बाड़मेर: 27 वर्षीय हनुमान राम सुबह 5 बजे उठे तो उन्हें एहसास हुआ कि उनकी 20 वर्षीय पत्नी घर में नहीं हैं. बाड़मेर जिले में भोर हो चुकी थी. घबराकर हनुमान ने आस-पास के लोगों और गांव वालों को उसके न होने की बात बताते हुए सतर्क किया और सबने मिलकर रेत में ममता के पैरों के निशान का पीछा करना शुरू कर दिया. निशान पास ही के एक टांके (कुएं) तक लेकर गए. हनुमान समझ चुके थे कि उसकी पत्नी कहां है और उसने अपने साथ क्या किया है.
राजस्थान का बाड़मेर तेल, कोयला और गैस के लिए मशहूर है लेकिन भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसा राज्य का दूसरा सबसे बड़ा रेगिस्तानी जिला एक अजीब तरह के प्रकोप से जूझ रहा है – यहां की शादीशुदा युवा महिलाएं आत्महत्या कर रही हैं. वे घर के आस-पास बने कुओं या टांकों में कूद कर जान दे रही हैं. बहुत बार वो अपने बच्चों को भी अपने साथ ले कर कूद जा रही हैं. प्रशासन के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में ऐसे लगभग 50 मामले घटित हुए हैं, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं.
आंकड़ों की बात करें तो आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है. बाड़मेर में आत्महत्या से मरने वाली महिलाओं का अनुपात (37: 63) राष्ट्रीय औसत (27.4 से 72.5) से अधिक है. और वो आत्महत्या करने के लिए कुएं को चुनती हैं. इस ट्रेंड ने जिलाधिकारी, स्थानीय हिंदी मीडिया और पुलिस का ध्यान खींचा है. इस ट्रेंड को मिलने वाली पब्लिसिटी के कारण जिले में कॉपीकैट आत्महत्या के मामले भी बढ़ गए हैं.
ममता ने 9 अप्रैल की सुबह जिस 12X10 फीट गहरे कुएं को चुना था, उसे प्रशासन ने दो साल पहले बंद कर दिया था, ताकि आत्महत्या कर रही युवतियों की संख्या को कम किया जा सके. हालांकि, एक छोटा सा छेद, जो इतना बड़ा था कि ममता उसमें कूद सके, पानी निकालने के उद्देश्य से खुला छोड़ा गया था. उसकी लाश निकालने में दो घंटे लग गए.
बाड़मेर जिले में आत्महत्या के मामलों में साल 2019 के बाद से ही लगातार बढ़ोतरी हो रही है.
अप्रैल 2021 में जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी, तब आईएएस लोक बंधु ने बाड़मेर जिले में कलेक्टर बनकर आए थे. वो कहते हैं, “मैंने पाया कि महिलाएं आत्महत्या के लिए कुएं को चुन रही हैं और सफल भी हो रही हैं.” कलेक्टर ने आगे कहा कि कोरोना जैसी घातक महामारी के साथ-साथ एक दूसरी आत्महत्या की लहर से जूझना काफी कठिन था. उस साल एक महीने में तीस से ज्यादा हुई आत्महत्याओं ने पूरे जिले को हिला दिया था.
कुएं कैसे बन गए महिलाओं की आत्महत्या का केंद्र बिंदु?
कलेक्टर लोकबंधु सिर्फ इस बात से चिंतित नहीं थे कि युवा शादीशुदा महिलाएं आत्महत्या कर रही हैं, बल्कि चिंता इस बात की भी थी कि वो किस तरीके से मर रही हैं.
बाड़मेर जिले में साल 2019 में 48, 2020 में 54 और 2021 में 64 महिलाओं ने आत्महत्या की. लोकबंधु के मुताबिक, “इनमें से लगभग 60 फीसदी मामलों में आत्महत्याएं कुएं में कूद कर की गईं.”
