scorecardresearch
Thursday, 5 September, 2024
होमफीचर‘शुक्र है मेरी आंख बच गई’: पांच साल में फिरोजाबाद के सैकड़ों चूड़ी मज़दूरों को MTO तेल ने कैसे झुलसाया

‘शुक्र है मेरी आंख बच गई’: पांच साल में फिरोजाबाद के सैकड़ों चूड़ी मज़दूरों को MTO तेल ने कैसे झुलसाया

एक बिना सोचे-समझे लिए गए फैसले ने मज़दूर को इस खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल करने पर मज़बूर कर दिया, जिसके कारण पिछले 5 सालों में कम से कम 16 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज़्यादा लोग घायल हो चुके हैं.

Text Size:

फिरोजाबाद: मार्च की एक सुबह 6 बजे, दो भाई सुनील और अनिल कांच की चूड़ियों के दो सिरों को आपस में जोड़ने में जुटे थे. सुनील की पत्नी अंजलि भी फिरोजाबाद के अम्बे नगर स्थित अपने घर में एक छोटे से कमरे में बैठीं महाशिवरात्रि मेले की चर्चा कर रही थीं. जल्द ही एक धमाके ने पूरे कमरे को अपनी चपेट में ले लिया, जिससे तीनों गंभीर रूप से झुलस गए. अंजलि की मौत आगरा के एक अस्पताल में एक महीने तक चले इलाज के बाद हुई. चूड़ियों को जोड़ने के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले मिनरल टर्पेन्टाइन ऑयल (एमटीओ) से भरी मिट्टी की गुल्लक तेल के दबाव को सहन नहीं कर सकी, जिससे विस्फोट हो गया.

पिछले पांच सालों में फिरोजाबाद के चूड़ी निर्माण उद्योग में मौतें और आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. यह सब पांच साल पहले बिना किसी सरकारी निगरानी, ​​ट्रेनिंग और अध्ययन या इसके सुरक्षा पहलुओं की जांच के घरेलू केरोसिन की जगह अत्यधिक ज्वलनशील एमटीओ के इस्तेमाल शुरू करने के बाद से हो रहा है.

फिरोजाबाद का चूड़ी उद्योग असंगठित है जो कि अक्सर बाल मज़दूरी और खतरे के लिए सुर्खियों में रहता है. यह व्यापारिक संगठनों द्वारा अनियमित और अनियंत्रित रहा है. घरेलू निर्माण इकाइयों को खुद ही सभी चीज़ें संभालने के लिए छोड़ दिया जाता है. चूड़ी जोड़ने के सात से आठ घंटे के काम से उन्हें मुश्किल से 100-150 रुपये मिलते हैं. वे बिना किसी सेफ्टी गियर के छोटे, गंदे कमरों में काम करते हैं. बिना सोचे-समझे लिए गए इस फैसले ने उन्हें एक खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल करने पर मज़बूर कर दिया है, जिससे पिछले पांच सालों में कम से कम 16 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. फिरोजाबाद की 50 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी के लिए कांच उद्योग आय का एक बड़ा स्रोत है. भारत के कुल असंगठित कांच उत्पादन में इसका हिस्सा 70 प्रतिशत है और इसके लगभग 35 प्रतिशत प्रोडक्ट निर्यात किए जाते हैं.

एमटीओ द्वारा फैलाई गई सुरक्षा आपदा के बारे में अधिकारियों को जागने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अब स्थानीय अधिकारी, अग्निशमन विभाग और दबाव समूह के रूप में काम करने वाला एक स्वतंत्र श्रमिक संगठन सुरक्षा जागरूकता स्वास्थ्य शिविर आयोजित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. प्रशासन चूड़ी मज़दूरों के लिए कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) रजिस्ट्रेशन की भी योजना बना रहा है और भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) भी कारीगरों की शिकायतों के बारे में जिला प्रशासन के संपर्क में है.

