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Tuesday, 5 November, 2024
होमफीचर‘सिंदूर, बिंदी और कंधे पर AK-47’, J&K, मणिपुर, छत्तीसगढ़ में CRPF की महिलाओं की ज़िंदगी पर एक नज़र

‘सिंदूर, बिंदी और कंधे पर AK-47’, J&K, मणिपुर, छत्तीसगढ़ में CRPF की महिलाओं की ज़िंदगी पर एक नज़र

जब ड्यूटी बुलाती है, तो महिलाएं अपने संस्कार, टीवी साबुन और सभी शौक को पीछे छोड़ देती हैं. पिछले 37 वर्षों में CRPF में आमूलचूल बदलाव हुए हैं—जिनमें अधिक महिलाएं, बेहतर हथियार, ट्रेनिंग और बुनियादी ढांचा शामिल है.

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चुटकी-भर सिंदूर, एक छोटी लाल बिंदी और अपने दाहिने कंधे पर 3 किलो एके-47 बांधे हुए, शशि ने अपने लंबे, काले भीगे बालों को दो रबर बैंड से बांधा और शीशे में आखिरी बार खुद को निहारने के बाद, वो श्रीनगर में ड्रिल के लिए निकल पड़ीं.

करीब एक दशक से शशि की रोज़मर्रा की यही ज़िंदगी रही है.

29-वर्षीय शशि कमांडो और एक पारंपरिक विवाहित महिला की भूमिकाओं के बीच सहजता से संघर्ष कर रही हैं. शशि ड्यूटी पर जाते समय खाकी शर्ट और पेंट पहनती हैं, लेकिन जब वे आगरा में अपने परिवार के पास लौटती हैं, तो वह रंगीन, चमकदार साड़ी पहनती हैं और एक पत्नी, बहू और मां की भूमिका निभाते हुए अपने चेहरे को पल्लू से ढक लेती हैं.

चित्रण: प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट

शशि उन हजारों केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की महिला कर्मियों में से एक हैं, जो इन रीति रिवाजों को गर्व के साथ निभाती हैं. वे भारत के अशांत इलाकों की उसी उत्साह से रक्षा करती हैं, जिस जोश से वे अपने बच्चों की घर में रखवाली करती हैं. उन्हें पता है कि उन्हें क्या चाहिए—दया नहीं बल्कि समानता.

श्रीनगर में डिटैचमेंट यूनिट 135 के बैरक में दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे से ही हो जाती है. बाहर के अंधेरे और कड़ाके की ठंड में महिला अधिकारी पूरी फुर्ति से तैयार होती हैं. कुछ कर्मी नहाने के लिए लाइन में खड़ी हैं, कुछ पानी के गर्म होने का इंतज़ार कर रही हैं. कुछ अधिकारी 12 घंटे लंबे दिन के शुरू होने से पहले अपने कमरे में स्टील की प्लेट में अपना नाश्ता ले जा रही हैं. इस बीच, रसोई में रोटी मेकर, जो जागने के एक घंटे पहले चालू होता है, नाश्ते के लिए परोसी गई रोटियों को बाहर निकालने के बाद लंच पैक के लिए लग जाता है. उस दिन लंच में दाल, चावल, रोटी और तोरी की सब्जी थी. सब कुछ लीकप्रूफ स्टील कंटेनर में पैक होता है.

रसोइया कहती हैं, “रस्से वाली सब्ज़ियां खाना और पचाना आसान होता है, खासकर तब जब हमारी ड्यूटी लंबी होती है. सभी महिलाएं सूखी सब्ज़ी के बजाय उसे खाना पसंद करती हैं.”

नाश्ते के बाद महिलाएं उस कोटे के बाहर कतार में लग जाती हैं, जहां हथियार रखे जाते हैं. वे अपनी राइफल्स उठाती हैं, उन्हें अपने कंधों पर बांधती हैं और ज़मीन पर मार्च करती हैं.

“सावधान; विश्राम…” महिला कमांडर को आदेश देती है. सुबह के 8 बज रहे हैं और दिन की ब्रीफिंग के लिए, डिप्टी कमांडेंट के आने से पहले सैनिक लाइन में लग जाते हैं.

