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Sunday, 22 December, 2024
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‘सपने देखना हमारे लिए बहुत बड़ी चीज है’, दलित मजदूर के बेटे ने पास की UPSC, अब हैं ‘IRS साहब’

बिजनौर जिले के मुक्तेंद्र कुमार ने यूपीएससी परीक्षा में 819वीं रैंक हासिल की. वह आईआरएस पोस्टिंग के लिए योग्य हो गए हैं. उनका अगला लक्ष्य आईएएस है.

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सैदपुर: मुक्तेंद्र कुमार अपने सैदपुर गांव के घर में गरमागरम चावलों को खाने के लिए उठाए ही थी कि फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ फोन पर उनके मित्र थे. उनके मित्र ने उन्हें सूचित किया, “आईआरएस साहब, आपने यूपीएससी क्लियर कर लिया है.” यह वह दिन था जिसके लिए वह पिछले तीन साल से पूरी लगन से मेहनत कर रहे थे. 

उस दिन, 23 मई को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक दलित दिहाड़ी मजदूर के 23 वर्षीय पुत्र मुक्तेंद्र के जीवन में राहत नजर आई. इस खुशखबरी के बाद उनका पहला विचार यह आया कि अब उनकी बहन की शादी अच्छे से होगी और टपकती छत को आखिरकार ठीक किया जा सकेगा. 

मुक्तेंद्र ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में 819वीं रैंक हासिल की है, जिससे वह भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में पोस्टिंग के लिए योग्य हो गए हैं.

वह हाल के वर्षों में कठिन यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए अपने अध्ययन माध्यम के रूप में हिंदी का उपयोग करने वाले भारतीयों की बढ़ती संख्या में से एक हैं. दूरस्थ, ग्रामीण और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों में हिंदी माध्यम का क्रेज बढ़ा है. 

हिंदी में पढ़ाई करने वाले रवि सिहाग ने पिछले साल यूपीएससी की परीक्षा में 18वीं रैंक हासिल की थी, जिससे वह सात साल में शीर्ष 25 में जगह बनाने वाले हिंदी माध्यम के पहले उम्मीदवार बन गए थे. YouTube कोचिंग क्लासेज ने भी मुक्तेंद्र जैसे उम्मीदवारों के लिए UPSC परीक्षा को क्रैक करना किफायती बना दिया है. उनके पिता सतीश कुमार कभी-कभी कोल्हू में काम करते हैं जबकि कभी-कभी ईंट ढोने का काम भी करते हैं. उनका परिवार मुफ्त मासिक सरकारी चावल और गेहूं से अपना भरण-पोषण करता है. 

अब उनके घर पर बधाई देने और जश्न मनाने वाले लोगों का तांता लगा हुआ है. मुक्तेंद्र न केवल सैदपुर के दलित समुदाय बल्कि पूरे गांव में एक स्टेटस सिंबल बन गए हैं.

अपने दूसरे प्रयास में परीक्षा पास करने वाले मुक्तेंद्र कहते हैं, “मैंने अपने जीवन में इतनी मिठाइयां कभी नहीं खाईं, जितनी आजकल मेरे यहां आती हैं, आने वालों में से अधिकतर को मैं जानता भी नहीं हूं.”

हालांकि, उसका लक्ष्य सिर्फ यहां रूकना नहीं है. वो कहते हैं, “गरीबी को दूर करना बहुत जरूरी है. हमने जिस तरह का जीवन जिया है वह बहुत कठिन है. पिछड़ों और महिलाओं के लिए बहुत कुछ करना है. मैं सेवा में शामिल होकर उनके लिए काम करना चाहता हूं.”

वो आगे कहते हैं, “हम उस पृष्ठभूमि से आते हैं जहां सपने देखना एक बड़ी बात है. पहले मैं केवल एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) के बारे में जानता था. लेकिन जब मुझे यूपीएससी के बारे में पता चला तो मैंने इसे ही अपना लक्ष्य बना लिया.”

टूटी हुई छत से मिली प्रेरणा

बिजनौर के नूरपुर शहर के पास, सैदपुर में मुक्तेंद्र का घर मुख्य सड़क से थोड़ी दूरी पर है, लेकिन फुटपाथ उनके सामने के दरवाजे से कुछ ही दूर रुकता है.

उनके मोहल्ले में काफी गंदगी फैली है. बंद नालियों से पूरा इलाका अस्त-व्यस्त है, और बंदर छतों पर उछल रहे हैं. उनमें से एक बंदर रस्सी पर सूख रहे कपड़े में लटक जाता है जिससे उसपर सूख रहे सारे कपड़े नीचे गिर जाते हैं. 

