scorecardresearch
Tuesday, 15 October, 2024
होमफीचरभारत के नए स्टोरी टेलर हैं स्टार्ट-अप कंपनियों के संस्थापक, खूब बिक रहीं हैं इनकी लिखीं किताबें

भारत के नए स्टोरी टेलर हैं स्टार्ट-अप कंपनियों के संस्थापक, खूब बिक रहीं हैं इनकी लिखीं किताबें

प्रकाशकों ने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि पाठकों को भारतीय इंटरप्रेन्योर की सफलता की कहानी में रुचि देखी गई है. करण बजाज और शैली चोपड़ा भी लोकप्रिय नाम हैं.

Text Size:

‘जबरन’ छुट्टी पर भेजे जाना, कोटक महिंद्रा बैंक की तरफ से ‘मनमाना’ बयान, और फिर एक आवंछित व्यक्ति करार दे दिया जाना, और वो भी सिर्फ दो दिनों की अवधि में—इसी ब्योरे के साथ साथ भारतपे के सह-संस्थापक और शार्क टैंक इंडिया के निवेशक अश्नीर ग्रोवर की पहली किताब ‘दोगलापन’ की शुरुआत होती है. स्टार्ट-अप फाउंडर अब भारत के नए कहानीकार बन रहे हैं. और इन किताबों में वे अपने जिंदगी के अनुभवों को बता रहे हैं, जो उनके साथ बीता और जिससे उन्होंने कुछ सबक सीखा. यही नहीं, ये किताबें किसी उद्धमियों के लिए तमाम टिप्स और हर तरह के जरूरी ज्ञान से भरी हैं.

10 दिसंबर को रिलीज होने के साथ ही अमेजन बेस्टसेलर किताबों में तीसरे नंबर पर पहुंच गई दोगलापन को एक ऐसा संस्मरण कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि ये उनके जीवन की कड़वी सच्चाइयों को सामने लाती है.

स्टार्ट-अप और साहित्य की दुनिया के बीच एक समानता को रेखांकित करते हुए लेखक-उद्यमी करण बजाज कहते हैं, ‘आमतौर पर आप इसलिए ही किसी कंपनी की शुरुआत करते हैं या कोई किताब लिखते हैं क्योंकि दुनिया के कुछ हिस्से को आप अपनी तरह से बदलना चाहते हैं या फिर कुछ ऐसा खालीपन है जिसे आप अपने अनूठे अनुभव के साथ सामने लाना चाहते हैं. फाउंटेनहेड एक जैसा ही होता है, चाहे कोई स्टार्टअप लॉन्च कर रहा हो या कोई किताब लिख रहा हो.’

अकेले 2022 में यूनिकॉर्न सहित कई सफल संस्थापकों ने अपनी लेखनी की काबिलियत दिखाई है. कुछ ने तो कई किताबें प्रकाशित भी करवा ली हैं. मिंत्रा के संस्थापक और कल्ट. फिट के सीईओ मुकेश बंसल ने नो लिमिट्स: द आर्ट एंड साइंस ऑफ हाई परफॉर्मेंस लिखी है; व्हाइटहैट जूनियर के संस्थापक करण बजाज के खाते में द फ्रीडम मेनिफेस्टो है; वहीं, नियरबाय के सह-संस्थापक अंकुर वारिकू की दूसरी किताब गेट एपिक शिट डन हाल में आई है, और शीदपीपल संस्थापक शैली चोपड़ा की सिस्टरहुड इकोनॉमी: ऑफ, बाय, फॉर वू(मेन) भी बुकशेल्फ में नजर आने लगी है.

किताबें अपनी पर्सनल ब्रांडिंग का एक तरीका बन चुकी है. और आउट-ऑफ-द-बॉक्स सोचने वालों और बदलावों के अगुआ बनकर सफलता की नई इबारत लिखने वालों के बारे में जानने की बढ़ती रुचि भी स्पष्ट तौर पर नजर आती है. हाल के दिनों में थेरानोस, वीवर्क और उबेर जैसे यूनिकॉर्न की सफलता की कहानियों ने हॉटस्टार, एप्पल टीवी और वूट में जगह बनाई है.

टेक्नोलॉजी पर लिखने वाले स्तंभकार प्रशांतो के. राय कहते हैं, ‘स्टार्टअप संस्थापकों की कहानियां जानने में लोगों की रुचि खासी बढ़ रही है. उन संस्थापकों में से कुछ बहुत ही मुखर, शानदार वक्ता हैं, और प्रेरक भाषण और स्टार्ट-अप सलाह वाले वीडियो में नजर आते हैं. उसके बाद इन्हें किताबों की शक्ल दिया जाना तो एक स्वाभाविक कदम हैं. अंकुर वारिकू इसका प्रमुख उदाहरण है.’

