काले और लाल रंग से 300 से ज्यादा मकानों और दुकानों का चिन्हांकन, उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहरों में से एक वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर के आसपास होने वाले बदलाव की ओर संकेत देता है. पुलिस की बैरिकेडिंग से जगह बनाकर मंदिर दर्शन करने दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं और आसपास रहने वाले लोगों की जुबान पर एक ही शब्द है ‘राधे-राधे’. संकरी गलियां, सड़क के दोनों किनारों पर श्रृंगार और मिठाइयों की दुकान, कूदते-फांगते बंदर और आसपास के माहौल में व्याप्त रोष. योगी आदित्यनाथ सरकार यहां भव्य कांप्लेक्स बनाना चाहती है.
मथुरा जिले के वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारीजी महाराज मंदिर तक जाने वाली सड़कों और आसपास की 5 एकड़ जमीन के विकास की योजना बनाई जा रही है. इससे पहले 800 करोड़ रुपए के खर्च से वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर और 856 करोड़ रुपए की लागत से मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक कॉरिडोर तैयार किया गया था.
इस क्षेत्र में सर्वे का काम पूरा हो चुका है जिस पर स्थानीय लोगों का दावा है कि उनका जीवन जीने का तरीका प्रभावित होगा. हालांकि इस बीच इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहले ही जनहित याचिका (पीआईएल), याचिकाएं और इम्प्लीडमेंट्स (मामले में शामिल किए जाने के लिए एप्लीकेशन) दायर हो चुकी हैं.
वृंदावन में बांके बिहारी व्यापारिक एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित गौतम ने कहा, ‘सरकार हमारी संस्कृति को खत्म कर वृंदावन को सेल्फी प्वाइंट बनाना चाहती है. यहां और भी मंदिर हैं लेकिन बांके बिहारी मंदिर को निशाना बनाया जा रहा है. हम यहां विकास चाहते हैं लेकिन इस तरह से नहीं.’
भाजपा की भारत के धार्मिक पर्यटन के बाजार पर नज़र है. इसीलिए संस्कृति बनाम बदलाव और संकरी गलियां बनाम कॉरिडोर को लेकर लगातार बहस जारी है. भारत का धार्मिक पर्यटन का बाजार 2020 में तकरीबन 44 बिलियन डॉलर का था.
तीन साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 200 से ज्यादा घरों और दुकानों को विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट के लिए ढहाया गया था. हाल ही में 1 जनवरी 2023 को देशभर में जैन समुदाय ने श्री सम्मेद शिखरजी को पर्यटकों के लिए खोले जाने को लेकर झारखंड सरकार के फैसले पर देशभर में प्रदर्शन किया था. हालांकि केंद्र सरकार ने इस पर रोक लगा दी है.
जीडीपी में पर्यटन का एक बहुत बड़ा योगदान है और हाल के वर्षों में धार्मिक पर्टयन पर खर्च दोगुना बढ़ा है. विदेश मंत्रालय के इकोनॉमिक पॉलिसी डिवीजन की वेबसाइट पर मौजूद एक लेख के अनुसार, ‘भारत सरकार ने स्वदेश दर्शन एंड द पीलग्रीमेज रीजुवेनेशन एंड स्प्रीचुअल ऑगमेंटेशन ड्राइव (प्रसाद) के अंतर्गत टूरिस्ट सर्किट्स के विकास के लिए 2018-19 में 185 मिलियन डॉलर आवंटित किया था.’
यह योजनाएं मंदिर और सांस्कृतिक धरोहरों के आसपास ढांचागत विकास के लिए हैं.
आर्गेनाइज़र के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी ने बताया, ‘धार्मिक पर्यटन का सबसे अच्छा पहलू यह है कि सरकार को कोई विशेष पहल करने की जरूरत नहीं है क्योंकि भारत की परंपरा में ही धार्मिकता रची-बसी है. बस सरकार को पूजा करने की जगह तक पहुंच के लिए बेहतर सुविधाएं देनी होंगी और अतिक्रमण को हटाना पड़ेगा.’
पिछले साल बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के दौरान मची भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद ही सरकार ने मंदिर के आसपास विकास को लेकर संजीदगी दिखानी शुरू की.
यहां सिर्फ आध्यात्मिकता ही दांव पर नहीं लगी है.
