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Monday, 4 November, 2024
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हज-उमराह धोखाधड़ी- भारतीय मुसलमानों को कैसे जालसाज़ी में फंसाते हैं फ़ेक एजेंट्स

पीड़ितों के लिए, मक्का और मदीना के नाम पर होने वाले नुकसान दिवालिएपन, कर्ज और टूटे सपनों का कारण बन सकते हैं. कुछ मामलों में तो अमीर और पढ़े-लिखे मुसलमान भी इन घोटालों के झांसे में आ गए हैं.

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राजस्थान के एक छोटे से कस्बे से ताल्लुक़ रखने वाले ज़हूर अहमद आंखों में चमक लिए मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे थे. वह कोई बॉलीवुड स्टार नहीं बनना चाहते थे बल्कि हज करने का सपना लिए वो मायानगरी गए थे. एक लंबे संघर्ष के बाद उनका हज का सपना पूरा होने वाला था. 39 अन्य यात्रियों के साथ ज़हूर भी एयरपोर्ट पर खड़े थे. वो किसी का लंबा इंतज़ार कर रहे थे, जो गुज़रते वक़्त के साथ मुश्किल होता जा रहा था. लेकिन उन्हें एक बड़ा झटका लगने वाला था. ट्रैवल एजेंट, जो उन्हें और उनके साथ अन्य यात्रियों को हज पर जाने के लिए वीज़ा और ई-टिकट देने वाला था, वो आया ही नहीं.

ज़हूर ने एजेंट को टर्मिनल के बाहर से कई बार फोन किया. इंदौर स्थित हज एजेंट अल मलिक हज उमरा टूर एंड ट्रैवल्स ने कथित तौर पर सभी हज यात्रियों के कुल 1 करोड़ रुपये से अधिक पैसों को ठग लिया था.

इससे भी बुरी यह था कि एयरपोर्ट पर फंसे 39 लोगों में से 14 ज़हूर के रिश्तेदार और जान-पहचान वाले लोग थे. जिन्हें ज़हूर ने इस्लामिक यात्रा पर जाने के लिए तैयार किया था. उन्हें सहूलियतों के बारे में आश्वस्त किया और उनसे पैसा लेकर मलिक को दे दिया था.

9 सितंबर 2022 को दर्जनों कॉल के बाद, आखिरकार ज़हूर का फोन एजेंट के पास पहुंचा.

जहूर याद करते हुए कहते हैं, “मलिक ने मुझसे कहा कि उसके पास हमारे पैसे नहीं हैं और हमें हज पर जाने के लिए टिकट नहीं मिलेगा.” उन्हें झटका लगा और सोचने लगे कि आखिर वह सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को पैसे कैसे लौटाएंगे? उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मुझे आत्महत्या का ख्याल आ रहा था लेकिन बाद में मुझे लगा कि चेहरा छुपाने से कुछ नहीं होगा.”

भारत में हज धोखाधड़ी ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों से आने वाले कई अशिक्षित मुस्लिम परिवारों को फंसा रही है. ये वो लोग हैं जो हज पर जाने के लिए अपने जीवन भर की जमा-पूंजी या दोस्तों से उधार लेते हैं, लेकिन घोटालों में अपना पैसा खो देते हैं. कुछ लोग पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराते हैं लेकिन ज्यादातर को भारी कर्ज चुकाना पड़ता है जो सालों तक बना रहता है.

चूंकि भारत से नए हज सीजन की पहली उड़ान 21 मई को भरने वाली है, नकली एजेंटों के बारे में आशंकाएं फिर से सामने आ रही हैं. सऊदी अरब ने इस साल भारत को 1,75,025 का विशाल हज कोटा आवंटित किया है जो पिछले साल 79,237 था.

