नई दिल्ली: विशाल एक बाउंसर और सपने देखने वाले इंसान हैं. हिसार का ये 22-वर्षीय युवक, 16 साल की उम्र से गुरुग्राम में काम करते हुए विदेशों में क्राउड मैनेजमेंट (भीड़ का प्रबंधन) करने के सपने देख रहा है. उनके किसी भी दोस्त या बाउंसर जिसे वे जानते हैं, विदेश नहीं गया है. विशाल इसे बदलना चाहते हैं और उन्होंने दुबई और थाईलैंड को अपनी लिस्ट में सबसे ऊपर रखा है. हालांकि, वे मलेशिया के बारे में निश्चित नहीं हैं.
वे कहते हैं, “विदेशों में भी पैसा कमाना बाकी है. यही मुख्य कारण है, लेकिन मैं कुछ नया सीखने के लिए एक नई जगह पर जाना चाहूंगा.” हाई-प्रोफाइल प्रोग्राम्स में बाउंसर होने के अलावा, विशाल कभी-कभी पर्सनल बॉडी गार्ड के रूप में भी काम करते हैं. अच्छे दिनों में वह 10,000-15,000 रुपये के बीच कमा लेते हैं. औसतन, वह हर महीने लगभग 50,000 रुपये कमाते हैं — जिसका एक हिस्सा हिसार में उनके परिवार को जाता है. उनके पास क्लासिक बाउंसर बिल्ड है, यानी लंबी और चौड़ी पर्सनैलिटी.
हाल ही में हरियाणा सरकार ने दुबई में 50 बाउंसरों के लिए पदों का विज्ञापन दिया और विशाल को अचानक अपना सपना पूरा होता हुआ नज़र आया. फिर उन्होंने सरकारी प्रस्ताव को ठीक से अखबार में पढ़ा और उनकी सारी उम्मीदें धराशायी हो गईं. चूंकि, बाउंसरों को अक्सर ठगों के रूप में देखा जाता है, इसलिए सरकार के दो साल के अनुबंध में आवेदकों के लिए शर्तें शामिल हैं: अंग्रेज़ी में निपुणता और टैटू-मुक्त और विशाल इसमें फिट नहीं बैठते.
इज़रायल में मज़दूरों, दुबई में बाउंसरों और ब्रिटेन में नर्सों के लिए नौकरियों की घोषणा करने वाले सरकारी विज्ञापन को राज्य में ठंडी प्रतिक्रिया मिली. हरियाणा कौशल रोज़गार निगम के एक अधिकारी के अनुसार, उन्हें केवल 3,000 आवेदक मिले, जबकि वे 10,000 से अधिक नौकरियों की पेशकश की गई थी. सरकार ने आवेदन की आखिरी तारीख को जनवरी तक के लिए बढ़ा दिया है.
इज़रायल में अधिकांश नौकरियां मज़दूरों के लिए हैं. बाउंसरों की ज़रूरत सख्त हैं, लेकिन मासिक वेतन लगभग 1.5 लाख रुपये है. टैटू-मुक्त और अंग्रेज़ी में निपुणता के अलावा, योग्य उम्मीदवार कम से कम 6 फीट लंबा होना चाहिए, कोई (घाव के) निशान नहीं होने चाहिए और “स्मार्ट” होना चाहिए. सांस्कृतिक और जातीय रूप से नाटकीय रूप से भिन्न देश यूएई में उन्हें “कानूनी दिशानिर्देशों और सार्वजनिक सुरक्षा की अच्छी समझ” भी होनी चाहिए.
गुरुग्राम में डेविल बाउंसर के मालिक सनी का मानना है कि उनके लिए अपने पासपोर्ट का वेरीफिकेशन कराना असंभव है.
हालांकि, उम्मीदें बरकरार रह सकती हैं, लेकिन गुरुग्राम में डेविल बाउंसर और पर्सनल सिक्योरिटी सर्विसेज के मालिक सनी के मुताबिक, मुद्दा यह है कि कई बाउंसरों के खिलाफ कईं एफआईआर दर्ज हैं. उन्होंने कैजुअली बताया, “केस लग जाते हैं. वो क्लाइंट के साथ होते हैं और क्लाइंट उनसे बुरी तरह बात करते हैं. फिर दोनों झगड़ने लगते हैं.” उन्होंने कहा, “उनके लिए अपने पासपोर्ट वेरीफाई कराना असंभव है.”