फिरोजाबाद के सहायक श्रम आयुक्त यशवंत कुमार ने कहा, “मज़दूर संघों को सूचित कर दिया गया है और उन्हें मज़दूरों को कैंप में लाने के लिए कहा गया है. यहां उन्हें एमटीओ का इस्तेमाल कैसे करें, यह बताया जाएगा, ताकि आग लगने की घटनाओं को कम किया जा सके.”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस 200 साल पुराने छोटे औद्योगिक शहर में ऐसे मज़दूर रहते हैं, जो लंबी शिफ्टों में काम करते हैं. चूड़ी बनाने वाले मज़दूर 1,000 करोड़ रुपये के चूड़ी उद्योग की रीढ़ हैं. यह सब उनके घरों की असुरक्षित जगह से हो रहा है. पीडीएस सेंटरों पर केरोसिन की अनुपलब्धता के बीच अचानक एमटीओ पर स्विच करने से चूड़ी बनाने वाले मज़दूरों की स्थिति और बिगड़ गई है.

जिला अस्पताल के बर्न विभाग के एक सीनियर डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “एमटीओ से ​​जले हुए मरीज हमारे पास बहुत गंभीर हालत में आते हैं. यह तेल त्वचा को बुरी तरह प्रभावित करता है और रिकवरी काफी धीमी होती है. हाल ही में ऐसे मामलों में वृद्धि हुई है. एमटीओ एक मिश्रित केमिकल है, इसलिए यह शरीर पर बहुत बुरी तरह से प्रतिक्रिया करता है और घाव बहुत गहरे होते हैं.”

चूड़ी बनाने वाले मज़दूर 1,000 करोड़ रुपये के चूड़ी उद्योग की रीढ़ हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
चूड़ी बनाने वाले मज़दूर 1,000 करोड़ रुपये के चूड़ी उद्योग की रीढ़ हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: यूपी में न्यायिक हिरासत में दलित व्यक्ति की मौत, मां की गुहार — ‘मेरा बेटा लौटा दो’, बदले में मिली लाठी


असंगठित क्षेत्र का अभिशाप

फिरोजाबाद की 120 चूड़ी बनाने वाली इकाइयों में से वर्तमान में केवल 50 ही चालू हैं. कांच उद्योग आय और रोज़गार का एक प्रमुख स्रोत है. जिला उद्योग केंद्र (डीआईसी) के अनुसार, चूड़ी जोड़ने के काम में लगभग 5,000 घरेलू इकाइयां शामिल हैं.

फिरोजाबाद के कांच उद्योग का वार्षिक कारोबार 10,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जिसकी कुल क्षमता 5,000-6,000 टन प्रतिदिन है. इसमें से चूड़ी बनाने का उद्योग 1,000 करोड़ रुपये का है, जिसकी उत्पादन क्षमता 1,500 टन प्रतिदिन है.

1996 तक, कोयला चूड़ी इकाइयों को चलाने वाला मुख्य ईंधन था, लेकिन उस साल सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने न केवल विनिर्माण इकाइयों में किसी भी वृद्धि पर रोक लगा दी, बल्कि उद्योग को प्राकृतिक गैस पर स्थानांतरित करने के लिए भी कहा. फिरोजाबाद ताज ट्रैपेज़ियम ज़ोन (TTZ) के तहत आता है — ताज महल के चारों ओर 10,400 वर्ग किलोमीटर का एक निर्धारित क्षेत्र, जो स्मारक को प्रदूषण से बचाता है.

उद्योग ने प्राकृतिक गैस का उपयोग करना शुरू कर दिया, लेकिन चूड़ी जोड़ने के काम में लगे मज़दूरों ने एमटीओ पर जाने से पहले केरोसिन पर निर्भर रहना जारी रखा.

लेकिन एमटीओ जानलेवा ईंधन है. सुनील और अनिल की मां राजकुमारी देवी ने मार्च की सुबह की भयावहता को याद करते हुए कहा, “तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन वो हादसा हमें आज भी सताता है. हम पूरी तरह टूट चुके हैं. अब हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है.”

