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Sunday, 22 December, 2024
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सेंटर बंद, पैसे का दुरुपयोग, कोई प्लेसमेंट नहीं — स्किल इंडिया को है रिफ्रेशर कोर्स की ज़रूरत

चूंकि, मौजूदा लोकसभा चुनाव अभियान में रोज़गार का मुद्दा उभर कर आया है, इसलिए भारत का स्किल और अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम एक बार फिर चर्चा में है.

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नई दिल्ली: 25-वर्षीय योगेश कुमार एक अच्छे ट्रेनिंग मॉड्यूल के महत्व को जानते हैं. आखिरकार, इसने उन्हें तीन साल में 5,000 रुपये के वेतन से 20,000 रुपये तक पहुंचा दिया.

स्किल इंडिया केंद्र में चार महीने की ट्रेनिंग के बाद उन्हें इंटर्नशिप मिली, जहां उन्हें 5,000 रुपये मिलते थे, इसके बाद उन्हें एक नौकरी मिली, जिससे उन्हें 15,000 रुपये की सैलरी मिलने लगी. 20,000 रुपये तक पहुंचने के लिए उन्हें एक बार और नौकरी बदलनी पड़ी. उनके 54-वर्षीय पिता दो दशकों से अधिक समय से एक फैक्ट्री में काम करते हैं, लेकिन वे अभी भी दिहाड़ी मज़दूर हैं.

चूंकि, मौजूदा लोकसभा चुनाव अभियान में रोज़गार का मुद्दा उभर कर सामने आया है, इसलिए भारत का स्किल और अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम एक बार फिर चर्चा में है. 15 साल पुराने राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (NSDM) का नाम बदलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्किल इंडिया मिशन करके फिर से शुरू किया गया है.

कुमार और 30 अन्य लोगों ने 2020 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) में फील्ड टेक्नीशियन नेटवर्किंग और स्टोरेज कोर्स का विकल्प चुना — स्किल इंडिया के तहत विशेष ट्रेनिंग सेंटर्स का एक समूह. अपने वित्तीय हालातों को देखते हुए उन्हें लगा कि यह उनके लिए सबसे अच्छा ऑपशन है. वे चाहते थे कि उनके भाई भी यही कोर्स करें, लेकिन यह सेंटर अब बंद हो गया है. दिल्ली के प्रीत विहार में स्थित यह सेंटर उन कई केंद्रों में से एक है जो पूरे भारत में बंद हो गए हैं, जिससे महत्वाकांक्षी स्किल इंडिया प्रोग्राम पर सवाल उठने लगे हैं, जिसे 15 साल में दो सरकारों — पहले UPA और फिर NDA का समर्थन मिला है.

जैसा कि कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र में भारत के बेरोज़गार युवाओं के लिए पहली पक्की नौकरी की गारंटी के तहत महत्वाकांक्षी अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम का वादा किया गया है, सरकार ने कुछ ही दिनों में एक नोटिस भेजकर कंपनियों से उनके अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम के बारे में पूछा है. भारत की बेरोज़गारी की समस्या को रोज़गार की कमी का परिणाम माना जाता है.

लेकिन दिल्ली के स्किल सेंटर्स बच्चों द्वारा बीच में पढ़ाई छोड़े जाने की समस्या से जूझ रहे हैं. उपकरणों की कमी, सेंटरों द्वारा धन का दुरुपयोग, पीएमकेवीवाई 3.0 के क्रियान्वयन में देरी और प्लेसमेंट की कमी जैसी कईं अन्य समस्याएं मौजूद हैं.

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रोज़गार सृजन बहुत महत्वपूर्ण है. कई युवा हर महीने काम करने की उम्र में प्रवेश कर रहे हैं. भाजपा अल्प रोज़गार की समस्या को समझती है. इन सभी मुद्दों से बहुत तेज़ी से निपटना होगा

— गोपाल कृष्ण अग्रवाल, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता

निजी संस्थानों में वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए अधिक शुल्क का मतलब है कि अधिकांश युवाओं के पास उस मार्ग को अपनाने का ऑप्शन नहीं है.

