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Thursday, 21 November, 2024
होमफीचरफंड की कमी, सांसदों की उदासीनता: किस हाल में है PM मोदी की महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना

फंड की कमी, सांसदों की उदासीनता: किस हाल में है PM मोदी की महत्वाकांक्षी सांसद आदर्श ग्राम योजना

पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री उपेन्द्र कुशवाह का कहना है कि इसमें सबसे बड़ी चुनौती राज्य सरकारों से समर्थन की कमी, जिला प्रशासन का रुचि न लेना है.

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दिल्ली/मुरादाबाद: जनवरी की एक ठंडी शाम को, आरती कुमारी दिल्ली के चौहान पट्टी गांव में एक टेम्पो से उतरीं. सब्जियों से भरे थैले को मज़बूती से पकड़ते हुए, उन्होंने अपने घर के पास बने नाले के ऊपर से कूदने की कोशिश की. कुछ महीनों में, उन्होंने हर रोज आने-जाने के लिए और नाला पार करने के लिए लंबी छलांग लगाना सीख लिया है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, 32 वर्षीय ने अपना संतुलन खो दिया और वह सीधे नाले में जा गिरी.

भारत में कहीं भी ऐसी घटना होना या फिर ऐसा दृश्य आम बात है, सिवाय इसके कि उनका पड़ोस पीएम नरेंद्र मोदी की प्रमुख सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) का हिस्सा है, जिसे पीएम मॉडल गांव कार्यक्रम के रूप में भी जाना जाता है. और उनका गांव इस कार्यक्रम की बड़ी समस्या को दर्शाता है, जो धीमी गति और अनियमित कार्य प्रणाली का हिस्सा है. यह ‘एक गांव गोद लो’ कार्यक्रम अधिकार क्षेत्र की परेशानी, बजट की कमी, सांसदों की उदासीनता के सवालों के कारण धीमा पड़ गया है.

गंदे कपड़े और इधर-उधर बिखरे सामान के कारण आरती कुमारी गुस्से में और बेबस दिखीं. कुछ ग्रामीण उसकी मदद के लिए जल्दी से आगे आए. आसपास कूड़ा-कचरा पड़ा होने से मोहल्ले में लगातार दुर्गंध आती रहती है. गांव आपका स्वागत अपने एक छोटे से तालाब से करता है जो गंदे पानी से भरा है और ग्रामीणों के कूड़ादान के रूप में भी काम करता है, और यह सब मोदी के लोक कल्याण मार्ग निवास से बमुश्किल 25 किमी दूर ही है.

उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी ने स्वच्छता की संस्कृति को बढ़ावा देने, लैंगिक समानता की पुष्टि करने, स्थानीय स्वशासन और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देकर गांव को आदर्श बनाने के लिए SAGY के तहत लगभग एक दशक पहले इसे गोद लिया था. गांव की 7,000 से अधिक आबादी में ज्यादातर यूपी और बिहार के प्रवासी हैं जो दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं. मूल रूप से बनारस के रहने वाले तिवारी खुद यूपी के हैं. लेकिन इससे यह बस्ती एक आदर्श गांव नहीं बन जाती है. चौहान पट्टी पिछले साल तब खबरों में थी जब यहां दिल्ली के पहले राजा अनंगपाल तोमर की सुनहरे रंग की विशाल प्रतिमा का अनावरण किया गया था. इस शहरी गांव में किताब की दुकानें, निजी पैथोलॉजी लैब, ब्यूटी पार्लर, एक एटीएम है लेकिन कोई हाई स्कूल नहीं है.

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कुमारी ने कहा, जो पिछले आठ वर्षों से यहां रह रही हैं, “हर दिन कोई न कोई यहां गिरता है. मैं गरीब हूं, पैसे कमाने के लिए काम पर जाती हूं. इसका मतलब यह नहीं कि मुझमें गरिमा नहीं है. अगर गोद लिए गए गांव में यह स्थिति है तो हम बाकी के बारे में क्या ही कह सकते हैं.”