मज़दूरों को किसी भी सरकारी सहायता का लाभ नहीं मिलता है और ये दुर्घटनाएं पीड़ित परिवारों पर इलाज के वास्ते लिए गए कर्ज का बोझ डाल रही हैं. देवी के परिवार पर अब लगभग 8 लाख रुपये का कर्ज है. अप्रैल में उन्हें अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा था.

शुक्र है कि आग मेरी आंखों में नहीं गई, इसलिए मैं देख पा रहा हूं, लेकिन मेरा शरीर जल गया है. मैंने कभी सपने में भी ऐसी घटना के बारे में नहीं सोचा था
— अनिल कुमार, फिरोजाबाद चूड़ी मज़दूर

देवी अपनी मृत बहू की तस्वीरें पकड़े हुए हैं. आंखों से आंसू पोंछते हुए उन्होंने कहा, “हमारे साथ ऐसी घटना कभी नहीं हुई. हम तीन पीढ़ियों से चूड़ी जोड़ने के धंधे में लगे हैं.”

हालांकि, परिवार ने अब यह काम छोड़ दिया है और इस गर्मी में आम बेचना शुरू कर दिया है. अनिल, जो विस्फोट में अपनी बाईं आंख लगभग खो चुके थे, हाल ही में आगरा के अस्पताल से लौटे हैं. उनकी आंखों और भौंहों पर जलने के निशान हैं. वो अब काला चश्मा पहनते हैं.

घर में खड़ी आम की गाड़ी के पास बैठे कुमार ने कहा, “शुक्र है कि आग मेरी आंखों में नहीं गई, इसलिए मैं देख पा रहा हूं, लेकिन मेरा शरीर जल गया है. मैंने कभी सपने में भी ऐसी घटना के बारे में नहीं सोचा था.”

शहर के फैक्ट्री मालिक जानते हैं कि मज़दूर केरोसिन की मांग कर रहे हैं, लेकिन वह बस असमर्थता जताते हैं.

फिरोजाबाद की सबसे पुरानी चूड़ी बनाने वाली फैक्ट्री नादर बक्स एंड कंपनी ग्लासवर्क्स के मैनेजर मोहम्मद सैफ ने कहा, “चूड़ी बनाने वाले मज़दूरों के बिना हम अधूरे हैं, क्योंकि उनके साथ हमारा रिश्ता पीढ़ियों पुराना है. एमटीओ के कारण चोट लगने और मौत की घटनाओं में वृद्धि हुई है, हमने यह भी देखा है. हम केरोसिन की उपलब्धता के बारे में कुछ नहीं कर सकते, लेकिन हम हमेशा अपने मज़दूरों के साथ खड़े रहे और उनके मुश्किल समय में उनकी मदद की.”

एमटीओ में लगी आग में अनिल कुमार की बाईं आंख जल गई | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
एमटीओ में लगी आग में अनिल कुमार की बाईं आंख जल गई | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: घटती मांग, बढ़ती उत्पादन कीमत, क्यों धीरे-धीरे खत्म हो रहा है फिरोजाबाद का 200 साल पुराना चूड़ी उद्योग


जागरूकता कैंप

फिरोजाबाद जिला प्रशासन इन लगातार हो रही दुर्घटनाओं के प्रति अब जागरूक हो रहा है, जिसमें मासूमों की जान चली गई है. जून में डीएम ने चूड़ी बनाने वाले मोहल्लों में कैंप लगाने के आदेश दिए थे और मज़दूरों को एमटीओ हैंडलिंग और सेफ्टी के तरीकों के बारे में जानकारी दी थी.

इसके लिए प्रशासन ने शहर को छह सेक्टरों में बांटने का फैसला किया. हर एक सेक्टर में तीन कैंप लगे. मज़दूर संघों को उद्योग के मज़दूरों को संगठित करने का काम दिया गया है.

श्रम विभाग इन कैंप के लिए नोडल निकाय होगा.