सच फिक्शन से ज्यादा विस्मय जगाता है

अधिकांश भारतीय उद्यमी, खासकर नए जमाने के उद्यमी, सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने में काफी ज्यादा सावधानी बरतते हैं क्योंकि इससे उनके क्लाइंट, कर्मचारी और मौजूदा या संभावित निवेशक प्रभावित हो सकते हैं. राजनीतिक शुद्धता के ऐसे माहौल के बीच ग्रोवर की किताब दोगलापन सबसे अलग है क्योंकि भारतीय स्टार्ट-अप उद्योग के ‘बैड बॉय’ ने खरी-खरी कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

ग्रोवर ने अपनी किताब में लिखा, ‘रजनीश (भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व अध्यक्ष रजनीश कुमार) की भर्ती मेरी चौथी गलती थी—तीन अन्य गलतियां सुहैल समीर (मुख्य कार्यकारी अधिकारी), जसनीत (मुख्य मानव संसाधन अधिकारी) और सुमित सिंह (सामान्य परामर्शदाता) थे.’

एक अन्य खंड में वह कहते हैं, ‘हमेशा अपने आप को पहले रखो. हर सेकेंडरी सेल अपॉर्च्युनिटी में अपने स्टॉक को लिक्विटेड करो.’ उनकी इस टिप्पणी को नौकरी डॉट कॉम चलाने वाली कंपनी इंफो एज के संस्थापक और कार्यकारी वाइस चेयरमैन संजीव बिखचंदानी को प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित कर दिया, जिन्होंने ग्रोवर को ‘प्रोएक्टिव’ करार दिया और उनकी राय को एक तरह से ‘पोलराइज’ करने वाला बताया.

वह खुद को परिस्थितियों का शिकार नहीं दिखाना चाहते. वह अपने अतीत के अनुभवों से ‘अप्रत्याशित सफलता’ का रास्ता बताते हैं और इतनी ‘बुरी तरह विफल’ होने से बचने के लिए अपने सबक भी साझा करना चाहते हैं.

ग्रोवर को फंड की हेराफेरी के आरोप में इस साल 2 मार्च को फिनटेक कंपनी भारतपे से बर्खास्त कर दिया गया था. उन्होंने अपने 185 पन्नों के संस्मरण में लिखा है, ‘कंपनी निर्माण में 42 महीनों की अथक मेहनत लगी, लेकिन पूर्व-नियोजित तरीके से कुछ ही घंटों में उन्हें निष्काषित कर दिया गया.’

उन्हें नवंबर में शार्क टैंक इंडिया सीजन-2 में जज के तौर पर भी शामिल नहीं किया गया. इसका कारण तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि ग्रोवर के पास इस पर अपनी एक राय है. उन्होंने अपनी किताब के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान रेडएफएम को बताया, ‘अफोर्ड सिर्फ पैसे से नहीं होता, औकात से भी होता है.’ ग्रोवर बहुप्रतीक्षित वेब सीरीज टीवीएफ पिचर्स सीजन 2 में नजर आने वाले हैं, जो अगले साल रिलीज होगी.

ऐसा लगता है कि इनमें से अधिकांश उद्यमियों को व्यक्तिगत अनुभवों को आधार बनाना ज्यादा पसंद है. करण बजाज, जो व्हाइटहैट जूनियर को खड़ा करने से पहले एक लेखक थे, ने अब अपनी नवीनतम पुस्तक द फ्रीडम मेनिफेस्टो के साथ नॉन-फिक्शन लेखन की ओर रुख किया है. इससे पहले वह तीन किताबें लिख चुके हैं. उन्हें नॉन-फिक्शन लिखने की प्रेरणा भारतीय स्टार्टअप उद्योग के ऑपरेशनल अनुभवों पर किताबों की कमी से ही मिली.

व्यावसायिक शिक्षा और ऑपरेशनल अनुभवों के बीच जमीन-आसमान का अंतर होने पर जोर देते हुए वह कहते हैं, ‘मैंने हार्डकोर फाउंडर्स के काम से बहुत सीखा है जो उनके अपने जीवन के सबक और ऑपरेशनल अनुभवों पर केंद्रित हैं—इसमें पीटर थील की जीरो टू वन और पॉल ग्राहम की किताबें शामिल हैं. लेकिन मुझे भारत के संदर्भ में कुछ भी नहीं मिला. यह बात मेरे दिमाग में घूमती रहती थी.’