दिल्ली स्टेट हज कमेटी की हाल ही में नियुक्त की गईं अध्यक्ष कौसर जहां कहती हैं, ”मेरी सभी जिम्मेदारियों में मेरी सबसे बड़ी चिंता हज से जुड़ी ये धोखाधड़ी हैं.” “कई लोग हैं जो कहते हैं कि वे हज एजेंट हैं. वो आपसे हज पर ले जाने के कई वादे करते हैं लेकिन हकीकत यह है कि ऐसा (तीर्थयात्रा) होता ही नहीं है.”

वह कहती हैं कि उन्हें नियमित रूप से धोखाधड़ी की शिकायतें मिलती हैं और वे उन्हें अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को भेजती हैं; उनके पास इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के अधिकार नहीं हैं.

वह कहती हैं, “यह हमारे (समिति के) अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.”  मंत्रालय ने हालांकि, 2017, 2018, 2022 और 2023 में दर्ज किए गए मामलों की संख्या के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया है. जवाब मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.

घोटाला किए जाने के बाद, ज़हूर अपने गृहनगर बारा, राजस्थान लौट गए. वे कहते हैं कि उन्हें अपने सभी रिश्तेदारों को 70 लाख रुपये से अधिक चुकाने पड़े हैं. ज़हूर के पास अपनी पुश्तैनी जमीन बेचने के अलावा कोई चारा नहीं था. चर्चा फैल गई और उनका छोटा सा टूर एंड ट्रैवल का कारोबार ख़त्म हो गया. अब वह ठेले पर प्याज बेचने का काम करते हैं.


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क़ानून के दरवाज़े पर दस्तक

ज़हूर सालों से हज पर जाने की योजना बना रहे थे. 2019 में, उन्होंने अगले साल तीर्थ यात्रा करने के लिए 14 रिश्तेदारों से 42 लाख रुपए लिए थे और अब्दुल मलिक को दे दिए थे, जिससे वह एक परिचित के ज़रिेए मिले थे. मलिक ने इंदौर के अल मलिक हज उमराह टूर एंड ट्रैवल्स का मालिक होने का दावा किया. लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण ज़हूर हज पर नहीं जा सके.

2022 में, मलिक ने बढ़ती लागत का हवाला देते हुए और पैसे की मांग शुरू कर दी. जहूर ने अपने रिश्तेदारों से और पैसा लिया और इसे मलिक को सौंप दिया. जहूर कहते हैं, कुल मिलाकर करीब 77 लाख रुपये आए.

उन्होंने जितनी भी मेहनत की हो लेकिन वह न तो पूरी रकम चुका सके और न ही अपने परिवार के रिश्तेदारों का विश्वास वापस हासिल कर पाए.

लेकिन ज़हूर दृढ़ थे कि उनकी कहानी हज धोखाधड़ी के आंकड़ों के ढेर के नीचे न दब जाए. उन्होंने कानून का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया.

नवंबर 2022 में, उन्होंने इंदौर की यात्रा की और चंदन नगर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई. बाद में मलिक को गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, “मलिक उमराह और हज के लिए लोगों से पैसे लेता था. इस मामले में सात एफआईआर दर्ज की गई हैं.” मलिक द्वारा ठगे गए सभी लोगों ने पुलिस से संपर्क नहीं किया. उन्होंने कहा, “कुछ लोगों ने सीधे उनसे मामला सुलझा लिया, लेकिन अहमद के मामले की जांच की जा रही है क्योंकि उसने शिकायत दर्ज कराई है.”


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फ़ेक एजेंट, जालसाज़ी, झूठे वादे

हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, हर मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार इस कर्तव्य का पालन करना चाहिए और हज धोखाधड़ी का जाल पूरे भारत में फैला हुआ है. शिकायतें राज्य हज समितियां नहीं बल्कि केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारत की हज समिति के तहत दर्ज की जाती हैं.

