नई दिल्ली: लगभग 70 साल पहले, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में खारे पानी के मगरमच्छों की संख्या तेजी से घट रही थी, क्योंकि उनकी खाल के लिए बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा था.
आज, इस रेप्टाइल (सरीसृप) ने वापसी की है, लेकिन इस संरक्षण की सफलता की एक दूसरी कहानी भी है—मगरमच्छ के हमलों में बढ़ोतरी.
हमलों में वृद्धि के बाद, सरकारी अधिकारियों ने पिछले महीने एक शिकार आदेश जारी किया, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि अगर इंसानों की जान खतरे में हो, तो अधिकारियों को अनुसूची-1 के तहत संरक्षित इस प्रजाति को मारने की अनुमति होगी. इस आदेश ने वन्यजीव कार्यकर्ताओं और सरकार के बीच टकराव पैदा कर दिया है.
विशाल मगरमच्छों को पकड़ने और उन्हें दूसरी जगह शिफ्ट करने के लिए सीमित संसाधनों के कारण, अधिकारी और संरक्षणविद अब इस बढ़ते मानव-पशु संघर्ष को कैसे संभालें, इस पर मंथन कर रहे हैं, जिसका कोई आसान समाधान नहीं दिख रहा.
“यह एक गंभीर इकोलॉजिकल भूल है,” पीपल फॉर एनिमल्स की ट्रस्टी गौरी मौलेकही ने कहा. “मगरमच्छ इस द्वीप पर पर्यटन विकास को सुगम बनाने के लिए स्वदेशी वन्यजीवों को व्यवस्थित रूप से खत्म करने की प्रक्रिया में पहला लक्ष्य प्रतीत होते हैं.”
अंडमान द्वीप में खारे पानी के मगरमच्छों की संख्या वर्षों में बढ़कर लगभग 450 हो गई है, और इसी के साथ पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है. दूसरी ओर, स्थानीय आबादी द्वारा मगरमच्छों के प्राकृतिक आवास में प्रवेश करने के कारण हमलों की संख्या भी बढ़ी है.
स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने मगरमच्छ-मुक्त क्षेत्र बनाए हैं, लेकिन मगरमच्छों को बाहर रखने के प्रयास विफल रहे. वन विभाग के अधिकारियों के पास न तो इस विशाल सरीसृप को पकड़ने की उचित क्षमता है और न ही उनके पास इसे नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे इसे पकड़ना और दूसरी जगह शिफ्ट करना भी एक चुनौती बन गया है.
मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) के कार्यालय ने फरवरी में मुख्य वन्यजीव वार्डन की ओर से यह आदेश जारी किया, जब मगरमच्छों को मगरमच्छ-मुक्त क्षेत्र में देखा गया और उन्हें पकड़ने या बेहोश करने के प्रयास असफल रहे.
प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) संजय कुमार सिन्हा ने कहा, “जब भी कोई मगरमच्छ मगरमच्छ-मुक्त क्षेत्र में पाया जाता है, तो हमें उसे हटाना होता है. या तो उसे पकड़कर, बेहोश करके, और अगर यह भी संभव न हो तो उसे मारकर.”
“यह पहली बार है जब इस जानवर को मारने का आदेश दिया गया है,” उन्होंने आगे बताया.
सिन्हा के अनुसार, 2005 से अब तक अंडमान में मगरमच्छ के हमलों के कारण लगभग 21 लोगों की मौत हो चुकी है.
वन्यजीव संरक्षणवादी और मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट के संस्थापक रोमुलस व्हिटेकर ने कहा, “बहुत पहले, जब अंडमान में मगरमच्छों की संख्या बहुत कम थी, अधिकारियों ने हमें बताया था कि वे वनों की कटाई रोकेंगे, पर्यटन शुरू करेंगे और मगरमच्छों की रक्षा करेंगे.”
“अब, यह समस्या उनके लिए खुद ही एक चुनौती बन गई है.”
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इंसान और जानवरों का टकराव
1900 के दशक के मध्य में, अंडमान में मगरमच्छों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आ रही थी. उनके अंडे खाए जाते थे, उनकी खाल बेची जाती थी और स्थानीय लोग, जो इस रेप्टाइल को उपद्रवी मानते थे, मगरमच्छों को मारने के लिए शिकारियों को काम पर रखते थे.
