साल 2011 में मां बनना इंडियन रेवन्यू ऑफिसर शुभ्रता प्रकाश के लिए सबसे खुशी भरा क्षण था, लेकिन इसी के साथ ही उनके में एक खालीपन और उदासी ने जगह बना ली थी, उस समय वह समझ नहीं पाईं कि वो ऐसा क्यों महसूस कर रही थीं लेकिन अब एक दशक बाद उन्हें उनकी आवाज मिल गई है.
शुभ्रता प्रकाश ने नवंबर 2022 में एक ट्वीट कर लिखा, ‘ये मैं हूं कल सेमिनार में जाते हुए. आज मैं उदासी से लड़ रही हूं, एक एंग्जायटी अटैक भी आया, आंसू भी बह रहे हैं, पेट दर्द भी है. मानसिक बीमारी इस तरह की होती है. मुझे नहीं लगता यह कुछ ऐसा है जिसे मुझे छुपाना चाहिए. ठीक न होना भी ठीक है.’
ज्यादातर समय शांत रहने वाले स्टील फ्रेम वाले सिविल सर्वेंट के बीच, साल 2002 बैच की आईआरएस ऑफिसर खुलकर अपने डिप्रेशन के बारे में बोल रही हैं. शुभ्रता देश की पहली सिविल सर्वेंट हैं जो इस तरह से मेंटल हेल्थ के बारे में बात कर रही हैं.
अभी भी डिप्रेशन से जूझ रहीं और इनकम टैक्स में कमिश्नर के तौर पर काम कर रहीं शुभ्रता प्रकाश कहती हैं, ‘मैंने अपने सीवियर डिप्रेशन के 4 सालों में सबसे खराब समय देखा, मुझे नहीं लगता कि उससे खराब भी कुछ हो सकता है. मुझे नहीं लगा कि इन सब पर बात करने से मुझे नुकसान होगा.’
साल 2015 में शुभ्रता प्रकाश ने मेंटल हेल्थ को लेकर ट्विटर, लिंकडिन, और इंस्टाग्राम पर हजारों ट्वीट्स किए हैं. उनके पोस्ट को सैकड़ों लाइक्स और रिट्वीट्स मिलते हैं. बाकी जो लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं ट्विटर पर उन्हें जानकारी का स्रोत कहते हैं.
उनकी हाल की पोस्ट कहती हैं, ‘भगवान के लिए, पीड़ितों के सुसाइड नोट्स शेयर करना बंद कर दीजिए. वो ट्रिगरिंग हैं, ये बच्चों और किशोरों के लिए खतरनाक हैं और काफी अपमानजनक भी हैं.’
उनकी पोस्ट के नीचे एक शख्स ने लिखा, ‘जी सोशल मीडिया पर इन्हें रोका जाना चाहिए और टीवी पर भी’ शुरू में शुभ्रता के डिप्रेशन को सीनियर्स एक बहाने के रूप में देखते थे, लेकिन जब उनकी हालत खराब हुई तो दफ्तर का सपोर्ट मिलने लगा.
‘शुरुआत में लोगों को लगता था कि शायद मैं काम नहीं करना चाहती, इसलिए मैं ऐसा कर रही हूं. लेकिन एक समय आया जब मेरी हालत बहुत खराब हो गई इतनी खराब की मैं काम करने की हालत में भी नहीं रही थी. मेरे सबसे खराब 4 सालों में मैं सिर्फ एक साल ही काम करने के हालत में थी. बाकी समय मैं छुट्टी पर थी.’
शुभ्रता बीमारी के दौरान अपने पति के साथ छुट्टी पर चली गई थीं.
सबसे बुरे साल 2012 से 2016 तक के थे. उनके मन में अक्सर आत्मघाती विचार आते थे. उन्हें अपने शरीर में कोई ताकत महसूस नहीं होती थी. सब कुछ धुंधला सा नजर आता था. लोगों की बातें उन्हें चुभती थीं. उन्हें बुखार और लो बीपी जैसे बहाने पड़ते थे. उनमें साहस नहीं था कि वह डिप्रेशन के बारे में बता सकें.
शुभ्रता के दोस्त और रिश्तेदार उनसे कहते थे, ‘तुम्हें डिप्रेशन कैसे हो सकता है, तुम्हारा जीवन तो बहुत अच्छा है उन्हें देखो जिनके पास कुछ भी नहीं है. अपने काम पर ध्यान दो, योग करो’
शुभ्रता प्रकाश इसके जवाब में कहती हैं, ‘दुनिया के सबसे बड़े न्यूरोसाइंटिस्ट को भी इसका जवाब नहीं पता कि डिप्रेशन क्यों होता है.’
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रिकवरी का रास्ता
3 साल का ब्रेक लेने के बाद शुरू हुआ शुभ्रता प्रकाश का डिप्रेशन से बाहर निकलने का सफर. बेहतर होने के इस पूरे प्रॉसेस में उनके पति आईपीएस अवि प्रकाश का सपोर्ट सबसे अहम रहा.
प्रकाश ने अपने पति के बारे में कहा, ‘मेरे पति ने मुझसे कहा ‘तुम्हें बस जिंदा रहना है, अगर तुम अच्छा महसूस नहीं करती हो तो बिस्तर से मत उठो. कुछ मत करो बस जिंदा रहो. इससे मुझे बहुत मदद मिली.’
