scorecardresearch
Tuesday, 10 December, 2024
होमफीचरपहलवानों के विरोध का वर्ष कम खेलों और मैडल का वर्ष रहा, इसमें युवा खिलाड़ियों ने खोए कई मौके

पहलवानों के विरोध का वर्ष कम खेलों और मैडल का वर्ष रहा, इसमें युवा खिलाड़ियों ने खोए कई मौके

भारतीय कुश्ती के आंदोलन ने अनजाने में युवा पहलवानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है, और रद्द की गई प्रतियोगिताएं अब उनके खेल करियर और नौकरी की संभावनाओं को खतरे में डाल रही हैं.

Text Size:

सोनीपत/रोहतक: हरियाणा के सोनीपत में युद्धवीर अखाड़े में कुश्ती के छात्र एक दूसरे के साथ दांव-पेंच कर रहे हैं. लेकिन 20 वर्षीय आशु मलिक अपने गालों पर आंसूओं के निशान लिए इससे दूरी बनाए हुए है. एक वर्ष में किसी भी प्रतियोगिता ने उनकी प्रेरणा को कम नहीं किया है, और एक महीने के लंबे ब्रेक के बाद मैट पर उनकी पहली वापसी ने उनके आशा को फिर से जगाने के लिए कुछ नहीं किया है.

बचपन से ट्रेनिंग ले रही आशु ने कहा, “मैंने सच में सोचा था कि इस वर्ष मुझे सफलता मिलेगी, लेकिन कोई काॅम्पटीशन नहीं हुआ. मैंने बहुत प्रेक्टिस किया, लेकिन मुझे लगता है कि यह भी पर्याप्त नहीं था.” सरसों के खेत के बीच में स्थित युद्धवीर कुश्ती अकादमी की हवा में सिर्फ पसीने और खून की गंध है क्योंकि यहां छात्र अपना दिन दंड (बर्पीज़) के साथ समाप्त करते हैं. जैसा कि उनके कोच ने उन्हें सांत्वना दी, आशु कहती है कि इस साल ने उन्हें अपनी क्षमताओं पर संदेह करने पर मजबूर कर दिया है. वह आगे कहती हैं, “मेरा परिवार मुझ पर बहुत पैसा खर्च कर रहा है… लेकिन जारी ट्रेनिंग जारी रखना अब मुझे व्यर्थ लगता है.”

साल 2023 ऐतिहासिक रहा; भारतीय पहलवान यौन उत्पीड़न के खिलाफ सामूहिक विरोध के तौर पर एकजुट हुए, लेकिन उनके खेल को व्यक्तिगत स्तर पर नुकसान झेलना पड़ा. जब कुश्ती की बात आती है तो हरियाणा में अब यह भावना थोड़ी सी कमजोर लगती है.

जब देश के कुछ स्टार पहलवानों ने पहले के अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, तो मलिक जैसे सैकड़ों युवा पहलवानों को उस उथल-पुथल का खामियाजा भुगतना पड़ा, जिसने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को प्रभावित किया. राष्ट्रीय चैंपियनशिप और स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया (एसएआई) के ट्रेनिंग कैम्प्स रद्द होने से वे बीच में ही लटक गए हैं.

रोहतक के सर छोटू राम स्टेडियम में ट्रेनिंग करते दो युवा पहलवान | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

पिछले जनवरी में, पहलवानों ने न्याय के लिए नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान कड़ाके की ठंड का सामना किया. हरियाणा के शीर्ष पदक विजेता बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट, संगीता फोगाट और साक्षी मलिक ने सिंह की गिरफ्तारी की मांग करते हुए धरना दिया था. विरोध प्रदर्शन के दौरान अप्रैल-मई में, उन्हें पुलिस झड़पों का भी सामना करना पड़ा, बदनामी सहनी पड़ी और यहां तक कि उन्होंने कड़ी मेहनत से जीते गए अपने पदकों को गंगा में फेंकने की धमकी भी दी थी. और इस सबके दौरान, जूनियर पहलवान विरोध स्थल पर दिग्गजों के साथ खड़े रहे, यहां तक कि उनके साथ ट्रेनिंग भी की.

लेकिन उन्हें ऐसी एकजुटता की कीमत भी चुकानी पड़ी.