इसके बाद प्रशासन ने 10 अक्टूबर 2021 को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के आयोजन पर अनमोल जीवन अभियान की शुरुआत की. इसके तहत 24 घंटे की हेल्पलाइन की शुरुआत की गई, गांव के अधिकारियों को सिखाया गया की किस तरह से शुरुआती संकेत पहचानें, ग्राम पंचायतों को कुओं को कंक्रीट से ढकने के लिए कहा गया और यू-ट्यूबर्स से आग्रह किया गया कि वे इस तरह की मौतों को सनसनीखेज न बनाएं.
इस अभियान के परिणाम नज़र आने लगे. हेल्पलाइन पर हर महीने करीब 15 से 20 कॉल आने लगीं. सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष और कभी-कभी बच्चे भी मदद के लिए कॉल करने लगे. जिला प्रशासन के मुताबिक, 2022 में महिला आत्महत्या के मामले में 42 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. महिलाओं की आत्महत्या की संख्या 64 घटकर 37 हो गई.
भारत में एक दूसरे को देखकर की जाने वाली आत्महत्याएं अलग अलग कोनों में हुई हैं. जैसे जनवरी 2021 और मार्च 2021 के बीच चार छात्रों की आत्महत्या के बाद बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) ने छात्रावास के कमरों में छत के पंखे को दीवार पर लगे पंखे से बदल दिया.
दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) ने कई प्लेटफार्म पर स्क्रीन के दरवाजे स्थापित किए क्योंकि जनवरी 2018 से मई 2019 के बीच 25 लोगों ने पटरियों पर कूदकर आत्महत्या करने का प्रयास किया. उत्तरी दिल्ली में, पुलिस और पर्यटन विभाग सिग्नेचर ब्रिज से नीचे कूदकर यमुना नदी जान देने वालों को रोकने के लिए जाल की दीवारें लगाने का प्रयास कर रही है. इस ब्रिज से हर महीने लगभग तीन लोगों को आत्महत्या करने से बचाया जाता है. पिछले डेढ़ साल में निजी गोताखोरों ने करीब 30 ऐसे लोगों को बचाया है जो नदी में कूद गए थे.
बाड़मेर जिले में भी इसी तरह कुएं यानि टांके महिलाओं के बीच आत्महत्या का केंद्र बिंदु बने हुए हैं. हालांकि प्रशासन ने एक मुहीम के तहत कुओं को कंक्रीट से सील करा दिया है और साथ ही 600 से ज्यादा कुओं में हैंडपंप भी लगाए गए हैं.
बाड़मेर में दिखने वाले ये कुएं, देश के अन्य भागों में देखे जाने वाले कुओं से थोड़े अलग हैं. स्थानीय लोग इसे टांका बुलाते हैं जो मानव निर्मित जल भंडारण टैंक की तरह है. कुछ परिवार निजी टांके बनवाते हैं तो कुछ पंचायतें सामुदायिक टांकों का भी मनरेगा के तहत निर्माण करवाती हैं. ग्रामीण समाज में घूंघट से ढकी महिलाओं को आमतौर इन टांकों तक की दूरी तय करने की अनुमति होती है. महिलाओं की दिनचर्या इन टांकों के इर्द गिर्द ही घूमती है.
चेन्नई बेस्ड स्वैच्छिक स्वास्थ्य सेवा में मनोचिकित्सा विभाग की प्रमुख के तौर काम कर रहीं, डॉ लक्ष्मी विजयकुमार इस पर टिप्पणी करती हैं, “जब कोई व्यक्ति आत्महत्या के बारे में सोचता है, तो वह खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए सबसे परिचित जगह या वस्तु ढूंढता है. ऐसा लगता है कि बाड़मेर में महिलाएं कुओं से परिचित हैं.”
ग्राम प्रधानों और शिक्षकों द्वारा एक जिला-व्यापी सर्वे में बताया गया कि इन कॉपीकैट की गई आत्महत्याओं के पीछे अंतरजातीय और विवाहेतर संबंध, बाल विवाह, ससुराल वालों द्वारा उत्पीड़न और घरेलू हिंसा जैसे कारण हैं. इसके अलावा दहेज, सूखा और कर्ज भी इस लहर को बढ़ावा दे रहे हैं.