‘जिंदगी को अपने ही अंदाज में जीने’ के तरीके सिखाने वाली द फ्रीडम मेनिफेस्टो के एक अंश में लिखा है, ‘सबसे पहले किसी शांत जगह पर बैठ जाएं. अब, अपनी आंखें बंद करें और आज से 10 साल बाद के अपने आदर्श जीवन की कल्पना करें. चिंता न करें, यह आपके सपनों को हासिल करने का कोई वांछित अभ्यास नहीं है. इसके बजाय, हम आपके सबसे गहरे, सबसे व्यक्तिगत लक्ष्यों को स्पष्ट करने के लिए पहला व्यावहारिक कदम उठा रहे हैं.’

बजाज बताते हैं कि कैसे तीन क्रिएटिव इंडस्ट्री—फिक्शन राइटिंग, टीवी और फिल्में और स्टार्ट-अप—कैसे समान पैटर्न पर सफलता हासिल करती हैं. उनके मुताबिक, ‘इन क्षेत्रों में से हर एक में 90 फीसदी रचनात्मक प्रयास विफल हो जाते हैं, जिसका आशय है कि 10 प्रतिशत सफलता दर सीधे तौर पर आपके विचार की गुणवत्ता से संबंधित नहीं है, बल्कि यह बहुत अधिक चांस लेने की क्षमता से जुड़ा है.’

अंकुर वारिकू ने भी अपनी दूसरी किताब गेट एपिक शिट डन में बेहतर जीवन जीने के टिप्स देने के लिए निजी जीवन से प्रेरणा ली है. किताब जीवन के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले 36 प्रश्नों का संकलन है, जो एक छात्र और शिक्षक के बीच संवाद के प्रारूप में लिखी गई है. वे कहते हैं, ‘जिन नुस्खों को बताया गया है, उनमें से बहुत कुछ मेरे अपने जीवन से लिए गए हैं. लेकिन इस किताब की शुरुआत मैंने इस बात से की है कि यही इसकी सबसे बुरी बात है. ऐसा लग सकता है कि ये उत्तर सही है लेकिन ऐसा नहीं है. आपको इसे यह सोचकर नहीं पढ़ना चाहिए कि शिक्षक की तरफ से जो कहा जा रहा है, वही सही जवाब है. बल्कि आपको उनके उत्तर खुद अपने स्तर पर ढूढ़ने चाहिए.’


यह भी पढ़ें: स्क्रॉल, लाइक, Exhale: इन्फ्लुएंसर गुरुओं के लिए इंस्टाग्राम अब नया आस्था टीवी है


क्यों पसंद आ रहा किताबें लिखना

देशभर के प्रकाशकों का मानना है कि तूफानी अंदाज में ऐसी किताबों में छा जाने की वजह यही है कि पाठक इनके बारे में पढ़ना चाहते हैं और भारत में सफलता की ऐसी कहानियां भी लगातार बढ़ रही हैं. विजुअल मीडिया के इस युग में स्टार्ट-अप संस्थापक एक किताबों की प्रासंगिकता को बनाए रखा है. स्टार्टअप-बुक्स की खासियत है, इनका क्रिस्प होना, छोटे-छोटे चैप्टर्स में बटा होना, कोई शब्दजाल न बुना जाना, ‘स्मार्ट’ बनने के तमाम सरल उपाय सुझाना आदि. और जेनरेशन जेड, जिसके पास मोटी-मोटी किताबें पढ़ने का समय ही नहीं है, को ये बोझिल नहीं लगती हैं.

साइमन एंड शूस्टर इंडिया में संपादकीय निदेशक हिमांजलि शंकर के मुताबिक, बड़ी संख्या में स्टार्ट-अप संस्थापक युवा, शिक्षित और महत्वाकांक्षी हैं और यह मानते हैं कि एक किताब पब्लिश होना अच्छी ब्रांडिंग और पेशेवर सफलता का प्रतीक है. यह तब और भी ज्यादा फायदेमंद हो जाती है जब पाठकों को उनकी किताब का बेसब्री से इंतजार रहता हो.

वह आगे कहती है, ‘संस्मरण लिखना एक बेहद लोकप्रिय शैली है. तमाम मुश्किलों और असफलताओं को रेखांकित करने के बावजूद भी वे प्रेरक हो सकते हैं. वे उम्मीदें जगाते हैं और पढ़ने में दिलचस्पी बनाए रखते हैं.’

जब स्टार्ट-अप मालिकों को लगता है कि उन्होंने जीवन में ‘कुछ हासिल कर लिया है’ तो उन्हें लगता कि इसे एक किताब के रूप में उकेरा जाना चाहिए. हार्पर कॉलिन्स के कार्यकारी संपादक सचिन शर्मा कहते हैं, ‘उनका जीवन दूसरों के लिए सफलता का एक टेम्पलेट बनना चाहिए.’ अक्सर ये किताबें उनके स्टार्ट-अप के लिए एक पब्लिसिटी का माध्यम साबित होती हैं, जिससे उन्हें बेहतर नेटवर्क बनाने, वित्तीय पूंजी बढ़ाने और बदले में अधिक व्यवसाय उत्पन्न करने में मदद मिलती है.