फिरोजाबाद के सहायक श्रम आयुक्त यशवंत कुमार ने कहा, “मज़दूर संघों को इस बारे में सूचित कर दिया गया है और उन्हें कैंप में मज़दूरों को लाने के लिए कहा गया है. यह काम जल्द ही शुरू हो जाएगा. मज़दूरों को बताया जाएगा कि एमटीओ का उपयोग कैसे किया जाए, ताकि आग जैसी घटनाओं को कम किया जा सके.”

यह सलाह दी जाती है कि एमटीओ, जिसका मुख्य रूप से पेंट और सॉल्वेंट इंडस्ट्री में इस्तेमाल किया जाता है, को खुले क्षेत्र में लगाया जाए.

कुमार ने कहा, “प्रशासन ने इस मुद्दे पर संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया है और हम उचित कार्रवाई कर रहे हैं. अगर मज़दूरों को केरोसिन मिलना शुरू हो जाए, तो इस तरह की दुर्घटनाएं बंद हो जाएंगी.”

बीएमएस फिरोजाबाद के विभिन्न मोहल्लों में ई-रिक्शा अभियान चलाकर एमटीओ के खतरों के बारे में जागरूकता फैलाने की भी योजना बना रहा है.

भारतीय मज़दूर संघ के जिला मंत्री रमाकांत यादव ने कहा, “हम अलग-अलग इलाकों में जाकर लोगों को जागरूक करेंगे. लाखों लोगों की आजीविका इस काम पर निर्भर करती है क्योंकि काम बंद नहीं किया जा सकता, इसलिए हम लोगों को तेल का सही इस्तेमाल करने का तरीका बताएंगे.”

पिछले 15 सालों से चूड़ी बनाने का काम कर रहे 35-वर्षीय पंकज यादव का कहना है कि प्रशासन और फैक्ट्री मालिकों की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है.

उन्होंने कहा, “हमें फैक्ट्रियों से ऑर्डर मिलते हैं और हम तैयार माल को वापस भेज देते हैं. वो हमें काम के लिए कोई सेफ्टी गियर नहीं देते हैं.”

उन्होंने कहा कि मज़दूर संघ ही मज़दूरों की एकमात्र उम्मीद है.

हम अलग-अलग इलाकों में जाकर लोगों को जागरूक करेंगे. लाखों लोगों की आजीविका इस काम पर निर्भर करती है क्योंकि काम बंद नहीं किया जा सकता, इसलिए हम लोगों को तेल का सही इस्तेमाल करने का तरीका बताएंगे

— रमाकांत यादव, जिला मंत्री, भारतीय मजदूर संघ


यह भी पढ़ें: ‘हमारे मामले को भूलना नहीं चाहिए’, गौरक्षकों द्वारा मारे गए पुरुषों की पत्नियां कैसे सवार रही हैं ज़िंदगी


सुरक्षा संबंधित खतरे

तीन दशकों से चूड़ी बनाने के काम में लगे कुंवर सेन ने कहा कि चूड़ियों को जोड़ने के दौरान उन्होंने “कभी दस्ताने या मास्क का इस्तेमाल नहीं किया”.

उन्होंने कहा, “हमें ये किसी ने नहीं दिए, लेकिन एमटीओ बहुत ज्वलनशील है और एक छोटी सी चिंगारी के संपर्क में आने पर फट जाता है.”

ग्लास एंड बैंगल्स वर्कर्स एसोसिएशन के महासचिव रामदास मानव ने कहा कि इन मज़दूरों को तेल का इस्तेमाल करने के बारे में कोई सेफ्टी मैनुअल नहीं दिया जाता है, न ही उन्हें इसके बारे में जानकारी दी जाती है.

चार से पांच चूड़ी बनाने वाले एक साथ आमतौर पर एक बहुत छोटे और अंधेरे कमरे में एक साथ काम करते हैं. काम करते समय किसी भी मास्क, दस्ताने या अन्य सेफ्टी गियर का इस्तेमाल नहीं करते हैं और उनके चेहरे और लौ के बीच की दूरी एक मीटर से भी कम होती है.

