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Tuesday, 17 December, 2024
होमफीचरJPSC से JSSC — झारखंड में सरकारी नौकरी का मतलब : भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, परीक्षा में देरी और अदालतों के चक्कर

JPSC से JSSC — झारखंड में सरकारी नौकरी का मतलब : भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, परीक्षा में देरी और अदालतों के चक्कर

21 सालों में जेपीएससी ने सिर्फ 13 परीक्षाएं आयोजित की हैं, जबकि इसे सालाना आयोजित किया जाना चाहिए. ऐसी एक भी सिविल सेवा परीक्षा नहीं हुई है, जिसका मसला अदालत में न गया हो.

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रांची: मनोज यादव की सिविल सेवक बनने की यात्रा 2003 में झारखंड लोक सेवा आयोग की पहली परीक्षा के साथ शुरू हुई, लेकिन उन्होंने पिछले दो दशक रांची की सड़कों पर बिताए — एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए जिसके बारे में उनका आरोप है कि वो जड़ से सड़ चुकी है. वे जेल भी गए हैं और झारखंड हाई कोर्ट में मुकदमे तक लड़ चुके हैं, लेकिन सरकारी नौकरी अभी भी उनके हाथों में नहीं आई है.

45-वर्षीय यादव झारखंड में सीरियल प्रदर्शनकारी बन गए हैं, एक ऐसा राज्य जहां अदालती लड़ाई, सीबीआई जांच और एसआईटी जांच ने परीक्षा प्रक्रिया पर मानो कब्ज़ा कर लिया हो.

जेपीएससी का तीसरा अटेम्प्ट देने वाले यादव ने कहा, “व्यवस्था भ्रष्ट है और झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) सभी विफलताओं की जड़ है. उन्होंने लोगों से पैसे लिए और अपने रिश्तेदारों को सेवाओं में भर्ती किया. 20 साल हो गए हैं और यह प्रथा अभी भी जारी है.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब झारखंड सरकार पर आबकारी भर्ती परीक्षा में कथित खामियों के लिए हमला कर रहे हैं, जिसमें 15 एस्पिरेंट्स की मौत हो गई. परीक्षा के दौरान हुई विसंगतियां तेज़ी से राजनीतिक मुद्दा बनती जा रही हैं. झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. 21 साल में JPSC ने सिर्फ 13 परीक्षाएं आयोजित की हैं, जबकि यह हर साल होनी चाहिए. एक भी सिविल सेवा परीक्षा ऐसी नहीं रही, जिसका मामला कोर्ट में न गया हो और भ्रष्टाचार की बीमारी सिर्फ JPSC तक ही सीमित नहीं है. यहां तक कि झारखंड कर्मचारी चयन आयोग, जो ग्रेड-III और ग्रेड-IV राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए परीक्षाएं आयोजित करता है, भी एस्पिरेंट्स के निशाने पर रहता है. सबसे ताज़ा मामला आबकारी कांस्टेबल परीक्षा का है. पूर्व अधिकारी और अध्यक्ष भ्रष्टाचार और सरकार की अक्षमता को मुख्य कारण मानते हैं.

ग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट
ग्राफिक : श्रुति नैथानी/दिप्रिंट

JPSC के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव विजय शंकर दुबे ने कहा, “सरकार आयोग में अपने लोगों को नियुक्त करती रहती है. भ्रष्टाचार व्यवस्था में गहराई से समाया हुआ है और यहां तक कि कुछ अध्यक्ष जो ईमानदार और अच्छे थे, वो भी काम नहीं कर पाए. JPSC के हालात पूरे देश में सबसे खराब हैं.”

दिप्रिंट ने कॉल और ईमेल के ज़रिए जेपीएससी से संपर्क की कोशिश की थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल पाया है.

दिप्रिंट से बात करने वाले कई पूर्व सिविल सेवकों ने बताया कि आयोग पहले दिन से ही भ्रष्टाचार और धांधलियों का अड्डा बना हुआ था.

