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Friday, 8 November, 2024
होमफीचररेत खनन नया नशा है, राजस्थान के गिरोह नकद, कैरियर, लूट की पेशकश करते हैं

रेत खनन नया नशा है, राजस्थान के गिरोह नकद, कैरियर, लूट की पेशकश करते हैं

रेत माफियाओं ने अवैध नदी खनन को एक संपन्न उद्योग में बदल दिया है, रंगरूट युवाओं और ग्रामीणों को पैसा और पावर वादे के साथ लुभाया जा रहा है. अपराध और गड्ढायुक्त नदियां एक ही सिक्के के दो पहलू बन चुके हैं.

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नागौर/सवाई माधोपुर: वह अगस्त महीने की एक दरिम्यानी रात थी जब आधी रात के समय राजस्थान के नागौर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग 485 पर दर्जनों एसयूवी, कैंपर और डंपर ट्रकों ने करीब 90 मिनट तक एक-दूसरे का पीछा करते हुए दिखाई दिए. काफिला कुछ ही मिनटों में 25 किलोमीटर तक सात गांवों को पार कर गया. इस दौरान जबरदस्त फायरिंग और पथराव भी हो रहा था. यह एक अलग प्रकार का माफिया युद्ध था. दांव पर दो ट्रक थे जो कुछ बहुमूल्य चीज़ों से भरे हुए थे और भारत की विकास गाथा का केंद्र थे. क्योंकि इसमें नदियों से अवैध रूप से खोदी गई रेत भरी हुई थी.

खून-खराबा इस पूरे खेल का हिस्सा है. उस गर्मी की रात तेज गति से जाते एक डंपर ने संजू शहर के पास जानबूझकर 29 वर्षीय राजूराम जाट को कुचल दिया. वह वहीं मौके पर ही मर गया. वह रेत को लेकर चल रहे गैंगवार में अपने चचेरे भाई का समर्थन करने के लिए रात में निकला था. गांव के तीन गिरोह – जिनके नाम 0044, 4700 और बीएमसी हैं – पास की लूनी नदी से रेत पर एकाधिकार के लिए पिछले छह वर्षों से लड़ाई कर रहे हैं.

पिछले दो दशकों में भारत में आए इन्फ्रास्ट्रक्चर में आए अभूतपूर्व उछाल ने एक नई तरह की ग्रामीण और छोटे शहरों की आपराधिकता को जन्म दिया है जिसे रेत माफिया कहा जाता है. और यह व्यवसायों, राजनेताओं और गैंगलॉर्डों को एक दूसरे से जुड़े लालची चक्र में कसकर लपेट दिया है, जिसके परिणामस्वरूप कई भारतीय राज्यों में हिंसक हमले, हत्याएं और नदियां बर्बाद होती जा रही हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में, अवैध रेत खनन युवाओं के लिए सबसे नया कमाई का साधन है जो उन्हें अमीरी की राह पर ले जा रहा है. यह आने वाले समय में शुरुआत में ड्राइवर से लेकर गैंग लॉर्ड बनने तक अच्छी तरह से निर्धारित कर रहा है –

और ये सब सरकार की निगरानी में हो रहा है.

लूनी नदी के सूखे तल में रेत का भंडार और गहरे गड्ढे। यह ताजा खनन वाला क्षेत्र था | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

जयपुर स्थित एक बिल्डर, जितेंद्र कुमार शर्मा ने कहा, “सरकार के पास दो दुधारू गाय है – शराब और रेत. कानूनी या अवैध, सरकार उन्हें दोनों तरीकों से पसंद करती है. ”

उन्होंने कहा, ” रेत खनन अपराधीकरण का एक बाई प्रोडक्ट है.”

इसमें लाभ सबसे अधिक मिलता है. आज, नदी के किनारे की ज़मीन की कीमत प्राइम हाईवे रियल एस्टेट से भी अधिक है.

लूनी, बनास और काटली नदियां मौसमी हैं, जो केवल मानसून के दौरान बहती हैं. लेकिन रेत खनन के कारण बने गहरे गड्ढे अब इस मौसम में भी पानी को बहने से रोकते हैं.


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खून पैसा, राजनीति, जाति

किराना दुकान के मालिक राजूराम की हत्या से पूरे क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई, जिस वजह से खनन कार्य दो दिनों के लिए बंद कर दिया गया. इस बीच लूनी नदी अजीब तरह से शांत दिखी. ट्रैक्टर, ट्रक और जेसीबी ढाबों और पेट्रोल पंपों के बाहर खड़े रहे. प्रतिद्वंद्वी गिरोहों के सभी रेत माफिया वहां से भाग गये.

लेकिन सिर्फ 48 घंटे बाद ही बड़ी ही बेशर्मी के साथ पैदल कुदाल उठाए मजदूर नदी तक पहुंच गए और जेसीबी उत्खननकर्ताओं के साथ लौट आए, और अपने अभियान को कुछ पुलिसवालों की उपस्थिति में ट्रांसफर कर दिया.

नागौर की रियान बड़ी तहसील में लूनी नदी का सूखा तल, राजस्थान में अवैध रेत खनन केंद्रों में से एक है | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

फिर, लगभग एक महीने बाद, स्थानीय समाचार पत्रों ने नागौर पुलिस को “राजूराम हत्याकांड” में बीएमसी गिरोह के सदस्य राणेश कामेड़िया की गिरफ्तारी के साथ सफलता की सूचना दी.

17 सितंबर का एक पुलिस नोट जो हिंदी में लिखा गया था और मीडिया हाउसों को भेजा भी गया था, उसमें लिखा था, “हत्या का मुख्य आरोपी रानेश हैदराबाद, बेंगलुरु और तमिलनाडु में ग्रेनाइट कारखानों में छिपा हुआ था. पुलिस ने 150-200 ग्रेनाइट फैक्ट्रियों की तलाशी ली, सीसीटीवी फुटेज की जांच की और उसे पकड़ने के लिए टोल बूथ की भी जांच की. ”

हालांकि, जो बात सुर्खियों में नहीं आई, वह अब चर्चा का विषय बन गई है – गैंगवार की जानकारी और ‘मुआवजे’ के लिए बातचीत की गई.

मेड़ता तहसील के उनके गांव डांगावास में रेत माफिया, स्थानीय राजनेताओं, पंचायतों और राजूराम के परिवार के बीच लगभग दो महीने से चुपचाप बैठकें भी कर रहै हैं और उनके साथ सौदेबाजी भी चल रही है.