लेकिन वो सिर्फ स्टार्ट-अप संस्थापक ही नहीं हैं जो अपनी किताबों को लेकर उत्साहित हैं. लिटरेरी एजेंट और पब्लिशिंग कमेंटेटर कनिष्क गुप्ता कहते हैं कि प्रकाशक भी उद्यमियों के साथ काम करने के इच्छुक हैं.

गुप्ता कहते हैं, ‘यह एक लोकप्रिय शैली है. अधिकांशतः प्रकाशक ही इन लेखकों की पहचान करते हैं. शायद ये लेखक खुद किताब लिखने को तैयार न हों इसे ध्यान में रखकर प्रकाशक उनसे संपर्क करने से पहले ही कुछ घोस्ट राइटर और सहयोगी तय कर लेते हैं. यह उनकी ब्रांड वैल्यू बढ़ाने के काम तो आती ही हैं, बदले में प्रकाशन कंपनी को भी लाभ होता है.’

शी द पीपुल की शैली चोपड़ा एक अलग नजरिया रखती हैं. उनका कहना है, ‘ये किताबें हमारा बाकी जीवन प्रिजर्व करने की कोई कवायद नहीं हैं. बल्कि फिजिकली और डिजिटली हमारी क्षमताओं को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए है, जब हम इसमें सक्षम न हो. ये हमारी तरफ से लोगों के सहयोग का आभार जताने और उनसे मिले बिना ही उनके जीवन में बदलाव लाने की कोशिश का एक हिस्सा है.’

यह सब ऐसे समय हो रहा है जब खासी उपलब्धियां हासिल करने वाले तमाम भारतीय अंतत: ऐसे करियर विकल्प चुन रहे हैं जो मेडिकल और इंजीनियरिंग से परे हैं. हाल ही में, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मजाक में कहा कि शादी.कॉम पर ‘सबसे ज्यादा खोजा जाने वाला कीवर्ड’ आईएएस या आईपीएस नहीं, बल्कि ‘स्टार्ट-अप संस्थापक’ है.

बाजार शार्क टैंक इंडिया से भी उत्साहित है, और उद्यमशीलता एक महत्वाकांक्षा से जुड़ी है. पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया में सीनियर कमीशनिंग एडिटर और बैकलिस्ट पब्लिशिंग लीड, राधिका मारवाह के मुताबिक, स्टार्ट-अप उद्योग के विशेषज्ञों की तरफ से ‘टेल ऑल’ वाली किताबों या ‘प्रामाणिक संस्मरणों’ की काफी कमी है. वह कहती हैं, ‘ट्रेंड मेच्योर बिजनेस वाला ज्यादा है—हम आने वाले सालों में स्टार्ट-अप से जुड़े युवाओं से अधिक कहानियों की उम्मीद कर सकते हैं.’

पिछले साल रिलीज हुई वारिकू की पहली किताब डू एपिक शिट 2,00,000 से अधिक छप चुकी हैं, जिसे वह ‘वाइल्ड’ सफलता बताते हैं जिसके बारे में उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

उद्यमियों की लिखी किताबें अच्छा प्रदर्शन करती हैं और 2022 में इसमें वृद्धि देखी गई है. हरप्रीत ग्रोवर और विभोर गोयल की लेट्स बिल्ड ए कंपनी की 10,000 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं; पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया में एसोसिएट वाइस प्रेसीडेंट सेल्स विजेश कुमार के मुताबिक, अश्नीर ग्रोवर के दोगलापन और राज शमानी की बिल्ड टू लास्ट की 20,000 से अधिक प्रतियां बिकी हैं और अभी भी मांग बनी हुई है.

हालांकि, वारिकू को नहीं लगता कि सिर्फ स्टार्ट-अप संस्थापकों के मामले में ही यह कोई खास ट्रेंड है. वह कहते हैं, ‘पिछले दो सालों में कंटेंट क्रिएशन में तेजी आई है. लोग (कंटेंट क्रिएटर) सोशल मीडिया पर अपने कार्यों की मार्केटिंग करते हैं.’ साथ ही इस बात को रेखांकित करते हैं कि कैसे व्यापक वितरण और गारंटीकृत सफलता प्रकाशन कंपनियों को आगे बढ़ा रही है, इस सबके लिए कंटेंट क्रिएटर को मिल रही मान्यता को श्रेय दिया जाना चाहिए. ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी किताबों को अच्छी तरह से बेचने के इस खेल को अच्छी तरह सीख लिया है.

