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Sunday, 22 December, 2024
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हिमाचल के ट्रक कार्टल अर्थव्यवस्था को पहुंचा रहे नुकसान, अडाणी से क्रेमिका तक हर कोई छुड़ा रहा पीछा

पिछले तीन सालों में राज्य में 43 इंडस्ट्रियल यूनिट्स बंद हुई हैं. सबसे ज्यादा इंडस्ट्री सिरमौर के काला अंब, जहां लगभग 35 इकाईयां बंद हुईं.

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हिमाचल प्रदेश में बिज़नेस करना कभी आसान नहीं रहा है और इस बात को क्रेमिका की रजनी बेक्टर बखूबी जानती हैं. करीब एक दशक तक उनका बिस्कुट का व्यापार प्रदेश में उतार-चढ़ाव भरा रहा है और राज्य के दुर्जेय ट्रक यूनियनों कारण आखिरकार उन्हें हार माननी पड़ी और कंपनी बंद कर पंजाब जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके पीछे ट्रक यूनियन द्वारा लिया जाने वाला ज्यादा माल भाड़ा और उनकी मोनोपली है.

क्रेमिका में काम करने वाले एक सीनियर एग्जिक्यूटिव डॉयरेक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘हिमाचल में माल भाड़ा पड़ोसी राज्यों की तुलना में काफी ज्यादा है और यहां के ट्रक यूनियन दूसरे राज्यों की गाड़ियों को माल भरने नहीं देते.’ दो साल पहले जब कोविड महामारी अपने चरम पर थी तब कंपनी ने हिमाचल के टाहलीवाल से पंजाब के राजपुरा का रुख कर लिया.

क्रेमिका अकेली कंपनी नहीं है जिसने हिमाचल में ट्रक यूनियन की समस्या को झेला है. पिछले तीन सालों में राज्य में 43 इंडस्ट्रियल यूनिट्स बंद हुई हैं. सबसे ज्यादा इंडस्ट्री सिरमौर के काला अम्ब (35) में बंद हुई है. वहीं दो कंपनी ऊना में, दो-दो बद्दी और सोलन में, इसके अलावा शिमला और कांगड़ा में एक-एक कंपनी ने अपना ऑपरेशन बंद किया है. 2015-2018 के बीच करीब 118 कंपनियां बंद हुई हैं.

इंडस्ट्री एसोसिएशन के सदस्यों का कहना है कि ये आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है. ट्रक यूनियन हिमाचल प्रदेश की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सबसे बड़ी बाधा है. वे बेधड़क काम करते हैं, कार्टेल की तरह अपना कारोबार चलाते हैं, भारी माल भाड़ा वसूलते हैं और अपने मोनोपली से उद्योगपतियों को डराते हैं. राजनीतिक तौर पर ये (ट्रक कार्टेल) शक्तिशाली हैं.

अधिक माल भाड़े के कारण हिमाचल से कारोबारी अपने प्लांट्स को बंद कर रहे हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

सुखजीत एग्रो इंडस्ट्रीज़ के सीईओ भवदीप सरदाना ने कहा, ‘कभी-कभी ट्रक भाड़ा इतना ज्यादा होता है कि उससे कम में सामान मुंबई से दुबई तक चला जाए.’ सरदाना के देश में चार यूनिट है जिसमें से एक हिमाचल के ऊना जिले में स्थित है.

हिमाचल के उद्योगों के सामने सिर्फ एक संकट नहीं है. ट्रक कार्टेल और धमकाने वाली कार्य संस्कृति के अलावा, व्यवसायियों का कहना है कि राज्य सरकार केंद्र द्वारा पहले से ही अनिवार्य वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अलावा अतिरिक्त माल कर (एजीटी) भी लेती है. यूनियनों के पास कंटेनरों की भी कमी है, जिससे ट्रांसपोर्टेशन में अक्सर देरी होती है.

बढ़ते रोष के बीच ट्रक यूनियन अपने तरीके में बदलाव करने के मूड में नहीं दिखाई दे रही है.

