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Monday, 11 August, 2025
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भारत के हेल्थ इन्फ्लुएंसर नई व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी बन गए हैं, फैक्ट-चेकर्स बेबस

हेल्थ कंटेंट अब हर जगह है—डिजिटल दुनिया में बिखरा हुआ. कहा जाता है कि प्याज़ “पैरों से ज़हर खींच लेती है,” और खीरा “ग्लूकोमा ठीक कर देता है.”

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करीब पांच साल पहले, कोविड-19 महामारी के दौरान, सतीश कुमार श्रीवास्तव ने एक वायरल वीडियो देखा जिसमें बड़ा दावा किया गया था—अगर नाक में नींबू का रस डालें तो वायरस मर जाएगा.

“कई लोगों ने इसे आजमाया. हालात मुश्किल थे और हमें पता नहीं था कि क्या करना है. हमें यह उम्मीद की एक निशानी लगी,” गुरुग्राम के 39 वर्षीय जनरल मैनेजर श्रीवास्तव ने कहा. किस्मत से उन्हें ज़्यादा नुकसान नहीं हुआ, जबकि कुछ और खतरनाक ट्रेंड्स में लोग एलोपैथी छोड़कर सिर्फ पूरा और संतुलित खाना (whole foods) लेने लगे, चम्मच भर कच्ची दालचीनी खाने लगे और डिटॉक्स के लिए सिर्फ पानी पीने लगे.

आज श्रीवास्तव सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते वक्त ज्यादा सावधान रहते हैं. फैक्ट-चेक उनकी रोज़मर्रा की आदत बन गया है. अब वे जानते हैं कि इंटरनेट पर जाल और ग़लत जानकारियों के खतरे हैं.

उन्होंने कहा, “मैं देखता हूं कि सलाह कहां से आ रही है.”

अब हेल्थ कंटेंट हर जगह है—डिजिटल दुनिया में फैला हुआ. प्याज़ “पैरों के जरिए शरीर से ज़हर खींच लेती है.” खीरा “ग्लूकोमा ठीक कर सकता है.” और एक डाइट है जो “कैंसर हरा सकती है.” हेल्थ इन्फ्लुएंसर्स के वीडियो और रील्स लाखों व्यूज़ पा रहे हैं, बिना किसी निगरानी या नियमों के.

सरकार की गाइडलाइंस इन्फ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स के लिए बस हल्का-सा इशारा हैं, जिनमें कोई सख्ती नहीं है. हेल्थ अब वेलनेस के नाम पर सबकुछ हो गया है. कई लोग एलोपैथी और मॉडर्न मेडिसिन के खिलाफ सक्रिय संदेह भी फैला रहे हैं, और रसोई के नुस्खे, प्राचीन ज्ञान और सांस्कृतिक गर्व के नाम पर इलाज बता रहे हैं. फैक्ट-चेकर्स के लिए यह ‘व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी’ का ही विस्तार है—जहां भोले-भाले लोग और जानबूझकर की जाने वाली अनदेखी पर पूरा सिस्टम टिका है.

पब्लिक इंटरेस्ट में न्यूट्रिशन एडवोकेसी (NAPI) चलाने वाले डॉ. अरुण गुप्ता ने कहा, “सरकार का इरादा स्वास्थ्य की रक्षा करने में उतना नहीं है कि उससे कॉरपोरेट या बिज़नेस हितों को चोट लगे. सरकार को तय करना होगा कि गुमराह करने वाली चीज़ें क्या हैं. विज्ञापनों को फ्री स्पीच के नाम पर बचाया नहीं जा सकता.”

नियम बेहद कमज़ोर हैं और हेल्थ इन्फ्लुएंसर्स के डीएम मैसेज से भरे रहते हैं. इतनी भीड़ है कि कई सर्टिफाइड डॉक्टर और न्यूट्रिशनिस्ट भी अब कंटेंट बनाने लगे हैं, ताकि अपनी पहचान और भरोसा बनाए रख सकें. लेकिन 15 सेकंड की रील्स में जटिल हेल्थ जानकारी कैसे दी जाए? न्यूट्रिशनिस्ट्स का कहना है कि अब भारत में बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं जो इलाज कंटेंट से ही लेना पसंद करते हैं—प्रोफेशनल्स अब पीछे छूट रहे हैं.

