बहराइच, उत्तर प्रदेश: बहराइच जिले की आरती बकिंघम पैलेस में किंग चार्ल्स तृतीय से मिलने के बाद अब देश लौट आई हैं. पड़ोसी, स्थानीय नेता और राष्ट्रीय मीडिया जिले की पहली पिंक ई-रिक्शा ड्राइवर का स्वागत करने और उन्हें बधाई देने के लिए कतार में खड़े हैं, जिन्होंने हाल ही में प्रतिष्ठित अमल क्लूनी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार जीता है.
अब हर कोई इस 19-वर्षीय स्थानीय सेलिब्रिटी से मिलना चाहता है और रिक्शा चलाते हुए उनकी तस्वीर और वीडियो लेना चाहता है, लेकिन लगातार होने वाली बिजली कटौती के कारण ये संभव नहीं है क्योंकि चार्ज न होने की वजह से रिक्शा दो दिनों से बरामदे में ही खड़ा है.
इसी बीच आरती और उनके परिवार को इस बात की खुशी है कि उनके घर तक जाने वाली कच्ची सड़क जल्द ही आरती के नाम पर पक्की बनाई जाएगी.
बहराइच की जिला मजिस्ट्रेट मोनिका रानी ने कहा, “यह सड़क न केवल आरती की सफलता और कड़ी मेहनत का प्रतीक होगी, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को भी अपने घरों से बाहर निकलने और अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रेरित करेगी.”
आरती को मिली ये आज़ादी और लोकप्रियता बिल्कुल नई है. 13 साल की उम्र में शादी होने के एक साल बाद वे एक बच्ची की मां बन गईं और फिर कुछ ही समय में अपने पति से अलग होने के बाद अपने मायके लौट आईं.
आगा खान फाउंडेशन की मदद से मिशन शक्ति योजना के तहत शुरू की गई यूपी सरकार की पिंक ई-रिक्शा पहल के साथ अपने काम के ज़रिए अन्य युवा महिलाओं को प्रेरित करने के लिए उन्हें अमल क्लूनी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार के लिए चुना गया था. लेकिन उनके लंदन पहुंचने का सफर इतना सरल भी नहीं था — परिवार को लंदन जाने के लिए मनाना, पासपोर्ट, हवाई जहाज़ के टिकट और इंटरव्यू मैनेज करना एक लंबी कार्यप्रणाली थी – जिसका समापन 21 मई को बकिंघम पैलेस में किंग चार्ल्स के साथ मुलाकात के साथ हुई.
आरती ने अपना सर्टिफिकेट और पुरस्कार दिखाते हुए – जिसे वे एक पुराने स्टील के बक्से में संभालकर रखती हैं, कहा, “हाल ही में जो कुछ भी हुआ है, सब मेरे लिए किसी सपने जैसा है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं लंदन जाऊंगी. मैं तो कभी यूपी से बाहर भी नहीं गई.”
अब हर कोई आरती और उनके गांव के बारे में जानना चाहता है. इतना ही नहीं, रिसिया ब्लॉक की मुख्य सड़क पर एक छोटी सी दुकान के मालिक बिट्टू अब स्थानीय गाइड बन चुके हैं. बड़ी गाड़ियों में सवार लोग उनकी दुकान के बाहर रुककर “आरती जो पिंक ई-रिक्शा चलाती हैं और चार्ल्स तृतीय से मिलकर आईं हैं” के बारे में पूछते हैं.
आरती के दो कमरों वाले घर की ओर जाने वाला रास्ता, जिसमें वे आठ लोगों के साथ रहती हैं — उनकी बेटी, माता-पिता और पांच भाई-बहन — वादे के मुताबिक, बदलाव का इंतज़ार कर रहे हैं.
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वो पहला कॉल
राॅयल अवॉर्ड के बारे में आने वाले पहले काॅल ने आरती के घर में हलचल मचा दी थी. कोई खुश था, कोई परेशान तो किसी के मन में कई सवाल भी थे.
फरवरी में उन्हें आगा खान फाउंडेशन की प्रोग्राम कन्वेनर सीमा शुक्ला का फोन आया. जब शुक्ला ने उन्हें बताया कि उन्हें लंदन जाने और किंग से रॉयल पुरस्कार प्राप्त करने के लिए चुना गया है, तो आरती हैरान रह गईं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस खबर पर कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिए. यूपी सरकार की ई-रिक्शा पहल के लिए आरती के साथ अन्य 9 महिलाओं को ट्रेनिंग दिलाई गई थी.