पीएम नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक, SAGY, अक्टूबर 2014 में जय प्रकाश नारायण की जयंती पर शुरू की गई थी. यह अच्छी राजनीति की दिशा में एक आंदोलन को प्रेरित करने के लिए था, जिसमें सांसद जमीनी स्तर पर बदलाव के लिए एक एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. शुरुआती वर्षों में सांसदों ने गांवों को गोद लिया, लेकिन आज सांसदों को उन उम्मीदों पर खरा उतरना मुश्किल हो रहा है जो प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल के पहले साल में उनसे रखी थीं. 2014 की तुलना में 2023-24 में एसएजीवाई के तहत गोद लेने में 60 प्रतिशत की गिरावट आई है. मोदी की पसंदीदा परियोजना में मूल रूप से लक्षित लगभग 6,000 जीपी में से केवल 3,406 जीपी को अपनाया गया है, जो आधे के निशान से थोड़ा ही ऊपर है. सांसदों के बीच रुचि की कमी, अधिकार क्षेत्र की बाधाएं और सबसे ऊपर फंड की अनुपस्थिति इस खराब प्रतिक्रिया के प्रमुख कारण हैं. योजना की सबसे बड़ी कमी यह बन गई हैं कि स्वयं मोदी ने लंबे समय से सार्वजनिक मंच से एसएजीवाई का उल्लेख नहीं किया है.

2015 से 2022 के बीच लोकसभा में इस कार्यक्रम पर 10 सवाल आए, जिनमें से ज्यादातर ने योजना की सफलता के बारे में पूछा और अलग फंड के बारे में पूछा. करीब आधे सवाल बीजेपी सांसदों ने पूछे हैं.

वहीं बीजेपी सांसदों ने अलग फंड की मांग की है. दरभंगा से बीजेपी सांसद गोपाल जी ठाकुर ने दिप्रिंट को बताया, “प्रधानमंत्री की योजना सराहनीय है लेकिन अगर इसके लिए अलग से आवंटन दिया जाता तो गांवों का विकास बेहतर तरीके से होता.”

चौहान पट्टी को एक आदर्श गांव के रूप में दर्शाने वाला विशाल द्वार | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

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फंड की कमी

जब 2014 में जब मनोज तिवारी द्वारा उनके गांव को गोद लिया गया था तो चौहान पट्टी के निवासी बहुत उत्साहित थे. इस उम्मीद में कि तिवारी इसके हालात और भाग्य बदल देंगे, उन्होंने खुद को सौभाग्यशाली महसूस किया. आज वे इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते. ज़मीन पर लोगों के बीच निराशा है.

एमपी तिवारी द्वारा एसएजीवाई के तहत निर्मित श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वार नामक भव्य गांव प्रवेश द्वार के पास अपनी खाट पर लेटे हुए सुरेंद्र चौधरी ने कहा, “आदर्श शब्द अब हमारे लिए कलंक बन गया है. जब रिश्तेदार आते हैं, तो वे भी हमारा मज़ाक उड़ाते हैं.” गेट पर एक तस्वीर लगी है जिसमें एक महिला सूर्य को जल चढ़ाती नजर आ रही है.

भाजपा के उत्तर-पूर्वी दिल्ली के उपाध्यक्ष और तिवारी के प्रतिनिधि आनंद त्रिवेदी ने कहा, जो सांसद की ओर से ग्राम बैठकों में भाग लेते हैं, “चौहान पट्टी के इस गांव में 12 करोड़ रुपये की सड़कें बनाई गई हैं और कई लाइटें लगाई गई हैं और 300 मीटर ओवरहेड हाईटेंशन तार भूमिगत बिछाए गए हैं. हमने विकास योजनाएं बनाईं लेकिन प्रशासन से पैसा खर्च करने की इजाजत नहीं मिली. लेकिन हम अगले छह महीने में इस पर पूरी लगन से काम करेंगे.”

2014 में, मोदी ने स्पष्ट किया था कि SAGY “पैसे के बारे में योजना नहीं थी”. इसका मुख्य उद्देश्य केंद्र सरकार की योजनाओं और लोगों की भागीदारी के अभिसरण के माध्यम से ग्रामीण गांवों का व्यापक विकास करना है. मोदी ने लॉन्च के दौरान कहा था, “हमारे विकास का मॉडल आपूर्ति आधारित रहा है. योजनाएं दिल्ली और लखनऊ में बनाई गई हैं और आगे बढ़ रही हैं. हम इसे आपूर्ति आधारित से मांग आधारित में बदलना चाहते हैं.”

