नई दिल्ली: हत्या के मामले में मुख्य गवाह बनना हमेशा ग्लैमरस या नेक नहीं होता — इसकी असलियत गाजियाबाद के निवासी अजय कटारा से पूछिए.
बीते 20 साल में उन पर कई बार शारीरिक हमले हुए, उन्हें गोली मारी गई और ज़हर तक देने की कोशिश की गई. कटारा वर्तमान में बलात्कार, जबरन वसूली, अपहरण और चोरी सहित 37 मामलों से लड़ रहे हैं. उन्हें 24×7 हथियारों से लैस सुरक्षा गार्डों से घिरा रहना पड़ता है और वे उनके बिना कहीं नहीं जा सकते.
यह सब इसलिए क्योंकि उन्होंने 2002 के हाई-प्रोफाइल नीतीश कटारा हत्याकांड में अपनी गवाही देने का फैसला किया और हत्यारों — विकास और विशाल यादव, राजनेता डीपी यादव के बेटे और भतीजे — को सलाखों के पीछे पहुंचाने में मदद की थी.
21 साल से कटारा की ज़िंदगी गवाह बनकर दी गई गवाही और दबाव में न आने और उस गवाही को बदलने के उनके बार-बार के फैसलों के ईर्द-गिर्द तय होता रहा है.
वे सिर्फ इसलिए पुलिस स्टेशन से लेकर कोर्ट तक के चक्कर काटते हैं, ताकि वे सुरक्षित रहें. जब उन्हें अपनी जान की चिंता नहीं होती, तो उन्हें कोर्ट के मामलों की चिंता होती है.
कटारा के खिलाफ 37 मामले दर्ज हैं और उन्होंने खुद 10 से ज़्यादा जवाबी मामले दर्ज किए हैं. जब भी इनमें से किसी मामले की सुनवाई होती है, तो उन्हें कोर्ट जाना पड़ता है — साथ ही जब भी यादवों की फरलो/पैरोल की सुनवाई होती है.
मैंने सिर्फ सच बताया. मुझे पैसे नहीं चाहिए. मुझे सम्मान भी नहीं चाहिए. मैं बस अकेला रहना चाहता हूं
— अजय कटारा, नीतीश कटारा मामले में मुख्य गवाह
नौ सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के भीड़ भरे चैंबर में कटारा खुद को एक घंटे की सुनवाई के दौरान वकीलों के एक समूह के पीछे खड़े हैं, जो उनके मामले पर दलीलें दे रहे हैं. उनके खिलाफ 37 मामलों में से 35 बंद हो चुके हैं. वे जिस सुनवाई में शामिल हैं, वो एक ऐसा मामला है जिसकी फाइल दोबारा से खोली गई है, जिसमें उन पर एक महिला का बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है, जिसके बारे में उन्होंने कसम खाई है कि वे महिला से कभी नहीं मिले हैं.
पूरी सुनवाई के दौरान, वे मुश्किल से ही सुन पाते हैं कि वकील क्या कह रहे हैं. सुनवाई के बाद, वे उत्सुकता से कोर्ट से बाहर निकल रहे वकीलों से पूछते हैं कि क्या जज ने उन्हें बचाने या मामले से उनका नाम साफ करने के लिए कुछ खास कहा है, लेकिन अफसोस ऐसा नहीं होता.
यह बस एक ऐसा मामला है जिसकी सुनवाई दूसरे दिन के लिए टाल दी गई है.
कटारा ने दिप्रिंट से कहा, “2003 में जब मैंने गवाही दी थी, तो कोर्ट ने मुझे चेतावनी दी थी कि मेरी ज़िंदगी ऐसी ही होगी और उन्होंने कहा कि वे मेरा समर्थन करेंगे, लेकिन यह गवाह होने की कीमत है. यह सच बोलने की कीमत है जो मैं चुका रहा हूं.”
