गाजियाबाद: गाजियाबाद के शालीमार गार्डन में लगातार चमकती हुई लाल बत्तियों से जुड़े क्रॉस के सामने करीब 20 लोग झूमते और प्रार्थना करते हैं. ‘प्रभु से प्रार्थना करो’ की आवाज़ से पूरा कमरा भर जाता है. लेकिन कमरा एक साधारण इमारत में है जो चर्च जैसा बिल्कुल भी नहीं दिखता है. यह इमारत एक सैलून और साधारण से मैरिज हॉल के बीच बनी हुई है. इसके बाहर कोई न कोई साइनबोर्ड है और न ही ईसाई धर्म से संबंधित कोई संकेत या या आइकन है.
लेकिन ऐसा जानबूझकर और सुविधा के लिए किया गया है. यह गाजियाबाद में पेंटेकोस्टल चर्च की ग्रोथ पर नजर रखता है
लेकिन इस महीने हिंदू समूहों द्वारा शिकायत किए जाने के बाद, गाजियाबाद पुलिस ने एक पेंटेकोस्टल पादरी और उसकी पत्नी को कथित रूप से लोगों का धर्मांतरण करने के आरोप में गिरफ्तार किया. पुलिस ने अन्य पादरियों की भी पहचान करने का दावा किया है, जो गाजियाबाद के ईसाई समुदाय में भय और अफवाहें फैला रहे हैं.
इस मंडली के पादरी सुनील फिलिप स्वामी कहते हैं, “हम नहीं चाहते कि लोग जानें कि चर्च कहां है. विचार यह है कि जब भी वे एकांत और शांति की तलाश करें तो गॉड उनका मार्गदर्शन करें.”
एनसीआर में बढ़ते पेंटेकोस्टल ईसाई समुदाय के बीच इस तरह की सावधानी का भाव काफी गहरा है. फरवरी में, पूर्वोत्तर भारत के यूनाइटेड पेंटेकोस्टल चर्च सहित देश भर के लगभग 80 चर्चों ने ईसाई समुदाय पर बढ़ते हमलों को लेकर नई दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया.
पंजाब से तमिलनाडु से दिल्ली-एनसीआर
तमिलनाडु में उनके उदय के दशकों बाद, पंजाब सालों से करिश्माई और पेंटेकोस्टल ईसाई चर्चों की बढ़ती संख्या की रिपोर्ट की वजह से सुर्खियों में रहा है. अब इसी तरह का चलन छिपे तरीके से गाजियाबाद और बाकी दिल्ली-एनसीआर में भी होने की संभावना है.
फरवरी के प्रोटेस्ट में भाग लेने वाली प्रोटेस्टेंट ईसाई कार्यकर्ता मीनाक्षी सिंह कहती हैं, “गाजियाबाद में लगभग 40-45 पेंटेकोस्टल चर्च हैं और उनमें से अधिकांश पिछले आठ से दस वर्षों में सामने आए हैं.”
लेकिन बिना किसी सर्वेक्षण या आधिकारिक आंकड़ों के, यह सभी अनुमान मात्र हैं. चूंकि कई चर्च किराए वाले मकानों या ऐसी जगहों से ऑपरेट किए जाते हैं जहां ईसाई धर्म से जुड़ा कोई सिंबल नहीं होता है इसलिए ऐसी जगहों की पहचान करना आसान नहीं होता.
चर्च की इमारतों की तरह, नए पेंटेकोस्टल्स की पहचान करना कठिन है. पेंटेकोस्टल में प्रवेश करना आसान है, गेट-कीपिंग बहुत कठोर नहीं है. नए सदस्यों को अपने हिंदू नाम या तरीके बदलने की आवश्यकता नहीं है. गाजियाबाद में कुछ सदस्यों के घरों की दीवारों पर हिंदू देवता और क्रॉस दोनों लटके हुए हैं.
लेकिन बजरंग दल जैसे समूहों द्वारा इस मुद्दे को हवा दिए जाने के कारण जैसे-जैसे धर्मांतरण को लेकर लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है वैसे-वैसे स्थानीय पुलिस द्वारा इसकी जांच और गहरी होने की संभावना है.
