घाटमीका, राजस्थान: एक साल पहले, साजिदा की ज़िंदगी तब बिखर गई जब उनके 35-वर्षीय पति जुनैद को हरियाणा के भिवानी में हिंदू गौरक्षकों ने जला दिया. एक महीने पहले उनकी 14 साल की बेटी की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई, लेकिन इस हफ्ते उन्होंने अपने घर से 50 मीटर दूर अपने देवर के घर में अपनी नई कॉस्मेटिक की दुकान खोली और एक बहादुर मुस्कान बिखेरी.
लिपस्टिक, चूड़ियां, शैम्पू, आभूषण, गुलाबी रंग की चमकदार चप्पलें. महिलाएं उनकी 15×10 फीट की दुकान पर आती हैं. उन्हें पता है कि यह साल उनके लिए मुश्किल भरा रहा है. उनमें से एक परमीना नासिर भी हैं, जिन्होंने उसी रात भिवानी में अपने पति को खो दिया था. उन्होंने 150 रुपये का सामान खरीदा. दोनों महिलाएं एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराती हैं. यह दुकान साजिदा के लिए एक नई दुनिया के दरवाज़े खोलती है और परमीना के लिए एक प्रेरणा है.
साजिदा की दुकान से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर रहने वाली परमीना ने अपनी आंखों में चमक के साथ कहा, “मैं भी ऐसी ही एक दुकान खोलना चाहती हूं. कम से कम मैं अपने खर्चे तो निकाल पाऊंगी, लेकिन मुझे शुरू करने के लिए कुछ पैसे चाहिए.”
दुकान पर 34-वर्षीय साजिदा सावधानी से हर सामान को उसकी सही जगह पर रख रही हैं, लेकिन दुकान का दरवाज़ा बंद करने से पहले नहीं, ताकि उनके छोटे बच्चे सामान को यहां-वहां न बिखरा दें. एक खरीदार लेहरिया दुपट्टा देख रही हैं, लेकिन यह कहकर नहीं खरीदती कि वे बाद में आएंगी.
साजिदा ने कहा, “मेरी पूरी ज़िंदगी बदल गई है. यह चुनौतियों और आंसुओं से भरी है. अब, मुझे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाना है और न्याय भी पाना है.”
साजिदा और परमीना आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के बावजूद अपनी ज़िंदगी को फिर से संवारने की कोशिश कर रही हैं. उन्हें अपने बच्चों को स्कूल से निकालना पड़ा क्योंकि उनके घर में कमाने वाले पुरुष सदस्यों की हत्या के बाद से उनकी आय में कमी आ गई है. पिछले साल गौरक्षकों द्वारा की गई हत्याओं के बाद फैला डर उन्हें सताता रहता है और उन्हें चिंता है कि जुनैद-नासिर हेट क्राइम — जैसा कि इसे जाना जाता है — लोगों की यादों से निकल जाएगा और नेता इस मुद्दे को उठाना बंद कर देंगे.
धीमी अदालती कार्यवाही भी मदद नहीं कर रही है. राजस्थान गोवंशीय पशु (वध निषेध और अस्थायी प्रवास या निर्यात विनियमन) अधिनियम 2015 और हरियाणा गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन अधिनियम 2015 के खिलाफ उनकी याचिका पर सुनवाई न होने से भी वे निराश हैं. वर्तमान में वे अपने मुख्य रूप से पुरुष-प्रधान समाज में खुद को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं.
मेरी पूरी ज़िंदगी बदल गई है. यह चुनौतियों और आंसुओं से भरा है. अब, मुझे अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाना है और न्याय भी पाना है
— साजिदा, जुनैद की पत्नी
नासिर और जुनैद को गौरक्षकों ने पीटा और मार डाला. 16 फरवरी 2023 को हरियाणा के भिवानी में एक बोलेरो कार में उनके जले हुए शव मिले थे.
उनकी ज़िंदगी में अचानक इन त्रासदियों ने दोनों महिलाओं को बदल दिया है, जहां परमीना खामोशी के खोल में सिमट गई है, वहीं साजिदा ने पहली बार अपनी आवाज़ पाई है. वे अन्याय के खिलाफ खुलकर बोलती हैं और कोर्ट केस के बारे में वकीलों से बात कर रही हैं.
परिवार में एक और मौत
पति की मौत के बाद साजिदा के कंधों पर अपने छह बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई, लेकिन जुनैद की मौत के एक साल बाद ही परिवार के दरवाजे पर एक और मौत ने दस्तक दी.