कुश्ती के छात्र, जो आम तौर पर आवासीय सुविधाओं में प्रशिक्षण के लिए उच्च शिक्षा छोड़ देते हैं, इस वर्ष प्रतियोगिताओं की कमी के कारण खुद को वंचित पाया है. ये आयोजन एक खिलाड़ी के रूप में उनकी क्षमता और प्रगति को मापने के लिए महत्वपूर्ण मानदंड के रूप में काम करते हैं. राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं से उन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन हासिल करने, अपने करियर को बनाए रखने के लिए अनुदान अर्जित करने और यहां तक कि प्रतिस्पर्धी नौकरियां सुरक्षित करने में भी मदद करती है.

हरियाणा के एक पहलवान छात्र ने कहा, “इस समय, केवल पैसे वाले लोग ही कुश्ती की कोचिंग जारी रख सकते हैं. मेरे दोस्त बहुत अच्छे हैं इसलिए उन्होंने मेरी मदद की है.”

पिछले साल जनवरी में बृज भूषण के अलग होने के बाद से डब्ल्यूएफआई काफी हद तक निष्क्रिय है. जबकि भारतीय ओलंपिक संघ की एक तदर्थ समिति हर रोज के मामलों का प्रबंधन करती है, और खिलाड़ी पूरी तरह से परिचालन महासंघ की कमी पर निराशा व्यक्त करते हैं.

बृज भूषण के सहयोगी संजय सिंह के नेतृत्व में एक नया कुश्ती महासंघ दिसंबर में चुना गया था, लेकिन इससे एक और विवाद शुरू हो गया. पहलवानों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए, और खेल मंत्रालय ने कई खेल संहिता के उल्लंघन के कारण महासंघ को निलंबित कर दिया, जिससे कुश्ती परिदृश्य सामान्य होने की उम्मीदें धूमिल हो गईं.

अब, कई लोगों ने अपने नायकों की मंशा पर भी सवाल उठाना शुरू कर दिया है, खासकर तब जब रोहतक की रहने वाली एक छोटी पहलवान ने शरण सिंह के खिलाफ अपनी शिकायत वापस ले ली है.

विडंबना यह है कि भारतीय कुश्ती में सुधार के लिए शुरू किए गए एक आंदोलन ने अनजाने में युवा पहलवानों की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है.

डाइट पर असर, नौकरी के अवसर खोना

हरियाणा के रोहतक में मेहर सिंह अखाड़े के 20 वर्षीय पहलवान सुशील खासा की नजर इस साल अंडर-20 राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक पर थी. ट्रॉफी जीतने का मतलब सिर्फ एक पदक से नहीं है, यह हरियाणा सरकार से लगभग 2 लाख रुपये का अनुदान पाने और कठिन प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करने का मौका हैं.

वह कहते हैं, “जब यह घोषणा की गई कि राष्ट्रीय चैंपियनशिप दिसंबर में आयोजित की जाएगी, तो छात्रों में नई ऊर्जा थी, हर कोई कड़ी मेहनत कर रहा था, अपना वजन कम कर रहा था. जब प्रतियोगिता रद्द कर दी गई, तो मैं टूट सा गया और फूट-फूट कर रोने लगा था.”

हरियाणा के अंदर के इलाकों में कुश्ती सिर्फ एक खेल नहीं है. यह एक उज्जवल भविष्य का टिकट है और सामाजिक गतिशीलता और यहां तक कि नौकरियां पाने का एक रास्ता भी है. प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से सरकारी नौकरियों के लिए प्रयास करने वाले लाखों लोगों की तरह, हरियाणा में कई युवा पुरस्कार राशि और प्रतिष्ठित सरकारी पदों की सुरक्षा के लिए कुश्ती मैट पर अपनी उम्मीदें लगाए रखते हैं.

रोहतक के मेहर सिंह अखाड़े में पहलवान | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

कई पहलवानों ने कहा कि इस साल निराशाजनक माहौल के कारण, हरियाणा में कम निजी दंगल (स्थानीय स्तर के टूर्नामेंट) आयोजित किए गए हैं. उनमें से कई लोगों के लिए, सुशील की तरह, निजी दंगलों में मैच जीतना अतिरिक्त आय का एक स्रोत है, जो आमतौर पर उनके प्रोटीन युक्त आहार में जाता है – जिसमें अंडे, बादाम मिल्कशेक और सप्लीमेंट्स शामिल हैं. उन्होंने कहा, “मुझे अपने माता-पिता से पैसे मांगने पड़े. हर बार किसी से मदद मांगना मेरे लिए थोड़ा शर्मनायक हो जाता है.”

