शाहजहांपुर/यूपी: पिछले 10 साल से चल रहे मुकदमों में भाग लेने, वकीलों के दस्तावेज़ों में डूब जाने और अपनी बेगुनाही साबित करने में दो लोगों ने अपनी ज़िंदगी के महत्वपूर्ण साल बिताए हैं.
लेकिन दोनों में कोई समानता नहीं है. इन दो में एक आसाराम हैं, जो गुजरात के 82-वर्षीय शक्तिशाली, सफेद वस्त्रधारी, दाढ़ी वाले, स्वयंभू ‘गुरू’ हैं — जिनके पास भक्ति, दान और प्रभुत्व का एक विशाल पंथ जैसा साम्राज्य है — जो 16- वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार का दोषी है. दूसरे हैं सिंह, वे आसाराम के पूर्व भक्त हैं, लेकिन वो उसी नाबालिग के पिता भी है. अब उनके जीवन का मिशन सिर्फ आसाराम को आजीवन जेल में रख कर उस बैरक की चाभियां कहीं फेंक देने का है.
अपनी बेटी के अधिकार और उसकी सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे, सिंह अब एंटीडिप्रेशन दवा रोज़ लेने लगे हैं, वे कहते हैं, “यह अब अदालती लड़ाई नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका बन गया है. हम हमेशा के लिए इसमें फंस गए हैं.”
आसाराम बलात्कार, हत्या, भूमि अतिक्रमण और गवाहों से छेड़छाड़ जैसे कई मामलों में कोर्ट ले जाए गए हैं. जोधपुर में 2018 में नाबालिग से बलात्कार के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने और तब से आजीवन कारावास की सजा काट रहे आसाराम उच्च न्यायालयों में अपनी सजा के निलंबन के लिए लगातार अपील कर रहे हैं — लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. इस बार, उन्होंने 10 जुलाई को राजस्थान हाई कोर्ट का रुख किया और अपने एक आश्रम जाने के लिए 20 दिन की पैरोल की गुहार लगाई है.
भारत में किसी प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु के खिलाफ कोई एक्शन लेना आसान नहीं रहा है और कोई भी ऐसा करने की हिम्मत भी नहीं कर पाता है, क्योंकि ये आध्यात्मिक-औद्योगिक परिसर, सभी अर्थों में, धर्म, राजनीति, धन, बाहुबल और कभी-कभी भू-माफिया का मिला जुला भयानक रूप होते हैं. इसलिए, जब सिंह ने 2013 में अपनी बेटी के बलात्कार के बाद आसाराम के खिलाफ लड़ाई शुरू की, तो गुरु पंथ के अनुयायी सिंह के परिवार पर जवाबी हमलों के साथ, देश के सबसे शक्तिशाली वकीलों की एक सेना के साथ कोर्ट में उतर आए.
लेकिन निःसंदेह सिंह की साहसिक लड़ाई एक शक्तिशाली व्यक्ति के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के मामले को कैसे लड़ना है, इसका एक खाका भी बन गया है, जो कानूनी, सामाजिक और वित्तीय — कई मोर्चों पर जबरदस्त रसूख रखता है. 61 साल की उम्र में वे उत्साहपूर्वक अपने परिवार की गोपनीयता की रक्षा करते हैं. हाल ही में ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर रिलीज़ हुई मनोज वाजपेयी अभिनीत फिल्म सिर्फ एक ही बंदा काफी है, में सिंह के परिवार की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करती है. यह सिंह के वकील पीसी सोलंकी पर केंद्रित कानूनी लड़ाई को भी दर्शाती है.
शिकायत दर्ज करने के बाद, सिंह को अज्ञात लोगों से जान से मारने की धमकी देने वाले सैकड़ों फोन आए. उन लोगों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, उन पर अपने गुरु को बदनाम करने के लिए अपनी बेटी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया यही नहीं उन पर इस मामले को छोड़ने का तरह तरह से दबाव भी डाला गया. सिंह ने अपना फोन नंबर बदल लिया और अज्ञात नंबरों से आए कॉल को उठाना बंद कर दिया.