सनी के मुताबिक, उन्होंने जिनके साथ काम किया है उनमें से करीब 90 फीसदी बाउंसरों का यही हाल है. विचाराधीन क्लाइंट-बार मालिक और इवेंट मैनेजर हैं और झगड़े किसी मामूली बात से शुरू होते हैं, लेकिन बहस और कभी-कभी हिंसा में समाप्त होते हैं.
नेपाल के 36-वर्षीय बाउंसर दीपक बहादुर ने एक बार भारतीय रैपर यो यो हनी सिंह को उठा लिया था, उन्हें सिर से पकड़कर अपनी कार में बिठाया था. फैन्स पागल हो रहे थे और उन्हें इसमें कूदना पड़ा. बहादुर बताते हैं, “कोई मार-पीट नहीं थी, पर कुछ हाथा-पाई तो हुई थी.”
बाउंसर्स का सुर्खियां बनना आम बात है, कभी-कभी क्लबों के बाहर क्लाइंट के बीच झड़प को रोकने के लिए, तो कभी उन्हें भड़काने के लिए. हर कुछ महीनों में बार विवाद का एक वीडियो वायरल हो जाता है, जो इंस्टाग्राम और एक्स पर फैल जाता है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर के ओएसडी जवाहर यादव के अनुसार, कथित असमर्थता के बावजूद, हरियाणा के गांवों में युवा विदेश जाने के लिए कतार में खड़े हैं — इस हद तक कि इससे दलालों का प्रसार हो रहा है. वह कहते हैं, “हम जो कर रहे हैं वह बिचौलिए को खत्म कर रहा है. इससे दलालों का काम समाप्त हो पाएगा. उन्हें विदेश जाने में 4-5 लाख रुपये खर्च नहीं करने पड़ेंगे.”
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फतेहपुर बेरी के बाउंसर
बाउंसर शारीरिक रूप से प्रभावशाली और जाति-गर्व से भरे हुए हैं. विशाल के व्हाट्सएप स्टेटस पर बाइसेप इमोजी के साथ “बाउंसर विशाल जाट” लिखा है, लेकिन अक्सर, उनके साथ उनके व्यक्तित्व के अनुरूप व्यवहार नहीं किया जाता है.
फार्महाउसों के ऊंचे दरवाज़ों, शादी के बैंक्वेट हॉल और कछुए की गति से चलने वाले ट्रैफिक के बीच रिंकू का जिम है. इसे आसानी से इग्नोर किया जा सकता है, लेकिन इसके अंदर फतेहपुर बेरी गांव के लोग ट्रेनिंग करते हैं. उनके बाइसेप्स उनकी बहुत टाइट टी-शर्ट के खिलाफ हैं और उन सभी के हेयरकट एक ही तरह के होते हैं — शार्प अंडरकट्स. वे पंजाबी ईडीएम संगीत की लय में वजन उठाते हैं, बातचीत करने और कम्पेयर करने के लिए रुकते हैं.
उनके शरीर को पहले से ही कुछ हद तक पूर्णता के लिए छोटा कर दिया गया है, भले ही वे जिम में घंटों बिताते हैं और एक छोटे परिवार को बनाए रखने के लिए पर्याप्त अंडे खाते हैं. आखिरकार, उत्कृष्टता आसानी से नहीं मिलती.
छतरपुर के बाहरी इलाके में लगभग 6,000 की आबादी वाला फतेहपुर बेरी इलाका मुख्यतः गुर्जर समुदाय का है और इसे एक समय बाउंसरों की जन्मस्थली के तौर पर जाना जाता था. यह एक ऐसी इमेज है जिसे वो अब मिटाने की कोशिश कर रहे हैं.
ठगों के रूप में टाइपकास्ट, वे ग्लैमरस जगहों के बाहर पहरेदार हैं — कभी-कभी किसी का ध्यान नहीं जाता, कभी-कभी आक्रामकता की वस्तु. पार्टियां पहले से कहीं अधिक शानदार हो गई हैं और अब झगड़े भी बढ़ गए हैं. अब हरियाणा सरकार के ऑफर से उनके पास विदेश जाने का मौका है. हालांकि, उम्मीदों के साथ जागरूकता की कमी और इस कदम के बारे में शून्य ज्ञान भी शामिल है.