कुमार ने कहा, “मैं लाखों रुपये शुल्क लेने वाले निजी संस्थान में जाने का जोखिम नहीं उठा सकता था. मैंने ऑनलाइन कोर्स के बारे में पता लगाया और यह मददगार भी था, लेकिन मैं सेंटर से मिली ट्रेनिंग के साथ अपने करियर में आगे नहीं बढ़ सकता. आगे बढ़ने के लिए मुझे आईटी सेक्टर में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कुछ और कोर्स भी करने होंगे.”

कुमार भारत के लाखों अल्प रोज़गार वाले या बेरोज़गार युवाओं में से एक हैं, जिनके कैरियर मोदी के स्किल इंडिया मिशन में शामिल होने के बावजूद उनकी कल्पना के अनुसार उड़ान नहीं भर रहे हैं.

ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि भारत बेरोज़गारी के संकट से गुज़र रहा है. देश में सात चरणों में होने वाले चुनाव के बीच में बेरोज़गारी और अल्परोज़गार का शोर है, जो चुनावी ध्रुवीकरण के शोर के बीच अनदेखा नहीं किया जा सकता. कांग्रेस और भाजपा दोनों द्वारा बेरोज़गारी की समस्या के समाधान के रूप में पेश की गई कौशल विकास योजना की अपनी दिक्कतें हैं.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा, “भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रोजगार सृजन बहुत महत्वपूर्ण है। हर महीने कई युवा कामकाजी उम्र में प्रवेश कर रहे हैं। भाजपा अल्परोजगार की समस्या को समझती है। इन सभी मुद्दों से बहुत तेजी से निपटना होगा।”

दिल्ली में एक स्किल सेंटर में ढकी हुई सिलाई मशीनें | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
दिल्ली में एक स्किल सेंटर में ढकी हुई सिलाई मशीनें | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

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महामारी का अंतर

जुलाई 2015 में मिशन के शुभारंभ के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, “स्किल इंडिया केवल जेब भरने के लिए नहीं है, बल्कि गरीबों में आत्मविश्वास जगाने के लिए है.” लगभग एक दशक बाद, प्रधानमंत्री द्वारा स्वयं चलाए गए कार्यक्रम में देश के युवाओं की रुचि कम होती दिख रही है.

कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय छात्रों की उपस्थिति पर सख्त निगरानी रख रहा है और सुनिश्चित कर रहा है कि छात्रों से संबंधित सभी जानकारी पोर्टल पर हो, लेकिन इससे छात्रों के बने रहने पर असर पड़ रहा है.

एमएसडीई के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “उपस्थिति की सख्त निगरानी के कारण छात्र पढ़ाई छोड़ रहे हैं.”

अधिकारियों ने कोविड-19 को छात्रों की इस तरफ रुचि कम होने का सबसे बड़ा कारण बताया. हालांकि, मंत्रालय ने दावा किया कि इस अवधि का उपयोग कोविड के बाद के बाज़ार में प्रासंगिक उभरते कौशल की पहचान करने के लिए किया गया है, जिसमें उद्योग 4.0 से जुड़े कौशल जैसे कि एआई, 3डी प्रिंटिंग, मशीन लर्निंग, ड्रोन टेक्नोलॉजी आदि शामिल हैं.

एमएसडीई ने एक लिखित जवाब में दिप्रिंट से कहा, “राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन और प्रतिबंधों के कारण ट्रेनिंग सेंटर को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा, जिससे उम्मीदवारों के नामांकन और ट्रेनिंग में रुकावटें आईं. इसके अलावा, पीएमकेवीवाई 3.0 के विलंबित कार्यान्वयन ने ट्रेनिंग प्रोग्राम्स को प्रभावित किया, जिससे प्रशिक्षण पहलों में अंतराल पैदा हुआ.”

यहां तक ​​कि कुमार को अपने शिक्षकों के संपर्क के जरिए से ट्रेनिंग के बाद इंटर्नशिप मिली.


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एक जैसा, लेकिन अलग

पीरागढ़ी और प्रीत विहार में चलने वाले स्किल सेंटर हेयर स्टाइलिंग, डॉक्यूमेंटेशन असिस्टेंट, फील्ड टेक्नीशियन और नेटवर्किंग स्टोरेज जैसे अन्य कोर्स कराते हैं, लेकिन यह अपने आप नौकरी की गारंटी नहीं देता.