रेसलिंग कोच जयवीर ने कहा, “कुछ (युवा पहलवान) कम पौष्टिक आहार लेने लगे हैं और अब वो अपने भोजन से अंडे, बादाम मिल्कशेक या प्रोटीन पाउडर को हटाकर दाल-सब्जी रोटी खाने लगे हैं.”

पिछला साल सुशील के लिए एक कड़वे सच से सामना करने जैसा रहा. अखाड़े में उनके कई साथियों ने, कम्पटीशन की कमी और वित्तीय बाधाओं से निराश होकर, अपने कुश्ती के सपनों को छोड़ दिया और विदेश में काम की तलाश की. अधिकांश के पास उच्च शिक्षा की डिग्री नहीं है, इसलिए उनके विकल्प टैक्सी चलाने या खेतों में काम करने वाली नौकरियों तक ही सीमित हैं.

सुशील ने कहा, “जिनके माता-पिता उनका समर्थन नहीं कर सके, वे चले गए. मैं बचपन से ही उनमें से कुछ के साथ ट्रेनिंग ले रहा था.”

कुश्ती स्कूल के कोच जयवीर ने दावा किया कि आर्थिक तंगी के कारण इस साल 40-50 छात्रों ने कुश्ती छोड़ दी. जो जारी हैं उन्हें कभी-कभी अपने आहार से समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. उन्होंने कहा, उनके आहार का खर्च प्रति माह लगभग 25,000 रुपये है, और प्रतियोगिताओं से पहले यह 50,000 रुपये तक पहुंच जाता है.

कुश्ती धीरे-धीरे एक विशेषाधिकार बनती जा रही है जिसे केवल अमीर लोग ही वहन कर सकते हैं. एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि वह अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने रूममेट्स से मदद लेते है.

उन्होंने कहा, “हर परिवार संपन्न नहीं होता. लेकिन इस समय केवल पैसे वाले लोग ही कुश्ती कोचिंग जारी रख सकते हैं. मेरे दोस्त हेल्पफुल हैं इसलिए उन्होंने मुझे अपनी चीजे दी. हर कोई इतना हेल्पफुल नहीं होता.”


यह भी पढ़ें: अयोध्या सजाया और संवारा जा रहा है, इसका कायाकल्प हो रहा है-लक्जरी होटल, 3D शो और Gen-Z हैं तीर्थयात्री


प्रदर्शन में गिरावट?

भारत का कुश्ती क्षेत्र हर साल विभिन्न वजन और आयु वर्गों में 22 राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के साथ जीवंत हो उठता है. आमतौर पर जून तक समाप्त होने वाली ये चैंपियनशिप भारतीय कुश्ती की धड़कन हैं. महासंघ के एक पूर्व अधिकारी के अनुसार, इन प्रतियोगिताओं का कार्यक्रम डब्ल्यूएफआई की आम बैठक में तय किया जाता है. उन्होंने कहा, जब से डब्ल्यूएफआई को निलंबित किया गया है, इस साल ऐसी कोई बैठक नहीं हुई है.

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए साल भर चलने वाले SAI कैम्प्स में ट्रेनिंग के लिए शीर्ष चार पदक विजेता (1 गोल्ड, 1 सिल्वर और 2 ब्रोंज ). लेकिन इस साल, पहलवानों ने केवल ट्रायल के माध्यम से पद या अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हासिल कीं.

रोहतक के मेहर सिंह अखाड़े में ट्रेनिंग सेंटर में प्रवेश करते पहलवान | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

डब्ल्यूएफआई के पूर्व अधिकारियों के अनुसार, वर्ल्ड चैंपियनशिप (एक ब्रोंज) में पदक तालिकाएं और अंतिम पंघाल द्वारा पेरिस ओलंपिक योग्यता अप्रभावित अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन का संकेत दे सकती हैं, लेकिन करीब से देखने पर दरारें दिखाई देती हैं.

डब्ल्यूएफआई के एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “एशियाई खेलों में हम लगातार स्वर्ण पदक जीत रहे हैं. लेकिन प्रतियोगिताओं और प्रशिक्षण की कमी के कारण प्रदर्शन निराशाजनक रहा.” 2018 एशियाई खेलों में, भारतीय पहलवानों ने दो स्वर्ण पदक और एक रजत पदक जीता. 2022 में भारत दो कांस्य पदक और एक स्वर्ण पदक लेकर आया था.