लेकिन फिर, चिट्ठियां आनी शुरू हो गईं
गुस्साए आसाराम के भक्त अक्सर उनकी बेटी के खिलाफ अभद्र भाषा वाली चिट्ठियां उनके दरवाजे पर फेंकते थे. अजनबी, उनके परिवहन व्यवसाय में रुचि रखने वाले ग्राहक होने का नाटक करते हुए, उन्हें डराने के लिए उनके दरवाजे पर दस्तक देते थे, लेकिन सिंह ने हार नहीं मानी.
उन पांच वर्षों में उनका ट्रक का बिजनेस पूरी तरह से बर्बाद हो गया और उन्हें लाखों रुपये का नुकसान हुआ, गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं, उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों ने साथ देना छोड़ दिया और वो एक जुनूनी की तरह इस व्यक्ति का पर्दाफाश करने में जुट गए. ऐसा नहीं था कि सिर्फ उनकी 16-वर्षीय बेटी का पारिवारिक गुरू ने यौन शोषण किया था, बल्कि वह व्यक्तिगत रूप से ठगा हुआ भी महसूस कर रहे थे, ये उनके टूटे हुए विश्वास की भी कहानी है.
सिंह कहते हैं, ”जब तक उन्होंने मेरी बेटी का यौन शोषण नहीं किया, तब तक हम उन्हें भगवान की तरह पूजते थे.” उन्होंने आगे कहा कि जब भी वह यूट्यूब पर आसाराम का कोई वीडियो देखते हैं तो उन्हें आज भी घृणा महसूस होती है. भले ही उन्होंने सभी बाधाओं के बावजूद 2018 में आसाराम को सजा दिलाने में कामयाब रहे, लेकिन उनकी ये कानूनी लड़ाई अंतहीन है और जारी है. आसाराम के वफादार भक्तों के गुस्से के खिलाफ यह डेविड बनाम गोलियथ की लड़ाई रही है, जिन्होंने सिंह को जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अपहरण, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के कई जवाबी मामलों में निशाना बनाया था. वे अपनी बेटी और अपने परिवार को निर्दोष साबित करने के लिए पिछले 10 वर्षों से एक अदालत से दूसरी अदालत में दौड़ रहे हैं.
सिंह की बेटी अब शादीशुदा है और अपने माता-पिता से दूर रहती हैं, सिंह अभी भी उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में रहते हैं.
सिंह ने दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में हाल ही में एक अन्य मामले में उनका प्रतिनिधित्व कर रही वकील गरिमा भारद्वाज के माध्यम से बात की, “यह मेरे खिलाफ आठवां मामला है, महाराज. मुझे पहले भी सात मामलों में बरी किया जा चुका है. मैं एक आदमी के खिलाफ लड़ रहा हूं.”
सफेद कुर्ता-पायजामा पहने एक गठीला आदमी, जिसकी उपस्थिति शानदार थी, वे अदालत के कमरा नंबर 207 में खड़ा था, जिसके बगल में उत्तर प्रदेश के तीन पुलिसकर्मी थे. तीन घंटे के इंतज़ार और ऊपर-नीचे चक्कर लगाने के बाद, आख़िरकार अगली सुनवाई की तारीख हाथ में लेकर वे बाहर निकला.
आसाराम के कट्टर भक्तों की दुनिया में यह अदालती तारीखों और धीमी गति से चलने वाली बहसों का एक अंतहीन चक्र रहा है – जो अंततः एक पिता की दृढ़ता बनाम विश्वास की लड़ाई में बदल गया.
राजस्थान हाई कोर्ट में अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ आसाराम की अपील पर अंतिम सुनवाई जल्द ही शुरू होने की उम्मीद है.
सिंह के सबसे बड़े बेटे ओमवीर* कहते हैं, ”अगर वह बाहर होता, तो हम जेल में होते.”
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एक आदमी की लड़ाई
आसाराम का मुकदमा हाल के दशकों में सबसे अधिक बारीकी से पालन की जाने वाली आपराधिक कार्यवाही में से एक रहा है. यह भारतीय कानूनी उद्योग में सबसे ज्यादा चर्चित रहा है जिसे देश के 50 सबसे शक्तिशाली और सबसे महंगे भारतीय वकील गुरू के बचाव में आगे आए हैं – राम जेठमलानी, सलमान खुर्शीद, राजू रामचंद्रन, मुकुल रोहतगी, केके मनन, यूयू ललित, सुब्रमण्यम स्वामी, देवदत्त कामत सिद्धार्थ लूथरा और अन्य.
