शिमला : मनोज कुमार काम पर जाने के लिए तैयार ही हो रहे थे कि तभी उनके घर की घंटी बजी. और बस उसके कुछ पलों बाद उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया.
दरवाजे के दूसरी तरफ पुलिस थी. बमुश्किल कुछ ही मिनट बीते होंगे, शिमला के 48 साल के इस दुकानदार ने अपना घर खो दिया और खुद को अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सड़क के किनारे एक छतरी के नीचे खड़ा पाया. कुमार का कसूर सिर्फ इतना था कि वह शिमला की एक इमारत में बने एक फ्लैट के मालिक थे. कच्छीघाट इलाके में सितंबर 2021 में उस रात कुमार के साथ बहुत से लोगों को अपने घरों को खाली कर दूर जाने का आदेश दिया गया था. क्योंकि उनकी बिल्डिंग से सटी एक नौ मंजिला इमारत दर्शन कॉटेज ढहने वाली थी. और जब उनके घर से सटी इमारत ढह रही थी तो वे हैरानी के साथ उसे देख रहे थे.
कुमार ने कहा, ‘यह मेरे जीवन का सबसे बुरा समय था, मैं इसे याद भी नहीं करना चाहता. यह काफी दुखदायी है.’
कुमार शिमला के खराब विकास और अधिकारियों की घोर उपेक्षा के शिकार लोगों में से एक हैं. वह एक साल तक अपने घर नहीं लौट सके, क्योंकि उनकी बिल्डिंग का ढांचा भी असुरक्षित था और उसके भी दर्शन कॉटेज की तरह गिर जाने की पूरी आशंका थी.
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निवासियों के लिए खतरा
समय के बीच फंसा शिमला विकास की सही योजनाएं खोजने के लिए संघर्ष कर रहा है. ऐसी योजनाएं जो इसकी विरासत को नया कर सके, पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखे और इसकी आबादी की जरूरतों को पूरा कर सके.
हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े शहर के रूप में इसकी आबादी लगभग तीन लाख है. समुद्र तल से 2,276 मीटर की ऊंचाई पर स्थित शिमला, लोगों को सिर छिपाने की जगह देने के लिए संघर्ष कर रहा है. हिमाचल प्रदेश के लोग बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए शिमला में घर बनाना पसंद करते हैं. शहर आगे तक फैलता जा रहा है लेकिन गैर-नियोजित तरीके से. इसकी अतिरिक्त ‘अस्थायी’ आबादी लगभग 70,000 (2041 के ड्राफ्ट डेवलपमेंट प्लान के अनुसार) है. शहर में बड़े पैमाने पर जाम लग जाता है जो बेंगलुरु की तरह इसकी एक पहचान बन सकता है. यहां पार्किंग की जगह भी धीरे-धीरे पहुंच से बाहर होती जा रही है. इसके अलावा यहां पानी भी खत्म हो रहा है.
लगभग आधी सदी तक शिमला का बुनियादी ढांचा 1979 में तैयार की गई एक अंतरिम विकास योजना पर आधारित रहा. शहर में गलियों को उकेरा जा रहा था. जय राम ठाकुर ने फरवरी 2022 में सरकार की ओर से 2041 का ड्राफ्ट डवलपमेंट प्लान को पेश किया. लेकिन इसे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने रद्द कर दिया. मॉनिटर्ड डवलपमेंट की कमी ने शिमला को तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है.
शिमला नगर निगम (एसएमसी) की हैज़र्ड वल्नरेबिलिटी एंड रिस्क असेसमेंट रिपोर्ट (HVRA) के मुताबिक, कच्छघाट की तरह शहर में कई इमारतें ढह रही हैं. शहर की 65 प्रतिशत इमारतों को ‘काफी कमजोर’ बिल्डिंग की कैटेगरी में रखा गया है. रिपोर्ट बताती है कि शिमला में भूकंप का केंद्र होने पर 5,000 से 20,000 लोगों की मौत हो सकती है.
