गौरव ठाकुर 33 साले के हैं. यूपीएससी की दुनिया के मुताबिक उनकी उम्र अब ज्यादा हो गई है. वह यूपीएससी एग्जाम का प्रीलिम्स और सीसेट क्लियर करने के लिए अपने पूरे 6 मौके गवां चुके हैं.
पिछले महीने, गौरव दिल्ली में यूपीएससी के कोचिंग हब ओल्ड राजिंदर नगर में बाकी सैकड़ों कैंडिडेट्स के साथ प्रोटेस्ट कर रहे थे. इन प्रोटेस्ट करने वालों में तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र से आए कैंडिडेट्स भी शामिल थे. ये सभी अपने लिए यूपीएससी एग्जाम देने का एक और मौका चाहते हैं.
इन लोगों ने देश के सांसदों से लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक मदद की गुहार की है लेकिन अब ये सड़कों पर हैं.
देश भर में हजारों यूपीएससी एस्पिरेंट्स के सपनों को कोरोना महामारी ने तोड़ कर रख दिया. कुछ महामारी के कारण एग्जाम नहीं दे पाए, कुछ लोगों के अपने घर परिवार के लोग बीमारी में उन्हें छोड़कर दुनिया से चले गए, तो कुछ एग्जाम के दौरान ही कोविड पॉजिटिव हो गए. और अब उनके पास एग्जाम में शामिल होने के लिए अटेंम्प्ट नहीं बचे हैं.
गौरव कहते हैं “मैं फंसा हुआ महसूस करता हूं. मुझे नहीं पता कि अब आगे मुझे क्या करना है. मेरे सारे सपने सरकार ने तोड़ दिए हैं. यह मेरी गलती नहीं है कि दुनिया में इतनी बड़ी महामारी आई. यूपीएससी का सफर अपने आप में थका देने वाला है. अब दूसरी किसी और बात के बारे में नहीं सोच पाता हूं. मुझे बस एक मौका और चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में भारत सरकार से इन युवाओं की कठिन स्थिति के बारे में उदार दृष्टिकोण अपनाने को कहा था. लेकिन सरकार ने मना कर दिया.
विरोध करने वाले यूपीएससी के उम्मीदवारों का कहना है कि उन्हें संसद के 150 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है, और उन्होंने इस मामले को सदन में उठाने के लिए दबाव डाला. इन छात्रों ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर राहुल गांधी, मनोज तिवारी, शरद पवार जैसे नेताओं से मुलाकात की है.
उन्होंने भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी से भी मुलाकात की, जो इस मुद्दे पर विभाग से संबंधित स्थायी समिति के प्रमुख हैं और छात्रों के मुद्दों के प्रति सहानुभूति रखते दिखे.
सिविल सेवा परीक्षा के आकांक्षियों को अतिरिक्त मौका देने पर हो विचार… pic.twitter.com/0aFecFvs61
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) March 25, 2022
डीआरएससी ने अपने बयान में कहा “पहली और दूसरी कोविड लहरों के दौरान छात्रों के सामने आने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए, समिति सरकार से अपना विचार बदलने और सीएसई उम्मीदवारों की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने और सभी उम्मीदवारों को आयु में छूट के साथ एक अतिरिक्त प्रयास देने की सिफारिश करती है.”
सुप्रीम कोर्ट के मामले में मुख्य याचिकाकर्ता, सॉफ्टवेयर इंजीनियर अर्जित शुक्ला का कहना है कि सरकार का रुख अनुच्छेद 16 के तहत समान अवसर के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के लिए इंफोसिस में अपनी नौकरी छोड़ दी, लेकिन जनवरी में मुख्य परीक्षा के बीच में ही कोविड से संक्रमित हो गए. पॉजिटिव होने से पहले, वह नौ में से केवल पांच पेपर लिख पाए थे.
वह कहते हैं, “मुझे कोविड पॉजिटिव होने की सज़ा मिली है”
लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, प्रशिक्षण और कार्मिक विभाग (डीओपीटी) ने उनके मामले को संबोधित किया. आयु सीमा में कोई भी छूट और महामारी के कारण बढ़े प्रयासों की संख्या दूसरी समस्याओं के दरवाजे खोल सकती है. डीओपीटी ने कहा कि इससे देश भर में आयोजित अन्य परीक्षाओं के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांग की जाएगी.