‘जबरन’ छुट्टी पर भेजे जाना, कोटक महिंद्रा बैंक की तरफ से ‘मनमाना’ बयान, और फिर एक आवंछित व्यक्ति करार दे दिया जाना, और वो भी सिर्फ दो दिनों की अवधि में—इसी ब्योरे के साथ साथ भारतपे के सह-संस्थापक और शार्क टैंक इंडिया के निवेशक अश्नीर ग्रोवर की पहली किताब ‘दोगलापन’ की शुरुआत होती है. स्टार्ट-अप फाउंडर अब भारत के नए कहानीकार बन रहे हैं. और इन किताबों में वे अपने जिंदगी के अनुभवों को बता रहे हैं, जो उनके साथ बीता और जिससे उन्होंने कुछ सबक सीखा. यही नहीं, ये किताबें किसी उद्धमियों के लिए तमाम टिप्स और हर तरह के जरूरी ज्ञान से भरी हैं.

10 दिसंबर को रिलीज होने के साथ ही अमेजन बेस्टसेलर किताबों में तीसरे नंबर पर पहुंच गई दोगलापन को एक ऐसा संस्मरण कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि ये उनके जीवन की कड़वी सच्चाइयों को सामने लाती है.

स्टार्ट-अप और साहित्य की दुनिया के बीच एक समानता को रेखांकित करते हुए लेखक-उद्यमी करण बजाज कहते हैं, ‘आमतौर पर आप इसलिए ही किसी कंपनी की शुरुआत करते हैं या कोई किताब लिखते हैं क्योंकि दुनिया के कुछ हिस्से को आप अपनी तरह से बदलना चाहते हैं या फिर कुछ ऐसा खालीपन है जिसे आप अपने अनूठे अनुभव के साथ सामने लाना चाहते हैं. फाउंटेनहेड एक जैसा ही होता है, चाहे कोई स्टार्टअप लॉन्च कर रहा हो या कोई किताब लिख रहा हो.’

अकेले 2022 में यूनिकॉर्न सहित कई सफल संस्थापकों ने अपनी लेखनी की काबिलियत दिखाई है. कुछ ने तो कई किताबें प्रकाशित भी करवा ली हैं. मिंत्रा के संस्थापक और कल्ट.फिट के सीईओ मुकेश बंसल ने नो लिमिट्स: द आर्ट एंड साइंस ऑफ हाई परफॉर्मेंस लिखी है; व्हाइटहैट जूनियर के संस्थापक करण बजाज के खाते में द फ्रीडम मेनिफेस्टो है; वहीं, नियरबाय के सह-संस्थापक अंकुर वारिकू की दूसरी किताब गेट एपिक शिट डन हाल में आई है, और शीदपीपल संस्थापक शैली चोपड़ा की सिस्टरहुड इकोनॉमी: ऑफ, बाय, फॉर वू(मेन) भी बुकशेल्फ में नजर आने लगी है.

किताबें अपनी पर्सनल ब्रांडिंग का एक तरीका बन चुकी है. और आउट-ऑफ-द-बॉक्स सोचने वालों और बदलावों के अगुआ बनकर सफलता की नई इबारत लिखने वालों के बारे में जानने की बढ़ती रुचि भी स्पष्ट तौर पर नजर आती है. हाल के दिनों में थेरानोस, वीवर्क और उबेर जैसे यूनिकॉर्न की सफलता की कहानियों ने हॉटस्टार, एप्पल टीवी और वूट में जगह बनाई है.

टेक्नोलॉजी पर लिखने वाले स्तंभकार प्रशांतो के. राय कहते हैं, ‘स्टार्टअप संस्थापकों की कहानियां जानने में लोगों की रुचि खासी बढ़ रही है. उन संस्थापकों में से कुछ बहुत ही मुखर, शानदार वक्ता हैं, और प्रेरक भाषण और स्टार्ट-अप सलाह वाले वीडियो में नजर आते हैं. उसके बाद इन्हें किताबों की शक्ल दिया जाना तो एक स्वाभाविक कदम हैं. अंकुर वारिकू इसका प्रमुख उदाहरण है.’