आरती ने उस वक्त को याद करते हुए कहा, “पहले मुझे अपने परिवार और अपनी मां से इस बारे में बात करनी है.” उन्होंने तुरंत अपनी मां रीना देवी से इस बारे में बात की. आखिर लंदन और बहराइच में मीलों को फासला भी तो है.
रीना देवी को अपनी बेटी को लंदन जाने की अनुमति देने के लिए फाउंडेशन के कई लोगों ने उन्हें इस अवसर के महत्व के बारे में समझाया. परिवार में किसी को भी चार्ल्स या बकिंघम पैलेस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. उन्हें इस बात की ज़्यादा चिंता थी कि अगर उनकी बेटी अचानक गांव छोड़कर चली गई तो लोग क्या कहेंगे.
आरती को समर्पित यह सड़क न सिर्फ उनकी सफलता और कड़ी मेहनत का प्रतीक होगी बल्कि गांव की दूसरी महिलाओं को भी अपने घरों से बाहर निकलकर अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करेगी.
— मोनिका रानी, जिला मजिस्ट्रेट, बहराइच
बरामदे में बैठीं रीना देवी ने रिक्शा को देखते हुए कहा, “अगर कोई लड़की दो दिन के लिए भी गांव से बाहर जाती है तो लोग उसके बारे में बाते बनाना शुरू कर देते हैं. उन्हें हमेशा लगता है कि वो कुछ गलत कर रही है.”
जहां एक तरफ शुक्ला, उनकी टीम और आगा खान फाउंडेशन की सीईओ टिन्नी साहनी रीना देवी को इस मौके के बारे में बता रहे थे, उनसे लगातार मुलाकात कर रहे थे. इसी बीच आरती ने भी गूगल पर ‘रॉयल फैमिली’, ‘बकिंघम पैलेस’ और ‘चार्ल्स’ के बारे में जानना शुरू कर दिया था.
उन्होंने कहा, “मैंने गूगल पर देखा कि किंग चार्ल्स तृतीय कौन हैं. मुझे पता चला कि भारत के प्रधानमंत्री भी बिना आमंत्रण के बकिंघम पैलेस नहीं जा सकते.”
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रिक्शा कैसे मिली
देवी ने अपनी बेटी को रिक्शा ड्राइवर बनने के लिए प्रेरित किया था — पड़ोसियों और रिश्तेदारों की इच्छा के विरुद्ध. बहराइच में “अच्छे परिवारों” की महिलाएं काम करने के लिए घर से बाहर नहीं निकलतीं और ड्राइवर बनकर तो बिल्कुल भी नहीं.
उन्हें चिंता थी कि दूसरे ड्राइवर उन्हें परेशान करेंगे और उनका डर बेबुनियाद भी नहीं था. यहां सड़कें पुरुषों के लिए बनी हैं.
हाल ही में जो कुछ भी हुआ है, वो सब सपने जैसा है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं लंदन जाऊंगी. मैं कभी यूपी से बाहर भी नहीं गई
— आरती, पिंक ई-रिक्शा ड्राइवर और अमल क्लूनी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार विजेता
आरती को सड़क पर अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा — चाहे वो पुरुष ड्राइवर्स के बीच कतार में रिक्शा खड़ी करना हो यार फिर सवारी ढूंढ़ना हो. अवॉर्ड ने इस गहरे पूर्वाग्रह को कम करने में कोई खास मदद नहीं की है.
बहराइच में 10 साल से ज़्यादा समय से रिक्शा चला रहे 32-वर्षीय मोहम्मद आसिद ने कहा, “महिलाओं का काम घर की देखभाल करना और घर के काम करना है, सड़क पर रिक्शा चलाना नहीं.”
लेकिन आरती को सरकारी अधिकारियों और आगा खान फाउंडेशन की मदद से रिक्शा मिल गया. जुलाई 2023 में AKF ने आरती और नौ अन्य महिलाओं को पिंक ई-रिक्शा खरीदने में मदद की थी.