डॉक्टर विजय कुमार एक और बात जोड़ती हैं कि मीडिया द्वारा बिना हेल्पलाइन नंबर या बिना किसी आशा की कहानियां दिखाए बिना आत्महत्या की खबर छाप देना भी उकसाता है, “इस तरह की खबरें उन व्यक्तियों को ट्रिगर करती हैं जो कुछ वैसी परिस्थितियों में फंसे हुए हैं.”
लेकिन अनमोल जीवन अभियान जैसी पहल, जिससे कुछ हद तक आत्महत्याओं को रोकने में सफलता मिली थी, अक्टूबर 2022 में बंद कर दी गई.
इस साल जनवरी से ही बाड़मेर में आत्महत्याओं से मौत की खबरों से अखबार भरने लगे हैं.
कुएं से जुड़ा महिलाओं का जीवन
बीस वर्षीय ममता, कगाऊ गांव में पली-बढ़ी थीं, जो बाड़मेर शहर से ज्यादा दूर नहीं था. लेकिन साल 2020 के दौरान लगे लॉकडाउन में उसके माता-पिता ने उसकी शादी चडार पंचायत के रावतोनियो की ढाणी में भील समुदाय के एक दिहाड़ी मजदूर हनुमान से कर दी.
ममता के बारे में चडार पंचायत के पूर्व ग्राम प्रधान के बेटे दुर्गा राम गोदारा करते हैं, “हम अक्सर सुनते थे कि पति-पत्नी में नहीं बनती हैं और वह यहां शादी से खुश नहीं थी.”
दुर्गा राम गोदारा के मुताबिक अकेले उनकी पंचायत में पिछले पांच साल में पांच से ज्यादा महिलाओं ने ऐसी कॉपीकैट आत्महत्याएं की हैं.
गोदारा ने कहा, “उन सभी ने कुएं में कूद कर जान दी. कुएं पर ही हमारी महिलाएं अपना अधिकांश समय व्यतीत करती हैं—पानी लाने में. यही वो जगह है जहां उनका जीवन फंस गया है. ”
ममता के ससुराल पक्ष के पास ना उसका आधार कार्ड है ना कोई स्कूली कोई प्रमाण पत्र, क्योंकि वो कभी स्कूल नहीं जा पाई थी. उनके पास शादी के दौरान की भी तस्वीर भी नहीं जिससे ये पता चल सके कि ममता कैसी दिखती थी. अब परिवार के पास उसकी आखिरी एक चमकीली काली पोशाक, बालों का तेल और एक मॉइस्चराइजर ही रह गया है, जो ममता के होने की गवाही देते हैं.
हनुमान सांत्वना देने वाले हर व्यक्ति को बता रहा है कि उसकी पत्नी की मौत में उसका कोई लेना देना नहीं है. दरअसल, ममता का कुएं में कूदकर आत्महत्या करना उसका पहला नहीं बल्कि दूसरा प्रयास था.
“पहली बार उसने एक साल पहले खुद को खेजड़ी के पेड़ से फांसी खाने की कोशिश की थी. लेकिन रस्सी टूट गई और वह गिर गई.” हनुमान याद करते हैं.
लेकिन रस्सी टूटने से वो जमीन पर आ गिरी और रीढ़ की हड्डी टूट गई. हनुमान ने ममता को जोधपुर के एमडीएम अस्पताल में भर्ती कराया और इलाज में खर्च करने के लिए लगभग एक लाख रुपए का कर्ज भी लिया.
“मैं आज भी वो कर्ज चुका रहा हूं.” हनुमान मायूस होकर कहते हैं.
हनुमान के पिता चेतन राम भील ने बताया कि पिछली बार फांसी खाने के बाद उसे एक साल तर मायके भेज दिया था. लेकिन ससुराल पक्ष के मुताबिक ममता के माता पिता उसकी जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते थे.
