scorecardresearch
Thursday, 18 April, 2024
होमफीचरको-वर्किंग स्पेस से गुलज़ार हो रहा नोएडा, एक नया स्टार्ट-अप कल्चर भी उभर रहा हैं

को-वर्किंग स्पेस से गुलज़ार हो रहा नोएडा, एक नया स्टार्ट-अप कल्चर भी उभर रहा हैं

नोएडा, फरीदाबाद और गुरुग्राम में को-वर्किंग स्पेस की भरमार है. कोडर, स्क्रिप्ट राइटर से लेकर स्टैंड-अप कॉमिक्स तक, सभी के लिए यहां एक हॉट-डेस्क है.

Text Size:

नई दिल्ली: नोएडा सेक्टर 62 के इथम वर्ल्ड एक रेगुलर मॉल की तरह लग रहा है जिसमें एक फूड कोर्ट, फास्ट फैशन स्टोर हैं. लेकिन इस 12 मंजिला इमारत के अंदर को-वर्किंग यूनिवर्स के दो फ्लोर हैं जो दिल्ली एनसीआर के उपनगरों के काम करने के तरीके को बदलने के लिए तैयार हैं. वे काम के लिए अनुकूल मौका दे रहे हैं, बजट क्रांति ला रहे हैं और उद्यमशीलता को बढ़ावा दे रहे हैं.

पहली नज़र में, यह पहले के आईटी ऑफिस ग्रे और सफेद रंग में रंगे नीरस दिखाई देते हैं, क्यूबिकल्स, केबिन और कॉन्फ्रेंस रूम की लाइनों के साथ. लेकिन यहीं से कॉर्पोरेट प्रतिबंध समाप्त हो जाता है. इन जगहों पर काम करने वाले पुरुषों और महिलाओं की तादाद फॉर्मल में नजर नहीं आती है बल्कि जींस, खाकी पैंट और टी-शर्ट के साथ काम पर आते हैं. यहां हर दिन शुक्रवार जैसी मस्तीभरा होता है.

मेक-इन-इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबली हब से नोएडा अब एक चहल-पहल वाला स्टार्ट-अप उपनगर भी है. और यह को-वर्किंग स्पेस की मांग को पूरा कर रहा है. उन्हें कम निवेश की जरूरत होती है और हाइब्रिड कामकाजी वातावरण के लिए इसे आसान बनाते हैं जहां कर्मचारियों को हर दिन ऑफिस में हर दिन चेक इन नहीं करना पड़ता है.

‘यह आपको एक कॉर्पोरेट वातावरण देता है. आपको एक मामूली कीमत पर एक ऑफिस का अनुभव मिलता है और आपको हाउसकीपिंग और जगह के मुद्दों के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है,’ गाजियाबाद की रेणु कपूर कहती हैं. जब उन्होंने पिछले साल बीबीटी कंसल्टेंसी शुरू की, तो एक ऑफिस किराए पर लेना उसके बजट से बाहर था, और एक एंटरपन्योर बनने के उसके सपने को लगभग खत्म कर देने वाला था.

एक मित्र ने उन्हें इस तरह के एक को-वर्किंग ऑफिस को किराए पर लेने का सुझाव दिया, और कुछ ही दिनों में, वह इथम के बीसीजेंट में ‘एक ऑफिस’ के साथ अपने काम को मंजिल तक पहुंचाने के लिए तैयार हो गईं. पिछले छह महीनों में, कपूर ने तीन कर्मचारियों को काम पर रखा है और कई रखे जाने पर काम चल रहा है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

नोएडा, जो पहले इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हब, आईटी ऑफिस, मीलों और मीलों तक गेटेड कॉन्डोमिनियम और पोंटी चड्ढा के मॉल के लिए जाना जाता था, अब सेक्टर 62, 63 और 8 में को-वर्किंग स्पेस के साथ 9-टू-5 ऑफिस की पुरानी धारणा को रीसेट कर रहा है. गुरुग्राम में शुरू हुआ यह कोर्स अब नोएडा और फरीदाबाद तक फैल गया है. यह एक नई पीढ़ी और उनके स्टार्ट-अप के सपनों का पसंदीदा कार्यक्षेत्र और कार्यशैली बन गया है. यह ऐसा है मानो आलसी, सरकारी नई दिल्ली को नए को-वर्किंग स्पेस बूम द्वारा हर तरफ से गले लगाया जा रहा है.