मंदिर की कमिटी में भी हलचल मच गई है. पुजारियों का दावा है कि सरकार मंदिर और उसके फंड पर कब्जा करना चाहती है.
लोग संदेह की निगाहों से हर चीज़ को देख रहे हैं और इस बीच कई कांस्पिरेसी थ्योरी भी चल रही है.
बांके बिहारी मंदिर कमिटी के उपाध्यक्ष और मंदिर के वरिष्ठ पुजारी रजत गोस्वामी ने कहा, ‘हम लोग भाजपा के कट्टर समर्थक हैं. ऐसा नहीं है कि हमने मोदी जी या योगी जी को वोट नहीं दिया लेकिन उनसे ऐसी आशा नहीं थी. कानूनी ढंग से यहां कब्जा किया जा रहा है.’
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स्थानीय लोगों में नाराजगी
सत्तर वर्षीय अनंत शर्मा जिनकी जड़ें वृंदावन से जुड़ी हैं लेकिन वर्तमान में वह मथुरा में रहते हैं. स्थानीय लोग और दुकानदार उनपर इन दिनों हमलावर हैं. 19 अगस्त 2022 को जन्माष्टमी के दिन हुई भगदड़ से ठीक दो दिन पहले ही उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में पीआईएल दायर की जिसमें मंदिर के आसपास असुविधाओं को रेखांकित किया गया था. 2012 से ही शर्मा स्थानीय प्रशासन को यहां होने वाली दिक्कतों के बारे में लिखते आए हैं लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की. उनका कहना है कि मौजूदा ढांचा बांके बिहारी मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए नाकाफी है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘जीवन में एक बार मथुरा-वृंदावन जाने का हर किसी का सपना होता है. यहां सुविधाएं ठीक नहीं है. हम चाहते हैं कि लोग अच्छे से भगवान के दर्शन करे.’ लेकिन उनकी मंशा पर स्थानीय लोग सवाल खड़े कर रहे हैं. कईयों का कहना है कि शर्मा भाजपा के कहने पर ये सब कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने भगदड़ के बाद घटना की जांच के लिए पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह और अलीगढ़ के डिवीजनल कमिश्नर गौरव दयाल की कमिटी को जिम्मा सौंपा था. गौरतलब है कि जिस दिन वृंदावन में यह घटना हुई उस दिन सीएम योगी आदित्यनाथ मथुरा के दौरे पर थे.
इस बीच बांके बिहारी मंदिर से यमुना तक कॉरिडोर की चर्चा भी होने लगी. जांच कमिटी ने भी अपनी सिफारिशों में कहा कि मंदिर तक जाने वाली सड़कों को 9 मीटर तक चौड़ा किया जाना चाहिए.
इसके बाद अनंत शर्मा और मनोज कुमार पाण्डेय की पीआईएल पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 20 दिसंबर को बांके बिहारी मंदिर की सारी व्यवस्था और विकास में होने वाले खर्च को लेकर जानकारी देने का आदेश दिया. 17 जनवरी को अदालत को जानकारी देने का कहा गया है.
हाई कोर्ट के आदेश के पांच दिन बाद यानि की 25 दिसंबर को मथुरा जिलाधिकारी ने सर्वे करने के लिए 8 सदस्यीय कमिटी का गठन किया. जिला नगर आयुक्त अनुनय झा ने दिप्रिंट से बताया कि बिहारीपुरा और जंगलकट्टी इलाकों में सर्वे के लिए चार टीम बनाई गई और हाई कोर्ट के आदेश पर 3 से 8 जनवरी के बीच सर्वे का काम पूरा किया गया है.
झा ने कहा, ‘सर्वे के दौरान भूमि का मूल्यांकन किया गया. रिपोर्ट लगभग तैयार है, कुछ संशोधन किया जाना अभी बाकी है, जिसके बाद जिलाधिकारी के माध्यम से इसे हाई कोर्ट को सौंपा जाएगा.’
हालांकि इस बीच व्यापारियों का कहना है कि उनसे इस बाबत संपर्क नहीं किया गया.
बिहारीपुरा में दुकान चलाने वाले सुनील कुमार अग्रवाल ने कहा, ‘अधिकारी काले रंग के निशान हमारी दुकानों और घरों के बाहर लगाकर चले गए. उन्होंने हमें कोई जानकारी नहीं दी बस टेप से नाप कर वापिस चले गए.’