सब-इंस्पेक्टर बसंती पूछती हैं, “सभी जवान ड्यूटी जाने के लिए तैयार हैं?” महिला जवानों का एक सुर में जवाब, “यैस मैम!” डिप्टी कमांडेंट यामिनी को ब्रीफ करने से पहले वह उन्हें याद दिलाती हैं, “चौकियों पर पर्यटकों के साथ विनम्र रहें.”

सुबह की ब्रीफिंग के दौरान महिला सैनिक | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

यामिनी सुनिश्चित करती है कि सभी ने ड्यूटी पर जाने से पहले अच्छी तरह से खाया हो. इसके बाद सैनिक बड़े नीले बुलेटप्रूफ ट्रकों में सवार होने के लिए फिर से कतार में लग जाती हैं जो उन्हें श्रीनगर शहर में महत्वपूर्ण चैक पोस्ट पर ले जाएगा.

इस बटालियन की महिलाएं केंद्रीय दूरसंचार कार्यालय, शंकर आचार्य मंदिर और रेडियो स्टेशन पर तैनात हैं.

उत्तर प्रदेश की रहने वालीं मीना मंदिर में तलाशी बूथ के बाहर खड़ी हैं. कश्मीर में ये पर्यटकों का सीज़न है और वे आज भीड़ नियंत्रण ड्यूटी पर हैं. एक आदमी अपना गो-प्रो कैमरा निकालता है और रिकॉर्डिंग करने लगता है, जिस पर मीना आपत्ति जताती हैं. हार न मानते हुए वो फिर से रिकॉर्डिंग करने लगता है, लेकिन मीना उसे अनुमति नहीं देती हैं. उनकी आंखें उसे और अन्य पर्यटकों को एक लाइन पर ले आती हैं.

बॉडी लैंग्वेज़ से लेकर पोस्चर और आंखों के संपर्क तक, मीना ने एक साल की अपनी ट्रेनिंग के दौरान सीखी हर जानकारी का बारीकी से इस्तेमाल किया है.


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पूर्वोत्तर

मणिपुर में ट्रेनिंग करती CRPF महिला अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

जैसे ही महिला उस्ताद या ट्रेनर सीआरपीएफ कैंप में कमांड की सीटी बजाती है, महिला जवान मार्च करना शुरू कर देती हैं. एक भी पैर सिंक से बाहर नहीं है. फायरिंग रेंज में, सीटी बजती है और सेकंड्स में लाइन लग जाती है. अधिकारी अपने सिर के चारों ओर एक काला पटका लपेटती हैं, अपनी मैग्जिन को लोड करती हैं, पॉजिशन लेती हैं और निशाना लगाती हैं.

असम की एक युवा अधिकारी, बासुमती अपनी INSAS राइफल को बहुत आसानी से संभाल लेती हैं. वो उसे अपना “बेस्ट फ्रेंड” मानती हैं.

अपनी तर्जनी उंगली और अंगूठे को ऊपर उठाते हुए वो 100 मीटर की दूरी पर रखे कार्डबोर्ड पर सटीक शॉट लगाते हुए कहती हैं, “इसमें डरने की क्या बात है? यह सब कुछ कंट्रोल करता है और आप इसे नियंत्रित कर सकते हैं.”

बासुमती और नोवी—दोनों की उम्र तकरीबन 20 साल है—दोनों बैटल ऑब्स्ट्रक्टल्स असॉल्ट कोर्स या बीओएसी के समय से ‘दोस्त’ हैं. उस्ताद के कहने पर छलांग लगाने के लिए 6 फुट ऊंची दीवार की ओर दौड़ती हैं. उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, दोनों महिलाओं ने एक साथ हवा में छलांग लगाई और एक ही साथ धरती पर धाक से कदम रखे और फिर उसी जोश से अगली बाधा को पार करने के लिए आगे बढ़ने लगीं.

नोवी की ऊर्जा कभी कम नहीं होती, चाहे वो दीवार फांद रही हो या एक चट्टान से दूसरी चट्टान पर जा रही हों, भले ही उनके कंधों पर 3 किलो वजनी राइफल लटकी हो. जब वे गोली मारती है, तो निशाने से नहीं चूकती हैं.

प्रत्येक राइफल एक मैगज़ीन से जुड़ी होती है जिसमें 20 से 30 गोलियां होती हैं. जैसे ही वे गोली दागती हैं–तेज़ आवाज़ के बावजूद वे घबराकर पीछे नहीं हटती हैं. अपने साथियों के बीच “चुलबुली” नोवी अपने हंसमुख चेहरे के पीछे कठिनाई से भरा जीवन छिपाती हैं.