आईटी कंपनियों से स्टैंड-अप कॉमिक्स तक

37 वर्षीय निकुंज गुप्ता की आईटी कंपनी उस समय घाटे में चल रही थी जब उन्हें को-वर्किंग स्पेस जैसे सिस्टम के बारे में बताया गया था. 2017 में, उन्होंने आईटी को छोड़ दिया और इथम में अपने ऑफिस को CoBox में बदल दिया. अब, सात साल बाद, उनका अब बिल्डिंग में उनका को-वर्किंग बिजनेस छह ऑफिसों तक हो गया है.

गुप्ता ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘मेरे पहले ग्राहक दो कंटेंट राइटर थे. सात साल हो गए हैं और वे अभी भी यहां काम कर रहे हैं.’

जब नोएडा और गुरुग्राम आए तो वो न केवल दिल्ली को सहारा देने वाले सहायक शहरों के रूप में उभरे, बल्कि बाद में अपने आप को बड़े शहरों के रूप में उभारा. छात्र पढ़ने के लिए एनसीआर की ओर कूच करने लगे. यंग ग्रेजुएट्स बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्टार्ट-अप्स में नौकरी करने वाले कर्मचारियों में शामिल हो गए, जिन्होंने वहां अपना बेस बनाया था. लेकिन जब तक वे अपनी खुद की कंपनियां बनाने के लिए तैयार हुए, रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू चुकी थीं.

उद्यमियों और फ्रीलांसरों की एक नई पीढ़ी के लिए जो नौ से पांच की नौकरी के बंधन में नहीं बंधना चाहते थे उनके लिए को-वर्किंग स्पेस एक बेहतर जगह थी. कोडर से लेकर स्क्रिप्ट राइटर, सभी के लिए यहां जगह है. एक को-वर्किंग स्पेस के मैनेजर ने दिप्रिंट को बताया कि उनका एक ‘रेंटर’ स्टैंड-अप कॉमेडियन है, जो अपनी स्क्रिप्ट लिखने के लिए क्यूबिकल का इस्तेमाल करता है.

2022 में, सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक्स कंपनी में काम करने वाले प्रतीक चौधरी ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया. पहले वह घर से काम कर रहा था. वो नोएडा के एक को-वर्किंग स्पेस में बैठकर काम करते हुए कहते हैं, ‘घर पर ढुलमुल रवैये के कारण काम करने में दिक्कत हो रही थी. मैं ठीक से काम नहीं कर पा रहा था. मेरा प्रदर्शन भी गिर गया था.’


यह भी पढ़ें: उग्रवाद प्रभावित मणिपुर में म्यांमार के शरणार्थियों के आने से जातीय तनाव फिर से शुरू हो गया है


तेज़ी से बढ़ रहा है

कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन ने घर से काम को सुलभ बना दिया था. इसने पिछले दो वर्षों ने फ़्लैगिंग फ़्लेक्सिबल ऑफ़िस स्पेस बाज़ार को एक नया स्थान दिया है. प्रॉपटी कंसलटेंट जेएलएल इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, 2019 के अंत तक, भारत के सात शहरों में लगभग 30 मिलियन वर्ग फुट की को-वर्किंग यूनिट थीं, लेकिन 2020 के अंत तक यह घटकर 20 मिलियन वर्ग फुट रह गई. लेकिन अकेले पिछले वर्ष इसमें बड़ा उलटफेर हुआ है. जून 2022 तक, को-वर्किंग स्पेस फिर से फला-फूला, जो लगभग 43.4 मिलियन वर्ग फुट तक पहुंच गया.

नोएडा के सेक्टर 8 में अमीगो की देखरेख करने वाले एक प्रबंधक ने कहा, ‘इसमें असली उछाल लॉकडाउन के बाद आया. लोग ऐसे स्थानों के बारे में जागरूक हो रहे हैं और नोएडा में और अधिक को-वर्किंग स्पेस खुल रहे हैं.’