सिस्टम भ्रष्ट है और झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) सभी विफलताओं की जड़ है. उन्होंने लोगों से पैसे लिए और अपने रिश्तेदारों को सेवाओं में भर्ती किया. 20 साल हो गए हैं और यह प्रथा अभी भी जारी है

— मनोज यादव, पूर्व एस्पिरेंट

आयोग में काम करने वाले एक IAS अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “JPSC की स्थापना के बाद, 2003 में 64 पदों के लिए पहली सिविल सेवा परीक्षा आयोजित की गई थी. इस प्रक्रिया को पूरा करने में उन्हें तीन साल लग गए. बाद में, सवाल उठे कि राजनीतिक नेताओं के रिश्तेदारों का चयन किया गया था.”

उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की गई और उनमें से कई पर परीक्षक के हस्ताक्षर तक नहीं थे. ओवरराइटिंग देखी गई और इस मामले में कई लोग जेल भी गए.

2003 की परीक्षा में, एक ही केंद्र से कई उम्मीदवारों का चयन किया गया था और ओएमआर शीट गायब हो गई थी.

ऐसे कई मामले हैं जब JPSC की पोल खुली है. कई बार आयोग ने भर्ती प्रक्रिया में खामियां स्वीकार की हैं. 2021 में एक साथ आयोजित 7वीं, 8वीं, 9वीं और 10वीं JPSC परीक्षा में 57 एस्पिरेंट्स की OMR शीट गायब थी. इन 57 में से 49 एस्पिरेंट्स का सिलेक्शन हुआ था, लेकिन बाद में उनकी भर्ती रद्द कर दी गई.

दुबे ने कहा, “लाखों एस्पिरेंट्स सड़कों पर हैं और दुख की बात है कि किसी को उनकी परवाह नहीं है. अधिकारी और राजनीतिक नेता सिर्फ पैसा कमाने और अपने रिश्तेदारों को सेवा में लाने के लिए हैं.”

झारखंड लोक सेवा आयोग कार्यालय के सामने प्रदर्शन करते एस्पिरेंट्स | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
झारखंड लोक सेवा आयोग कार्यालय के सामने प्रदर्शन करते एस्पिरेंट्स | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

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अदालतों में प्रतिस्पर्धा

28-वर्षीय अजय कुमार ने रांची में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में अपनी युवावस्था के पांच साल बिताए हैं. उनके किसान पिता उन्हें इस लड़ाई में बनाए रखने के लिए कोडरमा से 8,000 रुपये भेजते हैं. कुमार ने प्रीलिम्स एग्जाम पास कर लिया है और अब मेन्स भी दे दिया है. अब वे केवल परिणाम के इंतज़ार में हैं.

लेकिन उन्हें पता है कि नतीजा क्या होने वाला है.

रांची में रहने वाले एक एस्पिरेंट अजय कुमार ने कहा, “नतीजे जल्द ही आ जाएंगे, लेकिन सरकार सिर्फ अपने लोगों की भर्ती करेगी. पिछली बार मैंने सुना था कि लोगों ने डीएसपी की नौकरी के लिए 90 लाख रुपये दिए और उनका सिलेक्शन भी हो गया. यह इस सरकार के तहत आखिरी परीक्षा है. मुझे पता है कि मैं अच्छा परफॉर्म करने के बावजूद परीक्षा पास नहीं कर पाऊंगा.”

कुमार बिना किसी रुकावट के परीक्षा का एक भी चक्र पूरा नहीं कर पाए हैं. उन्होंने बारिश में विरोध प्रदर्शन किया है, पुलिस से लाठियां खाई हैं और यहां तक कि सड़कों पर रातें भी बिताई हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदला. छात्र समूहों ने कैबिनेट मंत्रियों, जेपीएससी अध्यक्षों और यहां तक कि राज्यपाल से भी मुलाकात की है.

उन्होंने कहा, “हर कोई कुछ करने का वादा करता है, लेकिन 20 साल में किसी भी राजनीतिक नेता ने स्टूडेंट्स के बारे में नहीं सोचा. हम धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के बारे में अदालत में साबित करते हैं, लेकिन जेपीएससी भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है और अदालत में कहता है कि मानवीय आधार पर इस मामले को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि कई एस्पिरेंट्स सेवा में शामिल हो गए हैं और इससे उनकी ज़िंदगी प्रभावित होगी और वो आसानी से बच निकलते हैं.”