“उसके मरने के एक हफ्ते पहले ही उसका परिवार एक पिकअप लेकर आया था. ममता को यहां छोड़ते हुए कहां कि शादी एक बार ही होती है. अब आप लोग जानें. आप रखो मारो.” हनुमान ने बताया.
जब हम हनुमान के परिवार से मिले थे तो ममता के मौत का तीसरा ही दिन चल रहा था लेकिन हनुमान के चाचा देवाराम और चेतन राम को उसकी दूसरी शादी में खर्च होने वाले पैसों की चिंता सता रही थी.
पुलिस के पास ममता की आत्महत्या से हुई मौत का कोई रिकॉर्ड नहीं है क्योंकि परिवार ने पुलिस को इस बारे में कोई सूचना ही नहीं थी.
ससुराल पक्ष का डर था कि पुलिस कहीं इस आत्महत्या को लेकर उन पर कोई केस ना कर दे.
हालांकि जो प्रभावशाली जातियां हैं, वो परिवारों भी पुलिस के पास आत्महत्या को रिपोर्ट करने नहीं जाते हैं.
“कई उच्च जातियों को ऐसे मामलों को छुपाते हुए पाया गया है.” एक विशिष्ट प्रशासन अधिकारी ने टिप्पणी की.
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पुरुषों के लिए नौकरियां, महिलाओं के लिए नर्क
ममता ने जो कुआं चुना वह उसके पति जैसे मजदूरों को रोजगार देने वाली मनरेगा योजना के तहत बनाया गया था. 5,000 लीटर क्षमता वाले 12 x 10 फीट के इन कुओं की कीमत लगभग 1.5 लाख रुपये होती है.
2021-22 में, बाड़मेर जिला प्रशासन ने 16,433 कुएं बनवाए – और इसके तहत लगभग 1.21 लाख परिवारों को 100 दिनों का काम दिया. मनरेगा के तहत इतना काम करने के लिए बाड़मेर देश के सभी जिलों में दूसरने नंबर पर रहा. लेकिन उस साल 64 महिलाओं ने कुएं में कूदकर जान दी.
इसी दौरान जिला प्रशासन ने ग्राम प्रधानों और शिक्षकों को आत्महत्या की इस ‘महामारी’ के कारणों को समझने के लिए एक सर्वे कराने का काम सौंपा.
लेकिन अपने रीति-रिवाजों के बारे में ग्रामीण समाज खुलकर बाहरी लोगों से बात करने में सहज नहीं था. इसलिए परिवारों की अंदरूनी जानकारी प्राप्त करना एक चैलेंज रहा.
बाड़मेर के महिला थाने में तैनात एक काउंसलर शोभा गौर इस पर कहती हैं, “एक रूढ़िवादी समाज में परिवार के लोग अपने जीवन के बारे में सबसे अंतरंग विवरण आसानी से साझा नहीं करते.” लेकिन सर्वे के लिए ये जरूरी था कि लोग अपने जीवन के सबसे मुश्किल पलों के बारे खुलकर बात करते.
ग्रामीणों का सर्वे करने वाले शिक्षक पारस पंडित ने पाया कि बाड़मेर के परिवार अंतरजातीय प्रेम विवाह और संबंधों के सख्त खिलाफ थे. इस तरह के कपल्स को या तो बहिष्कृत किया जाता है या उन्हें इतना परेशान किया जाता है कि वो अंत में आत्महत्या जैस कठिन रास्ता अपनाते हैं.
मिट्टी का तला गांव के सरपंच ने सर्वे में बताया कि गांव में स्वतंत्र इच्छा- या बल्कि फ्री विल नाम की कोई चीज नहीं है और किसी भी व्यक्ति को अपने निजी फैसले लेने की अनुमति नहीं है.
कॉपीकैट आत्महत्याएं
‘कुएं में कूदकर आत्महत्या’ और एक से ज्यादा लोगों की मौत के मामले एक बार फिर से सुर्खियां बटोर रहे हैं.