नालागढ़ ट्रक यूनियन के जनरल सेक्रेटरी जगदीश चंद्र ने गर्व के साथ कहा, ‘हमारा एशिया में सबसे बड़ा ट्रक यूनियन है. इंडस्ट्री के साथ बैठकर हम माल भाड़ा तय करते हैं.’


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ट्रक यूनियनों की कार्टेल व्यवस्था

पिछले साल दिसंबर में जब हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसके तीन दिन बाद ही यानी 14 दिसंबर को अडाणी ग्रुप ने दाड़लाघाट और बिलासपुर स्थित अपने दो सीमेंट प्लांट्स बंद कर दिए. कारण दिया गया- ज्यादा माल भाड़े के कारण काम नहीं किया जा सकता है. हिमाचल की इंडस्ट्री भी इस मांग के साथ खड़ी दिखाई दी. इस फैसले ने एक बार फिर से राज्य में ट्रक यूनियन और इंडस्ट्री को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है.

नालागढ़ ट्रक यूनियन 10,000 ट्रकर्स के साथ एशिया का सबसे बड़ा ट्रक यूनियन है | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

हिमाचल कॉन्फेड्रेशन ऑफ इंडियन (सीआईई) इंडस्ट्री के चेयरमैन सुबोध गुप्ता ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को पत्र लिखकर कहा, ‘ट्रांसपोर्ट यूनियन ने कार्टल बना रखा है और ये बहुत अधिक माल भाड़ा वसूलते हैं. उन्होंने कहा, ‘सीमेंट और दूसरे उद्योगों को राज्य में काम करना मुश्किल हो गया है. सीआईआई ने सीएम को लिखे खत में ट्रक यूनियन पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की है’.

हिमाचल प्रदेश काफी हद तक ट्रक के बिज़नेस पर आश्रित है क्योंकि यहां रेलवे की सुविधा अन्य राज्यों जैसी नहीं है और यहां के संकरे और घुमावदार रास्तों के जरिए सिर्फ ट्रक के जरिए ही माल ढुलाई संभव हो पाती है. ट्रक यूनियन इस पहाड़ी राज्य के सामने एक भयावह सच्चाई है और यहां की कोई भी इंडस्ट्री उनके बिना काम नहीं कर सकती.

काला अम्ब इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रमोद शर्मा ने कहा, ‘जब यहां कोई निवेशक आता है तो उसे ट्रक यूनियनों की मोनोपली के बारे में मालूम नहीं होता. जब वे यहां पर इंफ्रास्ट्रक्चर बना लेते हैं तब उन्हें इस बारे में पता चलता है.’

जगदीश चंद्र ने कहा, ‘हम बाहर से किसी भी गाड़ी को माल भरने की इज़ाज़त नहीं देते. कोई ऐसा करेगा तो हम उसकी गाड़ी में आग लगा देंगे. सिर्फ स्थानीय लोगों को यहां फायदा मिलना चाहिए.’

ट्रक यूनियन की जकड़न से सिर्फ फैक्ट्रियां और प्रोडक्शन यूनिट्स ही ग्रसित नहीं हैं बल्कि राज्य में सेब उगाने वाले किसान भी बुरी तरह से प्रभावित हैं. हिमाचल के फल, सब्ज़ी और फूल ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा कि देश के दूसरे हिस्सों में सेब की ढुलाई वजन के हिसाब से होती है.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन यहां पर बॉक्स के हिसाब से ढुलाई की जाती है. हिमाचल प्रदेश के ट्रक यूनियन वाले हर बॉक्स पर करीब 30-40 रुपए (सामान्य माल भाड़े के मुकाबले) ज्यादा लेते हैं, जिससे किसानों को सीधा नुकसान होता है.’

अगर कोई ट्रांसपोर्टर बाहर से आता भी है तो उसे इंतज़ार करना पड़ता है क्योंकि यूनियन के लोग पहले अपनी गाड़ियों को प्राथमिकता देते हैं. चौहान ने कहा, ‘हमारी सरकार से एक ही मांग है कि ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा वज़न के हिसाब से की जाए और माल भाड़ा तय किया जाए.’