नतीजे जल्द ही आएंगे, लेकिन सरकार अपने लोगों की ही भर्ती करेगी. पिछली बार मैंने सुना था कि लोगों ने डीएसपी की नौकरी के लिए 90 लाख रुपये दिए और उनका सिलेक्शन भी हो गया

— अजय कुमार, जेपीएससी उम्मीदवार

मनोज यादव जेपीएससी में भ्रष्टाचार के खिलाफ 2005 में रांची में हुए पहले विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे. उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन शिक्षा मंत्री अपने रिश्तेदारों की भर्ती करते थे. कुछ एस्पिरेंट्स के 200 में से 240 स्कोर आए थे, जो की बहुत बड़ी चूक थी और धोखाधड़ी का सबूत था, लेकिन तब कुछ नहीं किया गया. आखिरकार मामला अदालत में गया और सीबीआई जांच के आदेश दिए गए. 20 साल बाद सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की और कहा कि जेपीएससी प्रीलिम्स परीक्षा में बड़ी चूक हुई और 20 अधिकारियों के नाम बताए जिन्हें अनैतिक तरीके से नियुक्त किया गया था.

यादव ने कहा, “न्याय की लड़ाई लड़ते हुए मैं जेल गया. यह कड़वी सच्चाई है कि झारखंड में कई चीज़ें गलत हैं और इसके लिए सरकार और अधिकारी जिम्मेदार हैं, लेकिन इतने विरोध प्रदर्शनों और असफल परीक्षाओं के बाद भी स्थिति जस की तस है.”

विरोध प्रदर्शन करते हुए वे राजभवन का घेराव करने गए और उसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

प्रकाश कुमार ने गुस्से में कहा, “बहुत सारे स्टूडेंट्स अपने गांव चले गए हैं और मजदूर बन गए हैं. इतने सालों में कई सपने मारे गए हैं और कोई भी जवाबदेही नहीं ले रहा है. हमारी ज़िंदगी बर्बाद करने के लिए कौन जिम्मेदार है?”

प्रकाश कुमार ने कुछ महीने पहले अपनी तैयारी पूरी कर ली थी, लेकिन वे खुद को इस सफर से अलग नहीं कर पाए. अब वे हर विरोध प्रदर्शन में जाते हैं और एस्पिरेंट्स के मुद्दों से जुड़े हर मार्च का नेतृत्व करते हैं. वे निराश एस्पिरेंट्स को थेरेपी देते हैं जो इस चक्र में प्रवेश करने के बाद डर जाते हैं.

बिरसा मुंडा पार्क में बैठे प्रकाश ने कहा, “मैंने जेपीएससी के लिए चार अटेम्प्ट दिए और मामला कोर्ट में चला गया. मैं कानूनी मामलों में इतना उलझ गया कि पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाया. अब मेरे दिल से हर उम्मीद खत्म हो गई है कि इस राज्य में कुछ बदलेगा, लेकिन मेरा गुस्सा खत्म नहीं हुआ है. मुझे नहीं पता कि मुझे शांति पाने के लिए कितने विरोध प्रदर्शन करने होंगे. हमने यहां भी विरोध प्रदर्शन किया था. रांची की ज्यादातर जगहें मुझे विरोध प्रदर्शन और तैयारी के दुखद चक्र की याद दिलाती हैं.”

झारखंड के छात्रों ने विरोध के कई तरीके अपनाए हैं, शारीरिक और डिजिटल दोनों. उन्होंने हड़तालें की, सड़कें जाम कीं, राजभवन गए और मशाल मार्च निकाला, बस पेपर लीक और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए.

अजय कुमार ने कहा, “इतने तो मैंने टेस्ट नहीं दिए, जितने प्रोटेस्ट किए.”

झारखंड के छात्रों ने विरोध के कई तरीके अपनाए हैं, शारीरिक और डिजिटल दोनों. उन्होंने हड़तालें की, सड़कें जाम कीं, राजभवन गए और मशाल मार्च निकाला, बस पेपर लीक और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए | फोटो: नूतन/दिप्रिंट
झारखंड के छात्रों ने विरोध के कई तरीके अपनाए हैं, शारीरिक और डिजिटल दोनों. उन्होंने हड़तालें की, सड़कें जाम कीं, राजभवन गए और मशाल मार्च निकाला, बस पेपर लीक और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए | फोटो: नूतन/दिप्रिंट

समस्याएं केवल जेपीएससी तक सीमित नहीं हैं; जेएसएससी, जो ग्रेड-III और IV के पदों के लिए परीक्षा आयोजित करता है, को भी छात्रों के रोष का सामना करना पड़ा है. पिछले 15 साल में जेएसएससी CGL परीक्षा के माध्यम से एस्पिरेंट्स का सिलेक्शन करने में विफल रहा है.