दशकों तक हुए कई शोध ये स्थापित कर चुके हैं कि एक हाई-प्रोफाइल आत्महत्या के बारे में बात फैलने पर उसी तरह की आत्महत्याएं घटित होनो लगती हैं.
डॉक्टर विजयकुमार कहती हैं, “पूरे भारत में, हमने पाया कि 15-29 आयु वर्ग की महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित हैं. एक विशेष तरीके की आत्महत्या को हॉटस्पॉट या लोकप्रिय बनाने के की कारणों में से एक प्रमुख है कि मीडिया में आत्महत्या की रिपोर्टिंग किस तरह हो रही है. इस तरह की खबरें उन व्यक्तियों को ट्रिगर करती हैं जो वैसी ही परिस्थितियों में फंसे हुए हैं.”
वह बताती हैं कि बाड़मेर जिले के केस में ये देखने की जरूरत है कि वहां के लोकल YouTube चैनल कैसे इन मामलों की रिपोर्ट कर रहे हैं.
बाड़मेर के जिला और पुलिस अधिकारी सोशल मीडिया पर आत्महत्याओं की सनसनीखेज रिपोर्टिंग के खतरे से अच्छी तरह वाकिफ हैं. 2021 में, बाड़मेर के पुलिस अधीक्षक दीपक भार्गव ने स्थानीय YouTubers को नोटिस जारी कर आत्महत्याओं को सनसनीखेज न बनाने का आग्रह भी किया था. इस नोटिस को कुछ सफलता मिली क्योंकि वीडियो अपलोड करने वालों ने परिवारों और कपल्स की की पहचान छुपाना शुरू कर दिया.
असफल प्यार और पुरानी परंपराएं
लगभग 32 लाख की आबादी वाला रेगिस्तानी जिला बाड़मेर पलायन, बेरोजगारी, सूखे और बढ़ती मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की चुनौतियों का सामना कर रहा है. हालांकि, इसके कठिन भूगोल, बिखरी हुई ढाणियों, और घरों के बीच की दूरी के कारण (कभी-कभी कई किलोमीटर दूर बसे हुए घर)- मदद के लिए मिलने वाले तरीके कम हैं.
अपने सर्वे के दौरान प्रशासन ने कई पैटर्न चिह्नित किए. जैसे भील समुदाय आत्महत्या का प्रमुख कारण कर्ज और गरीबी सामने निकल कर आया. अनुसूचित जाति जैसे मेघवाल और, और ओबीसी जातियां जैसे जाट और बिश्नोई भी आत्महत्याों के मामलें में काफी सेसेंटिव मिलीं.
हेल्पलाइन पर काम करने वाली 35 वर्षीय चंदा फुलवरिया बताती हैं, “महिलाओं के मामले में आटा साटा जैसी कुप्रथा (जहां परिवार शादी के लिए अपनी बेटियों का आपस में आदान-प्रदान करते हैं) और बाल विवाह जैसी गैर कानूनी परंपरा, उनके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं. मैंने बाड़मेर की एक ऐसी महिला की काउंसलिंग की थी, जिसे आटा साटा वाली शादी दिल्ली भेज दिया गया था और वो बेहद परेशान थी. ”
परिवारों के भीतर बने रिश्तों और प्यार करने की इजाजत न होना इस तरह की आत्महत्याों का एक प्रमुख कारण बनकर सामने आया. रोज छपने वाली अखबारों की सुर्खियां भी प्रशासन द्वारा किए गए इस शोध के निष्कर्षों को तस्दीक करती हैं. जैसे एक व्यक्ति, उसका बेटा और उसकी बहू, जो कथित रूप से एक प्रेम त्रिकोण में थे, तीनों ने 2022 में आत्महत्या कर ली थी. एक अन्य मामले में, एक महिला और उसके दामाद ने अपनी जान ले ली थी क्योंकि वे एक दूसरे के प्रेम में थे और इस रिश्ते की इजाजत समाज में नहीं थी.
