scorecardresearch
Saturday, 21 December, 2024
होमफीचरदिल्ली-NCR में CGHS पेंशनभोगियों को वैकुंठ सा सुख दे रहे आयुर्वेदिक केंद्र, सबकी पसंद पंचकर्म

दिल्ली-NCR में CGHS पेंशनभोगियों को वैकुंठ सा सुख दे रहे आयुर्वेदिक केंद्र, सबकी पसंद पंचकर्म

मोदी सरकार द्वारा आयुष को बढ़ावा देने के क्रम में आठ नए निजी आयुर्वेद-योग केंद्र अब दिल्ली-एनसीआर में केंद्र सरकार के कर्मचारियों, उनके परिवारों, पेंशनभोगियों और सीजीएचएस कार्ड धारकों को स्वास्थ्य सेवाएं देंगे.

Text Size:

नई दिल्ली: 71 साल की सावित्री पिछले तीन सालों से सर्वाइकल और दाहिने हाथ में जकड़न से परेशान हैं. नई दिल्ली के कई निजी अस्पतालों में उन्होंने इलाज कराया लेकिन कोई राहत नहीं मिली. फिर जुलाई में, बुजुर्ग पड़ोसियों के साथ एक सत्संग के दौरान उन्हें केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए नए आयुष डे केयर निजी थेरेपी केंद्रों के बारे में पता चला.

उन्होंने ऑनलाइन सेंटर की खोज शुरू कर दी और उत्तर पश्चिमी दिल्ली के रानी बाग में अपने घर से सिर्फ 10 मिनट की दूरी पर ही उन्हें एक सेंटर मिल गया. तुलसी आयुर्वेदिक एवं योग केंद्र समेत कुछ अन्य केंद्र इस वर्ष राजधानी में पेंशनभोगियों के लिए बड़ी राहत लेकर आए हैं. यह भारत की सबसे पुरानी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए एक नई शुरुआत है. और यह सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के बीच इन दिनों काफी चर्चा का विषय है. व्हाट्सएप ग्रुप समेत सोशल मीडिया और अपने नेटवर्क के माध्यम से केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) पैनल में शामिल होने की खबर को फैलाया जा रहा है. पेंशनभोगियों के लिए पंचकर्म (आयुर्वेदिक उपचार) अभी सबसे नया और पसंदीदा विषय है.

More than 100 patients rushed to Tulsi Ayurvedic and Yoga centre in first 15 days after the empanelment announced on 28th June this year | Photo: Krishan Murari/ThePrint
इस वर्ष 28 जून को पैनल में शामिल होने के बाद पहले 15 दिनों में 100 से अधिक मरीज तुलसी आयुर्वेदिक और योग केंद्र पहुंचे | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए सीजीएचएस के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर आयुष डे केयर सुविधाओं की 2020 में दिल्ली-एनसीआर में शुरुआत हुई थी.

नरेंद्र मोदी सरकार के आयुष का विस्तार करने के कदम ने दिल्ली-एनसीआर में हजारों लाभार्थियों के लिए इलाज का एक नया चैनल खोल दिया है. और पेंशनभोगी राहत की इस नई संभावना से खुश हैं क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ उन्हें एलोपैथी और इसके दुष्प्रभाव असहनीय लगने लगते हैं.

डॉ वीणा अरोड़ा, पांच साल से सरस्वती विहार में तुलसी आयुर्वेदिक एंड योग केंद्र चला रही हैं. वह कहती हैं, “लोग इंजेक्शन और दवाओं से थक चुके हैं. थेरेपी के माध्यम से, शरीर को डिटॉक्सीफाई किया जाता है, जिससे मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं.”

Dr. Veena Arora, who is practioning ayurveda treatment for last 28 years and currently runs a centre which is empanelled under CGHS | Photo: Krishan Murari/ThePrint
डॉ. वीणा अरोड़ा, पिछले 28 वर्षों से आयुर्वेद उपचार कर रही हैं और वर्तमान में एक केंद्र चलाती हैं जो सीजीएचएस के पैनल से जुड़ा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

पिछले 28 वर्षों में, जब से उन्होंने इस क्षेत्र में काम करना शुरू किया है, जो एक चीज़ नहीं बदली है वह है एलोपैथी बनाम आयुर्वेद की बहस, पारंपरिक के साथ आधुनिक और प्राचीन भारतीय पद्धतियों के साथ पश्चिमी चिकित्सा का टकराव.