बंदरों के हुड़दंग के बीच, मुक्तेंद्र अपने एक मंजिला घर से निकलते हैं और अपने घर के बाहर एक टूटी हुई प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ जाते हैं.

Muktendra Kumar house
मुक्तेंद्र का घर और उनके आंगन में टहलती मुर्गियां | फोटो: नूतन शर्मा | दिप्रिंट

उनका कहना है कि उनके आसपास के परिवेश ने सफल होने के उनके संकल्प को और मजबूत किया.

वह याद करते हैं, “एक रात, बारिश हो रही थी और मैंने देखा कि मेरी मां कच्चे छत से रिस रहे पानी को फैलने से रोकने के लिए फर्श पर बर्तन रख रही थी. उस दिन, मैंने फैसला किया कि मैं अपने घर की हालत बदल दूंगा.” 

मुक्तेंद्र इस साल भाषा और सामाजिक आर्थिक वर्ग की बाधाओं को तोड़कर यूपीएससी पास करने वाले एकमात्र उम्मीदवार नहीं हैं. कुल मिलाकर, हिंदी मीडियम के 54 उम्मीदवारों ने सफलतापूर्वक परीक्षा उत्तीर्ण की है.

इनमें कुछ मुक्तेंद्र की तरह ही यूपी के सामान्य परिवारों से आते हैं, जिनमें दिव्या तंवर, सूरज तिवारी और सौरभ शामिल हैं, जिन्होंने क्रमशः 105वां, 917वां और 705वां रैंक हासिल किया.

लेकिन मुक्तेंद्र अभी भी संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि उनका अगला लक्ष्य अच्छा रैंक प्राप्त कर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में शामिल होना है. सफल होने के बाद भी वह अपनी छोटी सी स्टडी टेबल से चिपके रहते हैं.

Muktendra Kumar at his desk
मुक्तेंद्र अपने घर में पढ़ाई करते हुए | फोटो: नूतन शर्मा | दिप्रिंट

28 मई को उन्होंने दोबारा यूपीएससी का प्रीलिम्स दिया है ताकि वह अपने आईएएस के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें. पिछले हफ्ते दिप्रिंट के उनके घर आने के दौरान वे बड़ी मेहनत से उत्तर कुंजियों को मिला रहे थे.

इस बीच, उनके परिवार के सदस्य, पड़ोसी और यहां तक कि स्थानीय राजनेता को भी उनकी सफलता पर काफी गर्व हो रहा है.


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स्थानीय लोगों के बीच चर्चा का विषय

जब मुक्तेंद्र का रिजल्ट पहली बार निकला तो उसके परिवार वालों ने आपस में ही चुपचाप जश्न मनाया. कई अन्य सफल यूपीएससी उम्मीदवारों के मामले के विपरीत, मुक्तेंद्र के लिए कोई सम्मान समारोह या भव्य रोड शो नहीं हुआ.

हालांकि, जब उनकी सफलता की खबर इलाके में फैली तो, दलित सामाजिक कार्यकर्ता मंगेश्वर कुमार बाल्मीकि मुक्तेंद्र की कहानी को आगे बढ़ाने का फैसला किया.

बाल्मीकि कहते हैं, “यूपीएससी का रिजल्ट देखने के बाद मेरे बच्चों ने मुझे बताया कि हमारे गांव के इस लड़के का नाम लिस्ट में है. फिर मैं उनसे मिलने गया और सोशल मीडिया पर उनके बारे में लिखा.”  

उन्होंने आगे कहा, “मैंने स्थानीय मीडिया को बताया और इसे सोशल मीडिया ग्रुप्स में वायरल कर दिया. अगर हमारे समाज के किसी व्यक्ति ने सफलता हासिल की है, तो यह हमारा कर्तव्य है कि हम लोगों को इसके बारे में बताएं. मैं एक सम्मान समारोह आयोजित करने की भी कोशिश करूंगा.”

पिछले सप्ताह से मुक्तेंद्र से मिलने के लिए उनके परिजन, रिश्तेदार, ग्रामीण और समाजसेवियों का तांता लगा हुआ है.

इनमें उनकी दूर की चचेरी बहन लक्ष्मी भी है. चमकीले कपड़े पहने, वह मुक्तेंद्र को बधाई देने के लिए अपनी बेटी और पति को साथ आई है.

Muktendra and cousin Lakshmi
मुक्तेंद्र की चचेरी बहन लक्ष्मी उसे माला पहनाते हुए | फोटो: नूतन शर्मा | दिप्रिंट

मिठाई का एक छोटा डिब्बा और थाली में गेंदे की माला लेकर वह उसकी आरती उतारती है. 