— Warrior Po (@_WarriorPo) February 14, 2023
अवि प्रकाश की वजह से उन्हें बस बेहतर होना था, तभी उनकी रिकवरी शुरू हुई. शुभ्रता ने एक ट्वीट किया जिसमें लिखा था. ‘प्यार आपको नहीं बचाएगा, लेकिन जब आप खुद को बचाएंगे तो यह आपका हाथ थाम लेगा.’
अपने ठीक होने के बारे में उन्होंने कहा, ‘हर किसी का शरीर अवसाद के लिए अलग तरह से प्रतिक्रिया करता है. दवाएं मेरे लिए काम नहीं कर रही थीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर किसी को अपनी दवा छोड़ देनी चाहिए. ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके लिए दवाएं बहुत मददगार होती हैं. जब मैंने उन्हें लेना बंद कर दिया, तो वापसी से बाहर निकलना बहुत दर्दनाक था. उसके बाद, थेरेपी ने मेरी बहुत मदद की.’
जिस दिन उन्हें अच्छा लगता था, वह टहलती थीं, योग करती थीं और तैरती थीं. सेल्फ केयर उनके ठीक होने की दिशा में एक बड़ा कदम था. वह अपनी डायरी में लिखती थीं: आज 1. खाना खाया 2. बच्चों से बात की. 3. टहल कर आईं.
धीरे-धीरे डायरी में एक दिन में 10 कामों तक चीजों की संख्या बढ़ने लगी.
वापसी
वापसी का रास्ता लंबा था. अगस्त 2016 तक, प्रकाश गंभीर अवसाद से उबर चुकी थीं. साल 2018 में वह काम पर लौटने के लिए तैयार थीं. इन 2 वर्षों के दौरान, उन्होंने पैन मैकमिलन द्वारा प्रकाशित द डी वर्ड: ए सर्वाइवर गाइड टू डिप्रेशन नामक पुस्तक लिखी और अपने मानसिक स्वास्थ्य पर काम किया. वो कहती हैं, ‘इन 2 वर्षों में, मैंने वही किया जो मैं करना चाहती थी. मैंने एक किताब लिखी और किताब के बारे में बातचीत की. किताब लिखने के साथ ही मेरे लिए मानसिक स्वास्थ्य की दुनिया खुल गई.’
काम पर उनका पहला दिन फिर से जन्म लेने और एक नया जीवन जीने जैसा था. वह अपने बुरे दिनों को जी चुकी थीं. वो कहती हैं, ‘जब मैं नौकरी से छुट्टी पर गयी, तो मुझे नहीं पता था कि मैं वापस आऊंगी या नहीं. शुरुआत में मुझे भी इस बात की चिंता थी कि मैं काम कर पाऊंगी या नहीं लेकिन दोबारा ज्वाइन करने के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मैंने इस दौरान मुश्किल पोस्टिंग भी की.’
अब भी, बस उठना और काम पर जाना उनके लिए एक बड़ा ही मुश्किल काम लगता है.
पिछले सोमवार को उन्होंने अपनी तस्वीर पोस्ट की और बताया कि एक नौकरशाह के लिए भी सोमवार मुश्किल भरा हो सकता है. वो लिखती हैं, ‘डिप्रेशन से निपटने के लिए सुबह विशेष रूप से कठिन होती है. और फिर सोमवार की सुबह. अभी भी ‘उठो, तैयार हो जाओ, दिखो’ की कोशिश जारी रहती है. अब तक तो सब ठीक है. ठीक नहीं होना भी ठीक है.’
पिछले महीने उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो पोस्ट की थी. ‘आज नई पोस्ट ज्वाइन की है. नया कार्यालय, नई जिम्मेदारियां, नई शुरुआत! #डिप्रेशन से सर्वाइव करना और वो करना जो कर सकती हूं.’
शुभ्रता प्रकाश लगातार सोशल मीडिया पर मानसिक स्वास्थ्य के बारे में लिखती हैं और लोगों को अच्छी और बुरी आदतों से अवगत कराती हैं. आगामी वर्ष में, वह ऐसे लोगों के लिए एक समुदाय बनाना चाहती हैं जो अवसाद या अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं.
‘डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति को रोना बंद करने के लिए कहना डायरिया से पीड़ित व्यक्ति को शौचालय जाने से रोकने के समान है. उन लोगों को शर्मिंदा करना बंद करें जिनका अपनी मानसिक स्थिति पर उतना ही कम नियंत्रण है जितना कि उनका या दूसरों का अन्य शारीरिक प्रक्रियाओं और/या शारीरिक बीमारियों पर होता है.’
उनका साहस और साफ बोलना फैल जाने वाला है. दूसरे भी बोल रहे हैं.
शुभ्रता प्रकाश को देखने के बाद कुछ और सिविल सेवकों ने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात करने की कोशिश की. सिविल सेवक अपने जीवन को निजी रखना चाहते हैं लेकिन प्रकाश ने कहा कि इन मुद्दों पर बात करना महत्वपूर्ण है.
सामाजिक मेलजोल, लोगों से बात करना और जश्न मनाना अभी भी उन्हें डराता है. ‘मैंने पिछले साल अपने माता-पिता को खो दिया. मुझे लगता है कि इसके बाद अवसाद फिर से शुरू हो गया.’
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