33-वर्षीय रंजना देवी ने 2021 में दिल्ली के पीरागढ़ी में जन शिक्षण संस्थान में ब्यूटीशियन का कोर्स किया था. उनका दावा था कि वे अपने बैच की सबसे बेहतरीन छात्रा थीं, लेकिन छह महीने के कोर्स के खत्म होने के बाद भी वे बेरोज़गार थीं. दो बच्चों की मां देवी को उम्मीद थी कि वे अपने परिवार का भरण-पोषण करेंगी. आज, वे उन लाखों प्रशिक्षुओं में से हैं, जिनके पास हुनर ​​तो है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि इसका क्या करना है.

अपने कोर्स के पूरा होने के लगभग तीन साल बाद उन्होंने कहा, “मुझे इस कोर्स के बाद नौकरी मिल जानी चाहिए थी.”

लेकिन प्लेसमेंट नहीं मिलने के लिए केवल सेंटरों को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता. यहां तक ​​कि बाज़ार की ताकतें भी उन्हें निराश कर रही हैं. 40,000 रुपये के जरिए खुद का ब्यूटी पार्लर खोलने की रंजना की कोशिश भी सफल नहीं हुई. कम ग्राहकों के कारण दुकान खोलने के कुछ महीने बाद ही उन्हें दुकान बंद करनी पड़ी.

कमरदीन नगर, नांगलोई की निवासी देवी ने कहा, “अब मैं अपने घर पर ही सिलाई और पार्लर का कुछ काम कर रही हूं और नौकरी की तलाश में हूं.”

स्किल इंडिया को एक ऐसा प्रोग्राम बनना था जो देश के अप्रशिक्षित युवाओं को आकर्षित करे और उन्हें नौकरियों के लिए तैयार करे, लेकिन बेरोज़गारी के आंकड़े बताते हैं कि चीज़ें तेज़ गति से आगे नहीं बढ़ रही हैं. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि कुल बेरोज़गार पूल में माध्यमिक और उच्च शिक्षा वाले युवाओं की हिस्सेदारी 2000 में 35.2 प्रतिशत से लगभग दोगुनी होकर 2022 में 65.7 प्रतिशत हो गई है.

कोविड के कारण स्किल सेंटर बुरी तरह प्रभावित हुए और मंत्रालय की ओर से कोई विशेष सहयोग नहीं मिलने से मामला और भी बदतर हो गया. महामारी के बाद सख्त नियमों के साथ नई गाइडलाइंस जारी की गईं. प्रशिक्षकों को पैसे मिलने में भी कुछ देरी हुई.

लेकिन मंत्रालय ने दावा किया है कि कुछ क्षेत्रों में इस धनराशि का उपयोग ही नहीं किया गया.

मंत्रालय ने एक लिखित जवाब में कहा, “स्किल डेवलपमेंट योजनाओं के तहत राज्यों को धन आवंटित करने की कोशिश की गई है, लेकिन कुशल उपयोग में चुनौतियों के कारण कुछ क्षेत्रों में धनराशि खर्च नहीं हो पाई है.”

इस कार्यक्रम के लिए दोनों सरकारों — यूपीए और एनडीए — का अपना-अपना दृष्टिकोण था.

यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों के तहत स्किल प्रोग्राम का हिस्सा रहे एक सूत्र ने कहा, “यूपीए सरकार ने जो बनाया था, उसका एक लंबा दृष्टिकोण था. इसमें तेज़ी भी आ रही थी, लेकिन सरकार बदल गई. शुरुआती वर्षों में वर्तमान सरकार ने युवाओं को कुशल बनाने के क्षेत्र में यूपीए सरकार द्वारा किए गए कार्यों की केवल आलोचना की.”

2014 में सरकार ने स्किल डेवलपमेंट और उद्यमिता मंत्रालय का गठन किया और आईटीआई, जन शिक्षण संस्थान केंद्रों आदि की तरह यूपीए-युग एनएसडीसी भी इसके अंतर्गत आ गया. यह मोदी सरकार के कईं प्रमुख योजनाओं में से एक थी, जिनके नामकरण में ‘इंडिया’ था — मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया आदि. इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक 300 मिलियन लोगों को प्रशिक्षित करना है.

