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Saturday, 20 April, 2024
होमफीचरगुजरात में पेपर लीक एक संगठित अपराध, लेकिन सरकार इस अंतर्राज्यीय आपराधिक गठजोड़ को रोकने को तैयार

गुजरात में पेपर लीक एक संगठित अपराध, लेकिन सरकार इस अंतर्राज्यीय आपराधिक गठजोड़ को रोकने को तैयार

नया कानून पेपर लीक के 'संगठित अपराध' में शामिल होने वालों को अधिकतम 10 साल की जेल और कम से कम 1 करोड़ रुपये के जुर्माने का प्रावधान करता है.

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अहमदाबाद/नई दिल्ली: यह जनवरी का आखिरी रविवार था और गुजरात में 9.5 लाख उम्मीदवार पंचायत जुनियर कलर्क की 1,181 सीटों के लिए लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो रहे थे- एक नौकरी जिसमें 19,950 रुपये के वेतन का वादा किया गया था. इस लड़ाई में राजकोट के 22 वर्षीय मानव सोलंकी भी शामिल थे. वह उस दिन सुबह 11 बजे परीक्षा देने के लिए तैयार थे.

लेकिन सुबह 7 बजे के आसपास, उसे फोन आया कि परीक्षा रद्द कर दी गई है क्योंकि प्रश्नपत्र लीक हो गया है.

तब से, प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करने के लिए जिम्मेदार गुजरात पंचायत सेवा चयन बोर्ड (जीपीएसएसबी) फिर से भर्ती परीक्षा आयोजित करने के लिए प्रयासरत है. अब परीक्षा 9 अप्रैल को पुनर्निर्धारित की गई है.

पंचायत जुनियर कलर्क की परीक्षा पेपर लीक से प्रभावित होने वाली एकमात्र परीक्षा नहीं है. पेपर लीक गुजरात में एक महामारी बन गया है, जिसमें 11 वर्षों में 11 परीक्षाओं के पेपर लीक हो गए हैं जो हजारों नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को हतोत्साहित कर रहे हैं. अनौपचारिक संख्या दावा करती है कि संख्या इससे और भी अधिक है. यह निजी क्षेत्र के विकास के लिए जाने जाने वाले राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए जुनून को रेखांकित करता है.

बोर्ड को उम्मीद है कि जब तक दूसरी परीक्षा आयोजित की जाएगी, तब तक वे एक नए कानून से लैस होंगे, जो पेपर लीक के ‘संगठित अपराध’ में शामिल होने वालों को अधिकतम 10 साल की जेल की सजा और 1 करोड़ तक के जुर्माने का प्रावधान करेगा. 

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गुजरात सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक 2023 को पिछले महीने राज्य विधानसभा में जल्दीबाजी में पारित किया गया था और राज्य के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 8 मार्च को इस पर अपनी सहमति दे दी थी.

हालांकि, नए कानून ने सोलंकी जैसे लोगों को आश्वास्त नहीं किया है, जो परीक्षा की तैयारी के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

वो कहते हैं, ‘मानसिक रूप से शांत रहने की जरूरत है, तभी तैयारी संभव है.’

वह इस बात से निराश है कि कैसे कुछ सरकारी सेवाओं की परीक्षाओं को दूसरों की तुलना में अधिक ध्यान दिया जाता है और उनकी पवित्रता बरकरार रहती है.

वह सवाल करते हैं कि कैसे गुजरात लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं का पेपर लीक नहीं होता है लेकिन जब बात जीपीएसएसबी और गुजरात अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड की आती है तो पेपर लीक हो जाता है.

सोलंकी के पिता आनंद भाई पेपर लीक की घटनाओं को सरकारी निरीक्षण के परिणाम के बजाय एक ‘षड्यंत्र’ बताते हैं. उन्हें भी नए कानून से बहुत उम्मीदें हैं.

वो कहते हैं, ‘हम केवल यह कह सकते हैं कि जब कोई कैद होता है तो यह कितना प्रभावी होता है.’


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एक भयावह ‘कार्यप्रणाली’?

एसपी सुनील जोशी के मुताबिक, फरवरी तक जूनियर क्लर्क परीक्षा में पेपर लीक की जांच करने वाले गुजरात आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने मामले के 19 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था.

जोशी बताते हैं कि कैसे एक अभियुक्त ने हैदराबाद से पेपर प्राप्त किया जहां इसे मुद्रित किया जा रहा था और इसे लीक कर दिया- यह एक अंतर-राज्यीय ऑपरेशन था.

