फरीदाबाद: दिल्ली-एनसीआर के परिवार अरावली की तलहटी में बने और तीन एकड़ में फैले ‘अमृत ग्रीन वैली’ को बुक करने के लिए लाखों रुपये खर्च करते रहे हैं. इसका नाम वेडमीगुड और वेडिंग वायर जैसे बड़े प्लेटफॉर्म्स पर भी है, लेकिन अब यह ज़मीन पर नहीं दिखता.
‘अमृत ग्रीन वैली’ उन 241 प्रॉपर्टीज़ में से एक है, जो पर्यावरण के लिहाज़ से संवेदनशील अरावली पहाड़ियों में बनी थीं और जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जून से हरियाणा सरकार द्वारा गिराया जा रहा है. ये अतिक्रमण किसी झोपड़ी या गांव की तरह नहीं, बल्कि अमीर लोगों के बड़े-बड़े पूलसाइड रिसॉर्ट, महलों और पार्टी हॉल्स की शक्ल में हैं.
इस अभियान के चलते ज़मीन मालिकों, गांव वालों, नेताओं, हरियाणा सरकार, अदालतों और पर्यावरण विशेषज्ञों में टकराव हो गया है. इस मामले की जड़ में एक सवाल है, असल में ज़मीन का मालिक कौन है? केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर, कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला और किसान नेता राकेश टिकैत जैसे कई नेता इन ग्रामीणों का समर्थन कर रहे हैं, जो फिर से कोर्ट का रुख कर रहे हैं.
विरोध-प्रदर्शनों और बयानों के बीच, अरावली के इतिहास का सबसे बड़ा अतिक्रमण हटाने का अभियान जून में शुरू हुआ. यह सुप्रीम कोर्ट के 2022 के आदेश के बाद हुआ. वहीं, अरावली पर फिर से पेड़ लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘अमृत ग्रीन वॉल’ अभियान भी शुरू हुआ. इस कार्रवाई में दिल्ली-एनसीआर के कई पुराने फार्महाउस ढहा दिए गए हैं, लेकिन यह तो बस शुरुआत है.
फरीदाबाद के ज़िला वन अधिकारी विपिन सिंह ने बताया, “786 एकड़ में से 265 एकड़ ज़मीन अतिक्रमण से मुक्त करा ली गई है, जिनमें ज़्यादातर फार्महाउस और बैंक्वेट हॉल शामिल हैं. सरकारी इमारतों और जिन मामलों में कोर्ट से स्टे मिला है, उन्हें अभी नहीं तोड़ा गया है.”
ये फार्महाउस ज़्यादातर गुर्जर गांवों के ज़मींदारों, स्थानीय नेताओं और रियल एस्टेट कंपनियों की मिलीभगत से बने थे, लेकिन अब गुरुग्राम बदल रहा है. अरावली को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. यहां के पढ़े-लिखे और जागरूक लोग अरावली को बचाने के लिए एकजुट हो रहे हैं और हरे-भरे इलाके को वापस पाने की मांग कर रहे हैं.
अब तक, फरीदाबाद प्रशासन ने चार गांवों, अनखीर, मेवला महाराजपुर, लक्कड़पुर और अनंगपुर से 261 एकड़ अतिक्रमण हटा दिया है. प्रभावित लोगों में ‘अमृत ग्रीन’ के मालिक अजय पाल भी हैं.
अजय पाल ने कहा, “मैंने इस संपत्ति को बनाने में करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन सब कुछ चंद मिनटों में खत्म हो गया. प्रशासन ने मेरे दस्तावेज़ भी नहीं देखे.” अजय पाल गुर्जर समुदाय से हैं और अनंगपुर गांव के रहने वाले हैं. यह गांव दिल्ली के पहले राजा अनंग पाल तोमर से जुड़ा हुआ है.