अकेलापन और हताशा इन अवैध संबंधों को ट्रिगर करती है. बाड़मेर के पुरुष अक्सर रोजगार के लिए महाराष्ट्र और गुजरात जाते हैं.
फुलवरिया, जो वर्तमान में राज्य द्वारा संचालित योजना इंदिरा गांधी मातृत्व पोषण योजना में ब्लॉक समन्वयक के तौर पर काम कर ही हैं, कहती हैं, “बाहर राज्यों में गए पुरुष अपना घर वहां बसा लेते हैं ऐसे में पीछे रह गई महिला अपने और अपने बच्चों के भविष्य को लेकर मायूस हो जाती हैं. कई बार पति सात-आठ महीने तक दूर रहते हैं. महिलाएं खुद को अकेला पाती हैं और परिवार के किसी पुरुष सदस्य के साथ संबंध बना लेती हैं, इससे सार्वजनिक शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है जो कई बार अपनी जान लेने पर जाकर खत्म होता है. ”
जनवरी 2022 में, फुलवरिया को एक सरकारी अस्पताल में काम करने वाले एक कर्मचारी ने फोन कर ए 25 वर्षीय गर्भवती महिला से बात करने के लिए कहा था.
महिला एक चार साल के ब्च्चे की मां थी और उसने बीती रात को एक कुएं में छलांग लगा दी थी. वो पांच महीने के पेट से थी.
“उसे पड़ोसियों ने बचा लिया था, लेकिन उसे किसी काउंसलर से बात करने की बेहद जरूरत थी इसलिए उस कर्मचारी ने हेल्पलाइन पर कॉल किया था. दरअसल महिला ने बताया कि उसका पति उसे मरने के लिए उकसाता रहता था. महिला के मुताबिक उसके पति के अपनी भाभी के साथ अलग संबंध थे, और उसी के चलते वो अपनी पत्नी से छुटकारा पाना चाहता था. महिला की शिकायत थी कि शादी में उसे हर रोज अपमानित होना पड़ रहा था. क्योंकि महिला शारीरिक रूप से अक्षम थी, तो उसके माता पिता ने उसकी शादी जैसलमेर के पोकरण का एक 15 साल बड़े पुरुष से करवा दी थी,” फुलवरिया ने पूरी बात बताते हुए कहा.
जब फुलवरिया के महिला के ससुराल वालों से बात करने की कोशिश की तो उस पक्ष ने बात करने से इनकार कर दिया. ऐसे में फुलवरिया और उनकी टीम ने एसएचओ को पूरे मामे की जानकारी दी. पुलिस की मदद के बाद महिला को ससुराल भेजा गया जहां कुछ महीनों बाद उसने बच्चे को जन्म दिया.
“अब वह अपने पति के साथ रहती है. मैं उसके संपर्क में अभी भी हूं, भले ही हेल्पलाइन का काम लंबा हो गया हो,” फुलवरिया ने बात खत्म करते हुए कहा.
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लालच, ग्लैमर, सोशल मीडिया
समाज में आत्महत्या के मामलों में वृद्धि के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार माना जा रहा है और इसके कारण लालच, धैर्य की कमी, मोबाइल फोन, YouTube और बेहतर जीवन की आकांक्षा जैसी चीजों को बताया जा रहा है.
बाड़मेर में पुरुषों की बीच आत्महत्या के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं – 2019 में 84, 2020 में 98, 2021 में 107 और पिछले साल 110 ऐसे मामले हुए.
लेकिन आत्महत्या से मरने वाले पुरुषों को इसके लिए कम ही दोषी ठहराया जाता है.
मीठी नदी गांव के सभी लोग चूनाराम (25) और उसकी पत्नी रिंकू की शादी में हो रही तकरार के बारे में जानते थे. शादी के आठ महीने बाद ही चूनाराम ने आत्महत्या कर ली थी.