परिवार ने बताया कि जुनैद की मौत ने उनकी 14 साल की बेटी को अंदर तक झकझोर कर रख दिया, जिसके कारण आखिरकार उसकी मौत हो गई. यह दुख की बात थी. वे मुश्किल से बोल पाती थी और उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी, उसका वजन कम हो गया था, उसे बुखार था और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
जुनैद के चचेरे भाई 55-वर्षीय इस्माइल ने कहा, “मेरे पिता ने क्या किया था? उन्हें क्यों मारा गया? वे कब घर वापस आएंगे? परवाना अक्सर हमसे ये सवाल पूछती थी, लेकिन हमारे पास कोई जवाब नहीं था.”
जिस रात उसकी मौत हुई, परवाना ने अस्पताल से अपनी मां को फोन करके आश्वासन दिया था कि वो जल्द ही घर लौट आएगी. यह आखिरी बार था जब साजिदा ने अपनी 14 साल की बेटी की आवाज़ सुनी.
रात करीब 11:30 बजे उसे दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई.
साजिदा ने रोते हुए कहा, “मुझे नहीं पता था कि वो इस तरह वापस आएगी.”
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‘मैं अपनी दुकान खोलूंगी’
साजिदा के घर के पास एक दुकान है, जिसमें किराने का सामान भरा पड़ा है. गांव के बुजुर्ग अक्सर यहां इकट्ठा होते हैं. कुछ समय पहले यह दुकान जुनैद की थी. उसने इसे 1,000 रुपये प्रति महीने किराए पर लिया था, लेकिन रूढ़िवादिता के कारण साजिदा को यह विरासत में नहीं मिली.
अब वे कुछ ऐसा कर रही हैं, जिसे उन्होंने अपने पति को बहुत करीब से करते देखा है — लेकिन इस्माइल के घर की चारदीवारी के भीतर और उनका काम मुख्य रूप से महिला ग्राहकों से जुड़ा है.
दुकान से होने वाली कमाई और दूध बेचकर, 35-वर्षीय जुनैद पांच बच्चों — अपने तीन बेटों और अपने बड़े भाई के दो बेटों को गांव में स्थित एक निजी स्कूल में 15,000 रुपये मासिक फीस देकर भेज रहा था.
मेरे पिता ने क्या किया था? उन्हें क्यों मारा गया? वो घर कब वापस आएगा? परवाना अक्सर हमसे ये सवाल पूछती थीं, लेकिन हमारे पास कोई जवाब नहीं था
—इस्माइल, जुनैद का चचेरा भाई
अब, ये बच्चे एक आधुनिक मदरसे में पढ़ रहे हैं, जहां इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ गणित, अंग्रेज़ी और विज्ञान भी पढ़ाया जाता है.
इस साल बकरीद पर साजिदा अपने बच्चों के लिए नए कपड़े नहीं खरीद पाईं.
वे अपने बच्चों को फिर से प्राइवेट स्कूल में भेजना चाहती हैं. उन्हें यकीन है कि उनके पास उनकी ज़िंदगी बदलने और चुनौतियों से निपटने की ताकत है.
परमीना अपने दर्द से निपटने के लिए खुद को घरेलू कामों में व्यस्त रखती हैं, लेकिन वे अपने माता-पिता से कुछ पैसे उधार लेकर एक दुकान खोलने की भी योजना बना रही हैं.
अपने जीजा के परिवार के साथ रहने वालीं परमीना ने कहा, “मैं अपनी दुकान खोलने की कोशिश करूंगी. मुझे यकीन नहीं कि मैं पैसों की कमी के कारण ऐसा कर पाऊंगी या नहीं, लेकिन मैं घर के खर्चों में साथ देना चाहती हूं.”
जुनैद के परिवार के पास दो एकड़ कृषि भूमि और एक भैंस है. नई दुकान खोलने से पहले, वो दूध और फसल बेचकर हर महीने करीब 8,000 रुपये कमाती थीं. हालांकि, उनकी खेती की आय और दूध बेचने से होने वाली आय, जो कभी पूरक हुआ करती थीं, अब सभी खर्चों को पूरा करने में कम पड़ जाती है.
साजिदा को राजस्थान सरकार और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी से कुल 6 लाख रुपये का मुआवज़ा मिला. उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे के नाम पर एफडी जमा की और पिछले तीन महीनों से उन्हें 1,000 रुपये की मासिक विधवा पेंशन भी मिलनी शुरू हो गई है.