तुर्कमान गेट के पास दिल्ली स्टेट हज कमेटी कार्यालय में, अधिकारी नकली ट्रैवल एजेंसियों को चलाने वाले स्कैमर्स की कहानियों को साझा करते हैं, जो वीजा के लिए बेताब लोगों से झूठे वादे करते हैं, और 65,000 रुपए के सस्ते पैकेज का दावा करते हैं. औसतन, अगर एक यात्री भारत की हज समिति के माध्यम से आवेदन करता है तो उसे 3 से 3.5 लाख रुपए के बीच भुगतान करता है, लेकिन अगर वे पांच सितारा सेवाएं चाहते हैं तो दरें अधिक हो सकती हैं. इस साल की शुरुआत में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अपनी नई हज नीति में लागत में 50 हज़ार रुपये की कमी की थी.

एक अधिकारी ने एक मामले को याद करते हुए बताया कि एक जालसाज ने जाली हज फॉर्म बनाया था, जो राष्ट्रीय समिति द्वारा जारी किए जाते हैं और कथित तौर पर उसने ग्राहक को भरोसे में ला आया कि उसका आधा भुगतान राष्ट्रीयकृत बैंक ने स्वीकार कर लिया है और शेष भुगतान के बाद वो हज पर जा पाएगा. नाम न छापने की शर्त पर हज कमेटी के एक अधिकारी ने कहा, ”हमें संदेह है कि बैंक कर्मचारी घोटाले में शामिल था”.

दलाल और बिना लाइसेंस के संचालक लोगों की अज्ञानता को अपना शिकार बनाते हैं और उन्हें समझाते हैं कि वे पर्यटक वीजा पर हज के लिए पंजीकरण कराते हैं. कौसर जहां कहती हैं, “टूरिस्ट वीज़ा पर हज नहीं किया जा सकता है और लोगों को इस बात का अहसास सऊदी अरब पहुंचने के बाद ही होता है जब उन्हें पता चलता है कि उनके लिए कोई सुविधा की व्यवस्था नहीं की गई है. जेद्दा में भारत के महावाणिज्य दूतावास द्वारा निर्वासित किए जाने तक वे वहीं रहते हैं.”

समिति के एक अन्य अधिकारी का कहना है कि मुसलमान ऐसे एजेंट पर भरोसा करते हैं, जो कुराह नामक ड्रॉ में उनका नाम निकलवाने का वादा करते हैं, जिसके बदले में उन्हें कुछ पैसे मिलते हैं.

एक अन्य अधिकारी ने कहा “ये एजेंट ड्रॉ में नाम नहीं आने पर जमा राशि वापस करने का वादा करते हैं. लेकिन वे पैसे कभी वापस नहीं करते.” हाजी नहीं जानते कि चयन कंप्यूटर द्वारा किया जाता है. उन्हें लगता है कि एजेंट वास्तव में सूची में नाम निकलवा सकता है. इस साल अकेले दिल्ली में ड्रॉ में 4,110 नामों में से 2,450 हाजियों का चयन किया गया है, जिनमें 39 महिलाएं अकेले हज करने जा रही हैं.

कुछ लोग यह झूठा दावा करके मुसलमानों को बरगलाते हैं कि वे सरकार के वीआईपी कोटे के तहत हज पर जा सकते हैं, जिसे 2012 में यूपीए द्वितीय सरकार द्वारा पेश किया गया था और केवल शीर्ष संवैधानिक पदों और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में लोगों के लिए लगभग 500 सीटें आरक्षित की गई थीं. लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने ‘वीआईपी कल्चर’ को ख़त्म करने के लिए जनवरी 2023 में कोटा खत्म कर दिया. कौसर कहती हैं, “इस वजह से 500 और (आम) लोग हज के लिए जा सकेंगे.”

हज यात्रियों को ठगने का धंधा शहरी मुस्लिम बहुल इलाकों में फलता-फूलता है. फैंसी पैकेज का इस्तेमाल लोगों को लुभाने के लिए किया जाता है, और सोशल मीडिया इन घोटालों को प्लेटफॉर्म पर प्रमोट करते हैं. चटकीले रंगों और बोल्ड फोंट में, वे सस्ते दरों पर पैकेज का वादा करते हैं. एक विज्ञापन में लिखा था, ‘हज, उमराह, जियारत. उड़ान के माध्यम से, 15 दिन का पैकेज केवल 66,000 रुपये में.’ एक अन्य में होटल में ठहरने और लॉन्ड्री की सुविधा जैसी अतिरिक्त सुविधाओं पर रोशनी डाली गई थी.

