scorecardresearch
Saturday, 4 May, 2024
होमदेश'जलाना, पीटना, बंद रखना', द्वारका की घरेलू सहायिका के माता-पिता ने बयां किया अपनी 10 साल की बेटी का दर्द

‘जलाना, पीटना, बंद रखना’, द्वारका की घरेलू सहायिका के माता-पिता ने बयां किया अपनी 10 साल की बेटी का दर्द

सूजी हुई आंखों और घावों के साथ नियोक्ता के घर से बचाई गयी 10 वर्षीय बच्ची बाल श्रम और दुर्व्यवहार के कई पीड़ितों में से एक है. बच्ची के माता-पिता ने कहा कि उन्हें पैसे नहीं चाहिए, उनसे कहा गया था कि उसे अच्छे से रखा जाएगा.

Text Size:

नई दिल्ली: “उन्होंने उसे जीवन भर आघात पहुंचाया है. उसकी चोटें उस यातना के बारे में बताती हैं जो उसे झेलनी पड़ी”, 10 साल की घरेलू सहायिका की मां ने कहा, फोन पर अपनी बेटी को हुई तकलीफों के बारे में बता रही थी.

लड़की के नियोक्ता, पूर्णिमा बागची और पति कौशिक पर दलित लड़की को अपने बेटे के साथ खेलने के लिए काम पर रखने के बाद उसे प्रताड़ित करने और शारीरिक उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया है. पायलट पूर्णिमा और एयरोनॉटिकल इंजीनियर कौशिक को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और 2 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया है.

कथित तौर पर दोनों को संबंधित एयरलाइन वाहकों द्वारा ‘डीरोस्टर’ कर दिया गया है, जिन्होंने उन्हें नियोजित किया था.

शुक्रवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, लड़की की मां ने कहा, “मैंने जो देखा उस पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था. वे उसे ठीक से खाना नहीं देते थे और घर में जो कुछ भी मिलता था, उससे उसे मारते थे. वह थप्पड़ों और उस पर फेंकी जाने वाली चीजों को सुनकर जाग जाती थी. उसका चेहरा नीला है और उसके शरीर पर घाव हैं.”

लड़की के माता-पिता, दोनों दिहाड़ी मजदूर, ने बागची दंपति पर लड़की को बंधक बनाकर रखने और उससे बात नहीं करने देने का आरोप लगाया है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

यह मामला बच्चों की कई दर्दनाक कहानियों में से एक है, जो ज्यादातर हाशिए के वर्गों से हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में प्रकाश में आई हैं, जिनमें तस्करी और नाबालिगों को कारखानों और निर्माण स्थलों जैसे खतरनाक वातावरण में काम करने के लिए मजबूर करने के मामले शामिल हैं.

बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम सभी व्यवसायों में बच्चों (14 वर्ष से कम उम्र) और किशोरों (18 वर्ष से कम उम्र) को खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में शामिल करने पर प्रतिबंध लगाता है.

हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में पूरे भारत में बाल श्रम के 613 मामले दर्ज किए गए, 2020 में 476, 2019 में 772, 2018 में 464, 2017 में 462 और 2016 में 204 मामले दर्ज किए गए थे. रिपोर्ट किए गए 1,820 तक मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं.

पिछली जनगणना (2011) के अनुसार, भारत में 5-14 वर्ष की आयु वर्ग में बच्चों की आबादी 25.9 करोड़ है. इसमें से एक करोड़ बच्चे बाल श्रम में के बताए गए, जो कुल बाल आबादी का 3.9 प्रतिशत है.


यह भी पढ़ें: स्कूल में अधिक बच्चे, काम के लिए महिलाओं को कर्ज़ — गुजरात के ‘वेश्याओं के गांव’ से बदलाव की झलक


‘बेहतर जीवन की चाह में’

द्वारका से बचाई गई 10 वर्षीय बच्ची के परिवार ने कहा कि दो साल पहले जब वे दिल्ली आए थे तब से बच्ची का स्कूल छूट गया था. उन्होंने कहा कि वे बागची परिवार के ही इलाके में रहते हैं और संदर्भों के माध्यम से एक-दूसरे के संपर्क में आए.