वे कोई वीआईपी नहीं है, लेकिन उनकी आम ज़िंदगी अब पुलिस अधिकारियों के उच्च स्तरीय सुरक्षा के घेरे में है, जो उनके फोन में स्पीड डायल पर हैं. उनकी कहानी भारत में एक चेतावनी भरी कहानी है, जहां हत्याओं और यहां तक कि सड़क दुर्घटनाओं के गवाह भी सामने आने से कतराते हैं. यहां तक कि 2016 में पारित गुड सेमेरिटन कानून भी इस प्रक्रिया को गवाहों के लिए सज़ा बनने से नहीं रोक पाया है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा की गई एक स्टडी में पाया गया है कि 31.66 प्रतिशत लोग गुड सेमेरिटन का काम करने से हिचकिचाते हैं और लगभग 26.5 प्रतिशत गवाह इस तरह की दिक्कतों से बचने के लिए मुकर जाते हैं.
कटारा न तो शांत व्यक्ति है और न ही शर्मीले हैं. अपने छोटे से घर में पिंजरे में बंद बाघ की तरह घूमते हैं, जब वे कोई बात कहना चाहते हैं तो अपने पैरों पर खड़ा हो जाते हैं और अपने सुरक्षाकर्मियों को ऐसे आदेश देते हैं जैसे वे परिवार के सदस्य हों, लेकिन सुप्रीम कोर्ट परिसर में वे खुद को छोटा महसूस करते हैं और उस संस्था से अभिभूत हो जाते है जिस पर उन्होंने अपना भरोसा जताया है.
उन्होंने कहा, “मैंने सिर्फ सच बोला. मुझे पैसे नहीं चाहिए. मुझे सम्मान भी नहीं चाहिए. मैं बस अकेला रहना चाहता हूं.”
चूहे और बिल्ली का खेल
फरवरी 2002 की एक दुर्भाग्यपूर्ण रात को कटारा का विकास यादव से झगड़ा हुआ.
वे अपने फैमिली फ्रेंड की बर्थडे की पार्टी से स्कूटर पर लौट रहे थे, तभी एक सफेद रंग की कार ने उन्हें टक्कर मार दी. कार अचानक रुक गई और उसमें से विकास और विशाल यादव बाहर निकले. परेशान कटारा को याद है कि वे एक-दूसरे पर चिल्ला रहे थे. इससे पहले कि झगड़ा और बढ़ जाए, उन्होंने घर लौटने का फैसला किया.
लेकिन इससे पहले उन्होंने लाल टी-शर्ट पहने एक आदमी को बंदूक की नोक पर बैठे देखा. दो दिन बाद, उस आदमी का चेहरा हर जगह था — क्योंकि उसकी हत्या कर दी गई थी.
कटारा के लिए पुलिस के पास जाना आसान था. उन्होंने न केवल यह कहा कि उन्होंने कार में नीतीश कटारा को देखा, बल्कि यह भी बताया कि विकास और विशाल उनके साथ थे और यहीं से उनकी पूरी ज़िंदगी बदल गई.
अब कटारा जिस चीज़ को छूते हैं, वो मिट्टी में मिल जाती है.
मेरा उनसे (कटारा) कोई लेना-देना नहीं है. मुझे उनके खिलाफ कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है — जो कुछ भी उनके खिलाफ सामने आ रहा है, वो उनकी अपनी गलतियां है. वे खुद के जाल में फंस रहे हैं.
— डीपी यादव, पूर्व कैबिनेट मंत्री
उनकी पहली शादी टूट गई, साथ ही उनका कारोबार भी ठप पड़ गया. उन्हें कई बार घर बदलना पड़ा और रिश्तेदारों के नाम पर संपत्ति और सामान रजिस्टर करना पड़ा. 2003 में नीतीश कटारा मामले की सुनवाई शुरू होने के बाद से, उनकी ज़िंदगी कभी न खत्म होने वाले चूहे-बिल्ली के खेल की तरह हो गई है, जिससे उन्हें लगातार अपने आसपास निगाह रखनी पड़ती है और हमेशा के लिए भ्रम में जीना पड़ता है और वे इसके लिए डीपी यादव को दोषी मानते हैं.
कटारा डीपी यादव के बारे में सोचते हुए सोते और जागते हैं. वे लगातार अपने दिमाग में बातचीत के कुछ अंश और चेहरों की तस्वीरें दोहराते हैं, यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या वे राजनेता से जुड़े हैं और वो यह सब कोर्ट रूम में उस एक पल से जोड़ते हैं जिसने उन्हें गवाह बना दिया जिसकी राज्य को रक्षा करने की ज़रूरत थी — जब विकास ने कोर्ट रूम की मेज पर अपनी मुट्ठी पटकी और कटारा से कहा कि वो तय करेंगे कि उसे (मंत्री) 100 फीट गहरी ज़मीन में दफनाया जाए.
