पटियाला: पटियाला में जिसे मिनी-ज़ू कहा जाता है, उसमें मिनी की तुलना में जानवरों की संख्या चार गुना है. उन्हें एक साथ ठूस दिया गया है और वो फैलने की कगार पर हैं. दो लुप्त प्रजाति के सारस, बत्तखों सहित दस अन्य जल में रहने वाले पक्षियों के साथ आधे से अधिक कीचड़ वाले तालाब में रहते हैं. ज़ू में 400 अन्य जानवरों में दलदली मगरमच्छ और भारतीय हॉग हिरण जैसी प्रजातियां भी हैं. इससे भी बुरी बात यह है कि इन सभी जानवरों का प्रबंधन पंजाब वन विभाग द्वारा तैनात सिर्फ एक वन रक्षक और तीन मजदूरों द्वारा किया जाता है.
और इसमें केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण द्वारा नियुक्त कोई पशुचिकित्सक, क्यूरेटर, जीवविज्ञानी या शिक्षक नहीं है. भारत के चिड़ियाघरों में काम करने वाले लोगों का गंभीर संकट है. दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण किए गए 74 चिड़ियाघरों में से 60 प्रतिशत में कर्मचारी उसकी निर्धारित क्षमता से भी कम थे, 36 प्रतिशत में कोई वर्किंग स्वास्थ्य सलाहकार समिति नहीं थी और उनमें से केवल 15 में ही अनुसंधान और संरक्षण प्रजनन सुविधाएं हैं. ये सभी केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण की गाइडलाइन का उल्लंघन कर रहे हैं.
जैसा कि रिलायंस इंडस्ट्रीज का गुजरात में नया निजी वंतारा चिड़ियाघर और उसका ग्रीन्स जूलॉजिकल, रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर अपनी शानदार सुविधाओं और भव्य पैमाने के साथ भारतीय और वैश्विक दर्शकों को आकर्षित कर रहा है, भारत के बाकी चिड़ियाघरों में बढ़ती समस्याओं को काफी हद तक नज़रअंदाज़ किया जा रहा है. वंतारा दुनिया के सबसे बड़े चिड़ियाघरों में से एक है जो कि 280 एकड़ में फैला है और इसमें 3,000 जानवर रहते हैं. इसमें आठ स्थायी पशुचिकित्सक भी हैं, जो किसी भी भारतीय चिड़ियाघर में सबसे अधिक हैं. तुलनात्मक रूप से 74 भारतीय चिड़ियाघरों में से जिन्होंने 2022-23 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट अपलोड की है, 10 प्रतिशत में एक भी पशुचिकित्सक नहीं है.
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण — देश में चिड़ियाघरों पर प्रमुख संगठन, जिसके पास भारतीय चिड़ियाघरों को पशु संरक्षण और अनुसंधान के अग्रणी में बदलने के लिए एक विजन प्लान है, लेकिन देश के अधिकांश चिड़ियाघर अभी भी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्षरत हैं.
यह भी पढ़ें: असम में ‘ग्रेनेड पर रतालू’, समीर बोर्डोलोई और उनके Green Commando ने कैसे खेती को फिर से जीवित कर दिया
वर्गीकरण भ्रम
पेशे से वन रक्षक संदीप कौर, पटियाला के बीर मोती बाग चिड़ियाघर में सब कुछ तय करती हैं — दलदली मगरमच्छ को दी जाने वाली मछली के प्रकार से लेकर नए पर्यटकों के लिए फुटपाथ के पक्के किए जाने तक. कौर ने दिप्रिंट से कहा, “चाहे वे जानवर हों या टूरिस्ट, मुझे ध्यान रखना पड़ता है कि चिड़ियाघर दोनों की देखभाल कैसे करेगा.” लेकिन तीन साल पहले चिड़ियाघर में तैनात होने से पहले कौर को जानवरों को संभालने का कोई अनुभव नहीं था.