शिमला उपनगर जनकल्याण समिति और शिमला संघर्ष समिति के संयोजक छत्रंत सिंह ने बताया, ‘1888 में बनी टाउनहॉल इमारत भी भूकंपरोधी है, लेकिन नई बिल्डिंग्स के साथ ऐसा नहीं हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘रिज का उत्तरी ढलान धंसता चला जा रहा है. ग्रांड होटल वेस्ट, लक्कड़ बाजार नीचे जा रहे हैं.’
अखबारों में भूस्खलन की खबरें आए दिन की बात होती जा रही हैं. जुलाई में चौपाल बाजार में एक और चार मंजिला इमारत गिर गई थी.
शिमला की सबसे खराब स्थितियां, इसके कृष्णा नगर में साफतौर पर देखी जा सकती है. यह 4000 से ज्यादा की आबादी वाला एक अनधिकृत स्लम एरिया है. इसमें ज्यादातर हिमाचल, बिहार और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों से आए मजदूर और प्रवासी मजदूर शामिल हैं. एक हिल स्टेशन की सुरम्य सुंदरता यहां कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी. यहां रहने वाले लोगों के पास खुद को ढांपने के लिए कपड़े तक नहीं है. इलाके में अराजकता फैली हुई है.
सड़क पर बढ़ रहा संकट
वीकेंड और पीक आवर में शिमला का ट्रैफिक बेंगलुरु को भी कड़ी टक्कर दे सकता है.
शहर में रहने वाली एक पूर्व पार्षद माला सिंह ने बताया, ‘अगर मुझे कभी भी किसी आपात स्थिति में अस्पताल ले जाने की जरूरत हुई, तो मैं कभी भी समय पर नहीं पहुंच पाऊंगी.’
पीक ट्रैफिक में कारों की औसत गति सिर्फ 10 किमी/घंटा है. शहर में लगभग 18 किलोमीटर लंबी एक मुख्य आर्टेरिअल सड़क (कार्ट रोड) है. शिमला को कार्ट रोड से जोड़ने वाली नगर निगम की सड़कें 74.8 किलोमीटर लंबी हैं. विडंबना यह है कि ब्रिटेन के सबसे प्रसिद्ध टाउन प्लानर ‘ट्रैफिक इन टाउन’ के लेखक सर कॉलिन डगलस बुकानन शिमला से हैं.
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बेतरतीब निर्माण
शिमला को शुरू में ब्रिटिश राज के समय में लगभग 25,000 लोगों के रहने की योजना के साथ बसाया गया था. और उनकी इस योजना को कॉलोनी की अपार संपत्ति और वैज्ञानिक कौशल ने संभव बनाया था.
आजादी के बाद जब हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा मिला, तो शिमला में सभी योजनाएं वर्ष 1979 में बनाई गई एक अंतरिम विकास योजना के आधार पर तैयार की गईं. शहरी विकास के मुद्दों के लेखक और शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र सिंह पंवार ने कहा, ‘अंतरिम विकास योजना ने योजनाबद्ध तरीके की बजाय शिमला में तेजी से लोगों को बसाने का काम किया.’ इसी के साथ वह आगे कहते हैं, ‘ योजना में आपदा जोखिम के कम होने या राहत के लिए रणनीति या जल्दी और आसानी से यहां से वहां जाने की कोई योजना नहीं है.’
शिमला में निर्माण का लगभग 90 फीसदी काम 60-डिग्री ढलानों पर किया गया है, जो वास्तुशिल्प और भूवैज्ञानिक मानदंडों के खिलाफ हैं. इस वजह से ये इमारतें प्राकृतिक आपदाओं के लिए अतिसंवेदनशील हो जाती हैं.
शिमला के चारों ओर घूमते हुए आपको ‘कोर’ एरिया में भी बड़ी-बड़ी बिल्डिंग दिख जाएंगी. कोर एरिया में ही हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की 13 मंजिला इमारत है, जिसकी मरम्मत एनजीटी के आदेश के बाद से नहीं हो पाई है. यह यहां रहने वाले लोगों के लिए के लिए एक दुख की बात है जो अपनी समस्याओं के बारे में शिकायत करते हुए इमारत को ऊपर लाने में कभी असफल नहीं हुए है.
