चेन्नई: जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को 29 नवंबर को क्रॉक्स की काली जोड़ी सौंपी गई, तो उन्होंने सबसे पहले उन्हें पलट कर उसके तलवों पर उभरे शब्दों को देखा: मेड इन इंडिया.
बैठक में उपस्थित एक व्यवसायी के अनुसार उन्होंने कहा, “अब हम यहीं तमिलनाडु में यह कर सकते हैं!”.
लाल स्ट्रैप वाले काले क्रॉक्स की साधारण सी जोड़ी – एक सवालिया निशान वाले स्टाइलिश ब्रांड जिसने फैशन के क्षेत्र में अपनी जगह बनाने के लिए खुद का रास्ता खोजने के लिए कड़ी लड़ाई लड़ी है – तमिलनाडु राज्य में भारतीय उद्योग के लिए एक वैश्विक वादा पूरा कर रहा है. मध्य तमिलनाडु के पेरम्बलुर में एक नए फुटवियर पार्क में अब क्रॉक्स का निर्माण होने के साथ, भारत ने एक नए बाजार में प्रवेश किया है: गैर-चमड़े के जूते का बाजार.
और यह सिर्फ क्रॉक्स नहीं है. नाइकी, एडिडास और प्यूमा जैसे ब्रांड्स के लिए जूते भी ताइवान के दिग्गजों द्वारा तमिलनाडु में निर्मित किए जाएंगे, क्योंकि दुनिया उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए एक नई चीन+1 रणनीति की ओर बढ़ रही है. गैर-चमड़े के जूते की टिकाऊ क्षमता, और तमिलनाडु की विनिर्माण तेजी व मजबूत महिला कार्यबल के साथ संयुक्त, यह कदम स्थिरता, विविधता और विदेशी निवेश का मिला-जुला रिजल्ट है.
और ये जूते के कारखाने अब भारत के विनिर्माण सपनों को पूरा कर सकते हैं.
भारत, जिसे लंबे समय तक विनिर्माण और निर्यात में वियतनाम और इंडोनेशिया से पीछे रहने की बात कहकर खारिज किया जाता रहा है, उसका पेरम्बलूर पार्क में अब अपना पहला कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर है, जिसे ठीक एक साल में बनाया और चालू किया गया था. ताइवान के शूटाउन (नाइकी के सबसे बड़े अनुबंध निर्माता) और भारत के फीनिक्स-कोठारी समूह के बीच एक संयुक्त उद्यम क्रॉक्स फैक्टरी पहले ही प्रोटोटाइप बना चुका है और जल्द ही जनवरी 2024 में राज्य के वैश्विक निवेशकों के शिखर सम्मेलन से ठीक पहले उपभोग के लिए उत्पादन करेगा. अन्य ताइवानी कंपनियां तमिलनाडु भर में संयंत्र स्थापित करने की योजना के साथ इसका अनुसरण कर रही हैं.
इस फर्स्ट-मूवर लाभ के साथ, तमिलनाडु ने अपने लिए निवेश का एक प्रभावशाली क्षेत्र – ऑटोमोबाइल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और अब गैर-चमड़े के जूते तक – तैयार किया है.
संदर्भ के लिए, 2022 में 4.25 बिलियन डॉलर मूल्य के चमड़ा निर्यात के साथ दुनिया के कुल चमड़े के सामान में भारत की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है, जिसमें से तमिलनाडु की हिस्सेदारी 48 प्रतिशत है. राज्य के चमड़े का उपयोग फेरागामो, प्राडा और लुई विटां जैसे वैश्विक लक्जरी ब्रांड्स द्वारा किया जा रहा है. तुलनात्मक रूप से, भारत का गैर-चमड़ा फुटवियर निर्यात 2021-2022 में केवल 214 मिलियन डॉलर था, लेकिन तमिलनाडु इसे बदलने के लिए तैयार है.
इस उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, ताइवान की कंपनियां इंडोनेशिया, बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे अन्य संभावित दावेदारों की तुलना में गैर-चमड़े वाले जूते के कारखाने स्थापित करने के लिए राज्यों का चुनाव कर रही हैं, जो भारत के लिए बढ़त का संकेत देता है. इस संबंध में तमिलनाडु की 2022 की फुटवियर और चमड़ा उत्पाद नीति ने मार्ग प्रशस्त करने में मदद की, जो विदेशी निवेश के लिए सब्सिडी और सपोर्ट प्रदान करती है. राज्य ने तब से इस क्षेत्र में कम से कम 2250 करोड़ रुपये की निवेश परियोजनाओं के लिए समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं.