Rajuram Jat
पीड़ित राजूराम जाट नागौर के डांगावास गांव का एक किराने की दुकान का मालिक और पारिवारिक व्यक्ति था। जिस रात उसे मार डाला गया, वह 0044 गिरोह से जुड़े अपने चचेरे भाई का समर्थन कर रहा था | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

इस पूरे मामले में हर कोई शामिल है, लेकिन कोई भी आक्रामक रूप से कानूनी न्याय की मांग नहीं कर रहा है. इसके बजाय, इसके केंद्र बिंदु में मुआवजे की मांग जारी है, जिसके बारे में अफवाह है कि यह मांग लगभग 1 करोड़ रुपये है.

राजूराम के चचेरे भाई सुनील जाट जो गैंगवार शुरू होने की रात उसके साथ थे ने कहा, “जो कुछ हुआ उससे हम आहत हैं. लेकिन हम उन लोगों के लिए समझौता कर रहे हैं जो पीछे रह गए हैं – उसकी पत्नी और दो बच्चे.”

सुनील पर पुलिस ने एक जवाबी एफआईआर दर्ज की थी और जिस दिन दिप्रिंट ने उनसे मुलाकात की थी, उस दिन वह जमानत पर बाहर थे.

इस सारे मामले को जो जटिल बनाती है वह यह है कि जाति और राजनीति गैंगवार एकसाथ अंदर तक जुड़े हुए हैं.

रेत अपराध के सरगना-बड़े और छोटे-स्थानीय राजनेताओं को सहयोग करते हैं और चुनाव अभियानों के दौरान वो सबी स्थानीय बाहुबली बन जाते हैं. उनका प्रभाव फैलने की बात भी समाज में तेजी से फैलती है और जो विरोध के लिए खड़े हो रहे होते हैं वो चुप्पी साध लेते हैं.

4700 के मनीष सोमरवाला और बीएमसी के रनेश जैसे रेत माफिया की ‘सफलता की कहानियां’ बॉलीवुड स्वैग और ताकत के प्रदर्शन के साथ घूमती हैं. वे कई ग्रामीण युवाओं के लिए आदर्श हैं.

रानेश कामेड़िया – जो अपने सोशल मीडिया पर रणेश राणा चौधरी के नाम से जाने जाते हैं – इसका एक प्रमुख उदाहरण है.

डिंपल गाल वाले और आकर्षक 28 वर्षीय रनेश इंस्टाग्राम पर खुद को “राजनीतिक नेता” कहते हैं. उनका अकाउंट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के नेता और बड़ी संख्या में जाट फॉलोअर्स वाले नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के साथ सेल्फी से भरा हुआ है.

Ranesh
हत्या के आरोपी राणेश कामेडिया उर्फ राणेश राणा चौधरी (चेक शर्ट में) जनवरी में नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल के साथ | फोटो: फेसबुक/@Ranesh Rana Choudhary

सुनील ने दावा किया, “राणेश सांसद हनुमान बेनीवाल के करीबी हैं, हम नहीं. राणेश उनके चुनाव अभियान का समर्थन करते हैं.”

नागौर स्थित पत्रकार प्रेम सिंह शेखावत ने दावा किया कि इस साल की शुरुआत में, जब सांसद बेनीवाल ने जन आक्रोश रैली की, तो जेसीबी की एक कतार ने उन पर फूल बरसाए, जिनमें से एक राणेश का भी था. राणेश नागौर में बेनीवाल की रैली के विज्ञापन वाले होर्डिंग पर भी प्रमुखता से दिखे.

जबकि बेनीवाल ने “बजरी (रेत) माफिया” के खिलाफ जोरदार भाषण दिए हैं, उनकी अधिकांश बयानबाजी राजपूत समुदाय के कानूनी संचालक खनन व्यापारी मेघराज सिंह ‘रॉयल’ के इशारों पर चल रहा है.

सुनील ने आरोप लगाया, ”बेनीवाल मेघराज सिंह के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उसके पीछे राणेश और उसका गिरोह है.”

हालांकि, बेनीवाल ने तर्क दिया कि उनका उद्देश्य नदी की रेत पर मेघराज सिंह के “एकाधिकार” को समाप्त करना था.

बेनिवाल ने कहा, “मेघराज ने राजस्थान के पूरे रेत कारोबार पर कब्जा कर लिया है. वह असली माफिया हैं, छोटे पैमाने पर काम करने वाले युवा नहीं. जब मैंने उसकी अवैध गतिविधियों के खिलाफ पांच-सात एफआईआर दर्ज कीं, तो उसने नागौर से अपना बैग पैक कर लिया है. लेकिन अभी भी रेत का भंडार है, जो अवैध है.”

Ranesh Kamedia hoarding
हनुमान बेनीवाल की जन आक्रोश रैली की घोषणा वाले होर्डिंग में राणेश कामेड़िया भी हैं | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

उन्होंने कहा, अगर आरएलपी आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव में पर्याप्त सीटें जीतती है, तो पार्टी रेत खनन का लोकतंत्रीकरण करने पर जोर देगी. आरएलपी राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से लगभग 100 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

उन्होंने कहा, “अगर मुझे 80 सीटें मिलती हैं, तो मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि सरकार कुछ हेक्टेयर के छोटे पट्टे देने की नीति लाए. यह खनन व्यवसाय में आम लोगों को शामिल करने का तरीका है और इससे अवैध खनन भी रुकेगा.”

बेनीवाल ने इन आरोपों का खंडन किया कि वह राणेश कमेड़िया के करीबी हैं. उन्होंने कहा, “मेरी रैली में जेसीबी पर रेत माफिया नहीं लिखा था. जहां तक राणेश की बात है तो कोई भी मेरे साथ फोटो ले सकता है. इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उनका समर्थन कर रहा हूं.”


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बेहतर जीवन की तलाश

रेत गांव के युवाओं के लिए तुरंत आसान पैसा लाती है. अनगिनत स्कूल और कॉलेज छोड़ने वाले लोग इस लाइन में कूद रहे हैं – उनके करियर रोल मॉडल 4700 के मनीष सोमरवाला और बीएमसी के राणेश हैं. ये ‘सफलता की कहानियां’ बॉलीवुड के स्वैग और ताकत के प्रदर्शन के साथ घूमती हैं – फैंसी कारें, ताकत का प्रदर्शन, और शहर के फैंसी रेस्टोरेंट में रातें. ये आसानी से आए पैसे तेजी से सामने आ रहे हैं.

इसमें एक पदानुक्रम है, लेकिन इसमें अभ्यर्थी तेजी से सीढ़ी ऊपर चढ़ सकते हैं.

