गुजरात के जामनगर जिले में खम्भालिया शहर से 15 किलोमीटर पश्चिम की ओर बढ़ते हुए आपको पिपलिया गांव में कामाई माता का सुंदर मंदिर मिलेगा. गुजरात, खासकर सौराष्ट्र इलाके के जनजीवन पर स्थानीय देवी-देवताओं का अच्छा-खासा प्रभाव देखा जा सकता है.
पिपलिया गांव में 100 बीघा से ज्यादा जमीन के मालिक एक बड़े परिवार के किसान स्वर्गीय खेराजभाई गढ़वी चालीस साल से भी ज्यादा समय से कामाई माता के पक्के भक्त थे. उनकी पत्नी मणिबेन ने तीन बेटियों को जन्म दे दिया था लेकिन खेराजभाई के माता-पिता और पूरा परिवार एक बेटे की उम्मीद लगाए था और कामाई माता से इसके लिए प्रार्थना करता रहता था. सदियों से भारतीय परिवारों में पुत्र की आकांक्षा प्रबल रही है, और यह गढ़वी परिवार भी कोई अपवाद नहीं है.
पिपलिया में अपने विशाल घर में मणिबेन ने मुझसे बातचीत करते हुए कहा, “मारा सासू नी इच्छा कमाई माता ए पूरी करी. इसुदान नो जनम थयो. (कामाई माता ने मेरी सासू मां की इच्छा पूरी की, इसुदान का जन्म हुआ).”
इसके चार दशक बाद आज गुजरात चुनाव में इसुदान गढ़वी को आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वे बदलते गुजरात के प्रतिनिधि हैं. इस राज्य की संस्कृति के बारे में आम धारणा यही है कि उस पर ‘बनियों वाली व्यापारिक वृत्ति’ का वर्चस्व रहा है. लेकिन अब यह धीरे-धीरे और निश्चित रूप से बदल रही है.
पहली प्रेरणा
खेतीबाड़ी में लगे एक ‘पिछड़ी’ जाति वाले गढ़वी परिवार में, जो धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के गहरे सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ा रहा है, लाड़-प्यार से पले इसुदान की पढ़ाई-लिखाई में कोई रुचि नहीं रही. लेकिन उनके अनपढ़ पिता में अपने बच्चों को शिक्षित देखने की गहरी चाहत थी, सो उन्होंने इसुदान को जबरदस्ती पढ़ाई करने के लिए पास के शहर खम्भालिया और फिर जामनगर भेजा.
सौराष्ट्र क्षेत्र में गढ़वी और चारण जातियां पारंपरिक रूप से राजा के दरबार में काम किया करती थीं और राजा की प्रशंसा करती थीं. उनमें से कुछ लोग गढ़ों की पहरेदारी के लिए नियुक्त किए जाते थे और अपनी वफादारी के लिए जाने जाते थे. कुछ लोग जादू और वशीकरण जानते थे.
सौराष्ट्र के गढ़वियों की भाषा सशक्त गीतात्मक है, उनकी पोशाक में लाल और काले रंग का भरपूर इस्तेमाल होता है जो उन्हें एक तरह की गहराई प्रदान करता है, संगीत की उनमें गहरी समझ होती है और कुलदेवी के प्रति वे अत्यधिक श्रद्धा रखते हैं.
इसुदान जब खम्भालिया (जहां से वे आज अपना पहला चुनाव लड़ रहे हैं) में स्कूल में 11वीं क्लास में पढ़ रहे थे तब संयोग से उन्होंने दौरे पर आए एक वरिष्ठ पत्रकार का व्याख्यान सुना था. तब वे पत्रकारिता के पेशे के बारे में कुछ नहीं जानते थे. इसुदान उस व्याख्यान से यह जान कर, कि पत्रकार लोग सत्ता में बैठे लोगों से सवाल कर सकते हैं, इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने खुद पत्रकार बनने का फैसला कर लिया था. उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ को एक पोस्टकार्ड लिख भेजा कि वे पत्रकारिता की पढ़ाई कैसे कर सकते हैं. उन्हें वहां से जवाब पाकर बहुत आश्चर्य हुआ था जिसमें शर्तें बताई गई थीं और वे अहमदाबाद चले गए थे.