उसके भाई प्रकाश ने आरोप लगाया कि “सगाई के दौरान लड़की वालों ने ये बात छिपाई थी कि वो मानसिक तौर पर पूरी तरह सामान्य नहीं है. चूनाराम को अंधेरे में रखा गया था.”
जब चूनाराम ने सगाई तोड़ने का फैसला लेना चाहा तो परिवार ने किस्मत समझ कर स्वीकारने को कहा. चूनाराम के साठ वर्षीय पिता किस्तूरा राम कहते हैं, “उसने बताया तो था कि उसकी पत्नी के साथ लड़ाई होती है, लेकिन एक बार जब ब्याह हो गया तो क्या कर सकते थे?”
इसलिए महीनों तक चूनाराम की शादी के बारे में परिवार और आसपास के लोग तुक्का लगाते रहे कि शादी क्या होगा? क्या चूनाराम अपनी पत्नी को छोड़ देगा? या कहीं भाग जाएगा?
ये फुसफुसाहट जारी ही थी कि चूनाराम ने अपने लिए कुछ और सोच लिया था. वो अपना ज्यादातर समय पास के एक सरकारी स्कूल के एक कमरे में गुजारता था.
उनके भाई प्रकाश ने कहा, ‘वो सिर्फ खाना खाने ही घर आता था.”
दो साल पहले एक रात वो खाने के लिए घर नहीं आया था. प्रकाश जब स्कूल में देखने गया तो पाया कि उसके भाई लाश पंखे से लटकी हुई थी.
चूनाराम की पत्नी को बाद में मायके भेज दिया था लेकिन परिवार को अब बहुत पछतावा है.
उसके पिता किस्तूरा राम कहते हैं, “शायद हमें उसकी बात सुननी चाहिए थी और जब उसने अपनी पत्नी के साथ मतभेदों की बात की थी तो उसका समर्थन करना चाहिए था.”
लेकिन पुरुषों को दी जाने वाली सहानुभूति के विपरीत, महिलाओं को केवल तिरस्कार मिलता है.
चडार पंचायत में रहने वाले अठ्ठे सिंह, जो तीन बेटियों के पिता भी हैं, कहते हैं, “महिलाएं दिन-ब-दिन लालची होती जा रही हैं. अगर वे किसी दूसरी महिला को कीमती चूड़ियां या ड्रेस पहने हुए देखती हैं, तो वे अपने पति से भी यही चाहती हैं. ”
अठ्ठे सिंह की पत्नी भी उनकी बात से सहमत होती हैं, “इससे पहले, कोई भी महिला अपने पति या सास की पिटाई से नहीं मरती थी. अब महिलाओं में सहन करने की क्षमता ही नहीं रही. ” वो गर्व से कहती हैं कि उनकी तीन बेटियों को “राजपूती संस्कार और सहनशक्ति” के साथ पाला गया है.
शायद ये सभी कारण थे जिन्होंने 22 वर्षीय देऊ कुमारी को 8 अप्रैल को आखिरी बार गांव के टांके तक चलने के फैसले के लिए बाधित किया.
ममता से 200 किमी दूर डूंगरों का तला में दो साल की बेटी के साथ रह रही देऊ के ससुराल पक्ष और रिश्तेदारों का दावा है कि उसे अपने पति के चचेरे भाई खेमा राम से प्यार हो गया था.
उस रात, खेमा ने एक व्हाट्सएप पर लगभग आठ बजे एक स्टोरी पोस्ट की थी जिसमें वो, देऊ और उसी दो साल की बेटी कोई पुराना वीडियो था. वीडियो में वे तीनों हंस रहे थे. लेकिन उन्होंने चेहरों में खेमाराम ने रोने वाली स्माइली लगाई थी.
जब परिवार के एक सदस्य ने वो स्टोरी देखी तो घर में कोहराम मच गया.
देऊ के ससुर हनुमान राम ने कहा, “वे एक साल से ऐसा कर रहे थे, लेकिन इस तरह के वीडियो शेयर करने का क्या मतलब था?”