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जब प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा की तो यह योजना और भी अधिक समझ आई क्योंकि तब उन्होंने इसके महत्व को बताया. इसके कार्यान्वयन के बारे में सोचा नहीं गया था और बाद में देखने पर ऐसा लगता है कि यह उन चुनावी वादों में से एक है जो कभी भी दिन के उजाले में नहीं दिखते, यह केवल संख्याओं में स्पष्ट है. एसएजीवाई दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक सांसद को मार्च 2019 तक तीन ग्राम पंचायतें और 2024 तक अन्य पांच ग्राम पंचायतें विकसित करनी थीं. लेकिन लोकसभा (543) और राज्यसभा (243) के बहुत कम सांसदों ने अब तक आठ गांवों को गोद लिया है. SAGY-1 (2014-19) के तहत, 1,506 GPs को अपनाया गया. जबकि SAGY-2 (2019-24) में 1,900 GPs को अपनाया गया.

पहले चरण (2014-16) में 703 ग्राम पंचायतें अपनाई गईं, जो 2023-24 में आठवें चरण में घटकर 284 रह गईं.

हालांकि, पीएम मोदी ने वाराणसी के आठ गांवों को गोद लिया, जिनमें जयापुर, नागेपुर, ककरहिया, डोमरी, परमपुर, पूरी बरियार, पूरी गांव और कुरहुआ शामिल हैं. मोदी के गोद लिए गांवों में बहुत कुछ बदल गया है. जयापुर में, जिसे उन्होंने 2014 में गोद लिया था, वहां बैंक, एटीएम, स्किल अकादमी, कंप्यूटर सेंटर, नियमित बिजली आपूर्ति है.

पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने स्वीकार किया कि यह योजना उस तरह से काम नहीं कर रही है जैसा सरकार ने सोचा था. राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और 2014 में एसएजीवाई के लॉन्च के दौरान मोदी कैबिनेट में शामिल कुशवाहा ने कहा, “सबसे बड़ी चुनौती राज्य सरकारों से समर्थन की कमी है. जिला प्रशासन रुचि नहीं ले रहा है. अगर राज्य सरकार मदद करे, तो गांवों का अच्छा विकास हो सकता था.”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से एक और बीजेपी सांसद को इस योजना में राजनीतिक ख़तरा नज़र आता है. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, “अगर हम एक गांव में सुधार करेंगे तो हमारे निर्वाचन क्षेत्र के अन्य गांवों के लोग हमसे नाराज हो जाएंगे.”

ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, बड़ी संख्या में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, गोद लिए गए गांवों में किए गए काम का प्रतिशत 75 प्रतिशत से कम है. नवंबर में, मंत्रालय ने एक समीक्षा बैठक के दौरान राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों से काम में तेजी लाने और विकास योजनाओं को फिर से तैयार करने को कहा था.

कुशवाह ने भी इसके लिए इस योजना के लिए अलग से फंड की कमी को जिम्मेदार ठहराया. कुशवाहा ने कहा, “अगर अलग फंड होता तो काम अच्छे से होता. निश्चित रूप से तब सांसदों की भी रुचि होती. लेकिन योजना कब शुरू हुई, इसका पता ही नहीं चला. बाद में यह विफल साबित हुआ.”

पिछले पांच वर्षों में केवल 1,782 गांवों को गोद लिया गया. इसका मतलब है कि सालाना केवल 356 को अपनाया गया. हालांकि, संसद के दोनों सदनों के सांसदों की कुल संख्या 786 है. दोनों सदनों में बीजेपी के पास 393 सांसद हैं.

ऐसे 10 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां 2023 में एक भी गांव को गोद नहीं लिया गया है. इसमें पश्चिम बंगाल, मेघालय, नागालैंड, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, चंडीगढ़, अंडमान, पुडुचेरी और लक्षद्वीप शामिल हैं. पश्चिम बंगाल में पिछले पांच वर्षों में केवल एक गांव को गोद लिया गया है. राज्य में बीजेपी के 17 सांसद हैं.

2014 के बाद से ऐसे राज्यों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जहां एक भी गांव गोद नहीं लिया गया है. पहले चरण (2014-16) के दौरान हर राज्य में गांवों को गोद लिया गया, जबकि 2023-24 तक यह आंकड़ा 10 राज्यों तक पहुंच गया.

दिल्ली का एक गांव

चौहान पट्टी के निवासियों ने केवल दो बड़े बदलाव देखे हैं – गांव का एक भव्य प्रवेश द्वार और पंडित दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर एक बस टर्मिनल. लेकिन वे ‘आदर्श’ होने का कुल योग नहीं बनाते हैं. नालियां अभी भी खुली बह रही हैं, हर सड़क पर कूड़े के ढेर लगे हुए हैं और सड़कें खड्डों से भरी हुई हैं.