6 फुट 5 इंच लंबी कद-काठी वाले अनु गुर्जर जिनकी दाढ़ी की जॉलाइन एकदम शार्प है, ने कहा, “लोग सोचते थे कि हम गुंडे हैं. हम अच्छे परिवारों से हैं, यह (गुंडागर्दी) कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे हम कभी भी खुले में कर सकते थे. हम लोगों की रक्षा कर रहे थे, लेकिन वो हमें गुंडा बुलाते हैं.”
इन लोगों ने बाउंसर के रूप में शुरुआत की, लेकिन अब उन दरवाज़ों के मालिक हैं जिनके बाहर वे खड़े थे. लाला गुर्जर वर्तमान में पूरे गुरुग्राम में फैले छह क्लबों के मालिक हैं, जिनमें से अधिकांश सहारा मॉल-सैफायर, ब्लू रेट, वैम्पायर और क्वींस में हैं. वह सभी का नाम बताने में संघर्ष कर रहे थे और उनके ‘भाई’ तुरंत आवाज़ तेज़ करते हुए लिस्ट में डब्ल्यूटीसी और कोको भी जोड़ते हैं.
सनी ने कहा, हर कोई जानता है कि इस गंदे उद्योग का हिस्सा बनना बेकार है. इसीलिए मैं इवेंट मैनेजमेंट में आ गया.
उन्होंने कहा, “मैं बस केवल बाउंसर ही क्यों रहता? मैं क्राउड को मैनेज करता था और मालिक मुझे कईं सारी जिम्मेदारियां देते थे.” उन्होंने आगे कहा, “तो मैंने अपना ही कर लिया.”
सनी को फतेहपुर बेरी के इंडस्ट्री छोड़ने की बात अच्छे से पता है. वे अकेले नहीं हैं. सनी ने कहा, “अब हर कोई जानता है कि इस गंदे उद्योग का हिस्सा बनना बेकार है, इसलिए मैं इवेंट मैनेजमेंट में आ गया. यही कारण है कि मैं स्थायी आधार पर नियुक्ति नहीं करता. मैं बोझ नहीं उठाना चाहता.”
फतेहपुर बेरी के लोगों के लिए पैसा कभी कोई मुद्दा नहीं रहा. उस शहर में खेत और कृषि भूमि, जो आलीशान फार्महाउसों का घर है और नई दिल्ली के सबसे प्रमुख ‘उभरते’ सांस्कृतिक केंद्रों में से एक है, जिनकी कीमत कई करोड़ों रुपये है. एक निवासी, जो कभी बॉडीबिल्डर था, का दावा है कि वह 60 करोड़ रुपये की ज़मीन का मालिक है. उन्होंने सोचा था कि बतौर बाउंसर वो जो हासिल करेंगे वो सम्मान है और जिस तरह की पूंजी उनके पास है, उसे प्रतिबिंबित करने वाली एक सामाजिक स्थिति. उनमें से कुछ ने ज़मीन पट्टे पर ली है और बेची है.
वे बताते हैं, “पहले, हम कुश्ती पर निर्भर थे, लेकिन पहलवानों के लिए कुछ ही नौकरियां हैं और हमें अपने शरीर का उपयोग करना था. हमने सोचा कि एकमात्र विकल्प बाउंसर लेकिन बतौर फिजिकल ट्रेनर हमें बहुत (सम्मान और सुरक्षा) मिले हैं.”
गांव के पुरुषों को यकीन है कि यहां के पानी में कुछ तो है, वरना उनके लड़के और आदमी इतने ताकतवर कैसे हो सकते हैं?
कई ताकतवर लोगों में से एक अनु गुर्जर अब विभिन्न क्लबों को मैनेज करने में समय बिताते हैं. बचपन में उनके जीवन का केंद्र उनका पड़ोस का अखाड़ा था, फिर वह जिम में शिफ्ट हो गए. अब, जिम भी उनकी ज़िंदगी के एक कोने में चला गया है क्योंकि उन्हें अपने कई क्लबों को मैनेज करना पड़ता है. वह निवेशकों और सह-मालिकों के साथ बातचीत करते हैं, क्लाइंट्स को संभालते हैं-और अपने द्वारा काम पर रखे गए 15-20 बाउंसरों के लिए जिम्मेदार हैं.
वह पिछले सात साल को एक ऐसे रास्ते पर चलने के रूप में देखते हैं जो पहले विश्वासघाती था, लेकिन जितना अधिक वो चलते गए, यह उतना ही फैलता गया और ज्यादा मौके मिलते गए. वे वर्तमान में नेपाल को आधार बनाकर आयात-निर्यात व्यवसाय शुरू करने पर विचार कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया.