दूसरी ओर, सिंह के वकील सोलंकी अकेले खड़े थे – बिना मर्सिडीज बेंज, फैंसी बिजनेस कार्ड या ऑक्सब्रिज लहजे के, लेकिन उनके अंदर आसाराम के 40 साल पुराने साम्राज्य को ढहाने की आग थी—गुरू भारत में लगभग 400 आश्रम और 40 से अधिक आवासीय विद्यालय चलाते हैं.
सोलंकी कहते हैं, “मामला अभी तक अपने अंतिम पड़ाव तक नहीं पहुंचा है. इसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है. एक बार जब यह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाएगा, तो निश्चित रूप से न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर बन सकता है. ”
सिर्फ एक ही बंदा काफी है फिल्म में मनोज बाजपेयी ने सोलंकी का किरदार निभाया है और एक नाबालिग लड़की के खिलाफ किए गए अपराध की प्रकृति और समाज पर इसके प्रभाव को उजागर करने के लिए चरमोत्कर्ष में रामायण का उदाहरण दिया है.
उन्होंने कोर्ट रूम में गरजते हुए कहा कि दुनिया में तीन तरह के पाप होते हैं. पहले दो पाप कुछ हद तक क्षमा योग्य हैं, लेकिन तीसरे प्रकार के पाप के लिए कोई क्षमा नहीं है. रावण ने सबसे बड़ा पाप किया था – सीता का अपहरण, रावण के रूप में नहीं बल्कि एक संत के रूप में.
बाजपेयी फिल्म में कहते हैं, “इसने आने वाली सदियों तक पूरी मानवता पर घाव छोड़े हैं. यह आदमी रावण है. उसने भक्ति, नाबालिगों और भगवान को धोखा दिया है. उसने ऐसा जघन्य अपराध करने के लिए हमारे भगवान के नाम का इस्तेमाल किया. मैं मृत्युदंड की मांग करता हूं,” “इसे मरने तक फांसी दी जाए.” अदालत खामोश हो जाती है और पर्दे के पीछे छिपा काल्पनिक आसाराम चरित्र डर के मारे अपने हाथ पकड़ लेता है.
वास्तविक जीवन की घटनाएं भी उतनी ही नाटकीय थीं. सोलंकी को पता था कि आसाराम के खिलाफ सज़ा जोधपुर पुलिस के एक पुख्ता मामले, आसाराम की कानूनी टीम के हर जवाबी आरोप के दस्तावेज़ीकरण और जो कुछ हुआ उसके बारे में सिंह की बेटी की स्थिरता और विवरण पर निर्भर है. उसके बयान में हुई गड़बड़ियों की जांच की जाएगी ताकि उसे बदनाम किया जा सके.
पेचीदा मामले में एक नया मोड़ लाते हुए, आसाराम की कानूनी टीम ने निचली अदालत में अपील की कि सिंह की बेटी नाबालिग नहीं है और POCSO के आरोप हटा दिए जाने चाहिए. यह दावा करने के लिए एक मनगढ़ंत प्रमाण पत्र पेश किया गया था कि वह स्वामी चिन्मयानंद द्वारा संचालित यूपी स्कूल की छात्रा थी, लेकिन राजस्थान से अपराध जांच विभाग (सीआईडी) की एक टीम यूपी गई और पुष्टि की कि वह नाबालिग है.
सोलंकी कहते हैं, ”मामले के लिए जोधपुर पुलिस की जांच जरूरी थी.” संबंधित धाराओं को लागू करने और फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने से लेकर, सब कुछ समयबद्ध तरीके से किया गया.