गांव के साप्ताहिक बाजार में दुकान लगाने वाले अमित कुमार चौधरी ने कहा कि यहां पूरे साल बरसात के मौसम जैसा महसूस होता है. उन्होंने जलभराव वाले स्थानों और गड्ढों की ओर इशारा करते हुए कहा, “गांव में हर जगह गंदगी और कूड़ा-कचरा है. नालियां जाम रहती हैं और आवारा जानवर सड़कों पर घूमते रहते हैं. यह कोई आदर्श गांव नहीं है.”

तिवारी ने दिल्ली में दो गांवों को गोद लिया. एक करावल नगर (चौहान पट्टी) में और दूसरा बुराड़ी विधानसभा क्षेत्र (कादीपुर) में.

दिल्ली में, गोद लिए गए गांवों में काम रुकने का कारण क्षेत्राधिकार ओवरलैप को बताया जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों के गांवों के विपरीत, शहरी क्षेत्रों में बस्तियां नगर निगम के अधीन होती हैं. त्रिवेदी ने कहा, “दिल्ली सरकार चौहान पट्टी में काम नहीं करने दे रही है. जल बोर्ड केजरीवाल के अधीन आता है और वे इस क्षेत्र में पानी के कनेक्शन की अनुमति नहीं दे रहे हैं. लेकिन सांसद ने अभी भी सांसद निधि से बस टर्मिनल और कुछ लाइटें लगवाई हैं.”

निरीक्षण और अधिकार क्षेत्र की भी समस्या है.

डीएम एसएजीवाई को लागू करने वाले नोडल अधिकारी हैं. उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे विभागों और जीपी के प्रमुखों के साथ मासिक समीक्षा बैठकें करें. लेकिन प्रगति की समीक्षा के लिए कोई नियमित बैठकें आयोजित नहीं की जाती हैं. निवासियों ने कहा, 2019 चुनाव के बाद एसएजीवाई की कोई बैठक नहीं हुई है.

उत्तर पूर्वी दिल्ली के एसडीएम मुख्यालय विक्रम बिष्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में विकास के लिए भूमि की उपलब्धता एक चुनौती है. बिष्ट ने कहा, “सांसद आदर्श ग्राम योजना के संबंध में कोई प्रगति दिखाई नहीं दे रही है.” उन्होंने हाल ही में चौहान पट्टी से बमुश्किल 1.5 किमी दूर एक गांव में अन्य अधिकारियों के साथ एक रात बिताई थी और निवासियों की समस्याओं को सुना था.

SAGY दिशानिर्देशों के अनुसार, सांसदों को ग्राम समुदाय के साथ जुड़ना और ग्राम विकास योजनाएं (वीडीपी) भी तैयार करना आवश्यक है. लेकिन सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अपनाई गई 3,406 ग्राम पंचायतों में से केवल 2,968 में वीडीपी मौजूद है.

एसएजीवाई की कुछ बैठकों में तिवारी के साथ मौजूद रहे चौहान पट्टी निवासी ओमपाल तोमर ने कहा कि लोगों के विचारों को उचित महत्व नहीं दिया जाता है. “फैसलों में लोगों की भूमिका न के बराबर है. और ज्यादा काम नहीं किया गया है.”

2014 में मनोज तिवारी ने कादीपुर गांव को गोद लिया और इसे देश का पहला वाईफाई गांव बनाया. तब यह काफी सुर्खियों में रहा था. अब, यहां कोई वाईफाई इंटरनेट नहीं है. नागरिक बुनियादी ढांचे के लेकर भी निराश हैं. सिर्फ इंटरनेट कनेक्टिविटी ही नहीं, सड़क कनेक्टिविटी भी खराब है. कादीपुर तक पहुंचना भी बहुत मुश्किल है क्योंकि सड़कें खराब हैं और जलभराव एक बड़ी समस्या है. इस गांव में केवल एक सरकारी बस रुकती है.

गांव में जाटों, ब्राह्मणों और झीमरों की बहुत कम आबादी है. भले ही SAGY दिशानिर्देशों का उद्देश्य प्रवासन को कम करना और रोजगार के अवसरों को बढ़ाना है, कई कादीपुर निवासी बेहतर जीवन और रोजगार की तलाश में पलायन कर गए हैं.

साप्ताहिक हरपाल की चौपाल का आयोजन करने वाले कादीपुर निवासी हरपाल सिंह राणा ने कहा, “गोद लेने के बाद, पिछले नौ वर्षों में केवल कुछ सड़कें बनाई गई हैं. अभी तक कोई बड़ी सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गयी है. स्वास्थ्य देखभाल की कमी है और सीवर लाइनें अभी तक नहीं हैं. न ही कोई सामुदायिक भवन है. यहां तक कि पशु औषधालय भी जर्जर हालत में है.”