हालांकि, ट्रक यूनियन के क्षेत्र में सरकार ज्यादा हस्तक्षेप करने के मूड में नज़र नहीं आ रही है.


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राज्य में कैसे मजबूत हुई ट्रक यूनियन

हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र बद्दी है, जहां से गुज़रते हुए सड़क के दोनों किनारों पर कई मीलों तक ट्रक खड़े नज़र आ जाते हैं. हालांकि, 2007-08 में ही बद्दी तक रेलवे लाइन बिछाने के लिए रेल प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई थी लेकिन यह आज भी अधर में लटकी है.

रेल नेटवर्क न होने के कारण इस औद्योगिक शहर का सारा बिज़नेस ट्रकों पर निर्भर है. सिर्फ बद्दी में ही करीब 30-40 हज़ार परिवार सीधे तौर पर ट्रक के बिज़नेस से जुड़े हुए हैं.

सोलन के दाड़लाघाट के रौड़ी गांव में अंबुजा सीमेंट प्लांट। 14 दिसंबर को अडाणी ने इस प्लांट बंद कर दिया | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन (बीबीएनआईए) के अध्यक्ष राजेंद्र गुलेरिया ने कहा, ‘ट्रक यूनियनों के डर के कारण न कोई ट्रक और न ही कोई ट्रांसपोर्टर बाहर से यहां आने को तैयार है. जो ट्रक बाहर से आते हैं, उन्हें खाली लौटना पड़ता है.’ बता दें कि बीबीएनआईए के अंतर्गत 2200 इंडस्ट्रीज़ आती हैं और ये सभी ट्रकों के माध्यम से हर साल एक लाख करोड़ रुपए का सामान डिसपैच करते हैं. यहां तक कि बद्दी राज्य के औद्योगिक राजस्व में अकेला 65 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है.

बीबीएनआईए ने 2020 में हिमाचल हाई कोर्ट का रुख किया क्योंकि बद्दी-नालागढ़ ट्रक ऑपरेटर्स ट्रांसपोर्ट सोसाइटी और एसोसिएशन के बीच हुए एग्रीमेंट से ट्रक ऑपरेटर्स मुकर गए. माल भाड़े में कमी को लेकर दोनों में सहमति बनी थी. यहां तक कि दोनों के बीच यह भी बात हुई थी कि इंडस्ट्रीज़ 30 प्रतिशत तक अपने ट्रकों का इस्तेमाल कर सकती है.

लेकिन, अगस्त 2020 में यूनियन ने खुद ही इस डील को तोड़ दिया, जिसके बाद बीबीएनआई ने हाई कोर्ट का रुख किया. अपने आदेश में डिवीजन बेंच ने कहा कि उद्योगपतियों को धमकी देना और ‘गुंडा टैक्स’ वसूलना बंद नहीं हुआ है. अदालत ने अधिकारियों को जवाबदेह ठहराते हुए कहा कि वे न तो आदेश को लागू करने की मंशा रखते हैं और साथ ही कानून व्यवस्था संभालने में भी नाकाम है, खासकर बद्दी, बरोटीवाला और नालागढ़ इलाके में.

जुलाई 2021 में स्थानीय ट्रक चालकों और बाथू बाथरी इंडस्ट्रियल इलाके की प्लास्टिक गुड्स कंपनी के बीच विवाद हुआ. प्लास्टिक यूनिट ने अपने ट्रकों का इस्तेमाल शुरू कर दिया था जिसका विरोध यूनियन के लोगों ने किया. विरोध में ट्रक चालकों ने बाथू बाथरी इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित फैक्ट्री के गेट के बाहर जमकर प्रदर्शन किया था.

मामला बढ़ता देख मौके पर पुलिस बुलाई गई और स्थानीय प्रशासन के हस्तक्षेप, यूनियन नेताओं और इंडस्ट्री के लोगों की सहमति से एक ‘समझौता’ हुआ. समझौते के तहत प्लास्टिक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट ने अपने ट्रकों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया और पहले की तरह यूनियन के ट्रकों का उपयोग शुरू किया.