सीएम योगी आदित्यनाथ के सीएम रहते हुए उत्तर प्रदेश पहला राज्य है जहां धर्मांतरण को लेकर कड़े नियम बनाए गए हैं.
आदित्यनाथ ने जनवरी में बंजारा कुंभ में कहा था, ‘धोखेबाज मानसिकता वाले कुछ लोग हैं जो धर्म परिवर्तन करते हैं, लेकिन हमें उन्हें रोकने के लिए मिलकर काम करना होगा.’
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ईसाइयों की बढ़ती संख्या
गाजियाबाद में सीमापुरी की संकरी गलियों में, काफी संख्या में ईसाई धर्म अपना रहे हैं, लेकिन घरों के बाहर किसी तरह का कोई निशान नहीं दिखता, जब तक कि आप राम सिंह के घर नहीं पहुंच जाते. जहां उसके भूरे-लाल दरवाजे पर एक गोल्डन क्रॉस और मेरी क्रिसमस का स्टिकर लगा हुआ है. इसके ठीक बगल में एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है जो कि योगशाला के बारे में जानकारी दे रहा है.
भारतीय नौसेना में एक सेवानिवृत्त नाविक, 75 वर्षीय राम सिंह, 30 साल पहले धर्म परिवर्तित करके ईसाई बन गए थे. “डैडी” के रूप में जाने जाने वाले सिंह एक पादरी नहीं हैं, लेकिन स्थानीय लोग ईसाई धर्म और योग पर उनकी शिक्षाओं के लिए उनको फॉलो करते हैं. वह और एक स्थानीय हिंदू संत बबलूनाथ हर रविवार को एक स्थानीय पार्क में योग सत्र आयोजित करते हैं.
राम सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं एक ईसाई हूं और एक हिंदू भी. अपनी जड़ों को छोड़ना कठिन है.”
सिंह को पेंटेकोस्टल ईसाई धर्म से उनकी पत्नी देवी ने परिचित कराया था, जो अस्पताल में एक नन से मिली थीं जहां उन्होंने एक सफाई कर्मचारी के रूप में काम किया था. नन ने देवी को आश्वासन दिया था कि मसीह उसके पति के मन को बदल देगा और वह अब उसके साथ दुर्व्यवहार या मारपीट नहीं करेगा.
सिंह ने दावा किया कि जब उन्होंने चर्च जाना शुरू किया तो शराब पीना और अपनी पत्नी को गाली देना बंद कर दिया.
आगे उन्होने कहा कि ईसाई धर्म अपनाने वाला उनका परिवार पहला था. उन्होंने कहा कि पच्चीस अन्य परिवारों का आज ईसाई धर्म की तरफ झुकाव हो चुका है.
45 वर्षीय प्रॉपर्टी डीलर संजय वर्मा ने कहा, “पिछले पांच से छह वर्षों में संख्या बढ़ी है. हर बार जब कोई धर्मांतरित ईसाई मुझसे प्रॉपर्टी खरीदने आता है, तो मैं उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं, लेकिन वे इसके बजाय मुझे धर्म परिवर्तन करने के लिए कहते हैं.”
लेकिन, उन्हें फिर से धर्मांतरित करने के लिए संगठित रूप से जवाबी कार्रवाई की जा रही है. घर वापसी अभियान गाजियाबाद पहुंच चुका है.
बजरंग दल के प्रवीण कुमार ने कहा कि नव-धर्मांतरित ईसाई अक्सर कहते हैं कि यीशु ने उनके जीवन को बदल दिया और उन्हें उनकी बीमारियों से छुटकारा दिलाया. यहां तक कि उसने फरवरी में संतोष जॉन और उसकी पत्नी जिजी के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी. वह चमत्कारी इलाज के उनके दावों को “झूठ” कहता है.
कुमार के मुताबिक, उन्होंने ऐसे पांच लोगों की ‘घर वापसी’ कराई है.
उन्होंने दावा किया, ‘धर्म परिवर्तन करने वालों में ज्यादातर गरीब लोग हैं.’