फिर, भारत सरकार ने 2023 में फुटवियर उद्योग के लिए गुणवत्ता नियंत्रण मानदंडों को लागू किया, आयातित घटकों के मानक को बढ़ाया और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया, जो कि तमिलनाडु के लिए बिल्कुल सही समय पर हुआ.
तमिलनाडु के उद्योग मंत्री टीआरबी राजा ने कहा, “इस क्षेत्र में संभावनाएं बहुत बड़ी हैं.” उन्होंने कहा कि पेरम्बलुर में नया फुटवियर पार्क और डीएमके सरकार की सेक्टर-विशिष्ट नीति को इसका लाभ मिलेगा. “प्रत्येक बड़ी फैक्ट्री में हजारों लोगों को रोजगार देने की क्षमता है, और कई अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ हमारी चल रही बातचीत आशाजनक है. हम आशावादी हैं कि तमिलनाडु जल्द ही सभी प्रमुख वैश्विक फुटवियर ब्रांड्स के लिए प्राथमिक विनिर्माण स्थान बन जाएगा.
बाज़ार पर नजर रखने वाले कई लोगों के लिए, ताइवान का तमिलनाडु में प्रवेश भारत के विनिर्माण सपनों को साकार करने का प्रवेश द्वार है. लेकिन भू-राजनीति एक प्रमुख कारक है, और समय सबसे महत्वपूर्ण है.
चीन+1 रणनीति
गैर-चमड़ा फुटवियर उद्योग – जिसमें बाथरूम की चप्पल से लेकर सैंडल और हील्स से लेकर स्पोर्ट्स शूज़ तक सब कुछ शामिल है – के चार बड़े उद्योग शूटाउन, फेंग टे, पोउ चेन और होंग फू हैं.
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इनके बीच, ये खिलाड़ी नाइकी, एडिडास, रीबॉक, प्यूमा, कॉनवर्स और क्रॉक्स जैसे ब्रांड्स के सभी जूते बनाते हैं. अब, ये चारों तमिलनाडु में दुकान स्थापित कर रहे हैं, और पांचवां बड़ा अनुबंध निर्माता संभावित रूप से इस ग्रुप में शामिल हो सकता है.
चमड़ा केंद्र अंबूर स्थित अग्रणी निर्माता और चमड़ा निर्यातक फरीदा शूज़ के निदेशक इरशाद मक्का ने कहा, “चीन+1 विंडो खुल गई है, लेकिन यह लंबे समय तक नहीं खुली रहेगी.” उनका अनुमान है कि भारत के पास अपने पैर जमाने और इंडोनेशिया व बांग्लादेश जैसे फुटवियर प्रतिस्पर्धियों को हराने के लिए लगभग तीन साल हैं.
हमें अपनी ‘कौशल’ मानसिकता को त्यागना होगा और प्रतिस्पर्धा करने के लिए ‘स्केल’ मानसिकता में बदलाव करना होगा… यह परिवर्तन यह निर्धारित करेगा कि विदेशी खिलाड़ियों की तुलना में घरेलू खिलाड़ी कैसा प्रदर्शन करते हैं.
चमड़ा केंद्र अंबूर स्थित अग्रणी निर्माता और चमड़ा निर्यातक फरीदा शूज़ के निदेशक इरशाद मक्का ने कहा, “चीन+1 विंडो खुल गई है, लेकिन यह लंबे समय तक खुली नहीं है।” उनका अनुमान है कि भारत के पास अपने पैर जमाने और इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे फुटवियर प्रतिस्पर्धियों को हराने के लिए लगभग तीन साल हैं।
प्रतिस्पर्धा करने के लिए हमें अपने ‘स्किल’ वाली मानसिकता को छोड़कर ‘स्केल’ वाली मानसिकता को अपनाना होगा… यही बदलाव निर्धारित करेगा कि विदेशी खिलाड़ियों की तुलना में घरेलू खिलाड़ी कैसा प्रदर्शन करते हैं. – फरीद शूज़ के निदेशक इरशाद मक्का
भारत और ताइवान के बीच अच्छे व्यापारिक संबंधों ने सौदे को मधुर बना दिया है. और इससे मदद मिलती है कि अब तिरुचिरापल्ली हवाई अड्डे से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लिए सीधी उड़ानें हैं, साथ ही पेरम्बलूर जैसे औद्योगिक पार्कों से चेन्नई और तमिलनाडु के सभी बंदरगाहों की निकटता भी है.