बचाव पक्ष का मामला अदालत को यह समझाने की कोशिश पर टिका था कि कटारा झूठी गवाही दे रहे थे और वे नीतीश कटारा का रिश्तेदार हैं — जबकि उनका एक जैसा सरनेम महज़ एक इत्तेफाक है.
जैसे-जैसे मामला न्यायिक प्रक्रिया से गुज़र रहा था, गवाहों और ठोस सबूतों को छांटा जा रहा था, जब तक कि कटारा एकमात्र गवाह नहीं रह गए जिन्होंने अपने बयान से पलटकर या झूठी गवाही देकर पलटी नहीं मारी. यहां तक कि भारती यादव — विकास की बहन, जिनके नीतीश कटारा के साथ रिश्ते में होने की अफवाह थी — ने भी अपनी गवाही बदल दी, लेकिन अजय कटारा ने ऐसा नहीं किया.
कटारा जोर देकर कहते हैं कि ऐसा यादवों की कोशिशों की कमी की वजह से नहीं हुआ — उन्हें याद है कि उन्हें पैसे की पेशकश की गई थी और गवाही बदलने की धमकी दी गई थी, जबकि डीपी यादव का कहना है कि वे कटारा से कभी नहीं मिले हैं. हालांकि, कटारा के पास कई ऐसे उदाहरण हैं जब दोनों का आमना-सामना हुआ था.
यादव ने फोन पर कहा, “मेरा उनसे कोई लेना-देना नहीं है. मुझे उनके खिलाफ कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है — उनके खिलाफ जो भी सामने आ रहा है, वो उनकी अपनी गलतियां हैं.” और बीच में परिचारकों को आदेश जारी किया, “वो खुद के बनाए जाल में फंस रहा है.”
कटारा जानते हैं कि वे जाल में फंस गए हैं. वे कभी-कभी खुद को इस बात पर अचंभित होते हुए पाते हैं कि उन्होंने बिना अपनी जान गंवाए 21 साल गुज़ारे हैं.
उन्होंने माना, “मैं इस बारे में बहुत सोचता हूं. मुझे लगता है कि नीतीश कटारा की आत्मा मेरी रक्षा कर रही है. यही एकमात्र कारण है कि मैं आज ज़िंदा हूं.”
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लगातार चौंकन्ना रहना
पहली बार किसी ने एक जून 2007 को अजय कटारा को मारने की कोशिश की थी. उन्हें याद है कि हरियाणा के खरखौदा से गुज़रते समय करीब 10 लोगों ने उन पर गोली चलाई थी. उनके सुरक्षाकर्मियों ने भी गोली चलाई थी.
तब से अब तक उनकी जान लेने की कम से कम 10 कोशिशें हो चुकी हैं. पहली कोशिश के एक महीने बाद, 18 जुलाई 2007 को कटारा को कुछ लोग बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गए और कहा कि उनके पास उनकी पहली पत्नी तनु का मैसेज है, जिनसे वे 2007 में अलग हो गए थे. कटारा का दावा है कि उन्होंने उन्हें ज़हरीली आलू टिक्की चाट खिलाई गई — उन्हें अस्पताल ले जाया गया और उनका इलाज किया गया, तब से उन्होंने अजनबियों से कुछ भी खाना नहीं खाया है.
उन्हें अगवा भी किया गया है. उन्होंने पुलिस की वर्दी पहने लोगों के लिए दरवाजा खोला — उस समय उनके अपने पुलिस अधिकारी सो रहे थे — और वह उन्हें उठा ले गए, लेकिन शुक्र है कि शोरगुल के कारण उनके अंगरक्षक जाग गए, जिन्होंने पीछा किया और स्थानीय पुलिस स्टेशन से वापस आकर उन्हें बचाया. एक और बार वे अपने स्टील के गेट को खोलने गए और उन्हें बिजली का झटका लगा — किसी ने उनके दरवाजे के फ्रेम पर बाहर की तरफ एक तार चिपका दिया था.