गणेश कुमार ने कहा, “उन्होंने जनवरी में एग्जाम लिया था, लेकिन पेपर लीक होने के कारण इसे रद्द कर दिया गया और अब JSSC ने 18वीं बार उसी एग्जाम के लिए नई तारीख जारी की है. उन्हें परीक्षा आयोजित करने में 18 प्रयास करने पड़ रहे हैं.”


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जड़ से सड़ा हुआ

कई आईएएस अधिकारी आयोग में आए और इन धांधलियों को मिटाने और छात्रों की शिकायतों को दूर करने की कोशिश की, लेकिन वे टिक नहीं पाए. जेपीएससी की शुरुआत से ही दिक्कतें थीं. उन्होंने परीक्षा आयोजित करने और समय पर नतीजे देने की कोशिश की, लेकिन सदस्य कभी एकमत नहीं हुए. राजनीतिक दबाव भी था.

दुबे ने कहा, “पहले अध्यक्ष की नियुक्ति एक चुनौती बन गई, क्योंकि सीएम कार्यालय द्वारा अनुशंसित नाम उचित नहीं था. वे व्यक्ति लालची और अयोग्य था. वे रांची विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था और तभी फाइल हस्ताक्षर के लिए मेरे पास आई और मैंने उसे पास करने से मना कर दिया.”

दुबे ने कहा, 2005 में एक डिप्टी कलेक्टर की कीमत 10 लाख रुपये, एक डीएसपी और इंजीनियर की सात लाख रुपये और एक मेडिकल ऑफिसर की छह लाख रुपये थी. “मैंने सुना है कि कीमतें करोड़ों रुपये तक बढ़ गई हैं.”

उन्होंने कहा, “बाद में मैंने सीएम कार्यालय को एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि यह संस्थान झारखंड के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और इसे गलत हाथों में नहीं दिया जाना चाहिए, लेकिन जब मैं सेवानिवृत्त हुआ तो सीएम कार्यालय ने उसी भ्रष्ट व्यक्ति को नियुक्त कर दिया. तब से भ्रष्टाचार शुरू हो गया और कभी नहीं रुका.”

यूपीएससी में भी चूक हुई, लेकिन पूजा खेडकर के मामले में उन्होंने तुरंत कार्रवाई की. झारखंड में सीबीआई ने उन संदिग्ध अधिकारियों की सूची दी है जो अनुचित साधनों का उपयोग करके सिस्टम में शामिल हुए, लेकिन कुछ भी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वे प्रभावशाली लोगों के रिश्तेदार हैं

— झारखंड में सेवा देने वाले एक आईएएस अधिकारी

झारखंड में सेवा देने वाले और जेपीएससी मामलों को कुछ समय के लिए संभालने वाले एक अन्य आईएएस अधिकारी ने कहा कि जब तक सरकार इस बारे में कुछ नहीं करती, तब तक कुछ नहीं बदलेगा.

अधिकारी ने कहा, “चूक यूपीएससी में भी हुई, लेकिन पूजा खेडकर के मामले में उन्होंने तुरंत कार्रवाई की. झारखंड में सीबीआई ने उन संदिग्ध अधिकारियों की सूची दी है जो अनुचित साधनों का उपयोग करके सिस्टम में शामिल हुए, लेकिन कुछ भी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह प्रभावशाली लोगों के रिश्तेदार हैं.”

उक्त अधिकारी ने कहा कि जेपीएससी परीक्षा में दो स्तर पर धांधली हो सकती है.