व्यापारियों के शहर में किसान के इस बेटे को पूरी तरह अजनबी होने का एहसास हुआ लेकिन वे विद्यापीठ में दाखिल हो गए. मौखिक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि वे पत्रकार क्यों बनना चाहते हैं तब इसुदान ने जवाब दिया था, ‘मुझे पता चला है कि नेता और सरकारी अफसर लोग पत्रकारों के फोन जरूर सुनते हैं. अगर मैं पत्रकार बन गया तो इस तरह गरीब लोगों की मदद कर सकूंगा.’ पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उन्हें एक टीवी चैनल में नौकरी मिली तो वे अपनी गंवई आक्रामकता के, जो उनके परिवार ने उनमें भर दी थी, साथ काम में भिड़ गए, और इस ओबीसी किसान पुत्र ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
यह भी पढ़ेंः क्यों ‘कोली हृदय सम्राट’ पुरुषोत्तम सोलंकी के लिए ‘एक परिवार, एक टिकट’ का नियम तोड़ रही है भाजपा
अंधविश्वास, स्टारडम और पत्रकारिता
इसुदान की कहानी कोई साधारण कहानी नहीं है क्योंकि वे आज के गुजरात में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के हैरत अंगेज़ उत्कर्ष की मिसाल हैं, जहां अंधविश्वास जैसी पुरानी मान्यताएं अब धुंधली पड़ रही हैं, पर ओबीसी समुदायों में अभी कायम हैं. इसके बावजूद, जहां आधुनिक, निष्पक्ष, उदार तकनीक रूढ़िपंथी खेतिहर समाजों की आकांक्षाओं को आगे बढ़ा रही है वहां यह विचित्र भारतीय चलन किसी भी दृष्टि से अद्भुत है.
सिलिकन वैली से निकली इस तकनीक, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, और तमाम तरह के ऐप को ओबीसी समुदाय ने बड़ी सफाई और व्यापक रूप से अपना लिया है. ये चीजें उनमें आत्मविश्वास पैदा कर रही हैं और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने में मदद कर रही हैं.
आश्चर्य नहीं कि एक दशक से भी कम समय में इसुदान टीवी एंकर ने के रूप में किसानों के मसलों, रियल एस्टेट में घोटालों, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार और इम्तहानों में पर्चे लीक करने की घटनाओं को उजागर किया और एक स्टार सरीखे बन गए. उनकी एंकरिंग सत्तातंत्र के खिलाफ उग्र, कठोर, तीखी और कभी-कभी अपमानजनक भी होती रही है. लेकिन उनके दैनिक कार्यक्रम ‘महामंथन’ को दर्शक काफी पसंद करते हैं. उनकी टीवी रेटिंग दूसरे प्रतियोगी चैनलों की रेटिंग से 3-4 गुना ऊंची ही रही है.
देवी का वरदान
‘दिप्रिंट’ से खास बातचीत में इसुदान ने पिपलिया गांव से टीवी पत्रकारिता में सुपरस्टार बनने तक के अपने सफर के बारे में बताया और यह भी कि गुजराती राजनीति के दुर्गम मैदान में महाशक्तिशाली भाजपा से टक्कर लेने का फैसला उन्होंने कैसे किया. पिपलिया में अपनी जमीन पर बने नये मकान की छत पर बैठे इसुदान ने बातचीत करते हुए बताया कि ‘मैं तीन बहनों के बाद पैदा हुआ था इसलिए जन्म से ही मैं अपने परिवार का दुलारा रहा. कामाई माता ने मेरे माता-पिता को मुझे एक वरदान के रूप में दिया था (हू माताजी नो दिधेल दिकरो छूं). मैं अपने माता-पिता को माता द्वारा दिया गया वरदान हूं इसके प्रमाण के तौर पर उन्होंने मेरी पीठ पर जन्म से ही एक निशान दे दिया था.’
‘माताजी ने मेरे माता-पिता से कहा था कि वे मुझे यह निशान दे रही हैं. मुझे माताजी का आशीर्वाद प्राप्त है. हम गढ़वी लोग देवीपुत्र हैं. गुजरात की कुलदेवियों ने हमारी जाति में अवतार लिया है. कामाई माता में मेरी पूरी आस्था है. कोई भी परेशानी हो, मैं उनके नाम का पांच बार जाप करता हूं और परेशानी दूर हो जाती है. जब भी मैं गांव से बाहर निकलता हूं, उनके चरण स्पर्श करके ही निकलता हूं. और जब मैं पिपलिया लौटता हूं, चाहे आधी रात क्यों न हो, मैं उनके आगे सिर नवाता हूं. उनके आशीर्वाद से ही मेरा परिवार इतना खुशहाल और एकजुट है. कामाई माता के कारण ही मेरा बचपन खुशियों से भरा रहा. हम धूल भारी गलियों में खेलते थे और खेतों पर मस्ती का जीवन जीते थे. मैं दोपहिया वाहन और कारें भी खरीद सका. मुझे बगीचे बहुत पसंद हैं, और मैंने अपना खास बगीचा बनाया है. मैं रोपनी करना बहुत अच्छी तरह जानता हूं और बैलगाड़ी चलाना जानता हूं.’
