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Friday, 10 May, 2024
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खुफ़िया से लेकर कड़क सिंह तक, बांग्लादेशी अभिनेताओं के लिए तैयार हो रहा है भारत

कई बांग्लादेशी अभिनेताओं के लिए, पश्चिम बंगाल के फिल्म उद्योग टॉलीवुड से बॉलीवुड में काम करना एक स्वाभाविक प्रगति जैसा है.

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ढाका: जब गोवा में आयोजित 54वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कड़क सिंह को स्टैंडिंग ओवेशन मिला, तो जया अहसान को पता चला कि उन्होंने अपने हिंदी ओटीटी डेब्यू के लिए सही प्रोजेक्ट चुना है. बांग्लादेश में एक प्रमुख अभिनेता, अहसान एक चीज़ और एक सिर्फ चीज़ की तलाश में हैं – ऐसी भूमिकाएं जो उनके अंदर के कलाकार को चुनौती दें.

और भारतीय मनोरंजन उद्योग, विशेष रूप से ओटीटी, एक आदर्श हंटिंग ग्राउंड साबित हो रहा है. अहसान सांस्कृतिक सीमा पार करने वाले एकमात्र बांग्लादेशी अभिनेता नहीं हैं. अकेले इस साल, तीन लोकप्रिय फिल्मों में बांग्लादेशी नेअभिनेताओं ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं. अहसान के अलावा, अज़मेरी हक बधोन ने खुफिया में तब्बू के प्रेमी की भूमिका निभाई, और श्याम बेनेगल की मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन में अरेफिन शुवो ने शेख मुजीब की भूमिका निभाई.

ऐसा प्रतीत होता है कि, मशहूर हिल्सा के बाद, बांग्लादेशी अभिनेता भारत की नई पसंद बन गए हैं. स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म का उदय, लालफीताशाही और पाकिस्तान की प्रतिभाओं के साथ सुरक्षा संबंधी मुद्दे, और घिसी-पिटी रूढ़ियों से परे पात्रों के साथ मजबूत कथानक – आदर्श धाराओं के संगम ने इस प्रवृत्ति में योगदान दिया है.

“दो बंगाल एक साथ आ रहे हैं. प्रतिभा अंततः साझा हो रही है. यह बुरी बात कैसे हो सकती है?” फिल्म निर्देशक सुभ्रजीत मित्रा कहते हैं, जिन्होंने साल 2021 की अपनी फिल्म अविजात्रिक के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. वह बड़े और बेहतर सहयोग की उम्मीद करते हैं. वह कहते हैं, ”लेकिन पश्चिम बंगाल के निर्देशकों और अभिनेताओं को भी बांग्लादेश में अधिक बार काम करने का मौका मिलना चाहिए.”

चित्रणः मनीषा यादव द्वारा | दिप्रिंट

कई बांग्लादेशी अभिनेताओं के लिए, पश्चिम बंगाल के फिल्म उद्योग टॉलीवुड से बॉलीवुड में आना एक स्वाभाविक प्रोग्रेस जैसा है. आज, परिवर्तन करने के अधिक अवसर हैं. एक समय था जब हिंदी सिनेमा ज्यादातर मुंबई, दिल्ली और पंजाब के आसपास केंद्रित था, और बड़े पैमाने पर उत्तर भारतीय संवेदनाओं को प्रदर्शित करता था. वह अब बदल गया है. अलग-अलग तरह के पात्र हो गए हैं. वे भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं और अब कैरीकैचर या स्टीरियोटाइप नहीं हैं. इससे क्षेत्रीय अभिनेताओं के लिए भी जगहें बनी हैं.

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ओटीटी प्लेटफॉर्म जासूसी गेम (खुफिया) में समलैंगिक प्रेमियों से लेकर चिट-फंड मामलों को सुलझाने की कोशिश में प्रतिगामी भूलने की बीमारी से जूझ रहे एक वित्तीय अधिकारी (कड़क सिंह) से लेकर ग्रामीण पंजाब (कोहर्रा) में ड्रग्स और ठगों की दुनिया तक को आगे बढ़ा रहे हैं.

बांग्लादेशी अभिनेताओं को बॉलीवुड की ओर क्या आकर्षित कर रहा है? सशक्त भूमिकाएँ या तथ्य यह है कि निर्देशक अब नई प्रतिभाओं को काम पर रखने के लिए सीमाओं से परे देख रहे हैं?

कड़क सिंह के निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी का कहना है कि यह दोनों है.

“सिर्फ बांग्लादेश ही क्यों? अगर भूमिका की मांग होगी तो दूसरे देशों के कलाकार भी भारतीय सिनेमा में काम करेंगे.”


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रचनात्मक भूख को शांत करना

ऐसा नहीं कि जया अहसान को कोई जानता नहीं है. भारत और बांग्लादेश में बंगाली फिल्म प्रेमियों द्वारा बेहद पसंद की जाने वाली वह इस बात से खुश हैं कि उनके कड़क सिंह किरदार नोयोना के बारे में चर्चा हो रही है.