इस वर्ष केवल एक राष्ट्रीय चैम्पियनशिप आयोजित की गई थी, जो अप्रैल में अंडर -17 – जब डब्ल्यूएफआई ने मैरी कॉम के नेतृत्व वाली एक समिति की जांच के बाद कुछ समय के लिए कामकाज फिर से शुरू किया था. हालांकि, 23 अप्रैल से, बजरंग पुनिया, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट सहित पहलवानों ने दिल्ली में विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू कर दिया, जिसके बाद बाकी प्रतियोगिताएं रद्द कर दी गईं.

एक पहलवान के परिवार के सदस्य दयानंद ने कहा, “कुश्ती अंदर केवल महाबलियों के बीच की राजनीति चल रही है. लेकिन किसी ने यह नहीं सोचना कि उनके बीच के झगड़े का असर युवा छात्रों के करियर पर क्या पड़ेगा.”

कुश्ती महासंघ की देखरेख करने वाली तदर्थ समिति के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह बाजवा ने दिप्रिंट को बताया कि आईओए राष्ट्रीय चैंपियनशिप की तारीखों की घोषणा “जल्द ही” करेगा, लेकिन उन्होंने अधिक विवरण नहीं दिया. उन्होंने पूरे वर्ष प्रतियोगिताओं की मेजबानी करने में समिति की विफलता पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, “सभी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी और जब समिति की बैठक होगी और तारीखों की घोषणा की जाएगी तो हम आपको विवरण देंगे.”

बाजवा ने यह नहीं बताया कि खेल में रुकावट के लिए खिलाड़ियों को मुआवजा कैसे दिया जाएगा. रोहतक के मेहर सिंह अखाड़े के कोच सनी जैसे पहलवान अब पहलवानों को सरकारी छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने में मदद करने के लिए अस्थायी प्रमाणपत्र की मांग कर रहे हैं. उसने पूछा, “हर साल इस अखाड़े से 15-20 लोगों को सरकारी नौकरी मिलती है. अगले साल क्या होगा? क्या किसी ने इसके बारे में सोचा है?”

2023 के लिए प्रमाणपत्र प्रदान किए जाने के मुद्दे पर, बाजवा ने कहा कि वह “मदद के लिए सब कुछ करेंगे” लेकिन कोई विवरण नहीं दिया.


यह भी पढ़ें: बड़ा साम्राज्य, अनियंत्रित बिक्री— कांग्रेस MP धीरज साहू के विशाल शराब कारोबार के पीछे की कहानी क्या है


बीच में फंस गए हैं

कुश्ती महासंघ के मामलों को जिस अव्यवस्थित तरीके से संचालित किया गया, उससे युवा खिलाड़ियों के लिए बुरे परिणाम सामने आए. बाद में प्रतियोगिताओं को रद्द करने के लिए उन्होंने वजन कम करने के लिए खुद को भूखा रखा. उन्होंने खोए हुए अवसरों पर विचार करते हुए रातों की नींद को दी और अखाड़ों में ‘समय बर्बाद करने’ के बारे में रिश्तेदारों के ताने सहे. उनका खेल दो पाटों के बीच बंटा हुआ था और उनके नायक कैमरे पर असहाय होकर रो रहे थे.

Wrestlers Vinesh Phogat, Sakshi Malik addressing media at Jantar Mantar Saturday | Praveen Jain | ThePrint
मई में जंतर मंतर पर मीडिया को संबोधित करते पहलवान विनेश फोगाट (बाएं) और साक्षी मलिक की फाइल फोटो | प्रवीण जैन | दिप्रिंट

एक पहलवान ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह सब एक मजाक जैसा लग रहा था. प्रतिस्पर्धा हो रही है, नहीं हो रही है, बाद में होगी. हमें इन प्रतियोगिताओं के लिए अपना वजन कम करना होगा और यह काम हमें जल्दी करना होगा. इसका हमारे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ा.”

कोच जयवीर ने स्वस्थ, क्रमिक वजन घटाने और क्रैश डाइट के बीच अंतर को ध्यान में रखते हुए इस चिंता को दोहराया. उन्होंने कहा, यह सब वही है जो पहलवानों को इस वर्ष करने के लिए “मजबूर” किया गया था. उन्होंने कहा, “इस तरह वजन घटाने से शरीर पर तीन महीने तक दबाव पड़ता है.”

