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गुरूवार, 15 मई, 2025
होमफीचरमहाराष्ट्र के एक गांव में गिरा आसमान से पत्थर, ₹15 लाख की तलाश और एक गायब टुकड़े की कहानी

महाराष्ट्र के एक गांव में गिरा आसमान से पत्थर, ₹15 लाख की तलाश और एक गायब टुकड़े की कहानी

जब खलवत निमगांव में मेटियोराइट्स के तीन टुकड़े गिरे, तो गांव में हलचल मच गई और एक लापता टुकड़े की तलाश में लोग बेतहाशा जुट गए. वैज्ञानिक, अधिकारी और यहां तक ​​कि अन्य जगहों के छात्र भी इस घटना में शामिल हैं.

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बीड/छत्रपति संभाजीनगर: पहले एक धमाका हुआ. फिर ‘आसमान से पत्थर’ गांव बीड के एक शांत गांव में तेज़ी से गिरते नजर आए.

“धमाके के बाद, कुछ ही सेकंड में पहला पत्थर गिरा. उसके बाद दो और पत्थर आए,” खलवत निमगांव की निवासी सुनीता विजयनाथ कोरड़े ने बताया, जो 3 मार्च को अपने माता-पिता के घर आई थीं, जहां मेटियोराइट्स के दो टुकड़े गिरे थे. बाद में ये पत्थर जैसे दिखने वाली वस्तुएं उल्कापिंड (मेटियोराइट्स) साबित हुईं और गांव की ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई.

वैज्ञानिकों के लिए ये पत्थर ब्रह्मांड के रहस्यों को समेटे हुए हैं. ये अब विश्लेषण के लिए कोलकाता स्थित जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के पास हैं. लेकिन जिन ग्रामीणों के घरों को नुकसान पहुंचा, उनके लिए ये पत्थर दौलत का जरिया बन सकते हैं — या कम से कम कुछ लाख रुपये, जो निजी कलेक्टर्स इन पत्थरों के लिए देने को तैयार हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें सबसे पहले दो मेटियोराइट्स के टुकड़े अधिकारियों से वापस लेने होंगे और तीसरे टुकड़े को खोजना होगा, जो रहस्यमय तरीके से गायब हो गया है. ये छोटे-छोटे पत्थर, जो हथेली में समा सकते हैं, ने खलवत निमगांव की रोजमर्रा की ज़िंदगी को पूरी तरह हिला दिया है.

पहला टुकड़ा अंबुरे परिवार के आंगन में एक टीन की छत को चीरते हुए नीचे आया और उनके नए बने सीमेंट के फर्श में एक छेद कर गया. दूसरा टुकड़ा उनकी छत से टकराकर सड़क पर लुढ़क गया. और तीसरा पास के एक खेत में गिरा, जहां कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे.

Maharashtra meteorite fall
अम्बुरे परिवार के रसोईघर की छत से मेटियोराइट्स का टुकड़ा टकराकर अंदर आ गिरा, जिससे रसोईघर के फर्श पर गड्ढा हो गया | फोटो” सौम्या पिल्लई | दिप्रिंट

एक रात में ही, यह उपेक्षित गांव सभी का केंद्र बन गया. वैज्ञानिक, जिला अधिकारी और मीडिया वहां पहुंच गए. आखिरकार यह एक दुर्लभ घटना है — अब तक भारत से केवल 117 मेटियोराइट्स एकत्र किए गए हैं, जिनमें से कुछ 1700 के दशक के हैं.

एमजीएम एपीजे अब्दुल कलाम एस्ट्रोस्पेस साइंस सेंटर एंड क्लब, छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) के निदेशक श्रीनिवास औंधकर ने कहा कि शुरुआती परीक्षणों में यह पुष्टि हुई है कि ये पत्थर मेटियोराइट्स के टुकड़े हैं.

औंधकर ने कहा, “मुझे गांव के सरपंच का 3 मार्च की रात फोन आया था. हमने पुष्टि की है कि खलवत निमगांव में गिरे तीनों टुकड़े एक ही मेटियोराइट्स के हिस्से थे.”

अंतरिक्ष के खोए हुए टुकड़े की खोज 

खलवत निमगांव ही नहीं, वडवणी तहसील भर में ये पत्थर अब सबसे चर्चित चीज़ बन गए हैं. पूरे गांव में खोजबीन चल रही है. यहां तक कि छोटे-छोटे कंकड़ों को भी गौर से देखा जा रहा है.