बहराइच प्रशासन के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस योजना के तहत महिला लाभार्थियों को सबसे कम ब्याज दरों पर 1.66 लाख रुपये का लोन दिया जाता है, ताकि वे ई-रिक्शा खरीद सकें और आत्मनिर्भर बन सकें.
आठ दिन की ट्रेनिंग के बाद आरटीओ की मदद से आरती ने अपना लाइसेंस और फिर 2 अक्टूबर 2023 को रिक्शा हासिल किया. आज वे हर महीने लगभग 15,000 रुपये प्रति कमाती हैं और 4,500 रुपये की ईएमआई भरती है.
अगर कोई लड़की दो दिन के लिए भी गांव से बाहर जाती है, तो लोग उसके बारे में बाते बनाने लगते हैं. उन्हें हमेशा लगता है कि वो कुछ गलत कर रही है
— रीना देवी, आरती की मां
सभी 10 महिला रिक्शा चालक या तो अपने पति को खो चुकी हैं या फिर सिंगल मदर्स हैं. आरती शादी के दो साल बाद अपनी चार साल की बेटी के साथ अपने माता-पिता के घर लौट आईं थी. आज, उनकी आय ने न केवल उनके पूरे परिवार की ज़िंदगी में सुधार किया है, बल्कि उन्हें अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सपने देखने की हिम्मत भी दी है. आरती, जिन्होंने केवल आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की है, अपनी बेटी को बहुत पढ़ाना चाहती हैं और अपना खुद का घर बनाना चाहती हैं.
“मैं एक अपना घर बनाना चाहती हूं जहां मैं और मेरी बेटी खुशी से रह सकें.” उन्होंने उन छह दिनों को याद करते हुए कहा जब वे पहली बार अपनी बेटी के बिना लंदन में रहीं.
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घर में रिश्तेदारों के ताने और बाहर पुरुष ड्राइवर्स के
आरती के ‘काम’ के पहले दिन पुरुष रिक्शा ड्राइवरों की घूरती निगाहों ने उन्हें असहज किया. ऐसा लग रहा था जैसे वे महिलाओं के असफल होने का इंतज़ार कर रहे हों. ‘कुछ दिनों की बात है, खुद ही चली जाएगी’ जैसी टिप्पणियां आम थीं. कुछ महिला लाभार्थियों के अनुसार, पुरुष ड्राइवर उनके वीडियो बनाते थे और उनका मज़ाक उड़ाने के लिए उन्हें अपने दोस्तों के बीच शेयर भी करते थे.
30-वर्षीय पिंक ई-रिक्शा चालक शिव कुमारी ने कहा, “घर पर हमें अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों से ताने सुनने पड़ते थे. बाहर, पुरुष ड्राइवरों ने शुरू में हमें सवारियों को ले जाने से रोका. हमें कई बार खाली हाथ घर लौटना पड़ता था.”
शुरू में पुरुष ड्राइवर्स ने इन महिलाओं को सवारी बिठाने के लिए स्टॉप में खड़ा तक होने नहीं दिया और लाइन में लगने के लिए सुबह जल्दी आने को कहा.
कुमारी ने कहा, “एक दिन, जब मैं बहराइच बस स्टॉप से सवारियों के साथ लौट रही थी, तो कुछ बस ड्राइवरों ने मुझे रोक दिया और मेरी सवारियों को उतरने के लिए मजबूर किया. उन्होंने मुझे कहा कि रिक्शा ड्राइवर यहां से सवारी नहीं ले जा सकते या सिर्फ बस चलती है.”
लेकिन इन सबके बावजूद इन महिलाओं को एक ओर से समर्थन भी मिला — वो थी महिला सवारी.
रुचि जो अब आरती की रेगुलर सवारी हैं जिन्हें वे स्थानीय दलिया फैक्ट्री तक छोड़ती हैं, ने कहा, “एक महिला के साथ यात्रा करना अधिक सुरक्षित लगता है और सबसे अच्छी बात यह है कि हम यात्रा के दौरान बातें भी कर सकते हैं.”
घर पर, हमें अपने रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों से ताने सुनने पड़ते थे. बाहर, पुरुष ड्राइवरों ने शुरू में हमें सवारियों को ले जाने से रोका. हमें कई बार खाली हाथ घर लौटना पड़ा.