फ्लोरेंस शू कंपनी चलाने वाले और चमड़ा निर्यात परिषद के पूर्व अध्यक्ष अकील पनारुना ने कहा, “फुटवियर के मामले में हमने थोड़ी देरी कर दी है – जापान और कोरिया पहले से ही ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स पर हावी हैं. अन्य दूसरे देश सेचुरेटेड हैं. भारत वादा करता है, लेकिन अब उद्योग केवल निर्यात के बजाय लोकल वैल्यू जोड़ सकता है.” उन्होंने कहा, “अगले दो दशकों तक, हमारे पास गैर-चमड़ा विनिर्माण निर्यात में उछाल आएगा, इसलिए यह अच्छा है कि भारत इस विकास लहर पर सवार है.”
पनारुना चमड़े से गैर-चमड़े की ओर बदलाव पर उत्सुकता से नज़र रख रहे हैं. वर्तमान में भारत से चमड़े के जूते के कुल निर्यात में तमिलनाडु की हिस्सेदारी लगभग 48 प्रतिशत है. और अब, उन्हें उम्मीद है कि नवीनतम ताइवानी प्रवेशकों के बाद फुटवियर क्षेत्र के सभी निर्यातों में राज्य की हिस्सेदारी दो-तिहाई होगी. इसका दूसरा करीबी भारतीय प्रतिस्पर्धी हरियाणा है, जो घरेलू बाजार में अग्रणी है.
उद्योग मंत्री राजा के अनुसार, वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में इसकी सामान्य स्थिति के अलावा, तीन प्रमुख कारक तमिलनाडु को वैश्विक गैर-चमड़ा फुटवियर कंपनियों के लिए विशेष रूप से आकर्षक बनाते हैं.
पहला यह कि यह राज्य भारत के सबसे पुराने चमड़ा उद्योग वाले क्षेत्र में से एक है, जिसका इतिहास एक शताब्दी से अधिक पुराना है. राजा ने कहा, “इस समृद्ध विरासत ने एक गतिशील फुटवियर इको सिस्टम को बढ़ावा दिया है और इंटरनेशनल बिजनेस कनेक्शन स्थापित किए हैं, जिससे गैर-चमड़ा क्षेत्र की मांगों को पूरा करने के लिए एक निर्बाध परिवर्तन संभव हो सका है.”
दूसरा कारक तमिलनाडु के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी है, जो इसे एक और प्रतिस्पर्धी लाभ देता है. और तीसरा नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देकर पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने की राज्य की प्रतिबद्धता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य 2030 तक अपने ग्रिड में 50 प्रतिशत हरित ऊर्जा का लक्ष्य रख रहा है.
तमिलनाडु की समृद्ध विरासत (चमड़े के क्षेत्र में) ने एक गतिशील फुटवियर ईको सिस्टम को बढ़ावा दिया है… जो गैर-चमड़ा क्षेत्र की मांगों को पूरा करने के लिए एक निर्बाध परिवर्तन को सक्षम बनाता है – तमिलनाडु उद्योग मंत्री टीआरबी राजा
निर्माता आशावादी हैं कि तमिलनाडु सिर्फ शुरुआती बिंदु है. पेरम्बलूर में क्रॉक्स फैक्ट्री स्थापित करने वाले फीनिक्स कोठारी ग्रुप के चेयरपर्सन डॉ. रफीक अहमद ने कहा, “आत्मनिर्भर भारत एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है. इस तरह का उद्योग उन राज्यों में बनाया जाना चाहिए जहां रोजगार की आवश्यकता है.”
शूटाउन के साथ फीनिक्स कोठारी की साझेदारी की सफलता ने अन्य घरेलू खिलाड़ियों के लिए एक सकारात्मक मिसाल कायम की है. ओडिशा जैसे अन्य राज्यों ने अहमद को ताइवानी साझेदारी के लिए भारी सब्सिडी की पेशकश करते हुए, वहां भी कारखाने स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र भी कुछ कार्रवाई चाहते हैं.
