बुलढाना (महाराष्ट्र): बुलढाना से लगभग 70 किमी दूर बोंडगांव नाम का एक छोटा सा गांव भारत के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के साइंटिस्ट्स का मिलने की जगह बन गया है. कारण जानने के लिए कि आखिर क्यों गांव वाले तेजी से गंजे हो रहे हैं. यह एक मेडिकल मिस्ट्री बन गई है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), एम्स, हैदराबाद इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज़, ज़िला मेडिकल बोर्ड और बावसकर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर हुआ क्या है.
सब कुछ अचानक और बिना किसी वजह के बाल झड़ने से शुरू हुआ. अब सिर पर दर्दनाक घाव, नाखूनों के नीचे काले धब्बे, धुंधली नज़र, बिना वजह वजन घटना जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं. गांव वाले और वैज्ञानिक—दोनों हैरान हैं.
भारत के शीर्ष वैज्ञानिक गांव की धूलभरी, कच्ची गलियों में घूम चुके हैं, और उन्होंने मिट्टी, पानी, यहां तक कि गांववालों के खून और यूरीन के सैंपल तक इकट्ठा किए हैं.
जनवरी की एक सर्द सुबह, गांववालों ने देखा कि उनके बाल गुच्छों में गिरने लगे हैं. बुलढाना ज़िले के 18 गांवों के 400 से अधिक लोग—बच्चे, बूढ़े, पुरुष, महिलाएं—एक ही रात में गंजे हो गए. तुरंत दहशत फैल गई. उसके बाद शर्मिंदगी भी आई.
लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी वैज्ञानिक यह तय नहीं कर पाए हैं कि गांव और आसपास के 17 गांवों के लोगों को आखिर हुआ क्या. ज़िला और मेडिकल अधिकारी चुप हैं. वैज्ञानिकों को यह नहीं समझ आ रहा कि यह दूषित पानी की वजह से हुआ, कोई वायरल संक्रमण है, या—जैसा कि एक शुरुआती रिपोर्ट में बताया गया था—पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के ज़रिए वितरित गेहूं में सेलेनियम की ज़्यादा मात्रा के कारण हुआ.
“कुछ जवान लोगों के बाल फिर से आ गए, लेकिन मेरे जैसे मरीज़ों की हेयर ग्रोथ अभी भी बहुत धीमी है. और मेरी परेशानी बढ़ गई है, अब मुझे नए लक्षण भी दिख रहे हैं. अब जब गर्मी आ गई है, तो सिर पर जो घाव हैं, वो बहुत दर्द करते हैं,” 70 वर्षीय शांताबाई अंडुरकर ने कहा, जो अपनी साड़ी के पल्लू से खेलती रहीं और सिर खुजाने की इच्छा को रोकने की कोशिश करती रहीं.


बुलढाना में बाल झड़ने की समस्या कैसे शुरू हुई?
वो अकेली नहीं हैं. जनवरी में अचानक बाल झड़ने की समस्या से जूझने वाले बोंडगांव, हिंगणा और कालवड़ के ज़्यादातर मरीज़ अब लक्षणों की दूसरी लहर का सामना कर रहे हैं. कुछ लोगों में तो अलग-अलग समस्याएं भी दिख रही हैं—जैसे वजन कम होना और त्वचा पर चकत्ते निकलना.
ज़िला और मेडिकल अधिकारी अब भी चुप हैं. वैज्ञानिकों को अब तक यकीन नहीं है कि यह दूषित पानी था, कोई वायरल संक्रमण या—एक शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया था—सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के ज़रिए बांटे गए गेहूं में सेलेनियम की अधिक मात्रा इसका कारण हो सकती है.
ग्यारह साल का सुपेश दिगांबर खुद को विराट कोहली का “सबसे बड़ा फैन” कहता हैं. वह कोहली की क्रिकेटिंग स्टाइल की नकल करते हैं—और उनके हेयरस्टाइल्स की भी. वह लोकल नाई के पास जाकर बालों के साइड पतले करवाते और ऊपर के बालों को जैल लगाकर खड़ा करते—जब तक कि वह कोहली की तरह दाढ़ी नहीं बढ़ा सकते.
लेकिन 5 जनवरी को, क्रिकेट खेलने के बाद जब वह घर लौटा और टोपी उतारी, तो उसमें उसके बाल उलझे हुए थे. उसकी मां, निर्मला, ने उसकी सिर पर हाथ फेरा—तो बाल उनकी हथेली में आ गए. कुछ ही बार हाथ फेरने के बाद, सुपेश लगभग गंजा हो गया.