उनकी अनपढ़ दादी उन्हें रोज रामायण और महाभारत के दो अध्याय पढ़ने को कहा करती थीं. इसुदान को ये ग्रंथ पूरी तरह याद हैं. उनके पिता खेरजभाई ने सिर्फ चौथी कक्षा तक पढ़ाई की लेकिन वे इसुदान को पढ़ाने के पीछे पड़े थे. जब इसुदान ने पढ़ाई के लिए पास के शहर में जाने से मना कर दिया तो उन्होंने बेटे को पढ़ाई का महत्व समझाने के लिए समुदाय के बुजुर्गों की बैठक बुला ली थी. जाहिर है, पिता का सबसे ज्यादा असर पड़ा इसुदान पर. खेरजभाई का अपने बेटे से इतना लगाव था कि बाद में जब इसुदान ईटीवी के लिए खोजी खबरें करने निकलते थे तो उनके पिता भी उनके साथ लग जाते थे.
खेरजभाई किडनी की असाध्य बीमारी के कारण 15 अप्रैल 2014 को चल बसे. इसके बाद इसुदान बुरी तरह हताश हो गए. उन्हें गांव के अपने घर में रहना मुश्किल लगने लगा क्योंकि उससे उनके पिता की यादें जुड़ी थीं. आज भी वे अपने पिता की इतनी कमी महसूस करते हैं कि उनकी तस्वीर तक नहीं देख पाते. उनके पिता नागबाई माता के भक्त थे, जिनका मंदिर पास के बेराजा गांव में है. उन्होंने उस मंदिर में अखंड ‘दिवो’ जला रखा है. खेरजभाई ‘भूवा’ थे. भूवा तांत्रिक अनुष्ठानों और ‘आध्यात्मिक उपचार’ के लिए जाने जाते हैं. उनमें से कई तो समुदाय के मंदिर के प्रमुख संत हैं.
इसुदान का दावा है कि ‘मेरे पिता नवरात्रि में नौ दिन उपवास रखते थे और इस दौरान वे केवल पानी पीकर रहते थे. उनमें इतनी आध्यात्मिक शक्ति थी कि उपवास के दौरान वे किसी भक्त को भभूत दे देते थे तो उसकी मनोकामना पूरी हो जाती थी. नागबाई माता के आशीर्वाद से कई निःसंतान दंपतियों को संतान हुई. मेरे पिता ने मरने से एक दिन पहले हमें बता दिया था कि उनका समय खत्म हो चुका है. उन्होंने हमसे यह वादा करवाया कि उनके मरने के बाद हम नागबाई मंदिर में नवरात्रि में अखंड दीवो जलाएंगे.’
इसुदान (असली नाम ईश्वरदान) को प्रार्थना की शक्ति में इतना गहरा विश्वास है कि जब भी वे नयी नौकरी पकड़ते, उत्तर गुजरात में अंबा मां के मंदिर में प्रार्थना जरूर करते. और नयी नौकरी का पदभार वे 15 अप्रैल को 12.39 बजे के शुभ विजय मुहूर्त पर ही ग्रहण करते हैं. साधुओं और तांत्रिकों पर लिखी गई किताबें उन्हें बहुत प्रभावित करती हैं. हिमालय, जूनागढ़, सौराष्ट्र के जंगल में रहने वाले योगियों पर लिखी दर्जनों प्रसिद्ध किताबें वे पढ़ चुके हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी सोचा तक नहीं था कि पत्रकार बनूंगा, और मेरे इतने सारे प्रशंसक होंगे. लेकिन किसानों के कर्ज, फसल बीमा, अच्छी शिक्षा की कमी, कोविड महामारी में हुई बदइंतजामी जैसी लोगों की समस्याओं को उठाया. लोगों ने मुझे प्यार दिया.’