कादीपुर में पशु औषधालय, भाजपा सांसद मनोज तिवारी द्वारा गोद लिया गया एक और गांव। | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

कादीपुर की पूर्व भाजपा पार्षद उर्मिला राणा ने कहा कि धन की कमी और विभिन्न एजेंसियों के बीच अधिकार क्षेत्र की लड़ाई बड़ी चुनौती है. “लोगों को लगता है कि सारे काम सांसद और पार्षद कर सकते हैं, लेकिन हमारी भी मजबूरियां हैं, उसे भी समझना चाहिए. बजट के अनुसार ही काम होता है.” राणा ने अपने बड़े से घर में कुर्सी पर बैठते हुए कहा- जिसकी बाहरी दीवारें तिवारी के पोस्टरों से भरी हुई थीं.

हालांकि आप पार्षद मुनेश देवी ने इन आरोपों का खंडन किया और विकास कार्यों का श्रेय बुराड़ी से पार्टी विधायक संजीव झा को दिया. देवी ने कहा, “आदर्श ग्राम के नाम पर गांव में कुछ भी नहीं किया गया है. एक भी पैसा निवेश नहीं किया गया है.”

SAGY दिशानिर्देश भी प्रवासन को कम करने और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने का आदेश देते हैं.

गांव के निवासी निर्दोश कोशिक ने अपनी कार में बैठे हुए कहा, “बहुत से लोग यहां से पलायन कर चुके हैं. या तो वे दूसरे शहर चले गए हैं या दिल्ली में कहीं और रह रहे हैं.” ग्रामीणों ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि तिवारी गांव में कम ही आते हैं और आते भी हैं तो लोगों से नहीं मिलते.

निवासियों ने कहा कि गांव में तीन स्वागत द्वार, बेंच और दिशा-निर्देश देने वाले साइन बोर्ड लगाए गए हैं. राणा ने कहा, “तिवारी जी को भी काम न होने का दुख है. और हमें चुनाव में इसका परिणाम भुगतना पड़ा.”


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यूपी का एक गांव

2014 में योजना शुरू करते समय, मोदी ने कहा था कि कुछ गांव ऐसे हैं जिन पर राज्यों को गर्व हो सकता है और इससे पता चलता है कि सरकारी योजनाओं से परे भी कुछ है. मोदी का पार्टी से ऊपर उठकर सांसदों को आह्वान था और शायद कई गैर-भाजपा नेताओं ने इसके लिए बाध्य किया था, “सांसद आदर्श ग्राम योजना के पीछे यही भावना है.”

2019 में, दिल्ली से 170 किमी दूर मोरादाबाद में समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने सिरस्वान गौड़, सराय खजूर और कोरवाकु गांवों को गोद लिया था. मुरादाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 16 किमी दूर मुस्लिम बहुल सराय खजूर के कई निवासियों को अपने गांव को गोद लिए जाने की कोई जानकारी नहीं है. इसकी आबादी लगभग 8,000 है और अधिकांश निवासी किसान और दिहाड़ी मजदूर हैं.

एसएजीवाई के तहत, मैदानी क्षेत्रों में 3,000-5,000 और पहाड़ी, आदिवासी क्षेत्रों में 1,000-3,000 आबादी वाले गांवों को उपयुक्त ग्राम पंचायत के रूप में पहचाना जा सकता है.

जनवरी की ठंडी शाम को अपने घर के आंगन में एक खाट पर बैठे मोहम्मद इंतेज़ार अपने गांव में विकास के आने का इंतेजार कर रहे हैं. इंतेज़ार ने कहा, “सड़कें गंदगी से भरी हुई हैं. लोग परेशानी में हैं. अगर उन्होंने (एसटी हसन) अभी तक कुछ नहीं किया तो अब क्या करेंगे? अब आचार संहिता लगने वाली है.”

समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन द्वारा गोद लिए गए गांव कोरवाकु में एक सड़क | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

इंतेज़ार ने अपने गांव में सीवर लाइन, पशु अस्पताल और आंगनवाड़ी की मांग की. इंतेज़ार ने बीड़ी पीते हुए कहा, “बरसात के मौसम में इस गांव में आना बहुत मुश्किल हो जाता है. पिछले 20 वर्षों से सड़कों की मरम्मत नहीं हुई है. अब कोई उम्मीद भी नहीं है. लोग सांसद से नाराज हैं.”