जब वह बालों के गुच्छे गिरते देख ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा, तो निर्मला ने उसे एक थप्पड़ मार दिया, यह सोचकर कि उसने कोहली जैसे बाल बनाने के लिए बहुत ज्यादा जैल लगाया था.
“मुझे समझ ही नहीं आया क्या करूं,” उन्होंने कहा. “मैंने तुरंत उसके पिता को फोन किया. हमें नहीं पता था कि यह खाने की कोई चीज़ से हुआ या हेयर प्रोडक्ट्स का कोई साइड इफेक्ट था.”
जल्द ही साफ हो गया कि केवल सुपेश ही नहीं था. 2 जनवरी को एक ही परिवार की तीन महिलाओं—32 साल की रत्ना, 14 साल की वैश्णवी, और सात साल की प्रिया विनायक—ने अचानक बाल झड़ने की शिकायत की. ज़िला अस्पताल में डॉक्टरों ने इसका कारण एक शैम्पू बताया.
लेकिन लक्षण जंगल की आग की तरह फैल गए. दो दिन के अंदर बोंडगांव के 35 लोग बाल खो बैठे. अगले हफ्ते तक यह संख्या बढ़ती गई—बुलढाना ज़िले के 18 गांवों में 400 से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए.
“लोग डर कर आने लगे कि उनके साथ और उनके परिवार में क्या हो रहा है,” गांव के सरपंच रमेश्वर ठाकरे ने कहा. “मैंने ज़िला अधिकारियों को कुछ फोन किए, और तब जाकर पता चला कि और भी गांवों में ऐसा हो रहा है. कोविड के बाद, यह हमारे लिए सबसे बड़ी मेडिकल डरावनी घटना रही है.”

गांव बना लैब
अगले कुछ दिनों में बोंडगांव उस रहस्यमयी बीमारी का केंद्र बन गया जिसे स्थानीय लोग ‘गंजेपन वाला वायरस’ कहने लगे. गांव की ओर जाने वाली सड़कों पर एम्बुलेंस, मीडिया वैन और एक के बाद एक रिसर्च टीमों की भीड़ लग गई.
जनवरी से फरवरी के बीच इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), एम्स, हैदराबाद इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज, ज़िला मेडिकल बोर्ड और बावस्कर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक बुलढाना पहुंचे. उन्होंने बालों से लेकर ज़मीन के पानी तक हर चीज़ के सैंपल इकट्ठा किए.
पद्मश्री से सम्मानित डॉ. हिमतराव बावस्कर, जो रायगढ़ जिले के महाड में डॉक्टर हैं, इस बीमारी की वजह पहचानने वाले पहले विशेषज्ञों में शामिल थे. उन्होंने शक जताया कि यह बीमारी पीडीएस के ज़रिए बांटे गए गेहूं में मौजूद सेलेनियम की खतरनाक मात्रा के कारण हो सकती है. सेलेनियम एक ऐसा खनिज है जिसकी शरीर को थोड़ी मात्रा में ज़रूरत होती है, लेकिन ज़्यादा मात्रा में यह ज़हरीला हो सकता है.
डॉ. बावस्कर की जांच में पता चला कि गेहूं में सेलेनियम की मात्रा तय सीमा से 600 गुना ज़्यादा थी.
“बाल झड़ने के साथ ही मरीजों को तेज़ बुखार, उल्टी, सिरदर्द, बहुत ज़्यादा खुजली और चक्कर भी आ रहे थे,” उन्होंने कहा.