संडे सर्विस
गाजियाबाद के एक अन्य पेंटेकोस्टल चर्च के एक पादरी बीनू जॉनसन का कहना है कि उन्हें हर महीने 40-50 गैर-ईसाइयों से बीमारियों में मदद के लिए अनुरोध प्राप्त होता है. कुछ लोग उनके पास जाते हैं क्योंकि उन्हें यकीन है कि उनके शरीर में एक “दुष्ट” आत्मा प्रवेश कर चुकी है.
जॉनसन ने कहा, “मैं उन्हें सिर्फ चर्च में आने और यीशु से प्रार्थना करने के लिए कहता हूं – और कुछ नहीं. और जब उनकी प्रार्थना स्वीकार हो जाती है तो वे प्रभु के पीछे चलने लगते हैं. हम उन्हें मजबूर नहीं करते या लुभाते नहीं हैं. वे हमारे पास यीशु द्वारा भेजे गए हैं.”
करिश्माई और पेंटेकोस्टल चर्च दोनों ही न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में तेजी से बढ़ते धार्मिक आंदोलन हैं, जिसमें अलौकिक शक्ति के द्वारा इलाज करना, आत्माओं या ईश्वर से बात करना और पवित्र आत्माओं को बुलाने जैसी बातें कही जाती हैं.
फिलिप स्वामी ने मंडली के एक सदस्य के सिर पर अपना हाथ रखते हुए, जो उनके पैर छू रहा था, कहा, “हम लोगों को धर्मांतरित नहीं करते हैं. लोग अपनी समस्याएं लेकर हमारे पास आते हैं और यीशु के माध्यम से वे समाधान ढूंढते हैं. और अगर वे हमें खुद को यीशु के करीब ले जाने के लिए कहते हैं, तो हम कैसे इनकार कर सकते हैं? क्या यह कन्वर्जन है? हम किसी को मजबूर नहीं कर रहे हैं.”
जैसे ही कुछ कम उम्र के लोग हॉल के एक तरफ रखे ड्रम और कीबोर्ड बजाना शुरू करते हैं, बाकी के लोग प्रार्थना और पूजा में अपनी हाथों को हिलाते हैं. इस दौरान फिलिप स्वामी उनका नेतृत्व करते हैं. हालेलुइया के जवाब में उन्होंने तेज आवाज में बोला, “यीशु आपके साथ है.”
रविवार की सेवा शुरू हो गई है.
इन चर्चों में प्रार्थना करने की भावनाएं काफी तेज हैं. लोग दया, रोगों को ठीक करने, क्षमा और पूर्णता की भावना के लिए याचना और प्रार्थना करते हैं. यह भारत के अधिकांश पारंपरिक चर्चों में संयमित पूजा-पाठ से बहुत अलग है.
“ईश्वर से प्रार्थना करो” प्रिंस ने अपने पादरी फिलिप स्वामी का अभिवादन करते हुए कहा. उसने दस साल पहले चर्च में सेवा करनी शुरू की थी. उनका पालन-पोषण एक “अमीर गुर्जर परिवार” द्वारा किया गया था, जिन्होंने उन्हें एक अनाथालय से गोद लिया था, लेकिन वह अब उनके संपर्क में नहीं हैं.
पिछले साल ही उन्होंने वाल्मीकि समुदाय से संबंधित चर्च की सदस्य गीता से शादी की. उसने भी 2014 में राजकुमार के साथ लगभग उसी समय चर्च जाना शुरू किया था. रविवार की सभाओं में उनका प्यार परवान चढ़ गया था.
लेकिन पादरी संतोष जॉन और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी पर न तो गीता और न ही प्रिंस चर्चा करना चाहते थे. मंडली के अन्य सदस्यों ने भी कहा कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता है.
1 मार्च को, जॉन और जिजी को बजरंग दल के एक सदस्य की शिकायत के आधार पर उत्तर प्रदेश धर्म परिवर्तन निषेध कानून 2021 के तहत गिरफ्तार किया गया और मामला दर्ज किया गया, जिसमें उन पर लोगों का धर्मांतरण का आरोप लगाया गया था.
मूल रूप से केरल के रहने वाले इस दंपती को इंदिरापुरम स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया गया था. वे फिलहाल जिला जेल में बंद हैं. जांच अधिकारियों का दावा है कि अब तक एकत्र किए गए साक्ष्य पादरी को “धर्मांतरण में शामिल ग्रुप” का हिस्सा होने की ओर इशारा करते हैं.