चिड़ियाघर का प्रबंधन करना एक टफ जॉब है, लेकिन इसे अक्सर वन अधिकारियों के लिए एक नई पोस्टिंग की तरह देखा जाता है
— शुभोब्रतो घोष, वन्यजीव परियोजना प्रबंधक, भारत में विश्व पशु संरक्षण
देश के सभी चिड़ियाघर केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण द्वारा प्रकाशित चिड़ियाघर मान्यता नियम 2009 के आधार पर चलाए जाते हैं. इसके अनुसार, चिड़ियाघरों को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए चार अनिवार्य पदों की ज़रूरत है — पशुपालक, क्यूरेटर, शिक्षा अधिकारी और जीवविज्ञानी, जानवरों की देखभाल करने वाले और सफाईकर्मी. इसके अलावा, केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण ने यह भी स्पष्ट किया है कि पशु चिकित्सक और जीवविज्ञानी जानवरों के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार रहें, जबकि क्यूरेटर और शिक्षा अधिकारियों को जानवरों के साथ टूरिस्टों की बातचीत की सुविधा प्रदान करनी आनी चाहिए.
भारत में चिड़ियाघरों को जानवरों की संख्या और आकार के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है — बड़े, मध्यम, छोटे और बहुत छोटे (मिनी). बड़े, मध्यम और छोटे चिड़ियाघरों के लिए सभी चार भूमिकाएं अनिवार्य हैं, लेकिन पटियाला जैसे मिनी ज़ू के लिए यह सिर्फ एक सिफारिश है. जानवरों की संख्या और प्रकार के बावजूद, केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के अनुसार मिनी चिड़ियाघरों को केवल “स्थानीय स्तर पर उपलब्ध उचित योग्य अधिकारी” की ज़रूरत होती है. कौर यही भूमिका निभाती हैं.
और इसलिए उनकी परिस्थितियां देश में कई सरकार द्वारा संचालित मिनी चिड़ियाघरों और बचाव केंद्रों की तरह हैं — उन्हें प्रतिनियुक्ति पर तैनात वन अधिकारियों के हाथों में छोड़ दिया जाता है, चाहे उनके पास ज़रूरी विशेषज्ञता हो या नहीं. भारत में विश्व पशु संरक्षण के वन्यजीव परियोजना प्रबंधक और Indian Zoo Inquiry के लेखक शुभोब्रतो घोष ने कहा, “चिड़ियाघर का प्रबंधन करना एक टफ जॉब है, क्योंकि इसमें वन्यजीवों को संभालना शामिल है जो अन्य जानवरों से अलग हैं, लेकिन इसे अक्सर वन अधिकारियों के लिए एक और पोस्टिंग की तरह देखा जाता है.”
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के सदस्य सचिव संजय शुक्ला का तर्क है कि मिनी चिड़ियाघरों को अनिवार्य पोस्टिंग से छूट क्यों दी गई है. उन्होंने देश के पहाड़ी इलाकों में छोटे हिरण पार्कों और चिड़ियाघरों का उदाहरण देते हुए कहा, “ऐसी ज़रूरतें उन पर अनावश्यक बोझ डालेंगी क्योंकि कई ऐसे क्षेत्रों में स्थित हैं जहां योग्य अधिकारी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं.”
हालांकि, दिप्रिंट का विश्लेषण इसमें संदेह पैदा करता है क्योंकि यह दर्शाता है कि छोटे चिड़ियाघर विभिन्न आकार के होते हैं. केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण की परिभाषा के अनुसार, मिनी ज़ू वह हैं जिनका क्षेत्रफल 10 हेक्टेयर से कम है और जिनमें 100 से कम जानवर हैं, लेकिन पटियाला के मोती बाग चिड़ियाघर की तरह, कम से कम 10 अन्य ‘मिनी’ चिड़ियाघर हैं जो क्षमता से अधिक भरे हुए हैं, पश्चिम बंगाल के गार्चुमुक हिरण पार्क में तो लगभग 1,000 जानवर हैं.
उनका पैमाना और कार्यप्रणाली एक छोटे चिड़ियाघर से भी आगे है. जानवरों की संख्या के आधार पर, पटियाला चिड़ियाघर एक मध्यम चिड़ियाघर के रूप में योग्य होगा. अगर यह बदलाव किया जाता है तो कौर को क्यूरेटर, जीवविज्ञानी और शिक्षा अधिकारी की भूमिका अकेले नहीं निभानी पड़ेगी.