मिजोरम से ताल्लुक रखने वाली नोवी ने अपनी सीआरपीएफ शारीरिक परीक्षा उस समय दी जब वे अपनी बेटी को ब्रेस्ट फीडिंग करा रहीं थीं. उनकी बहन ने बिना बताए उनकी ओर से सीआरपीएफ में अप्लाई कर दिया था.

उन्होंने कहा, “मेरे पति को मेरा काम मंजूर नहीं था, लेकिन मैं ट्रेनिंग एग्जाम के लिए गई.” उस समय की यादें उनके ज़ेहन में आज भी ताज़ा हैं, अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा, “मेरे स्तन दूध से भरे होने के कारण सख्त और भारी थे और मेरी शारीरिक परीक्षा के दौरान, दूध निकलने लगा. मैंने अपने स्तनों के चारों ओर एक गमछा लपेटा और ट्रेनिंग जारी रखी.”

इन्फोग्राफिक: सोहम सेन/दिप्रिंट

चेकिंग, तलाशी और दंगा नियंत्रण सीआरपीएफ के निर्धारित कर्तव्यों में से हैं. वैली क्यूएटी (क्विक एक्शन टीम) के तहत अधिक उन्नत कर्तव्यों के लिए पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन यह भी धीरे-धीरे बदल रहा है. 2021 से इसमें महिलाओं की भर्ती की गई है. आज क्यूएटी घाटी में 18 महिलाएं और 108 पुरुष हैं.

अपने चेहरे को पटके से ढक कर, आंखों को प्रोटेक्टिव गियर में बंद करके और शरीर को बुलेटप्रूफ जैकेट से ढक कर, क्यूएटी में महिलाएं बर्फ की मोटी परतों के बीच से गुज़रती हैं और नावों में डल झील में गश्त लगाती हैं. एक बार कॉम्बैट ड्यूटी के लिए बाहर जाने के बाद, पुरुषों और महिलाओं के बीच थोड़ा अंतर होता है.

टीम को घेराबंदी और तलाशी अभियान, घर में दखलअंदाजी (जब उन्हें जबरदस्ती एक निवास में प्रवेश करना होता है), गुप्त संचालन, उग्रवादियों को बेअसर करने और ओवरग्राउंड वर्कर्स को हिरासत में लेने के लिए ट्रेनिंग जी जाती है.

वैली क्यूएटी कमांडो गौरी (बदला हुआ नाम) डल झील पर पेट्रोलिंग के दौरान बताती हैं कि कैसे सीआरपीएफ में उनकी दो पोस्टिंग बिल्कुल अलग रही हैं. श्रीनगर में उनकी पहली पोस्टिंग 2018 में गोल्फ कंपनी (एम) जी88 के साथ हुई थी, जहां वह एयरपोर्ट पर चेकिंग ड्यूटी पर थीं. उनकी दूसरी पोस्टिंग 2021 में वैली क्यूएटी में हुई थी.

उन्होंने कहा, “जब भी हम अपने कैंप से बाहर निकलते थे, भारी पथराव होता था. सीआरपीएफ की बसों में चढ़ते समय भी हम अतिरिक्त सावधानी और सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनते थे. हम अपने कैंपों से बाहर निकलने से डरते थे. यह अब बेहतर है.”

यह आसान नहीं है, लेकिन गौरी और उनके साथी हिमालय की तलहटी में डटे हैं. कोई भी अपनी जगह तब तक नहीं छोड़ता जब तक कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ऐसा आदेश न दिया जाए.

कश्मीर में अमरनाथ यात्रा रूट पर ड्यूटी करती CRPF महिला अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

टीम कमांडो स्वाति (बदला हुआ नाम) भी एलीट क्यूएटी का हिस्सा हैं और अपनी यूनिट में महिलाओं का नेतृत्व करती हैं. हाउस इंटरवेंशन ट्रेनिंग ने उन्हें फिट रखा हुआ है, लेकिन उनके साथी ड्रिल के दौरान घुटने तक गहरी बर्फ में संघर्ष करते हैं. स्वाति उनकी रायफल लोड करने में मदद करती है “पीठ सीधी, आंखें खुली.” वे उनकी पोजिशन को भी ठीक कराती हैं.