2014 में, जब ट्रायल कोर्ट प्रमुख चश्मदीदों के बयान दर्ज कर रहा था, आसाराम ने मेडिको-लीगल पर जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सोलंकी ने जोधपुर से नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी, उनका तर्क अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों की ‘योग्यता’ पर आधारित था, जिनके बारे में उन्होंने सुझाव दिया था कि वे गुरू की जांच कर सकते हैं. एम्स के डॉक्टरों की एक समिति ने जेल में आसाराम की जांच करने के लिए जोधपुर की यात्रा की थी और अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें पुष्टि की गई थी कि गुरू को किसी सर्जरी की आवश्यकता नहीं है. न केवल आसाराम की ज़मानत अपील खारिज कर दी गई, बल्कि शीर्ष अदालत ने पुलिस को अदालत को गुमराह करने के लिए आसाराम के खिलाफ मामला दर्ज करने और उस पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाने का भी निर्देश दिया.
सिंह आसाराम को दोषी ठहराने की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहे. मुकदमे के दौरान उन्हें महीनों तक जोधपुर में रहना पड़ा. लड़की का बयान दर्ज करने और जिरह करने में लगभग तीन महीने लग गए. सिंह को एक महीने तक, जबकि उनकी पत्नी को दो महीने तक यह अग्निपरीक्षा झेलनी पड़ी.
सिंह कहते हैं, ”यह हमें आर्थिक रूप से थका देने का एक तरीका था,” उन्होंने आगे कहा कि उन्हें न केवल अपने लिए बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए नियुक्त सुरक्षाकर्मियों के लिए आवास और भोजन का खर्च भी वहन करना पड़ता था. परिवार ने जोधपुर में एक होटल का कमरा किराए पर लिया. एक दिन, सिंह ने कमरा खोला और देखा कि एक आदमी उनके सामने वाला कमरा बुक कर रहा है.
असहायता की यह भावना अदालत में बढ़ गई थी.
सिंह कहते हैं, “मेरा एक बहुत छोटा सा कमरा था. आसाराम पर्दे के पीछे कुर्सी पर बैठ गए. हमें ऐसा महसूस कराया गया जैसे हम आरोपी हैं. मेरी बेटी को उसके बयान दर्ज करने से विचलित करने के लिए चिकोटी काटी गई और उसके पैर पर ठोकर मारी गई.”
उसकी मां निराशा से भर गई जब-जब लड़की के बयान दर्ज कराने के दौरान उन्हें बाहर इंतजार करना पड़ा था.
वह कहती हैं, “हमारी बच्ची को हमारी ज़रूरत थी, लेकिन हमें बाहर इंतज़ार करना पड़ा. इसके बाद, हम वकीलों के एक समूह से मिले जो हमें बुरी तरह से गालियां देते थे.”
केस के दौरान आसाराम ने करीब 40 अर्जियां दाखिल की. सोलंकी कहते हैं, ”तीन को छोड़कर, वह उनमें से अधिकांश हार गए.”
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पूजा और विश्वासघात के 10 साल
1980 के दशक में हरियाणा के एक गांव में पले-बढ़े एक युवा के रूप में सिंह ने शाहजहांपुर में ट्रकिंग व्यवसाय शुरू करने के लिए अपने सैन्य परिवार को छोड़ दिया.
सिंह याद करते हैं, ”यह एक पिछड़ा जिला था जो बदलाव के इंतज़ार में था.” उस समय, वह शहर के तीन ट्रांसपोर्टरों में से एक थे; अब यहां 15 हैं.
हालांकि, शाहजहांपुर उन्हें “परदेस” (विदेशी) जैसा महसूस हुआ, सिंह ने एक समृद्ध व्यवसाय स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत की. फिर वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों को भी साथ ले आए.
2001 तक उन्होंने शाहजहांपुर में अपना घर बना लिया था. उन्होंने अपने पैतृक गांव में अपने घर के भी बिलकुल नये तरीके से बनवाया.
सिंह कहते हैं, “जब आपके पास सबकुछ होता है तो आप जीवन में मार्गदर्शन के लिए आध्यात्मिक गुरू की तलाश करते हैं. उन दिनों मैं भी कुछ तलाश रहा था जब मैं एक स्थानीय वकील से मिला, जो आसाराम का भक्त था,” वकील ने उन्हें आसाराम द्वारा प्रकाशित एक पत्रिका दी, जो उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं से भरी थी.