सबसे बुरी घटना तब हुई जब वे 2008 में एक अदालती सुनवाई से लौट रहे थे, जब उन्हें दूसरी कार से गोली मारी गई. उनकी बुलेटप्रूफ जैकेट में दो गोलियां उनके सीने में लगीं. उनकी जान लेने की ये सभी कोशिशें उनके लिए सम्मान की बात नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी हकीकत है जिसके बारे में वो हर बार सोचते हैं, लेकिन जो चीज़ उनका असली समय लेती है, वो है कानूनी मामलों की निरंतर धारा, जिनसे उन्हें निपटना है.
वे अपने दिमाग से तारीखें, केस नंबर और फोन नंबर याद करते हैं. हर केस फाइल को ध्यान से एनोटेट और फोटोकॉपी किया जाता है. उनकी हर हरकत पर सुरक्षा गार्ड की नज़र रहती है — वर्तमान में उनके पास हर समय नौ सुरक्षा गार्ड हैं, जिनमें से सात दिल्ली पुलिस से और दो उत्तर प्रदेश पुलिस से हैं.
मामले आना बंद नहीं होते: कटारा के खिलाफ 2013 का बलात्कार का मामला, जिसे 2019 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया, अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और जिस व्यक्ति ने एफआईआर दर्ज की थी — कथित पीड़िता के पिता, भगवान सिंह — का कहना है कि उनके साथ धोखाधड़ी की गई और उन्होंने मामले को फिर से खोलने के लिए कभी हलफनामा दायर नहीं किया.
जब वे अदालत में होते हैं, तो कटारा बिना ड्रेस के वकील की तरह दिखते हैं. वे पैरोल की सुनवाई से लेकर फरलो की सुनवाई तक, झूठे आरोपों से बचने से लेकर इन आरोपों के आधार पर जवाबी मामले दर्ज करने तक, इतनी बार अदालत गए हैं. वे दोपहर 1:30 बजे सूचीबद्ध मामले के लिए सुबह 10 बजे पहुंचे और धैर्यपूर्वक अदालत कक्ष में खड़े रहे और यह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में है — कटारा को दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा की निचली अदालतों में सुनवाई में शामिल होना पड़ा है.
उनके मन में कोई शक नहीं है कि यादव एक ऐसे गठजोड़ को नियंत्रित कर रहे हैं जो उन्हें फंसाना चाहता है.
कटारा ने कहा, “डीपी यादव मेरे दिमाग और मेरी आत्मा को चोट पहुंचा रहे हैं. वे और उनका बेटा चाहते हैं कि मैं उनके बेटे की बाकी की ज़िंदगी जेल में बिताने का खर्च उठाऊं. यह मनोवैज्ञानिक युद्ध जैसा है! लेकिन भगवान ने मुझे यह ज़िंदगी दी है और केवल भगवान ही इसे मुझसे छीन सकते हैं. कोई और इसे मुझसे नहीं छीन सकता — यहां तक कि डीपी यादव भी नहीं.”
हर तरह से यादव एक दुर्जेय बाहुबली (प्रभावशाली) राजनेता हैं, जिन्होंने कानून के साथ अपने झगड़े भी किए हैं. चार बार के विधायक और यूपी में पूर्व कैबिनेट मंत्री, जिन्होंने प्रत्येक सदन में दो बार संसद सदस्य के रूप में भी काम किया, यादव का परिवार यूपी के सबसे धनी राजनीतिक परिवारों में से एक रहा. उनके बेटे विकास, जिन पर भी आपराधिक आरोप हैं और जो राजनीतिक सत्ता के लिए अजनबी नहीं हैं, उस समय मौजूद थे जब उनके दोस्त मनु शर्मा ने जेसिका लाल को गोली मारी थी.
यादव अब राजनीति में सक्रिय नहीं हैं और 2012 से कोई पद नहीं संभाला है — लेकिन वे कई आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहे हैं. उनके खिलाफ पहला आपराधिक मामला 1979 में दर्ज किया गया था और तब से उन पर हत्या के नौ अलग-अलग मामलों, हत्या के प्रयास के तीन मामलों, डकैती के दो मामलों और अपहरण और जबरन वसूली के कई मामलों में आरोप लगाए गए हैं.