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हिंसा को भुला दिया गया
साजिदा के घर के सामने कुछ बुजुर्ग लोग इकट्ठा हुए और गांव के युवाओं के सामने रोज़गार के अवसरों पर चर्चा की. रोज़गार के सीमित मौकों के कारण मुस्लिम बहुल घाटमीका में अधिकांश पुरुष खेती या कृषि मजदूरी में लगे हुए हैं, जिनके पास ज़मीन नहीं है, वे ट्रक ड्राइवर का काम करते हैं. कुछ अन्य लोग मवेशियों के व्यापार से अपना गुज़र बसर करते हैं, जिससे वे गौरक्षकों के निशाने पर आ जाते हैं.
एक बुजुर्ग ने कहा, “जुनैद नासिर की घटना के बाद बहुत डर था, लेकिन अब स्थिति सामान्य हो रही है.”
घाटमीका की आबादी 1,600 है, जिसमें मुख्य रूप से छोटे किसान और ट्रक ड्राइवर शामिल हैं और यहां गायों की तस्करी का मुद्दा गर्म है.
नासिर और जुनैद की हत्या करने वालों, गायों के नाम पर लोगों की हत्या करने वालों को मौत की सज़ा मिलनी चाहिए. मुखबिरों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.”
—अपनी भैंस को चारा खिलाने की तैयारी करते हुए जुनैद की पत्नी साजिदा
हालांकि, गांव के के सरपंच ने कहा कि वे अपना काम कर रहे हैं.
रामावतार खंडेलवाल ने कहा, “गांव में शांति है. इस घटना को कोई याद नहीं करता. जुनैद-नासिर की हत्या के बाद, मैंने लोगों को गाय की तस्करी की इस गतिविधि को रोकने के लिए मनाने के लिए कई पंचायत बैठकें कीं, लेकिन उन्होंने नहीं सुना और अभी भी ऐसा कर रहे हैं.”
नवंबर 2017 में गांव के एक अन्य निवासी उमर खान (35) अलवर जिले में मृत पाए गए. उनके परिवार का आरोप है कि उनकी हत्या गौरक्षकों ने की थी.
यह गौरक्षकों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ की जाने वाली हिंसा का चक्र है जिसे ये दोनों महिलाएं तोड़ना चाहती हैं. साजिदा और परमीना ने अनदेखी किए जाने पर दुख जताया.
साजिदा के अनुसार, घटना के बाद कई राजनीतिक नेता उनके घर आए, लेकिन अब नासिर और जुनैद को भुला दिया गया है.
उन्होंने कहा, “नासिर और जुनैद के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए उन पर चर्चा जारी रखना महत्वपूर्ण है.”
सरपंच ने इस बात पर जोर दिया कि अगर जुनैद और नासिर को ज़िंदा नहीं जलाया गया होता, तो इस मामले पर कोई ध्यान नहीं जाता.
“अगर उन्हें पीटा गया होता और कहीं फेंक दिया गया होता, तो यह इतना नहीं फैलता.”
खंडेलवाल ने दावा किया कि जुनैद-नासिर हत्याकांड का संबंध गौरक्षकों द्वारा की गई जबरन वसूली से है.
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एक याचिका और न्याय की धीमी गति
पशु व्यापार में लिप्त मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं ने चार महिलाओं को राजस्थान गोजातीय पशु (वध निषेध और अस्थायी प्रवास या निर्यात विनियमन) अधिनियम 2015 और हरियाणा गोवंश संरक्षण और गोसंवर्धन अधिनियम, 2015 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक संयुक्त याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए एक साथ लाया है.
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के कार्यकर्ता पिछले जून में साजिदा के घर पर मिले थे, जब वे साजिदा, परवीना और दो अन्य लोगों को साथ लाए थे. याचिका में अन्य महिलाएं खुर्शीदन — उमर खान की पत्नी — और असमीना हैं — जिनके पति रकबर खान और उनके दोस्त असलम को जुलाई 2018 में भीड़ ने मार डाला था.
साजिद ने जोर देकर कहा, “हम चाहते हैं कि यह कानून खत्म हो. कई लोगों की जान जा चुकी है. दोनों राज्यों में कई महिलाएं न्याय की मांग कर रही हैं.”
उनकी याचिका अभी भी अदालत में लंबित है और साजिदा और परमीना हत्या मामले की सुनवाई की धीमी प्रगति से चिंतित हैं.
जुनैद और नासिर के परिवार का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील मोहम्मद नासिर ने संवेदनशील मामलों को समयबद्ध तरीके से निपटाने के लिए विशेष अदालत की ज़रूरत पर बल दिया.