सिंह और उनकी पत्नी आसाराम के भक्तों की बढ़ती सूची में शामिल होने वाले शाहजहांपुर के तीसरे जोड़े थे.
आसाराम के वीवीआईपी आगंतुकों की सूची में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, पीएम नरेंद्र मोदी, मध्य प्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती, राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह, जो वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, शामिल थे. नाबालिग लड़की के माता-पिता गुरु के सत्संग में जाने लगे. उन्होंने अपनी बेटी और एक बेटे का दाखिला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा गुरुकुल में कराया – जो आसाराम द्वारा चलाए जाने वाले 40 गुरुकुलों में से एक है.
सिंह कहते हैं,“आसाराम उपदेश देते थे कि हमें अपनी बचत का 10 प्रतिशत दान करना चाहिए. उन्होंने जो कुछ भी कहा, मैंने उसे ईश्वरीय सत्य माना. उन्होंने हमें विश्वास दिलाया कि उन पर अविश्वास करना गाय को मारने के बराबर है.” परिवार प्रत्येक पूर्णिमा या पूर्णिमा की रात को उनका आशीर्वाद लेने के लिए सभी नियमों का पालन करता था. आसाराम की एक झलक पाने के लिए सिंह ने ओडिशा से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक पूरे भारत की यात्रा की.
उन्होंने शाहजहांपुर में गुरू के लिए एक आश्रम बनाने की भी पेशकश की. सात एकड़ ज़मीन खरीदने से लेकर भवन निर्माण, पेड़ लगाने और बिजली कनेक्शन स्थापित करने तक, उन्होंने आश्रम को आसाराम के अनुरूप सफल बनाने के लिए सब कुछ किया.
परिवार को विश्वास होने लगा कि आसाराम भगवान का अवतार नहीं बल्कि स्वयं भगवान हैं. उनके दो मंजिला घर की दीवारें 2013 तक आसाराम के पोस्टरों से सजी रहीं, तब तक जब तक सिंह का अपने गुरू पर अटूट विश्वास टूट नहीं गया.
जिस दिन 2018 में आसाराम को जोधपुर की अदालत ने दोषी ठहराया, सिंह का घर पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था. सिंह याद करते हैं, “शिकायत दर्ज करने के बाद उनके 50 से अधिक भक्त हमारे घर में घुस आए और मामला वापस लेने के लिए हम पर दबाव बनाने लगे और उस दिन हमारी पीट-पीट कर हत्या कर दी गई होती अगर तत्कालीन शाहजहांपुर एसपी ने पुलिस बल नहीं भेजी होती.”
सिंह याद करते हैं कि उनके परिवार को क्या क्या झेलना पड़ा था, “सिटी मजिस्ट्रेट ने हमारी सुरक्षा के लिए घर के बाहर डेरा डाल दिया था.”
साल 2013
सिंह की बेटी चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहती थी.
उनकी मां अनीता* ने बताया, “वह कहती थी कि वे अपने पिता के व्यवसाय में मदद करेगी.”, लेकिन अगस्त 2013 में, जब वे मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा गुरुकुल में पढ़ रही थी, तब वो बीमार पड़ गई और उसके माता-पिता को बुलाया गया. वार्डन ने उन्हें खुद आसाराम से मिलने का निर्देश दिया क्योंकि उन्हें लगा कि उस पर बुरी आत्माएं हैं.
परिवार ने वही किया जो उन्हें बताया गया था. वे 14 अगस्त को आसाराम से मिलने जोधपुर पहुंचे. अगली रात, बाबा ने उसका इलाज करने के बहाने आश्रम में अपने निजी क्वार्टर में उसके साथ बलात्कार किया.
अदालत में अपनी गवाही में लड़की ने कहा कि आसाराम ने उसके कपड़े उतार दिए और उस पर यौन कृत्य करने के लिए दबाव डाला, जबकि उसके माता-पिता मंत्रों का जाप करते हुए बाहर इंतज़ार कर रहे थे.
उसे यह भी धमकी दी गई कि अगर उसने यह बात किसी को बताई तो उसके परिवार को जान से मार दिया जाएगा.