पिछले 10 सालों में, खासकर जब अवैध खनन पर रोक लगी, तो दिल्ली के नज़दीक होने के कारण इस इलाके में फार्महाउस बनाने की होड़ मच गई. सैकड़ों प्रॉपर्टीज़ खड़ी हो गईं. अब, 11वीं सदी के एएसआई संरक्षित बांध तक जाने वाली सड़क एक आपदा क्षेत्र जैसी दिखती है. बुलडोज़र जा चुके हैं, लेकिन पीछे फार्महाउस, रिसॉर्ट और शादी हॉल का मलबा पड़ा है.
यह तोड़फोड़ सिर्फ एक झलक है. संपत्ति मालिकों और नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) के बीच पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से मामला चल रहा है. अब जाकर यह सबसे बड़ी कार्रवाई हुई है. 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (पीएलपीए) की धारा 4 के तहत संरक्षित ज़मीन पर बने अवैध निर्माण गिराने का आदेश दिया था. राज्य सरकार के सर्वे में 6,000 से ज़्यादा अवैध ढांचे मिले, जिनमें मंदिर और स्कूल भी शामिल थे.
पर्यावरण विशेषज्ञ चेतन अग्रवाल ने कहा, “हर बार प्रशासन थोड़ा-बहुत तोड़फोड़ करके लौट जाता था, लेकिन इस बार मामला अलग है. यह बड़े पैमाने पर किया गया है.” चेतन अग्रवाल अरावली पर लंबे समय से काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट लगातार रिपोर्ट मांग रहा है, इसलिए प्रशासन पर दबाव है.”

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फार्महाउस की अर्थव्यवस्था
कुछ दिन पहले तक अनंगपुर के फार्महाउस और रिसॉर्ट्स में रौनक थी. वहां जन्मदिन, सालगिरह और शादियों की पार्टियां हो रही थीं. सर्दियों में शादी के मौसम के दौरान यहां का माहौल और भी ज़्यादा जोशीला होता था. अरावली की पहाड़ियों में डीजे की आवाज़ गूंजती थी.
दिसंबर में एक बड़ी शादी महिपाल ग्रीन वैली में हुई, जिसमें 1,000 मेहमान शामिल हुए. रात एक बजे तक पार्टी चलती रही और “काला चश्मा” जैसे गानों पर लोग झूमते रहे. फरीदाबाद के विनय ने अपनी शादी यहीं की थी. उन्होंने बताया, “यहां की सजावट, खाना और स्टाफ सब बढ़िया था. जगह भी बहुत बड़ी थी, जिससे पार्टी शानदार लगी.”

इस फार्महाउस के लॉन, हॉल और स्विमिंग पूल को खासतौर पर मौज-मस्ती के लिए डिजाइन किया गया था. कुछ जगहें पिकनिक के लिए भी इस्तेमाल होती थीं और दिल्ली-एनसीआर के लोग वहां आते थे. सोशल मीडिया पर इनकी अच्छी खासी मौजूदगी थी—फूलों से सजे मंडप, लज़ीज़ खाना और शानदार सजावट के वीडियो-तस्वीरें अक्सर दिखती थीं.
महिपाल ग्रीन वैली की इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा था, “हर सजावट को खास दिन के लिए तैयार किया गया है.” लेकिन अब यह फार्महाउस, अमृत वैली ग्रीन जैसे कई अन्य के साथ तोड़ दिया गया है.
फार्महाउस के मालिक पाल ने कहा, “दिल्ली में जगह महंगी होती है, इसलिए हम सस्ते में शादी के लिए जगह देते थे. हमारे यहां काफी भीड़ रहती थी.”
कांग्रेस नेता विवेक प्रताप, जो तोड़े गए राज विला फार्महाउस के मालिक के बेटे हैं, उन्होंने आरोप लगाया, “सरकार गरीबों और विरोधियों को निशाना बना रही है, लेकिन अपने लोगों को बचा रही है. हमें पहले से कोई सूचना नहीं दी गई थी.”
अब इवेंट प्लानर इन जगहों को अपनी लिस्ट से हटा रहे हैं. लोग सोच रहे हैं कि त्योहारों में, जब भीड़ ज़्यादा होती है, तब वे आयोजन कहां करेंगे.
इस तोड़फोड़ से सिर्फ मालिक नहीं, बल्कि कैटरर, फूलवाले, डीजे और डेकोरेशन वाले जैसे छोटे कारोबारियों पर भी असर पड़ा है.
पर्यावरण कार्यकर्ता सुनील हरसाना का कहना है कि इन फार्महाउसों का बनना नेताओं की मदद के बिना संभव नहीं था.
राज विला, जो अब टूट चुका है, दो एकड़ में फैला हुआ था और वहां 2,000 मेहमानों के बैठने की जगह थी. इसके मालिक कांग्रेस नेता महेंद्र प्रताप सिंह हैं.