उन्होंने आगे कहा, ‘बिहार और ओडिशा के संगठित गिरोह के सदस्य भी इसमें शामिल हैं जो गुजरात में एजेंट ढूंढते हैं. फिर गुजरात में शिक्षा सलाहकार हैं, जो विभिन्न परीक्षा केंद्रों से जुड़े हैं, जो छात्रों तक पहुंचते हैं.’

एटीएस द्वारा पकड़े गए आरोपियों में केतन बरोट और भास्कर चौधरी हैं, जो राज्य में शिक्षा सलाहकार फर्मों का हिस्सा हैं. उन्हें पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा 2019 में BITS, पिलानी ऑनलाइन प्रवेश परीक्षा में हेरफेर करने के आरोप में भी गिरफ्तार किया गया था.

गुजरात ‘आप’ नेता युवराज सिंह जडेजा, जो राज्य में इस खतरे के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दावा करते हैं, का आरोप है कि ये अपराधी बार-बार नौकरशाही सहायता के कारण अपने संचालन को जारी रखने में सक्षम हैं. उनका दावा है कि राजनीतिक भागीदारी के कारण पेपर लीक होकर छात्रों तक पहुंचते हैं.

उनका दावा है कि एक नेता उन उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं जिसे लीक हुआ पेपर मिलता है और यह सुनिश्चित करते  हैं कि उसे कुछ न हो. साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि जूनियर क्लर्क परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र 12 लाख रुपये में बेचा गया था.

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी ने पेपर लीक को भाजपा सरकार की अपने ‘अपने लोगों’ की भर्ती करने की ‘कार्यप्रणाली’ करार दिया.

जडेजा इस तरह की घटनाओं के दोहरे ‘फायदे’ की व्याख्या करके इस आरोप को पूरा करते हैं. उनका दावा है, ‘यह अपने ही लोगों को सिस्टम में लाएगा और अगर परीक्षा में देरी हो जाती है क्योंकि लीक का खुलासा हो जाता है, तो वेतन का भुगतान करने की सरकार की जिम्मेदारी ठप हो जाती है.’

जबकि जडेजा नए कानून का स्वागत करते हैं, लेकिन उन्हें संदेह है कि क्या यह समस्या को समाप्त करने में मदद करेगा. उन्होंने रेखांकित किया कि कानून के प्रभावी होने के लिए एक पेपर को लीक करना होगा. उन्हें डर है कि अगर परीक्षा हॉल में कोई लीक हुई उत्तर कुंजी के साथ पकड़ा गया, तो इसे नकल के रूप में खारिज कर दिया जाएगा, न कि पेपर लीक का मामला के तौर पर देखा जाएगा.

हलांकि वह इसके लचर क्रियान्वयन को लेकर चिंतित हैं. वह गुजरात के मद्यनिषेध कानूनों का उदाहरण देते हैं. वो कहते हैं, ‘ऐसी कोई सड़क नहीं है जहां शराब उपलब्ध नहीं है. कानून की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे कैसे लागू किया जाता है और किस तरह की कार्रवाई की जाती है.’


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लोग सरकारी नौकरी से मुंह मोड़ रहे हैं

बार-बार पेपर लीक के कारण नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार हतोत्साहित हो रहे हैं. कई युवा इसके कारण मानसिक रूप से परेशान रहते हैं. 

22 वर्षीय अंकित कुमार कहते हैं, ‘नए बिल से कुछ नहीं होगा’. वह जनवरी में जूनियर क्लर्क की परीक्षा देने के लिए तैयार थे और उसने इसके लिए एक साल तैयारी की थी. लेकिन अब वह पुनर्निर्धारित परीक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित होकर तैयारी नहीं कर पा रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह तीसरी बार है जब मैंने किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए साइन अप किया, लेकिन फिनिश लाइन तक नहीं पहुंच सका.’

अब, कुमार ने अपने करियर की योजनाओं को पूरी तरह से बदल दिया है. वह और अधिक साल बर्बाद करने का जोखिम नहीं उठा सकता. नए कानून आने के बाद भी नहीं. 

कुमार कहते हैं, ‘मैंने बी.ए. किया, ताकि मैं कोचिंग कर सकूं और सरकारी परीक्षा की तैयारी कर सकूं. लेकिन सरकार के इस रवैये के कारण अब मैं अपना ध्यान L.L.B की डिग्री प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं. अब मेरा लक्ष्य L.L.B की डिग्री प्राप्त करना और एक प्राइवेट जॉब ढूंढ़ना है.’

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस फ़ीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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