यह भी पढ़ें: पेंच में पर्यटकों की नजर अब सिर्फ टाइगर पर नहीं बल्कि खुले आसमान की ओर भी है
स्टाफ और टैलेंट की कमी
पटियाला चिड़ियाघर से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर मोहाली का महेंद्र चौधरी ज़ू है, जिसे छतबीड़ ज़ू के नाम से भी जाना जाता है. यह एक ‘बड़ा’ ज़ू है और इसके 1,800 जानवरों के लिए केवल दो पशुचिकित्सक हैं, जो हर हफ्ते, जानवरों की जांच करते हैं. उन्हें हर एक डिपार्टमेंट में तैनात 10 या उससे अधिक पशुपालकों से दैनिक रिपोर्ट भी मिलती है. हालांकि, छतबीड़ चिड़ियाघर एक अपवाद है, नियम नहीं. पटियाला और देश के कई अन्य चिड़ियाघरों में स्थानीय पॉलीक्लिनिक से केवल एक ऑन-कॉल पशुचिकित्सक होता है जो आपात स्थिति के दौरान दौरा करता है.
भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. एनवी अशरफ, जो नौ साल तक कोयंबटूर ज़ू के मुख्य पशुचिकित्सक थे, ने कहा, “अधिकांश चिड़ियाघरों में पशुचिकित्सक अनुभव से सीखते हैं, क्योंकि उन्हें जंगली जानवरों के साथ अपने नियमित संपर्क से प्राप्त अनुभव से सीखने का मौका मिलता है.”
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण में अनिवार्य पोस्टिंग की ज़रूरत के पीछे भी यही सिद्धांत है. केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के लिए यह भी ज़रूरी है कि हर एक चिड़ियाघर एक स्वास्थ्य सलाहकार समिति का गठन करे, जो जानवरों के स्वास्थ्य पर ध्यान देगी और साथ ही पशुओं के रहने की स्वच्छता और पर पशु चिकित्सकों को सलाह देगी. दिप्रिंट ने 74 चिड़ियाघरों की वार्षिक रिपोर्ट देखी और पाया कि उनमें से 36 प्रतिशत, जिनमें छोटे, मिनी और मध्यम आकार के चिड़ियाघर शामिल थे, में स्वास्थ्य सलाहकार समिति की बैठकें नहीं हुईं.
कुछ चिड़ियाघरों में स्वास्थ्य समितियां थीं, लेकिन इन समितियों ने या तो चिड़ियाघर का दौरा नहीं किया था, या पिछले 10 साल में एक भी बैठक नहीं की थी. अलग-अलग आकार के कुल पांच चिड़ियाघर-कर्नाटक में इंदिरा प्रियदर्शिनी चिड़ियाघर, पश्चिम बंगाल में एडिना डियर पार्क, महाराष्ट्र में राजीव गांधी प्राणी उद्यान, हिमाचल प्रदेश में नेहरू फिजेंट्री और तेलंगाना में किन्नरसानी डियर पार्क — में पूर्णकालिक पशुचिकित्सक नहीं हैं और वर्षों से स्वास्थ्य सलाहकार समिति की बैठक नहीं हुई है.
घरेलू पशु अभ्यास से ऑन-कॉल पशुचिकित्सक अपनी इच्छा से विदेशी पशु अभ्यास की दुनिया में कदम नहीं रख पाएगा
—डॉ. एनवी अशरफ, भारतीय वन्यजीव ट्रस्ट के वरिष्ठ सलाहकार
शुक्ला, जो एक आईएफएस अधिकारी हैं, ने कहा, “निश्चित रूप से कुछ चिड़ियाघरों में कर्मचारियों की समस्याएं हैं, उन्हें पद संभालने के लिए पूर्णकालिक पशुचिकित्सक नहीं मिल रहे हैं. कभी-कभी कोई पशुचिकित्सक सेवानिवृत्त हो जाता है या चला जाता है और फिर पद खाली रह जाता है क्योंकि अधिकांश सार्वजनिक चिड़ियाघरों में भर्ती भी एक लंबी प्रक्रिया है.” उन्होंने कहा कि कभी-कभी पशुचिकित्सक छोटे चिड़ियाघरों या मिनी ज़ू में पद नहीं लेना चाहते, यह सोचकर कि यह उनके करियर के लिए अच्छा नहीं होगा. जब चिड़ियाघरों को पूर्णकालिक पशुचिकित्सक नहीं मिल पाता है, तो वे आपातकालीन प्रक्रियाओं के लिए स्थानीय पशुचिकित्सा महाविद्यालयों और क्लीनिकों से समझौता कर लेते हैं.