भारत सरकार के लिए इन बहसों का कोई औचित्य नहीं हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मोदी सरकार चाहती है कि सभी तरह के चिकित्सा उपचार एक साथ मौजूद हों. यह पारंपरिक भारतीय प्रथाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है जैसे चीन ने दुनिया भर में एक्यूपंक्चर का प्रचार किया.

2023-24 के बजट में, आयुष मंत्रालय का आवंटन 20 प्रतिशत बढ़ाकर 3,647 करोड़ रुपये कर दिया गया, जिसमें आयुष अनुसंधान परिषदों के माध्यम से आयुष प्रणालियों में साक्ष्य-आधारित अनुसंधान को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया.

सीजीएचएस में संयुक्त निदेशक (आयुष) डॉ. अशोक एम. इति ने कहा, “आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा हमारे अपने हैं, इसलिए इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए.”


यह भी पढ़ें: ‘जन्म से मृत्यु तक, हम सबसे अलग हैं’: Modi के UCC का विरोध क्यों कर रहे हैं झारखंड के आदिवासी


आयुर्वेदिक उपचार को बढ़ावा

जुलाई की एक उमस भरी दोपहर में सावित्री रिक्शे से सरस्वती विहार के केंद्र पहुंची. उनके पति केंद्र सरकार के कर्मचारी रह चुके हैं, इसलिए वह भी एक लाभार्थी है. वह अस्पताल के चक्करों, अनगिनत फॉर्मों, गोलियों, डॉक्टरों और विशेषज्ञों से थक चुकी थी क्योंकि हर कोई अलग-अलग ढंग से बीमारी का इलाज कर रहा था. वह इन सबसे आजिज आ चुकी थी.

उन्होंने बताया, “फिजियोथेरेपी कराई, जिससे थोड़ा आराम मिला लेकिन लंबे समय तक चलने वाला ये समाधान नहीं है.”

नई दिल्ली में पांच डे-केयर निजी थेरेपी केंद्र हैं, एक नोएडा में और एक गाजियाबाद में है. इन केंद्रों को सरकार की आयुष डे केयर थेरेपी सेंटर सूची में शामिल किया गया है. 2020 के पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद इस साल 28 जून को दिल्ली-एनसीआर में 8 केंद्रों को शॉर्टलिस्ट किया गया.

आयुष मंत्रालय ने 2020 में एक बयान में कहा था, “बड़े पैमाने पर जनता और सभी सीजीएचएस लाभार्थियों के बीच आयुष दवाओं की बढ़ती लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय द्वारा यह कदम उठाया गया है.”

हालांकि सावित्री के अब तक केवल तीन सत्र हुए हैं लेकिन उनका कहना है कि पहले से वह काफी अच्छा महसूस कर रही हैं. उन्होंने कहा, “उनके दाहिने हाथ की जकड़न काफी कम हो गई है”.

सावित्री को अब कुछ सुधार महसूस होने लगा है. अपने दाहिने हाथ को ऊपर उठाते हुए वह कहती हैं, “मुझे दो दिनों के भीतर अपने दाहिने हाथ पर असर दिखाई देने लगा. पहले से दर्द थोड़ा कम हुआ है.”

लेकिन लगभग तीन दशकों से आयुर्वेदिक चिकित्सक वीणा अरोड़ा का कहना है कि पूरी तरह ठीक होने में थोड़ा समय लगेगा.

सावित्री को बीच में ही टोकते हुए अरोड़ा कहती हैं, “आंटी, आपको गठिया (अर्थराइटिस) है, इसलिए आपके हाथ अकड़ गए हैं. आयुर्वेदिक उपचार धीरे-धीरे असर दिखाना शुरू करेगा.”

अरोड़ा के मुताबिक, एलोपैथी डॉक्टर भी उनके पास इलाज के लिए आते हैं.