लक्ष्मी कहती हैं, “हमारे परिवार में कोई भी इतने बड़े पद पर नहीं पहुंचा है. इससे मेरे ससुराल में बहुत उत्साह है.” 

मुक्तेंद्र के माथे पर टीका लगाने के बाद वह एक-एक कर उनके परिवार के सभी सदस्यों के गले में माला डालती हैं. फिर, वहां खड़ा एक आदमी बताता है कि जिला भाजपा अध्यक्ष, जो स्वयं बाल्मीकि दलित समुदाय से हैं, आने वाले हैं.

इस खबर के बाद हलचल पैदा हो जाती है. आंगन में कुर्सियां लगाई जाती हैं और घर के बड़े-बुजुर्ग इकट्ठे होते हैं. वहां मौजूद मेहमानों में से एक ने कहा, “यह पहली बार है जब कोई नेता हमसे मिलने आ रहा है.”

कुछ ही देर में बीजेपी नेता वाल्मीकि गिफ्ट के रूप में मिठाई का डिब्बा, एक डायरी और एक कलम लेकर आते हैं.

वो कहते हैं, “मेरे लिए, यह जादू की तरह है. हमारे समाज में अमीर लोगों के बच्चे भी नहीं पढ़ते हैं, लेकिन इस बच्चे ने बहुत मेहनत की है. जो मेहनत करते हैं, उनके लिए कोई बंधन नहीं होता, उन्हें कोई नहीं रोक सकता.”

सैदपुर गांव में बहुत से लोग मुक्तेंद्र के बारे में पहली बार सुन रहे हैं.

ग्रामीण महेश सिंह कहते हैं, “यह न केवल हमारे गांव के लिए, बल्कि पूरे जिले के लिए गर्व का क्षण है, लेकिन हमने कभी उस लड़के को बाहर जाते नहीं देखा. वह हमेशा पढ़ता रहता रहा होगा.”

इंटरनेट, यूट्यूब, फ्री टेस्ट

मुक्तेंद्र की शैक्षिक यात्रा गांव के सरकारी स्कूल में शुरू हुई, जहां उन्होंने कक्षा 8 तक की पढ़ाई की. फिर उन्होंने साईंस में ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए सैदपुर के लक्ष्य कॉलेज में दाखिला लेने से पहले उसी गांव के एक अर्ध-निजी संस्थान में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की.

अपने कॉलेज के दूसरे वर्ष में, उन्होंने सरकारी नौकरी के लिए एसएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन जब वह एक छोटे से निजी कोचिंग सेंटर में जा रहा था, तो उसे यूपीएससी के बारे में पता चला. उसके बाद से यूपीएसएसी के प्रति उसका झुकाव बढ़ा. 

हालांकि, एक ऐसे घर में जहां उसे गुज़ारा करना भी मुश्किल था, मुक्तेंद्र को पता था कि यूपीएससी कोचिंग की कोई सीमा नहीं है और किताबें खरीदना भी एक चुनौती होगी.

मुक्तेंद्र कहते हैं, “मैंने पहले सोचा कि मैं कम से कम किताबों के साथ पाठ्यक्रम को कैसे कवर कर सकता हूं. मैंने कॉलेज से मिली 7,400 रुपये की छात्रवृत्ति से अपनी किताबें खरीदीं.”

और एक कोचिंग क्लास में शामिल होने के बजाय, वह अपनी तैयारी में मदद करने के लिए इंटरनेट, यूट्यूब और कोचिंग सेंटरों द्वारा दी जाने वाली फ्री टेस्ट पर निर्भर था.

मुक्तेंद्र ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया है. उनकी मां एक मजदूर के रूप में काम करती हैं, लेकिन फिर भी वह यह सुनिश्चित करती थीं कि उनकी पढ़ाई की सभी जरूरतों का ध्यान रखा जाए. 

वह कहते हैं, “मुझे कभी घर नहीं छोड़ना पड़ा. अगर मुझे एक पेन की भी जरूरत होती, तो मेरी मां या बहन बाहर जाकर मेरे लिए सामान लातीं.”

हरे रंग का सलवार सूट पहने मुक्तेंद्र की मां कविता अपने घर आने वाले सभी लोगों का स्वागत करने में व्यस्त हैं. वह सभी आगंतुकों को मुक्तेंद्र के समर्पण के बारे में बताती है.

वह कहती हैं, “मेरे बेटे ने बहुत मेहनत की है. उसने दिन-रात पढ़ाई की है. जब पहली बार उसका रिजल्ट नहीं हुआ, तो मैंने भगवान से बहुत शिकायत की, लेकिन इस बार, हमारी इच्छा पूरी हुई.” 

