हूं. पिछले सप्ताह में, मैंने केवल मुख्य सड़क ही ली है. अगर कोई मुझे रोके और मौके पर ही मार डाले तो क्या होगा? नईम कहते हैं, ”मैं अपनी दाढ़ी हटा सकता हूं.”
खातिम का कहना है कि उन्होंने हाल के वर्षों में अन्य मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं के बारे में सुना है. लेकिन उन्होंने खुद से कहा कि यह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दोतरफा लड़ाई के कारण होगा. लेकिन असगर की अकारण हत्या ने उसे डरा दिया है. नफरत पहले की तुलना में कहीं ज्यादा करीब है.
पिछले सप्ताह परिवार में इतने सारे मेहमानों के आने से, खातिम खुद को बचाने की कोशिश कर रही है. उसने अपना आधार कार्ड संभाल कर रखा है. जब भी कोई उनसे नाम या उम्र पूछता है तो वह बात टाल देती हैं.
खातिम कहती हैं, “आधार कार्ड दिखाना बेहतर है. आप कभी नहीं जानते, कल को वे हमारे धर्म के कारण हमें अवैध अप्रवासी कह सकते हैं.”
और फिर उनकी नज़र खिड़की पर चली गयी.
(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘भाजपा ध्रुवीकरण की साजिश’ या ‘अकारण हमला’? नूंह को लेकर हरियाणा की खापें बंटी