1972 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के साथ राहत मिली, जिसने अनुसूची 1 के तहत खारे पानी के मगरमच्छों को सबसे सख्त सुरक्षा प्रदान की। जानवर का शिकार करना प्रतिबंधित हो गया और कानून द्वारा दंडनीय हो गया.
वन विभाग ने 1980 के दशक के अंत में मैंग्रोव की कटाई भी रोक दी, जिससे वन क्षेत्र में सुधार हुआ और आवास का नुकसान कम हुआ.
व्हिटेकर को 1970 के दशक के मध्य में अंडमान में खारे पानी के मगरमच्छों के सर्वे याद हैं, जब उन्होंने कम आबादी की संख्या पर प्रकाश डाला था.
हालांकि कुछ मगरमच्छों को मारने के साथ-साथ अंडे खाने की प्रथा अभी भी प्रचलित है, उन्होंने कहा, नए कानूनों ने स्थानीय व्यापारियों में सफलतापूर्वक डर पैदा कर दिया और मगरमच्छ की खाल का कारोबार लगभग बंद हो गया.
व्हिटेकर के अनुसार, अंडमान के कुछ क्षेत्र मगरमच्छों के हॉटस्पॉट बन गए हैं, जहां मगरमच्छों की आबादी में काफी वृद्धि हुई है.
सिन्हा ने द्वीप पर मगरमच्छों की संख्या 450 बताई है, लेकिन व्हिटेकर का कहना है कि यह आंकड़ा बहुत कम आंका गया है.
इसके समानांतर, अंडमान आने वाले पर्यटकों की संख्या में भी भारी वृद्धि हुई है. अंडमान और निकोबार पर्यटन विभाग के अनुसार, 2024 में 7 लाख से अधिक पर्यटक द्वीपों पर आए, जो 2021 से हर साल औसतन 137 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है.
मगरमच्छों द्वारा पर्यटकों को मारने की वायरल खबरों ने चिंता बढ़ा दी है, लोग रेप्टाइल से बचने के लिए सलाह की तलाश में ऑनलाइन फ़ोरम की जमकर जांच कर रहे हैं.
अप्रैल 2010 में, अमेरिका की एक 25 वर्षीय महिला को स्नोर्कलिंग करते समय खारे पानी के मगरमच्छ ने मार डाला था – एक ऐसी घटना जो अभी भी इस क्षेत्र में गोताखोरी करने पर विचार करने वाले पर्यटकों के बीच चिंता पैदा करती है.
लेकिन टूर ऑपरेटर मगरमच्छों को चिंता का विषय नहीं मानते क्योंकि ज़्यादातर पर्यटक मगरमच्छ-मुक्त क्षेत्रों जैसे स्वराज द्वीप के समुद्र तटों पर रहते हैं, जिन्हें पहले हैवलॉक द्वीप कहा जाता था.
एक्सपीरियंस अंडमान टूर्स के मालिक अवेज खान ने कहा, “हम जिन लोगों को टूर पर ले जाते हैं, उनमें से ज़्यादातर को खारे पानी के मगरमच्छ नहीं मिलते.” उन्होंने आगे कहा, “पर्यटक क्षेत्र बहुत सुरक्षित हैं क्योंकि वे मुख्य रूप से समुद्र तटों तक ही सीमित हैं, अंतर्देशीय खाड़ी क्षेत्रों तक नहीं.”
जबकि पर्यटक इस खतरे से काफ़ी हद तक सुरक्षित हैं, स्थानीय समुदाय सुरक्षित नहीं हैं। मछुआरे, विशेष रूप से, उच्च जोखिम में हैं, जिन्हें अक्सर अपनी आजीविका के लिए मगरमच्छों के रहने वाले पानी में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
दक्षिण फाउंडेशन की एसोसिएट डायरेक्टर मीरा ओमन ने कहा, “समुदाय के सदस्यों को पता है कि पानी में मगरमच्छ हैं, लेकिन उन्हें मछली पकड़ने, बर्तन धोने और कपड़े धोने के लिए खाड़ी का उपयोग करने जैसी जोखिम भरी गतिविधियों में भाग लेना पड़ता है.” वे आगे कहते हैं, “यह कम रोजगार के अवसरों, बुनियादी सुविधाओं की कमी आदि से जुड़ा है.”
