शाकिब खान धालीवुड के नंबर-वन हैं. उनका उपनाम-बांग्लादेश का शाहरुख खान-केवल बात को घर तक पहुंचाता है.
उनसे एक बार पूछा गया था कि उन्हें कौन-सा किरदार निभाना सबसे ज्यादा पसंद है: हीरो, पिता, पुत्र या भाई. खान ने जवाब दिया कि बतौर एक्टर वे सभी किरदार समान रूप से निभाना पसंद करते हैं. इस साल उन्हें दो नए किरदार निभाने हैं — बिजनेसमैन और राजनयिक. उन्हें स्वास्थ्य और सौंदर्य ब्रांड रिमार्क और सौंदर्य प्रसाधन ब्रांड हेरलान का निदेशक नामित किया गया है और वे भारत में बांग्लादेशी सिनेमा के ब्रांड एंबेसडर बनना चाहते हैं. बॉलीवुड पर जीत हासिल करने का खान का जरिया अभी भी निर्माणाधीन पैन-इंडियन फिल्म दर्द है — जो बंगाली, हिंदी, तमिल और मलयालम में रिलीज़ के लिए तैयार है.
खान के नए वेंचर उन्हें बांधते नहीं हैं. ढाका से फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए, 44-वर्षीय खान ने कहा कि वे बिजनेस में नए नहीं हैं, उन्होंने बांग्लादेश में फिल्मों के निर्माण और वितरण में भी काम किया है.
और जब सीमा पार छलांग लगाने की बात आती है, तो उनके चार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, आठ मेरिल प्रोथोम एलो पुरस्कार, तीन बाकस पुरस्कार और चार सीजेएफबी प्रदर्शन पुरस्कार खुद बोलते हैं.
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कॉस्मेटिक और सिनेमा
20 जनवरी को ढाका के एक लक्ज़री होटल में एक शानदार समारोह में जिसमें शहर के कई लोग मौजूद थे, शाकिब खान ने कॉस्मेटिक्स की दुनिया में अपने प्रवेश की घोषणा की. उन्होंने व्यवसायिक उद्यम को सार्वजनिक सेवा जैसा बना दिया. उनका अभियान मिलावटी प्रोडक्ट्स के खिलाफ है. खान ने दिप्रिंट को बताया, “मेरे नए व्यवसाय उद्यम में एक नैतिक हिस्सा है, मिलावटी प्रोडक्ट्स के खिलाफ जागरूकता फैलाना जो स्किन कैंसर जैसी घातक बीमारियों का कारण बन सकते हैं. मैं जनता को इस खतरे से बचाना चाहता हूं.”
उन्होंने कहा कि व्यवसाय में यह बदलाव एक स्वाभाविक परिवर्तन है, “स्किनकेयर बिजनेस एक अभिनेता के रूप में मेरे काम से करीबी से जुड़ा हुआ है. हम एक्टर्स को अपनी स्किन का ख्याल रखना पड़ता है.”
लेकिन उनका एक और लक्ष्य भी है. जिस तरह कपड़ा इंडस्ट्री ने बांग्लादेश को ग्लोबल मानचित्र पर ला दिया है, उसी तरह वे कॉस्मेटिक इंडस्ट्री को देश का पर्याय बनाने के लिए अपने स्टारडम का उपयोग करना चाहते हैं.
और अपने स्टारडम के बारे में, खान उतने ही आश्वस्त हैं जितने तब थे जब उनकी सबसे बड़ी फिल्म ‘प्रिया अमर प्रिया’ (2008) रिलीज़ हुई थी. कन्नड़ फिल्म ‘अप्पू’ (2002) की रीमेक, जिसमें पुनीत राजकुमार ने अभिनय किया था, इस फिल्म ने खान को स्टारडम को काफी हद तक बढ़ा दिया था. उन्होंने रोमांटिक एक्शन फिल्म ‘अनंत भालोबाशा’ (1999) से सिनेमा में डेब्यू किया था.
सन् 2000 में उनकी फिल्में ‘हीरा चुनी पन्ना’, ‘फूल नेबो ना ओशरू नेबो’, ‘बिशे भोरा नागिन’ सुपरहिट रहीं. हिट फिल्मों का सिलसिला बरकरार रहा और 2005 तक, प्रशंसकों और आलोचकों को पता चल गया कि उन्हें हराना नामुमकिन है. 2007 में उन्हें सुपरस्टार कहा जाने लगा, लेकिन ‘प्रिया अमर प्रिया’ के बाद उनका स्टारडम आसमान छूने लगा गया — उन्होंने एक बांग्लादेशी एक्टर के लिए अब तक का सबसे अधिक पारिश्रमिक मांगना शुरू कर दिया: बांग्लादेशी टका 80 लाख.
और अच्छे कारण के साथ, ‘प्रिया अमर प्रिया’ 2010 के दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली बांग्लादेशी फिल्म है और अब तक की पांचवीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है. अपनी रिलीज़ के समय इसने बॉक्स ऑफिस के कई पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए, लेकिन इसके बांग्लादेशी टका 15 करोड़ के कलेक्शन को शाकिब की सबसे बड़ी फिल्म ‘प्रियोटोमा’ ने पीछे छोड़ दिया, जो अब तक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली बांग्लादेशी फिल्म है. 2023 की फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 41 करोड़ रुपये की कमाई की.