यह भी पढ़ेंः ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को इंदौर पहुंचने पर बम से उड़ाने की धमकी मिली, जांच में जुटी पुलिस
पत्रकारिता में पहला कदम
कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान अहमदाबाद में ऑक्सीज़न की कमी ने उनका जीवन हमेशा के लिए बदल दिया. उनकी माता को कोविड हो गया तो वे उनके लिए किसी अस्पताल में बेड की व्यवस्था नहीं करवा सके लेकिन किसी तरह उन्होंने ऑक्सीज़न के सिलिंडर का इंतजाम किया और घर पर इलाज की व्यवस्था की. मां की देखभाल करते हुए उन्हें भी कोविड का संक्रमण हो गया. जब वे ठीक हुए तब अपने टीवी कार्यक्रम में भाजपा सरकार के इस नियम पर उसकी जोरदार आलोचना की कि अस्पतालों में उन्हीं कोविड मरीजों की भर्ती की जाएगी जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त एंबुलेंस (फोन नंबर 108 पर उपलब्ध) में आए हों.
इसुदान ने देखा था कि किस तरह एक निजी कार में आए एक कोविड मरीज युवक ने अहमदाबाद अस्पताल की फाटक पर अपनी मां की गोद में दम तोड़ दिया था. उन्होंने उसी समय इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था. वे कहते हैं, ‘ऐसी स्थिति पैदा करने वाले रीढ़ विहीन नेताओं को बदलने के सिवा कोई विकल्प नहीं है.’ वह कहते हैं, ‘मुझे राजनीति से नफरत है लेकिन मैं इसमें कूद पड़ा हूं क्योंकि मुझे आम लोगों की तकलीफ बर्दाश्त नहीं हो रही. मुझे पता था कि मेरे पास एक सुरक्षित नौकरी थी. मैं इवेंट्स के उद्घाटन समारोहों के लिए एक लाख रुपये चार्ज करता था और पब्लिक शो के लिए चार्टर्ड हेलिकॉप्टर से यात्राएं किया करता था. मैं आराम की ज़िंदगी जी रहा था. मेरे पास पैसे थे, ज़मीन थी, परिवार और वह सब था जिसकी मैं इच्छा रखता था. मैंने लोगों की समस्याओं के समाधान में मदद करने के लिए इस्तीफा दे दिया. मैंने स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती आदि के लिए नीतियां तैयार की हैं और अगर सत्ता में आया और मुख्यमंत्री बना तो उन्हें लागू करूंगा. इस्तीफा देने के बाद जब मैं अपने घर पिपलिया आया तो कांग्रेस, भाजपा, आप के स्थानीय नेता मेरे घर आए.’
अरविंद केजरीवाल के बुलावे पर इसुदान गुजरात आप के अध्यक्ष गोपाल इतालिया के साथ दिल्ली गए. उन्होंने दिल्ली में आप सरकार की स्कूली व्यवस्था और दूसरे कामकाज देखे. केजरीवाल ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने के लिए उन्हें राजी किया. वे भाजपा में क्यों नहीं गए? इस सवाल पर उनका जवाब था, ‘मैं कोई कठपुतली नहीं बनना चाहता था. आप में मैं वे नीतियां लागू करूंगा, जो मैंने तैयार की हैं.’
पिछले 15 महीनो में इसुदान गुजरात के कोने-कोने में करीब 1.10 लाख किमी की यात्रा कर चुके हैं और 1200 सभाओं को संबोधित कर चुके हैं. वे बताते हैं कि जब वे आप में शामिल हुए उसके बाद दो महीने के भीतर उसे 5.5 लाख लोगों के मिस्ड कॉल मिले जो पार्टी में शामिल होना चाहते थे. करीब 2.86 लाख गुजराती आप में शामिल हुए हैं और वे पार्टी के 6,000 शहरी तथा 10,000 गांव के दफ्तरों में पूर्णकालिक काम कर रहे हैं.
इसुदान कहते हैं, “मेरे पास वह सब कुछ था, जो मैं चाहता था लेकिन दूसरी तरफ लोगों का दुख-दर्द था. मैं जब लोगों से मिलता हूं तो उन्हें आश्वासन देता हूं कि ‘टाइगर अभी जिंदा है’. लोग रोने लगते है, वे कहते हैं कि ‘हमें आप पर भरोसा है’.” उन्हें पक्का यकीन है कि भाजपा को शहरी सीटों पर सदमा देने वाले नतीजे मिलेंगे. उन्हें उम्मीद है कि अकेले सूरत में आप को 8-9 सीटें मिलेंगी.