सच फिक्शन से ज्यादा विस्मय जगाता है

अधिकांश भारतीय उद्यमी, खासकर नए जमाने के उद्यमी, सार्वजनिक तौर पर कुछ भी कहने में काफी ज्यादा सावधानी बरतते हैं क्योंकि इससे उनके क्लाइंट, कर्मचारी और मौजूदा या संभावित निवेशक प्रभावित हो सकते हैं. राजनीतिक शुद्धता के ऐसे माहौल के बीच ग्रोवर की किताब दोगलापन सबसे अलग है क्योंकि भारतीय स्टार्ट-अप उद्योग के ‘बैड बॉय’ ने खरी-खरी कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

ग्रोवर ने अपनी किताब में लिखा, ‘रजनीश (भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व अध्यक्ष रजनीश कुमार) की भर्ती मेरी चौथी गलती थी—तीन अन्य गलतियां सुहैल समीर (मुख्य कार्यकारी अधिकारी), जसनीत (मुख्य मानव संसाधन अधिकारी) और सुमित सिंह (सामान्य परामर्शदाता) थे.’

एक अन्य खंड में वह कहते हैं, ‘हमेशा अपने आप को पहले रखो. हर सेकेंडरी सेल अपॉर्च्युनिटी में अपने स्टॉक को लिक्विटेड करो.’ उनकी इस टिप्पणी को नौकरी डॉट कॉम चलाने वाली कंपनी इंफो एज के संस्थापक और कार्यकारी वाइस चेयरमैन संजीव बिखचंदानी को प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित कर दिया, जिन्होंने ग्रोवर को ‘प्रोएक्टिव’ करार दिया और उनकी राय को एक तरह से ‘पोलराइज’ करने वाला बताया.

वह खुद को परिस्थितियों का शिकार नहीं दिखाना चाहते. वह अपने अतीत के अनुभवों से ‘अप्रत्याशित सफलता’ का रास्ता बताते हैं और इतनी ‘बुरी तरह विफल’ होने से बचने के लिए अपने सबक भी साझा करना चाहते हैं.

ग्रोवर को फंड की हेराफेरी के आरोप में इस साल 2 मार्च को फिनटेक कंपनी भारतपे से बर्खास्त कर दिया गया था. उन्होंने अपने 185 पन्नों के संस्मरण में लिखा है, ‘कंपनी निर्माण में 42 महीनों की अथक मेहनत लगी, लेकिन पूर्व-नियोजित तरीके से कुछ ही घंटों में उन्हें निष्काषित कर दिया गया.’

उन्हें नवंबर में शार्क टैंक इंडिया सीजन-2 में जज के तौर पर भी शामिल नहीं किया गया. इसका कारण तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि ग्रोवर के पास इस पर अपनी एक राय है. उन्होंने अपनी किताब के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान रेडएफएम को बताया, ‘अफोर्ड सिर्फ पैसे से नहीं होता, औकात से भी होता है.’ ग्रोवर बहुप्रतीक्षित वेब सीरीज टीवीएफ पिचर्स सीजन 2 में नजर आने वाले हैं, जो अगले साल रिलीज होगी.

ऐसा लगता है कि इनमें से अधिकांश उद्यमियों को व्यक्तिगत अनुभवों को आधार बनाना ज्यादा पसंद है. करण बजाज, जो व्हाइटहैट जूनियर को खड़ा करने से पहले एक लेखक थे, ने अब अपनी नवीनतम पुस्तक द फ्रीडम मेनिफेस्टो के साथ नॉन-फिक्शन लेखन की ओर रुख किया है. इससे पहले वह तीन किताबें लिख चुके हैं. उन्हें नॉन-फिक्शन लिखने की प्रेरणा भारतीय स्टार्टअप उद्योग के ऑपरेशनल अनुभवों पर किताबों की कमी से ही मिली.

व्यावसायिक शिक्षा और ऑपरेशनल अनुभवों के बीच जमीन-आसमान का अंतर होने पर जोर देते हुए वह कहते हैं, ‘मैंने हार्डकोर फाउंडर्स के काम से बहुत सीखा है जो उनके अपने जीवन के सबक और ऑपरेशनल अनुभवों पर केंद्रित हैं—इसमें पीटर थील की जीरो टू वन और पॉल ग्राहम की किताबें शामिल हैं. लेकिन मुझे भारत के संदर्भ में कुछ भी नहीं मिला. यह बात मेरे दिमाग में घूमती रहती थी.’

‘जिंदगी को अपने ही अंदाज में जीने’ के तरीके सिखाने वाली द फ्रीडम मेनिफेस्टो के एक अंश में लिखा है, ‘सबसे पहले किसी शांत जगह पर बैठ जाएं. अब, अपनी आंखें बंद करें और आज से 10 साल बाद के अपने आदर्श जीवन की कल्पना करें. चिंता न करें, यह आपके सपनों को हासिल करने का कोई वांछित अभ्यास नहीं है. इसके बजाय, हम आपके सबसे गहरे, सबसे व्यक्तिगत लक्ष्यों को स्पष्ट करने के लिए पहला व्यावहारिक कदम उठा रहे हैं.’