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ट्रक यूनियनों का दबदबा

फिलहाल, हिमाचल प्रदेश में तकरीबन 25 ट्रक यूनियन सक्रिय हैं जिनके भाजपा, कांग्रेस से लेकर लेफ्ट सभी पार्टियों से कनेक्शन हैं. ट्रक यूनियन राज्य के सभी प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में है, खासकर बद्दी, परवाणू, नालागढ़, ऊना, दाड़लाघाट, बिलासपुर और पांवटा साहिब में इनका काफी दबदबा है.

राज्य परिवहन विभाग के अनुसार हिमाचल में 1.92 लाख गुड्स एंड कैरेज़ गाड़िया हैं, लेकिन यूनियन से मिले आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में करीब 50 हज़ार ट्रक चलते हैं.

ट्रक यूनियनों के बीच झड़प राज्य में कोई नहीं बात नहीं है, वो भी तब जब एक लाख से ज्यादा परिवार सीधे तौर पर इनसे जुड़े हैं.

शिमला में परिवहन निदेशालय का ऑफिस | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

जगदीश चंद्र ने कहा, ‘हम इतने ताकतवर हैं कि कोई हमसे नहीं टकराता. सभी पार्टियां हमारे साथ हैं.’

यहां तक कि ट्रक यूनियन के पूर्व नेताओं का भी काफी दबदबा है. सोलन जिले के दाड़लाघाट में बालक राम शर्मा ऐसे ही एक पूर्व यूनियन नेता हैं जो कि अर्की क्षेत्र से बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. दाड़लाघाट के अंबुजा चौक से कुछ ही दूरी पर उनका बहुमंजिला घर स्थानीय लैंडमार्क की तरह है.

2013 में शर्मा ने फूड एंड सप्लाईज़ कार्पोरेशन के अकांउटेंट को उन्हें बिल जमा करने के लिए कहने से नाराज़ हो कर थप्पड़ जड़ दिया था. शिकायत दर्ज होने के बाद शर्मा को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया था.

दाड़लाघाट के रौड़ी गांव के एक व्यक्ति ने बताया, ‘यूनियन के नेताओं के पास आलीशान घर और कारें हैं. उनके बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं और राज्य में उनकी कई जगहों पर संपत्ति है.’

इस साल गणतंत्र दिवस पर शक्ति प्रदर्शन करते हुए दाड़लाघाट के अंबुजा चौक पर बालक राम शर्मा ने यूनियन के अन्य नेताओं के साथ राष्ट्रीय ध्वज फहराया.

दाड़लाघाट में आठ ट्रक यूनियन काम करते हैं जिनमें से चार को भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद जिला प्रशासन ने प्रतिबंधित कर दिया था. बाघल लैंड लूजर्स सोसाइटी (बीएलएल) को 2017, गोल्डन लैंड लूजर्स (जीएलएल) को 2016, अंबुजा दालड़लाघाट काशलोग मांगू (एडीकेएम) को 2019 में प्रतिबंधित किया गया था और माइनिंग सोसाइटी को तो उसके गठन के साल ही सस्पेंड कर दिया गया.

वर्तमान में प्रतिबंधित एडीकेएम के पूर्व प्रधान रह चुके वेद प्रकाश शुक्ला ने बताया, ‘ज्यादातर यूनियन भ्रष्ट है.’ उन्होंने बालक राम शर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कहा कि उन्होंने शर्मा के खिलाफ हिमाचल हाई कोर्ट में केस किया हुआ है जिसकी अगली सुनवाई मार्च में होने वाली है.

राज्य के ज्यादातर हिस्सों में ट्रक यूनियन बेधड़क काम करते हैं जबकि इंडस्ट्रीज़ और बिज़नेस मालिकों को ‘गुंडा राज’ की शिकायत रहती है. बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ (बीबीएन) इंडस्ट्रियल एरिया में ट्रकों को गांजे (मारिजुआना) के साथ भी पकड़ा गया है.