भगवान कृष्ण की मूर्तियों और उनके रंग-बिरंगे कपड़ों से घिरे अग्रवाल बताते हैं कि क्षेत्र के विकास के चलते उनका बिजनेस खत्म हो जाएगा. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘योगी जी भले हठ कर लें लेकिन उन्हें भी एक दिन यहीं दंड भोगना पड़ेगा.’
मंदिर के ठीक सामने मिठाई की दुकान चलाने वाले पंकज गोस्वामी ने कहा, ‘मामला अभी जज साहब के पास है. ठाकुर जी उन्हें सद्बुद्धि दे ताकि वे सही निर्णय दें.’
उन्होंने भी दावा किया कि अचानक से सर्वे किया गया है. उन्होंने कहा, ‘अधिकारियों ने आकर निशान लगा दिए हैं. सब अभी संशय में है. चैन से रोटी तक नहीं खा पा रहे हैं.’
पिछले साल हुई भगदड़ के बाद प्रशासन ने बांके बिहारी मंदिर के आसपास के क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था में कई बदलाव किए हैं जिसमें मंदिर तक पहुंचने वाले सभी प्रमुख रास्तों पर बैरिकेडिंग की गई है और मंदिर के आसपास के इलाके में गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाया गया है. गोस्वामी ने कहा, ‘हम अपने घर में ही कैदी बनकर रह गए हैं.’
व्यापार एसोसिएशन के अध्यक्ष गौतम ने कहा कि इस प्रोजेक्ट के खिलाफ वे आखिर तक लड़ेंगे. उन्होंने बताया कि व्यापार मंडल इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही हलफनामा देगा जिसमें बांके बिहारी कॉरिडोर की जगह सप्त देवालय कॉरिडोर यमुना के किनारे बनाने का सुझाव दिया जाएगा. इसमें सिर्फ बांके बिहारी मंदिर न हो बल्कि राधा वल्लभ और मदन मोहन मंदिर को भी शामिल किया जाए.
गौतम ने कहा, ‘हम डीएम से वार्ता करने की कोशिश करेंगे और अगर हमारी मांगों को नहीं माना गया तो अनिश्चितकालीन बाजार बंद किया जाएगा और पुरजोर ढंग से आंदोलन होगा.’
बता दें कि पिछले तीन दिनों से स्थानीय लोग और व्यापारी प्रदर्शन कर रहे हैं. काले पट्टे बांधकर उन्होंने 12 जनवरी को जुलूस निकाला और मानव श्रृंखला बनाई. साथ ही मंदिर के चबूतरे पर बैठकर कीर्तन भी किया. गौतम ने बताया कि 15 और 16 जनवरी को ‘सांकेतिक’ तौर पर बाजार को बंद किया जा रहा है.
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मंदिर समिति में भी बैचेनी
शर्मा अकेले व्यक्ति नहीं हैं जिन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया है. बांके बिहारी मंदिर के पुजारियों ने खुद को इस मामले से जोड़ने के लिए इम्प्लीडमेंट्स दायर किए हैं.
मंदिर कमिटी के उपाध्यक्ष और पुजारी गोस्वामी ने दावा किया, ‘हाई कोर्ट में सेवायतों और मंदिर के बाहर के लोगों की तरफ से सात इम्प्लीडमेंट्स पड़ी हैं लेकिन कोर्ट हमें सुन नहीं रही है. जो इस प्रस्तावित गलियारे से प्रभावित होंगे उनकी बातों को नहीं सुना जा रहा है.’
पुजारियों में संशय है कि प्रोजेक्ट के लिए खरीदी जाने वाली 5 एकड़ भूमि को मंदिर के फंड से खरीदा जाएगा.
राजभोग गोस्वामियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील असीम चंद्र ने कहा कि सरकार की मंशा मंदिर के फंड्स का इस्तेमाल करने की है.
चंद्र ने कहा, ‘हलफनामे में सरकार ने कहा है कि कॉरिडोर के लिए मंदिर फंड में जमा 250 करोड़ रुपए का इस्तेमाल किया जाएगा. हमने अदालत में इसका विरोध किया है. यह पैसा भगवान का है.’