उसकी मां जिसे नहीं पता था कि उसके साथ क्या हुआ है. वह बताती हैं कि “जब वह बाहर आई, तो उसने कहा, ‘वह भगवान नहीं है, वह एक राक्षस है,” बाद में ही उन्हें एहसास हुआ कि कुछ बहुत ज्यादा गलत हुआ है. परिवार तुरंत अपने घर शाहजहांपुर के लिए रवाना हो गया. माता-पिता दोनों को वह रात पूरी तरह से याद है जब उसने अंततः उन्हें बताया कि उसी आदमी ने उसके साथ बलात्कार किया था जिसकी वे पूजा करते थे.
सिंह कहते हैं, “उसकी आंखों में आंसू थे. मैंने बस यह बताने के लिए उसके सिर पर हाथ रखा कि मुझे उस पर विश्वास है,” उसके तुरंत बाद उन्होंने दीवारों से आसाराम के पोस्टर हटा दिए और उन्हें एक-एक करके फाड़ दिए. माता-पिता और बेटी तुरंत बाबा से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो गए.
आसाराम रामलीला मैदान में हज़ारों लोगों को उपदेश दे रहे थे. जब उन तीनों ने उससे मिलने की कोशिश की तो उसने उन्हें भगा दिया.
सिंह कहते हैं, “मैं हजारों की भीड़ के सामने उसकी दाढ़ी पकड़कर उसका मुकाबला करना चाहता था. मैं उनसे पूछना चाहता था कि उन्होंने मेरी बेटी के साथ ऐसा क्यों किया,” लेकिन उनकी बेटी ने उन्हें चेतावनी दी कि अगर उन्होंने सार्वजनिक रूप से उनका सामना करने की हिम्मत की तो भक्तों की सेना उन्हें पीट-पीट कर मार डालेगी.
“चलो पुलिस के पास चलते हैं,” उसने अपने पिता से आग्रह किया. रामलीला मैदान का निकटतम पुलिस स्टेशन कमला मार्केट में था. पुलिस ने आखिरकार 19-20 अगस्त की रात को एक एफआईआर दर्ज की – एक ‘शून्य एफआईआर’ जिसे किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज किया जा सकता है, चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो. बाद में मामला जोधपुर स्थानांतरित कर दिया गया.
इस मामले ने सिंह की बेटी के चार्टर्ड अकाउंटेंसी के सपने को चकनाचूर कर दिया और यह एहसास दिलाया कि यह जीवन का अंत है जैसा वो अभी तक समझ चुकी थी. इस घटना के बाद वह कभी कॉलेज नहीं जा सकी और परिस्थितियों के कारण उसे कॉरेसपॉडेंस से बीए और एमए की डिग्री प्राप्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उसकी मां कहती हैं, ”वह अपने घर से बाहर सिर्फ इसलिए निकलती थी ताकि या तो अदालत में अपनी गवाही दे सके या अपनी परीक्षा दे सके.” “वे बहुत बुद्धिमान, आत्मविश्वासी थी और धाराप्रवाह अंग्रेज़ी बोलती थी.” घर के अंदर रहने के बावजूद, उन्होंने अपने कॉलेज के अंतिम वर्ष में अच्छा प्रदर्शन किया.
सोलंकी ने भी उसके आत्मविश्वास की पुष्टि करते हुए कहा कि वह कभी नहीं डिगी और पूरे मुकदमे के दौरान अपनी सच्चाई पर कायम रही.
इस मामले में जांच का नेतृत्व करने वाले भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी अजय पाल लांबा ने अपनी पुस्तक, गनिंग फॉर द गॉडमैन: द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू के कन्विक्शन में लिखा है कि जब भी उनकी टीम के पास कोई खराब पल होता था, तो उन्हें उनका चेहरा याद आता था. यह उन्हें याद दिलाएगा कि 16 साल की बच्ची न्याय के अलावा कुछ नहीं चाहती थी.
किताब में बताया गया है कि कैसे मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी. जोधपुर पूर्व के तत्कालीन डीसीपी लांबा ने अपनी 20 अधिकारियों की टीम से कहा कि यह उनके जीवन का सबसे बड़ा मामला होगा. वह सही था.