ऐसा लगता है कि उन्हें सच बोलने की सज़ा मिल रही है. कौन जानता है, अगर वे एक मुकर्रर गवाह बन जाते तो उनकी ज़िंदगी शायद आसान होती
— संचार आनंद, कटारा के वकील
2015 में महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी और 2021 में सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया. उनका बेटा नीतीश कटारा की हत्या के आरोप में 2008 से जेल में है, चिकित्सा कारणों से थोड़े समय के लिए बाहर रहने के अलावा.
यादव ने कटारा को ‘शरारती चरित्र’ बताते हुए कहा, “अजय कटारा एक पक्का बलात्कारी है, वो महिलाओं के व्यापार में शामिल है. उसके खिलाफ इतने सारे मामले हैं, मुझे और क्या कहना चाहिए? अखबारों ने भी उसके बारे में रिपोर्ट की है.”
कटारा का दावा है कि वे कोई अपराधी नहीं बल्कि एक आम आदमी हैं — 2003 से पहले उनके खिलाफ एक भी मामला, सिविल या आपराधिक, दर्ज नहीं किया गया था.
उनके वकील संचार आनंद ने कहा, “ऐसा लगता है कि उन्हें सच बोलने की सज़ा मिल रही है. कौन जानता है, अगर वे एक मुकर्रर गवाह बन जाते तो उनकी ज़िंदगी शायद आसान होती.”
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एक ‘सुरक्षित’ ज़िंदगी
अजय कटारा के नौ-वर्षीय बेटे के लिए उनके पिता की सुरक्षा करने वाले पुलिसकर्मी परिवार के सदस्यों की तरह हैं. कटारा की सुरक्षा में वर्तमान में तैनात कुछ पुलिसकर्मी उनके बेटे के जन्म से पहले से ही उनके साथ हैं. वो उन्हें “भैया” या “चाचा” कहकर बुलाता है.
जब भी कटारा अपने बेटे के बारे में बात करते हैं तो उनकी आवाज़ धीमी हो जाती है. उनका सबसे बड़ा डर यह है कि उनके बेटे का अपहरण हो जाएगा, या कोई और नुकसान होगा.
इस मामले ने उनके परिवार पर भारी असर डाला है, जिन्हें उनके अंगरक्षकों के साथ समझौता करना पड़ा है. उन्होंने शिकायत की कि उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों के लिए निमंत्रण मिलना बंद हो गए हैं क्योंकि रिश्तेदारों को उनकी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त भोजन तैयार करना पड़ता है.
यह सिर्फ सामाजिक असुविधा की बात नहीं है — 2020 में दीपावली की एक शाम उनकी पत्नी और भतीजी पर हमला किया गया, जब वे घर-घर जाकर मिठाई खरीदने के लिए बाहर निकली थीं. उनकी पत्नी मधु को सड़क पार करते समय चलती गाड़ी ने टक्कर मार दी थी — परिवार को यकीन है कि अपराधी डीपी यादव से भी जुड़े हुए थे, जो कटारा को चुप कराने के लिए और ज़्यादा डराने की कोशिश कर रहे थे.
कटारा का कहना है कि उनकी पहली पत्नी तनु, जिनसे उन्होंने 2005 में शादी की थी, असल में यादव परिवार की कठपुतली थी. उन्हें एक दर्दनाक याद आती है, जब तनु से उनके तीन महीने के बेटे का कथित तौर पर अपहरण कर लिया था. जब वे शिकायत दर्ज कराने गए, तो उनकी पत्नी ने पुलिस को बताया कि बच्चा हर समय उनके साथ था.
तीन महीने बाद, उन्होंने कटारा के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज कराया, जो अदालत में गया. वे 2007 में अलग हो गए और 2009 में उनका तलाक हो गया. कटारा का दावा है कि तनु की शादी यादव के ड्राइवर से हुई है. हालांकि, इसकी पुष्टि यादव ने दिप्रिंट से नहीं की है.
कटारा की दूसरी पत्नी मधु के लिए, यह पूरी कहानी कुछ ऐसी है जिसके साथ उन्हें बस शांति से रहना है — और कभी-कभी इसमें हंसने की वजह ढूंढ़ लेती हैं.