इस साल फरवरी में प्रकाशित, ड्राफ्ट डेवलपमेंट प्लान- शिमला प्लानिंग एरिया 2041 में शहर के विकास की समस्याओं के बारे में बताया गया है. जोन IV भूकंपीय क्षेत्र, शिमला में ऐसी कई सोफ्ट स्टोरी इमारतें हैं जिनके न सिर्फ ग्राउंड फ्लोर बल्कि ऊपरी फ्लोर पर बने घर भी काफी ‘सॉफ्ट’ हैं. एक ‘सॉफ्ट स्टोरी’ का मतलब एक ऐसा फ्लोर है जो अपनी इमारत की नीचे की बाकी मंजिलों से कमजोर है. यहां की इमारतें भी अनियमित एल, एच, या यू डिजाइन में बनाई गई हैं जो भूकंप का सामना नहीं कर सकती हैं. वे एक-दूसरे के साथ काफी सटी हुईं है, जो खतरे को बढ़ाती हैं. छोटी इमारतों पर ऊंची इमारतों के स्तंभों गिरने से वह टूट सकती हैं. शिमला की कुल आबादी का लगभग चार प्रतिशत भू-स्खलन की संभावना वाले डूब क्षेत्रों की मलिन बस्तियों में रहता है.
2017 में, एनजीटी ने शिमला के हरित क्षेत्रों में किसी भी तरह के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके अलावा मुख्य एरिया के बाहर सिर्फ दो मंजिला और एक अटारी के निर्माण की अनुमति दी गई. उन्होंने कहा था कि अनियोजित गतिविधियों से ‘पर्यावरण, पारिस्थितिकी और प्राकृतिक संसाधनों का अपूरणीय क्षति और नुकसान हो सकता है. ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण कार्यकर्ता योगेश मोहन सेनगुप्ता की 2014 की याचिका पर कार्रवाई करते हुए यह फैसला सुनाया था.
एनजीटी के आदेश पर पेश की गई 2041 की विकास योजना में शहर में निर्माण पर कुछ छूट देने की मांग की गई. योजना में ग्रीन जोन में निजी स्वामित्व वाली जमीन – कुल ग्रीन जोन का 6.28 प्रतिशत – पर कोई पेड़ नहीं काटने की शर्त पर निर्माण की अनुमति देने के लिए कहा गया.
इसमें कोर और नॉन-कोर एरिया में निर्माण की अनुमति और मंजिलों की संख्या ढाई मंजिल से साढ़े तीन तक बढ़ाने की बात भी कही गई.
जुलाई में एनजीटी ने इस विकास योजना को रद्द कर दिया. ट्रिब्यूनल ने कहा, ‘यह दर्शाता है कि हिमाचल प्रदेश राज्य एनजीटी को दरकिनार करते हुए अपील प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र को ग्रहण करने की कोशिश कर रहा है. यह कानून का उल्लंघन है. एक वैध सरकार से इसकी उम्मीद नहीं की जाती है,जिसे कानून और संविधान के अनुसार काम करना है, न कि अपनी पसंद के अनुसार जैसा कि मामला प्रतीत हो रहा है. राज्य के अधिकारियों के ऐसे अवैध कार्यों के लिए कानूनी रूप से मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिए.’ ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा, ‘ऊपर उल्लिखित सबमिशन के मद्देनजर, हमने हिमाचल प्रदेश राज्य की योजना में टिप्पणियों और प्रस्तावों को पूरी तरह से अवैध पाया है.’
पंवार ने कहा, ‘एनजीटी ने विकास योजना के मसौदे को न्यायसंगत तरीके से रद्द कर दिया. विकास योजना का मसौदा एक लैंड-यूज डॉक्यूमेंट है, न कि एक कोई इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान. यह शहर को मैदानी इलाकों की तरह जोन में बांटने के उसी पुराने फार्मूले पर आधारित है. यह अवैज्ञानिक है. यह पहाड़ी वास्तुकला के बारे में बात नहीं करता है.’ वह आगे कहते हैं, ‘उदाहरण के लिए कृष्णा नगर के पास का क्षेत्र हरा- भरी जंगल हैं, लेकिन उसे हरित क्षेत्र से बाहर रखा गया है.’