जब मछुआरे खुले पानी में मछली के आंत फेंकते हैं, तो मगरमच्छ भोजन की तलाश में इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं. समय के साथ, सरीसृपों ने मानवीय गतिविधियों को आसान भोजन से जोड़ दिया है—और कभी-कभी पैर या टांग को शिकार समझ लेते हैं.
व्हिटेकर ने कहा, “मगरमच्छ को लगता है कि इस तरह से भोजन पाना आसान है और वह और अधिक भोजन के लिए वापस आता है.” उन्होंने कहा, “लेकिन यह सिर्फ़ मगरमच्छ तक ही सीमित नहीं है. यह आदमखोर बाघों और तेंदुओं के साथ भी ऐसा ही है.”
मगरमच्छों को रोका नहीं जा सकता
खारे पानी के मगरमच्छ दुनिया का सबसे बड़ा रेप्टाइल है, जिसमें नर 6 मीटर तक लंबे हो सकते हैं और उनका वजन 1,000 से 1,500 किलोग्राम तक हो सकता है. इतने बड़े पानी के जीव को पकड़ना और दूसरी जगह ले जाना हमेशा से मुश्किल रहा है.
लेकिन वन्यजीव संरक्षणवादी व्हिटेकर जैसे विशेषज्ञ इसे एक बेकार प्रयास मानते हैं.
“उन्हें कहां ले जाया जाएगा? ऑस्ट्रेलिया? चीन?” व्हिटेकर ने कहा. “अगर उन्हें अंडमान में ही कहीं छोड़ा गया, तो वे तैरकर वापस अपने इलाके में आ जाएंगे.”
दक्षिण फाउंडेशन के एक शोध पत्र के अनुसार, खारे पानी के मगरमच्छ अपनी जगह पहचानने की जबरदस्त क्षमता रखते हैं और 20 दिनों में 400 किलोमीटर तक यात्रा कर सकते हैं ताकि अपने मूल स्थान पर लौट सकें.
अगर मगरमच्छों को दूसरी जगह ले जाना संभव भी होता, तो पहले उन्हें पकड़ना जरूरी होता. लेकिन अंडमान के मैंग्रोव क्रीक, मीठे पानी की नदियां, दलदली इलाके और खुला समुद्र—इन सभी जगहों पर मगरमच्छ लगातार घूमते रहते हैं, जिससे उन्हें पकड़ना बेहद कठिन हो जाता है.
“हमें ट्रैंक्विलाइज़र गन, उपकरण और मौके पर एक पशु चिकित्सक की जरूरत होती है. जानवरों को बेहोश करना बड़ी समस्या है,” सिन्हा ने कहा. “पूरे द्वीप पर इस तरह की सिर्फ दो या तीन गन हैं, और जब हमें उनकी जरूरत होती है, तब वे किसी और विभाग के पास हो सकती हैं.”
शिकार के आदेश को लागू करना भी आसान नहीं है.
चूंकि खारे पानी के मगरमच्छ को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 1 के तहत कड़ी सुरक्षा प्राप्त है, इसलिए इसके शिकार पर सख्त रोक हैं.
केवल तभी जब वन विभाग यह साबित कर दे कि पकड़ने या बेहोश करने के सभी प्रयास विफल हो चुके हैं, तो मुख्य वन्यजीव वार्डन विशेष परिस्थितियों में, जहां मानव जीवन खतरे में हो, शिकार की अनुमति दे सकता है.
“हमने उसे पकड़ने की पूरी कोशिश की लेकिन असफल रहे. अब हमने शिकार का आदेश दिया है, लेकिन वह भी सफल नहीं हुआ. हमारी टीम अभी भी वहीं, समुद्र तट पर तैनात है,” सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया।
समाधान
पीसीसीएफ और उनकी टीम इंसानों और मगरमच्छों के बीच संघर्ष को कम करने के तरीकों पर मंथन कर रही है.