अनु के पास दिल्ली एनसीआर के आसपास के क्लबों, बार और लाउंज में हिस्सेदारी है: अंसल प्लाजा में स्काई, हौज खास विलेज में कुछ संपत्तियां और नोएडा में एक संपत्ति. वह फिलहाल गुरुग्राम में अपनी पैठ बना रहे हैं. उन्होंने प्रिंस पान की फ्रेंचाइज़ी खरीदी है, जो एक “प्रीमियम” पान की दुकान है. उन्होंने बताया, “यह गुरुग्राम की सबसे ऊंची इमारत है, जहां विराट कोहली का घर है.”
जहां तक उन पुरुषों का सवाल है जिन्हें वह अब मौका देते हैं, “वे ज्यादातर फतेहपुर और नोएडा के लड़के हैं – मेरे अपने गुर्जर लोग.” वे कहते हैं, “उन्हें काम की ज़रूरत है और मैं उन्हें इंडस्ट्री के बराबर सैलरी देता हूं. इसलिए, वो मेरे प्रति वफादार हैं. हालांकि, सनी के अनुसार, अब जिस राज्य में सबसे अधिक बाउंसर हैं वह हरियाणा है. वे मुख्य रूप से जाट हैं, जो हिसार, जींद और सोनीपत से आते हैं.
जबकि फतेहपुर बेरी के पूर्व बाउंसर बड़ी और बेहतर चीज़ों की ओर बढ़ गए हैं, इंडस्ट्री अभी भी ग्रो कर रही है. बार, क्लब और हाई-प्रोफाइल्स आयोजनों की संख्या बढ़ गई है और मालिकों की ओर से ‘सुरक्षित और संरक्षित’ वातावरण बनाने का अत्यधिक दबाव है. नई दिल्ली विशेष रूप से महिलाओं के लिए खतरनाक और असुरक्षित होने के लिए कुख्यात है. करोड़ों रुपये निवेश करने वाले रेस्तरां और क्लब मालिक अपने निवेश को जोखिम में नहीं डालना चाहते.
सिक्योरा सिक्योरिटी के मालिक, शाम सिंह का कहना है कि बाउंसरों को प्रोफेशनल होना होगा. उन्हें हाई-प्रोफाइल क्लाइंट्स से बात करना आना चाहिए
सिक्योरा सिक्योरिटी के मालिक और निदेशक शाम सिंह अपने बाउंसरों को हर आठ घंटे की ड्यूटी के लिए 25,000 रुपये से 30,000 रुपये देते हैं. वहां कुछ शर्तें हैं. बाउंसरों की उम्र कम से कम 25 और 35 से अधिक नहीं होनी चाहिए. और हां, उनकी संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, लेकिन साथ ही, वे घमंड नहीं कर सकते. क्रिकेटरों और सुपरमॉडलों की तरह, बाउंसर भी अपने चरम पर होते हैं, जिसके बाद उन्हें चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाता है. उनके करियर खराब होने लगते हैं और नौकरियों की गुणवत्ता कम होने लगती है.
सिंह द्वारका के रामफल चौक में एक तंग दफ्तर में आराम करते हुए कहते हैं, “जब हम नई दिल्ली में कार्यक्रमों के लिए नियुक्तियां करते हैं, तो व्यवहार महत्वपूर्ण है. बाउंसरों को प्रोफेशनल होना होगा, उन्हें हाई प्रोफाइल क्लाइंट्स से बात करना आना चाहिए.”
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हरियाणवी टच
विदेशी रोज़गार के बारे में सरकार के विज्ञापन ने भी चिंता बढ़ा दी है, कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह घरेलू नौकरियों की कमी का संकेत देता है. लेकिन यादव के लिए, ये आलोचक वे हैं जिन्हें वे “सामान्य लोग” कहते हैं. डेवलपमेंट की स्पष्ट कमी का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं, “ये व्यवसाय के मालिक या शोधकर्ता नहीं हैं. वे कोई नौकरियां पैदा नहीं करने जा रहे हैं. भारत में एक निर्माण श्रमिक इज़रायल में भी मज़दूर ही होगा.”