श्रीवास्तव ने बताया कि उनके जानने वाले कई लोग ऐसे हेल्थ ट्रेंड्स में फंसे हैं. उनके परिवार के एक सदस्य ने “हक्की पिक्की आदिवासी हेयर ऑयल” की सब्सक्रिप्शन खरीदी, जिसमें दावा किया गया था कि यह बाल वापस उगा देगा और जड़ों को मज़बूत करेगा, लेकिन यह झूठ निकला. उन्होंने बार-बार ऐसे वीडियो भी देखे जिनमें कहा गया कि रात भर रखे कटे प्याज़ खाने से कैंसर हो सकता है.

जैसे-जैसे गलत जानकारी फैल रही है, वैसे-वैसे उसका विरोध भी हो रहा है. कुछ प्रोफेशनल्स, जैसे मसाला लैब के क्रिश अशोक, लिवर डॉक डॉ. सायरियाक एबी फिलिप्स और द हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट (THIP) चलाने वाले सुदीप्ता सेनगुप्ता, मिथकों और ट्रेंड्स की फैक्ट-चेकिंग कर रहे हैं और इन्फ्लुएंसर्स को चुनौती दे रहे हैं. लेकिन ज्यादातर बार उनकी पहुंच उतनी नहीं होती जितनी हेल्थ बेचने वालों की, जो मैग्नीशियम से लेकर प्रोटीन तक सब बेच रहे हैं.

“समस्या यह है कि स्वास्थ्य के मामले में लोग अब भी आसानी से बहक जाते हैं,” सेनगुप्ता ने कहा. “डिजिटल साक्षरता बढ़ी है, लेकिन हेल्थ साक्षरता वहीं की वहीं है.”

हेल्थ कंटेंट की बढ़ती मांग

जब सेनगुप्ता ने 2019 में THIP शुरू किया था, तो उनका इरादा सिर्फ कुछ बीमारियों पर डॉक्टर-प्रमाणित कंटेंट साझा करने का था. उन्हें लगा था यह एक छोटा प्लेटफॉर्म होगा. लेकिन हेल्थ कंटेंट की बहुत ज़्यादा लोकप्रियता के कारण अब उन्हें और काम बढ़ाना पड़ा. जल्द ही THIP का कंटेंट सात भाषाओं में उपलब्ध होगा और वे 11 तरह के कैंसर सहित कुछ बीमारियों पर गहराई से जानकारी देंगे.

न्यूट्रिशनिस्ट असीमा आचंटानी मानती हैं कि अब कंटेंट बनाना ज़रूरी है. पहले उनकी क्लाइंट बेस दिल्ली तक सीमित थी, लेकिन अब उनके क्लाइंट कनाडा और ऑस्ट्रेलिया तक पहुंच चुके हैं.

वह अपनी रील्स के ज़रिए मुख्य रूप से साधारण जानकारी शेयर करती हैं—खासतौर पर भारतीय ऑडियंस को ध्यान में रखकर, जिनमें फैटी लिवर और PCOS जैसी लाइफस्टाइल बीमारियां आम हैं. वह उन ट्रेंड्स और फैशन में बदले झूठे इलाजों को भी खारिज करती हैं जिन्हें अक्सर सच मान लिया जाता है. उनकी एक वीडियो, जिसे 40 लाख से ज़्यादा व्यूज़ मिले हैं, इसी पर थी—क्लाइंट्स बार-बार कहते हैं कि खड़े होकर पानी पीने से वह सीधे घुटनों में चला जाता है.

पीछे एक ट्रेंडिंग हिंदी गाना चलता है और कैप्शन में लिखा होता है—“सबसे बड़ा झूठ.”

चुनौती यह है कि 15-30 सेकंड की रील्स में साफ और सही जानकारी दी जाए. प्रणा हेल्थकेयर सेंटर की फाउंडर डिंपल जांघड़ा, जो आयुर्वेदिक प्लेटफॉर्म है और जिनके क्लाइंट्स में जूही चावला और अदिति राव हैदरी शामिल हैं, कहती हैं कि उन्होंने कंटेंट बनाना सिर्फ एक मकसद से शुरू किया: “आयुर्वेद के ज्ञान को छोटे-छोटे वीडियो में डॉक्युमेंट करना ताकि युवा भी इसे आसानी से देख और समझ सकें.”

अपने वीडियो में जांघड़ा आमतौर पर खाने की चीज़ों के फायदे बताती हैं. उनके एक कैप्शन में लिखा है: “हर हेल्थ प्रॉब्लम के लिए, नेचर ने हमें एक सब्ज़ी दी है जो इलाज की कुंजी है—खासकर जब बात गट-हेल्थ की हो.”