राजकुमारी देवी के बगल में रहने वाले कुंवर सेन ने कहा, “यह एकमात्र ऐसा काम है जिसे यहां हर कोई जानता है. हमें अपनी जान जोखिम में डालकर भी इसे करना पड़ता है क्योंकि आखिरकार हमें घर चलाना है.”

उनके हाथ में रंग-बिरंगी चूड़ियां हैं जिन्हें वे धीरे-धीरे लौ से जोड़ रहे हैं.

फिरोजाबाद में एमटीओ की आपूर्ति फिलहाल आगरा स्थित सतीश चंद्र एंड कंपनी द्वारा की जा रही है. जिला प्रशासन ने भी इस कंपनी से घटनाओं पर जवाब मांगा है.

जब दिप्रिंट ने आग की घटनाओं पर प्रतिक्रिया के लिए सप्लायर से संपर्क किया, तो कंपनी ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया. कंपनी के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, “ये घटनाएं दुखद हैं, लेकिन हमारा इनमें कोई हाथ नहीं है. हम अपनी तरफ से अच्छी गुणवत्ता वाला एमटीओ उपलब्ध करा रहे हैं.”

हालांकि, अधिकारी ने माना कि कंपनी तेल के इस्तेमाल के लिए कोई सेफ्टी गियर उपलब्ध नहीं कराती है.


यह भी पढ़ें: ‘ये सब सपने जैसा है’ — पिंक-ई रिक्शा ड्राइवर आरती ने कैसे तय किया बहराइच से बकिंघम पैलेस तक का सफर


मज़दूर संघ

फिरोजाबाद में मज़दूर संघ पीड़ित परिवारों को किसी भी तरह की राहत देने में खुद को असहाय पाता है. वह प्रशासन से संपर्क कर चुके हैं, लेकिन इसके अलावा, वो केवल सहानुभूति ही दे सकते हैं.

जब भी कोई मज़दूर एमटीओ विस्फोट के कारण घायल होता है, तो यूनियन के सदस्य उनके दरवाजे खटखटाते हैं और परिवार के सदस्य की तरह अस्पताल में उनसे मिलने जाते हैं.

रामदास मानव एक प्रमुख व्यक्ति हैं, जिनके प्रयासों ने इस मुद्दे को उजागर किया है. जून में उन्होंने और यूनियन के अन्य सदस्यों ने एक ऐसे परिवार से मुलाकात की, जिसने एमटीओ की आग के कारण अपने तीन सदस्यों को खो दिया था.

बिहारी नगर मोहल्ले में रहने वाले 42-वर्षीय रामानंद को अक्सर अपने बेटे की तस्वीर याद आती है, जो सीढ़ियों से उतरते समय आग में झुलस गया था. भीषण आग में, उन्होंने अपनी मां और पत्नी को भी खो दिया.

मानव ने कहा, “ये मज़दूर गरीब परिवार से आते हैं. वह बहुत कम कमाते हैं. कुछ ने तो अपना पूरा परिवार खो दिया है.”

रामानंद द्वारा कहानी सुनाए जाने पर मानव भावुक हो जाते हैं, लेकिन मज़दूर संघ के नेता के रूप में, उनका काम रामानंद को सांत्वना देना है. इसलिए उन्हें हिम्मत रखनी होगी.

मानव ने रामानंद से कहा, “अब तुम ही इन दोनों बच्चों का सहारा हो. हिम्मत रखो. हम सब तुम्हारे साथ हैं.”

एक ही दिन में मानव ने चार पीड़ित परिवारों से मुलाकात की, जिनमें से एक जिला अस्पताल में भर्ती था.

मानव ने कहा, “पिछले चार-पांच सालों में लोगों के घायल होने और मरने की घटनाएं लगातार हो रही हैं. पहले ऐसा नहीं होता था. उन्हें नीला केरोसिन मिल रहा था, लेकिन अब यह नहीं मिल रहा है. हमने प्रशासन से मजदूरों को केरोसिन तेल उपलब्ध कराने की मांग की है.”

