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Monday, 16 December, 2024
होमफीचरयौन उत्पीड़न से परेशान बच्चों ने अजमेर मौलाना हत्याकांड में पुलिस को कैसे दिया चकमा

यौन उत्पीड़न से परेशान बच्चों ने अजमेर मौलाना हत्याकांड में पुलिस को कैसे दिया चकमा

इस घटना ने अजमेर को हिलाकर रख दिया है, शहर के मदरसों और मस्जिदों की सुरक्षा की मांग बढ़ गई है, जिसमें इन संस्थानों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन भी शामिल है.

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अजमेर: मदरसा समिति के उपाध्यक्ष हाजी मोहम्मद शरीफ अब्बासी ने एक नया और ज़रूरी मिशन शुरू किया है — शहर के रेलवे स्टेशन के पास केले शाह दरगाह से सटी मस्जिद के बच्चों और कर्मचारियों को ‘गुड टच, बैड टच’ की ट्रेनिंग देना. 50-वर्षीय व्यक्ति अपने अभियान को अजमेर के सभी मदरसों और मस्जिदों तक ले जाना चाहते हैं.

बीते 15 दिन पहले ही मदरसे के 9 से 16 साल की उम्र के छह छात्रों ने अपने इमाम मोहम्मद माहिर को कथित यौन उत्पीड़न के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला था.

अब्बासी ने मुहम्मदी मस्जिद जहां हत्या हुई थी, वहां अधिकारियों से बात करते हुए कहा, “हमें मदरसों में छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़रूरत है. हर इमाम और मौलाना की जांच होनी चाहिए.”

इस घटना ने अजमेर को हिलाकर रख दिया है. मुस्लिम समुदाय शहर के मदरसों और मस्जिदों की सुरक्षा की मांग को लेकर सजग हो गए हैं. इसमें इन संस्थानों का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन भी शामिल है. मुसलमान मदरसों और मस्जिदों की पहले से ही नकारात्मक छवि को लेकर पहले से ही चिंतित हैं. कुछ मदरसा अधिकारियों को यह भी चिंता है कि इस घटना के कारण स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ सकती है. इस डर के बीच, हत्या का मामला अपने आप में सवालों के घेरे में आ गया है और कई लोगों ने पुलिस की जांच पर सवाल उठाए हैं.

हमें मदरसों में छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़रूरत है. हर इमाम और मौलाना की जांच होनी चाहिए
—हाजी मोहम्मद शरीफ अब्बासी, उपाध्यक्ष, मदरसा कमेटी

शुरुआती जांच के लिए यह 70 लोगों की एक टीम थी, जिन्हें हत्या के मामले को सुलझाने के काम पर लगाया गया था, जिसमें डॉग स्क्वाड, फोरेंसिक टीम और मोडस ऑपरेंडी ब्यूरो (एमओबी) टीम शामिल थी, जो अपराध की रीमैपिंग के लिए जिम्मेदार थी. 8 मई को यह टीम घटकर 40 लोगों की रह गई जिसने मौलाना की हत्या की जांच की.


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हत्या की साजिश

माहिर ने अक्टूबर 2023 में मस्जिद की जिम्मेदारी संभाली. वे जल्द ही उत्तर प्रदेश के रामपुर से चार बच्चों को मस्जिद में रहने और पढ़ने के लिए लाए. राजस्थान का एक नाबालिग लड़का भी मौलाना माहिर के साथ आकर रहने लगा.

अब्बासी ने कहा कि माहिर गुस्सैल नेचर के थे और वे अक्सर बच्चों को पीटते थे. मौलाना होने के कारण उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. हालांकि, उन्होंने कहा कि छात्रों ने माहिर के खिलाफ कभी कोई शिकायत नहीं की थी.

अब्बासी ने कहा, “पड़ोसियों ने माहिर को छात्रों की पिटाई नहीं करने की सलाह दी थी. मौलाना के प्रति सम्मान और इज़्ज़त के कारण, कभी कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई.”