गैर-चमड़े के जूते एक सस्ता, तेज़ विकल्प हैं क्योंकि चमड़े की तुलना में एक घंटे में दोगुने जूते बनाए जा सकते हैं.
एथलेज़र का आगमन
महामारी के दौरान एथलेज़र यानि एथलेटिक कपड़ों और जूतों के उदय ने खेल को बदल दिया.
चमड़े के लोफर्स की जगह स्पोर्ट्स जूतों ने ले ली है, जींस की जगह लेगिंग्स ने ले ली है और हुडी अब कार्यस्थल पर ब्लेज़र जितनी ही स्वीकार्य है. महिला वर्कर्स ने स्नीकर्स की जगह सैंडल और चप्पल पहनना शुरू कर दिया है, यहां तक कि उन्हें पारंपरिक भारतीय कपड़ों के साथ भी जोड़ा है क्योंकि वे परंपरा से अधिक आराम को प्राथमिकता देती हैं.
यह बदलाव गैर-चमड़ा फुटवियर उद्योग के लिए एक सुनहरा अवसर है. उत्तरी तमिलनाडु की जूता फैक्ट्री में नौ साल तक काम करने वाली 28 वर्षीय सुल्ताना परवीन इस नए युग का प्रतीक हैं.
वह फ़ैक्टरी के फर्श पर स्नीकर्स असेंबल करती है, उसने पैरों में आरामदायक जूते पहने हुए हैं, लेकिन उसने उन्हें फ्लिपकार्ट सेल के दौरान अच्छी कीमत पर खरीदा था फ़ैक्टरी से नहीं. आज अधिकांश वैश्विक उपभोक्ताओं की तरह, वह बड़े नामों और ब्रांड की तुलना में आराम और लागत को अधिक महत्व देती है.
परवीन की फ़ैक्टरी नए ट्रेंड्स को भी अपना रही है और चमड़े से गैर-चमड़े के जूते की ओर बढ़ रही है. वह कहती हैं कि उन्होंने पिछले कुछ महीनों में ही गैर-चमड़े के जूते असेंबल करना शुरू किया है.
उसके पीछे, लगभग 20 जोड़े कुशल हाथ एक कन्वेयर बेल्ट के एक छोर पर रबर के एक टुकड़े को आकार देते हैं और दूसरे छोर पर उसे पूरी तरह से तैयार जूतों में बदल देते हैं.
गैर-चमड़े के जूते एक सस्ता, तेज़ विकल्प हैं – चमड़े की तुलना में एक घंटे में दोगुने जूते बनाए जा सकते हैं. गुणवत्ता को लेकर कम अस्वीकृति होने के कारण यह कर्मचारियों के लिए भी ठीक है. और यह ऐसा काम है जिसके लिए ऊंची डिग्री या विशेष कौशल की आवश्यकता नहीं होती है, जो 10वीं कक्षा के स्नातक परवीन जैसे श्रमिकों के लिए एक अच्छा विकल्प है. एक महिला जिसका हाल ही में तलाक हुआ है और उसकी कोई संतान नहीं है, वह अपने परिवार के साथ रहती है, इसलिए उसका वेतन सीधे सोने के आभूषणों को खरीदने में प्रयोग होता है जो कि उसकी बचत का एक हिस्सा है.
तमिलनाडु गैर-चमड़े के जूते में भारी निवेश कर रहा है, यह परवीन जैसी महिलाएं हैं जो उद्योग को आगे बढ़ाएंगी. भारत में 1.6 मिलियन महिला फ़ैक्टरी श्रमिकों में से 43 प्रतिशत अकेले तमिलनाडु में काम करती हैं. कई श्रमिकों को राज्य के पहले से ही संपन्न कपड़ा उद्योग से इसमें आने की उम्मीद है, क्योंकि वे जिस मटीरियल के साथ काम करते हैं वह एक जैसा ही है. और इसमें शामिल सभी लोगों के उत्साह को देखते हुए – सरकार से लेकर निगमों से लेकर श्रमिकों तक – यह उभरता हुआ उद्योग तमिलनाडु में विनिर्माण क्रांति की शुरुआत हो सकता है.