जनमत की लहर के खिलाफ, जोधपुर पुलिस ने 31 अगस्त को आसाराम को उनके इंदौर आश्रम से गिरफ्तार कर लिया.
लांबा नवीनतम व्यक्ति हैं जिन्हें अपनी किताब में जांच के विवरण का खुलासा करने के लिए आसाराम का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने सीरीज़ द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में घसीटा गया है.
जो कोई भी आसाराम का नाम लेता है, उसे गंभीर सामाजिक और कानूनी धमकी, आलोचना और धमकाने का शिकार होना पड़ता है. ऐसे उदाहरण हैं जब अजनबियों ने सिंह का पीछा किया और उसके ठिकाने पर नज़र रखी. दो लोग ग्राहक बनकर पिस्तौल लेकर उसके घर आए.
नरेंद्र यादव, जो अब एक खोजी पत्रकार हैं, ने दैनिक जागरण के स्थानीय संस्करण में एक ट्रेनिंग रिपोर्टर के रूप में अपना करियर शुरू किया जब उनकी मुलाकात सिंह से हुई.
यादव कहते हैं, “मैं धरम-करम बीट को कवर करता था. सिंह आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) से जुड़े थे, और इस तरह हमें बातचीत करने के कुछ मौके मिले. वे हरियाणा के एक मेहनती जाट की तरह लग रहे थे.”
बाद में यादव ने अगस्त 2013 और सितंबर 2014 के बीच मामले के चरम पर आसाराम और उसके लोगों पर 287 से अधिक विशेष खबरें प्रकाशित कीं. फिर, 17 सितंबर को, वह चमत्कारिक रूप से एक रहस्यमय जानलेवा हमले से बच गए. वह रात करीब 10:30 बजे अपने कार्यालय से बाहर निकल रहे थे, तभी बाइक पर सवार दो लोगों ने उन्हें रोक लिया. जब सवार बाइक के पास इंतजार कर रहा था, तो पीछे बैठा व्यक्ति नीचे उतरा, यादव की ओर गया और दरांती से उनका गला काट दिया.
यादव को मरा हुआ समझकर दोनों लोग भाग गए. हमले में यादव बच गए लेकिन उनकी ठुड्डी पर 28 और गर्दन पर 42 टांके आए. अगले वर्ष, स्थानीय पुलिस ने उसके हमलावरों की पहचान की जब एक अन्य गवाह और सिंह परिवार के करीबी मित्र किरपाल की हत्या कर दी गई. उन लोगों में से एक, कार्तिक हलदर, जिसे किरपाल की हत्या के लिए गिरफ्तार किया गया था, कथित तौर पर यादव पर हमले में भी शामिल था. मुकदमा चल रहा है और दूसरे हमलावर की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है.
मुकदमे के दौरान कम से कम सात गवाहों पर हमला किया गया, उनकी हत्या कर दी गई या वे लापता हो गए. कृपाल सहित तीन की हत्या कर दी गई, तीन लापता हो गए और एक व्यक्ति को जोधपुर में अदालत परिसर के अंदर चाकू मार दिया गया.
अकेलेपन में परिवार एक साथ
शिकायतकर्ता, पत्रकार और गवाह उन सभी वर्षों में डर और भय के साय में रहे. उनके इर्द-गिर्द अनकही चेतावनी यह थी: यदि आपने आसाराम के खिलाफ कुछ भी खुलासा किया, तो आपको भुगतना पड़ेगा.
अब भी सिंह बलात्कार जैसे अपराधों के लिए झूठे आरोप लगाए जाने के डर में रहते हैं. वह अजनबियों, खासकर महिलाओं से अकेले नहीं मिलते और मीडिया से बात करते समय अपने शब्दों का चयन सावधानी से करते हैं.
इतने वर्षों में, वह थक गए हैं, सिंह कहते हैं, “कोई भी इंटरव्यू मुझे एक और मामले में फंसा सकता है. मुझे धमकी दी गई है कि मेरे खिलाफ धारा 376 (बलात्कार) के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. फर्जी महिला पत्रकारों ने मेरे दरवाजे भी खटखटाए हैं.”