अंबुरे परिवार, जिनके घर में मार्च में मेटियोराइट्स के दो टुकड़े गिरे थे, अब तीसरे टुकड़े की बेहद तलाश कर रहा है. उनका कहना है कि ये टुकड़ा उन्हें 15 लाख रुपये दिला सकता है। कम से कम उन्हें ऐसा बताया गया है.

“कुछ वैज्ञानिकों ने खबर पढ़कर हमसे संपर्क किया और बताया कि एक टुकड़े की अंतरराष्ट्रीय कीमत 15 लाख रुपये तक हो सकती है. अब पछतावा होता है कि उसे सरकार को दे दिया,” 38 वर्षीय किसान रामदास भिकाजी अंबुरे ने कहा, जो आठ सदस्यीय परिवार के कमाने वाले मुख्य व्यक्ति हैं.

रामदास उस समय गांव के मंदिर में पूजा कर रहे थे, जब उनकी पत्नी ने घबराकर उन्हें फोन किया. उनका नौ वर्षीय बेटा अथर्व घायल हो गया था और उसके पैरों में 17 टांके लगे. उनके घर की टीन की छत में छेद हो गया था, सीमेंट का चूल्हा टूट गया था, और फर्श में बड़ा गड्ढा बन गया था.

पहली नज़र में उन्हें लगा कि पड़ोसी के किसी शरारती बच्चे ने यह सब किया होगा. लेकिन नुकसान की तीव्रता देखकर लगा कि यह कुछ दूर से आया है — बहुत दूर से, जैसा कि बाद में पता चला.

“हमें बताया गया कि ये पत्थर अंतरिक्ष से आए हैं. मैंने तुरंत सोचा कि इनमें कोई दैवीय शक्ति होगी, या कोई जादुई ताकत,” रामदास ने कहा. “क्या आपने कोई मिल गया देखी है? ऋतिक रोशन को भी तो अंतरिक्ष से ही ताकत मिली थी.”

Maharashtra meteorite fall
सुनीता विजयनाथ कोराडे घटना के दिन को याद करती हैं. वह मेटियोराइट्स के गिरने को देखने वाले पहले लोगों में से एक थीं. फोटो: सौम्या पिल्लई | दिप्रिंट

लेकिन इस “दूसरी दुनिया के पत्थर” ने अंबुरे परिवार को सिर्फ एक टूटा हुआ घर और अस्पताल का खर्च ही दिया. जब से नमूनों का कोई पता नहीं चला, तब से 15 लाख रुपये की उम्मीद सिर्फ एक सपना ही बनकर रह गई है.

उनकी निराशा तब और बढ़ गई जब वैज्ञानिकों और मीडिया को संभालने की भागदौड़ में उनके घर के सामने सड़क पर गिरा मेटियोराइट्स का तीसरा टुकड़ा गुम हो गया. जब वह टुकड़ा नहीं मिला, तो आखिरी कोशिश के तौर पर परिवार जिला कलेक्टर के दफ्तर भी गया, यह अनुरोध करने कि जो टुकड़े उन्होंने जमा किए थे, उन्हें वापस दे दिए जाएं — इस उम्मीद में कि शायद किस्मत चमक जाए. लेकिन यह आग्रह अस्वीकार कर दिया गया.

“मैंने तीसरे टुकड़े को तोड़ा था, यह देखने के लिए कि अंदर से कैसा दिखता है. इसलिए वह टुकड़ा कलेक्टर के पास जमा नहीं हुआ था. लोग हमारे घर में उस पत्थर को देखने उमड़ पड़े थे. हमें नहीं पता कि वह कब और कहां खो गया,” रामदास ने कहा, अपनी किस्मत को कोसते हुए.

एक रहस्य और एक वैज्ञानिक का सपना

जब एमजीएम एपीजे अब्दुल कलाम एस्ट्रोस्पेस साइंस सेंटर एंड क्लब के औंधकर को पहली बार गांव में गिरे “रहस्यमयी पत्थर” की खबर मिली, जो छत्रपति संभाजीनगर शहर से करीब 150 किलोमीटर दूर था, तो वह तुरंत वहां के लिए रवाना हो गए. उन्होंने तीन घंटे की पूरी यात्रा के दौरान गांववालों को निर्देश दिए कि उसे कैसे संभालना है.