किशोर अक्सर जेसीबी चालक के रूप में या राजमार्गों और कच्ची सड़कों के माध्यम से रेत से भरे ट्रैक्टरों और ट्रकों का नेतृत्व करने वाले एस्कॉर्ट्स के रूप में शुरुआत करते हैं. एस्कॉर्ट्स को हाई अलर्ट पर रहना होता है और संभावित छापे की भनक लगने पर गिरोह के सदस्यों को चेतावनी देनी होती है. जोखिम भरी नौकरी में प्रति माह केवल 10,000-15,000 रुपये मिलते हैं, लेकिन जिनके पास टिकने की क्षमता है उनके पास आगे बढ़ने के लिए कई रास्ते होते हैं.

Informants on the road
रेत माफिया के लिए मुखबिर के रूप में काम करने वाले युवाओं का एक समूह। जब भी वे क्षेत्र के बाहर से वाहनों का पता लगाते हैं तो वे रिंग के व्हाट्सएप ग्रुप्स को सचेत करते हैं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

अच्छा प्रदर्शन करने वालों को अंततः व्यवसाय में हिस्सेदारी मिलती है – 5 प्रतिशत से शुरू होती है और समय के साथ बढ़ती जाती है – और कई लोग अपने स्वयं के डंपर या ट्रैक्टर में निवेश करते हैं. लेकिन आम तौर पर राणेश बनने में लगभग पांच साल लग जाते हैं, जिनका काम गिरोह के प्रतिद्वंद्वियों को प्रबंधित करना, चुनावों के दौरान बाहुबल और धनबल प्रदान करना और रेत व्यवसाय को बढ़ाना है.

नागौर के दानगवास गांव का अपराधी राणेश शराब की दुकान चलाता था, लेकिन 2017 के आसपास अवैध रेत खनन में शामिल हो गया.

आज, उनके करियर की प्रगति शहर में चर्चा का विषय बनी हुई है – उन्होंने 30 से अधिक लोगों को रोजगार दिया है, उनके जन्मदिन की पार्टी गांव में सबसे बड़ी होती है, और सांसद उनके साथ घनिष्ठता से पेश आते हैं.

रानेश को कानूनी खनन दिग्गज मेघराज सिंह के लिए एक चुनौती और युवा लड़कों के लिए एक सलाहकार के रूप में देखा जाता है. डीजे रीमिक्स पर आधारित उनकी एक इंस्टा पोस्ट में उन्हें एक किशोर को जेसीबी चलाना सिखाते हुए दिखाया गया है. कैप्शन कहता है, “नया मैम्बर जोड़ें.”

Ranesh
रनेश एक ‘फिल्मी’ स्टंट करते हुए | फोटो: इंस्टाग्राम/@ranesh_rana_choudhary_official

एक और ‘अचीवर’ हैं नागौर के झिनितिया गांव के 27 वर्षीय महेंद्र अनवाला.

उनके सहयोगियों के अनुसार, उन्होंने अवैध रेत खनन करने वालों के लिए एक अनुरक्षक के रूप में, चौराहों पर पुलिस की निगरानी करना और खनन कार्यालयों में बातचीत पर नजर रखना सीखा.

इस काम पर लगभग पांच महीने के बाद, अनवाला ने रेत खनन के लिए 3,000 रुपये प्रति दिन पर एक जेसीबी किराए पर लेना शुरू कर दिया.

नाम न छापने की शर्त पर एक प्रशंसक सहयोगी ने दावा किया, “प्रत्येक दिन, वह 50 ट्रैक्टर भरता था और हर महीने कम से कम 4 लाख रुपये का मुनाफा कमाता था.”

कुछ साल पहले उसने अपने चाचा भीयाराम और साथी चेनाराम के साथ मिलकर बीएमसी गैंग बनाई थी. तब से वे भूमि को पट्टे पर देने से हटकर इसके मालिक बन गए हैं और अब उनके पास एक पोकलेन उत्खननकर्ता, दो जेसीबी और तीन डंप ट्रक हैं. वे काली स्कॉर्पियो में आते जाते हैं, जो अवैध खननकर्ताओं के लिए सम्मान का प्रतीक है. राणेश भी उनके गिरोह में एक शक्ति केंद्र के रूप में उभरा है.

हर कोई कार्रवाई में शामिल होना चाहता है. पिछले एक दशक में, कई परिवारों ने अपने गेहूं और बाजरे के खेत बेच दिए हैं और रेत खनन की ओर रुख कर लिया है. अन्य लोगों ने नदी के किनारे की भूमि बेचने और अन्य जगहों पर कृषि याफिर आवासीय भूखंडों में निवेश करने पर खूभ लाभ कमाया है.

सफलता के संकेतों में नवीनतम आईफ़ोन का मालिक होना और हर साल एक नई काली एसयूवी प्राप्त करना शामिल है. शादियाँ सब कुछ दिखाने का एक मौका है, जिसमें आकर्षक उत्सव होते हैं जिनका उद्देश्य बड़े शहर की चकाचौंध को प्रतिबिंबित करना होता है.

लेकिन अंतिम स्टेटस सिंबल जेसीबी और डंपर हैं. मालिक उन्हें घुमाने, स्टंट दिखाने और तेज़ राजस्थानी डीजे गाने बजाने के लिए ले जाते हैं.

जयपुर स्थित एक खनन अधिकारी ने कहा, ”रेत नया नशा है.” “सिवाय इसके कि रेत की चोरी या तस्करी के लिए कोई जेल नहीं है.”

नागौर की गैंग

जहां भी नदियां हैं, वहां अवैध रेत का कारोबार फलता-फूलता है, लेकिन यहां के कुछ क्षेत्र दूसरों की तुलना में अधिक कुख्यात हैं.

320 किलोमीटर लंबी लूनी नदी अजमेर, जोधपुर, बाड़मेर और नागौर सहित मध्य राजस्थान से होकर गुजरती है. सुदूर पूर्व में, 500 किलोमीटर लंबी बनास नदी के किनारे, विशेषकर सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा और टोंक में अवैध गतिविधियां चल रही है. इसी तरह, 100 किलोमीटर लंबी काटली नदी सीकर, झुंझुनू और नीम का थाना जिलों में काम करती है, लेकिन बाद वाला सबसे बड़ा खनन हॉटस्पॉट है.

तीनों नदियां – लूनी, बनास और काटली – मौसमी हैं, जो केवल मानसून के मौसम में बहती हैं. लेकिन रेत खनन के कारण बने गहरे गड्ढे अब उन्हें मानसून के दौरान भी बहने से रोकते हैं.

Illegal sand mining in 3 Rajasthan rivers
Credit: Manisha Yadav | ThePrint

इन सभी क्षेत्रों में अवैध रेत खनन व्याप्त है, लेकिन व्यवसाय मॉडल अलग-अलग हैं.