अग्रवाल ने स्वीकार किया कि स्वरोज़गार और सूक्ष्म एवं लघु क्षेत्र भाजपा के विकास मॉडल के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं. उन्होंने कहा, “ऐसी कई योजनाएं हैं जो विनिर्माण क्षेत्र में मदद करती हैं, चाहे वह पीएलआई, मुद्रा ऋण या विश्वकर्मा योजना और स्ट्रीट वेंडर सहायता प्रणाली, सहकारी क्षेत्र और यहां तक ​​​​कि महिला स्वयं सहायता समूह भी हों.”

उक्त विशेषज्ञ ने कहा कि मोदी सरकार ठीक उसी योजना का पालन कर रही है जो यूपीए सरकार ने बनाई थी. इसने कॉरपोरेट्स, एनजीओ और शैक्षणिक संस्थानों के साथ समझौता किया. सरकार ने ज़मीनी स्तर पर लोगों को कार्यक्रमों के बारे में जागरूक करने के लिए उनसे बातचीत की.

उक्त सूत्र ने कहा, “श्रम और रोज़गार विभाग को रोज़गार और कौशल में विभाजित किया गया. अधिकांश कार्यक्रम मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिए गए. वर्तमान सरकार ने पिरामिड की निचले तल पर ध्यान केंद्रित किया. केंद्र और प्रशिक्षक मंत्रालय द्वारा दिए गए लक्ष्यों को पूरा करने में व्यस्त हो गए और कौशल और नौकरियां प्रदान करने के लक्ष्य बीच में ही खो गए.”

हालांकि, विशेषज्ञों का तर्क है कि कौशल विकास का कार्य प्रगति पर है और यहां तक ​​कि इंजीनियरिंग या मेडिकल डिग्री भी नौकरी की गारंटी नहीं देती है. उन्होंने कहा कि बड़ी समस्या यह है कि पुरानी और काफी हद तक किताबी शिक्षा प्रणाली 21वीं सदी के कार्यबल के लिए रोज़गारोन्मुखी नहीं है.

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, 14 मार्च 2023 तक केवल 22.2 प्रतिशत प्रमाणित उम्मीदवारों को पीएमकेवीवाई के सभी चरणों के तहत नौकरी मिली थी. पीएमकेवाई के दूसरे चरण में, 23.4 प्रतिशत को नौकरी मिलने के साथ प्लेसमेंट चरम पर पहुंच गया, लेकिन तीसरे चरण में यह घटकर 10.1 प्रतिशत रह गई.


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स्किल सेंटर को चलाना

शिखा सिंह पीरागढ़ी स्थित अपने कार्यालय में हाथ में कागज़ की कुछ शीट लिए बैठी हैं. यह MSDE द्वारा भेजी गई लगभग 260 कोर्स की एक लिस्ट है. उन्हें तय करना मुश्किल हो रहा है कि अपने स्किल सेंटर में वे कौन-सा कोर्स चला सकती हैं.

पिछले 14 साल में 39-वर्षीया सिंह ने हज़ारों महिलाओं और पुरुषों को कुशल बनाया है, लेकिन सेंटर चलाने की अतिरिक्त चुनौतियों के बिना नहीं.

उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यूनतम वेतन पर एक अच्छा शिक्षक ढूंढना, छात्रों को प्रशासनिक कार्यों के डिजिटलीकरण के बारे में पढ़ाना और तय बजट में सब कुछ मैनेज करना भी एक चुनौती है.

सीमित बजट के साथ, वे केवल वही कोर्स चला सकती हैं जिनमें कम पैसे की ज़रूरत हो. इसका मतलब है कि उनके पास बड़ी मशीनें नहीं हो सकतीं, या वह अच्छे ट्रेनर्स को काम पर नहीं रख सकतीं. उन्होंने पैकेजिंग, सेल्सपर्सन, सोलर पीवी प्रोजेक्ट हेल्पर आदि जैसे स्किल को छोड़कर, कढ़ाई मशीन ऑपरेटर, हेल्पर इलेक्ट्रीशियन, असिस्टेंट ड्रेस मेकर आदि को कोर्स चुना है.