आयुर्वेद, नेचुरोपैथी (प्राकृतिक चिकित्सा) और योग जैसी स्वदेशी स्वास्थ्य प्रणालियों की स्वीकार्यता पिछले दो दशकों में भारतीयों के बीच काफी बढ़ी है. पहले बाबा रामदेव के अभियान के साथ और फिर मोदी सरकार आने के बाद. लेकिन पेंशनभोगियों के सीजीएचएस लाभों में अब तक केवल आधुनिक एलोपैथिक उपचार शामिल था.

2014 से पहले आयुष सिर्फ एक विभाग हुआ करता था लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद इसे मंत्रालय बना दिया गया. प्रधानमंत्री ने भी, इसे “आर्कटिक से अंटार्कटिका” तक प्रसिद्ध बनाने के उद्देश्य से वैश्विक मंच पर भारतीय उपचारों को बढ़ावा दिया है. वहीं कोविड-19 महामारी ने आयुष चिकित्सा को घर-घर तक पहुंचा दिया.

2021 में, आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद और योग चिकित्सा पर आधारित एक राष्ट्रीय नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल जारी किया, जिसमें अजवाइन के साथ भाप लेने, गर्म पानी से गरारे करने और नेटिपोट का उपयोग करने का सुझाव दिया गया. मोदी ने भी लोगों को आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया और कहा कि पारंपरिक दवाओं के लिए “वैश्विक स्तर पर और भी अधिक लोकप्रिय” होने का यह सही समय है. पिछले साल, उन्होंने गोवा, गाजियाबाद और नई दिल्ली में आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी में तीन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय आयुष संस्थानों का भी उद्घाटन किया.

उद्घाटन के दौरान उन्होंने कहा था, “दुनिया अब हमारी पारंपरिक चिकित्सा की ओर लौट रही है और योग और आयुर्वेद दुनिया के लिए नई उम्मीद हैं.” वर्तमान में भारत में 453 आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय और उससे संलग्न अस्पताल हैं.

प्रधानमंत्री ने यह भी घोषणा की कि आयुष डॉक्टरों को अब एलोपैथिक डॉक्टरों के समान मान्यता प्राप्त है. उन्होंने कहा, “इसने चिकित्सा उपचार को बदलकर रख दिया है.”


यह भी पढ़ें: दो दशक बाद झारखंड ने जल-जंगल-ज़मीन के लिए बनाया PESA नियम, कितनी बदलेगी ग्राम सभाओं की तस्वीर


पंचकर्म, शिरोधारा के साथ और भी बहुत कुछ

अब जब वीणा अरोड़ा का केंद्र पैनल में आ गया है, तो इन दिनों उनके फोन की घंटी लगातार बजती रहती है. दूसरी ओर मरीज़ सीजीएचएस के बारे में जानकारी पूछ रहे होते हैं. योजना शुरू होने के पहले 15 दिनों में 100 से अधिक सीजीएचएस मरीज उनके केंद्र में आ चुके हैं. अधिकांश 60 वर्ष से अधिक आयु के पेंशनभोगी हैं.

लेकिन एक निजी डे केयर सुविधा में इलाज पाने के लिए, उन्हें पहले रेफरल कार्ड के लिए दिल्ली एनसीआर में 138 सीजीएचएस डिस्पेंसरी में से किसी एक से संपर्क करना होता है. यह योजना उन्हें 14 दिनों तक मुफ्त इलाज कराने की सुविधा देती है. तीन महीने के बाद, यदि समस्या बनी रहती है, तो लाभार्थी 14-दिवसीय चिकित्सा के एक और दौर से गुजर सकता है.

लोग पंचकर्म उपचार का अनुभव करना चाहते हैं, जो वमन, विरेचन, नस्यम और अन्य पारंपरिक प्रथाओं के माध्यम से शरीर, मन और चेतना के आयुर्वेदिक सिद्धांतों पर आधारित है.