उदाहरण के लिए, पूर्वी राजस्थान के सवाई माधोपुर में, यह एक कुटीर उद्योग की तरह है जहां हर कोई पाई का एक टुकड़ा साझा करता है. हजारों ग्रामीणों ने, जिनमें ज्यादातर गुर्जर और मीना समुदायों से हैं, ईएमआई योजनाओं के माध्यम से जेसीबी, ट्रक और ट्रैक्टर खरीदे हैं और हर दूसरा व्यक्ति एक छोटा रेत व्यापारी है.

हालांकि, लूनी के तट पर, संगठित गिरोहों का एक समूह अपनी मोनोपोली के लिए लड़ता है, खासकर नागौर जिले की जाट-बहुल रियान बड़ी और मेड़ता तहसीलों में.

क्षेत्र के शीर्ष तीन गिरोहों के बीच तीव्र प्रतिद्वंद्विता ने अगस्त में खूनी संघर्ष को जन्म दिया.

एक तरफ भीयाराम-महेंद्र-चेनाराम (बीएमसी) गिरोह था, जिसका नाम इसके संस्थापकों के नाम पर रखा गया था. दूसरी तरफ 0044 और 4700 गैंग थे, जिनका नाम जेसीबी नंबर प्लेट पर रखा गया था. गिरोह के सभी सदस्य अपनी संबद्धता का दावा करने के लिए एक ही प्लेट नंबर दिखाते हैं.

नागौर पुलिस ने मामले में 24 लोगों के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज कीं. पहली एफआईआर राजूराम के चचेरे भाई द्वारा दर्ज की गई थी जो 0044 गिरोह का समर्थन कर रहा था और जवाबी एफआईआर 4700 और बीएमसी गिरोह द्वारा दर्ज की गई थी.

बीएमसी मेड़ता तहसील के झिटियां गांव से संचालित होती है, जहां तीन संस्थापक और राणेश कामेडिया जैसे शीर्ष संचालक शासन करते हैं. पास में स्थित रोहिसा गैंग 4700 का घर है, जहां रामपाल सोमरवाला, मनीष सोमरवाला और रामचन्द्र सोमरवाल प्रमुख हैं. डांगावास, लूनी नदी से 20 किमी से अधिक दूरी पर स्थित, गिरोह 0044 का मुख्यालय है, जहां मुख्य खिलाड़ियों में मनीष कमेडिया और श्याम उर्फ सैम शामिल हैं.

ये प्रतिद्वंद्वी गिरोह अक्सर एक-दूसरे पर हमला करते हैं, लेकिन जब उन्हें पुलिस कार्रवाई, असहयोगी कानूनी पट्टाधारकों और कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के प्रतिरोध जैसी आम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, तो उनमें भाईचारे की भावना दिखाई देती है.

इन गिरोहों के नेता, जिनमें राणेश, महेंद्र, रामचंद्र और मनीष शामिल हैं, नागौर में ‘मोस्ट वांटेड’ लोगों में से हैं, जिनके सिर पर 25,000 रुपये का इनाम है. उनमें से अधिकांश के खिलाफ दंगा, अव्यवस्थित आचरण, सार्वजनिक उपद्रव और आपराधिक साजिश जैसे अपराधों से संबंधित आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत कई पुलिस स्टेशनों में कम से कम चार से पांच मामले दर्ज हैं.

Merta City police station, where Ranesh and some of his associates have long rap sheets
मेड़ता सिटी पुलिस स्टेशन, जहां राणेश और उसके कुछ साथियों के पास लंबी रैप शीट हैं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

लेकिन वे हमेशा अपराधी नहीं थे. 28 साल के राणेश शराब की दुकान चलाते थे. महेंद्र और रामचन्द्र किसान थे. अपराध के जीवन में प्रवेश करने से पहले सुरेश और मनीष ने 12वीं कक्षा तक अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की.

जयपुर स्थित बिल्डर जितेंद्र कुमार शर्मा ने कहा, “उन्होंने कानूनी खनन व्यवसायियों की फर्मों में मजदूरों और ड्राइवरों के रूप में शुरुआत की जब तक कि उन्होंने खुद खेल की एबीसीडी नहीं सीख ली. नदी सबकी है और रेत भी सबकी है. फिर उन्होंने अपने ट्रैक्टरों और जेसीबी से नदी की खुदाई शुरू कर दी.”

सुप्रीम कोर्ट के 2017 के खनन प्रतिबंध का एक अनपेक्षित परिणाम था कि इसने अवैध पारिस्थितिकी तंत्र को पनपने का अवसर प्रदान करते हुए कानूनी खनन कार्यों को रोक दिया.

कैसे एक प्रतिबंध ने माफिया को आज़ाद कर दिया

एक दशक से भी अधिक समय पहले, झिटियान और रोहिसा के निवासी अपनी फसलों और मवेशियों की देखभाल करते हुए साधारण जीवन जीते थे. लूनी नदी के किनारे की रेत उनके लिए पैसे नहीं थे.

रेत ट्रांसपोर्टरों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली ऑल राजस्थान बजरी ट्रक ऑपरेटर्स वेलफेयर सोसाइटी (ARBTOWS) के अध्यक्ष नवीन शर्मा ने याद किया, “जब भी किसी को निर्माण के लिए बजरी (रेत) की आवश्यकता होती थी, तो वे सरकार को कुछ रॉयल्टी का भुगतान करने के बाद नदी से इसे मुफ्त में प्राप्त कर लेते थे.”

एक ठेकेदार (ठेकेदार) बताते हैं कि लूनी नदी (दिखाई गई) की रेत बनास की रेत की तुलना में घटिया मानी जाती है | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

2012 में चीजें बदलनी शुरू हुईं जब सुप्रीम कोर्ट ने नदियों की रक्षा और अनियंत्रित खनन पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाया. दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार मामले में अदालत ने फैसला सुनाया कि रेत खनन के लिए पट्टे केवल केंद्र सरकार से पर्यावरण मंजूरी (ईसी) के बाद ही दिए जा सकते हैं. अदालत ने नदी के रेत खनन की गहराई को 3 मीटर तक सीमित कर दिया था.

यह निर्णय, हालांकि पर्यावरण संरक्षण के लिए था, लेकिन साथ ही अन्य हितधारकों के हितों की भी रक्षा करता था. खनन दिग्गज एकाधिकार बनाने के लिए बड़े पट्टे चाहते थे और राज्य सरकारों को विनियमन के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने का अवसर मिला.

इसने व्यापार संचालकों और राज्यों के रेत खनन से निपटने के तरीके को बदल दिया था.

लाभार्थियों में से एक जयपुर के पांच सितारा रामबाग पैलेस होटल के पूर्व शेफ मेघराज सिंह थे, जिन्होंने बाद में शराब और खनन व्यवसाय में कदम रखा और राजस्थान में “सैंड किंग” की उपाधि हासिल की.