मंदिर समिति के सदस्य अनिश्चित भविष्य देख रहे हैं. आदित्यनाथ सरकार ने अदालत में पेश किए हलफनामे में कहा कि मंदिर की देखरेख के लिए एक नई 11 सदस्यीय मैनेजमेंट कमिटी बनाई जाए. जिसमें सिर्फ दो लोग पुजारियों में से शामिल होंगे. गौरतलब है कि शर्मा ने भी अपनी पीआईएल में मंदिर के बेहतर मैनेजमेंट के लिए गुहार लगाई है.
चंद्र ने बताया कि बांके बिहारी मंदिर समिति मथुरा सिविल कोर्ट के 1939 के आदेश के तहत मंदिर को मैनेज कर रही है.
उन्होंने आरोप लगाया, ‘1939 के एक फैसले से मंदिर की मैनेजमेंट कमिटी चलती है. पीआईएल में मांग की गई है कि उस फैसलों को निरस्त किया जाए. मंदिर पर सरकार कंट्रोल करना चाहती है.’
आसपास के मंदिर के पुजारी भी सारी गतिविधियों पर नज़र बनाए हुए हैं और कहा कि यहां होने वाला विकास उनके द्वार तक भी आ जाएगा.
5 एकड़ क्षेत्र में आने वाले दो प्रमुख मंदिरों में से एक के वरिष्ठ पुजारी ने कहा, ‘काशी की जो भावनाएं और रहनी-सहनी है, उसे वृंदावन से कैसे जोड़ा जा सकता है. ठाकुर जी का ऐसा हाल तो मुगलों ने नहीं किया जितना भाजपा सरकार में हुआ है.’
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समय-समय पर होती रही है राजनीति
करीब आठ साल पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार ने भी बांके बिहारी मंदिर के मैनेजमेंट को कंट्रोल करना चाहा था लेकिन पुजारियों के विरोध के बाद वह नहीं हो पाया.
वृंदावन में हर जगह यही माहौल है कि भाजपा इसे लेकर नहीं झुकेगी. गोस्वामी ने कहा, ‘यह कहना कि सरकार मंदिर में हाथ नहीं लगाएगी, ये सरासर झूठ है. सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में हलफनामे में कहा है कि वर्तमान प्रबंधन कमिटी को हटाकर नई प्रबंधन कमिटी बनाई जाए. तो मैं कैसे मान लूं कि सरकार का हस्तक्षेप नहीं होगा.’
कॉरिडोर को लेकर सरकार क्यों जोर दे रही है, इस पर चंद्रा ने आरोप लगाया कि यह उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्रा का ‘पेट प्रोजेक्ट’ है. योगी आदित्यनाथ परिषद के अध्यक्ष हैं जिसे 2018 में ब्रज क्षेत्र के विकास के लिए बनाया गया. ब्रज तीर्थ विकास प्लान 2041 के तहत मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना, बलदेव और महाबन का विकास किया जाना है.
जिला नगर आयुक्त अनुनय झा ने हाई कोर्ट के आदेश के बाद परिषद के सीईओ से इस क्षेत्र के विकास का प्रस्तावित मॉडल मांगा था जिसे उन्हें मुहैया करा दिया गया है. जब दिप्रिंट ने मिश्रा ने संपर्क किया तो उन्होंने बांके बिहारी मंदिर की विकास की योजनाओं में परिषद के किसी तरह के हस्तक्षेप के होने से मना किया.
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान जमकर विरोध किया था लेकिन वह इस समय बिल्कुल चुप है.
वृंदावन में वीएचपी के महानगर अध्यक्ष अमित जैन ने कहा, ‘उस समय हमने विरोध इसलिए किया था क्योंकि तब की सरकार चीज़ों को थोपती थी और दबाव बनाती थी लेकिन आज की भाजपा सरकार सबका साथ लेकर आगे बढ़ती है.’
अब वह पूरी तरह संतुष्ट हैं कि मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र का विकास होना चाहिए.
जैन ने कहा, ‘मैं कॉरिडोर के लिए सरकार की प्रशंसा करूंगा क्योंकि यहां आने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. कॉरिडोर एक बड़े हवन की तरह है जिसमें लोगों को आहुति तो देनी पड़ेगी लेकिन आने वाले समय में टूरिज्म बढ़ेगा जिससे व्यापारियों को काफी फायदा मिलेगा.’