जबकि हरियाणा सरकार के अधिकारी आश्वस्त हैं कि राज्य के युवा किसी भी जरिए विदेश जाने के लिए बेताब हैं, बाउंसर इंडस्ट्री में लोग थोड़ा अलग सोचते हैं – उन्हें लगता है कि यह एक आकांक्षा है जो अव्यवहारिक है
सनी कहते हैं, “अगर आप उनसे पूछें, तो वे हां कहेंगे, लेकिन वो जानते नहीं कि इसमें क्या शामिल है. वे कागज़ पर भी हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं हैं.” वे आगे कहते हैं, “अगर मैं एक मैसेज भेजूं कि विदेश में पांच लड़कों की ज़रूरत है, तो हर कोई हां कहेगा. पर फिर कोई न कोई लोचा हो जाता है.”
सैलरी में भी ज्यादा अंतर नहीं है. धारणा यह है कि विदेश में अधिक पैसा है, लेकिन सनी वर्तमान में थाईलैंड में काम करने वाले कुछ लड़कों को जानते हैं जो लगभग 50,000 रुपये कमा रहे हैं. वे कहते हैं, “इतना तो आप आसानी से यहां भी कमा सकते हैं.” विदेश जाने के साथ रोमांस और बड़े सपनों की भावनाएं जुड़ी हैं, लेकिन असल दुनिया की जानकारी के बिना.
सिंह कहते हैं, “उन्हें (बाउंसरों को) जाने से पहले बहुत काम करना होगा. विशेष रूप से उनके अंग्रेज़ी स्किल्स पर.” इस तथ्य के बावजूद कि सिक्योरा सिक्योरिटी का विदेश में कोई संचालन नहीं है.
हालांकि, नई दिल्ली और हरियाणा के बाउंसरों के बीच प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती है, लेकिन धारणा में अंतर है. राष्ट्रीय राजधानी में काम करने वालों को अधिक शिक्षित और पॉलिश माना जाता है — जबकि हरियाणा के बाउंसरों को उपद्रवी और अधिक अलग-थलग माना जाता है.
सिंह के लिए ‘समस्या’ तब आती है जब “हरियाणा-टाइप”, जैसा कि वह उन्हें कहते हैं, मिश्रण में प्रवेश करते हैं. वह शिकायत करते हैं, “उनमें हरियाणवी टच है.” वे छोटे शहरों और गांवों से आते हैं और परिणामस्वरूप उनके पास भाषा कौशल या सामाजिक कौशल नहीं है जिसकी उनके क्लाइंट्स अपेक्षा करते हैं.
इन बाउंसरों को फिल्म शूटिंग या अन्य स्थानों पर नियोजित किया जाता है जहां प्राथमिकता भीड़ को संभालना है — जहां भाषा कौशल और सामाजिक मार्कर पूर्ण प्रदर्शन पर नहीं होते हैं.
डेविल बाउंसर और पर्सनल सिक्योरिटी सर्विसेज के सनी के पास कॉल पर लगभग 100 बाउंसर हैं. कोई भी स्थायी कर्मचारी नहीं है. उन्हें इस आधार पर काम पर रखा जाता है कि जब ग्राहक का कॉल आता है, तो काम होगा. मजेदार बात यह है कि सुरक्षा प्रदान करने वाली नौकरी में कोई भी नहीं होता है — सिक्योरा और डेविल “विश्वसनीय बाउंसर” वाले व्हाट्सएप ग्रुप का उपयोग करते हैं और जो उपलब्ध होते हैं उन्हें बाद में काम पर भेज दिया जाता है.
सिक्योरा सुरक्षा गार्डों को भी नियुक्त करता है और बाउंसर बनने के साथ मिलने वाली चकाचौंध और लक्ज़री लाइफ तक पहुंच के बावजूद, सिंह को पता है कि युवा लोग सुरक्षा गार्ड बनना पसंद करते हैं. दांव कम हैं और शर्तें कम मांग वाली हैं. इसके लिए कोई लंबाई की ज़रूरत नहीं कोई मुश्किल जिम शेड्यूल नहीं है और कोई निर्दयी आहार का पालन नहीं करना है. स्थायी नौकरियां हैं, भले ही सैलरी उतनी न हो.
लेकिन मूल जिम-ब्रदर्स के लिए, जो एक दशक पहले सुर्खियों में आए थे, यह उनकी पहचान की रूपरेखा को परिभाषित करता है. अनु गुर्जर कहते हैं, “हम कभी भी सिर्फ बाउंसर नहीं थे. हम योद्धा हैं.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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