जैसे-जैसे निवेश बढ़ रहा है और कारखाने बढ़ रहे हैं, इस बात की चिंताएं भी बढ़ रही हैं कि मौजूदा घरेलू खिलाड़ी – विशेष रूप से चमड़े के जूते में काम करने वाले – ताइवान के दिग्गजों द्वारा खत्म किए जा सकते हैं.
निवेश का रास्ता
तिरुचिरापल्ली से काटकर बना पेरम्बलुर, एक उल्लेखनीय बदलाव के दौर से गुज़र रहा है. कभी गरीब जिले के रूप में पहचान रखने वाला यह जिला, केवल एक वर्ष में, पूरे देश में कंपोनेंट मैन्युफैक्चरिंग के लिए एकमात्र क्लस्टर बन गया है.
तमिलनाडु राज्य उद्योग संवर्धन निगम लिमिटेड (एसआईपीसीओटी) औद्योगिक पार्क और जूता फैक्ट्री का उद्घाटन नवंबर 2022 में किया गया, जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा. ताइवान, चीन, कोरिया और वियतनाम जैसे देशों के प्रतिनिधिमंडल यह देखने के लिए आ रहे हैं कि किस बात को लेकर इतनी हलचल है.
मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रोफेसर और राज्य योजना आयोग के सदस्य एम विजयबास्कर ने कहा, “पेरंबलूर सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है और इसमें अच्छी गुणवत्ता वाली बिजली है. विनिर्माण के लिए पिछड़े क्षेत्रों में जाने की बड़ी चुनौती बुनियादी ढांचे की अनुपस्थिति है. यहां, अपेक्षाकृत अच्छी तरह से वितरित बुनियादी ढांचे के मामले में तमिलनाडु को बढ़त हासिल है.”
पेरम्बलूर की उम्मीदें अब फुटवियर उद्योग पर टिकी हैं. केंद्र में स्थित जिला केवल इस परियोजना के लिए निर्धारित किया गया था जब फीनिक्स कोठारी के अहमद ने 2022 के जमीन खरीदी और इसे करने का फैसला किया. उनका कहना है कि तमिलनाडु सरकार ने इस कदम का तुरंत समर्थन किया.
अहमद ने कहा, “सभी ने सोचा कि मैं एक ऐसी योजना में फंस गया हूं जो कि असंभव है. लेकिन हम सफल हुए – क्योंकि शूटाउन भारत में स्थापित होना था. जब हमने स्थानीय भागीदार के रूप में उनका समर्थन किया, तो सौदा पक्का हो गया.” वैश्विक दिग्गज ने घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों के लिए एक भारतीय फर्म के साथ मिलकर काम किया, जो फुटवियर उद्योग में अपनी तरह का पहला सहयोग था.
मेक इन इंडिया का सपना साकार हो रहा है. यह हम नहीं, दुनिया है जो मेड इन इंडिया की दीवानी हो जाएगी – रफीक अहमद, फीनिक्स कोठारी ग्रुप के चेयरमैन
लेकिन ताइवानी कंपनियों की नज़र सालों से भारत पर है. अब तक करीब 250 ताइवानी कंपनियां भारत में 4 अरब डॉलर का निवेश कर चुकी हैं. उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि वे भारत को “अगले बड़े गंतव्य” के रूप में देखते हैं. हाल की सफलताएं, जैसे तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में फॉक्सकॉन की iPhone 15 असेंबली, इस विश्वास को मजबूत करती हैं. अन्य उद्योग से सहयोग भी लेने की कोशिश की जा रही है. अक्टूबर 2023 में तमिलनाडु के 15 सदस्यीय गारमेंट प्रतिनिधिमंडल ने ताइवान का दौरा किया और भविष्य में दोनों के बीच डील किए जाने की योजना बनाई गई है. आगे निवेश को आकर्षित करने की उम्मीद में, तमिलनाडु जनवरी 2024 में एक विशाल वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन भी आयोजित कर रहा है.
गैर-चमड़ा फुटवियर क्षेत्र में भी, ताइवानी टाई-अप नए नहीं हैं. फेंग ताई ने 2006 की शुरुआत में तमिलनाडु में निवेश करना शुरू कर दिया था, और अब चेय्यर और बरगर में इसके कारखाने हैं. अपाचे की एक फैक्ट्री आंध्र प्रदेश में भी है. हालांकि, ये केवल भारतीय भूमि और श्रम का उपयोग करने वाले अनुबंध विनिर्माण संयंत्र हैं.