आप पर भरोसा
लंबी बातचीत में उन्होंने बताया कि भाजपा ने कांग्रेस को किस तरह कमजोर कर दिया है, और इसने आप का रास्ता साफ किया है. ‘हमें सरकार बनाने का पूरा भरोसा है. हमारा सर्वे बताता है कि शहरी गुजरात की 66 में से 32 सीटों पर भाजपा हारेगी. ग्रामीण गुजरात में उसे 25 सीटों के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. लोग भाजपा से थक चुके हैं, जबकि केजरीवाल की साख बनी है. मुफ्त बिजली और दूसरी चीजों के लिए हमारे ‘गारंटी कार्ड’ ने तहलका मचा दिया है. लोग जातीय समीकरणों को भूल कर वोट देंगे.’
वे कहते हैं कि भाजपा को आप से इसलिए डर लग रहा है क्योंकि पिछले चुनाव में उसे 99 सीटें ही मिलीं और दो सीटों पर जीत को अदालत में चुनौती दी गई थी. करीब 31 सीटों पर भाजपा 5000 से भी कम वोटों के अंतर से जीत पाई थी, और इनमें से कई सीटों पर करीब 5000 ‘नोटा’ वोट पड़े थे.
वे कहते हैं, “केजरीवाल ने जब पुलिस में वेतन के ग्रेड्स के बारे में बात की तो 50 हजार पुलिसवालों ने व्हाट्सएप पर अपनी स्टेटस बदल दी और केजरीवाल के वादों का समर्थन किया. उन्होंने लिखा- ‘अब आप ही विकल्प है.’ यह बदलाव आया है. यह क्रांति है. आपको यह क्रांति नज़र नहीं आएगी. अगर मैं ‘गारंटी कार्ड’ लेने वालों का हिसाब करूं तो आप को कम-से-कम 1.60 करोड़ गुजरातियों का वोट तो मिलेगा ही.”
उनका दावा है कि टीवी पर लोगों की समस्याओं को बराबर उठाते रहने से राज्य के किसानों को फसल बीमा और ब्याज मुक्त कृषि ऋण समेत कई सरकारी योजनाओं के कारण 10,000 करोड़ रु. का लाभ मिला है. इसुदान का मुक़ाबला स्थानीय बाहुबली और दो बार विधायक रहे कांग्रेस नेता विक्रम माडम और पूर्व भाजपाई मंत्री मुलुभाई बेरा से है. कमजोर उम्मीदवार माने गए बेरा को राजनीतिक ताकत तब मिली जब जामनगर में रिलायंस के चेहरा माने गए परिमल नथवानी उनके साथ तब नज़र आए जब वे अपना पर्चा भरने गए थे.
इसुदान कहते हैं, “मैं लोगों के आंसू पोछने के लिए यह चुनाव लड़ना चाहता हूं. मैं ऐसी व्यवस्था चाहता हूं जिसमें कोई किसान जब जिला कलेक्टर के दफ्तर में आए तो वह खड़ा होकर किसान को सलाम करे. मेरा कोई गॉडफादर नहीं है. मेरे पास चुनाव लड़ने के लिए 500 करोड़ का फंड नहीं है. मेरे परिवार का कोई व्यक्ति सरपंच तक नहीं है. मैं गुजरात के गांव का, एक छोटे-से ओबीसी समुदाय का बेटा हूं. मैं मानता हूं कि मुझे वरदान हासिल है. किसी अदृश्य शक्ति ने मुझे राजनीति में धकेल दिया है. जब गरीब लोग पीड़ा में होते हैं तब भगवान उनकी मदद के लिए किसी को भेज देता है. मैं कोई नेता नहीं हूं, आम आदमी हूं. मेरे पास कोई पासपोर्ट नहीं है. राजनीति में कदम रखकर मैं मोक्ष पाने की कामना कर रहा हूं.”
(शीला भट्ट दिल्ली-बेस्ड वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः अशोक कुमार)
यह भी पढ़ेंः गुजरात भाजपा जबर्दस्त बगावत झेल रही, प्रत्याशी के ‘जीतने की क्षमता’ को टिकट का आधार बनाना बड़ी वजह