विशाखापत्तनम से लेकर मनाली और सूरत तक, दिप्रिंट ने जिन चिड़ियाघरों को देखा उनमें से 80 प्रतिशत शहरों और बड़े कस्बों में स्थित हैं. अशरफ ने कहा, “ज्यादातर चिड़ियाघर शहरों में हैं, जहां पशु चिकित्सकों को काम पर लाने में कोई समस्या नहीं है.” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन बहुत सारे पशुचिकित्सक जिन्होंने घरेलू जानवरों का इलाज किया होगा, उनके पास जंगली जानवरों, विशेष रूप से कैद जंगली जानवरों के साथ अनुभव की कमी है. अगर किसी पशुचिकित्सक ने पहले कभी सांप या साही का सामना नहीं किया है, तो उसके लिए इसका इलाज करना और भी मुश्किल हो जाएगा.”
हालांकि, केवल पशुचिकित्सक ही किसी जानवर के स्वास्थ्य के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं, जीवविज्ञानी और चिड़ियाघर के रखवाले भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कोयंबटूर ज़ू में अपने स्वयं के अनुभव के बारे में बोलते हुए, अशरफ ने कहा कि चिड़ियाघर के रखवाले, जीवविज्ञानी और पशु चिकित्सकों को बाड़ों के अंदर उचित आहार निर्माण और समृद्ध जीवन सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना होगा.
उन्होंने कहा, “पाम सिवेट का उदाहरण लें. वर्गीकरण की दृष्टि से इसे मांसाहारी वर्ग में रखा गया है, इसलिए पशुचिकित्सक इसके लिए मांस-आधारित आहार निर्धारित करने के लिए प्रलोभित हो सकता है, लेकिन केवल एक वन्यजीव जीवविज्ञानी ही आपको बता सकता है कि वास्तव में पाम सिवेट बहुत सारे फल खाते हैं और उनके आहार में बहुत कम मांस की ज़रूरत पड़ती है.”
यह भी पढ़ें: रॉयल, रिच और राजपूती – भारतीय सिंगल Malt Whisky का कैसा रहा ग्लोबल सफर
ज़ू किसके लिए है?
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण की स्थापना 1992 में भारतीय चिड़ियाघरों के कामकाज के तरीके का मूल्यांकन करने और जानवरों के पूर्व-स्थिति संरक्षण को विनियमित करने के लिए की गई थी. 2022 से केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के सदस्य सचिव रहे शुक्ला ने कहा, “जिस समय केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण की स्थापना की गई, उस समय देश में 500 से अधिक विभिन्न चिड़ियाघर थे और कठोर मूल्यांकन के बाद, हमने खराब योजना और मानकों के लिए उनमें से 300 से अधिक को बंद कर दिया और उनकी मान्यता रद्द कर दी.” उन्होंने कहा, “अब, लगभग 157 चिड़ियाघर हैं, जिनका हर दो साल में मूल्यांकन किया जाता है, जिसके आधार पर उन्हें या तो मान्यता दी जाती है या मान्यता रद्द कर दी जाती है.”
वन्यजीव संरक्षणवादी और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पूर्व सदस्य प्रेरणा सिंह बिंद्रा 21वीं सदी में चिड़ियाघरों के होने के आधार पर सवाल उठाती हैं क्योंकि वे जंगली जानवरों को कैद में रखने को बढ़ावा देते हैं. उन्होंने कहा, “वैश्विक सोच चिड़ियाघरों से दूर जाने की है, उन्हें चरणबद्ध तरीके से खत्म करने के बजाय, हम बड़े और शानदार चिड़ियाघरों का निर्माण कर रहे हैं. हम उन चिड़ियाघरों के निजी स्वामित्व की सुविधा दे रहे हैं जिनकी कोई जवाबदेही नहीं है और ऐसे नियम भी लाए हैं जो वन भूमि में चिड़ियाघरों की स्थापना को सक्षम बनाते हैं.” उन्होंने कहा, समय की मांग है कि संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाए और “बंदी जानवरों का संरक्षण मूल्य शून्य है.”
जिस समय केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण की स्थापना की गई थी, उस समय देश में 500 से अधिक विभिन्न चिड़ियाघर थे और कठोर मूल्यांकन के बाद, हमने खराब योजना और मानकों के लिए उनमें से 300 से अधिक को बंद कर दिया और उनकी मान्यता रद्द कर दी.