बर्फ गिरनी शुरू हो चुकी है, स्वाति अपनी टीम को बगल वाले ब्रिज पर जाने का इशारा करती हैं. महिला अधिकारियों ने पहले भी अमरनाथ यात्रा के दौरान सोनमर्ग के इन इलाकों में पेट्रोलिंग की है. वे इसे इस साल भी करने की योजना बना रहे हैं.

बर्फ कम नहीं हो रही और वे लोग एक कप गर्म चाय के लिए रुके हैं. कुछ मीटर की दूरी पर, छह सीआरपीएफ महिला कर्मी एक बुलेटप्रूफ वाहन से बाहर निकलती हैं और कार के चारों ओर पहरा देती हैं—अपनी पोजिशन से इसकी खिड़कियों और दरवाज़ों को घेर लेती हैं.

HIT करती महिला CRPF अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

यह नज़ारा जो एक ड्रिल जैसा लग रहा था, असल में सातवें सदस्य को प्राइवेसी देने का एक तरीका था, जिसे अपना सैनिटरी नैपकिन बदलना था. “पीरियड्स?” एक सीआरपीएफ महिला दूसरों को असमंजस में देखती है. वे कहती हैं, “इससे कभी कोई प्रॉब्लम नहीं हुई है. हमें इस तरह से ट्रेनिंग दी जाती है.” एक अन्य सैनिक ने कहा, “हम वाहन को कवर करते हैं ताकि अधिकारियों को भी पता चल जाए कि हममें से कोई सैनिटरी नैपकिन पहनने जैसे निजी मामले में शामिल हैं.”

ट्रेनिंग ने पीरियड्स या किसी भी शारीरिक कार्य के बारे में चर्चा करने के बारे में किसी भी शर्मिंदगी को खत्म कर दिया है.

“टॉमबॉय,” रेणु झंकारती है. वो कहती हैं, “इन कार्गो पैंटों में केवल सीआरपीएफ के उपकरण ही नहीं बल्कि हम अपने उपकरण भी रख सकते हैं. सारी औरतें खिलखिलाकर हंस पड़ती हैं.”

छत्तीसगढ़ के जंगलों में

जबकि कश्मीर में महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन बदलने के लिए वाहनों का उपयोग करना सामान्य है, छत्तीसगढ़ में घने जंगल के कारण यह एक लक्जरी है, जिसके माध्यम से सैनिक चौकियों तक पहुंचने के लिए अपना रास्ता बनाते हैं.

छत्तीसगढ़ में बस्तरिया बटालियन में सब-इंस्पेक्टर लता (बदला हुआ नाम) इसे अच्छी तरह से जानती हैं. वे 2001 में श्रीनगर में तैनात थीं और श्रीनगर हवाई अड्डे पर उस समय ड्यूटी पर थीं जब आतंकवादियों ने हमला किया था. लता याद करती हैं, “अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में दो आदमी मेरी गोद में मर गए और मैं कुछ नहीं कर सकी. जिस लड़की को मैं अपनी बांहों में लिए हुए थी, उसे दो गोली लगी थीं.” महिला को नहीं बचाया जा सका था. लता अब छत्तीसगढ़ के एक नक्सल-प्रभावित संवेदनशील इलाके में पोस्टेड हैं जहां स्थानीय निवासियों में संदेह और अविश्वास भरा हुआ है.

छत्तीसगढ़ के जंगलों में पेट्रोलिंग करती CRPF अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

छत्तीसगढ़ में बस्तरिया बटालियन 241 के कंपनी कैंप में 45 पुरुष और महिला कर्मियों को सुकमा की ओर जाने वाले वाहनों के लिए सड़क को साफ करने के लिए लगाया गया है. सहायक कमांडेंट सावित्री (बदला हुआ नाम) के नेतृत्व में, उन्हें तीन टीमों में बांटा गया है—एक मुख्य सड़क को साफ करने के लिए, दूसरे दो को जंगल मार्ग की निगरानी के लिए. इन दोनों टीमों का नेतृत्व महिलाएं कर रही हैं.

सुबह 4 बजे वे राइफल, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) डिटेक्टर और पानी की बोतलों के साथ कैंप में कतारबद्ध हो जाते हैं. सावित्री आदेश देती हैं, “सभी टीमें तैयार हैं? निशि (कमांडर) , आप जंगल के रास्तों से निकलो.”

