कोलकाता: वह न्यूयॉर्क शहर में 16 मार्च की शाम थी. अगले दिन, अमेरिका में दोस्तोजी नामक एक बंगाली फिल्म रिलीज होनी थी. फिल्म के निर्देशक प्रसून चटर्जी टाइम्स स्क्वायर पर खड़े थे. उन्हें नहीं पता था कि अगली सुबह दर्शकों की प्रतिक्रिया क्या होगी. साथ ही उन्हें यह भी पता नहीं चल पा रहा था कि वह इसको लेकर तनाव में हैं या आश्वस्त हैं. थोड़ी देर बाद उन्होंने अपने बगल में एक छोटी सी भीड़ को ताली बजाते हुए सुना.
उन्होंने ऊपर देखा और तो टाइम्स स्क्वायर के विशाल बिलबोर्ड पर दोस्तोजी का टीज़र चल रहा था. भीड़ ने शायद इस फिल्म के बारे में इतना पढ़ लिया था कि वह इसका टीज़र देखने के लिए काफी उत्साहित हो गई. कई महाद्वीपों के तूफानी दौरे के बाद अब कोलकाता वापस आए चटर्जी ने दिप्रिंट को बताया, “उन्हें नहीं पता था कि यह मेरी फिल्म है. मैं तो बस एक और चेहरा था. और यह ठीक भी है. मेरी फिल्म सबके देखने के लिए वहां थी. मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि दोस्तोजी का टीज़र टाइम्स स्क्वायर बिलबोर्ड पर प्रदर्शित किया जाएगा.”
पिछले कुछ महीनों ने कोलकाता के दम दम इलाके के 38 साल के एक साधारण युवक को एक जेटसेटर में बदल दिया है. बांग्लादेश के साथ भारत की सीमा के पास एक धूल भरे गांव में दो धर्मों के दो लड़कों की दोस्ती के बारे में एक फिल्म – दोस्तोजी – पश्चिम के लिए पर्याप्त नहीं है.
इसकी कहानी 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के गिरने के लगभग छह महीने बाद की है. पूरे देश में फैल रहे सांप्रदायिक नफरत का जहर इस छोटे से गांव में भी फैल गया, जहां हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिम हैं. फिल्म बताती है कि दो लड़कों के बीच की खूबसूरत दोस्ती का क्या होता है क्योंकि सांप्रदायिक धमकियां पड़ोसियों को दुश्मन में बदल देती हैं.
दोस्तोजी, 1990 के दशक की शुरुआत में स्थापित, हमारे वर्तमान समय का दृष्टांत हो सकता है. चटर्जी कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि अब किस पर विश्वास करूं. बाबरी मस्जिद के पतन और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में विस्फोट ने मानवता में मेरे विश्वास को हिला दिया था. हिंसा का चक्र कभी ख़त्म नहीं होता. हम अपनी सुविधा के अनुसार पक्ष चुनते हैं, जबकि हर बार जब हम खून निकालते हैं तो मानवता मर जाती है.”
जिसे सताया गया, वह भी अत्याचारी होते हैं
यदि कला सच बताने के बारे में है, तो चटर्जी का मानना है कि हमें स्पष्ट से परे जाना चाहिए. हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय उड़ान के दौरान चटर्जी का कहना है कि उन्होंने उल्टा नस्लवाद देखा. एक अश्वेत एयर होस्टेस एक अकेली श्वेत महिला के साथ स्पष्ट भेदभाव कर रही थी, जबकि उसके ठीक बगल में बैठे एक अश्वेत जोड़े का पक्ष ले रही थी.
चटर्जी कहते हैं, “यह एक असहज स्थिति थी. मेरे आस-पास के अन्य लोगों ने भी उसके व्यवहार पर ध्यान दिया. लेकिन कोई क्या कह सकता था? शायद नस्लवाद से तंग आकर एयरहोस्टेस ने ऐसा व्यवहार किया. लेकिन श्वेत यात्री की क्या गलती थी? क्या उसे नस्लवादी श्वेत लोगों के व्यवहार के चलते सजा मिलनी चाहिए?”
दोस्तोजी की दुनिया गंगा-जमुनी तहजीब (हिंदू-मुस्लिम सद्भाव) कहे जाने वाले खूबसूरत झूठ को कायम नहीं रखती है. इसके बजाय, यह सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली (1955) की प्रारंभिक मासूमियत को हमारी दुनिया की जटिलताओं के सामने खड़ा करता है.
फिल्म में दो लड़कों में से एक पलाश के माता-पिता जब कहते हैं कि वह उन गांवों में जाकर बस जाएंगे जहां अधिक हिंदू आबादी है, तो वह अपने दोस्तोजी, सफीकुल के साथ बिताए जीवन के पल को छोड़ना नहीं चाहता. वहीं, सफीकुल को अपने हिंदू दोस्त के साथ राम रथ यात्रा देखने के लिए अपने पिता से कड़ी सजा मिलती है.
चटर्जी यहां हिंदू-मुसलमान या काले-गोरे से भी ज्यादा बड़ा विभाजन देखते हैं. उनका कहना है कि दुनिया उन लोगों के बीच बंटी हुई है जिनके पास सबकुछ है और जिनके पास कुछ नहीं है.
चटर्जी कहते हैं, “उदाहरण के लिए दुबई के किसी मॉल में, बंगाल या बांग्लादेश या यहां तक कि पाकिस्तान से आए एक गरीब मुस्लिम प्रवासी श्रमिक, जो विदेशी भूमि पर सालों से रह रहा है, का स्वागत नहीं किया जाएगा. वहां अदृश्य कांच के दरवाजे हैं जो उसके लिए बंद हैं. लेकिन एक अमीर हिंदू उस स्थान पर रहने में सहज होगा. गरीब होना असली अभिशाप है.”