65 वर्षीय वीर सिंह सिरसवां गौड़ गांव के रहने वाले हैं और अक्सर अपने गांव की दुर्दशा को लेकर चिंतित रहते हैं. चाय की चुस्की लेते हुए उन्होंने कहा, सांसद बनने के बाद हसन साहब ने गांव की ओर ध्यान ही नहीं दिया. “विकास ऐसा हो कि हर व्यक्ति खुश रहे. उन्होंने गांव को गोद लिया है लेकिन उनकी गोद से इसे छीना नहीं गया है.”

मुस्लिम बहुल सिरसवां गौड़ की आबादी 7500 है. लेकिन कोई हाई स्कूल नहीं. स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए 30 किमी दूर मुरादाबाद जाना पड़ता है.

सिरसवां गौड़ गांव के प्रधान रूप सिंह ने कहा, “जब गोद लिया गया तो हर कोई खुश था लेकिन अब कोई इस पर चर्चा तक नहीं करना चाहता.”

2019 से 2022 के बीच उत्तर प्रदेश में 179 ग्राम पंचायतें अपनाई गई हैं. इससे पता चलता है कि यूपी के 80 सांसदों में से हर किसी ने हर साल एक गांव गोद नहीं लिया.

मुरादाबाद के सांसद एसटी हसन ने कहा कि यह योजना सिर्फ सांसदों को बदनाम कर रही है कि वे काम नहीं कर रहे हैं. “आदर्श ग्राम योजना बंद होनी चाहिए. यह सिर्फ ड्रामेबाजी और जुमलेबाजी है.”

हसन पहले भी कई बार इस योजना को लेकर मीडिया में सवाल उठा चुके हैं. सांसद ने कहा कि योजना के तहत जिला प्रशासन स्तर पर कोई बैठक नहीं की जाती है. “यह सिर्फ कागजों तक ही सीमित है. जब तक इस योजना के तहत अलग से फंड मुहैया नहीं कराया जाएगा, इसकी स्थिति ऐसी ही रहेगी.”

मुरादाबाद जिला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस योजना को लेकर उदासीनता नजर आ रही है. उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “बजट की कमी सबसे बड़ी चुनौती है. हम केवल राज्य और केंद्र से आने वाली योजनाओं का लाभ जनता को दे सकते हैं.”

‘इन गांवों को आदर्श गांव नहीं कहा जा सकता’

पिछले दशक में भारत के शहरी केंद्रों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे की वृद्धि देखी गई है – टियर II शहरों में महानगरों से लेकर फ्लाईओवरों के नेटवर्क और उपग्रह शहरों के उद्भव तक – देश ने अपना विकास पथ स्पष्ट कर दिया है. लेकिन भारत के पीछे छूट जाने का एक प्रमुख संकेतक इन गोद लिए गए गांवों की उपेक्षा है.

कॉमन रिव्यू मिशन (सीआरएम) की 2020 ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, एसएजीवाई नॉन-स्टार्टर रहा है. ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है, “ऐसे में इन गांवों को आदर्श गांव नहीं कहा जा सकता. सीआरएम का मानना है कि वर्तमान प्रारूप में योजना वांछित उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पा रही है. यह अनुशंसा की जाती है कि मंत्रालय इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए योजना की समीक्षा कर सकता है.”

सरदार पटेल विश्वविद्यालय द्वारा गुजरात और राजस्थान में एसएजीवाई के पोस्ट-प्रोजेक्ट मूल्यांकन अध्ययन पर एक रिपोर्ट के अनुसार, “एसएजीवाई जीपी ने अपनी सफलता की सीमा के संदर्भ में मिश्रित परिणाम दिखाए हैं, लेकिन फिर भी यह योजना जारी रखने लायक है और जीपी को आत्मनिर्भर संस्थानों में बदलने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. SAGY की भावना भौतिक परियोजनाओं को पूरा करने से कहीं आगे की है.”

लोकसभा चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं, गोद लिए गए इन गांवों के लोगों को पता है कि उनके नेता जल्द ही आएंगे. आदर्श ग्राम को लेकर सवालों का गुबार फूटेगा. लेकिन निवासियों का कहना है कि मतदान में अन्य कारक भी हैं.

उन्होंने कहा, “वह (तिवारी) केवल मोदी के नाम पर जीत रहे हैं.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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