उन्होंने कहा कि पुलिस ने अभी तक कमान जिला अदालत में सबूत पेश नहीं किए हैं. न्यायिक कार्यवाही में झूठे सबूत देने से संबंधित धारा-193 पर सुनवाई 26 जून को जिला अदालत में हुई. अदालत 29 जून को अपना फैसला सुनाएगी.
नासिर के छोटे भाई अमजद खान और इस्माइल कानूनी मामले की देखभाल कर रहे हैं. प्रत्येक अदालती सुनवाई की लागत लगभग 500 रुपये है.
उन्हें अदालत तक पहुंचने के लिए एक घंटे से अधिक समय और ऑटो, कैब और बस सहित कई परिवहन साधनों से जाना पड़ता है और क्षतिग्रस्त सड़कों का मतलब है कि यात्रा भी मुश्किल है.
खान दस्तावेज़ तैयार करने और फोटोकॉपी पर होने वाले खर्च को लेकर भी चिंतित हैं. उन्होंने कहा, “सिर्फ चार्जशीट की फोटोकॉपी करवाने में ही 4,500 रुपये खर्च हो गए.”
अदालत जाना काफी महंगा है. खान ने कहा कि अगर वकील पैसे लेने लगे तो वे केस नहीं लड़ पाएंगे.
साजिदा ने कहा, “नासिर और जुनैद की हत्या करने वालों, गाय के नाम पर लोगों की हत्या करने वालों को मौत की सज़ा मिलनी चाहिए. मुखबिरों के खिलाफ भी सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए.”
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अपनी आवाज़ बुलंद करना
अरावली की चट्टानों वाली पहाड़ियों के बीच बसे इस छोटे से मुस्लिम बहुल गांव के लोग चिलचिलाती गर्मी, अनियमित बिजली, महंगे पानी और टूटी सड़कों को झेलते हैं. मदरसे की ओर जाने वाली सड़क पर अक्सर बुर्का पहने युवतियां भरी रहती हैं.
बुजुर्ग निवासी अफज़ल ने कहा, “पहले घाटमीका के बारे में कोई नहीं जानता था. अब इसे नासिर और जुनैद के नाम से जाना जाता है.”
गांव वालों के मुताबिक, गांव में सिर्फ एक सरकारी स्कूल है और शिक्षक अनियमित हैं और कोई अस्पताल भी नहीं है. अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी होती है तो गांव वालों को करीब 70 किलोमीटर दूर अलवर जाना पड़ता है.
हम चाहते हैं कि यह कानून खत्म हो. कई लोगों की जान जा चुकी है. दोनों राज्यों में कई महिलाएं न्याय की मांग कर रही हैं
—साजिदा, जुनैद की पत्नी
परमीना और नासिर के कोई बच्चे नहीं थे और उनकी मौत के बाद वे अकेली थीं. इसके चलते उन्होंने अपने देवर के छह बच्चों में से दो को अनौपचारिक रूप से गोद ले लिया — एक लड़की और एक लड़का, लेकिन परमीना और साजिदा को अभी भी विधवा होने का कलंक झेलना पड़ रहा है.
इस्माइल के अनुसार, परमीना अपने ही घर की चारदीवारी में कैद हो गई है. बहुत कम लोग उनसे मिलने आते हैं.
उन्होंने कहा, “यह एक गांव है. अगर कोई विधवा अपने घर से अकेली बाहर निकलती हैं, तो उनके चरित्र पर सवाल उठाए जा सकते हैं.”
लेकिन परमीना और साजिदा एक-दूसरे का साथ देती हैं — आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से. वे अक्सर एक-दूसरे से मिलने के लिए अपने घरों से बाहर निकलती हैं.
और अब वे यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके साथ जो हुआ, वो गांव में किसी और के साथ न हो.
साजिदा के घर के बाहर अचानक हुए हंगामे के बाद, वे बाहर निकलती हैं और एक छोटी भीड़ को देखती हैं. एक युवक एक बुजुर्ग व्यक्ति पर आरोप लगा रहा था कि उन्होंने पुलिस को अपने परिवार के एक सदस्य के गौ तस्करी में शामिल होने की गलत सूचना दी है.
साजिदा चिल्लाईं, “तुमने फिर से पुलिस को सूचना दे दी, इससे परिवार और गांव बर्बाद हो रहे हैं. यह देखकर ही मेरा खून खौल उठता है.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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