25 अप्रैल को रमज़ान के बाद, रामपुर से 16 साल की उम्र का एक और नाबालिग छात्र मस्जिद में रहने आया. अन्य सभी बच्चों की तरह, नए छात्र को भी मौलाना माहिर के साथ ग्राउंड फ्लोर के कमरे में सोना पड़ता था.

रामगंज थाने के SHO रवींद्र सिंह ने कहा कि माहिर ने रात 10 बजे नए छात्र को नींद से जगाया और बाथरूम में “गलत काम” करने के लिए कहा. किशोर ने मना कर दिया. माहिर ने अपने कदम वापस ले लिए.

26 अप्रैल को सुबह 8:30 बजे, माहिर ने फिर से इस नए छात्र को अपने साथ बाथरूम में चलने के लिए कहा. उसने फिर से इनकार कर दिया.

कुछ घंटों बाद, मस्जिद की छत पर स्थित एक कमरे में कैरम खेलते समय, नए छात्र ने अन्य पांच बच्चों के साथ अपनी आपबीती साझा की. पुलिस के अनुसार, इसी दौरान अन्य बच्चों ने भी मौलाना के यौन उत्पीड़न के बारे में अपने अनुऊव साझा किए.

सिंह ने कहा, “बच्चों ने मौलाना को मारने की साजिश रची और इसे सावधानीपूर्वक अंजाम दिया. मौलाना के खाने में चूहे मारने की दवा मिलाकर उसकी जान लेने का फैसला किया गया था लेकिन उन्हें शक था कि क्या यह काफी नहीं होगा.”

The room on the ground floor of the mosque where maulana Mahir was killed. He and his students used to sleep in this room | Danishmand Khan | ThePrint
मस्जिद के बेसमेंट पर वो कमरा जहां मौलाना माहिर की हत्या की गई थी. वे और उनके छात्र इसी कमरे में सोते थे | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

अपनी साजिश पर दोबारा विचार करते हुए उन्होंने (बच्चों) एक स्थानीय मेडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीदीं. मौलाना द्वारा रात का खाना बाहर खाने का फैसला लेने के बाद उनकी योजना लगभग फैल हो गई, लेकिन बच्चों ने हार नहीं मानी. जब मौलाना वापस लौटे तो छात्रों ने उन्हें रायते में नींद की गोलियां मिलाकर परोस दीं. उन्हें बेचैनी महसूस हुई और वो सो गए.

27 अप्रैल की रात लगभग 2:30 बजे, जब मौलाना सो रहे थे, बच्चे मोटा डंडा लेकर लौटे. उन्होंने पहले मौलाना को लाठियों से मारा और जब उन्होंने उठने की कोशिश की, तो एक जाली की रस्सी से उनका गला घोंट दिया. वे कमरे में यह देखने के लिए इंतज़ार करते रहे कि माहिर मर चुका है. लगभग 2:50 बजे, बच्चों ने रोते हुए एक पड़ोसी को जगाया, जो अक्सर मस्जिद के काम में मदद करता है. वहां पहुंचने पर उसने मौलाना को खून से लथपथ पाया. शख्स ने मौलाना को सीपीआर देने की भी कोशिश की, लेकिन उनकी मौत हो चुकी थी.

बच्चों ने भी अपने बचाव की योजना बनाई और एक ऐसी कहानी गढ़ी जिससे उनका जुर्म नज़रों में न आए. उन्होंने पुलिस को बताया कि तीन नकाबपोश हमलावर पिछले दरवाजे से मस्जिद में घुसे और मौलाना की लाठियों से पीट-पीट कर हत्या कर दी. हत्या को अंजाम देने से पहले हमलावरों ने पहले बच्चों को धमकाया और कमरे से बाहर निकाल दिया. बच्चों ने बताया कि बदमाशों ने काले कपड़े पहने हुए थे और काले कपड़े से अपना चेहरा ढक रखा था. हत्यारे भागने से पहले हत्या में इस्तेमाल की गई लाठियां घटनास्थल पर ही छोड़ गए.

हत्या की सुबह पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई दो लाठियां और मौलाना का गला घोंटने के लिए इस्तेमाल किया गया जाल बरामद कर लिया.