ऑल इंडिया हज उमराह टूर ऑर्गनाइजर्स एसोसिएशन के महासचिव इमरान अल्वी को सस्ते और सुविधाजनक पैकेज के झूठे वादों के झांसे में आने वाले लोगों के प्रति थोड़ी सहानुभूति है. वे कहते हैं कि वे अपने लालच का भुगतान कर रहे हैं.

“सबसे बड़ा घोटाला यही है कि जिनके पास हज बुकिंग लेने का लाइसेंस नहीं है वो उसके बावजूद बुकिंग लेते हैं. वे छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को धोखा देते हैं.”


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उमराह यात्रियों को भी नहीं बख्शा

कुछ मामलों में पढ़े-लिखे और जागरूक मुसलमान भी इन घोटालों के झांसे में फंस गए.

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के सुलेमान नगर डिवीजन के उपाध्यक्ष हैदराबाद के मोहम्मद अली के साथ भी ऐसा ही हुआ. वह उमराह धोखाधड़ी का शिकार हुए थे. हज के विपरीत, उमराह मुसलमानों के लिए अनिवार्य नहीं है, लेकिन यह भी मक्का में ग्रैंड मस्जिद या मस्जिद अल-हरम के लिए एक अहम इस्लामिक परंपरा है.

नवंबर 2022 में, अली को एक व्हाट्सएप ग्रुप पर संदेश मिला- हैदराबाद में एहतेमाद टूर एंड ट्रैवल्स द्वारा उमराह के लिए ‘सस्ते’ पैकेज का विज्ञापन. एक छोटे से इंटरनेट सर्च ने उन्हें आश्वस्त किया कि यह विश्वसनीय है और उन्होंने ट्रैवल एजेंसी के सूफी अब्दुल क़ादिर और मोहम्मद वाजिद से मुलाकात की. चार लोगों के लिए 4 लाख 28 हजार रुपये के पैकेज में सऊदी अरब में 15 दिन रहना, फ्लाइट टिकट, वीजा, आवास और भोजन शामिल था.

अली ने उनके साथ साइन अप किया और 25 दिसंबर 2022 को डिपार्चर डेट तय की गई, लेकिन उससे कुछ दिन पहले ही उन्हें एहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है. हैदराबाद पुलिस को की गई उनकी शिकायत पर आधारित प्राथमिकी के अनुसार, जब अली ने 21 दिसंबर को क़ादिर को फोन किया, तो उन्हें बताया गया कि वाजिद पैसे लेकर भाग गया है.

एहतेमाद द्वारा 165 लोगों को धोखा दिए जाने का दावा करते हुए अली कहते हैं, “मैं एक राजनीतिक दल का सदस्य होने के बावजूद इस धोखाधड़ी का शिकार हुआ हूं. मैं अपनी लड़ाई गरीब और अशिक्षित मुसलमानों के बारे में सोचकर लड़ रहा हूं. उनके लिए इसमें फंसना आसान होता है.” हालांकि, एफआईआर में इसका जिक्र नहीं है. वाजिद, जिसका सेलफोन नंबर एहतेमाद के संपर्क विवरण में लिखा हुआ था. कमाठीपुरा के पुलिस निरीक्षक तेजावथ कोमारैया कहते हैं, ”उसने हाई कोर्ट से जमानत ली और अब जमानत पर बाहर हैं.”

अली को 22 दिसंबर को 1.5 लाख रुपए का आंशिक रिफंड मिला. क़ादिर ने बाकी के 2.78 लाख रुपये लौटाने का भी वादा किया, लेकिन अभी तक उन्हें पूरी रकम नहीं मिली है.