One of the therapist showering steam on the patient as a part of Panchkarma therapy | Photo: Krishan Murari/ThePrint
एक मरीज को भाप देता थेरेपिस्ट | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

अरोड़ा का केंद्र अब हमेशा मरीजों से भरा रहता है. चार-पांच छोटे कमरों में अलग-अलग तरह की पंचकर्म थेरेपी दी जाती है. एक कमरे में, छेद वाला एक गोलाकार जार लटका हुआ है. इसका उपयोग शिरोधारा में किया जाता है. यह एक उपचार पद्धति है जिसमें औषधीय तेल रोगी के माथे पर धीरे-धीरे और लगातार टपकता है. दूसरे कमरे में मरीजों को भाप दी जाती है.

अरोड़ा के केंद्र में 13 थेरेपिस्ट हैं जिनमें महिलाएं और पुरुष दोनों हैं, जिनके पास पंचकर्म उपचार में विशेषज्ञता है. केंद्र के एक कमरे में कई लोग पारंपरिक पोटली मसाज के लिए जड़ी-बूटियां उबालने में व्यस्त नज़र आते हैं.

कमल सनहोत्रा (69) आयुर्वेदिक थेरेपी से काफी खुश नजर आए. पारंपरिक तेल मालिश और उसके बाद भाप उपचार के बाद, वह 45 मिनट बाद एक कप में ग्रीन टी लेकर बाहर आए. उनके पिछले दो-तीन साल काफी दर्द भरे बीते हैं.

भारत सरकार के पर्यटन विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी सनहोत्रा बताते हैं, “मेरा लगभग 80 प्रतिशत शरीर आराम महसूस कर रहा है. मैं इस इलाज से बहुत खुश हूं. इससे प्राकृतिक राहत मिलती है. आयुर्वेद और पंचकर्म उपचार के प्राचीन तरीके रहे हैं लेकिन पहले हमारे पास केवल एलोपैथी ही एक विकल्प था.” वह वैकल्पिक उपचारों में दृढ़ विश्वास रखते हैं जिनका समाधान एलोपैथी नहीं कर सकती.

पिछले कुछ वर्षों में, आयुर्वेद की पहचान इस ढंग से बन गई कि सिर्फ धनी वर्ग ही इसका खर्चा उठा सकता है. आयुर्वेदिक डॉक्टर भी इस बात से सहमत हैं कि पारंपरिक आयुष उपचार एलोपैथी की तुलना में अधिक महंगा है. अरोड़ा के केंद्र में 45-50 मिनट के सत्र की लागत 300-1500 रुपये के बीच है, जो थेरेपी के आधार पर निर्धारित होती है. अधिकांश पेंशनभोगी इसे वहन नहीं कर सकते.

सनहोत्रा अपनी ग्रीन टी पीते हुए कहते हैं, “सेवानिवृत्ति के बाद, वेतन पहले जैसा नहीं रहता है. लेकिन अब जब निजी केंद्रों में पंचकर्म उपचार को सीजीएचएस पैनल के तहत लाया गया है, तो हम ये करवा पा रहे हैं.”

डॉ. प्रियंका तिवारी, जो पश्चिम विहार के एक अन्य पैनलबद्ध केंद्र, डाल्को हेल्थकेयर में काम करती हैं, आयुर्वेद चिकित्सा को एलोपैथी की तरह सस्ती बनाना चाहती हैं लेकिन यह सरकारी समर्थन के बिना नहीं किया जा सकता है.

तिवारी ने कहा, “अभी हमारे पास सीमित बुनियादी ढांचा है. मुख्य चुनौती आयुष उपचार को सभी के लिए किफायती बनाना है. गरीब अभी इसे वहन नहीं कर सकते.”

पश्चिम विहार (पश्चिम) मेट्रो स्टेशन की पहली मंजिल पर डाल्को आयुर्वेदिक पंचकर्म केंद्र | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

यह भी पढ़ें: भारतीय शहरों में हो रही नई क्रांति, रिवरफ्रंट बनाने की देश में क्यों मची है होड़


केंद्रों के लिए एनएबीएच मान्यता जरूरी

दिल्ली-एनसीआर के करीब 20 लाख लोग अब रेफरल मिलने पर इन केंद्रों का रुख कर सकते हैं. इसमें 6,21,033 सीजीएचएस कार्ड धारक हैं जो परिवार समेत 19,31,822 हो जाते हैं. वहीं पेंशनभोगियों की संख्या 5,49,312 है. लाभार्थियों में केंद्र सरकार के विभागों, लोकसभा, राज्यसभा सचिवालय, सीएजी, सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के नौकरशाह और कर्मचारी शामिल हैं.

सीजीएचएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हम चाहते हैं कि मूल्यांकन पहले दिल्ली में किया जाए. अभी हम 8 केंद्रों का आकलन कर रहे हैं. और हमारे पास 35 केंद्रों से आवेदन लंबित हैं. धीरे-धीरे, एनएबीएच मान्यता प्राप्त होने के बाद, उन्हें भी इसमें जोड़ा जाएगा.”

दिल्ली के आरके पुरम स्थित सीजीएचएस का मुख्यालय | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

साल भर चलने वाले पायलट प्रोजेक्ट को शुरू करने और मौजूदा डे केयर सुविधाओं में आयुष उपचारों को जोड़ने से पहले, स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुर्वेद और नेचुरोपैथी के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया, ताकि इस बात पर विचार किया जा सके कि इस योजना का विस्तार कैसे किया जा सकता है, उपचारों की पेशकश कैसे की जा सकती है और इसके लिए खाका क्या हो.

31 मई को, सरकार ने नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एनएबीएच) से मान्यता प्राप्त आयुष केंद्रों से सीजीएचएस के तहत पैनल में शामिल होने के लिए आवेदन आमंत्रित किए. और अंततः, जून के अंतिम सप्ताह में, सीजीएचएस और आठ शॉर्टलिस्टेड केंद्रों के बीच मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए गए. छह केवल आयुर्वेदिक उपचार प्रदान करते हैं जबकि दो केंद्र- एक दिल्ली में और दूसरा गाजियाबाद में- आयुर्वेद, योग और नेचुरोपैथी उपचार भी प्रदान करते हैं.

अरोड़ा के केंद्र का उपयोग 2020 में पायलट प्रोजेक्ट के लिए भी किया गया था, हालांकि उस समय कई केंद्रों की तरह इसके पास एनएबीएच मान्यता नहीं थी. स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि उस वक्त गुणवत्ता मानकों का ध्यान नहीं रखा गया, जिसके परिणामस्वरूप मरीजों की ओर से साफ-सफाई को लेकर काफी शिकायतें आईं.

सीजीएचएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इसके बाद, हमने एनएबीएच को पैरामीटर तैयार करने के लिए कहा और उसके बाद ही पैनल दिया गया. अगर अब कोई शिकायत आती है तो इसकी जिम्मेदारी एनएबीएच की होगी. ऐसी स्थिति में, हम एनएबीएच को कारण बताओ नोटिस भेज सकते हैं और केंद्र को बंद भी करवा सकते हैं.”

अरोड़ा के केंद्र को बैंक गारंटी, अग्नि सुरक्षा और जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रमाणन सहित कई दस्तावेज़ जमा करने के बाद इस साल फरवरी में एनएबीएच से मान्यता मिली.

अरोड़ा ने कहा, “यह हमारे लिए भी एक नया अनुभव था, लेकिन हमने बेहतर उपचार प्रदान करने की पूरी कोशिश की. मरीजों ने भी अच्छी प्रतिक्रिया दी.” अरोड़ा जल्द ही केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए योग कक्षाएं शुरू करने की योजना बना रही हैं.

लेकिन अधिकांश केंद्र यह बात उठा रहे हैं कि आयुष पद्धति से इलाज के लिए 14 दिन का समय बहुत कम है क्योंकि इसका असर धीरे-धीरे होता है. लेकिन आयुष विभाग के अधिकारियों ने कहा कि लोगों को योजना का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए ऐसा किया गया. इसके बावजूद केंद्रों के जरिए धोखा देने की कोशिश की गई है.

इति ने कहा, “कुछ केंद्र कम दिनों का इलाज करते हैं लेकिन बिल अधिक दिनों का देते हैं. इसलिए इससे बचने के लिए यह अवधि रखी गई है.”