2013 में, राजस्थान सरकार ने पांच साल के खनन अधिकारों की नीलामी की, 82 पट्टे जारी किए और लगभग 500 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया. इनमें से साठ प्रतिशत पट्टे मेघराज सिंह की एमआरएस ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ को मिले, जिनमें लूनी नदी का नागौर क्षेत्र भी शामिल था.

नागौर सांसद, हनुमान बेनीवाल ने कहा, मेघराज ने राजस्थान के पूरे रेत कारोबार पर कब्जा कर लिया है. वह असली माफिया हैं, छोटे पैमाने पर काम करने वाले कोई युवा नहीं.

सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने चेकपोस्ट और इमारतों के निर्माण और क्षेत्र में ड्राइवरों, मजदूरों और प्रबंधकों को काम पर रखने पर करोड़ों रुपये खर्च किए.

लेकिन 2017 में उनके और अमन सेठी, अशोक चांडक, मंजीत चावला और राहुल पंवार जैसे अन्य लीज धारकों के लिए एक बड़ा झटका आया.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया जब तक कि पुनःपूर्ति पर एक वैज्ञानिक अध्ययन नहीं किया गया और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरण मंजूरी जारी नहीं की गई.

अदालत ने मुख्य सचिव को उन आरोपों पर हलफनामा दायर करने का भी आदेश दिया कि राजस्थान सरकार ने खननकर्ताओं के साथ मिलकर अनियंत्रित रेत खनन की अनुमति दी थी.

सिंह ने कहा कि उनके 25 साल पुराने खनन करियर का सबसे बुरा दौर 2017 में था.

उन्होंने कहा, “जब हमें 2013 में पट्टे दिए गए थे, तो पर्यावरण मंजूरी मिलने तक मंत्रालय के पास इसे लंबित रखा गया था. EC का कागज वैध खनन करने के इच्छुक व्यवसायियों से पैसे कमाने का एक जरिया बनकर रह गया था. अदालत ने हमें (2017 से पहले) अस्थायी परमिट पर काम करने की अनुमति दी थी.”

इस बीच, प्रतिबंध का एक अप्रत्याशित परिणाम हुआ. रेत की मांग कभी कम नहीं हुई और उत्सुक आपूर्तिकर्ताओं की एक भीड़ उभर कर सामने आई.

मेघराज सिंह और अन्य कानूनी संचालकों के साथ काम करने वाले ड्राइवर, मजदूर और प्रबंधक स्वयं ठेकेदार बन गए. वे गांवों के नए रेत स्वामी थे और उन पर कोई नियम लागू नहीं होता था.

Credit: Manisha Yadav | ThePrint

मेघराज ने कहा, “इसने हमारा आत्मविश्वास तोड़ दिया है.”

हालांकि, रेत माफिया के सदस्यों का आरोप है कि खनन पट्टाधारकों ने मुनाफे में कटौती के लिए उनके साथ मिलीभगत की.

एक छोटे पैमाने के अवैध रेत खननकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “उनके पास संसाधन थे, और ग्रामीणों के पास बाहुबल था. हाथ मिलाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.”

खनिकों की नई नस्ल ने स्टेशन हाउस अधिकारी (एसएचओ), क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ), खनन अधिकारी और स्थानीय निकायों के प्रतिनिधियों के लिए कमीशन तय किया. स्थानीय राजनेताओं ने उद्यम को अंधेरे से आगे बढ़ाया, ग्रामीणों, निर्माणकर्ताओं और ड्राइवरों को सुरक्षा और राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया.


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एक नया युद्ध

2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने नदी के किनारे रेत खनन पर अपना प्रतिबंध हटा दिया. साथ ही स्वीकार किया कि प्रतिबंध के कारण अनजाने में अवैध खनन और संबंधित अपराधों में वृद्धि हुई है.

लेकिन जब मेघराज सिंह जैसे कानूनी खिलाड़ियों ने अपना कारोबार फिर से शुरू किया, तो अवैध संचालकों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया.

पिछले साल, पर्यावरण मंजूरी से लैस सिंह, रेत माफियाओं पर निर्भरता के बिना खनन फिर से शुरू करने के लिए तैयार होकर, लूनी नदी में वापस चले गए थे.

नागौर में मेघराज की रेत स्टॉक इकाई में काम करने वाले एक पूर्व कर्मचारी ने कहा, “उन्हें अब लूनी नदी से मदद के लिए रेत माफियाओं की ज़रूरत नहीं थी.”

कानूनी खनन कारोबारी, मेघराज सिंह ने कहा कि “ईसी (पर्यावरण मंजूरी) को कागज के टुकड़े और वैध खनन करने के इच्छुक व्यवसायियों से पैसा कमाने का ज़रिया बना दिया गया था.”

लेकिन नागौर के सरदार जिद पर अड़े हुए थे और अपने लिए हथियाए गए क्षेत्र को छोड़ने को तैयार नहीं थे. उन्होंने भयंकर युद्ध छेड़ दिया.

मेघराज की सैकड़ों गाड़ियां जलकर खाक हो गईं. चौकियों को नष्ट कर दिया गया और उसके आदमियों को गिरोहों ने खदेड़ दिया. माफिया के सदस्यों ने कभी-कभी इन घटनाओं के वीडियो रिकॉर्ड किए और फिर उन्हें जोरदार साउंडट्रैक के साथ व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर शेयर किया.

मेघराज ने खुद को अपने कानूनी पट्टे पर अपने अधिकारों का प्रयोग करने में असमर्थ पाया, क्योंकि माफिया अब वैध क्षेत्रों पर भी अतिक्रमण कर रहे थे.

मेघराज की ओर से मेड़ता थाने में शिकायत दर्ज कराई गई और इसमें रानेश इस बार भी मुख्य आरोपी था.

पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि मामला अभी भी लंबित है, लेकिन मेघराज सिंह तेजी से नागौर से भाग रहे हैं. उसने अपने परमिट की शेष अवधि पूरी कर ली है और पट्टा त्याग दिया है.

कार्यकर्ता कैलाश मीना कहते हैं, “लोग सरपंच चुने जाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने लगे हैं. इससे उन्हें लाखों रुपये का मासिक कमीशन मिलता है.”

नागौर के साथ-साथ जयपुर में सिंह के सहयोगियों ने दावा किया कि वह पहले ही इलाके में एक इमारत और चेकपोस्ट बेच चुके हैं और ऑपरेशन खत्म कर रहे हैं. उनके पास अभी भी लूनी नदी के पास स्टॉक है, जिसे उन्हें अगले छह महीनों के भीतर बेचना होगा.