अपने कार्यकाल में औंधकर ने केवल मेटियोराइट्स के गिरने के बारे में सुना था. उन्होंने इन अंतरिक्षीय पत्थरों के टुकड़े केवल लैब में देखे थे, लेकिन कभी खुद किसी को हासिल नहीं किया था. यह उनके करियर का बड़ा पल था.

“गांव का सरपंच शौकिया खगोलशास्त्री है. उसे अंदेशा हुआ कि यह कोई बाहरी अंतरिक्ष से आया टुकड़ा हो सकता है. तभी उसने हमसे संपर्क किया,” औंधकर ने कहा.

दो नमूनों को ज़िपलॉक बैग्स में सावधानी से एमजीएम साइंस सेंटर लाया गया, जहां पास के गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के भूविज्ञान विभाग की टीम ने उन्हें देखा. वहां से टुकड़ों को कोलकाता में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की लैब में आगे की जांच के लिए भेजा गया.

छह कोनों वाले ये नमूने ग्रे रंग के हैं, जिनके किनारों पर गहरे भूरे रंग के पैच हैं—7.8 सेमी लंबे, 4.9 सेमी चौड़े और हर एक का वज़न लगभग 282 ग्राम है. अंदर से ये चमकदार सफेद हैं, औंधकर ने बताया.

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एमजीएम एपीजे अब्दुल कलाम एस्ट्रोस्पेस साइंस सेंटर के प्रमुख श्रीनिवास औंधकर मेटियोराइट्स की जांच करने के लिए गांव पहुंचे. यह दुर्लभ घटना उनके करियर का एक बड़ा पल था. फोटो: सौम्या पिल्लई | दिप्रिंट

“इनमें चांदी जैसे रंग के महीन कण हैं जो सिल्ट के आकार के हैं, और कुछ जगहों पर उससे भी ज्यादा बारीक हैं, साथ ही सोने और तांबे जैसे रंग के कण भी हैं,” शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया. एमजीएम साइंस सेंटर और गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों के अनुसार, इन कणों में निकल और लोहे जैसे धातु होने की संभावना है. अंतिम जांच अभी बाकी है.

गांववालों के मेटियोराइट्स को लेकर अलग-अलग बयान हैं. जहां अंबुरे परिवार का कहना है कि उनके घर में गिरे टुकड़े बर्फ जैसे ठंडे थे, वहीं बच्चों ने जो टुकड़ा खेत में पाया, उन्होंने उसे जलता हुआ बताया.

“इन बातों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता. हमें वैज्ञानिक जांच का इंतज़ार करना होगा,” औंधकर ने कहा.

पृथ्वी के वायुमंडल में मेटियोराइट्स का प्रवेश दुर्लभ होता है. ऐसा तब होता है जब एक अंतरिक्षीय पत्थर, यानी मीटियोरॉइड, पृथ्वी की तुलना में तेज़ गति—लगभग 40 किमी प्रति सेकंड—से चलता है और वायुमंडल से टकराता है. भारत में तीन बड़े उल्का प्रभाव गड्ढे हैं—धाला (मध्य प्रदेश), रामगढ़ (राजस्थान), और लोनार (महाराष्ट्र), जो बीड से लगभग 200 किमी दूर है, जहां यह ताज़ा घटना हुई.

अक्सर ये खगोलीय पिंड वायुमंडल में प्रवेश करते समय ही फट जाते हैं. लेकिन जब कुछ विशेष परिस्थितियां बनती हैं, जैसे वायुमंडल में प्रवेश का एक खास कोण, तभी ये धरती तक पहुंचते हैं. 2022 में, एक मेटियोराइट्स गुजरात के दो गांवों में गिरा था. बाद में पुष्टि हुई कि वह एक दुर्लभ और विशेष प्रकार का औब्राइट था.

Representational image of an aubrite | Commons
ऑब्राइट की प्रतीकात्मक छवि | कॉमन्स

स्पेस के शौकीन औंधकर को तब निराशा हुई जब नमूनों को जीएसआई को सौंपने का समय आया. वह चाहते थे कि इन पर और उन्नत रिसर्च करें. लेकिन सरकारी नियमों के अनुसार, नमूनों को जल्द से जल्द उनके अधिकारिक मालिक—जीएसआई—को सौंपना अनिवार्य था.