उन्होंने कहा कि अगर मांगें पूरी नहीं हुईं तो यूनियन डीएम कार्यालय के सामने प्रदर्शन करेगी.

फिरोजाबाद में मजदूर संघ पीड़ित परिवारों को किसी भी तरह की राहत देने में खुद को असहाय पाती है. उन्होंने प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन इसके अलावा वो केवल सहानुभूति ही दे सकते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
फिरोजाबाद में मजदूर संघ पीड़ित परिवारों को किसी भी तरह की राहत देने में खुद को असहाय पाती है. उन्होंने प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन इसके अलावा वो केवल सहानुभूति ही दे सकते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

मानव और उनकी टीम ने फिरोजाबाद के डीएम से मुलाकात की और अपनी मांगों को लेकर एमटीओ पर प्रतिबंध लगाने और केरोसिन की वापसी, घायलों और मृतकों के लिए मुआवजा और चूड़ी उद्योग में काम करने वाले मज़दूरों के लिए अधिक मज़दूरी की मांग की.

मानव ने कहा कि फिरोजाबाद को हर महीने 96,000 लीटर केरोसिन की ज़रूरत है. हर दिन आठ लाख तोड़े (यूनिट) का उत्पादन होता है और प्रत्येक तोड़े में 316 चूड़ियां होती हैं.

बैठक के दौरान मौजूद मानव ने कहा, “डीएम ने कहा है कि वह नहीं चाहते कि उनके प्रशासन में एक भी व्यक्ति की जान जाए. उन्होंने खाद्य एवं रसद आपूर्ति विभाग से केरोसिन तेल उपलब्ध कराने को कहा है. जब तक तेल उपलब्ध नहीं हो जाता, उन्होंने एमटीओ के उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाने पर ध्यान केंद्रित करने का वादा किया है.”


यह भी पढ़ें: ‘मुसलमान हैं इसलिए निशाना बनाया’, कोटा में ‘लव जिहाद’ का मामला; सरकारी स्कूल के तीन शिक्षक निलंबित


‘यह काम नहीं छोड़ सकते’

फिरोजाबाद जिला अस्पताल में एमटीओ विस्फोटों के कारण जले हुए मरीजों का आना आम बात है. 13-वर्षीय शिवानी ने घर पर अपनी मां की मदद करते समय एमटीओ से लदे मिट्टी के गुल्लक में विस्फोट होने से अपना दाहिना कान लगभग खो दिया.

अस्पताल के बर्न वार्ड में बिस्तर पर लेटी शिवानी ने कराहते हुए कहा, “जैसे-जैसे रात होती जाती है, दर्द बढ़ता जाता है.”

मथुरा नगर में अपने परिवार के तीन अन्य सदस्यों के साथ एक कमरे के किराए के मकान में रहने वाली 34-वर्षीय तारा देवी 21 मई की शाम चूड़ियां बनाते समय झुलस गईं. वे करीब एक महीने तक जिला अस्पताल में भर्ती रहीं.

“आग लगने के बाद मैं कमरे से बाहर निकल आई, वरना मैं बच नहीं पाती,” तारा के चेहरे और पैरों पर जलने के ताजा निशान हैं.

इस बीच, तारा के घर के बगल के घरों में भी काम-काज सामान्य रूप से जारी है. कई पुरुष कांच की चूड़ियां बनाने में जुटे हैं.

तारा ने कहा, “यहां कोई और काम नहीं जानता. मेरे साथ हुए हादसे के बारे में सभी जानते हैं, लेकिन इस काम को छोड़ना मुश्किल है. जब मैं ठीक हो जाऊंगी, तो मुझे वापस लौटना ही पड़ेगा, भले ही मैं न चाहूं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘मेरी बेटी ने इशारों में बताया कि क्या हुआ था’ — राजस्थान में आदिवासी लड़की को रेप के बाद ज़िंदा जलाया


 

share & View comments