एक बात तो साफ थी कि यह माफिया का क्षेत्र है. और लगभग सभी लोग इस खतरनाक खेल में फंस गए हैं.

एक समानांतर अर्थव्यवस्था

खनन हॉटस्पॉट में हर कोई सहभागी है. और युवा ड्राइवरों से लेकर बूढ़ों तक हर कोई पैसा कमाता है, जो कानून प्रवर्तन पर नज़र रखने के लिए चाय की दुकानों, पंचायत भवनों या चौराहों पर तैनात रहते हैं.

दूसरों को परोक्ष रूप से लाभ होता है. कुछ गांवों में, निवासी ग्राम विकास कर, मंदिर कर और गौशाला कर जैसे आधिकारिक लगने वाले नामों के साथ अस्थायी ‘टैक्स’ बूथ स्थापित करते हैं. रात में, वे राजमार्ग के रास्ते में अपने गांव से गुजरने वाले ट्रकों और ट्रैक्टरों को “टैक्स परमिट” जारी करते हैं.

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अवैध रूप से खनन की गई रेत ले जाने वाले ट्रक ड्राइवरों से ग्रामीणों द्वारा वसूले जाने वाले कुछ ‘टैक्स’ की पर्चियां | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

लूनी से सीकर तक रेत पहुंचाने वाले एक ट्रक ड्राइवर ने कहा, “आमतौर पर, अगर हमें 7 से 8 गांवों को पार करना होता है, तो हमें हर चक्कर के लिए 1,000-1,500 रुपये का भुगतान करना पड़ता है.”

यदि कोई ड्राइवर भुगतान करने से इनकार करता है, तो ग्रामीण अवैध रेत खनन के बारे में पुलिस को “सूचना” देते हैं.

ड्राइवर ने आगे कहा, “एक बार जब हम पकड़े जाते हैं, तो हमें ट्रक को छुड़ाने के लिए 5 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा. फिर आरटीओ, खनन कार्यालय और स्थानीय अदालत शामिल हो जाते हैं. जो कि एक महंगा मामला बन जाता है.”

यह अब केवल वित्तीय लॉटरी नहीं रह गई है. अवैध खनन का गठजोड़ कथित तौर पर पंचायत चुनावों को भी प्रभावित करता है.

नीम का थाना के रेत खनन विरोधी कार्यकर्ता कैलाश मीना ने आरोप लगाया, “लोगों ने सरपंच चुने जाने के लिए करोड़ों खर्च करना शुरू कर दिया. इससे उन्हें लाखों रुपये का मासिक कमीशन मिलता है.”

नागौर की रियान बड़ी तहसील के बंजारो की ढाणी गांव में, कुछ निवासियों ने एक स्थान स्थापित किया है जहां वे मार्ग से गुजरने वाले प्रत्येक अवैध ट्रक से ग्राम विकास कर, मंदिर कर और गौ कर सहित विभिन्न कर वसूलते हैं। फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

अवैध रेत खनन के बढ़ने के कारण राजस्थान में बड़े पैमाने पर अपराध और भ्रष्टाचार फैल गया है.

राजस्थान में 2017 और 2021 के बीच अवैध रेत खनन के 36,594 मामले दर्ज किए गए. राज्य ने 3,286 एफआईआर दर्ज की, 37,435 वाहन और मशीनरी जब्त की और 226.15 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला. कार्यकर्ताओं का तर्क है कि कई और मामलों पर ध्यान नहीं दिया गया या उनकी रिपोर्ट ही नहीं की गई.

राजस्थान खनन विभाग के एक पूर्व निदेशक ने सुझाव दिया कि सबसे व्यावहारिक समाधान रेत खनन पर प्रतिबंधों को ढीला करना होगा.

उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “पुलिस और राजनीति माफियाओं के साथ मिली हुई हैं. खनन विभाग अपने सीमित संसाधनों के कारण इससे निपट नहीं सकता.ठ

हालांकि, खनन क्षेत्रों के कई पुलिस अधिकारी इस आरोप से इनकार करते हैं कि उनकी माफिया से मिलीभगत है.

नागौर में थांवला पुलिस द्वारा जब्त किए गए अवैध ट्रक और जेसीबी थाना परिसर में खड़े हैं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

एक स्टेशन हाउस अधिकारी जो पहले नागौर के पादु कल्लन पुलिस स्टेशन में तैनात थे, ने दिप्रिंट को बताया कि खनन सीधे तौर पर कानून प्रवर्तन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.

उन्होंने कहा, “हमारी भूमिका तब शुरू होती है जब अवैध रेत खनन के कारण कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा होती है.”

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भ्रष्ट पुलिस कर्मियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने कहा, “पिछले साल नागौर में पूरी रियान बाड़ी पुलिस चौकी को अवैध रेत खनन में शामिल होने के कारण निलंबित कर दिया गया था.”

खातेदारी प्रथा: सबके लिए लूट

पिछले दशक में, भारत ने बड़े पैमाने पर छह-लेन राजमार्ग, नए हवाई अड्डे, मेडिकल कॉलेज, सबवे और मेट्रो शहरों में  ऊंची ऊंची इमारतों का निर्माण किया है. निर्माण सामग्री की मांग पहले से कहीं अधिक है.

बिल्डर जीतेंद्र कुमार शर्मा ने कहा, “दुनिया में हवा और पानी के बाद तीसरी सबसे ज्यादा खपत होने वाली सामग्री रेत है. निर्माण में रेत की खपत सीमेंट की तुलना में तीन गुना अधिक है.”

पर्यावरणविद् और ‘भारत के जल पुरुष’ राजेंद्र सिंह ने कहा, “विकास ने गांव और नदियों का रिश्ता खत्म कर दिया है. रेत नदी के फेफड़े हैं और नदियां अब सांस नहीं ले सकतीं क्योंकि उनके फेफड़े अब चोरी हो गए हैं.”

जब रेत खनन पर प्रतिबंध लागू था, तो आपूर्ति दो कारकों से सुगम हुई थी- माफिया का उदय और खातेदारी भूमि में रेत उत्खनन की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय.

राजस्थान में, खातेदारी एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करती है जो भूमि मालिकों को आम तौर पर खेती के लिए सरकार द्वारा दी गई जमीन को बेचने, गिरवी रखने या पट्टे पर देने की अनुमति देती है.

हालांकि, 2017 में, राज्य सरकार ने राजस्थान लघु खनिज रियायत नियमों में संशोधन किया, जिससे विशेष रूप से सरकार या सरकार समर्थित परियोजनाओं के लिए खातेदारी भूमि पर रेत खनन के लिए ‘रवन्ना’ के रूप में जानी जाने वाली अल्पकालिक अनुमति की अनुमति मिल गई. 2019 में खातेदारी भूमि के 194 पट्टे दिये गये.