पिछले साल इंडस्ट्रियल एसोसिएशन ने आरोप लगाया था कि ट्रक यूनियन अवैध चैकपोस्ट बनाकर उद्योगपतियों की गाड़ियों को रोकते हैं, जिसके बाद राज्य की पुलिस ने आठ मामले दर्ज किए जिनमें दो फिरौती से जुड़े थे.

हिमाचल चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष सतीश गोयल ने कहा, ‘2004 में ट्रक यूनियन के लोगों ने हमारे एसोसिएशन के सेक्रेटरी को पीटा था.’ गोयल ने भी उस दौरान हाई कोर्ट का रुख किया था, लेकिन अंत में यूनियन और इंडस्ट्री के बीच एक तरह का ‘शांति समझौता’ हो गया और ‘बीच का रास्ता’ निकाल लिया गया.

गोयल ने कहा, ‘तब से इस क्षेत्र में ठीक तरह से काम हो रहा है.’ हालांकि, इसे एक ‘अशांत शांति’ ही कहा जा सकता है.


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उद्योगों के सामने क्या है चुनौती

बीते कई सालों से राज्य की सभी इंडस्ट्रियल एसोसिएशन सरकारों से ये मांग करती रही है कि ट्रक यूनियनों के दबदबे को खत्म किया जाए, लेकिन उनकी शिकायतों पर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी.

बीती एक फरवरी को मुख्यमंत्री सुक्खू ने यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की, जिसमें उन्होंने घोषणा की कि सरकार ट्रक चालकों के साथ ज्यादती को बर्दाश्त नहीं करेगी.

लेकिन सरकार की तरफ से मिल रही इस सुरक्षा की एक कीमत चुकानी पड़ रही है. वह है हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था का चरमराना जो कि राज्य नहीं झेल सकता.

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी के हालिया आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश चौथा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा यानी की 9.2 प्रतिशत बेरोज़गारी दर है.

राज्य में नए उद्योग लग सके इसके लिए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने निवेशकों के साथ देश और विदेश दोनों में कई बैठकें की थीं. भाजपा सरकार के दौरान 1.25 लाख करोड़ रुपए के एमओयू भी साइन हुए, लेकिन मात्र 13 हज़ार करोड़ रुपये यानी की सिर्फ 10 प्रतिशत निवेश ही राज्य में आ पाया, वो भी ज्यादातर पुराने उद्योगों ने ही निवेश कर कंपनी का विस्तार किया.

दूसरी तरफ ट्रक यूनियन तेल के बढ़ते दाम, टैक्स और हिमाचल प्रदेश के भूगोल का हवाला देकर माल भाड़े को सही ठहरा रहे हैं,लेकिन उद्योग संगठनों का कहना है कि वे इतने महंगे दाम नहीं झेल सकते हैं. साथ ही जीएसटी रिफंड मिलने में देरी के कारण कंपनियों का ऑपरेशनल कॉस्ट बढ़ रही है. ऊना इंडस्ट्री एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी सीएस कपूर ने कहा, ‘यहां हमें एडिशनल गुड्स टैक्स (एजीटी) भी देना पड़ता है.’

यूनियन के माल भाड़े को लेकर राज्य में पहली बार हंगामा नहीं हो रहा है. 2005 में माल भाड़ा तय करने के लिए पर्मानेंट स्टैंडिंग कमिटी का गठन किया गया था.

अडाणी ग्रुप द्वारा दो सीमेंट प्लांट्स को बंद करने के फैसले ने सरकार को सक्रिय कर दिया है. अडाणी ने पिछले साल सितंबर में ही सीमेंट प्लांट्स को खरीदा था. प्लांट्स के बंद होने के हफ्ते भर के बाद ही सरकार ने एक सब-कमिटी बनाई जिसके जिम्मेदारी इस मामले को देखने की है, जिसके बाद हिमाचल कंसलटेंसी ऑर्गेनाइजेशन (हिमकॉन) जो कि राज्य की एजेंसी है, उसे हाई कोर्ट द्वारा प्रस्तावित फॉर्मूला के आधार पर माल भाड़ा तय करने की जिम्मेदारी दी गई. हिमकॉन ने अपनी सिफारिशें सरकार को भेज दी हैं लेकिन सरकार ने अभी तक रेट नोटिफाई नहीं किए हैं.