दूसरी तरफ मथुरा-वृंदावन से भाजपा के मेयर मुकेश आर्य बंधु इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह समर्थन दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मंदिर का स्थान काफी छोटा है और लगातार यहां भीड़ बढ़ रही है. कॉरिडोर से यहां के सभी लोगों का भला होगा. मोदी-योगी की सरकार लोगों को बसाती है न कि उजाड़ती. भारत आगे बढ़ रहा है और विश्व गुरू बनने जा रहा है. इसलिए जरूरी है कि एक भव्य कॉरिडोर श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए हो.’
आध्यात्मकिता और विचारधारा की लड़ाई में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का भी अपना मत है. पार्टी के मथुरा से अध्यक्ष भगवान सिंह वर्मा ने कहा कि प्रशासन को लोगों को विश्वास में लेकर उन्हें सारा ब्ल्यूप्रिंट दिखाना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं किया गया है. ‘यह सिर्फ तानाशाही है.’
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पर्यटन और संस्कृति
वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर भारत में भगवान कृष्ण के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. मान्यता है कि यहां कृष्ण के बालरूप की पूजा होती है.
बांके बिहारी को राधा और कृष्ण का संयुक्त रूप माना जाता है जिसकी पहले निधिवन में पूजा होती थी. लेकिन 1864 में मंदिर के निर्माण के बाद मूर्ति को वर्तमान जगह पर लाया गया. हर साल यहां लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं, खासकर जन्माष्टमी के दौरान.
पुजारियों और स्थानीय लोगों के लिए कुंज (संकरी) गलियां वृंदावन की पहचान है. माना जाता है कि इन्हीं गलियों में भगवान कृष्ण खेला करते थे.
एक स्थानीय पुजारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘कुंज गलियों का पुरानों में वर्णन है. काफी पहले इस इलाके को नो-कंस्ट्रक्शन जोन घोषित कर दिया जाना चाहिए था. पहले कई रास्ते चालू थे मंदिर तक जाने के लिए लेकिन अब जगह-जगह बैरिकेडिंग है. वृंदावन भावभूमि है, यह कर्मभूमि या दानभूमि नहीं है. हर तीर्थ स्थल का अलग भाव होता है. टूरिस्ट सेंटर देखने यहां कोई नहीं आएगा.’
लेकिन इस प्रोजेक्ट को सराहने वाले लोगों का कहना है कि इससे सुविधाएं बढ़ेंगी और श्रद्धालुओं को दर्शन करने में आसानी होगी.
इलाहाबाद स्थित जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक और प्रोफेसर बद्री नारायण का कहना है, ‘ऐसे कॉरिडोर की मदद से धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. जरूरत है कि धार्मिक जगहों को महत्व दिया जाए ताकि वे उपेक्षित न रहे. काशी में कॉरिडोर बनने के बाद से वहां पर्यटन काफी बढ़ा है.’
बांके बिहारी मंदिर में अक्सर दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटक, जो हजारों किलोमीटर का सफर कर यहां आते हैं, वे सरकार की इस योजना से काफी खुश हैं. दुबई में रहने वाले तरूण, जो बीते हफ्ते दोस्तों के साथ मंदिर के दर्शन करने आए थे, उनका कहना है, ‘यहां जूते-चप्पल रखने की ठीक व्यवस्था नहीं है. यहां कॉरिडोर बनना चाहिए.’
स्तंभकार शेषाद्री चारी ने सुझाया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) जैसे संस्थानों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन अधिक सावधानी, चिंता और दक्षता के साथ करना चाहिए. वह कहते हैं, ‘ऐसे संस्थानों में सदस्य और सलाहकार के रूप में विशेषज्ञ होने चाहिए न कि राजनेता.’
लेकिन यहां दांव पर कई चीज़ें लगी हैं. सरकार को अदालत को समझाना होगा और यहां के स्थानीय लोग जो ज्यादातर भाजपा के कट्टर समर्थक हैं, उनकी नाराजगी को भी दूर करना होगा.
मथुरा-वृंदावन में आरएसएस के विभाग संयोजक रामवीर यादव ने कहा, ‘कुंज गलियों का अब समय नहीं रहा.’
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