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जाति और इलाज
दो साल पहले, 52 वर्षीय तेज बहादुर ने अपनी बीमारी के ‘ठीक’ होने के बाद अपने परिवार के साथ ईसाई धर्म अपना लिया था. जाटव जाति में पैदा हुआ बहादुर ठीक से चल नहीं पाता था और तभी वह स्थानीय चर्च गया.
वह कहते हैं, “मैं एक महीने के भीतर ठीक हो गया था जिसके बाद मैंने अपनी पान की दुकान फिर से खोल दी.” लेकिन उनके हिंदू पड़ोसियों का कहना है कि यह कोई “चमत्कार” नहीं था, बल्कि उसे इलाज करवाने के लिए पैसे दिए गए थे.
बहादुर, जिसके दाहिने हाथ पर देवी दुर्गा की स्तुति वाला एक टैटू है, वह उन कई नए ईसाइयों में से एक है जो अपनी हिंदू पहचान को खोए बिना रविवार की प्रार्थना में शामिल होते हैं.
दिल्ली आधारित क्रिश्चियन सोसायटी यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के समन्वयक एसी माइकल ने कहा, “पेंटेकोस्टल ईसाइयों के पास धर्मांतरण का कोई लंबा-चौड़ा तरीका नहीं है. एक या दो बार प्रार्थना में शामिल हों, कुछ प्रार्थनाएं गाएं, एक बाइबिल खरीदें और आप धर्मांतरित हो जाते हैं. आपके पास धर्मांतरण की प्रक्रिया को पूरा करने का भी समय नहीं होता. इसमें कोई बैपटिज्म शामिल नहीं है.”
उन्होंने कहा, “कैथोलिक चर्च में ईसाई बनने में दो से तीन साल लगते हैं.”
दिप्रिंट ने गाजियाबाद में जिन तीन पेंटेकोस्टल चर्चों का दौरा किया, उनमें से अधिकांश दलित थे, या वंचित अथवा गरीब तबके से थे.
वंचितों के लिए, चर्च जातिवाद और निराशा से बाहर निकालने का वादा करता है. 1980 के दशक में तमिलनाडु में पेंटेकोस्टल आंदोलन को किसने चलाया और अब पंजाब के गांवों में मजहबी सिखों और वाल्मीकि हिंदुओं के बीच क्या चल रहा है.
दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों के एक वर्ग, जिन्होंने अनुसूचित जाति के दर्जे के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है, उनके मुताबिक- जातिगत भेदभाव हमेशा धर्म परिवर्तन करने से खत्म नहीं होता है. धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए बने न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग ने भी 2007 की अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि ईसाई या इस्लाम अपनाने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ दिया जाए. केंद्र ने इन याचिकाओं का विरोध किया और 2022 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक नए आयोग का गठन किया.
उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी मुकदमे लड़ रहे वकील अशोक कुमार का कहना है कि हिंदुओं के बीच भेदभाव के कारण ईसाई धर्म को बढ़ने में मदद मिली.
कुमार ने कहा, “केरल और पंजाब के बाद, ईसाई धर्म एनसीआर के ग्रामीण इलाकों में भी पहुंच गया है. इन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति समुदाय के हिंदुओं के साथ भेदभाव किया जाता है. ईसाईयों ने इसका फायदा उठाया है. जिन लोगों को मंदिरों में कदम रखने की अनुमति नहीं है, उन्हें पादरियों द्वारा सम्मान देते हुए गले लगाया जाता है.”
गाजियाबाद में, नए-नए धर्मांतरित पेंटेकोस्टल ईसाई अपने धर्मांतरण के पीछे असली कारण जाति को नहीं बल्कि इलाज को बताते हैं. लेकिन प्रभावशाली जाति वर्ग से शायद ही कोई हिंदू हो जो धर्म परिवर्तन कर रहा हो.
फिलिप स्वामी ने कहा,“तुम चर्च के बाहर गरीब लोगों को नहीं पाओगे. अगर हम किसी को देखते हैं, तो हम उन्हें अंदर ले जाते हैं और यीशु के आशीर्वाद से उन्हें सम्मान का जीवन प्राप्त करने में मदद करते हैं.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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