हैदराबाद की 60 वर्षीय यास्मीन बेगम को भी अभी तक एहतेमाद से रिफंड नहीं मिला है. उनका बैग पैक था और वह मक्का जाने के लिए तैयार थीं. पैरालाइज़ से ग्रस्त यास्मीन से यह तक वादा किया गया कि उसे उमराह करने के लिए व्हीलचेयर प्रदान की जाएगी. लेकिन जब उन्हें खबर मिली कि यात्रा रद्द कर दी गई है तो उनकी सारी उम्मीदें खत्म हो गईं. यास्मीन की बेटी समीना कहती हैं “मेरी बड़ी बहन ने अपने गहने बेच दिए, हमारे भाई की बचत और मेरी मां की पेंशन से कुछ पैसे जमा किए गए थे. इस तरह, हमने मेरी मां और छोटी बहन को उमराह पर भेजने के लिए आवश्यक धन जमा कर लिया था. पैसे डूब जाने के बाद से मेरी मां सदमे में है.”

अली के विपरीत, परिवार को एजेंसी से कोई रिफंड नहीं मिला है.

उमराह पर जाने से कुछ दिन पहले, यास्मीन ने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लिए दावत दी थी. लेकिन जब लोगों को ठगी का पता चला तो उन्होंने उनका मजाक बनाना शुरू कर दिया. समीना कहती हैं, “इसने हमें तोड़ दिया. इस धोखाधड़ी का आरोपी (अब) जेल से बाहर (कादिर) है, वह खुश है, और हम रो रहे हैं.”

हालांकि क़ादिर का दावा है कि उनके पार्टनर मोहम्मद वाजिद ने उन्हें भी धोखा दिया है. कमाठीपुरा थाने में शिकायत दर्ज कराने के बाद क़ादिर ने सिविल कोर्ट का भी दरवाज़ा खटखटाया है.

क़ादिर कहते हैं, “वाजिद ने मुझे धोखा दिया है। मैंने लोगों के उमरा पर जाने के लिए सारी व्यवस्था की और वह सारा पैसा लेकर भाग गया.”

दोनों पुरुषों पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात की सजा) और 420 (धोखाधड़ी और इस तरह बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना) शामिल हैं.

क़ादिर को 28 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था और उसने कुछ दिन जेल में बिताए, लेकिन अब जमानत पर बाहर है. उनका कहना है कि उन पर अच्छा काम करने और अपने सभी ग्राहकों को पैसा लौटाने का भारी दबाव है, और यह उन्हें तनाव दे रहा हैं.

उन्होंने कहा, “पीड़ित मेरी समस्याओं को समझते हैं. लेकिन वाजिद को उनके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था. धर्म के नाम पर इस तरह का फर्जीवाड़ा करना ठीक नहीं है. मेरे पास सभी सबूत हैं और मुझे यकीन है कि मुझे न्याय मिलेगा.”


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अदृश्य एजेंट

इस तथ्य के अलावा कि हज या उमराह घोटालों के सभी पीड़ित पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराते हैं, ज्यादातर लोग नकद भुगतान करते हैं. जांच अधिकारियों का दावा है कि ऐसे मामलों को सुलझाने में यही सबसे बड़ी समस्या है.

बेंगलुरु अपराध शाखा के इंस्पेक्टर सादिक़ कहते हैं, ऐसे मामलों में आमतौर पर मुख्य आरोपी अदृश्य होते हैं. उन्होंने वर्षों से ऐसे कई मामलों की जांच की है.

वे कहते हैं, “ज्यादातर जालसाज़ों के सब-एजेंट होते हैं, और मुख्य दोषियों तक पहुंचना मुश्किल होता है.” वो आगे बताते हैं “वे (मुख्य एजेंट) उप-एजेंटों को हर महीने 10-20 फीसदी रिटर्न देने का वादा करते हैं.”

सोशल मीडिया के अलावा, वे इमाम के माध्यम से भी प्रचार करते हैं या स्थानीय धार्मिक प्रभावकों से उन्हें पैसे देने के लिए कहते हैं.