लेकिन दिल्ली में नेशनल स्किल सेंटर इंस्टीट्यूट जैसे कुछ बड़े और पुराने स्किल सेंटर पूरे साल वाले कोर्स चलाते हैं, जिनमें बेसिक कॉस्मेटोलॉजी, ऑफिस मैनेजमेंट, ड्रेस मेकिंग आदि शामिल हैं.

शिखा सिंह ने कहा, “अब तक, हमें बैच का कोर्स पूरा होने से पहले सरकार से पैसा मिलता था, लेकिन नए नियम के मुताबिक कोर्स खत्म होने के बाद ही पैसा मिलेगा और वो भी केवल उनके लिए जिन्होंने कोर्स को पूरा किया है और प्रमाण पत्र लिया हो.”

उन्होंने कहा, “हमें मंत्रालय से प्रति छात्र लगभग 1,100 रुपये मिलते हैं. इसमें हमें ट्रेनिंग के लिए मशीनें और प्रोडक्ट उपलब्ध कराने होंगे, शिक्षकों की सैलरी और बिजली के बिल भरने होंगे और हर चीज़ का प्रबंधन करना होगा.”

पीएमकेवीवाई केंद्रों में प्रति छात्र बजट लगभग 6,000 रुपये है जो ऑटोमोटिव सेवा तकनीशियन, हेल्थकेयर, खाद्य प्रसंस्करण आदि जैसे कोर्स करवाता है.

हालांकि, मंत्रालय के अधिकारी इनमें से कुछ स्किल सेंटरों में धन की हेराफेरी का आरोप लगाते हैं. एमएसडीई के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कुछ संस्थान केंद्रों पर आवंटित धन खर्च नहीं करते हैं. इसलिए, डिजिटल रूप से हर चीज़ की निगरानी करने और इसे और अधिक पेशेवर बनाने के लिए सख्त नियम लाए गए हैं.”

सिंह ने कुछ केंद्रों द्वारा धन की हेराफेरी के बारे में सहमति जताई, लेकिन नए नियमों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “दूसरों के लिए चीज़ों को मुश्किल कर देना तो किसी चीज़ का हल नहीं था.”

दिल्ली के पीरागढ़ी में जेएसएस केंद्र की निदेशक कुलविंदर कौर ने कहा कि इन संस्थानों के चलने की दर टिकाऊ नहीं है.

दिल्ली में एक दर्जन से अधिक स्किल सेंटर चलाने वालीं कौर ने कहा, “जब योजना शुरू की गई थी, तो बहुत से लोगों ने पीएमकेवीवाई केंद्र खोलने में निवेश किया था, लेकिन प्रोजेक्ट के तहत पैसे कोर्स पूरा होने के बाद मिलते हैं और अगर कोई छात्र अंतिम तिथि से दो दिन पहले कोर्स को छोड़ देता है, तो केंद्र को सरकार से पैसा नहीं मिलेगा.”

बंद हो रहे स्किल सेंटर्स पर मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि उनमें से ज्यादातर डिमांड के आधार पर चलते हैं. यानी कि “अगर क्षेत्र में किसी तरह के सेंटर की डिमांड नहीं है, तो इसे चलाने का कोई मतलब नहीं है.”


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रोज़गार की राजनीति

नौकरी के कईं इंटरव्यू में नाकाम रहने के बाद, बीए प्रोग्राम ग्रेजुएट सुमित कुमार ने एक साल के कंप्यूटर ऑपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट कोर्स में नजफगढ़ में दाखिला लिया, लेकिन कंपनियां बार-बार उनकी यह कहकर उपेक्षा करती रहीं कि वे “उपयुक्त” नहीं हैं.

27-वर्षीय कुमार, जिन्होंने ऑपन से ग्रेजुएशन पूरी की, ने कहा, “फिलहाल, मैं एक कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर में काम करता हूं, लेकिन नौकरी के अन्य विकल्प तलाश रहा हूं क्योंकि यह काफी नहीं है, हालांकि, मुझे खारिज किया जाता रहा है.”

यह वो भावना है जिसे कांग्रेस अपने घोषणापत्र में इसके बारे में वादे करके भुनाने की कोशिश कर रही है. पार्टी ने 25 साल से कम उम्र और ग्रेजुएट डिग्री या डिप्लोमा वाले सभी लोगों के लिए सार्वजनिक या निजी फर्मों में गारंटीकृत प्लेसमेंट का वादा करते हुए ‘अप्रेंटिसशिप का अधिकार’ का प्रस्ताव रखा है. घोषणापत्र में एक साल के लिए एक लाख रुपये का वजीफा देने का भी वादा किया गया है.