मुक्तेंद्र के पिता सतीश याद करते हैं कि कैसे वह अपने बेटे को हर बार घर से बाहर निकलते वक्त और हर बार लौटते हुए पढ़ते देखा करते थे. 

सतीश कहते हैं, “मेरे बेटे ने हमें गौरवान्वित किया है. पूरा गांव हमें बधाई दे रहा है. जो लोग पहले हमारा अभिवादन नहीं करते थे, वे भी आज आकर हमसे बात कर रहे हैं.”

Satish Kumar
मुक्तेंद्र के पिता सतीश अपने घर के बाहर बैठे हुए | फोटो: नूतन शर्मा | दिप्रिंट

लेकिन असफलता भी मुक्तेंद्र की यात्रा का हिस्सा रही है. अपने पहले यूपीएससी प्रयास में, मुक्तेंद्र ने इंटरव्यू तक जगह बनाई, लेकिन अंतिम सूची में एक स्थान सुरक्षित नहीं कर सके. वह निराश था, लेकिन अगले ही दिन अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी और पिछले वर्ष के परिणामों के ठीक पांच दिन बाद आयोजित प्रारंभिक परीक्षा को पास कर लिया. लेकिन इस बार, वह सफल रहा.

अगला लक्ष्य: आईएएस

मुक्तेंद्र ने जो रैंक हासिल की है, उससे उन्हें आईआरएस में पोस्टिंग मिल जाएगी, लेकिन उनका अंतिम लक्ष्य आईएएस में शामिल होना है.

वे कहते हैं, ”अभी जो रिजल्ट आया है, उससे मैं बहुत खुश हूं. लेकिन मैं एक बार फिर अपने आईएएस अधिकारी बनने के लक्ष्य के लिए कोशिश कर रहा हूं.”

एक कमरे के घर के अंदर, दरवाजे के सामने वाली दीवार में एक मंदिर और रंग-बिरंगी मालाएं रखी हैं, जिन्हें मुक्तेंद्र को रिजल्ट आने के बाद लोगों ने पहनाया था. 

लेकिन उसका ध्यान अभी भी अपनी पुरानी लकड़ी की स्टडी टेबल और प्लास्टिक की कुर्सी पर ही रहता है.

पिछले एक घंटे से घर में बिजली नहीं है, लेकिन मुक्तेंद्र कहते हैं कि इस तरह की असुविधाएं उनकी पढ़ाई में बाधा नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ”यह सब अन्य लोगों के लिए मुश्किल होगा लेकिन मुझे इसकी आदत है. ऐसा कई बार होता है, लेकिन मैं पढ़ाई नहीं छोड़ूंगा.” 

अभी वह पिछली गलतियों से सीखने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह अपनी अगली कोशिश में बेहतर कर सके. उन्होंने प्रीलिम्स लिख लिया है और अब इंटरव्यू राउंड की तैयारी पर ध्यान दे रहे हैं.

उन्होंने कहा, “जब मैंने अपनी मार्कशीट देखी, तो मुझे महसूस हुआ कि कुछ ऐसी जगहें हैं जहां मैं बेहतर कर सकता हूं, इसलिए इस प्रयास में मैं उसे करने की कोशिश करूंगा. और मुझे यकीन है कि मैं निश्चित रूप से अपना लक्ष्य हासिल कर लूंगा.”

अपने पहले प्रयास में मुक्तेंद्र को इंटरव्यू में 124 अंक मिले. इस बार उसे 150 अंक मिले हैं. वे कहते हैं, “मुझे अभी भी अपने आत्मविश्वास पर काम करने की ज़रूरत है, लेकिन इंटरव्यू दिलचस्प था. मुझसे कई अच्छे प्रश्न पूछे गए.” 

यूपीएससी परीक्षा के लिए अपने विस्तृत आवेदन पत्र में, मुक्तेंद्र ने फिल्मों को अपने शौक के रूप में  बताया है. उनके एक साक्षात्कारकर्ता ने उनसे इससे जुड़ा सवाल भी पूछा है. 

मुक्तेंद्र याद करते हुए कहते हैं, “मुझे महिला सशक्तिकरण पर बनी फिल्मों के बारे में बात करने के लिए कहा गया था, इसलिए मैंने दंगल का नाम लिया. उसके बाद, मुझे इसके प्रसिद्ध डॉयलाग में से एक को सुनाने के लिए कहा गया.“

अपने जवाब के रूप में, उन्होंने फिल्म से लैंगिक समानता का संदेश लिया: “म्हारी छोरियां, छोरों से कम हैं के (क्या हमारी लड़कियां हमारे लड़कों से कम हैं)?”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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