प्रतियोगिताओं की घोषणा दो बार की गई और दो बार रद्द की गई. पहली बार अप्रैल में, दूसरी बार दिसंबर में. इस बीच, युवा खिलाड़ी जोश में थे क्योंकि आसन्न प्रतियोगिताओं की अफवाहें लगातार हवा में थीं.

नौकरशाही का यह बुरा सपना यहीं खत्म नहीं हुआ. छात्रों ने कहा कि उनके लिए अपने पिछले प्रमाणपत्रों को सत्यापित कराने का कोई रास्ता नहीं था, जो अनुदान या नौकरियों के लिए आवेदन करते समय एक अनिवार्य आवश्यकता है. रोहतक के अंडर -20 पहलवान अतुल हुडा ने कहा, “हम अपना प्रमाणपत्र सत्यापित कराने के लिए दिल्ली गए. आईओए ने हमें बताया कि वे मेरे दस्तावेज़ को सत्यापित नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास डेटा नहीं है. जब मैंने महासंघ से संपर्क किया, तो उन्होंने मुझे बताया कि वे निलंबित हैं इसलिए मदद नहीं कर सकते. अब मैं कहां जाऊं.”

हुडा ने पिछले साल राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीता था और परिणामस्वरूप स्कूल छात्रवृत्ति अर्जित की थी. उन्हें अधिक मैडल, स्कॉलरशिप, कैंप और शायद विदेश में प्रतिस्पर्धा करने का मौका भी मिलने की उम्मीद थी. अब आईओए और महासंघ के बीच की ये लड़ाई उन सभी आकांक्षाओं पर पानी फेर रहा है.

रोहतक के छोटू राम स्टेडियम में साक्षी मलिक की तस्वीर के नीचे कुश्ती लड़ते पहलवान | शुभांगी मिश्रा | दिप्रिंट

हुडा ने कहा, “सबसे पहले, उन्होंने अप्रैल में चैंपियनशिप की घोषणा की. मैंने उनके लिए वजन कम किया, लेकिन फेडरेशन के निलंबित होने के बाद उन्हें अचानक रद्द कर दिया गया. दिसंबर में भी ऐसा ही हुआ था. इससे बहुत निराशा होती है. मैं खुद से पूछता रहता हूं कि मैं किस लिए ट्रेनिंग ले रहा हूं?” उन्होंने आगे कहा, जो चीज उन्हें अभी आगे बढ़ा रही है, वह है उनके कोचों और साथियों का प्रोत्साहन और यह उम्मीद कि यह गतिरोध अधिक समय तक नहीं रहेगा.

पेरिस ओलंपिक में सिर्फ छह महीने बचे हैं और मौजूदा अनिश्चितता भारत की पदक उम्मीदों पर ग्रहण लगा रही है.

SAI के एक कोच ने कहा कि सीनियर ट्रेनिंग कैंप आमतौर पर पूरे साल आयोजित किए जाते हैं, और इसमें देश के शीर्ष पहलवान भाग लेते हैं, लेकिन अब इन्हें रोक दिया गया है. ओलंपिक से पहले यह एक बड़ा झटका है. उन्होंने कहा, “शिविरों में, पहलवानों को एक निर्धारित आहार, किट, सर्वश्रेष्ठ कोच और सबसे महत्वपूर्ण रूप से उच्चतम मंचों के लिए प्रशिक्षण का माहौल मिलता है. इस साल, उन्हें कुछ नहीं मिला.”

‘कुश्ती में राजनीति’

रोहतक के सर छोटू राम स्टेडियम में, दयानंद और वीरेंद्र सिंह, दोनों लगभग 50 वर्ष के थे और वे अन्य माता-पिता के बीच बैठकर अपने बच्चों को साक्षी मलिक की एक बड़ी तस्वीर जिसमें उन्होंने हाथों में भारतीय ध्वज पकड़ा हुआ है उसके नीचे अभ्यास करते हुए देख रहे थे. लेकिन कुश्ती प्रशासन की स्थिति के प्रति उनकी नाराजगी स्पष्ट थी.

दयानंद ने कहा, “कुश्ती में उच्चतम स्तर पर केवल महाबली के बीच राजनीति चल रही है. लेकिन किसी ने भी यह नहीं सोचा उनके बीच के झगड़े का असर युवा छात्रों के करियर पर क्या पड़ेगा.”