डीओपीटी ने कहा, “इस मुद्दे को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सामने भी लाया गया था और इस मामले पर विचार किया गया था और सिविल सेवा परीक्षा के प्रयासों की संख्या और आयु-सीमा के संबंध में मौजूदा प्रावधानों को बदलना संभव नहीं पाया गया है.”
मंत्री जितेंद्र सिंह ने लिखित जवाब में कहा.
लेकिन शुक्ला बताते हैं कि कट-ऑफ उम्र में कई राज्यों के साथ-साथ सीएपीएफ जैसी कुछ केंद्र सरकार की भर्तियों के लिए छूट दी गई है. उन्होंने आगे कहा, “जब कोविड-संक्रमित उम्मीदवारों की बात आती है तो यूपीएससी की नीति में साफ कमी है.”
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कोविड ने सपनों का हत्या कर दी
गौरव ठाकुर ने 2020 में अपने पिता की कोविड से मृत्यु के एक महीने से कुछ अधिक समय बाद यूपीएससी प्रीलिम्स दिया. उनका पहला पेपर यानी सामान्य अध्ययन का पेपर अच्छा गया था. लेकिन सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (CSAT) लिखते समय, वह इमोशनल हो गए.
गौरव बताते हैं, “ऐसे प्रश्न थे जो मैंने एक रात पहले पढ़े थे. मुझे लगा कि मेरे पिता स्वर्ग से मेरी मदद कर रहे हैं. मैं भावनात्मक रूप से टूट गया था. ”गौरव प्रीलिम्स क्लियर नहीं कर सके. यह उनके यूपीएससी के सपने का अंत था. 33 साल की उम्र में उनके लिए और कोई मौका नहीं था.
कुछ समय पहले तक, वह भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के साथ काम कर रहे थे, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बायोकेमिस्ट्री में पीएचडी पूरी की, लेकिन भारतीय नौकरशाही का हिस्सा बनने के अपने सपने को नहीं छोड़ा. वह ओल्ड राजिंदर नगर में दिसंबर के विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे थे, जहां उनमें से 40 लोगों को हिरासत में लिया गया था.
दिसंबर के विरोध प्रदर्शन में 70 से अधिक उम्मीदवारों ने भाग लिया था.
ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव प्रीलिम्स परीक्षा से बमुश्किल तीन दिन पहले कोविड से संक्रमित हुए. यह उनका चौथा और आखिरी प्रयास होना था.
वह कहते हैं, “मैं परीक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार था, लेकिन मुझमें कोविड के लक्षण दिखाई दिए और मेरा टेस्ट पॉजिटिव आया. मेरी स्थिति बहुत खराब थी. उस वक्त मेरा ऑक्सीजन लेवल 87 था. मैं परीक्षा कैसे दे सकता था?”
उनकी स्थिति उन हजारों युवा उम्मीदवारों के समान है जो अपने लिए एक और मौका चाहते हैं.
दिल्ली के एम्स में प्रैक्टिस करने वाली डॉक्टर विद्या, कोविड की दोनों लहरों के दौरान “राष्ट्र की सेवा” कर रही थीं और उनके पास प्रीलिम्स की तैयारी के लिए बहुत कम समय था. 2021 उनका आखिरी प्रयास था.
वह कहती हैं, “मैं शवों को संभाल रही था. मैं ही थी जो मरीज की देखभाल तब करती थी जब उनके परिवार वाले नहीं होते थे. अब जब हम देश की मदद चाहते हैं, तो वे हमें देख भी नहीं रहे हैं.”
छात्रों का कहना है कि वे इतनी आसानी से लड़ाई नहीं छोड़ेंगे और देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं.
गौरव ठाकुर इस विरोध का नेतृत्व कर रहे हैं, जिनका दावा है कि उन्हें 40,000 उम्मीदवारों का समर्थन प्राप्त है. अब, उन्होंने एक टेलीग्राम समूह बनाया है, जिसमें पहले से ही 4,000 सदस्य हैं, जो अगले देशव्यापी विरोध का आयोजन करने की योजना बना रहे हैं.