विकास की यह कहानी नोएडा और गुरुग्राम तक ही सीमित नहीं है. फरीदाबाद को-वर्किंग स्पेस का हब बनने की ओर भी अग्रसर है.

दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम में शाखाओं के साथ को वर्किंग स्पेस AltF के मालिक सार्थक छाबड़ा ने कहा, “फरीदाबाद में बहुत अधिक कर्षण है लेकिन पर्याप्त सह-कार्यस्थल नहीं हैं. हमारे शोध से पता चलता है कि वहां एक बाजार है.” वह फरीदाबाद में भी ऐसा ही एक सेट अप शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं.

हिन्दुस्तान यहां है

वर्कस्टेशन का उपयोग करने के लिए को-वर्किंग स्पेस मामूली शुल्क पर दैनिक और मासिक पास प्रदान करते हैं. दैनिक किराया लगभग 200 रुपये है और मासिक पास 5,000 रुपये से लेकर 6,000 रुपये तक है. अधिकांश को-वर्किंग स्पेस हॉट-डेस्क की पेशकश करते हैं जो अलग-अलग ग्राहकों को समय स्लॉट या कमरों के आधार पर किराए पर दिए जाते हैं जिन्हें हर महीने बुक किया जा सकता है. चौधरी और गुप्ता जैसे स्टार्टअप्स के लिए समर्पित स्थान एक अतिरिक्त बोनस है.

चौधरी ने आगे कहा, ‘मुझे बस एक लैपटॉप के साथ आना है और काम शुरू करना है. यहां कई लोग काम कर रहे हैं इसलिए इसने मेरा नेटवर्क कई तरह से बढ़ रहा है.’

वर्क कल्चर में आया यह बदलाव आईटी कंपनियों के लिए भी कारगर साबित हुआ है. ओवरहेड्स में कटौती करने के लिए, कई सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी कंपनियां अपने सर्वर को-वर्किंग लोकेशंस पर स्टोर कर रही हैं.

‘एक सॉफ्टवेयर डेवलपर अनिमेष मिश्रा ने कहा, “आपको सर्वर रखने के लिए केवल एक जगह किराए पर लेने की जरूरत है. किराए के ऑफिसों को छोड़ दें और कर्मचारियों को घर से काम करने दें.”

ईडीएस टेक्नोलॉजी के व्यापार प्रमुख (उत्तर भारत) 41 वर्षीय अंकेश कश्यप पिछले साल के बीच में नोएडा सेक्टर 62 में कोबॉक्स में एक दर्जन कर्मचारियों की अपनी टीम के साथ शिफ्ट हो गए. उन्होंने पहले नोएडा में एक ऑफिस स्पेस किराए पर लिया था, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उन्हें छोड़ना पड़ा.

वे ऑफिस के लिए लगभग 1.2 लाख रुपये का किराया दे रहे थे, अब वे सिर्फ 65,000 रुपये खर्च कर रहे हैं. एक कप ग्रीन टी की चुस्की लेते हुए अंकेश ने कहा, ‘देखिए यह कितना किफायती है.’

ईथम की छठी मंजिल पर CoBox के मुख्य प्रवेश द्वार पर ‘हिंदुस्तान’ शब्द चिपका हुआ है. अंदर, क्यूबिकल्स और केबिन राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिवाइडेट हैं.

दिल्ली-एनसीआर लेबल वाले एक कमरे में प्रवेश करने वाली CoBox की देखरेख करने वाली प्रबंधक 29 वर्षीय वैदेही ने कहा, ‘को-वर्किंग करना हिंदुस्तान की तरह है जहां विभिन्न कार्य पृष्ठभूमि के लोग भारत के राज्यों की तरह काम करने के लिए एक साथ आते हैं.’

कमरों को बेतरतीब ढंग से लेबल किया गया है. महाराष्ट्र एक कोने में है, गुजरात और राजस्थान बगल में, और दिल्ली सबसे बड़ी जगह पर है.

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: वंदे भारत की पायलट बनीं पहली महिला सुरेखा यादव ने कहा, कोई भी काम सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं


share & View comments