बजाज बताते हैं कि कैसे तीन क्रिएटिव इंडस्ट्री—फिक्शन राइटिंग, टीवी और फिल्में और स्टार्ट-अप—कैसे समान पैटर्न पर सफलता हासिल करती हैं. उनके मुताबिक, ‘इन क्षेत्रों में से हर एक में 90 फीसदी रचनात्मक प्रयास विफल हो जाते हैं, जिसका आशय है कि 10 प्रतिशत सफलता दर सीधे तौर पर आपके विचार की गुणवत्ता से संबंधित नहीं है, बल्कि यह बहुत अधिक चांस लेने की क्षमता से जुड़ा है.’

अंकुर वारिकू ने भी अपनी दूसरी किताब गेट एपिक शिट डन में बेहतर जीवन जीने के टिप्स देने के लिए निजी जीवन से प्रेरणा ली है. किताब जीवन के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले 36 प्रश्नों का संकलन है, जो एक छात्र और शिक्षक के बीच संवाद के प्रारूप में लिखी गई है. वे कहते हैं, ‘जिन नुस्खों को बताया गया है, उनमें से बहुत कुछ मेरे अपने जीवन से लिए गए हैं. लेकिन इस किताब की शुरुआत मैंने इस बात से की है कि यही इसकी सबसे बुरी बात है. ऐसा लग सकता है कि ये उत्तर सही है लेकिन ऐसा नहीं है. आपको इसे यह सोचकर नहीं पढ़ना चाहिए कि शिक्षक की तरफ से जो कहा जा रहा है, वही सही जवाब है. बल्कि आपको उनके उत्तर खुद अपने स्तर पर ढूढ़ने चाहिए.’


यह भी पढ़ें: पहले कभी इतना बड़ा नहीं था भारत का ट्यूशन बाजार, कोचिंग कल्चर नई महामारी बनकर उभर रहा


क्यों पसंद आ रहा किताबें लिखना

देशभर के प्रकाशकों का मानना है कि तूफानी अंदाज में ऐसी किताबों में छा जाने की वजह यही है कि पाठक इनके बारे में पढ़ना चाहते हैं और भारत में सफलता की ऐसी कहानियां भी लगातार बढ़ रही हैं. विजुअल मीडिया के इस युग में स्टार्ट-अप संस्थापक एक किताबों की प्रासंगिकता को बनाए रखा है. स्टार्टअप-बुक्स की खासियत है, इनका क्रिस्प होना, छोटे-छोटे चैप्टर्स में बटा होना, कोई शब्दजाल न बुना जाना, ‘स्मार्ट’ बनने के तमाम सरल उपाय सुझाना आदि. और जेनरेशन जेड, जिसके पास मोटी-मोटी किताबें पढ़ने का समय ही नहीं है, को ये बोझिल नहीं लगती हैं.

साइमन एंड शूस्टर इंडिया में संपादकीय निदेशक हिमांजलि शंकर के मुताबिक, बड़ी संख्या में स्टार्ट-अप संस्थापक युवा, शिक्षित और महत्वाकांक्षी हैं और यह मानते हैं कि एक किताब पब्लिश होना अच्छी ब्रांडिंग और पेशेवर सफलता का प्रतीक है. यह तब और भी ज्यादा फायदेमंद हो जाती है जब पाठकों को उनकी किताब का बेसब्री से इंतजार रहता हो.

वह आगे कहती है, ‘संस्मरण लिखना एक बेहद लोकप्रिय शैली है. तमाम मुश्किलों और असफलताओं को रेखांकित करने के बावजूद भी वे प्रेरक हो सकते हैं. वे उम्मीदें जगाते हैं और पढ़ने में दिलचस्पी बनाए रखते हैं.’

जब स्टार्ट-अप मालिकों को लगता है कि उन्होंने जीवन में ‘कुछ हासिल कर लिया है’ तो उन्हें लगता कि इसे एक किताब के रूप में उकेरा जाना चाहिए. हार्पर कॉलिन्स के कार्यकारी संपादक सचिन शर्मा कहते हैं, ‘उनका जीवन दूसरों के लिए सफलता का एक टेम्पलेट बनना चाहिए.’ अक्सर ये किताबें उनके स्टार्ट-अप के लिए एक पब्लिसिटी का माध्यम साबित होती हैं, जिससे उन्हें बेहतर नेटवर्क बनाने, वित्तीय पूंजी बढ़ाने और बदले में अधिक व्यवसाय उत्पन्न करने में मदद मिलती है.