बागची दंपति ने लगभग एक महीने पहले सात भाई-बहनों में से एक लड़की को अपने बेटे के साथ खेलने के लिए काम पर रखा था. लड़की के माता-पिता ने कहा कि उन्होंने उसकी देखभाल करने का वादा किया था.

उसके पिता ने कहा, “वे (बागची दंपति) आए और उसे यह कहते हुए ले गए कि वे उसकी देखभाल करेंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें बस अपने तीन साल के बेटे के साथ खेलने के लिए उसकी जरूरत है. हमने उसे बर्तन और कपड़े धोने या फर्श साफ करने के लिए नहीं भेजा. उस तरह का कोई समझौता नहीं हुआ था. हम बहक गए क्योंकि उन्होंने कहा कि उसे अच्छा जीवन मिलेगा. पैसे पर कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन दंपति ने हमें बताया कि अगर हमें पैसे की ज़रूरत होगी तो हम उनसे संपर्क कर सकते हैं.”

नाबालिग के पिता ने कहा कि परिवार दंपति के प्रस्ताव पर सहमत हो गया क्योंकि वे गुजारा करने के लिए संघर्ष कर रहे थे और उन्होंने सोचा कि बच्चे को एक अच्छे परिवार में भेजने से उसका जीवन बेहतर हो जाएगा. “हम गरीब हैं लेकिन हम अपनी बेटी के लिए बेहतर जीवन चाहते थे. इसलिए, हमने दंपति को उसकी जिम्मेदारी सौंपी. बदले में उन्होंने हमें ये दिया.”

जबकि माता-पिता ने कहा कि भुगतान की कोई शर्त तय नहीं की गई थी, पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि माता-पिता और बागची दंपति के बीच भुगतान के रूप में 10,000 रुपये का मौखिक समझौता हुआ था. हालांकि, पिता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पैसों का कोई आदान-प्रदान नहीं हुआ.

घटनाओं को याद करते हुए, बच्ची की मां ने कहा, “जब भी हम उसे फोन करते थे, महिला (पूर्णिमा) कहती थी कि वह हवाई अड्डे पर काम कर रही थी या व्यस्त थी. उसका पति (कौशिक) हमें गालियां देता था, पूछता था कि हम फोन क्यों करते रहते है और हमारे नंबर भी ब्लॉक कर दिए थे.”

उनके मुताबिक, लड़की को छुड़ाए जाने से सात दिन पहले पूर्णिमा बागची ने उन्हें फोन कर इसकी शिकायत की थी.

बच्ची की मां ने कहा, “पूर्णिमा ने हमें फोन करके कहा कि लड़की बात नहीं सुनती है और बेहद शरारती है. मैंने उनसे हमें हमारी बेटी से बात करने की अनुमति देने को कहा. हमसे बात करने पर बच्ची ने बताया कि वे उससे घर का सारा काम करवा रहे थे. जब मैंने दंपति से उसे हमारे रिश्तेदार के घर वापस छोड़ने के लिए कहा, तो महिला ने हमसे कहा कि हमारी बेटी को उनके साथ रहना चाहिए.”

मां ने कहा, “उन्होंने (पूर्णिमा) यह भी कहा कि उसने एक रसोइया और एक घरेलू सहायिका को काम पर रखा है और हमें आश्वासन दिया है कि हमारी बेटी को अच्छी तरह से रखा जाएगा. उन्होंने यहां तक कहा कि वह पढ़ सकती है और घरेलू काम सीख सकती है और समय आने पर वे उसकी शादी की व्यवस्था करेंगे.”

मां ने कहा, “वे उसे 23 जून को ले गए. कुछ दिनों बाद, हमने उनसे हमारी बेटी को हमारे साथ बिहार में हमारे गांव चलने देने के लिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कहा कि उसे उनके साथ रहना चाहिए, इसलिए हम चले गए.” उन्होंने आखिरी बार नाबालिग से उसे बचाए जाने से सात दिन पहले बात की थी.