न्याय की लड़ाई में उन्हें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. लोग अब दोस्ताना मुलाकातों के लिए नहीं आते और ट्रायल के चरम पर, उनका परिवहन व्यवसाय लगभग बंद हो गया. कोई भी उनके साथ काम नहीं करना चाहता था.
अलगाव और अकेलेपन के इस सागर में उनकी बेटी और परिवार उनके आश्रय के द्वीप थे.
सिंह कहते हैं, ”मेरी बेटी की शादी ने मुझे इस तरह से आराम दिया है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था.” 2019 में सिंह को एक “बहादुर परिवार” मिला, जो उनके साथ जुड़ने को इच्छुक था. जब भावी पति को मामले के बारे में बताया गया तो उसने अपनी बेटी को निराश न करने की कसम खाई.
परिवार ने अपने पैतृक गृहनगर में पूरे गांव के सामने भव्य तरीके से उसकी शादी की, लेकिन विवाह स्थल पर दूल्हे के घोड़े पर पहुंचने से ठीक पहले, एक ग्रामीण उसके पास गया और उसके कान में कुछ फुसफुसाया. उन्होंने दूल्हे से कहा, “क्या आप जानते हैं कि वह वही लड़की है?” लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया.
जिन लोगों ने एक बार सिंह पर केस वापस लेने का दबाव बनाने के लिए 12-गांव की पंचायत आयोजित करने की धमकी दी थी, वे भी शादी में आए.
बेटे ओमवीर* का कहना है, “उसे अपने पिता पर गर्व है. वह हमारे लिए हीरो हैं.” ओमवीर को भी न्याय की वेदी पर अपनी महत्वाकांक्षाओं का बलिदान देना पड़ा. वे एक सरकारी अधिकारी बनना चाहते थे लेकिन परिस्थितियों के कारण वो भी आगे नहीं पढ़ पाए क्योंकि उनके पिता ज्यादातर अदालतों के चक्कर लगा रहे थे और अधिकतर बाहर ही रहते थे.
अपने व्यवसाय में 50 प्रतिशत से अधिक नुकसान झेलने के बाद, ओमवीर इसे वापस पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं और वर्तमान में सिंह शाहजहांपुर में जाट सभा के अध्यक्ष हैं.
हालांकि, लड़की की मां खुद को घर की दूसरी मंजिल तक ही सीमित रखती हैं. भूतल का उपयोग पुलिस सुरक्षा और परिवहन व्यवसाय के लिए किया जाता है, जबकि सिंह पहली मंजिल पर रहते हैं.
आज, सिंह को हिंदू भगवान हनुमान में सांत्वना मिली है. वह हंसते हुए कहते हैं, “इस बार, कोई बिचौलिया या बाबा नहीं है.”
इस बीच, शहर आगे बढ़ गया है. शाहजहांपुर आश्रम में जिसे दंपति ने बनवाया था, अब भी सत्संग होते हैं और आसाराम के भक्त अभी भी वहां प्रार्थना करने के लिए आते हैं. आश्रम के कार्यकर्ताओं को बताया जाता है कि ‘बापू’ जल्द ही जेल से बाहर आ जाएंगे और उनके भक्तों को आशीर्वाद देने का समय आ गया है, जो आस-पड़ोस में आश्रम के पर्चे बांटते हैं और साथ ही सिंह की बेटी को बदनाम भी करते हैं. अपनी बालकनी से सिंह और उनकी पत्नी दोनों असहाय होकर अपने पड़ोसियों और दोस्तों को आश्रम में जाते हुए देखते हैं.
और सिंह आस्था से आगे बढ़ चुके हैं. वह अब आश्रम की गतिविधियों का अनुसरण नहीं करते हैं. उन्होंने 2013 के बाद से इसका दौरा नहीं किया है.
हालांकि, एक सवाल है जिसके बारे में वह आज भी उत्सुक हैं.
सिंह खुद को पूछने से नहीं रोक पाते है कि “क्या पौधे बड़े होकर पेड़ बन गए हैं?”
(अनुवाद: पूजा मेहरोत्रा)
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