—शिव कुमारी, पिंक ई-रिक्शा चालक
इन दिनों, अधिकांश पिंक ई-रिक्शा ड्राइवर महिला सवारियों को ले जाना पसंद करती हैं. यह एक ऐसी चीज़ है जो सभी को सुरक्षा प्रदान करती है और पुरुष ड्राइवर इसमें हस्तक्षेप भी नहीं करते हैं.
पीले कुर्ते और नीली जींस में आरती बड़ी मुस्कान के साथ कहती हैं, “इस तरह उन्हें आसानी से रिक्शा मिल जाता है और हमें सवारी.”
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‘महिलाओं को कुछ भी आसानी से नहीं मिलता’
आरती के विपरीत, जिन्हें अपने माता-पिता का सपोर्ट है, शिव कुमारी को अभी भी हर बार अपने पति के गुस्से का सामना करना पड़ता है, जब वह रिक्शा चलाने के लिए घर से बाहर निकलती हैं.
कुमारी, जिनका पति घर के कामों में उनकी मदद करने से इनकार करता है, बताती हैं, “मेरे पति ने कहा कि रिक्शा चलाने से बेहतर होगा कि मैं मर जाऊं, लेकिन अपने चार बच्चों का ख्याल कर मैंने ये कदम नहीं उठाया. मैं उन्हें (बच्चों) एक बेहतर भविष्य देना चाहती हूं.”
कुमारी बताती हैं, “हम महिलाओं को ज़िंदगी में कुछ भी आसानी से नहीं मिलता, न घर के अंदर और न ही बाहर. हमें अपनी जगह बनाने के लिए हर कदम पर संघर्ष करना पड़ता है.”
और भले ही ये सभी अब कामकाजी महिलाएं हैं, लेकिन इनके घर के कामों का बोझ उठाने वाला कोई नहीं है. कुमारी और एक अन्य ड्राइवर मेघा जैसी कुछ महिलाओं को कभी-कभी अपने बच्चों की देखभाल करने और घर के कामों को पूरा करने के लिए रिक्शा लाइनों में अपनी जगह छोड़नी पड़ती है, और जब वे वापस आती हैं, तो उन्हें कतार में सबसे पीछे लगना पड़ता है. आरती की मां और बहन उनकी बेटी की देखभाल करती हैं. उन्होंने कहा, “अगर मैं बीच में घर वापस जाती हूं, तो मेरी बेटी रोने लगती है, इसलिए मैं नहीं जाती हूं.”
मैंने गूगल पर देखा कि किंग चार्ल्स III कौन हैं. मुझे पता चला कि भारत के प्रधानमंत्री भी बिना निमंत्रण के बकिंघम पैलेस नहीं जा सकते
—आरती, पिंक ई-रिक्शा ड्राइवर और अमल क्लूनी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार विजेता
हालांकि, कुमारी को हर दिन कई बार घर लौटना पड़ता है — सुबह अपने बच्चों को खाना खिलाने, उन्हें स्कूल से लाने और फिर उन्हें दोपहर का खाना खिलाने के लिए.
उन्होंने कहा, “हममें से ज़्यादातर के बच्चे 10 साल से कम उम्र के हैं. हमें दो या तीन बार घर वापस आना पड़ता है और इसके लिए हम हर बार अपनी जगह खो देते हैं.”
लेकिन उनमें से किसी को भी कामकाजी महिला ड्राइवर बनने के विकल्प पर पछतावा नहीं है. वे स्वतंत्रता की राह पर हैं और ये सभी मुश्किलें एक छोटी सी कीमत है. कुमारी की आय उनके पूरे परिवार का भरण-पोषण करती है — उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं.
एक अन्य पिंक ई-रिक्शा ड्राइवर 35-वर्षीय मेघा के लिए, यह स्थिर आय उन दिनों की तुलना में बहुत बड़ी राहत है, जब उन्होंने छह साल पहले अपने पति की मृत्यु के बाद अपने चार बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए दिहाड़ी पर मजदूरी की थी. उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा लगता था कि मैं हर दिन एक लड़ाई लड़ रही हूं. अब, उनके तीन बच्चे स्कूल जाते हैं.”