इस नई व्यवस्था ने शोषण के लिए एक नई जमीन तैयार की थी.

शोधकर्ता और कार्यकर्ता किशोर कुमावत कहते हैं, “रेत माफिया ने खातेदारी जमीन को छुआ तक नहीं, लेकिन कई मामलों में नदी की पूरी तलहटी ही चुरा ली.”

पूरा अवैध पारिस्थितिकी तंत्र नदी के किनारे की भूमि वाले किसानों की ओर आकर्षित हुआ, और उन्हें उनके कृषि ज़मीनों के मूल्य से पांच गुना तक कीमत की पेशकश की गई.

गिरोह परमिट और नदी तल तक पहुंच चाहते थे. ज़मींदार वेतन चाहते थे.

नागौर की रियान बाड़ी तहसील के एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह कई लोगों के लिए एक अच्छा सौदा था. इन खेतों से ज्यादा कुछ प्राप्त करने का कोई रास्ता नहीं था क्योंकि वे वर्षा जल पर निर्भर थे. इसलिए, उन्होंने ज़मीन बेच दी. दूसरों ने अपनी ज़मीन अपने पास रखी, लेकिन उसे गिरोहों को मासिक किराये पर दे दिया.”

रियां बड़ी तहसील के एक गांव में खातेदारी भूमि पर रेत खनन के अवशेष | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

इसके साथ ही, रेत माफिया ने खातेदारी पट्टों का उपयोग करते हुए, नदी के किनारों पर 100 मीटर तक गहरे गड्ढे खोद दिए. उन्होंने नदी और उनके ड्रॉप-ऑफ बिंदुओं के बीच कई यात्राओं के लिए एक ही परमिट का भी फायदा उठाया. उदाहरण के लिए, नागौर से मथुरा तक जारी परमिट का उपयोग जयपुर में डिलीवरी के लिए किया जा सकता है.

नीम का थाना स्थित खनन कार्यकर्ता और शोधकर्ता किशोर कुमावत ने कहा, “रेत माफिया ने खातेदारी भूमि को छुआ तक नहीं, बल्कि कई मामलों में पूरी नदी तल को चुरा लिया.”

कुमावत ने, काफी व्यक्तिगत जोखिम उठाते हुए, खातेदारी भूमि में व्यापक भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए खनन विभाग में कई आरटीआई दायर कीं. उन्होंने पारिस्थितिक रूप से नाजुक नदी प्रणालियों में अवैध खनन के प्रसार को दर्शाने के लिए उपग्रह और ड्रोन से ली गई तस्वीरों सहित व्यापक डेटा संकलित किया.

2022 की यह सैटेलाइट तस्वीर खातेदारी भूमि पर अवैध खनन को दर्शाती है. नीली रेखाएं सरकार द्वारा अनुमोदित क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं, और लाल रेखाएं जहां खनन हुआ था. स्वीकृत क्षेत्र अछूता था, लेकिन आसपास की भूमि की बड़े पैमाने पर खुदाई की गई थी | फोटो: किशोर कुमावत

2020 में ARBTOWS के अध्यक्ष नवीन शर्मा की याचिका के बाद खातेदारी जमीन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था. अदालत ने अपने 2020 के निरीक्षण के दौरान व्यापक भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए जांच के लिए एक केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) नियुक्त की.

नवीन शर्मा, जो निरीक्षण के दौरान सीईसी टीम के साथ थे, ने कहा, “टीम ने डीएम और एसपी के साथ भीलवाड़ा जिले का दौरा किया. हमने देखा कि खातेदारी भूमि के नाम पर नदियों में खनन किया जा रहा है.”

ऑल राजस्थान बजरी ट्रक ऑपरेटर्स वेलफेयर सोसायटी (ARBTOWS) के अध्यक्ष नवीन शर्मा ने हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की हैं. वह ट्रक यूनियनों और वैध रेत खननकर्ताओं के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

सीईसी ने अपनी दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में राज्य सरकार पर नदी के रेत की “सभी पर लूट” में भाग लेने का आरोप लगाया.

इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि नदी के किनारे रेत खनन के लिए 194 खातेदारी पट्टे दिए गए थे, जिससे उनके “स्थानीय लाभ” का फायदा उठाने की संभावना थी. इसके अलावा, सीईसी ने कहा कि कृषि भूमि गुणवत्तापूर्ण निर्माण रेत प्रदान नहीं कर सकती है.

सीईसी ने नदी तटों के 5 किमी के दायरे में खातेदारी पट्टों को रद्द करने की सिफारिश की, लेकिन जब दिप्रिंट ने अक्टूबर में बनास और लूनी तटों पर गांवों का दौरा किया, तो उन्मादी खुदाई बेरोकटोक जारी रही.


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हत्या, तबाही और चुप्पी

खनन गांवों की नकदी-प्रवाह वाली दुनिया में, असहमति कम ही दिखाई देती है और इसकी वजह भी सही ही है क्योंकि जो लोग विरोध करने का साहस करते हैं उन्हें जोखिम का सामना करना पड़ता है.

पिछले जून में, रेत माफिया के कथित सदस्यों ने लूनी नदी खनन के बारे में चिंता जताने के प्रतिशोध में एक पूर्व सरपंच का पीछा किया और उस पर हमला करने का प्रयास किया. 2018 में सवाई माधोपुर के हथडोली गांव के सरपंच को रेत खननकर्ताओं के खिलाफ छापेमारी में शामिल होने पर भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था.

इसके पीछे संदेश जोरदार और स्पष्ट था. इसमें सबका हाथ है. और सक्रियता ख़त्म हो रही है.

ये मामला सिर्फ राजस्थान तक ही सीमित नहीं है. सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता, पत्रकार और अधिकारी समान रूप से रेत माफिया के शिकार हो गए हैं.

गैर-लाभकारी साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के डेटा से पता चलता है कि अप्रैल 2022 और फरवरी 2023 के बीच, पश्चिमी भारतीय राज्यों में आरटीआई कार्यकर्ताओं और अन्य विरोधियों पर अवैध खननकर्ताओं के हमलों से तीन मौतें हुईं और पांच घायल हुए. जिसमें राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और मध्य प्रदेश शामिल हैं.