छत्तीसगढ़ के जंगलों से गुज़रती हुई CRPF महिला अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

बटालियन 241 को राज्य में नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाने का काम सौंपा गया है और इसमें पुरुष और महिला दोनों सैनिक हैं. इसका नाम “बस्तरिया” रखा गया क्योंकि इसमें बस्तर जिले के अधिकारी शामिल हैं. वे दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर से आते हैं— ये जिले माओवादियों से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से हैं. वर्तमान में इस बटालियन में कुल 205 आदिवासी महिलाएं हैं.

कश्मीर के विपरीत, छत्तीसगढ़ में टीमों के लिए बुलेटप्रूफ बसें नहीं हैं. इलाके बड़े वाहनों के लिए अनुकूल नहीं है, और सैनिकों को अपनी चौकियों तक पहुंचने के लिए घने जंगलों से होते हुए लगभग 15 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है.

यह डेमोन्स्ट्रेशन नहीं, बल्कि नक्सली इलाके में रोजमर्रा का असाइनमेंट है. यह एक ‘रोड ओपनिंग पार्टी’ है— एक ऑपरेशन जिसमें मार्ग को सुरक्षित करना शामिल है. सावित्री कहती हैं, “हम क्षेत्र की सुरक्षा का प्रबंधन कर रहे हैं क्योंकि एक महत्वपूर्ण काफिला यहां से गुज़रने वाला है.”

कोई बातचीत नहीं करता है. आईईडी डिटेक्टर ले जाने वाली कतार में पहला व्यक्ति सड़कों के किनारे, पुलों के नीचे और पेड़ों के पास जांच करता है. टीम का नेतृत्व कर रही एक महिला कमांडो के पास एक हुक होता है जो एक छड़ी से बंधा होता है. दूर से एक आईईडी को उजागर करने के लिए हुक काम आता है.

निशि के नेतृत्व में पहली सड़क खोलने वाली पार्टी टीम सूखे धान के खेतों के किनारों पर चलती है. वे रिहायशी इलाके में पहुंचते हैं जहां एक महिला घर के कामों में व्यस्त है. टीम की उपस्थिति ग्रामीणों के बीच कोई दिक्कत नहीं करती है. सीआरपीएफ का होना एक स्वीकृत हिस्सा है. ग्रामीण उन्हें एक बार भी नहीं देखते अपनी दुकान खोलते हैं, अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते हैं और नलकों से पानी लाते रहते हैं सामान्य ज़िंदगी बसर करते हैं.

तेज़ चिलचिलाती गर्मी में, टीम तेज़ लेकिन सावधानी से चलती है. जैसे ही जंगल घना हो जाता है, एक कमांडो, निशी को एक अजीब मधुर ध्वनि के साथ संकेत देता है. बातचीत विशुद्ध रूप से आंखों के संपर्क से होती है और अंत में, निशी धीमी आवाज़ में समझाती है, “कुछ कमांडो पीछे रह गए हैं. वे आ रहे हैं.” चलना जारी रखते हुए, वह कहती है कि जंगल में कहीं भी रुकना असुरक्षित है.

वे एक इलाके में पहुंच जाते हैं और हर जगह बॉर्डर लिमिट का साइन बोर्ड लगा देते हैं. पार्टी अब सुकमा जिले के घाटों में प्रवेश कर रही है.

बटालियन की कई महिलाओं का कहना है कि जब उन्होंने सीआरपीएफ में अप्लाई किया तो उन्होंने किसी को नहीं बताया, यहां तक कि अपने परिवार वालों को भी नहीं. भय चुप्पी और गोपनीयता इस हताशा को बढ़ावा देती है. महिलाओं को डर है कि अगर परिवार वालों को पता चला कि वे सीआरपीएफ में हैं तो उनके गांवों में नक्सली उनके परिवारों को निशाना बनाएंगे.

बस्तर के घने जंगलों में ड्रिल करतीं CRPF महिला अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

27-वर्षीय कांस्टेबल नामी एक आदिवासी महिला है, जो तीन साल पहले 241 बस्तरिया बटालियन में शामिल हुई थीं. उनके पति भी सीआरपीएफ में हैं, वे कैंप के बाहर रहते हैं. जब वे ड्यूटी पर जाते हैं तो अपने बच्चे को मकान मालिक के पास छोड़ जाते हैं. जबकि उनके पति पुरुष आवासीय क्वार्टर में रसोइया हैं, नामी महिलाओं के बैरक में कामकाज संभालती हैं.