गर्मियों के महीनों में कटारा के खिलाफ बढ़ते हमलों का ज़िक्र करते हुए वे हंसती हैं, “जून-जुलाई के आसपास हमेशा चीज़ें खराब होती हैं. मेरी चिंता मेरे बेटे की सुरक्षा है. मैंने अपने पति से सभी मामलों के बारे में अपडेट मांगना बंद कर दिया है. मैं बता सकती हूं कि उनके दिमाग में हमेशा बहुत कुछ चलता रहता है, लेकिन मैं तभी बता सकती हूं जब चीज़ें बहुत खराब हो जाएं.”
परिवार के लिए चीज़ें गड़बड़ होने का मतलब कटारा की जान लेने की एक और कोशिश से लेकर उनके खिलाफ एक और मामला दर्ज होना तक कुछ भी हो सकता है. उन्होंने हाल ही में अतिरिक्त सुरक्षा के तौर पर रॉक्सी नाम का एक बड़ा सेंट बर्नार्ड कुत्ता खरीदा है. रॉक्सी मधु के लिए कुछ हद तक आरामदायक रही है क्योंकि वे उनके घर में सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत जोड़ती है — और यह तथ्य कि वो उनके बेटे से जुड़ी हुई है, जो उन्हें सुरक्षित महसूस कराती है.
उनकी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मी परिवार के सदस्यों और वॉलपेपर के बीच कहीं हैं.
कटारा के साथ 2013 से ड्यूटी पर मौजूद एक अधिकारी ने कहा, “मुझे डीपी यादव में कोई दिलचस्पी नहीं है, या मैं यहां क्यों हूं. मुझे केवल उनमें दिलचस्पी है. उन्होंने कटारा की ओर इशारा किया, उनकी एके-47 की बैरल दूसरी तरफ थी.”
एक बार, सीढ़ियों से नीचे जाते समय, वही अधिकारी कटारा का ध्यान एक नए आसन्न खतरे की ओर आकर्षित करते हैं: उनका खुला हुआ जूते का फीता. बातचीत के बीच में, कटारा तुरंत उसे बांधने के लिए नीचे झुकते हैं, एक विशेष रूप से कठिन कानूनी मामले पर उनका बड़बड़ाना जारी रहता है.
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कोर्ट रूम ड्रामा
बदला लेना और दोषमुक्त होना एक ही जुनूनी सिक्के के दो पहलू हैं. जो ज़िंदगी और मौत का मामल है वो कटारा और डीपी यादव के बीच एक खेल बन गया है, यह देखने के लिए कि कोई दूसरे के लिए कितने समय तक कांटा बन सकता है.
ऐसा नहीं लगता कि यह खेल जल्द ही खत्म हो पाएगा.
उनके खिलाफ प्रतिशोध इतना गहरा है कि यह प्रतिरूपण के एक अजीबोगरीब मामले को भी जन्म दे चुका है, जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. न्यायाधीशों ने इसका संज्ञान लिया और ऐसा होने देने के लिए अधिवक्ताओं को फटकार लगाने के बाद, ऐसी चीज़ों को फिर से होने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया.
कटारा निराश हैं कि सुनवाई में उन्हें पूरी तरह से दोषमुक्त नहीं किया गया, लेकिन आभारी हैं कि अदालत ने भी मामले को स्वीकार करने के मामले में गड़बड़ी को पहचाना और वे इस ज़िंदगी के लिए पूरी तरह से तैयार हैं — जैसे ही एक मामला समाप्त होता है, दूसरा कहीं और सामने आ जाता है.
उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ एक गवाह हूं. मेरा काम सिर्फ सच बताना था. मेरे अंदर अभी भी जुनून है — सच्चाई और न्याय के लिए. मुझे कानून पर भरोसा है और मुझे विश्वास है कि कानून मेरी रक्षा करेगा.”
सुनवाई के अंत में न्यायाधीश ने कथित पीड़िता को संबोधित किया, जो एक चमकीले लाल घूंघट के पीछे छिपी हुई थीं.
उन्होंने पूछा, “क्या अजय कटारा इस कोर्ट रूम में खड़े हैं?”
उन्होंने जवाब दिया, “मैं उसे नहीं देख पा रही हूं.”
“देखा?” न्यायाधीश ने उनके वकीलों से स्पष्ट रूप से पूछा, जिससे उन्हें हैरानी हुई कि ऐसा मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच कैसे गया है.
“देखा?” कटारा ने राहत की सांस लेते हुए दोहराया और सिर ऊंचा करके एक और कोर्ट रूम से बाहर निकल गए.
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