हरसाना ने कहा, “मंत्री और विधायक लगातार ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं और पर्यावरण के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं.”
अरावली पहाड़ियां— जो गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा से होकर गुजरती हैं—पर्यावरणीय खतरे झेल रही हैं. पहले अवैध खनन ने नुकसान पहुंचाया और अब फार्महाउसों और हॉलों ने, सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में खनन पर रोक लगाई थी, लेकिन 2010 के बाद से फार्महाउसों का तेज़ी से निर्माण शुरू हो गया.
फरीदाबाद नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया, “अरावली में पिछले कुछ सालों में अवैध कब्ज़े बढ़े हैं और वहां पर व्यावसायिक कामकाज चल रहे हैं. अब हम उन पर रोक लगा रहे हैं और ज़मीन वापस ले रहे हैं.”
यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही शुरू हुई. अब जेसीबी और बुलडोज़र इन फार्महाउसों को गिरा रहे हैं. अनंगपुर में एक बड़ी हवेली भी ध्वस्त कर दी गई.

वर्षों की कानूनी लड़ाई
हरियाणा के फरीदाबाद जिले के अरावली क्षेत्र में अवैध कब्जों को हटाने का काम लंबे समय बाद शुरू हुआ है. यहां की ज़मीन एक पुराने कानून पंजाब लैंड प्रिज़र्वेशन एक्ट (PLPA) के तहत संरक्षित है, जो जंगल और पर्यावरण की रक्षा के लिए बनाया गया था. इस कानून के मुताबिक, इस ज़मीन पर कोई भी निर्माण या व्यवसायिक काम नहीं हो सकता.
1992 में हरियाणा सरकार ने अनंगपुर और आसपास के गांवों की ज़मीन को इस कानून के तहत संरक्षित घोषित किया था, लेकिन 2013 में, कुछ ज़मीन मालिकों ने इस आदेश को कोर्ट में चुनौती दी और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. 2022 में कोर्ट ने फैसला दिया कि ऐसी संरक्षित ज़मीन पर बने सभी ढांचे हटाए जाएं.
नरिंदर सिंह बनाम दिवेश भूटानी का यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसने 2022 में वन भूमि पर सभी संरचनाओं को ध्वस्त करने का आदेश दिया.
इस बीच, 2020 में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने भी अरावली की पहाड़ियों पर बने अवैध फार्महाउस और इमारतों को गिराने का आदेश दिया था.

लेकिन प्रशासन की कार्रवाई में काफी देरी हुई. पर्यावरण विशेषज्ञ चेतन अग्रवाल ने कहा, “कोर्ट के कई आदेशों के बावजूद प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई. अब जाकर सरकार ने करीब ढाई साल बाद काम शुरू किया है.”

सरकार ने ड्रोन और सैटेलाइट के जरिए पूरे इलाके का सर्वे कराया और पाया कि करीब 786 एकड़ ज़मीन पर 6,793 अवैध ढांचे बने हुए हैं. इनमें फार्महाउस, बैंक्वेट हॉल, मंदिर, सरकारी इमारतें और छोटे घर शामिल हैं.
फरीदाबाद के वन अधिकारी विपिन सिंह ने बताया कि अब तक 265 एकड़ ज़मीन से अवैध निर्माण हटाए जा चुके हैं, जिसमें ज़्यादातर फार्महाउस और बैंक्वेट हॉल हैं, जिन मामलों में कोर्ट ने रोक लगाई है या जो सरकारी इमारतें हैं, उन्हें नहीं तोड़ा गया है.
Every encroachment in the forest MUST GO! Illegal #construction must stop. One CANNOT build in the name of an imaginary "God" by killing the living God; Nature. @NayabSainiBJP @moefcc @DEFCCOfficial #aravallis #forest #wildlife #encroachment #WildlifeConservation https://t.co/mbV0uan3n7
— Aravalli Bachao (@AravalliBachao) July 29, 2025
यह सिर्फ शुरुआत है. अभी पूरी कार्रवाई बाकी है और यह लड़ाई लंबी चल सकती है.
अरावली पहाड़ियों को बचाने की यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी दोनों में चल रही है. एनजीटी ने बीते कुछ सालों में अवैध खनन, कचरा जलाना, जंगलों में निर्माण जैसे कई मामलों में सुनवाई की है. 28 जुलाई 2025 को, एनजीटी ने गुड़गांव के सेक्टर 54 में एक मंदिर ट्रस्ट द्वारा अरावली की जमीन पर अवैध निर्माण के मामले में सरकार से जवाब मांगा है.
लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ता अभी जश्न नहीं मना रहे. वह देखना चाहते हैं कि प्रशासन आगे कितना गंभीर रहता है. पर्यावरण कार्यकर्ता हरसाना ने कहा, “अगर यह कार्रवाई पूरी होती है, तो इससे पूरी अरावली की रक्षा का रास्ता खुलेगा.”
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कानून तोड़ते कानून के रखवाले
अब बुलडोज़र नेताओं पर भी चलने लगे हैं. फरीदाबाद नगर निगम के एक अधिकारी ने पुष्टि की है कि अरावली इलाके में कई संपत्तियां नेताओं की हैं — इनमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों के नेता शामिल हैं. यहां तक कि एक पूर्व पर्यावरण और राजस्व राज्य मंत्री ने भी वहां फार्महाउस बना रखा है.
इस बार इन नेताओं की पीएलपीए (पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट) वाली ज़मीन पर बनी संपत्तियों पर भी कार्रवाई हुई. 11 जुलाई को जेसीबी और बुलडोज़र पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता करतार सिंह बधाना के फार्महाउस पर छह घंटे तक चले.
70 साल के बधाना ने कहा, “यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत की गई है. मैं प्रशासन का पूरा सहयोग कर रहा हूं.”