लेकिन वो सिर्फ स्टार्ट-अप संस्थापक ही नहीं हैं जो अपनी किताबों को लेकर उत्साहित हैं. लिटरेरी एजेंट और पब्लिशिंग कमेंटेटर कनिष्क गुप्ता कहते हैं कि प्रकाशक भी उद्यमियों के साथ काम करने के इच्छुक हैं.

गुप्ता कहते हैं, ‘यह एक लोकप्रिय शैली है. अधिकांशतः प्रकाशक ही इन लेखकों की पहचान करते हैं. शायद ये लेखक खुद किताब लिखने को तैयार न हों इसे ध्यान में रखकर प्रकाशक उनसे संपर्क करने से पहले ही कुछ घोस्ट राइटर और सहयोगी तय कर लेते हैं. यह उनकी ब्रांड वैल्यू बढ़ाने के काम तो आती ही हैं, बदले में प्रकाशन कंपनी को भी लाभ होता है.’

शी द पीपुल की शैली चोपड़ा एक अलग नजरिया रखती हैं. उनका कहना है, ‘ये किताबें हमारा बाकी जीवन प्रिजर्व करने की कोई कवायद नहीं हैं. बल्कि फिजिकली और डिजिटली हमारी क्षमताओं को आसानी से उपलब्ध कराने के लिए है, जब हम इसमें सक्षम न हो. ये हमारी तरफ से लोगों के सहयोग का आभार जताने और उनसे मिले बिना ही उनके जीवन में बदलाव लाने की कोशिश का एक हिस्सा है.’

यह सब ऐसे समय हो रहा है जब खासी उपलब्धियां हासिल करने वाले तमाम भारतीय अंतत: ऐसे करियर विकल्प चुन रहे हैं जो मेडिकल और इंजीनियरिंग से परे हैं. हाल ही में, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मजाक में कहा कि शादी.कॉम पर ‘सबसे ज्यादा खोजा जाने वाला कीवर्ड’ आईएएस या आईपीएस नहीं, बल्कि ‘स्टार्ट-अप संस्थापक’ है.

बाजार शार्क टैंक इंडिया से भी उत्साहित है, और उद्यमशीलता एक महत्वाकांक्षा से जुड़ी है. पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया में सीनियर कमीशनिंग एडिटर और बैकलिस्ट पब्लिशिंग लीड, राधिका मारवाह के मुताबिक, स्टार्ट-अप उद्योग के विशेषज्ञों की तरफ से ‘टेल ऑल’ वाली किताबों या ‘प्रामाणिक संस्मरणों’ की काफी कमी है. वह कहती हैं, ‘ट्रेंड मेच्योर बिजनेस वाला ज्यादा है—हम आने वाले सालों में स्टार्ट-अप से जुड़े युवाओं से अधिक कहानियों की उम्मीद कर सकते हैं.’

पिछले साल रिलीज हुई वारिकू की पहली किताब डू एपिक शिट 2,00,000 से अधिक छप चुकी हैं, जिसे वह ‘वाइल्ड’ सफलता बताते हैं जिसके बारे में उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

उद्यमियों की लिखी किताबें अच्छा प्रदर्शन करती हैं और 2022 में इसमें वृद्धि देखी गई है. हरप्रीत ग्रोवर और विभोर गोयल की लेट्स बिल्ड ए कंपनी की 10,000 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं; पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया में एसोसिएट वाइस प्रेसीडेंट सेल्स विजेश कुमार के मुताबिक, अश्नीर ग्रोवर के दोगलापन और राज शमानी की बिल्ड टू लास्ट की 20,000 से अधिक प्रतियां बिकी हैं और अभी भी मांग बनी हुई है.

हालांकि, वारिकू को नहीं लगता कि सिर्फ स्टार्ट-अप संस्थापकों के मामले में ही यह कोई खास ट्रेंड है. वह कहते हैं, ‘पिछले दो सालों में कंटेंट क्रिएशन में तेजी आई है. लोग (कंटेंट क्रिएटर) सोशल मीडिया पर अपने कार्यों की मार्केटिंग करते हैं.’ साथ ही इस बात को रेखांकित करते हैं कि कैसे व्यापक वितरण और गारंटीकृत सफलता प्रकाशन कंपनियों को आगे बढ़ा रही है, इस सबके लिए कंटेंट क्रिएटर को मिल रही मान्यता को श्रेय दिया जाना चाहिए. ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी किताबों को अच्छी तरह से बेचने के इस खेल को अच्छी तरह सीख लिया है.

(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)

(इस फ़ीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: जिला कलेक्टर, जिला मजिस्ट्रेट या डेवलपमेंट कमिश्नर- IAS अधिकारी को आखिर किस नाम से बुलाया जाना चाहिए


 

share & View comments