वो नक्सलियों के बीच पली-बढ़ी हैं. जब नकसलियों से उनका पहला काउंटर हुआ उस समय वे टीनेज़र थीं. उन्होंने उन्हें बताया कि वे एक स्टूडेंट हैं, तो उन्होंने उसे जाने दिया. नामी ने बताया कि वह भाग्यशाली थीं. उन्होंने आगे कहा, “नक्सल छात्रों के साथ कुछ नहीं करते.” लेकिन वे आदिवासियों को अपने साथ शामिल करने को मनाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं और नृत्य और गायिकी का प्रदर्शन करते हैं.

नामी अब नियमित रूप से अपने माता-पिता से मिलने नहीं जाती.

अपनी आंखों के आंसू पोछते हुए वो कहती हैं, “मां, बाबा कभी-कभी मुझसे मिलने आ जाते हैं. वे गांव वालों से कहते हैं कि वे बाज़ार जा रहे हैं.”  जब नामी को अपने माता-पिता से मिलना होता है, तो वह दोनों के घरों से दूर दूसरे तहसील में जाकर मिलती हैं.

वो कहती है, “मैं घर नहीं गई; यह मेरे और मेरे माता-पिता के लिए सुरक्षित नहीं है. मैंने शादी कर ली. मेरा एक बच्चा है. मेरे परिवार का कोई भी व्यक्ति इनमें से किसी भी मौके पर मेरे साथ नहीं था. इस नौकरी ने मुझे रोज़गार दिया है. मैं अपने माता-पिता, अपने भाई की मदद कर सकती हूं, लेकिन यह लालसा कभी-कभी असहनीय हो जाती है.”

कर्तव्य, आर एंड आर, समारोह

चित्रण: प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट

श्रीनगर में, सहायक कमांडेंट वंदना तोमर 35 बीएन के साथ बुलेटप्रूफ वाहन में हवाई अड्डे पर पहुंचती हैं. वे सर्व-पुरुष कमांड का नेतृत्व करती हैं जो श्रीनगर हवाई अड्डे की रखवाली करता है.

उनके आदेश पर, पुरुष बंकरों, चौकियों और टिकट-जांच केंद्रों की सफाई करते हैं. यह एक व्यस्त दिन होने वाला है क्योंकि हवाई अड्डे पर एक वीआईपी के आने की उम्मीद है.

तोमर का वॉकी-टॉकी बीप करता है और उन्हें वीआईपी की टाइमलाइन के बारे में अपडेट मिलती है. दिन भर, वह अपने कार्यालय से बैरक और फिर हवाई अड्डे तक चक्कर लगाती हैं. लगभग 12 घंटे के बाद, शिफ्ट बदलने का समय आ गया है.

वे आखिरकार चाय के लिए साथी अधिकारियों उषा किरण और यामिनी से मिलने के लिए फ्री हैं. वे श्रीनगर हवाई अड्डे के पास जी88 कैंप में मिलते हैं.

तीनों महिलाएं जम्मू-कश्मीर में प्रमुख बटालियनों की कमांडिंग ऑफिसर रही हैं. उन्हें मिलने का बहुत कम समय मिलता है.

शाम 5 बजे से थोड़ा पहले तोमर अपनी चाय अधूरी छोड़ कर हड़बड़ी में उठ जाती हैं. उनका बेटा स्कूल से वापस आ जाएगा और उन्हें घर पर रहना होगा.

कश्मीर के जी88 बैरक में सलाम करती CRPF महिला अधिकारी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

जी88 बैरक से 25 मिनट की ड्राइव पर, सभी महिलाओं की बटालियन 135 (एम) बीएन के बैरक में रात के खाने की तैयारी शुरू हो चुकी है.

बैरक में सबसे वरिष्ठ कर्मी बसंती वर्मा और अंजू कुमारी तैयारियों की देखरेख करती हैं.

वे उन कुछ महिलाओं में से थीं जिन्हें 1986 के पहले बैच में भर्ती किया गया था, जिसे भारतीय शांति सेना की सहायता के लिए श्रीलंका के जाफना में एयरलिफ्ट किया गया था. दोनों महिलाएं अब 50 के आसपास हैं.