Health influencer Dimple Jangda's book
स्वास्थ्य प्रभावक डिंपल जांगडा की पुस्तक

हालांकि जांघड़ा ने 2017 में प्रणा हेल्थकेयर सेंटर शुरू करके पहले से ही एक स्थिर क्लाइंट बेस बना लिया था, लेकिन सोशल मीडिया ने उन्हें विस्तार का मौका दिया—वह ऑनलाइन एक मिनी वर्कशॉप कर पाईं.

आचंटानी के लिए, मज़बूत न्यूट्रिशन बैकग्राउंड होने के बावजूद, अब वह खुद को इंस्टाग्राम ट्रेंड्स और पॉपुलर गानों का इस्तेमाल करते हुए पाती हैं, ताकि उनका काम बड़े दर्शकों के लिए आसान और आकर्षक बन सके.

उन्होंने कहा, “आपको ट्रेंड्स के साथ चलना पड़ता है, लेकिन यह भी ध्यान रखना होता है कि आम आदमी कन्फ्यूज़ न हो. बहुत लोग बस पैसे बचाना चाहते हैं और जानकारी लेना चाहते हैं.”

आचंटानी बहुत ज़्यादा रिस्पॉन्सिव हैं और अपना बड़ा हिस्सा डायरेक्ट मैसेज का जवाब देने में लगाती हैं. लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि जो लोग फिज़ियोथेरेपी चाहते हैं, वे भी उनसे इलाज लेने की कोशिश करते हैं.

जहां तक रोज़ाना मिलने वाली गलत जानकारी का सवाल है, उन्होंने इसे एक सामाजिक फैक्टर से जोड़ा—एक अलग तरह की भारतीयता से.

उन्होंने कहा, “कोई भी पूरी कहानी सुनना नहीं चाहता. सबको लगता है कि वे सब कुछ जानते हैं.”

चुनौतियों के बावजूद, हेल्थ कंटेंट बनाना बेहद फायदेमंद है. आचंटानी के इंस्टाग्राम पर लगभग 1,50,000 फॉलोअर्स हैं और उन्हें रोज़ाना करीब 10 ब्रांड्स से ऑफर आते हैं. हालांकि, उनके अनुसार, वह डील्स चुनने में सतर्क रहती हैं: उन्होंने कहा, “मुझे अपने ऑडियंस के लिए ज़िम्मेदारी महसूस होती है.”

हेल्थ इन्फ्लुएंसर्स बनाम फैक्ट-चेकर्स

अपनी ताज़ा रील में मसाला लैब के क्रिश अशोक ने कद्दू के बीजों के बारे में फैल रही भ्रामक बात को चुनौती दी, जिसे हाई प्रोटीन फूड के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. हेपैटोलॉजिस्ट फिलिप्स, जो आयुर्वेद और होम्योपैथी के कड़े आलोचक हैं, बड़ी कंपनियों से भिड़ने से भी नहीं डरते.

उदाहरण के लिए, कई इन्फ्लुएंसर द गुड बग नामक मुंबई स्थित गट हेल्थ स्टार्टअप के फायदों पर जोर देते हैं, जिसने हाल ही में 100 करोड़ रुपये की फंडिंग हासिल की.

डॉ. फिलिप्स, जो अपने डिजिटल असर के लिए कुख्यात हो चुके हैं, ने कहा कि यह प्रोबायोटिक ब्रांड “वजन घटाने, PCOD, IBS पर अप्रमाणित दावों से उपभोक्ताओं को गुमराह कर रहा है.” जवाब में द गुड बग ने इन दावों को “बेसलेस” कहा और अपने विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण का हवाला दिया. यह घटना दिखाती है कि इंटरनेट आने के बाद हेल्थ परिदृश्य कितना जटिल हो गया है.

उपभोक्ता विरोधाभासी तथ्यों और कहानियों से घिरे हैं, जिनमें अक्सर पीआर को रिसर्च की तरह पेश किया जाता है.

आचंटानी के मुताबिक, उनके क्लाइंट शायद ही गूगल करते हैं. वे लगभग पूरी तरह इंस्टाग्राम रील्स पर निर्भर रहते हैं.

“वे अक्सर मुझसे पूछते हैं: आशीमा, यह रील देखो। क्या मैं यही सप्लीमेंट ले सकता हूं?”

उनकी एक क्लाइंट, 38 वर्षीय महिला, एक साल तक रोज़ उनकी रील्स देखती रही. उसे आचंटानी की बात करने की शैली पसंद आई और कंटेंट सच पर आधारित लगा. लेकिन मौजूदा हेल्थ समस्याओं की वजह से उनके टिप्स उस पर काम नहीं कर रहे थे. केवल एक महीने पहले उसने डाइट प्लान के लिए साइन अप किया और अब वह आचंटानी से पर्सनल कंसल्टेशन ले रही है.