लिखित परीक्षाओं में एस्पिरेंट्स की कॉपियों को नई कॉपियों से बदला जा सकता है और स्कोर में बदलाव किया जा सकता है. उदाहरण के लिए अगर किसी एस्पिरेंट को 5 स्कोर मिले हैं, तो परीक्षा परीक्षक 5 के आगे 1 लगाकर उसे 15 कर सकता है. इंटरव्यू के दौरान वे पद के बदले पैसे मांगते हैं.

जेपीएससी की एक पूर्व अध्यक्ष, जिनका कार्यकाल दो वर्ष का था, ने कहा कि उन्हें आयोग से इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं मिला.

वे जेपीएससी परीक्षा 2024 का रिजल्ट जारी नहीं कर पाई, अभी भी इसका इंतज़ार है. उन्होंने आरोप लगाया कि आंतरिक राजनीति के कारण अन्य सदस्यों ने उनके फैसलों का समर्थन नहीं किया.

जेपीएससी की पूर्व अध्यक्ष नीलिमा केरकेट्टा ने कहा, “नतीजे जारी करने के लिए आयोग के तीन सदस्यों की अनुमति लेना ज़रूरी है. अगर कोई सदस्य नहीं होता है तो मामला अटक जाता है, जिससे रिजल्ट में देरी होती है.”

केरकेट्टा उस रिजल्ट का ज़िक्र कर रही थीं, जिसमें अजय कुमार ने मेन्स का एग्जाम लिखा था.

अजय ने इस साल मार्च में प्रीलिम्स पास किया और जून में मेन्स दिया. रिजल्ट जुलाई में आना था, लेकिन बाद में आयोग ने कहा कि इसे अगस्त में घोषित किया जाएगा. एस्पिरेंट्स अब भी इंतज़ार कर रहे हैं.

सिस्टम को बदलने तौर पर जेपीएससी की पूर्व अध्यक्ष नीलिमा केरकेट्टा ने प्रशासनिक पृष्ठभूमि से आयोग के सदस्यों की नियुक्ति का सुझाव दिया. वर्तमान में जेपीएससी के तीनों सदस्य शैक्षणिक पृष्ठभूमि से हैं.

उन्होंने कहा, “मैंने पूरे ध्यान से काम करने की कोशिश की, क्योंकि मुझे पता था कि आयोग की छवि को साफ करना ज़रूरी है, लेकिन मेरे पास पर्याप्त समय नहीं था. स्थिति उचित नहीं थी. झारखंड के छात्रों को हुए भारी नुकसान का मुझे हमेशा अफसोस रहेगा.”

सिस्टम को बदलने तौर पर जेपीएससी की पूर्व अध्यक्ष नीलिमा केरकेट्टा ने प्रशासनिक पृष्ठभूमि से आयोग के सदस्यों की नियुक्ति का सुझाव दिया. वर्तमान में जेपीएससी के तीनों सदस्य शैक्षणिक पृष्ठभूमि से हैं.

उन्होंने कहा, “2001 की नियम पुस्तिका को बदलने की ज़रूरत है. जो सदस्य कभी सहायक प्रोफेसर थे, वे मुख्य वैज्ञानिकों, प्रोफेसरों और सिविल सेवकों की भर्ती तय कर रहे हैं.”

केरकट्टा ने कहा, “सदस्यों और चयनित उम्मीदवारों के ग्रेड में भी बहुत अंतर है.”

अजय कुमार और प्रशांत कुमार ने अपने कोर्स पर उतनी रिसर्च नहीं की है जितनी उन्होंने जेपीएससी के कामकाज पर की है. वह सिविल सेवा परीक्षा के बारे में हर कथित धोखाधड़ी और गड़बड़ी को जानते हैं क्योंकि उन्होंने अदालत में, मीडिया के सामने और अन्य एस्पिरेंट्स को जागरूक करने के लिए उनका हवाला दिया है.

प्रकाश ने हालांकि, यह यात्रा छोड़ दी है, लेकिन वे अभी भी इस चक्र में रहते हैं — बाकी एस्पिरेंट्स की काउंसलिंग करते हुए.

प्रकाश ने कहा, “तैयारी अपने आप में बहुत चुनौतीपूर्ण है और सिस्टम हमारी स्थिति को बदतर बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ता. पैसे कमाने के लिए मैं कुछ अवैध काम क्यों न शुरू कर लूं क्योंकि सरकार को युवाओं की परवाह तो है नहीं.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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