समय की आवश्यकता, मुकदमेबाजी और आपराधिक मामले की गंभीरता को देखते हुए कई बार ग्राहकों और टूर एजेंट के बीच मध्यस्थता से मामले को सुलझा लिया जाता है.

सादिक कहते हैं, “पार्टी (एजेंट) ज्यादा ताकतवर हो तो इंसाफ मिलना मुश्किल होता है. दोनों पक्ष एक साथ आते हैं और थाने के अंदर या बाहर मध्यस्थता की जाती है. कुछ धार्मिक इमाम या समुदाय के नेताओं को बैठाकर मामले को निपटाने की कोशिश की जाती है.

सऊदी अरब में, हज और उमराह के अधिकारियों ने दलालों और बिना लाइसेंस वाले एजेंटों के खिलाफ चेतावनी जारी करना शुरू कर दिया है. अल्वी का दावा है कि उमराह की तुलना में हज धोखाधड़ी कम होती है.

वे कहते हैं, “हज के लिए लाइसेंस अल्पसंख्यक मंत्रालय से लिया जाता है. उनकी (निजी एजेंसियां) सरकार द्वारा पूरी तरह से जांच की जाती हैं. उन्हें हज यात्रियों के साथ एक समझौते पर भी हस्ताक्षर करना होता है और सरकार द्वारा उनकी निगरानी की जाती है.”

जेद्दा में भारत के महावाणिज्य दूतावास भी सऊदी अरब पहुंचे हाजियों से मिलने के बाद एक रिपोर्ट तैयार करता है. इस दौरान अगर कोई शिकायत या धोखाधड़ी पाई जाती है तो कार्रवाई शुरू की जाती है.

वो कहते हैं, “लाइसेंस देने के समय, कंपनी की पुलिस पूछताछ की जाती है. अगर कोई (बाद में) धोखाधड़ी करता पाया जाता है, तो सरकार उस कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर देती है और लाइसेंस रद्द कर देती है.”

केंद्र सरकार हज बुकिंग लेने के लिए अलग-अलग कंपनियों को विशिष्ट कोटा भी देती है. बिना लाइसेंस वाली कंपनियां और स्कैमर्स ओवरबुक करते हैं और लोगों को धोखा देते हैं.

उमराह के लिए ऐसी कोई जांच नहीं है.

अल्वी आगे कहते हैं “यह सभी एजेंटों और टूर ऑपरेटरों के लिए खुला है. ब्लैकलिस्ट होने का कोई खतरा नहीं है.” ऐसे मामलों से निपटने के लिए, वह उमराह पंजीकरण के लिए एक नियामक तंत्र बनाने और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय बनाने की वकालत करते हैं. “उन्हें पंजीकृत किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें फ़िल्टर किया जा सके और जांच की जा सके.”

लाइसेंस प्राप्त हज संचालक भी अपंजीकृत एजेंटों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.

लखनऊ में हज के लिए रजिस्टर्ड टूर एंड ट्रैवल एजेंसी चलाने वाले एहसान आफ़ाक़ी कहते हैं, ”उनकी वजह से लोगों का हम पर से भरोसा उठ गया है.” वह उमराह यात्रियों के लिए पैकेज भी देते हैं.

पीड़ितों के लिए, मक्का और मदीना के नाम पर होने वाले नुकसान दिवालिएपन, कर्ज और टूटे सपनों का कारण बन सकते हैं. ज़हूर नहीं जानते हैं कि क्या वह हज के लिए फिर कभी पर्याप्त पैसे बचा पाएंगे. वह उदास होकर कहते हैं, “मुझे नहीं पता कि मैं हज कैसे करूंगा.”

और इतने महीनों के बाद भी यासमीन का बैग उनके कमरे के कोने में पड़ा रहता है. उन्होंने दिसंबर से इसे छुआ नहीं है.

समीना कहती हैं, “जब भी वह अपने बैग को देखती हैं, तो वह हमें इसे नहीं खोलने के लिए कहती हैं. वो दोहराती हैं कि इसे खोलना नहीं मुझे उमराह पर जाना है.”

(इस फ़ीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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