उद्योग सचिव अरुण रॉय ने कहा, “फेंग ताई अगुआ थे, और अब इसमें काफी लोग रुचि लेने लगे हैं. लोग इसमें दो कारणों से रुचि दिखा रहे हैं: चीन+1 रणनीति, जिस तरह से फेंग ताई फली-फूली है. और इससे निवेशकों को काफी आत्मविश्वास मिला है.”
अब, तमिलनाडु में चार विशाल आगामी ताइवान-भारत कारखानों के साथ विशेष रूप से स्थानीय रूप से निर्मित कंपोनेंट्स का उपयोग करने के लिए तैयार होने से, राज्य प्रतिस्पर्धियों के हाथों से विनिर्माण का कार्यभार छीन सकता है. और भारत को विनिर्माण मानचित्र पर मजबूती से स्थापित कर सकता है.
स्किल vs स्केल, चमड़ा vs गैर-चमड़ा
जैसे-जैसे निवेश बढ़ रहा है और कारखाने बढ़ रहे हैं, चिंताएं भी बढ़ती जा रही हैं कि मौजूदा घरेलू प्लेयर्स – विशेष रूप से चमड़े के जूते पर काम करने वाले – ताइवान के दिग्गजों द्वारा खत्म किए जा सकते हैं
उत्तरी तमिलनाडु में वेल्लोर के पास अंबुर, चमड़े की टेनरीज़ और कारखानों का केंद्र है. उनमें से अधिकांश को आधिकारिक तौर पर मध्यम और छोटे उद्यमों के रूप में वर्गीकृत किया गया है और वे कुशल श्रम शक्ति पर निर्भर हैं. अब तक अंबूर से निकटतम प्रतिस्पर्धा उत्तर प्रदेश की है, जहां आगरा और कानपुर चमड़े के प्रमुख केंद्र हैं, लेकिन तमिलनाडु की तुलना में वहां उद्योग अधिक असंगठित है. अब अंबूर की चमड़े की फ़ैक्टरियां गैर-चमड़े के जूते के बड़े पैमाने पर निर्माण में ताइवान की मशीनीकृत ताकत के बढ़ते खतरे से जूझ रही हैं.
फरीदा शूज़ के मक्का ने कहा, “हमें इस उद्योग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपनी ‘स्किल’ मानसिकता को छोड़ना होगा और ‘स्केल’ मानसिकता को अपनाना होगा. यह परिवर्तन यह निर्धारित करेगा कि विदेशी खिलाड़ियों की तुलना में घरेलू खिलाड़ी कैसा प्रदर्शन करते हैं.”
उद्योग सचिव रॉय के अनुसार, जहां तमिलनाडु की नई फुटवियर नीति चीन से अपने उत्पादन में विविधता लाने की चाहत रखने वाले विदेशी खिलाड़ियों को प्रोत्साहन प्रदान करती है, वहीं यह घरेलू उद्योग को अनुकूलन और अधिक प्रतिस्पर्धी बनने के अवसर भी प्रदान करती है. उन्होंने कहा, “यह कुछ ऐसा है जो हमारी अपनी औद्योगिक नीति से जुड़ा है क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों तक जाता है.”
चमड़े के सामान के विशेषज्ञ मक्का और पनारुना दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि मटीरियल के साथ काम करना एक अत्यंत विशिष्ट कौशल है. पनारुना ने कहा, “लेदर एक आर्ट है, यह एक हैंडीक्राफ्ट यानि हस्तशिल्प है जिसके लिए स्किल की आवश्यकता होती है. गैर-चमड़ा मशीनीकृत है, जिसका अर्थ है कि यह लोगों के एक बड़े वर्ग के लिए अधिक रोजगार पैदा कर सकता है.”
चमड़े के जूते के कारखाने, जो पहले से ही डिकैथेलॉन, बाटा और स्केचर्स जैसे ब्रांड्स द्वारा गैर-चमड़े के उत्पादों के लिए पहली पसंद हैं, घरेलू बाजार में छोटे खिलाड़ियों और निर्यात में बड़े खिलाड़ियों दोनों के लिए अवसर प्रदान करते हैं.