एक महिला का काम घर की देखभाल करना और घर के काम करना है, सड़क पर रिक्शा चलाना नहीं —मोहम्मद आसिद, ई-रिक्शा चालक
मेघा ने कहा, “मैं इस नौकरी में अधिक स्वतंत्र महसूस करती हूं; मैं अपने बच्चों की देखभाल कर सकती हूं और जब चाहूं काम पर भी जा सकती हूं.”
जिला प्रशासन को उम्मीद है कि लंदन में आरती की सफलता को देखकर और भी महिलाएं पिंक रिक्शा के लिए आगे आएंगी, जिसकी अब शुरूआत भी हो चुकी है.
बहराइच सिटी मजिस्ट्रेट के एक अधिकारी के अनुसार, 18 और महिलाओं ने पिंक ई-रिक्शा योजना का हिस्सा बनने में रुचि दिखाई है और उन्हें रिक्शा दिलाने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है.
मोनिका रानी ने कहा, “बहराइच से लंदन तक की उनकी यात्रा, जिसने सुर्खियां बटोरीं, एक प्रेरणा है. अब और भी महिलाएं इस पिंक ई-रिक्शा योजना का हिस्सा बनने के लिए आगे आ रही हैं.”
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सब कुछ सपने जैसा है
आरती अपने फोन पर लंदन यात्रा की तस्वीरें देख रही हैं. वे लंदन की व्यस्त सड़क पर खड़ी मेकअप रूम में पोज दे रही हैं. 18 से 24 मई तक लंदन की छह दिनों की यह यात्रा आरती के लिए एक सपने जैसा है.
उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह यकीन करना वाकई मुश्किल है कि मैं सच में लंदन में थी.” एक बार जब उनके परिवार ने उन्हें अनुमति दे दी, तो पूरा प्रशासन कागज़ी कार्रवाई पूरी करने में जुट गया. AKF की टीम और बहराइच के जिला अधिकारियों ने उन्हें ज़रूरी दस्तावेज़ जुटाने और पासपोर्ट की व्यवस्था करने में मदद की.
मैं एक ऐसा घर बनाना चाहती हूं जहां मैं और मेरी बेटी खुशी से रह सकें.
— आरती, गुलाबी ई-रिक्शा ड्राइवर और अमल क्लूनी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार विजेता
AKF (भारत) की सीईओ टिन्नी साहनी, आरती के साथ पुरस्कार समारोह में शामिल हुई थीं, जहां उन्होंने बकिंघम पैलेस से लेकर पूरे यात्रा के दौरान उनकी वार्ताकार के रूप में काम किया.
बकिंघम पैलेस में रिसेप्शन के लिए आरती ने मरून रंग की साड़ी पहनी थी.
आरती ने कहा, “पुरस्कार समारोह के लिए तैयार होने में दो लोगों ने मेरी मदद की. एक आदमी मेरे बाल बना रहा था और दूसरा मेकअप कर रहा था. मैंने ऐसा कुछ सिर्फ टीवी और फोन पर ही देखा था. उस दिन मुझे लगा जैसे मैं हीरोइन बन गई हूं और सबका ध्यान मेरी तरफ ही है.”
Meet this year’s @KingsTrustInt, Amal Clooney Women’s Empowerment winner, Arti!
After taking part in AKF’s Project Lehar, Arti has become one of the first female pink e-rickshaw drivers in Uttar Pradesh, India, providing safe transport for other women in her community! pic.twitter.com/dfM4gkOlJ9
— Aga Khan Foundation India (@AKF_India) May 22, 2024
वे पिंक ऑटो-रिक्शा में बकिंघम पैलेस पहुंची. किंग चार्ल्स तृतीय ने खुद उनका स्वागत किया. पुरस्कार समारोह के बाद, आरती ने लंदन ब्रिज भी देखा, लेकिन इसके साथ ही यह उनकी ज़िंदगी में पहली बार था जब वे अपनी बेटी से इतने दिनों तक दूर थीं, जिसकी याद उन्हें लगातार आ रही थी.
उन्होंने कहा, “मुझे लंदन में अपनी बेटी की बहुत याद आती थी. यह उपलब्धि जितनी मेरी है उतनी ही उसकी भी है. मैं लंदन से अपनी बेटी के लिए कुछ चॉकलेट और एक जोड़ी जूते भी लेकर आई हूं.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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