“हमने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि हम इन नमूनों पर और रिसर्च करना चाहते हैं. हमें नहीं पता कि जीएसआई इसकी अनुमति देगा या नहीं. यह हर वैज्ञानिक का सपना होता है,” उन्होंने मायूसी से कहा.

कल्पना को उड़ान

इस घटना ने भारत के गगनयान और चंद्रयान मिशनों से आगे ‘ब्रह्मांड’ के प्रति लोगों की दिलचस्पी को फिर से जगा दिया है. जब तक पत्थरों को जीएसआई को नहीं सौंपा गया था, तब तक एमजीएम साइंस सेंटर की शांत गलियों में जिज्ञासु स्कूल के बच्चों की आवाजें गूंज रही थीं. अब उल्कापिंड (मेटियोराइट) गांव वालों की बातचीत का हिस्सा बन गया है.

कुछ बच्चे जानना चाहते थे कि क्या ये पत्थर चमकते हैं. कुछ ने पूछा कि क्या इनमें कोई सुपरपावर है. लेकिन हर कोई उन्हें देखना चाहता था.

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छत्रपति संभाजीनगर में एमजीएम एपीजे अब्दुल कलाम एस्ट्रोस्पेस साइंस सेंटर, जहां मेटियोराइट्स के नमूने पहली बार जांच के लिए लाए गए थे | फोटो: सौम्या पिल्लई | दिप्रिंट

खबर फैल गई थी कि पास के गांव से एक मेटियोराइट का टुकड़ा साइंस सेंटर लाया गया है जांच के लिए. शहर में जब तक ये पत्थर थे, लोग उन्हें देखने की कोशिश में जुटे रहे. सेंटर के अधिकारियों ने बताया कि जिस रात ये सैंपल आए, उसी रात से फोन लगातार बज रहा था. अगली सुबह, शिक्षक, माता-पिता, छात्र और कुछ उत्सुक लोग यह पूछने लाइन में लग गए कि क्या वे मेटियोराइट देख सकते हैं. देशभर के शोधकर्ता भी फोन कर रहे थे.

सेंटर के एक अधिकारी ने कहा, “हमने कभी इतने कॉल्स नहीं देखे थे. एक समय के बाद हमें रिसीवर नीचे रखना पड़ा, क्योंकि हम संभाल नहीं पा रहे थे.”

लेकिन जनता की इस दिलचस्पी ने एमजीएम साइंस सेंटर को प्रोत्साहित किया. उन्होंने तय किया कि वे छात्रों को सैंपल दिखाएंगे, कुछ छात्र तो गुजरात और मध्य प्रदेश से आए थे. चुनौती थी कि छात्रों को दिखाया जाए और साथ ही सैंपल की शुद्धता भी बनी रहे ताकि आगे रिसर्च हो सके. इसलिए उन्हें ज़िपलॉक बैग में रखा गया और केवल स्टाफ ने छुआ. छात्रों को दूर से दिखाया गया.

दो दिनों तक, छात्रों ने न सिर्फ सैंपल देखे बल्कि छोटे-छोटे सत्रों में भाग लिया जहां उन्हें बताया गया कि मेटियोराइट पृथ्वी के वातावरण में कैसे प्रवेश करता है और यह ब्रह्मांड के बारे में कौन से रहस्य उजागर कर सकता है.

एक सत्र में पांच साल तक के छोटे बच्चे भी औंधकर के चारों ओर इकट्ठा हो गए. जैसे ही उन्होंने पत्थर दिखाया, बच्चों की ओर से सवालों की बौछार शुरू हो गई. ये कहां से आया? यह किस चीज़ का बना है? क्या हम बड़े होकर ऐसे पत्थरों का अध्ययन कर सकते हैं?

यह सबके लिए एक जादुई पल था.

औंधकर ने कहा, “मुझे नहीं पता कि भविष्य में हमें इन सैंपलों पर काम करने का मौका मिलेगा या नहीं. लेकिन मुझे खुशी है कि मैं इस टुकड़े के बारे में जो भी जानता था, वो अगली पीढ़ी को बता पाया. हो सकता है कि यह मेटियोराइट  इस छोटे से गांव में किसी कारण से गिरा हो.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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