मौलाना की मौत के बाद मस्जिद में देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण, बच्चों को उनके परिवार के सदस्य 30 अप्रैल को वापस रामपुर ले गए.

माहिर को पड़ोसियों ने छात्रों की पिटाई न करने की सलाह दी थी. हालांकि, मौलाना के प्रति सम्मान और इज़्ज़त के कारण, कभी कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई
—हाजी मोहम्मद शरीफ अब्बासी, उपाध्यक्ष, मदरसा कमेटी

SHO के अनुसार, पुलिस ने 15 दिनों तक सभी संभावित एंगल से मामले की जांच की, लेकिन हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला.

8 मई को एसपी देवेन्द्र कुमार बिश्नोई ने समीक्षा बैठक बुलाई और सुझाव दिया कि बच्चों से दोबारा पूछताछ की जाए. 11 मई को बच्चों को रामपुर से वापस अजमेर लाया गया. करीब 24 घंटे तक चली पूछताछ के दौरान उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

12 मई को दोपहर 3:00 से 3:30 बजे के बीच पुलिस बच्चों को अपराध का पता लगाने के लिए मदरसे में लेकर आई. इस दौरान पुलिस ने मौलाना का फोन भी बरामद किया जो उनकी हत्या के बाद से गायब था. फोन मस्जिद की गैलरी में कबाड़ के ढेर से बरामद किया गया. SHO के मुताबिक, मौलाना अपने फोन पर अश्लील वीडियो देखते थे.

पुलिस ने मस्जिद गैलरी में कबाड़ के ढेर से वनप्लस मोबाइल फोन बरामद किया | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147 (दंगा करने का दोषी), 149 (सामान्य उद्देश्य के लिए किए गए अपराध के लिए गैरकानूनी सभा का दोषी), 302 (हत्या) और 201 (अपराध के सबूतों को गायब करना, या गलत जानकारी देना) के तहत मामला दर्ज किया गया है. सिंह ने कहा, आईपीसी 147 तब लागू किया जाता है जब किसी हत्या के मामले में पांच या अधिक आरोपी शामिल होते हैं.

हत्या की सुबह पुलिस ने मोबाइल फोन के अलावा हत्या में इस्तेमाल की गई दो लाठियां और मौलाना का गला घोंटने में इस्तेमाल किया गया जाल भी बरामद कर लिया.


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मनगढ़ंत कहानी

जब कोई हमलावर हत्या के इरादे से आता है तो धारदार हथियार लेकर आता है. वे लाठी लेकर नहीं आते. पुलिस ने कहा, यह और कई अन्य छोटी-छोटी बातें बच्चों द्वारा रची गई हत्या की कहानी को शक के दायरे में लेकर आई.

बच्चों की “रटी रटाई कहानी” से पुलिस का शक और गहरा गया.

सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “बच्चों के बयान बिल्कुल एक जैसे थे. वे पूरी तरह से रटे रटाए हुए थे. सबके बयान एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इससे हमारा शक और बढ़ गया.”

अपनी गवाही में बच्चों ने पुलिस को बताया कि तीन नकाबपोश हमलावरों ने काले कपड़े, मास्क और दस्ताने पहने हुए थे. पुलिस को इस पर शक हुआ कि आखिर सभी हत्यारें बिल्कुल एक जैसे कपड़े कैसे पहन सकते हैं. यह तथ्य भी अस्पष्ट रहा कि हत्यारे हत्या का हथियार छोड़ गए.

हत्या के हथियार पर अपनी उंगलियों के निशान की मौजूदगी को जस्टिफाई करने के लिए, छात्रों ने कहा कि उन्होंने “हमले” के बाद लाठियां उठाईं थी. बच्चों ने मस्जिद की गैलरी में 8 फुट ऊंची दीवार पर लाठियां रखी थीं, जहां से वह बगल के खाली प्लॉट में गिर गईं.