— संजय शुक्ला, सदस्य सचिव, केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण बिंद्रा के सवाल पूछने के तरीके से सहमत है. यह स्पष्ट है कि भारत में किसी भी नए ज़ू को केवल तभी मंजूरी दी जाएगी जब वे जानवरों को आवास के उच्चतम मानक प्रदान करेंगे, वन्यजीवों पर अत्याधुनिक शोध में योगदान देंगे और/या जनता को संरक्षण के बारे में शिक्षित करेंगे.
अपने अस्तित्व के पिछले तीन दशकों में केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण ने चिड़ियाघरों में संरक्षण प्रजनन के लिए मास्टर प्लान और प्रस्तावों जैसी ज़रूरतों के माध्यम से भारतीय चिड़ियाघरों के मानक को ऊंचा उठाने की कोशिश की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे संरक्षण में योगदान दें. ऐसे कुछ ज़ू हैं जिनका मूल्यांकन केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण ने स्वयं योजना, संसाधन उपलब्धता, संरक्षण, अनुसंधान गतिविधि और टूरिस्ट मैनेजमेंट जैसे मापदंडों के आधार पर ‘बहुत अच्छा’, ‘अच्छा’, ‘निष्पक्ष’ या ‘पर्याप्त सुधार की ज़रूरत’ के रूप में किया है. 2022 में केवल पश्चिम बंगाल में पद्मजा नायडू हिमालयन जूलॉजिकल पार्क, तमिलनाडु में अरिग्नार अन्ना जूलॉजिकल पार्क और कर्नाटक में श्री चामराजेंद्र जूलॉजिकल गार्डन को इन आधारों पर 80 प्रतिशत और उससे ऊपर स्थान दिया गया था. वे पांच चिड़ियाघरों में से तीन हैं जिन्हें ‘बहुत अच्छी’ रेटिंग दी गई है.
घोष जिन्होंने भारत और विदेश दोनों में चिड़ियाघरों की यात्रा और विश्लेषण किया है, संरक्षण प्रजनन में चिड़ियाघरों की भूमिका के बारे में बात करते हैं. उन्होंने कहा, “चिड़ियाघरों को लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन में मदद करनी चाहिए और फिर जब संभव हो तो उन्हें जंगल वापिस भेज देना चाहिए. यह केवल जानवरों को अनिश्चित काल तक रखने की जगह नहीं हो सकती – जो न तो वन्य जीवन और न ही शिक्षा में योगदान देती है.”
उदाहरण के लिए, ‘स्नेकमैन ऑफ इंडिया’ रोमुलस व्हिटेकर और उनकी पूर्व पत्नी ज़ै व्हिटेकर द्वारा स्थापित अग्रणी मद्रास क्रोकोडाइल बैंक ट्रस्ट को लें. 1976 में जब ट्रस्ट की स्थापना हुई, तब भारतीय उपमहाद्वीप में मगरमच्छ बेहद खतरे में थे. व्हिटेकर ने विभिन्न मगरमच्छ प्रजातियों के प्रजनन के लिए एक प्रोग्राम शुरू किया और उन्हें मनोरंजन के लिए प्रदर्शित करने के बजाय, एमसीबीटी उन्हें जंगल में — उनके मूल आवास — में ‘पुनर्स्थापित’ कर दिया.
ज़ै व्हिटेकर ने दिप्रिंट से कहा, “हमने सरीसृपों को संरक्षण के दायरे में लाया. पहले, यह सिर्फ एक पक्षी और स्तनपायी केंद्रित स्थान था.”
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण अनिवार्य अधिकारियों की संख्या के अलावा, ट्रस्ट न केवल स्कूली छात्रों के लिए बल्कि तमिलनाडु में मगरमच्छ और सरीसृप निवास स्थान पर मछली पकड़ने वाले गांवों के लिए शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों में भी योगदान देता है, इसमें 690 से अधिक जानवर हैं और 2024 में ही, इसने कम से कम 400 मगरमच्छों को अन्य ज़ू में स्थानांतरित कर दिया. ट्रस्ट, जिसकी ‘अच्छी’ रेटिंग है, चिड़ियाघरों के अनुसरण के लिए एक आदर्श मॉडल है — इसके संचालन से क्षेत्र के लोगों और जानवरों दोनों को लाभ होता है.