लेकिन मगरमच्छ को मारना भी आसान नहीं साबित हो रहा है. 5 फरवरी को शिकार का आदेश जारी होने के बावजूद उनकी टीम अब तक मगरमच्छ को नहीं मार पाई है.
“हमारे पास भी इसका हल नहीं है. हमें मगरमच्छों को मारने का अनुभव नहीं है, लेकिन हम सीख रहे हैं,” सिन्हा ने कहा. “इस पर उच्च स्तरीय बैठक में चर्चा हुई थी—और हमने तय किया है कि कम से कम फ्री ज़ोन में तो हमें यह करना चाहिए.”
दक्षिण फाउंडेशन जैसी संस्थाएं इस संघर्ष को बेहतर समझने पर काम कर रही हैं, जिसमें हमलों का रिकॉर्ड रखना, जोखिम मानचित्र तैयार करना और रुझानों का अध्ययन करना शामिल है.
“स्थानीय समुदाय के प्रतिनिधियों के विशेष अनुरोध पर, हम संघर्ष समाधान की संभावनाओं पर आधारित माड्यूल तैयार कर रहे हैं,” मीरा उमन ने कहा. उनकी संस्था मछुआरों और बच्चों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ संवाद करने की योजना बना रही है.
पशु कल्याण कार्यकर्ता गौरी माऊलेखी का मानना है कि मगरमच्छों के प्राकृतिक आवास को अछूता छोड़ना ही एकमात्र समाधान है.
“मगरमच्छों में जटिल क्षेत्रीय व्यवहार होता है, जो लाखों वर्षों में विकसित हुआ है,” माऊलेखी ने कहा. “वे शीर्ष शिकारी (एपेक्स प्रीडेटर) हैं और जल पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उनके प्राकृतिक आवास को बरकरार रखना और इंसानी इलाकों के बीच बफर ज़ोन स्थापित करना सबसे प्रभावी समाधान है.”
व्हिटेकर का मानना है कि मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। उनके अनुसार, भारत में संरक्षण के बजाय संरक्षणवाद को प्राथमिकता दी जाती है, यानी जीवों और प्राकृतिक संसाधनों का सख्ती से बचाव किया जाता है, लेकिन उन्हें टिकाऊ ढंग से प्रबंधित नहीं किया जाता.
वे ऑस्ट्रेलिया जैसे अंतरराष्ट्रीय मॉडल से सीखने की सलाह देते हैं, जहां मगरमच्छ फार्मों के माध्यम से इंसान-वन्यजीव संघर्ष को सफलतापूर्वक प्रबंधित किया गया है, जबकि मगरमच्छों की आबादी को भी बनाए रखा गया है.
व्हिटेकर के अनुसार, मगरमच्छ बंदी प्रजनन में अच्छे होते हैं और अगर उन्हें फार्म में रखा जाए, तो उन्हें पशुधन की तरह देखा जा सकता है.
वह पापुआ न्यू गिनी का उदाहरण देते हैं, जहां मगरमच्छों की अधिक आबादी है.
“पापुआ न्यू गिनी हर साल लगभग 30,000 मगरमच्छों की खाल के लिए कटाई करता है,” व्हिटेकर ने कहा. “इसका अधिकांश लाभ स्थानीय आदिवासियों को मिलता है, जिनके पास कोई अन्य आय का साधन नहीं है.”
हालांकि, यह सुझाव एक ऐसे संरक्षणवादी के लिए विवादास्पद लग सकता है, जिसने दशकों तक मगरमच्छों की संख्या बढ़ाने पर काम किया है. लेकिन व्हिटेकर स्पष्ट करते हैं कि वह मगरमच्छों को मारने के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन लोगों की जान जाते देखना भी नहीं चाहते.
“सबसे ज्यादा प्रभावित स्थानीय लोग और पर्यटक हैं,” व्हिटेकर ने कहा, उन पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आलोचना करते हुए जो शिकार आदेश के खिलाफ खड़े हैं.
“न कि वे अमीर लोग, जो दिल्ली में बैठे हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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