घोषणापत्र समिति के प्रमुख सदस्य और कांग्रेस पार्टी के पेशेवर विंग के अध्यक्ष प्रवीण चक्रवर्ती ने कहा, “आरटीएपी (अप्रेंटिसशिप का अधिकार) आज की तरह कोई नौकरशाही आदेश या कार्यक्रम नहीं है. यह एक सामाजिक एवं आर्थिक नीतिगत दृष्टि है. यह एक कानूनी अधिकार है, दुनिया में पहला. तथ्य यह है कि आज अगर आप 25 साल से कम उम्र के दस शिक्षित युवाओं से बेतरतीब ढंग से पूछें, तो सात आपको बताएंगे कि उन्हें नौकरी नहीं मिल रही और वे निराश और हतोत्साहित महसूस करते हैं.”

यह उपाय वर्षों तक सरकारी नियमों में रहा, लेकिन इसे बहुत धीमी गति से लागू किया गया. नई बात यह है कि अब कानूनी अधिकार का वादा किया गया है, जो कानूनी गारंटी के प्रति कांग्रेस की रुचि पर आधारित है.

चक्रवर्ती ने कहा, “हमने उद्योग, अंतरराष्ट्रीय और भारतीय विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं के साथ समय बिताया और फिर इसे अपने घोषणापत्र के लिए डिजाइन किया.”

‘अप्रेंटिसशिप का अधिकार’ आज की तरह कोई नौकरशाही आदेश या कार्यक्रम नहीं है. यह एक सामाजिक एवं आर्थिक नीतिगत दृष्टि है. यह एक कानूनी अधिकार है, दुनिया में पहला. तथ्य यह है कि आज अगर आप 25 साल से कम उम्र के दस शिक्षित युवाओं से बेतरतीब ढंग से पूछें, तो सात आपको बताएंगे कि उन्हें नौकरी नहीं मिल रही और वे निराश और हतोत्साहित महसूस करते हैं.

— प्रवीण चक्रवर्ती, कांग्रेस

2017 से 2022 तक पीएमकेवीवाई के प्रीत विहार केंद्र में पढ़ाने वाले 33-वर्षीय प्रतीक सक्सेना ने इन सेंटर्स में प्लेसमेंट की तुलना में सरकारी समर्थन की कमी पर प्रकाश डाला.

सक्सेना ने कहा, “जो लोग कोर्स के प्रति गंभीर थे उन्हें प्लेसमेंट मिली, लेकिन यह सरकार नहीं थी जिसने कंपनियां भेजीं, यह हम थे जिन्होंने इसकी व्यवस्था की. हालांकि, सैलरी न्यूनतम वेतन मानदंडों को पूरा नहीं करती थी, पर हम केवल इतना ही कर सकते थे.”

सी-सूट सर्किल में रोज़गार के सवाल को अक्सर इस अफसोस के साथ निपटाया जाता है कि भारत में पर्याप्त स्किल्ड फॉर्स नहीं है और इसलिए यहां बेरोज़गारी है. जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी से आगे बढ़ेगी, कुशल कार्यबल की मांग बढ़ती जाएगी और श्रमिक अधिक सैलरी की भी मांग करेंगे.

अग्रवाल ने कहा, “कौशल विकास मंत्रालय ने टूलकिट के जरिए से लोगों को ट्रेनिंग और स्किल प्रदान करने के लिए कई प्रोग्राम शुरू किए हैं. सरकार की ये सभी योजनाएं युवाओं के कौशल विकास में मदद करती हैं. हो सकता है कि कोविड ने इसे धीमा कर दिया हो, लेकिन यह दोबारा गति पकड़ेगा.”

सक्सेना को कोर्स के बारे में पूछताछ के लिए बहुत सारी कॉलें आती हैं, लेकिन उनके पास सबके लिए एक ही जवाब है, “अब हम काम नहीं कर रहे हैं, मुझे नहीं पता कि केंद्र कब खुलेगा.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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