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Tuesday, 16 April, 2024
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देवबंद मदरसे के अरशद मदनी बोले- मदरसों को सरकारी सहायता या बोर्ड से संबद्धता की जरूरत नहीं

उनके मुताबिक, मदरसों, मुस्लिम संस्थानों पर लगाए जा रहे आरोप नए नहीं हैं और सांप्रदायिक दिमाग की उपज हैं. फिलहाल तो उत्तर प्रदेश सरकार गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की पहचान के लिए सर्वे करवा रही है.

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नई दिल्ली: देवबंद में दारुल उलूम के सदर अल-मुदरिसिन (शैक्षणिक मामलों के प्रमुख) मौलाना सैयद अरशद मदनी ने रविवार को कहा कि मुसलमानों को न तो अपने शैक्षणिक संस्थानों के लिए सरकारी सहायता की जरूरत है और न ही मदरसों को किसी सरकारी बोर्ड से संबद्धता की.

मदनी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद में ‘कुल हिंद राब्ता-ए-मदारिस-ए-इस्लामिया’ (अखिल भारतीय इस्लामिक मदरसा) के एक राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद बोल रहे थे.

कुल हिंद राब्ता-ए-मदारिस-ए-इस्लामिया देश का सबसे बड़ा मदरसा मैनेजमेंट है और दारुल से संबद्ध है. यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्लामी मदरसा है और इसके सबसे प्रतिष्ठित इस्लामी संस्थानों में से एक है.

सम्मेलन में जिन मुद्दों पर चर्चा हुई उनमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जा रहा मदरसों का सर्वेक्षण भी शामिल था.

मदनी भारत के सबसे बड़े सामाजिक-धार्मिक इस्लामी संगठनों में से एक जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष भी हैं. उनके करीबी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने बैठक की अध्यक्षता की और इसमें 6000 से ज्यादा मदरसों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था.

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मदानी ने सोमवार को ट्वीट किया, ‘हमें अपने मदरसों और मस्जिदों के लिए किसी सरकारी सहायता की जरूरत नहीं है. और न ही मदरसों को किसी भी सरकारी बोर्ड से संबद्ध होने की आवश्यकता है. हमें संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत धार्मिक शिक्षा के लिए स्वतंत्र रूप से अपना मदरसा स्थापित करने का अधिकार दिया गया है.’

दिप्रिंट से बात करते हुए, मदनी ने कहा कि मदरसों या मुस्लिम संस्थानों पर आरोप लगाना ‘कोई नई बात नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘यह सांप्रदायिक दिमाग की उपज है. लेकिन मदरसे 800 साल से अपना काम कर रहे हैं और वे आतंकवाद के स्कूल नहीं बल्कि धर्मों के बीच भाईचारा सिखाने वाली संस्थाएं हैं. इस तरह के बयान अज्ञानता की उपज हैं. कोई भी आकर देख सकता है कि हम क्या करते हैं.’

मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश सरकार में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की पहचान करने और उन्हें चलाने वाले संगठनों, पाठ्यक्रम और आय के स्रोत जैसे विवरण इकट्ठा करने के लिए मदरसों का सर्वेक्षण कर रही है.

राज्य सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य राज्य में चल रहे गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या पर डेटा प्राप्त करना है. लेकिन इस फैसले पर पहले ही एक राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसे विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर ‘मुसलमानों को परेशान करने’ का आरोप लगाया है.

हालांकि सर्वे के अंतिम परिणाम अभी भी आए नहीं हैं, लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट बताती हैं कि दारुल उलूम देवबंद उन मदरसों में से है जिन्हें सर्वेक्षण में मान्यता नहीं मिली है.


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‘मदरसों को मामलों को व्यवस्थित रखने की जरूरत’

मदनी ने दारुल उलूम को मान्यता नहीं दिए जाने की खबरों को ‘प्रचार’ करार देते हुए खारिज कर दिया.

मदनी ने कहा, ‘यह 150 सालों से है. हम इतने बड़े संस्थान चलाते हैं. इसके (दारुल उलूम) पूर्व छात्र अमेरिका, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में रह रहे हैं. यह एक ऐसी संस्था है जिसकी वैश्विक प्रतिष्ठा है, न कि किसी जंगल में रात-रात भर चलने वाला ऑपरेशन. हमारे पास सोसायटी अधिनियम (सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860) और जमीन के अन्य प्रासंगिक कानूनों के तहत सभी जरूरी पंजीकरण हैं.’ रविवार की हुई बैठक ‘नियमित’ तौर पर होने वाली बैठक थी,जो हर तीन साल में होती है.

उन्होंने कहा, ‘हम देश भर से मदरसों को बुलाते हैं. इस बार, महामारी के कारण, यह तीन साल बाद हुई है. उत्तर प्रदेश में सर्वे को लेकर मदरसे चिंतित थे. हमने उनसे कहा कि इस तरह का मामला कुछ अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी सामने आ सकता है. इसलिए, यह बेहद जरूरी है कि वे अपने भूमि से लेकर, अनुमतियों और पंजीकरण तक सभी कागजातों को पूरी रखें. लेकिन (हमने) उन्हें भी कहा कि इसे समुदाय को परेशान करने के प्रयास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.’

दिप्रिंट ने बैठक में मौजूद कुछ मदरसा प्रतिनिधियों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक मदरसे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमने मौलाना अरशद मदनी को अपनी ओर से सभी बयान देने के लिए अधिकृत किया हुआ है.’

16 हजार से ज्यादा मान्यता प्राप्त मदरसे

प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश में लगभग 7,189 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे और 16,513 मान्यता प्राप्त मदरसे मिले हैं. इनमें से 560 को राज्य सरकार से अनुदान मिलता है.

रविवार को जारी एक बयान में मदनी ने कहा कि संगठन आधुनिक शिक्षा के खिलाफ नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘हम यह भी चाहते हैं कि हमारे देश के बच्चे इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील और डॉक्टर बनें. उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने की तैयारी करनी चाहिए और सफलता प्राप्त करनी चाहिए, लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि हमारा बच्चा पहले धर्म और उसकी मान्यताओं को सीखे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘क्योंकि जिस तरह से देश को हर जगह पर डॉक्टरों, वकीलों, बैरिस्टर और इंजीनियरों की जरूरत होती है, उसी तरह से एक बेहतर मुफ्ती (मौलवी) और एक बेहतर धार्मिक विद्वान की भी जरूरत होती है. और ऐसा सिर्फ मदरसों के जरिए संभव है.’

वह बताते हैं, ‘न सिर्फ हमें, बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी धार्मिक लोगों की जरूरत होती है. इसलिए हम मदरसों की व्यवस्था के पक्ष में हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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