दाड़लाघाट में अंबुजा सीमेंट प्लांट | फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

सब-कमिटी के सदस्य और हिमाचल प्रदेश परिवहन के निदेशक अनुपम कश्यप ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि यह मामला जल्द से जल्द सुलझ जाए लेकिन हम इसे सिर्फ एक कमरे में बैठकर नहीं सुलझा सकते.’

कश्यप ने माना कि ऐसे समझौते पर पहुंचना जिसे हर कोई माने, यह बेहद मुश्किल काम है. उन्होंने कहा, ‘यह हमारे लिए भी एक बड़ी चुनौती है.’

हिमाचल का पड़ोसी राज्य पंजाब भी लंबे समय तक ट्रक यूनियनों के कार्टल की मार झेलता रहा है. 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य में ट्रक यूनियन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) ने चुनाव में घोषणा की कि सरकार बनने के बाद वो राज्य में यूनियन को फिर से बहाल करेगी. हालांकि, अभी तक भगवंत मान सरकार ने ऐसा नहीं किया है. हाल ही में पंजाब ट्रक ऑपरेटर्स ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की थी जिसके बाद जनवरी के पहले हफ्ते में राज्य सरकार को मामले की जांच के लिए एक कमिटी बनानी पड़ी.

हिमाचल के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान भी मानते हैं कि राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है. इसे दुरुस्त करने के लिए उनपर काफी दबाव भी है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘ट्रक ऑपरेटर्स एक बड़ी समस्या ज़रूर है लेकिन हमें ट्रक यूनियन और इंडस्ट्री दोनों को साथ लेकर चलना है.’

चौहान ने दावा किया कि ट्रक यूनियन और इंडस्ट्री के बीच तनाव को खत्म करने के लिए प्रयास जारी हैं. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री खुद इस मामले को देख रहे हैं, लेकिन सरकार केवल मध्यस्थ की ही भूमिका निभा सकती है.’ साथ ही उन्होंने कहा कि वे इंडस्ट्रीज़ की जीएसटी से संबंधित समस्या को सुलझाने का वादा करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘जिन्होंने उद्योग लगाने के लिए अपनी ज़मीनें दी हैं, उनके हित भी शामिल हैं. हम हिमाचल की जनता के प्रति जवाबदेह हैं.’

उद्योगों और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सरकार लैंड बैंक को बढ़ाने की दिशा में भी कोशिश कर रही है. हिमाचल प्रदेश भूमि सुधार कानून 1972 का सेक्शन 118, जो बाहरी लोगों को ज़मीन खरीदने से रोकता है- वो भी निवेश आने की राह में एक बड़ी बाधा है. लेकिन चौहान कहते हैं कि वे पूरी प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं.

ये सभी प्रयास धरे के धरे रह जाएंगे अगर यूनियनों की मजबूत पकड़ ढीली नहीं हुई. वहीं सरकार खुद इस मामले में पूरी तरह पड़ना नहीं चाहती क्योंकि इससे उसका वोट बैंक जुड़ा हुआ है, लेकिन ऐसा न करने से राज्य से निवेशक छिटकते चले जाएंगे.


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दबाव में क्यों है हिमाचल सरकार

कई दौर की बातचीत के बाद भी ज़मीनी स्तर पर कोई बदलाव होता दिखाई नहीं दे रहा है. दाड़लाघाट, जहां अडाणी की एक सीमेंट फैक्ट्री है, जो कि बंद पड़ी है- वहां माहौल तनाव भरा है. सड़क किनारे सैकड़ों की संख्या में ट्रक लगे हुए हैं.