चिड़ियाघरों को लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन में मदद करनी चाहिए और फिर जब संभव हो तो उन्हें जंगल में वापिस भेज देना चाहिए. यह केवल जानवरों को अनिश्चित काल तक रखने की जगह नहीं हो सकती — जो न तो वन्य जीवन और न ही शिक्षा में योगदान देती है
— शुभोब्रतो घोष, वन्यजीव परियोजना प्रबंधक, भारत में विश्व पशु संरक्षण
बिंद्रा ने कहा कि संरक्षण प्रजनन के इस रूप में संलग्न ज़ू की संख्या “उंगलियों पर गिनी जा सकती है” और दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण किए गए केवल 15 चिड़ियाघरों ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में किसी भी प्रकार के अनुसंधान या संरक्षण प्रजनन का उल्लेख किया है. घोष के अनुसार, अधिकांश भारतीय चिड़ियाघरों में अनुसंधान की प्रकृति भी विवादास्पद है. उन्होंने कहा, “ज़ू में बंदी जानवरों पर किया गया कोई भी आनुवंशिक या व्यवहारिक शोध जंगली जानवरों पर लागू नहीं हो सकता है, इसलिए इस शोध का उद्देश्य सीमित है.”
यह भी पढ़ें: मुंबई का एक पुलिस अधिकारी कैसे बना कुत्तों का सबसे अच्छा दोस्त, क्रूरता के खिलाफ FIR भी दर्ज करते है
भारतीय चिड़ियाघरों का भविष्य
केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के सदस्य सचिव शुक्ला, भारतीय चिड़ियाघरों में स्टाफिंग और उनकी विज़न योजनाओं दोनों की कमियों से अवगत हैं. वे चिड़ियाघरों को अपने कर्मियों के लिए क्षमता-निर्माण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं और प्रशिक्षण में स्वतंत्र रूप से शामिल होने की ज़रूरत के बारे में जानते हैं. केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण जीवविज्ञानियों और पशु चिकित्सकों के लिए सीमित संख्या में कार्यशालाएं देता है, लेकिन यह चिड़ियाघरों को अपने श्रमिकों के कौशल विकास में लगातार निवेश करने के लिए भी कहता है.
यह चिड़ियाघरों के प्रबंधन में अंतर-चिड़ियाघर सहयोग और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करता है. शुक्ला ने इसके विज़न प्लान 2021-31 को मार्गदर्शक दस्तावेज़ की तरह रेखांकित किया. यह सूक्ष्म जीवविज्ञानी रिकॉर्ड, संरक्षण शिक्षा योजना और प्रजनन कार्यक्रमों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से लेकर सब कुछ प्रस्तावित करता है. जब तक भारतीय चिड़ियाघर दायरे और दूरदर्शिता की इस चुनौती को स्वीकार करने में सक्षम नहीं हो जाते, केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के शब्दों में, वे केवल “सार्वजनिक मनोरंजन के लिए अस्थायी पशु संग्रह” बने रहेंगे.
कुछ चिड़ियाघर चुनौती के लिए तैयार हो गए हैं और प्रासंगिक बने रहने और सभी उम्र के टूरिस्टों को आकर्षित करने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं. उदाहरण के लिए दिल्ली के राष्ट्रीय प्राणी उद्यान ने एक “पशु गोद लेने का कार्यक्रम” शुरू किया है, जो टूरिस्टों को एक जानवर गोद लेने और उसकी देखभाल और रखरखाव के लिए भुगतान करने की सुविधा देता है. यह चिड़ियाघरों की आय को बढ़ाएगा है और उन्हें सुविधाओं को उन्नत करने और अपने कर्मचारियों को कुशल बनाने में मदद करेगा, साथ ही आम जनता को वन्यजीवों में गहरी रुचि लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा. निदेशक के कार्यालय के बाहर एक इलेक्ट्रिक कैडी में, एक व्यक्ति और उसकी छोटी बेटी एक आवेदन पत्र लेकर प्रतीक्षा कर रहे हैं. व्यक्ति ने कहा, “उन्हें चित्तीदार हिरण पसंद है, खासकर बांबी देखने के बाद. बेटी ने उत्साहित होकर कहा, “जब मैं इस अप्रैल में आठ साल की हो जाऊंगी तो हम एक बांबी गोद लेंगे!”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मोदी के योगा मैट से लेकर नागालैंड के शहद तक, NECTAR पहुंची नॉर्थ ईस्ट से जापान और नीदरलैंड तक