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किंग खान फैक्टर
उनकी लगातार हिट फिल्मों ने उन्हें बांग्लादेश के शाहरुख खान या किंग खान की उपाधि दिलाई है.
हालांकि, खान इस तुलना को खारिज करते हैं.
उन्होंने कहा, “शाहरुख सिर्फ एक भारतीय सुपरस्टार नहीं, बल्कि एक ग्लोबल आइकन हैं. उन्होंने अपने अभिनय कौशल और स्टारडम से दुनिया को जीतकर सभी एशियाई एक्टर्स को गौरवान्वित किया है. मैं उनसे प्यार करता हूं और उनका सम्मान करता हूं, लेकिन मैं खुद को बांग्लादेश का शाहरुख खान नहीं मानता हूं.”
खान ने कहा कि यह उनके प्रशंसक ही थे जिन्होंने उनकी तुलना बॉलीवुड स्टार से की जब उनकी फिल्में अच्छा प्रदर्शन करने लगीं और वे राष्ट्रीय दिल की धड़कन बन गए.
उन्होंने कहा, “किसी तरह, यह निकनेम अटक गया. महिलाएं मुझसे प्यार करती हैं. न केवल कॉलेज के स्टूडेंट्स, बल्कि सभी उम्र की महिलाओं ने मुझ पर प्यार बरसाया है.”
और भले ही उनकी पहुंच शाहरुख खान तक न हो, लेकिन दुनिया भर के बंगाली भाषी उनके प्रशंसक हैं.
ढाका की पत्रकार ज़िया चौधरी ने कहा कि शाहरुख के साथ तुलना से बांग्लादेश में खान की लोकप्रियता बढ़ी है.
खान भले ही कहें कि वे तुलना का फायदा नहीं उठाते, लेकिन उन्होंने अपने बेटे का नाम एब्राहम खान जॉय रखा है. यह नाम शाहरुख खान के सबसे छोटे बेटे एब्राम अबराम खान से काफी मिलता जुलता है.
चौधरी ने कहा, “यह (तुलना) शाकिब खान को एक तरह का सम्मान देता है जिसे ढाका के अभिजात वर्ग अक्सर नकार देते हैं.”
उन्होंने कहा, खान जनता, कपड़ा मज़दूरों, रिक्शा चालकों, तथाकथित निम्न वर्ग के स्टार हैं, वह वास्तव में धालीवुड के एसआरके हैं.
“लेकिन उन्हें कभी भी आलोचकों या ‘अच्छे कंटेंट’ के उपभोक्ताओं की सहमति नहीं मिली”. ज़िया ने कहा, “शाहरुख की तुलना उन्हें यह देती है.”
एक हिट का इंतज़ार
अगर दर्द भारत में हिट हो गई तो सब कुछ बदल सकता है. फिल्म का निर्देशन फिल्म निर्माता-वितरक एनोनो मामुन कर रहे हैं. मामुन ने खान को पहले विवादास्पद कोर्ट रूम ड्रामा नबाब एलएलबी में निर्देशित किया है. उन्हें बांग्लादेशी सिनेमाघरों में बॉलीवुड ब्लॉकबस्टर ‘पठान’ और ‘जवान’ लाने के लिए भी जाना जाता है.
शूटिंग अक्टूबर 2023 में वाराणसी में शुरू हुई और 22 दिनों में पूरी हो गई.
खान ने कहा, “दर्द तो केवल शुरुआत है. मैं भारत में बड़े प्रोजेक्टस के लिए बातचीत कर रहा हूं, लेकिन यह वास्तव में सिनेमा में भारत-बांग्लादेश साझेदारी की शुरुआत होगी.”
हालांकि, रिलीज़ की तारीख तय नहीं की गई है, खान एक बात को लेकर आश्वस्त हैं — इसका प्रीमियर सिनेमाघरों में होगा, ओटीटी पर नहीं.
उनके दो धालीवुड सहयोगियों, अज़मेरी हक बधोन और जया अहसन ने खुफिया और कड़क सिंह के साथ भारतीय ओटीटी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, खान ने इसके बजाय बड़े पर्दे को चुना है.
खान ने कहा, “बड़े सिनेमा ने मुझे वो बनाया है जो मैं हूं. मुझे अभी तक केवल-ओटीटी फिल्में करने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई है. बांग्लादेश में मेरी फिल्में पहले सिनेमाघरों में रिलीज़ होती हैं और बाद में ओटीटी पर. दर्द भी उसी रास्ते पर चलेगी. मेरे भविष्य के प्रोजेक्ट्स भी ऐसे ही होंगे.”
कोलकाता फिल्म समीक्षक भास्वती घोष, जिन्होंने खान के करियर पर करीब से नज़र रखी है, ने कहा कि वे बांग्लादेश में “अभूतपूर्व” हैं, कहानी, निर्देशक और प्रोडक्शन हाउस मायने नहीं रखते, केवल खान मायने रखते हैं, लेकिन उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, “अगर वे भारत में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं तो उन्हें एक अच्छी कहानी और एक अच्छा किरदार चुनना चाहिए. बांग्लादेश में उनकी सुपरहिट फिल्मों ने पश्चिम बंगाल में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है.”
उन्होंने कहा, “कोई भी पैन इंडियन फिल्म में शाकिब खान को देखने नहीं जाएगा. इसलिए, बॉलीवुड पर विजय पाना फिलहाल एक दूर का सपना हो सकता है.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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