10 जनवरी को ट्रांसपोर्टर्स ने कथित तौर पर उद्योगपति और देहरा से निर्दलीय विधायक होशियार सिंह की गाड़ी को रोक लिया. उन पर आरोप है कि उन्होंने यूनियन के विरोध में बयान दिया था. सिंह की ऊना जिले में खुद की इंजीनियरिंग पार्ट्स की यूनिट है. उन्होंने कहा कि अधिक माल भाड़े के कारण उन्हें भी नुकसान झेलना पड़ रहा है और वह भी कंपनी को बंद करने के बारे में सोच रहे हैं.

गगरेट ट्रक यूनियन के अध्यक्ष सतीश गोगी का कहना है कि सिंह को माफी मांगनी चाहिए.  उन्होंने कहा, ‘या तो वह माफी मांग लें वरना हमारे ट्रक ऑपरेटर्स अच्छा व्यवहार नहीं करेंगे और उनका मुंह भी काला कर सकते हैं.’

आज तक किसी भी सरकार ने ट्रक यूनियनों को रोकने की कभी कोशिश नहीं की. होशियार सिंह का कहना है कि इनमें सभी पार्टियों के लोग बैठे हैं.

लेकिन अडाणी सीमेंट विवाद ने राज्य सरकार की परेशानी को बढ़ा दिया है. सुक्खू सरकार में एक उच्च-स्तरीय सूत्र ने बताया कि अडाणी के दो सीमेंट प्लांट्स बंद होने से हिमाचल सरकार को रोज एक करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो रहा है.

बता दें कि अडाणी ग्रुप ने ट्रक ऑपरेटर्स को 6 रुपए प्रति टन प्रति किमी (पीटीपीके) देने की बात की है, जो कि वर्तमान में दाड़लाघाट में 10.58 रुपए पीटीपीके है, लेकिन यूनियन ने इस रेट को मानने से इनकार कर दिया और कहा कि इतने में काम नहीं हो सकता. उनका यह भी कहना है कि उन्होंने 2019 से माल भाड़ा नहीं बढ़ाया है, जबकि इस बीच डीजल के दाम लगातार बढ़े हैं.

अडाणी सीमेंट (एसीसी और अंबुजा) के सीईओ अजय कपूर ने हिमाचल प्रदेश की पर्मानेंट स्टैंडिंग कमिटी को लिखे खत में कहा था, ‘यूनियन न केवल रेट और डिप्लायमेंट तय करते हैं बल्कि यह भी तय करते हैं कि किसा माल जाएगा और यहां तक कि मंज़िल भी यही तय करते हैं.’

इस बीच दाड़लाघाट में चल रहे सारे बिज़नेस ठप पड़ चुके हैं. दुकानें बंद पड़ी हैं और शाम 7 बजे ही बाज़ार से रौनक गायब हो जाती है. दाड़लाघाट में अंबुजा चौक के पास चाय की दुकान चलाने वाली रेणु शर्मा कहती हैं कि जब से सीमेंट प्लांट बंद हुआ है उनकी 80 प्रतिशत तक कमाई कम हो गई है.

उन्होंने कहा, ‘यहां देर रात तक दुकानें खुलती थीं, लेकिन जब से प्लांट बंद हुआ है, यहां से ट्रक गुज़रने लगभग बंद हो गए हैं.’

हज़ारों की तादाद में ट्रक चालकों की कमाई बंद हो गई है. दाड़लाघाट और बिलासपुर के सीमेंट प्लांट्स के बाहर हजारों ट्रक लाइन से खड़े दिख जाते हैं, जिसे 50 दिनों से ज्यादा का समय हो चुका है. गौरतलब है कि कई ट्रक यूनियनों ने 4 फरवरी को चक्का जाम करने का आह्वान किया था, लेकिन तीन फरवरी को मुख्यमंत्री के साथ बैठक के बाद इसे टाल दिया गया.

ट्रक यूनियन माल भाड़े से किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है, लेकिन वे चाहते हैं कि अरबपति (अडाणी) वापस आ जाए.

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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