सेनगुप्ता, जो एक फैक्ट-चेकिंग प्लेटफॉर्म चलाते हैं, के लिए यह ऑनलाइन दुनिया “व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी” का ही विस्तार है, जिससे गंभीर और उभरने न वाले नुकसान हो सकते हैं. क्रिएटर्स एल्गोरिद्म के इशारों पर चलते हैं.

उनके मुताबिक, अब डॉक्टरों की जगह हेल्थ इन्फ्लुएंसर स्कूल और कॉलेजों में लेक्चर देने बुलाए जा रहे हैं. रेवंत हिमतसिंहका, जो ‘फूड फार्मर’ के नाम से जाने जाते हैं, ने कोलकाता के आरपी गोयनका इंटरनेशनल स्कूल में टॉक दी ताकि “स्टूडेंट्स बेहतर फूड चॉइस कर सकें.”

स्कूल स्तर पर आयुष्मान भारत योजना भी शिक्षकों और छात्रों पर निर्भर करती है, जिन्हें “हेल्थ और वेलनेस एंबेसडर” बनाकर हेल्दी ईटिंग और हेल्थ-सेंट्रिक लाइफस्टाइल सिखाई जाती है.

सेनगुप्ता ने कहा, “कंटेंट बनाने की कोई नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है. भारत में आपको क्लिवलैंड क्लिनिक और जॉन्स हॉपकिन्स जैसी संस्थागत पहलें कम मिलेंगी. कंटेंट क्रिएटर्स द्वारा लिखे ब्लॉग भी ज़्यादातर ऐड एजेंसियों से आउटसोर्स किए जाते हैं.”

श्रीवास्तव जैसे उपभोक्ताओं के लिए, इस बिखरे हुए और असंगठित सिस्टम की सबसे बड़ी समस्या है फेक ब्रांडिंग की भरमार.

उन्होंने कहा, “यही स्तर की परिष्कृति (सोफिस्टिकेशन) है. हम ये विज़ुअल्स देखते हैं और भरोसा खो देते हैं,” इशारा करते हुए उन वादों की लंबी सूची की तरफ जो कुछ डाइट और हेल्थ ट्रेंड करते हैं. “लोग इन विज्ञापनों की तरफ खिंचते हैं. यह उपभोक्ताओं के लिए जाल है.”

नियमन कहां है?

आचंटानी ने एक क्लाइंट को याद किया जो ओज़ेम्पिक आज़माने के बाद अस्पताल पहुंच गया. भारत में आधिकारिक रूप से उपलब्ध न होने के बावजूद यह ओवर-द-काउंटर बिक रहा था. और दुनिया भर में, कैंसर से जूझ रहे लोग ऑस्ट्रेलियाई इन्फ्लुएंसर बेल गिब्सन पर भरोसा कर बैठे, जिसने दावा किया था कि उसने बिना रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी और ज़रूरी दवाइयों के खुद को ठीक कर लिया. वह नेटफ्लिक्स शो एप्पल साइडर विनेगर में अमर हो गई है.

डॉ. गुप्ता ने कहा, “जैसे रणवीर सिंह SuperYou प्रोटीन का प्रचार कर रहे हैं. क्या वह इसके नमक और फैट कंटेंट पर बात करते हैं? जब कोई इन्फ्लुएंसर कमर्शियल विज्ञापन शुरू करता है, तो उसे विज्ञापनदाता माना जाना चाहिए. और हेल्थ इन्फ्लुएंसर बनकर इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट बेचना भ्रामक माना जाना चाहिए.”

उनके दायर आरटीआई में सामने आया कि सितंबर 2023 से शुरुआती 2025 तक—डेढ़ साल की अवधि में—सरकार ने किसी भी विज्ञापन को भ्रामक नहीं माना.

2023 में उपभोक्ता मामले विभाग ने “हेल्थ और वेलनेस सेलिब्रिटीज़, इन्फ्लुएंसर और वर्चुअल इन्फ्लुएंसर” के लिए अतिरिक्त गाइडलाइंस जारी कीं, जिनमें उचित डिस्क्लेमर देने, क्वालिफिकेशन बताने और सामान्य, गैर-विशिष्ट जानकारी साझा करने की बात कही गई. गाइडलाइंस के अनुसार, “हाइड्रेटेड रहने के लिए पानी पियो”, “रोज़ सनस्क्रीन लगाओ”, और “स्वस्थ रहने के लिए हल्दी वाला दूध पियो” जैसी टिप्स स्वतंत्र रूप से साझा की जा सकती हैं.