जया अहसान  कड़क सिंह में अपने सह-कलाकार पंकज त्रिपाठी के साथ | विशेष व्यवस्था द्वारा

“मुझे निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी का सिनेमा बहुत पसंद है, और सह-कलाकार के रूप में पंकज त्रिपाठी एक सपना हैं. लेकिन यह नोयोना ही थी जिसने मुझे इस प्रोजेक्ट की ओर खींचा,” अहसान ने कोलकाता से फोन पर दिप्रिंट को बताया. वह एक ऐसे महिला किरदार की तलाश में थीं जो अंदर से सशक्त हो. “और कड़क सिंह में, मैंने उसे पाया. मैं वास्तव में नोयोना बनना चाहती हूं.”

मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन में मुख्य भूमिका निभाने वाले बांग्लादेशी स्टार अरेफिन शुवो मुंबई को अपना दूसरा घर कहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि इससे राजकुमार हिरानी जैसे भारतीय फिल्म निर्माताओं के साथ काम के अधिक अवसर मिलेंगे.

“मैं यहां हर किसी के साथ सहयोग करना चाहूंगा. अनुराग बसु, शूजीत सरकार, श्रीजीत मुखर्जी जैसे बहुत सारे बंगाली निर्देशक हैं, लेकिन एक व्यक्ति जिसका मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूं, वह हैं राजकुमार हिरानी. उनकी फिल्मों ने मेरे जीवन में मेरी मदद की है.’ उन्होंने अक्टूबर में मीडिया से कहा, “अगर मुझे कभी उनकी फिल्म में छोटी भूमिका निभाने का मौका मिले, तो मैं वह करना पसंद करूंगा.”

भारत और बांग्लादेश द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित यह फिल्म बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के जीवन और समय पर आधारित है. यह बायोपिक दक्षिण एशियाई इतिहास की कुछ सबसे उथल-पुथल भरी घटनाओं का वर्णन करती है – भारत के विभाजन से लेकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से लेकर बंगबंधु की दुखद हत्या तक.

Arefin Shuvo in Shyam Benegal's 'Mujib' | By special arrangement
श्याम बेनेगल की ‘मुजीब’ में अरेफिन शुवो | स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा

अहसान की तरह, अज़मेरी हक़ बधोन भी खुफिया में अपने चरित्र की अनूठी विशेषताओं के प्रति काफी खिंची हुई थीं. वह सामाजिक रूप से रूढ़िवादी बांग्लादेश में एक वर्जित विषय समलैंगिकता को चित्रित करने को लेकर विशेष रूप से उत्साहित थीं.

हालांकि उन्होंने हाल ही में बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की है, अहसान और बधोन दोनों बेंगा में अपने काम की बदौलत कोलकाता में लोकप्रिय नाम हैं. जहां अहसान ने श्रीजीत मुखर्जी की हिट फिल्म डॉशोम अवबोटार (2023) में मुख्य भूमिका निभाई है, वहीं बधोन ने मुखर्जी की रॉबिन्द्रोनाथ एखाने कावखोनो खेते आशेंनी (2021) में अभिनय किया है. अहसान ने टॉलीवुड में अन्य बड़े नामों जैसे फिल्म निर्माता कौशिक गांगुली के साथ भी काम किया है.

बांग्लादेशी कला प्रमोटर तारिकुल इस्लाम ज्वेल कहते हैं, “पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश की भाषा और संस्कृति काफी मिलती-जुलती है जिससे बांग्लादेशी अभिनेताओं के लिए पश्चिम बंगाल के सिनेमा और भारत में ओटीटी का हिस्सा बनना आसान हो जाता है.”

हालांकि, कोलकाता स्थित फिल्म समीक्षक भास्वती घोष सावधानी से कहती हैं; अंततः बांग्लादेश से अधिक अभिनेताओं के आने का निर्धारण इस बात से होगा कि उनके प्रोजेक्ट्स कितने ज्यादा सफल होते हैं.

“मुजीब भारत में फ्लॉप रही, हालांकि बांग्लादेश में इसने अच्छा प्रदर्शन किया. विशाल भारद्वाज की फिल्म होने के बावजूद खुफ़िया ने भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. जब तक उनकी फिल्में हिट नहीं हो जातीं, हिंदी सिनेमा में बांग्लादेशी कलाकार हिंदी सिनेमा में आने-जाने वाले ही रहेंगे.’

पाकिस्तानी अभिनेताओं के साथ भारत के रिश्ते

हिंदी फिल्म उद्योग अब बांग्लादेशी अभिनेताओं के प्रति आकर्षित हो रहा है. इससे पहले पाकिस्तानी प्रतिभाओं के साथ इसका रिश्ता लंबे समय तक – और अक्सर कठिनाइयों भर – रहा था. अली जफर, फवाद खान, माहिरा खान और सबा कमर जैसे अभिनेता ऐसे रहे हैं जिन्हें बॉलीवुड ने बड़े स्तर पर पेश किया.