डॉ. बावस्कर ने बताया कि यह गेहूं पंजाब और हरियाणा से आया था. मरीजों के खून, यूरीन और बालों के नमूनों में सेलेनियम की मात्रा सामान्य से 35 से 150 गुना ज़्यादा पाई गई. “हमने यह भी पाया कि उनके शरीर में ज़िंक की मात्रा कम थी.”
हालांकि, ICMR के वैज्ञानिकों ने यह मानते हुए कि कुछ सैंपलों में सेलेनियम की मात्रा ज़्यादा थी, इस थ्योरी को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया.
टीम के एक वरिष्ठ शोधकर्ता ने दिप्रिंट को बताया, “बाल झड़ने के अलावा इन मरीजों में कोई समान लक्षण नहीं थे. और कुछ ही हफ्तों में उनके बाल वापस उगने भी लगे.”
अब तक गांववालों को यह नहीं पता चल पाया है कि इस रहस्यमयी बीमारी की असली वजह क्या थी. सैंपल इकट्ठा किए गए और जांच भी हुई, लेकिन अब तक कोई टीम वापस नहीं आई. कई स्वतंत्र शोधकर्ता भी आए और चले गए—लेकिन किसी ने ठोस जवाब नहीं दिया.
ज़िले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम अभी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं. लेकिन जल्द ही अपनी रिपोर्ट महाराष्ट्र राज्य प्रशासन को भेजने वाले हैं.”
बुलढाना के गांवों में भय और कलंक
दहशत सिर्फ बाल झड़ने तक ही नहीं रही. अब जब नई-नई समस्याएं उभर रही हैं और असली वजह अब भी पता नहीं चली है, तो बॉन्डगांव के गांववालों ने एक रणनीति अपना ली है: चुप्पी.
23 साल के आदर्श अंदुरकर ने कहा, “हम नहीं चाहते कि हमें फिर से समाज से अलग-थलग किया जाए.”

उसे याद है कैसे उसकी बस्ती की खबर फैलते ही तीन शादियां टूट गईं. आस-पास के गांवों के नाई बॉन्डगांव के लोगों के बाल काटने से मना करने लगे, उन्हें डर था कि बीमारी फैल जाएगी. गांव मज़ाक का विषय बन गया. एक मराठी अख़बार ने तो ‘बळी-बल्या’ नाम से एक कविता भी छाप दी—जिसमें बॉन्डगांव की गंजीं महिलाओं का मज़ाक उड़ाया गया और आसपास के कस्बों के कुंवारे लड़कों को उनसे शादी न करने की चेतावनी दी गई.
आदर्श ने कहा, “महीनों तक हमें अछूतों की तरह देखा गया. आज भी जब बाहरी लोग गांव में आते हैं, तो यहां का खाना-पानी छूते तक नहीं.”
एक शांत विरोध के रूप में, आदर्श और उसके 11 दोस्तों—जिन्हें ये बीमारी नहीं हुई थी—ने एकजुटता दिखाते हुए अपना सिर मुंडवा लिया.

लेकिन “गंजे गांव” का टैग अब भी जुड़ा हुआ है.
आदर्श ने कहा, “लोग कहते हैं ‘बाल सब कुछ नहीं होते,’ लेकिन ये सच नहीं है। हिंदू धर्म की मिथक को देखो—भगवान शिव ने अपने जटाओं से वीर भद्र और भद्र काली का निर्माण किया था. देवियां जैसे दुर्गा, सरस्वती, और काली हमेशा लंबे बालों के साथ दिखती हैं. बाल शक्ति का प्रतीक होते हैं.”
बुलढाना के लिए, वो शक्ति अब भी गायब है. और जवाब भी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: शंकरराव चव्हाण से लेकर फडणवीस तक — महाराष्ट्र के वह नेता जो पहले बने CM फिर संभाला जूनियर पद