गाइडलाइंस में लिखा था, “जो सेलिब्रिटीज, इन्फ्लुएंसर और वर्चुअल इन्फ्लुएंसर खुद को हेल्थ एक्सपर्ट या मेडिकल प्रैक्टिशनर की तरह पेश करते हैं, उनके लिए ज़रूरी है कि वे अपनी निजी राय और पेशेवर सलाह के बीच स्पष्ट अंतर दिखाएं. हमेशा यह सलाह दी जाती है कि ऑडियंस प्रोफेशनल मेडिकल सलाह और पूरी जानकारी के लिए हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स से संपर्क करें.”

कंटेंट क्रिएटर उपासना वोहरा अपनी ऑडियंस को बालों के डैंड्रफ दूर करने के लिए काले तिल खाने की सलाह देती हैं. सूजे हुए टॉन्सिल्स के लिए, वे तुलसी के पत्ते और नमक को देसी घी में मिलाकर प्रभावित जगह पर लगाने को कहती हैं. उनकी ज़्यादातर रील्स में वे सीधे ऑडियंस से बात करती हैं. उनकी सबसे ज्यादा देखी गई रील्स को लाखों व्यूज़ मिले हैं, जबकि औसतन उन्हें करीब एक लाख व्यूज़ मिलते हैं.

उनकी कमेंट्स में दिल के निशान और लोगों की ओर से और टिप्स की मांग होती है, खासकर स्किनकेयर पर. लोग अपनी समस्याएं बताते हैं और उनके जवाब का इंतज़ार करते हैं. चौधरी के DMs भी ज़्यादातर पॉज़िटिव रहते हैं.

बिस्वरूप रॉय चौधरी, जिनके अनुसार उनके पास “ज़ाम्बिया के अलायंस यूनिवर्सिटी” से डायबिटीज़ में ऑनरेरी पीएचडी है, के यूट्यूब चैनल पर दस लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर थे. कोविड-19 महामारी के दौरान वे एंटी-वैक्सीन वीडियो के लिए मशहूर हुए, जिसमें वे वैक्सीन को बेकार बताते और साइड इफेक्ट्स की लहर का दावा करते. उनका अकाउंट बाद में हटा दिया गया.

अब वे ऐसे डाइट को लोकप्रिय बना रहे हैं जो कथित तौर पर किसी भी बीमारी को एक हफ्ते में “रिवर्स” कर सकता है.

उनके साथ कंसल्टेंट के तौर पर काम करने वाले डाइटिशियन विक्रम सिंह मीना ने दिप्रिंट को बताया, “बीमारियां बिना किसी एलोपैथिक दवा के रिवर्स हो सकती हैं. यह सब रूटीन और टाइमिंग पर निर्भर करता है. सिर्फ ज़रूरत होने पर ही हम न्यूनतम मात्रा में आयुर्वेदिक दवा लिखते हैं.”

चौधरी के इंस्टाग्राम पर 3,76,000 फॉलोअर्स हैं. उनकी एक हालिया वीडियो में वह कहते हैं कि बुखार को ठीक करने के लिए पैरों को 30 मिनट तक गर्म पानी की बाल्टी में रखना चाहिए. एक घंटे में आपका तापमान आधा डिग्री बढ़ जाएगा. आधे घंटे और इंतज़ार करें—यह पूरी तरह गायब हो जाएगा, लक्षणों सहित, ऐसा उनका दावा है.

वह जोड़ते हैं कि दवा लेने से बुखार और लंबा चलेगा. “जो पांच दिन में ठीक होगा, वह 15 दिन लेगा.”

सेनगुप्ता के मुताबिक, उनकी टीम ने चौधरी—जो ‘डॉ. बीआरसी’ के नाम से जाने जाते हैं और 33 किताबें लिख चुके हैं—की कई बार फैक्ट-चेकिंग की है. डॉक्टरों ने भी यही राय दी—कि चौधरी के दावे “ग़ैर-वैज्ञानिक” हैं और सबूतों के खिलाफ हैं.

चौधरी ने यहां तक कि एक जापानी डाइट का ज़िक्र किया जो कथित तौर पर कैंसर को ठीक कर सकता है.

सेनगुप्ता ने कहा, “मेरे परिवार के एक 70 वर्षीय सदस्य ने मुझसे पूछा: ‘क्या मुझे यह डाइट अपनाना चाहिए?’”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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