मक्का ने रणनीतिक निर्णय लेने की सलाह दी. उन्होंने कहा, “हमें अपना गेम बुद्धिमानी से चुनने की ज़रूरत है यानि यूरोपीय लोगों की तरह खास नीश में काम करें या कि चीनी और ताइवानी कंपनियों की तरह स्केल को ध्यान में रखकर काम करें.”
कुछ उद्योग जगत के लीडर्स उम्मीद कर रहे हैं कि ताइवानी लहर भारत में मानकों में सुधार कर सकती है. उदाहरण के लिए, अहमद ने बेहतर तौर-तरीके लागू करने के लिए वियतनाम और इंडोनेशिया में अपने साझेदार की मौजूदा सुविधाओं में प्रशिक्षण के लिए कई कर्मचारियों को भेजा है.
अहमद ने कहा, “मेक इन इंडिया का सपना साकार हो रहा है. यह हम नहीं, दुनिया है जो मेड इन इंडिया की दीवानी हो जाएगी.”
संभावित समस्याएं
तमिलनाडु, भारत का सर्वाधिक औद्योगिकृत राज्य, आक्रामक रूप से खुद को विदेशी निवेश और नए उद्योगों के लिए एक गंतव्य के रूप में स्थापित कर रहा है, जिसका उदाहरण पेरंबुलुर फुटवियर पार्क की तेजी से स्थापना है.
हालांकि, जबकि गैर-चमड़ा फुटवियर उद्योग आशाजनक है, यह अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है. लेबर लॉ के जानकार वकील और जमीनी स्तर के संगठन घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं. चमड़े और गारमेंट इंडस्ट्री के चौराहे पर खड़े, जिसकी चुनौतियों के बारे में पता है, गैर-चमड़ा फुटवियर उद्योग अज्ञात क्षेत्र बना हुआ है.
एक एनजीओ के स्थानीय कार्यकर्ता के अनुसार, पेरम्बलुर सस्ते श्रम का एक बड़ा स्रोत होगा, क्योंकि आसपास बहुत सारे उद्योग नहीं हैं. जबकि ताइवानी कंपनियों द्वारा प्रति माह 13,000-15,000 रुपये का भुगतान किए जाने की उम्मीद है, स्थानीय श्रमिकों का कहना है कि औसत वेतन केवल 8,000 रुपये के आसपास ही है.
जबकि स्थानीय चमड़ा उद्योग को झटका लग सकता है, गैर-चमड़े के जूते का उत्पादन श्रमिकों के लिए एक समग्र सुधार हो सकता है – हालांकि यह कहना जल्दबाजी होगी. भारत में चमड़े के काम से एक जटिल सामाजिक-राजनीतिक मान्यता जुड़ी हुई है, जो बड़े पैमाने पर दलित और मुस्लिम श्रमिकों को रोजगार देता है. कई स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी चिंताएं, विशेष रूप से चर्मशोधन कारखानों के आसपास, चमड़ा उद्योग को और अधिक परेशान करती हैं.
उद्योग मंत्री राजा का कहना है कि तमिलनाडु अपने तमाम श्रमिकों के लिए खड़ा है, जो महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करने वाली परंपराओं की ओर इशारा करता है, जैसे कि कारखानों में चाइल्ड केयर फेसिलिटी का प्रावधान.
उन्होंने कहा, “हमें यकीन है कि जैसे-जैसे नए क्षेत्र उभरेंगे और बढ़ेंगे, वे भी इन सफल परंपराओं को अपनाएंगे. हम अपने कार्यस्थलों में महिलाओं के अनुभव को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास करते हैं.” उन्होंने कहा कि सरकार को भरोसा है कि कंपनियां – अपने वैश्विक ग्राहकों और ग्राहक आधार के साथ – उच्चतम मानकों का पालन करेंगी और एक सुरक्षित और समावेशी कार्यबल के लिए राज्य प्रशासन की प्रतिबद्धता को मजबूत करेंगी.
जरूरत यह है कि फुटवियर पार्क की सफलता व्यापक भारतीय विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करेगी, जैसे कि फॉक्सकॉन ने आईफोन के साथ कैसे ट्रेंड स्थापित किया – अब टाटा समूह ने इसे फॉलो किया है और भारत का पहला घरेलू आईफोन तैयार करेगा.
अहमद ने कहा, “जब विनिर्माण की बात आती है तो हमें चीनी तकनीक की आवश्यकता होती है. और ताइवान इस तकनीक का प्रवेश द्वार है.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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