Ramganj Police Station SHO Ravindra Singh | Danishmand Khan | ThePrint
रामगंज थाना SHO रवीन्द्र सिंह | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

बच्चों ने बताया कि हमलावर 8 फुट ऊंची गैलरी की दीवार से खाली प्लॉट में कूदकर भाग निकले. सिंह ने दावा किया कि मोडस ऑपरेंडी ब्यूरो (एमओबी) “100 प्रतिशत आश्वस्त” है कि कोई भी उस रास्ते से नहीं भागा क्योंकि इतनी ऊंची दीवार से कूदने से पैरों के निशान या ज़मीन पर कुछ निशान रह जाते, जो टीम को नहीं मिले. इसके अलावा, पुलिस ने आसपास के इलाकों के 100 से अधिक सीसीटीवी फुटेज की समीक्षा की, लेकिन उन्हें कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला.


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नींद की गोलियां

इस मामले में एक अहम सवाल यह है कि छोटे बच्चे मेडिकल स्टोर से नींद की गोलियां कैसे खरीद पाए. यह कुछ ऐसा है जिसका पुलिस को भी अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है और वह जांच कर रही है. सबसे बढ़कर यह धारणा है कि बच्चे हत्या जैसा जघन्य अपराध करने के लिए बहुत मासूम हैं.

माहिर के भाई मोहम्मद आमिर ने पुलिस पर झूठा दावा करने का आरोप लगाया है कि निर्दोष लोगों को फंसाने की कोशिश करते हुए असली दोषियों को बचाया जा रहा है और जिन मदरसे के छात्रों पर पुलिस अब आरोप लगा रही है, वो अपराध करने के लिए बहुत छोटे हैं.

आमिर ने दावा किया, “पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि माहिर की गर्दन की हड्डी टूट गई थी और उन्हें गंभीर चोटें आई थीं. कोई भी बच्चा इतने शक्तिशाली हमले नहीं कर सकता.”

उनके मुताबिक पुलिस का दावा है कि छात्रों द्वारा माहिर को नींद की गोलियां देने की पुष्टि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में नहीं हुई है.

आमिर ने यह भी आरोप लगाया कि 10 मई को पुलिस उनके पिता और चाचा समेत पांच छात्रों को पूछताछ के लिए ले गई थी. हालांकि, पुलिस उन्हें थाने ले जाने के बजाय अजमेर के गुप्ता होटल ले गई. वहां उनके पिता और चाचा को एक कमरे में रखा गया, जबकि बच्चों को दूसरे कमरे में रखा गया. आमिर ने आरोप लगाया कि इस दौरान पुलिस ने बच्चों को प्रताड़ित किया और उन्हें माहिर की हत्या कबूल करने के लिए मजबूर किया.

बच्चों के बयान बिल्कुल एक जैसे थे. वे पूरी तरह से सीखे हुए हुए लग रहे थे. सबके बयान एक जैसे कैसे हो सकते हैं? इससे हमारा शक और बढ़ गया
—एसपी देवेन्द्र कुमार बिश्नोई

हालांकि, SHO सिंह ने कहा कि आमिर के आरोप “गलत” और “निराधार” थे. उन्होंने कहा कि मौलाना माहिर के सिर पर सिर्फ एक गहरा घाव है. नींद की गोलियां दी गईं या नहीं, इसका पता फॉरेंसिक रिपोर्ट से चलेगा, जो एक महीने बाद सामने आएगी. SHO ने कहा कि बच्चों को कानून के मुताबिक, होटल ले जाया गया. सिंह ने कहा, “बच्चों को पुलिस स्टेशन नहीं ले जाया जा सकता. इसलिए हम उन्हें एक निजी होटल में ले गए.”

मौलाना माहिर का एक करीबी सहयोगी जो आठ साल तक मस्जिद में रहा, वे भी माहिर के बचाव में सामने आया.

नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं अक्सर मौलाना माहिर और इन छात्रों के साथ समय बिताता था, लेकिन मौलाना का आचरण कभी भी संदिग्ध नहीं मिला. माहिर हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देने की बात करते थे. मैंने कभी नहीं देखा या महसूस नहीं किया कि वे मेरे और दूसरों के साथ कुछ भी गलत कर सकते हैं.”