छोटू राम स्टेडियम में दयानंद, वीरेंद्र के साथ-साथ अन्य माता-पिता और अभिभावकों ने कहा कि डब्ल्यूएफआई में लगातार अनिश्चितता के कारण उनका धैर्य खत्म हो रहा है. कुछ लोगों ने पहलवानों के इरादों पर भी संदेह व्यक्त किया.

नई परेशानी झज्जर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ बजरंग पुनिया की नकली कुश्ती थी, उसी दिन माता-पिता ने दिप्रिंट से बात करते हुए बताया.

दयानंद ने कहा, “(पुनिया) राहुल गांधी के साथ क्यों खेल रहे हैं? उनके साथ अपनापन दिखाने के लिए है ना? इन लोगों ने कुश्ती सीख ली है और अब वे हमारे खर्च पर राजनीतिक करियर बना रहे हैं.”

27 दिसंबर 2023 को हरियाणा के झज्जर में राहुल गांधी और बजरंग पुनिया कुश्ती करते हुए | फोटो: एक्स/@राहुलगांधी

वीरेंद्र की बेटी मुस्कान, जो 20 साल से कम उम्र की है, उन्हें युवा पहलवानों के लिए इस गतिरोध की भारी कीमत चुकानी पड़ी है. उन्होंने बताया कि मुस्कान ने इस साल 59 किलोग्राम वर्ग में हरियाणा राज्य खेलों में जीत हासिल की थी और इस तरह राष्ट्रीय पदक जीतने का भी अच्छा मौका था. उन्होंने कहा, “लेकिन प्रतियोगिता एक बार नहीं बल्कि दो बार रद्द कर दी गई. पदक जीतने से वह नौकरी के लिए पात्र हो जाती, एक अनुदान के लिए पात्र होती जिससे उसके सपनों में पैसा लगाने में मदद मिलती और कोई भी चीज़ उसे रोक नहीं पाती. वह 6 साल से अभ्यास कर रही है. हर महीने हम 45,000-50,000 रुपये खर्च करते हैं. आख़िरकार जब परिणाम देखने का समय आया तो खेल रद्द कर दिए गए. इससे हमारा हौसला टूट गया है.”

पहलवान रितिका हुडा ने कहा, “मेरा सपना कभी भी सिर्फ मैडल जीतना नहीं था. मेरा सपना मैडल जीतना, फिर हाथ में तिरंगा लेकर स्टेडियम में दौड़ लगाने का था.”

वर्ल्ड चैंपियनशिप में अंडर-23 स्वर्ण जीतने वाली रितिका हुडा के अनुसार, यहां तक कि जो पहलवान क्वालीफाइंग ट्रायल के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचे, वे भी अपनी जीत का पूरा आनंद नहीं ले सके.

हुड्डा ने कहा, “मेरा सपना कभी भी सिर्फ मैडल जीतना नहीं था. मैडल जीतने के बाद हाथ में तिरंगा लेकर पूरे स्टेडियम में दौड़ लगाने का था.” चूंकि डब्ल्यूएफआई को यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग द्वारा निलंबित कर दिया गया था, इसलिए खेल तटस्थ बैनर के तहत आयोजित किए गए थे. उन्होंने आगे कहा, “मैं खुश थी कि मैं जीत गई, लेकिन उतनी खुश भी नहीं थी.”

खेल बाधित होने के कारण, महिला पहलवान खुद को सामाजिक दबावों, विशेषकर शादी की अपेक्षाओं के प्रति असुरक्षित महसूस करती हैं.

हुडा जैसे पहलवानों के लिए, ऐसी जीतें महत्वपूर्ण प्रेरणा के रूप में काम करती थीं. लेकिन आशु जैसे अन्य लोगों के लिए, बिना प्रतिस्पर्धा के वर्ष ने उन्हें किनारे पर धकेल दिया है. खेल बाधित होने के कारण, महिला पहलवान खुद को सामाजिक दबावों, विशेषकर शादी करने के दबाव के बीच पाती हैं.

आशु ने कहा, “कुछ रिश्तेदार मेरे परिवार को ताना मारते हैं. वे पूछते हैं कि मैं क्या कर रही हूं, वे कहते हैं कि मैं अपना समय और साल बर्बाद कर रही हूं, मुझे शादी कर लेनी चाहिए.” लेकिन वह झूठी मुस्कान के साथ कहती है कि उनका परिवार उनके साथ खड़ा है और वह कुश्ती छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: विवेक बिंद्रा ने भारत के भटके हुए युवाओं को कैसे अंबानी-जुकरबर्ग बनने के सपने बेचे


 

share & View comments