सवाई माधोपुर की बोंली तहसील में बनास नदी में दिन के समय अवैध खनन हो रहा है. यह माफिया द्वारा किए जाने वाले सामान्य रात्रिकालीन अभियानों से अलग है | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

इसके लिए पत्रकारों को भी भारी कीमत चुकानी पड़ी है, जिसमें 2018 में एक डंपर द्वारा कुचले गए संदीप शर्मा और जून 2020 में शुभम मणि त्रिपाठी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, इसके तुरंत बाद उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट किया था कि उन्हें प्रतिशोध का डर है क्योंकि उन्होंने संदिग्ध जांच की थी. अवैध रेत खनन से जुड़े भूमि सौदे.

अक्टूबर 2022 में, गुजरात के आरटीआई कार्यकर्ता रमेश बलिया और उनके बेटे को एक कथित अवैध रेत खननकर्ता की एसयूवी ने कुचल दिया था. जिसके बाद कार्यकर्ता के बेटे की मृत्यु हो गई. इस अप्रैल में, बिहार के खान और भूविज्ञान विभाग के तीन अधिकारियों पर बिहटा शहर में कथित रेत खनन माफिया द्वारा हिंसक हमला किया गया था, जिसमें “सैकड़ों” निवासी भी शामिल थे.

हालांकि सड़क चौकियों को बढ़ाने और अवैध रेत खनन की निगरानी के लिए ड्रोन और सेटेलाइट इमेज को नियोजित करने जैसे उपायों से कुछ हद तक मदद मिलती है, लेकिन जब हर कोई इसमें शामिल होता है तो यह एक कठिन काम बन जाता है.

‘सब खोखला हो गया है’

अलवर के मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह, जिन्हें जलाशयों के संरक्षण पर अपने काम के कारण “भारत के जल पुरुष” के रूप में जाना जाता है, ने कहा कि शुष्क राजस्थान में, नदियों को एक समय देवताओं के रूप में पूजा जाता था, लेकिन समय के साथ उनकी स्थिति बदल गई है.

उन्होंने कहा, “1990 के दशक के दौरान, जब हमने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, तो गांवों के लोग हमारे साथ शामिल हो गए क्योंकि नदियों से उनका भावनात्मक जुड़ाव था. नदियों को नारायण (भगवान) के रूप में पूजा जाता था. आज संपर्क टूट गया है. विकास ने गांवों और नदियों के बीच के रिश्ते को नष्ट कर दिया है. रेत नदी के फेफड़े हैं. लेकिन नदियां सांस नहीं ले सकतीं क्योंकि उनके फेफड़े अब चोरी हो गए हैं.”

अवैध रेत खनन की भारी कीमत चुकानी पड़ती है. यह नदी तल को नष्ट कर देता है, कटाव को बढ़ावा देता है, प्राकृतिक जल प्रवाह को बाधित करता है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को अस्त-व्यस्त कर देता है. इससे न केवल भूजल स्तर नीचे आता है बल्कि पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है.

नीम का थाना के कांवट गांव के 55 वर्षीय किसान मनीराम यादव ने दावा किया कि आखिरी बार यहां काटली नदी 1990 के दशक के मध्य में तेजी से बही थी. लेकिन अब, यह सब खोखला हो गया है.

नीम का थाना इलाके में काटली नदी, जहां रेत माफियाओं ने खुदाई के बाद गहरे गड्ढे छोड़ दिए हैं। समय के साथ नदी बंजर भूमि में तब्दील हो गई है | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

उन्होंने याद करते हुए कहा, “मेरे बेटे अपनी चप्पलें अपने हाथों में पकड़ते थे, और अपनी पैंट को घुटनों तक मोड़ते थे और हर दिन स्कूल जाने के लिए नदी पार करते थे. लेकिन हर गुजरते साल के साथ, पानी गायब होने लगा.”

मनीराम ने अफसोस जताया कि भूजल स्तर भी काफी नीचे चला गया है और कृषि में लाभ का मार्जिन कम हो गया है.

नीम का थाना निवासी कैलाश मीना काटली जैसी नदियों को बचाने के लिए दशकों से हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं.

उन्होंने कहा, “रेत माफिया ने चारों ओर गहरे गड्ढे खोदकर नदी की आत्मा को मार डाला है.”

1997-98 में मीना एक आदर्शवादी युवक थे, जब उन्होंने नीम का थाना में अपने गांव भरत के पास की पहाड़ियों में बड़ी-बड़ी क्रशर मशीनें आती देखी थी.

कार्यकर्ता कैलाश मीना वहां खड़े हैं जहां कभी काटली नदी बहती थी। वह पिछले 25 वर्षों से रेत माफिया से जूझ रहे हैं | फोटो: ज्योति यादव | दिप्रिंट

58 वर्षीय मीना ने कहा, “पानी प्रदूषित था और चारों ओर धूल थी. हमने पर्यावरण जागरूकता बढ़ाने के लिए गांव में दो दिवसीय पैदल यात्रा निकालने का फैसला किया.”

पहली यात्रा में 150 लोग शामिल हुए. अगले वर्ष एक और कार्यक्रम में 1,000 की भीड़ उमड़ी थी.

मीना ने कहा, “हमारी यात्रा कुछ असर हुआ. यहां तक कि NDTV की एक टीम भी दूसरे संस्करण में इसे कवर करने आई थी.”

लेकिन अवैध रेत खनन जैसे मुद्दों के खिलाफ भीड़ जुटाना अब आसान नहीं है. यहां तक कि ज्ञापनों और याचिकाओं का भी कोई खास असर नहीं हुआ और उन्हें कई धमकियों का सामना करना पड़ा. फिर भी, वह आश्वस्त है कि वह अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.

मीना ने कहा, “25 वर्षों में, मैंने अपने खिलाफ 24 मामलों का सामना किया है. एक बार तो मुझ पर आतंकी आरोप भी लगाए गए थे. मुझ पर छह जानलेवा हमले भी हुए हैं.”

रेत माफिया के खिलाफ उनकी लड़ाई लगातार अकेली होती जा रही है और यहां तक कि उनके परिवार ने भी इसमें भाग लेने की इच्छा खो दी है. आरटीआई और याचिकाएं दाखिल करने और ग्रामीणों को एकजुट करने की कोशिश ने उन्हें थका दिया है. उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए सख्त नियमों का पालन करना पड़ता है. उन्होंने कहा, ”मुझे शाम 5 बजे से पहले घर पहुंचना होता है.”

लेकिन राजस्थान के खनन केंद्रों के कई निवासियों का तर्क है कि वे कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं.

सवाई माधोपुर में बनास के किनारे ट्रैक्टर चलाने वाले एक ट्रैक्टर मालिक ने कहा, “यह किसी के घर से नकदी या सोना चुराने जैसा नहीं है. लोग नदियों और रेत को सार्वजनिक संपत्ति के रूप में देखते हैं. वे कोई ऐसी चीज़ कैसे चुरा सकते हैं, जो उनकी ही है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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