स्थानीय मीडिया और उनका दृश्यम लेंस

शहर की जनता और पुलिस के लिए मामला संवेदनशील है, जहां पुलिस इसे एक “रोमांचक रहस्य” की तरह देख रही है, वहीं स्थानीय मीडिया के लिए यह एक “सनसनीखेज न्यूज़” स्टोरी है. मोहम्मदी मस्जिद के ठीक बाहर जहां हत्या हुई थी, कुछ युवाओं ने मामले पर अपडेट लेने के लिए अपने फोन निकाले.

एक युवक ने स्थानीय अखबार की रिपोर्ट के एक लिंक पर क्लिक करते हुए कहा, “बच्चे मौलाना को मारने के लिए दृश्यम फिल्म से प्रेरित थे. ये खबर अभी सामने आई है. इसे देखो.”

Ramganj Police Station | Danishmand Khan | ThePrint
रामगंज थाना | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

मौलाना की हत्या पर अपडेट करने से पहले रिपोर्टर का वॉयसओवर अजय देवगन अभिनीत थ्रिलर के एक प्रसिद्ध डायलॉग का इस्तेमाल करता है. रिपोर्टर ने हिंदी में कहा, “2 अक्टूबर को, हम पणजी गए और एक रेस्तरां में पाव भाजी खाई. फिल्म दृश्यम का ये सीन कोई कैसे भूल सकता है. कैसे एक परिवार खुद को बचाने के लिए झूठी कहानी गढ़ता है. इसी तरह, मौलाना माहिर की हत्या करने वाले छह नाबालिगों ने एक फर्जी कहानी गढ़ी.”

स्थानीय चैनल कैपिटल टीवी के शो पर्दाफाश में कहा गया कि ज्यादातर मदरसों से बच्चों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें अक्सर आती रहती हैं.

कैपिटल टीवी की एंकर दिव्या सिंह ने कहा, “देश के कई राज्यों से ऐसे मामले अक्सर मौलवियों की करतूतों के कारण चर्चा का विषय बन जाते हैं. उनके जघन्य कृत्य भी सामने आते हैं और पता चलने पर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है.”

मैं अक्सर मौलाना माहिर और इन छात्रों के साथ समय बिताता था, लेकिन मौलाना का आचरण कभी भी संदिग्ध नहीं मिला. माहिर हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देने की बात करते थे. मैंने कभी नहीं देखा या महसूस नहीं किया कि वे मेरे और दूसरों के साथ कुछ भी गलत कर सकते हैं
—मौलाना माहिर का करीबी

लेकिन कुछ खबरों ने अजमेरवासियों को नाराज़ किया है. अब्बासी ने कहा, “मीडिया इस मामले को बढ़ा-चढ़ाकर और सनसनीखेज बना रहा है. कुछ लोगों ने इसका इस्तेमाल सांप्रदायिकता फैलाने और समुदाय को बदनाम करने के लिए किया है.”


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मदरसे और सुरक्षा का सवाल

अजमेर के शांत बाहरी इलाके में पहाड़ों से घिरा, दारुल उलूम सूफी शाहबाज़ मदरसा दोपहर एक बजे लंच के लिए खुला. बच्चे अपनी किताबें और अन्य सामग्री लेकर अपने घरों की ओर बढ़ते हैं. यहां 70 से अधिक छात्र स्कूल जाते हैं, जिनमें से कुछ उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और बंगाल से हैं.

मदरसा की इमारत के बाहर, तीन शिक्षक एक साथ बैठकर हालिया घटना के अन्य मदरसों पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कर रहे हैं. वे शहर के मदरसों पर निगरानी कड़ी करने की ज़रूरत पर बात कर रहे हैं. मोहम्मद रमज़ान ने निजी मदरसों के रजिस्ट्रेशन में कमी पर आपत्ति जताई.

रमज़ान ने कहा, “मदरसों और मस्जिदों की छवि पहले से ही खराब हो रही है और ऐसी घटनाएं आग में घी डालने का काम करती हैं. इसलिए, शहर के सभी इमामों और मदरसों का वेरिफिकेशन किया जाना चाहिए.”

उन्होंने मदरसों की कड़ी निगरानी की ज़रूरत पर बल दिया. 33-वर्षीय ने हर धार्मिक संस्थान में कैमरे लगाने की भी वकालत की.