पिछले 37 वर्षों में उन्होंने सीआरपीएफ को विकसित होते देखा है—अधिक महिलाएं, बेहतर हथियार, ट्रेनिंग और बुनियादी ढांचा. महिलाओं की शारीरिक रचना को ध्यान में रखते हुए उनके लिए अनुकूलित बुलेटप्रूफ जैकेटों की शुरुआत की गई. महिला कर्मियों का कहना है कि पहले जैकेट का वजन 18 किलो होता था, लेकिन अब सिर्फ 5 किलो है. खराब मौसम में काम करने वाले सैनिकों के लिए यह एक बड़ी राहत है.

वर्तमान में जी88 में संचार संभाल रही इंस्पेक्टर बबली, इस साल दिसंबर में सीआरपीएफ से रिटायर्ड होने वाली हैं. उनका परिवार दिल्ली में बस गया है और वे लगभग चार दशकों की सेवा के बाद आराम करना चाह रही है.

चित्रण: प्रज्ञा घोष/दिप्रिंट

रात के खाने के बाद बीएन135 के बैरक में बिल्कुल सन्नाटा पसरा हुआ है. अगले दिन इसी रूटीन को दोहराने से पहले महिलाएं सोने के लिए अपने कमरों में चली जाती हैं.

रविवार को ज़्यादातर महिलाओं को अवकाश मिलता है. उस दिन मूड हल्का होता है, सैनिक अपने बालों में मेंहदी लगाती हैं, अपनी आईब्रोज़ ठीक करती हैं—यह कुछ जरूरी कामों का दिन है.

सब-इंस्पेक्टर माया देवी सोने की तैयारी से पहले अपने कॉम्पैक्ट स्पीकर पर अक्षय कुमार की फिल्म सैनिक से कितनी हसरत है हमें गाना सुन रही हैं. कॉन्स्टेबल विभूति देसाई अपने स्मार्टफोन पर परीक्षा की तैयारी कर रही हैं. अन्य लोग रील्स देख रहे हैं, फेसबुक यूज़ कर रही हैं, या अपने पसंदीदा टीवी शो देख रही हैं. आशा अपने फोन पर नागिन का छठा एपिसोड देखने के लिए एक मोटे कंबल में लिपटी हुई है. उसकी सहेली गीतू की पसंदीदा फिल्म गुम है किसी के प्यार में देख रही हैं, जो एक पुलिस अधिकारी की प्रेम कहानी के ईर्द-गिर्द घूमती है.

त्यौहार सीआरपीएफ महिला सैनिकों को आराम करने का सही अवसर प्रदान करते हैं. मणिपुर के कैंप में रामनवमी के दिन मैदान खाली रहता है, लेकिन बैरक में पहली मंजिल पर उत्सव चल रहा है—“जय माता दी” सुनाई दे रहा है और लोग ताली बजा रहे हैं और ढोल पीट रहे हैं. ईसाई महिला कर्मी भी इसमें शरीक होती हैं. वे गीत के बोल नहीं जानती, लेकिन यह उन्हें उत्सव का हिस्सा बनने से नहीं रोकता है.

जब ड्यूटी बुलाती है, तो महिलाएं अपने संस्कार, टीवी साबुन और शौक पीछे छोड़ देती हैं. सहायक कमांडेंट नीरा उपाध्याय श्रीनगर में नए सचिवालय की सुरक्षा की देखरेख करती हैं जहां वह 126 सीआरपीएफ पुरुष कर्मियों की कमान संभालती हैं.

जैसे ही वे बैरक में जाती है, प्रवेश द्वार पर मौजूद गार्ड उन्हें सलाम ठोकता है. वे एक सेक्शन से दूसरे सेक्शन में जाती है, पंजीकरण फाइलों और राशन की जांच करती है. यह बैरकों में निरीक्षण का दिन है; सभी बिस्तरों को बांध दिया जाता है और साफ सफेद चादर से ढक दिया जाता है. जैसे ही वह यहां का निरीक्षण करती है, पुरुष खिड़कियों से झांकने लगते हैं. नीरा करीब तीन साल से कंपोनेंट की कमान संभाल रही हैं. पुरुषों को आदेश देने की नवीनता अभी फीकी नहीं पड़ी है.

वे मुस्कराहट के साथ कहती हैं, “किक आती है, जब हम कमांड देते हैं.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा/हिना फ़ातिमा)

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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