पिछले महीने जून में एक और बीजेपी नेता, समालखा विधायक मनमोहन बढाना का फार्महाउस भी तोड़ा गया. हरियाणा के पूर्व पर्यावरण मंत्री (2016-2019) विपुल गोयल की अरावली के अनंगपुर के पास अनखीर गांव में बनी संपत्ति पर भी बुलडोज़र चल चुका है.
फरवरी 2019 में, जब गोयल मंत्री थे, उस समय की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने अरावली की संरक्षित ज़मीन पर निर्माण की छूट देने के लिए पीएलपीए में बदलाव करने की कोशिश की थी, लेकिन मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस बदलाव पर रोक लगा दी.
हम यहां हज़ार साल से रह रहे हैं. पहले कभी किसी ने रोका नहीं, अब हमारे घर और फार्महाउस तोड़े जा रहे हैं. हमें तो लगता है अब हमारा वजूद ही खतरे में है
– प्रेम कृष्ण आर्य, अनंगपुर के निवासी
सुप्रीम कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा, “यह बेहद हैरान करने वाली बात है. क्या आप खुद को कानून से ऊपर समझते हैं? आप जंगल तबाह कर रहे हैं. ये मंज़ूर नहीं है.”
राज विला — कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पांच बार विधायक रह चुके महेंद्र प्रताप सिंह का दो एकड़ में फैला विवाह भवन भी ध्वस्तीकरण की सूची में था. ये जगह विपुल गोयल की संपत्ति के पास ही है. इस “शानदार” फार्महाउस का प्रचार वेडिंगवायर वेबसाइट पर होता था, जहां 2,000 लोगों की शादी कराने की सुविधा बताई गई थी. एक बुकिंग की कीमत 5.5 लाख रुपये थी.

17 जून की दोपहर, फरीदाबाद नगर निगम और वन विभाग की टीम छह बुलडोज़र लेकर पहुंची और महज़ तीन घंटे में राज विला को गिरा दिया.
कांग्रेस नेता महेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप ने आरोप लगाया, “प्रशासन गरीबों और विपक्षी नेताओं को निशाना बना रहा है. अपने करीबी लोगों को बचा रही है. हमें इस कार्रवाई से पहले कोई सूचना नहीं दी गई.”
वन भूमि पर बने फार्महाउसों को गिराए जाने के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट की शुरुआत की, जो 700 किलोमीटर लंबी हरित पट्टी में पुनर्वनीकरण यानी दोबारा पेड़ लगाने का काम करेगा.
पीएम मोदी ने कहा, “हमारा उद्देश्य इस पूरी श्रृंखला के इलाकों को फिर से हरा-भरा और संरक्षित बनाना है.”
वहीं, फरीदाबाद के जिला वन अधिकारी विपिन सिंह ने कहा कि विभाग निष्पक्ष रूप से कार्रवाई कर रहा है.
उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन ज़रूरी है, जो निर्देश मिलेगा, हम उसका पालन करेंगे. हम बिल्कुल निष्पक्ष तरीके से काम कर रहे हैं.”
फरीदाबाद का जिला वन अधिकारी कार्यालय. यह अभियान वन विभाग और नगर निगम ने मिलकर चलाया | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
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आखिर यह ज़मीन है किसकी?
अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने एक मुश्किल सवाल खड़ा कर दिया है—ज़मीन का मालिक कौन है? गांव वाले कह रहे हैं कि वे सामूहिक या साझा ज़मीन (जिसे शामलात ज़मीन कहते हैं) के असली मालिक हैं.
करीब 40 साल पहले तक यह ज़मीन ग्राम पंचायतों के पास थी, लेकिन 1970 के दशक में, हरियाणा सरकार ने एक पुराने कानून (पूर्वी पंजाब जोत अधिनियम, 1948) के तहत यह ज़मीन पंचायतों से लेकर गांव के लोगों में बांट दी. हर किसान को इस शामलात ज़मीन में बराबर का हिस्सा मिला.
इसका मकसद था खेती की ज़मीन को बेहतर तरीके से जोड़ना और खेती की पैदावार बढ़ाना, लेकिन कई गांवों में यह ज़मीन पहाड़ी और बंजर थी, जिसे ‘गैर मुमकिन पहाड़’ कहा जाता है, यानी वहां खेती नहीं हो सकती थी. इसलिए गांव वालों ने यह ज़मीन बेचनी शुरू कर दी—कुछ ने कंपनियों को, कुछ ने रियल एस्टेट वालों को.