उन्होंने कहा, “हर एक मदरसे और मस्जिद में कैमरे लगाए जाने चाहिए ताकि बच्चों पर लगातार निगरानी रखी जा सके. यहां निजी और अपंजीकृत मदरसे काफी संख्या में हैं. इसके चलते उन पर निगरानी रखने वाला कोई नहीं है.”

अजमेर में पंजीकृत दारुल उलूम सूफी शाहबाज़ मदरसा जिसमें लगभग 35 कैमरे लगे हैं | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

वे ऐसी घटनाओं के लिए अभिभावकों और मौलाना के बीच तालमेल की कमी को जिम्मेदार मानते हैं.

रमज़ान ने कहा, “माता-पिता अपने बच्चों को मदरसों में छोड़ देते हैं और फिर कई महीनों तक उनका हाल-चाल पूछने नहीं आते हैं. ऐसा करने से पहले, माता-पिता को मदरसों और मौलाना की जांच करनी चाहिए.”

राजस्थान मदरसा बोर्ड के अनुसार, राज्य में 3,454 पंजीकृत मदरसे हैं जिनमें 204,612 से अधिक छात्र आधुनिक और धार्मिक दोनों शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.

एक अन्य शिक्षक, 59-वर्षीय मोहम्मद हारून ने कहा, “इस घटना के लिए सरकार भी जिम्मेदार है.”

रमज़ान के मुताबिक, ऐसी बर्बर घटनाएं समुदाय की प्रतिष्ठा को धूमिल करती हैं और आज के सांप्रदायिक माहौल में इसका भारी असर हो सकता है.

उन्होंने कहा, “रजिस्ट्रेशन ज़रूरी है. अजमेर में लोग मदरसा या मस्जिद स्थापित करते हैं और दान मांगना शुरू कर देते हैं. जो मदरसे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं उन्हें बंद कर देना चाहिए.”

रमज़ान और हारून ने मस्जिदों और मदरसों के निर्माण के लिए नियम बनाने की वकालत की. उन्होंने एक समिति के गठन का प्रस्ताव रखा जिसमें मदरसों के सभी दस्तावेज जमा किए जाएं.

रमज़ान के मुताबिक, ऐसा नियम होना चाहिए कि मस्जिदों का निर्माण जनसंख्या के आधार पर किया जाए. उन्होंने जोर देकर कहा, “कई मस्जिदें खाली रह गई हैं, जो अपमानजनक भी है.”

इस बीच, शरीफ मदरसों और मस्जिदों को वीरान होने से रोकने की योजना बना रहे हैं. वे एक अभियान शुरू करने की योजना बना रहा है, जिसका लक्ष्य मोहम्मदी मस्जिद को जल्द से जल्द फिर से खोलना है. उनकी तीन सदस्यीय टीम आसपास के इलाकों का दौरा कर लोगों को नमाज के लिए मस्जिद में लौटने के लिए प्रोत्साहित करेगी. इससे बच्चों में वापस आने का आत्मविश्वास बढ़ेगा.

शरीफ ने कहा, “मैं नहीं चाहता कि एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित रहे. जब तक मैं उन्हें सुरक्षित स्थान उपलब्ध नहीं करा देता, मैं चैन की सांस नहीं लूंगा.”

मोहम्मदी मस्जिद के एक सहयोगी मोहम्मद यूसुफ ने याद किया कि 26 अप्रैल को अपनी मौत से एक दिन पहले शुक्रवार की नमाज के बाद, मौलाना माहिर ने अपने खुतबे में कहा था, “हर किसी को नियमित रूप से नमाज अदा करनी चाहिए क्योंकि कल आपको मेरे अंतिम संस्कार के लिए नमाज अदा करनी पड़ सकती है.”

इस बीच, अब्बासी इस घटना को लेकर शर्मिंदा हैं. वे जल्द से जल्द अपना गुड टच, बैड टच अभियान शुरू करना चाहते हैं.

उन्होंने कहा, “यह समुदाय के कल्याण के लिए किया जा रहा काम है.” उनका समूह एक कार में दूसरी मस्जिद की ओर रवाना हो जाता है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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