यह भी पढ़ें: राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले हो रहीं जातिगत महासभाओं की क्या है राजनीति


झोला-झाप और फर्जी क्लीनिक

नौकरी की तलाश जुलाई में हर्ष को पश्चिम विहार (पश्चिम) मेट्रो स्टेशन की पहली मंजिल पर स्थित डाल्को हेल्थकेयर सेंटर ले आई. उन्होंने हाल ही में नजफगढ़ में चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान से बैचलर ऑफ आयुर्वेद मेडिसिन एंड सर्जरी की डिग्री पूरी की थी. वह आयुष स्नातकों और युवा चिकित्सकों की एक नई सेना का हिस्सा हैं, जो पारंपरिक भारतीय उपचारों के लिए सरकार के प्रोत्साहन के कारण एक उभरते लेकिन संपन्न उद्योग का हिस्सा हैं.

हर्ष ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में, आयुर्वेद का चलन बढ़ा है. मेरी कक्षा में 90 विद्यार्थी थे. कोविड के बाद इसे इलाज का एक अच्छा तरीका माना जा रहा है.”

पिछले आठ वर्षों में, यह सेक्टर 20,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपये का हो गया है. साथ ही लगभग 40,000 एमएसएमई विभिन्न उत्पादों की पेशकश के साथ आयुष के क्षेत्र में कई पहल कर रहे हैं.

मार्च में, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने केंद्र सरकार की प्रमुख दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डीडीयू-जीकेवाई) के तहत 25,000 महिलाओं और युवाओं को पंचकर्म तकनीशियन, आयुर्वेद मालिश करने वाले, क्षार कर्म तकनीशियन और कपिंग थेरेपी सहायक बनने के लिए प्रशिक्षित करने के लिए आयुष विभाग के साथ साझेदारी की.

और जबकि तिवारी इन पहलों का स्वागत करती हैं, उन्होंने झोलाछाप डॉक्टरों और फर्जी क्लीनिकों द्वारा जल्दी पैसा कमाने के लिए आयुर्वेद का दुरुपयोग करने पर चिंता भी व्यक्त की. उन्होंने कहा, इससे भरोसा खत्म होता है.

उन्होंने कहा, “लोगों को इसके बारे में बहुत कम जानकारी है. मानव शरीर के हर हिस्से के लिए उपचार उपलब्ध है. जिसने चरक संहिता भी नहीं पढ़ी, वह भी आयुर्वेद जानने का दावा करता है. इसलिए लोगों का इस पर भरोसा कम है.”

आयुर्वेद के जनक चरक की तस्वीर डाल्को हेल्थकेयर के कांच के दरवाजे पर नजर आती है. अंदर दीवारों पर सौ से अधिक प्रकार के आयुष उपचार लिखे हुए हैं.

सामान्य क्लिनिक के विपरीत, वेटिंग एरिया रोगियों और रोते हुए बच्चों से भरा हुआ नहीं दिखता है. मरीजों को स्लॉट दिया जाता है और उनका सख्ती से पालन किया जाता है. हर कुछ मिनटों में आने वाली मेट्रो की आवाज से सेंटर के मरीजों को कोई फर्क नहीं पड़ता. बल्कि उनका पूरा ध्यान इलाज पर ही रहता है.

अरोड़ा के क्लिनिक में, कमल सनहोत्रा के कमरे से बाहर निकलने के बाद, एक कर्मचारी जोर से पूछता है, “अगला मरीज कौन है?”

एक बुजुर्ग महिला धीरे-धीरे सोफे से उठती है और एक थेरेपी रूम की ओर चल देती है.

थेरेपी के लिए अपनी बारी का इंतजार करती सावित्री | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

सरकार की योजना है कि वह इस साल इलाज पर आने वाली लागत और इससे मरीजों को क्या लाभ मिलता है, उसका आकलन करेगी.

इति ने कहा, “हम चाहते हैं कि मूल्यांकन पहले दिल्ली में ही की जाए. अगर सब कुछ सही रहा तो हम डे केयर उपचार में यूनानी और सिद्ध को भी जोड़ेंगे और भारत के दूसरे राज्यों में भी इसका विस्तार करेंगे.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: अयोध्या राम मंदिर दर्शन के लिए लगभग तैयार लेकिन मस्जिद के पास फंड की कमी, नक्शा अटका


 

share & View comments