गांव के लोगों ने अपने-अपने हिस्से की ज़मीन अलग करना (चकबंदी) शुरू किया और निजी कंपनियों को बेचना शुरू कर दिया, ऐसा अनंगपुर गांव के एक व्यक्ति अग्रवाल ने बताया.
लेकिन अब वन विभाग कह रहा है कि यह ज़मीन तो 1992 की एक सरकारी अधिसूचना के तहत संरक्षित है और इस पर गांव वालों का कोई हक नहीं बनता.
गांव वाले हार मानने को तैयार नहीं हैं. पिछले एक महीने से वे लगातार धरना दे रहे हैं. उनकी मांग है कि तोड़फोड़ रोकी जाए और गांव को ‘लाल डोरा’ क्षेत्र घोषित किया जाए, यानी राजस्व रिकॉर्ड में गांव की सीमा तय की जाए.

अनंगपुर के गेट पर एक बड़ा बोर्ड लगा है जिसमें लिखा है: “सरकार हमारा पहला लाल डोरा स्थापित करे.”
गांव में कुछ लोगों ने पहले ही ज़मीन बेच दी थी, कुछ लोगों ने फार्महाउस बना लिए थे या किराए पर दे दिए थे. अब जब तोड़फोड़ हुई है, तो उनकी कमाई का ज़रिया भी बंद हो गया है. गांव वालों को डर है कि अब अगला निशाना उनके घर होंगे, सिर्फ दुकानों या फार्महाउस पर कार्रवाई नहीं रुकेगी.
गांव के निवासी प्रेम कृष्ण आर्य ने कहा, “हम पिछले 1,000 सालों से यहां रह रहे हैं. पहले किसी ने नहीं रोका. अब हमारे घर और फार्महाउस गिराए जा रहे हैं, हमारा जीवन खतरे में है.”

13 जुलाई को गांव में एक महापंचायत हुई. इसमें धनखड़ खाप, बागपत खाप और कई दूसरी खापों ने समर्थन दिया. पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, सांसद दीपेंद्र हुड्डा और किसान नेता राकेश टिकैत जैसे बड़े नेता भी आंदोलन के साथ खड़े हुए.
दुष्यंत चौटाला ने कहा, “सरकार गरीबों को बेघर कर रही है और कुछ अमीर लोगों को फायदा दे रही है. फरीदाबाद में तोड़फोड़ तुरंत रोकी जानी चाहिए और कानून में बदलाव कर गरीबों को राहत दी जानी चाहिए.”

इस आंदोलन की आवाज़ मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी तक पहुंच गई. विरोध के तीन दिन बाद, अनंगपुर के गांव वालों का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला.
सैनी ने बैठक के बाद कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान करते हैं, लेकिन लोगों की भावनाओं का भी ध्यान रखेंगे. हम ऐसी राह निकालने की कोशिश करेंगे जिससे पर्यावरण भी बचे और लोगों को नुकसान भी न हो.”
लेकिन गांव वालों का कहना है कि उन्हें सिर्फ सहानुभूति मिली, कोई ठोस भरोसा नहीं. अब गांव के लगभग 15 वकील एक साथ मिलकर कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं. वह पुराने ज़मीन के दस्तावेज़, कानून की प्रतियां और अदालतों के पुराने आदेश ढूंढ रहे हैं.
वकील रोहित बढ़ाना ने कहा, “सरकार गांव वालों को हटाकर यहां बिल्डरों को लाना चाहती है. हम एक योद्धा समुदाय हैं. हमने मुगलों से लेकर अंग्रेज़ों तक का मुकाबला किया है. हम इस पहाड़ के असली निवासी हैं और इसे छोड़ने वाले नहीं हैं.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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