उनका कहना है कि किसी दिन दोस्तोजी के पात्रों की तरह गरीब ग्रामीण बच्चों के लिए एक स्कूल खोलना उनका सपना है. वह उस दिन के लिए बचत कर रहा है.
दुनिया को दोस्तोजी
यह शायद निर्देशक की छोटी-छोटी चीज़ों में सुंदरता देखने की क्षमता है जिसने दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया है. फिल्म को 26 देशों में 32 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में शामिल किया गया. इसका प्रीमियर 65वें बीएफआई लंदन फिल्म फेस्टिवल में नो टाइम टू डाई (2021) और किंग रिचर्ड (2021) जैसी हॉलीवुड की बड़ी फिल्मों के साथ हुआ. इतना ही नहीं, इसने नौ अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते, जिनमें यूनेस्को द्वारा समर्थित 2022 का CIFEJ पुरस्कार विजेता, जापान से गोल्डन शिका, शिकागो इंटरनेशनल चिल्ड्रन फिल्म फेस्टिवल से ग्लोबल इम्पैक्ट अवार्ड, मलेशिया गोल्डन ग्लोबल अवार्ड, सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार शामिल है. साथ ही इंग्लैंड की कला परिषद और शारजाह और जाफना अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव से सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला.
भारत में चार बांग्ला फिल्मफेयर पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ पटकथा और सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफी) जीतने के बाद, दोस्तोजी ने पूरे अमेरिका के 75 शहरों में ऑस्कर क्वालीफाइंग थियेट्रिकल रिलीज की थी.
इसे 28 जुलाई को चीनी मंदारिन सबटाइटल के साथ इसे ताइवान में भी रिलीज़ किया गया और तीन दिनों के भीतर यह बॉक्स-ऑफिस पर हिट हो गई. ताइवानप्लस, जो एक राज्य-वित्त पोषित मुक्त ताइवान में अंग्रेजी भाषा का टेलीविजन चैनल है, ने लिखा, “स्थानीय फिल्मों, अमेरिकी ब्लॉकबस्टर और पूर्वी एशियाई पड़ोसियों की हिट फिल्मों के प्रभुत्व वाले बाजार में, बंगाली भाषा में पुरस्कार विजेता भारतीय आर्ट हाउस फिल्म “दोस्तोजी” ताइवान में अप्रत्याशित हिट साबित हुई है.”
31 जुलाई को प्लेटफॉर्म ने लिखा कि ओपेनहाइमर (2023) और बार्बी (2023) के बाद ताइवान के पास तीसरा विकल्प है. यह बात दोस्तोजी के बारे में हो रही थी.
अज्ञात रहने का सौंदर्य
भले ही दोस्तोजी दुनिया भर में काफी चर्चा में रहे हैं, लेकिन इसने चटर्जी को स्टार नहीं बनाया है. या यहां तक कि सिनेमा और संस्कृति पर टीवी टॉक शो में एक नियमित चेहरा भी.
चटर्जी कहते हैं, “मैं कोई स्टार फिल्म निर्माता नहीं हूं. ये नहीं हो सकता. यह वह नहीं है जो मैं हूं. मैं झूठ बोलूंगा अगर मैं कहूं कि पैसा और शोहरत मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते. मेरा मानना है कि एक फिल्म को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य होना चाहिए. लेकिन मैं वह नहीं कर सकता जो एक स्टार फिल्म निर्माता या सेलिब्रिटी बनने के लिए जरूरी है.”
कोलकाता में चटर्जी अभी भी मेट्रो से चलते हैं. उनके पास कोई कार नहीं है क्योंकि उनका कहना है कि निजी वाहन में यात्रा करने से उनके लिए दुनिया बंद हो जाएगी.
और फिर ईरानी सिनेमा के दिग्गज असगर फरहादी की सलाह है, जिनके रूप में चटर्जी को एक दोस्त और गुरु मिल गया है.
चटर्जी कहते हैं, “लंदन फिल्म फेस्टिवल में दोस्तोजी के प्रीमियर के दौरान, फरहादी ने मुझसे कहा कि इस प्रशंसा में खुद को मत खोना. उन्होंने कहा कि मुझे दोस्तोजी की दुनिया को कभी नहीं खोना चाहिए जो मैं अपने अंदर रखता हूं और मैं जितना अधिक स्थानीय बनूंगा, मेरी कला उतनी ही अधिक वैश्विक होगी.”
यह वह सलाह है जिसने शायद चटर्जी को एक हॉलीवुड निर्माता को ना कहने में मदद की (वह यह नहीं बताएंगे कि वह कौन था). निर्माता दोस्तोजी की बातों में इस कदर आ गए कि उन्होंने चटर्जी को अमेरिका में एक अंग्रेजी भाषा की फिल्म का निर्देशन करने के लिए 10 मिलियन डॉलर तक की पेशकश की.
चटर्जी कहते हैं, “मैं उत्साहित था और फिर अनिश्चित था और फिर मैंने विनम्रता से मना कर दिया. मेरा मतलब है, यह बहुत सारा पैसा है. लेकिन मुझे नहीं पता कि मैं इतने बजट को संभालने, बड़े क्रू के साथ काम करने या अपने अगले प्रोजेक्ट को उस स्तर तक बढ़ाने के लिए तैयार हूं या नहीं. मैंने उनसे कहा कि हम संपर्क में रहेंगे. अब मैं बस इतना करना चाहता हूं कि खुद को अपने अगले विचार में खो दूं, शोध करने, लिखने और फिर अपनी अगली फिल्म का निर्देशन करने की प्रक्रिया में व्यस्त हो जाऊं.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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