पंवार ने सुझाव दिया कि क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाने के बजाय, ऐसे क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए जहां पहाड़ भारी निर्माण को झेल सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में भरपूर धूप रहती है, जो चट्टान को सख्त और मजबूत बना देती है. ये पहाड़ ऊंची इमारतों के निर्माण के लिए उपयुक्त हैं, जबकि दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में सूरज की रोशनी पर्याप्त नहीं है. वहां की मिट्टी नम है. इन क्षेत्रों में मंजिलों की संख्या पर अंकुश लगाया जा सकता हैं.’
यहां रहने वाले लोगों का संघर्ष
53 साल के अविंदर पाल सिंह का शिमला में एक खूबसूरत घर है. उनके पिता एक ब्यूरोक्रेट थे. उन्होंने शहर में जमीन का एक बड़ा टुकड़ा खरीदा और 60 के दशक के अंत में शहर में रहने के लिए एक घर बनाया. ये प्लॉट नगर निगम ने नीलाम किए गए थे. चूंकि अब वह इस जमीन पर कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं कर सकते हैं, इसलिए उनकी अधिकांश जमीन का हिस्सा खाली पड़ा है.
सिंह ने कहा, ‘मैंने इस जमीन पर एक होटल बनाने की उम्मीद से ट्रेवल एंड टूरिज्म में डिग्री हासिल की थी. लेकिन नगर निगम आयोग ने इस भूमि को हरित क्षेत्र का हिस्सा घोषित कर दिया. जिसके बाद, मैं यहां कोई गतिविधि नहीं कर पाया.’
अंतरिम विकास योजना में संशोधन करके दिसंबर 2000 में अतिरिक्त हरित क्षेत्रों को अधिसूचित किया गया था. उनमें सिंह का घर भी था.
वह उन लोगों में शामिल हैं, जो शिमला के कोर एरिया में किसी भी निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने और शिमला के नॉन-कोर एरिया में दो मंजिला और एक अटारी से ज्यादा निर्माण पर प्रतिबंध लगाने के एनजीटी के आदेश से असहमत हैं.
पाल सिंह ने कहा कि कंस्ट्रक्शन पर बैन लगाने में और भी नापाक साजिश है. उनके मुताबिक, ‘शिमला में एनजीटी के प्रतिबंध से पहले कमर्शियल और इंफ्रास्ट्रक्चरल प्रोजेक्ट के लिए 2,000 करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद थी. प्रतिबंध के बाद, उन सभी निवेशों को ट्राई सिटी चंडीगढ़ में शिफ्ट कर दिया गया. सभी निवेशों को ट्राईसिटी में रहने और शिमला नहीं आने के लिए लॉबिंग की जा रही है.’
नागरिक-नेतृत्व वाले आंदोलन और संगठन भी निर्माण पर प्रतिबंध से लड़ रहे हैं क्योंकि यह उनके रोजगार में बाधा बन रहा है. इन सालों में शिमला म्युनिसिपैलिटी ने भी विस्तार किया है और शिमला के बाहर के गांव जैसे नए क्षेत्रों को भी अपने दायरे में ले लिया है. शिमला उपनगर जनकल्याण समिति और शिमला संघर्ष समिति के संयोजक छत्रंत सिंह चतरंता ने कहा, चूंकि गांव की जमीन एसएमसी के तहत आती है, इसलिए उनकी निजी स्वामित्व वाली जमीन रेगुलराईज्ड हो गई. और वे इस पर निर्माण नहीं कर पाए हैं क्योंकि यह अब ग्रीन जोन में आती है. नॉन-कोर एरिया में अति-विकास के लिए अग्रणी पर्यटन उद्योग ऊंची इमारतों का निर्माण कर रहा है. चतरंत ने कहा, ‘इससे शिमला का कांक्रीटीकरण हुआ है.’
(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां संपर्क करें)
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