दोनों देशों के बीच तनातनी का असर हमेशा हिंदी फिल्मों में काम करने वाले पाकिस्तानी कलाकारों पर पड़ता रहा है. आतंकवादी हमलों और सीमा तनाव के कारण लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या भारतीय मनोरंजन उद्योग को उनका स्वागत करना चाहिए.

2016 के उरी हमले के बाद रिश्ते और भी खराब हो गए. इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ने “सुरक्षा” और “देशभक्ति” के आधार पर पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम नहीं करने का संकल्प लिया. सात साल के अंतराल के बाद, इस साल अक्टूबर में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने भारतीय नागरिकों, कंपनियों और संघों पर पाकिस्तानी अभिनेताओं, गायकों, संगीतकारों, गीतकारों और तकनीशियनों के साथ जुड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया.

बारीकी से निभाई जाने वाली भूमिकाएं प्रतिभा को खींचती हैं

बांग्लादेश भारत का रणनीतिक सहयोगी रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शेख हसीना के साथ विशेष रूप से मधुर संबंध साझा करते हैं. लेकिन हाल के वर्षों में ही बांग्लादेशी अभिनेताओं ने हिंदी फिल्म उद्योग में कदम रखा है.

रॉय चौधरी कहते हैं, ”यह ओटीटी की प्रगति है.” बांग्लादेशी अभिनेता अब लिखी जा रही सूक्ष्म भूमिकाओं में अधिक रुचि रखते हैं – जिससे अहसान और बधोन दोनों सहमत हैं.

बांग्लादेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म चोरकी का पश्चिम बंगाल में प्रवेश और बांग्लादेश में सक्रिय पश्चिम बंगाल के ओटीटी प्लेटफॉर्म होइचोई ने इस मूवमेंट को सुविधाजनक बनाया है.

रॉय चौधरी कहते हैं, ”एक बार बांग्लादेशी अभिनेताओं ने पश्चिम बंगाल में काम कर लिया, तो मुंबई शायद ही कोई दूर का सपना है.”

आईएफएफआई (IFFI) में अहसान अभिनीत चार फिल्में प्रदर्शित की गईं- कड़क सिंह, ईरानी निर्देशक मोर्तेजा अताशज़मज़म की फ़रेश्तेह (2023), सुमोन मुखोपाध्याय की पुतुल नाचेर इतिकथा (2022), और कौशिक गांगुली की अर्धांगिनी (2023).

बधोन कहते हैं, “बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में अपने शानदार करियर के बाद जया आपा के पास साबित करने के लिए और कुछ नहीं है. और अब वह बॉलीवुड में प्रवेश कर चुकी है, जैसा कि मैंने खुफ़िया के साथ किया था. अन्य लोग भी ऐसा करेंगे.”

अहसान की तरह, वह चैलेंजिंग रोल तलाश रही है – इससे फर्क नहीं पड़ता है रोल कहां मिलेगा. हाल के वर्षों में उनकी अधिक मांग वाली भूमिकाओं में से एक 2021 की बांग्लादेशी फिल्म, रेहाना मरियम नूर थी, जो अब्दुल्ला मोहम्मद साद द्वारा लिखित और निर्देशित थी. बधोन ने एक निजी मेडिकल कॉलेज में शिक्षिका रेहाना की भूमिका निभाई है, जो एक मां, बेटी, बहन और शिक्षिका के रूप में एक कठिन जीवन जीती है. एक दिन, वह एक यौन उत्पीड़न होते हुए देखती हैं जहां वह पीड़ित और अपराधी दोनों को जानती है. नूर बोलने का फैसला करती है लेकिन उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है.

फिल्म ने बधोन के निजी जीवन को प्रतिबिंबित किया और दर्शक शायद ही उनमें और उनके चरित्र के बीच अंतर कर सकें. बधोन, जो अपनी दो असफल शादियों, मैरिटल रेप और लंबे समय तक के डिप्रेशन के बारे में खुलकर बात करती रही हैं, उन्होंने पाया कि वह अपने ऑन-स्क्रीन व्यक्तित्व को पहचान सकती हैं.

खुफिया के एक दृश्य में अजमेरी हक बधोन । यूट्यूब स्क्रीग्रैब

यह फिल्म 94वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म श्रेणी के लिए बांग्लादेश की प्रविष्टि थी. 14वें एशिया पैसिफिक स्क्रीन अवार्ड्स में, बधोन ने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता और अपनी भूमिका के लिए नई प्रतिभा की श्रेणी में हांगकांग एशियाई फिल्म महोत्सव का पुरस्कार जीता.

ज्वेल के अनुसार, बांग्लादेशी अभिनेता अब कुछ अद्भुत परियोजनाओं में शामिल हैं, जिससे उनमें और अधिक की भूख पैदा हो रही है.

वह अभिनेताओं को वैश्विक संपत्ति के रूप में देखती हैं. “सीमाएं कला को बांध नहीं सकतीं.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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