जब हनुमान राम और बाकी सदस्य देऊ के घर पहुंचे तो दोनों मां-बेटी वहां मौजूद नहीं थी. रसोई में चाय की केतली मिली थी और सारे दरवाजे खुले हुए थे.
“हमने छोटी बच्ची के पैरों के निशान रेत में देखे. टॉर्च के जरिए हमने उन निशानों का पीछा किया तो हमारी दौड़ एक कुएं के पास खत्म हुई. कुएं के बाहर दो चप्पलें थीं, लेकिन आसपास कोई नहीं था.” हनुमान राम ने बताया कि उन्होंने एक लंबी लकड़ी जब टांके में फेंकी तो बच्ची के हाथ से लकड़ी टकराई.
पूरा परिवार पूरी रात कुएं पर बैठा रहा.
बुआ किस्तूरी देवी ने बताया,”अगले दिन सुबह 11 बजे पुलिस की मौजूदगी में तीनों शवों को बाहर निकाला गया और उसी शाम उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया.”
हालांकि मौत में भी परिवार देऊ को ही दोषी ठहराता है.
किस्तूरी ने दो साल की बच्ची के खोने का शोक व्यक्त करते हुए कहा, “हमने उन्हें अलग करने की तमाम कोशिशें की थी- मारा भी और पीटा भी, डांटा-फटकारा, समाज के बारे में दलील दी थी. लेकिन वह इतनी बेशर्म थी, उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ. ”
देऊ के पिता जगदीश कुमार, गुजरात के राजकोट में एक प्रवासी मजदूर के तौर पर काम करते हैं. वो अपनी बेटी की आखिरी तस्वीरों को देखते हुए कहते हैं, “मुझे उसकी हंसी याद आती है.”
लेकिन परिवार इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि खेमाराम, देऊ से कम उम्र का था. लेकिन देऊ पैसों के लालच, गिफ्ट्स और YouTube पर वीडियो देखने की आदत का ये नतीजा है. खेमा को बहुत पहले ही माफ कर दिया है.
देऊ को माफी नहीं मिली है.
ठीक ऐसे ही 8 साल के मोहित* ने अपनी मां बिमला देवी को माफ नहीं किया है.
दो साल पहले, बिमला उसे और उसके भाई-बहन – संयुक्ता * (4) और कैलाश * (3) – को पास के एक कुएं पर ले गई थी.
तीनों बच्चे अक्सर अपनी मां की पानी खींचने के दौरान मदद करते थे और खेलते थे. “उस दिन मां ने इधर-उधर देखा. पहले कैलाश, और फिर संयुक्ता, फिर आखिरी में मुझे फेंककर खुद कुएं में कूद गई.” मोहित उस दिन को याद करते हुए बताते हैं.
मांडू देवी, मोहित की दादी, कुछ दूरी पर ही गाय का दूध निकाल रही थीं. उसने मोहित की चीखें सुनीं और तुरंत कुएं की ओर भागी.
रस्सी और बाल्टी के सहारे दादी ने मोहित को बाहर निकाला. लेकिन मोहित ने अपनी मां और भाई-बहनों को खो दिया.
उसे रेगिस्तान की लू भरी दोपहरी में अपने बूढ़े दादा दादी के साथ काटनी पड़ती हैं क्योंकि उसके साथ खेलने के लिए आस-पास खेलने के लिए कोई बच्चा नहीं है.
मोहित अक्सर अपने दादा-दादी से कहता है,”मुझे संयुक्ता की याद आती है.”
वो कुआं दोबारा पानी से भरा नहीं गया और ना ही मोहित कभी कुएं की तरफ जा पाया.
*नाम बदल दिए गए हैं.
यदि आपको भी लग रहा है कि आप अकेले हैं आपको आत्महत्या करने की इच्छा हो रही है या उदास महसूस कर रहे हैं, तो कृपया अपने राज्य में एक हेल्पलाइन नंबर पर कॉल करें.
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