लड़की की आपबीती बुधवार को सामने आई, जब उसके रिश्तेदार (एक मौसी जो दिल्ली के द्वारका में दंपति के घर के पास एक घर में काम करती है) ने उसे उसके नियोक्ता के घर की बालकनी पर पिटाई करते देखा. इसके बाद दंपति का सामना लड़की के रिश्तेदारों से हुआ. सोशल मीडिया पर प्रसारित एक वीडियो में कथित तौर पर भीड़ द्वारा बागची दंपति के साथ मारपीट करते हुए दिखाया गया है, और हमले की इस घटना में एक अलग मामला दर्ज किया गया है.

जब लड़की को पुलिस ने बचाया, तो उसके चेहरे पर चोट के निशान थे, घाव थे, आंखें सूजी हुई थीं और उसकी बांहों पर जलने के घाव थे. “उसने मुझसे कहा, मम्मी, वे मुझे सोने भी नहीं देंते. मुझे पूरा घर, बर्तन, कपड़े, सब कुछ साफ करवाते है.” उसकी मां ने पूछा, “कोई 10 साल के बच्चे के साथ ऐसा क्यों करेगा?”

मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा (आईपीसी) 370 (तस्करी), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 343 (बंद करके रखना), 324 (खतरनाक हथियारों या साधनों का उपयोग करके चोट पहुंचाना) के अलावा किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) बाल अधिनियम और बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 की प्रासंगिक धाराओं के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई है.

इस बीच, नाबालिग को फिलहाल बाल देखभाल गृह में रखा गया है. एक काउंसलर को दिए अपने बयान में, उसने दंपति पर ठीक से काम न करने के लिए उसे नियमित रूप से पीटने का आरोप लगाया.

10 वर्षीय बच्ची के पिता ने कहा, “हमें पैसा नहीं चाहिए. हम बस यही चाहते हैं कि उन्हें कानून द्वारा दंडित किया जाए ताकि कोई दोबारा किसी के साथ ऐसी क्रूरता न करे.”

जलाने, पीटने और अत्याचार की कहानियां

इस साल जून में, असम में एक पूर्व मंत्री और उनकी पत्नी को अपनी 12 वर्षीय घरेलू सहायिका की कथित तौर पर पिटाई करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. महिला ने शुरू में दावा किया कि उसने बच्चे को गोद लिया है, लेकिन गिरफ्तारी के समय वह पुलिस को कोई सबूत नहीं दे सकी.

एक और मामला जो सामने आया वह गुरुग्राम में 14 वर्षीय घरेलू सहायिका का था जिसे कथित तौर पर उसके नियोक्ताओं द्वारा प्रताड़ित किया गया था. इस साल फरवरी में मामले में दर्ज एफआईआर में कहा गया है, “कमलजीत कौर (नियोक्ता) लोहे के चिमटे को गर्म करके मेरे शरीर पर लगाती थी और मुझे बुरी तरह चोट पहुंचाती थी और मनीष खट्टर (नियोक्ता) मेरा गला दबाते थे और मेरे निजी अंगों को चोट पहुंचाते थे.”

इसी तरह, सितंबर 2021 में, केरल के कोझिकोड में अपने घर में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली 14 वर्षीय लड़की पर हमला करने के आरोप में एक डॉक्टर और उसकी पत्नी को गिरफ्तार किया गया था.

पिछले साल, एक महिला नियोक्ता को बाल श्रम के लिए और उसके पति को सोडोमी के लिए गिरफ्तार किया गया था, उन पर 12 वर्षीय लड़के को बाल श्रम में मजबूर करने और उसके साथ यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया था. पुलिस ने कहा कि लड़के के पैर को गर्म चाकू से दागा गया था.

और 2020 में, एक 17 वर्षीय लड़की की कथित तौर पर झारखंड से तस्करी की गई और उसे दिल्ली में संभावित नियोक्ताओं को 60,000 रुपये के बदले में बेच दिया गया था. बाद में एक गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस को उसके बारे में सूचित करने के बाद उसे बचाया गया.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना खातून)


यह भी पढ़ें: गर्म चिमटे से जलाने से लेकर, चाकू से गोदने और यौन शोषण तक, कैसे हर दिन प्रताड़ित होते हैं घरेलू सहायक


 

share & View comments