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Tuesday, 16 April, 2024
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कौशल विकास के लिए 2022 तक 50,000 युवाओं को जाना था जापान, दो वर्षों में गए सिर्फ 54

पिछले दो साल से इस प्रोग्राम का बढ़ा चढ़ाकर प्रचार प्रसार किया गया है लेकिन अब तक सिर्फ 54 लोगों को ही जापान भेजा गया है.

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नई दिल्ली: कौशल विकास मंत्रालय ने साल 2017 में भारत-जापान के बीच टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम (टीआईटीपी) शुरू किया था. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस प्रोग्राम का लक्ष्य बताते हुए कहा था कि 3 लाख भारतीय युवाओं को जापान में 3 से 5 साल की इंटर्नशिप कराई जाएगी. साथ ही कहा था कि 3 लाख में से 50 हजार को जापान में ही नौकरी मिल जाएगी.

इस घोषणा के दो साल पूरे होने को आए हैं लेकिन अभी तक टीआईटीपी के तहत सिर्फ 54 युवाओं को ही जापान भेजा गया है. इस महीने के आखिरी तक इनकी संख्या 59 हो जाएगी. दिप्रिंट को ये जानकारी प्रोग्राम को लागू करने और मॉनिटरिंग कर रही संस्था नेशनल स्किल डवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएसडीसी) से मिली है. गौरतलब है कि पिछले दो साल से स्किल इंडिया के नाम पर इस प्रोग्राम का बढ़ा चढ़ाकर प्रचार-प्रसार किया गया है और देश के युवाओं को जापान में नौकरियां दिलाने के सपने दिखाए गए हैं. फिलहाल देश में 25 की उम्र से कम 54 फीसदी आबादी है.

कब- कब भेजा गया जापान?

इस प्रोग्राम के तहत 17 युवाओं का पहला बैच जुलाई व सितंबर 2018 में भेजा गया था. इस ग्रुप में 23 से 27 साल की उम्र के लोग शामिल थे. जिनमें से 12 लड़के दक्षिण तमिलानाडु के आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से थे. मंत्रालय की आधिकारिक प्रेस रिलीज के मुताबिक इस बैच को 65,000 रुपए प्रति महीने इन्सेंटिव दिया गया था.

इसके अलावा 17 युवाओं का एक दूसरा बैच जनवरी 2019 को भेजा गया था. इनमें से पहली बार 5 युवाओं को हेल्थ केयर इंडस्ट्री में भेजा गया है. गौरतलब है कि जापान में वृद्धों की तेजी से बढ़ती संख्या के चलते उनके देखभाल के लिए वहां हेल्थ केयर इंडस्ट्री का जबरदस्त विस्तार हुआ है. इस बैच के युवाओं को जापान के स्टैंटर्ड के मुताबिक ही इन्सेंटिव दिया जाएगा. एनएसडीसी के मुताबिक हेल्थ केयर इंडस्ट्री में 1 लाख रुपये तक सैलरी मिल जाती है.

जापान भेजने से पहले 6 से 18 महीने तक होती है ट्रेनिंग

एनएसडीसी के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे साथ कई संस्थाएं जापानी भाषा सिखाने का काम करती हैं. युवाओं की ट्रेनिंग 6-18 महीने की होती है. इस दौरान इन युवाओं को वहां की भाषा, कल्चर और व्यवहारिक तौर तरीके सिखाए जाते हैं. उन्हें वहां किसी भी तरह की दिक्कत ना हो इसके लिए पहले से ही तैयार करना होता है. साथ ही हम समय-समय पर उनसे फीडबैक लेते रहते हैं.’ मंत्रालय के मुताबिक फिलहाल 500 युवाओं को ये ट्रेनिंग दी जा रही है.

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नाम ना छापने की शर्त पर कौशल मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘ऐसा नहीं है कि सरकार प्रयासरत नहीं है. दरअसल इस प्रोग्राम में युवाओं का भी रुझान कम है और इसके पीछे कई वजहें हैं. जापानी सबसे कठिन भाषाओं में से एक है. इसके अलावा जापान में काम करने के लिए उनके जैसा ही व्यवहार सीखना पड़ता है. जिसके चलते कम उम्र के युवा अवसाद से घिर सकते हैं. किसी जगह आपको दूसरे देश के नागरिक की तरह व्यवहार करना पड़े तो वहां काम करना मुश्किल हो जाता है.’

वो आगे जोड़ते हैं, ‘जापान को अब अपनी वृद्ध होती जनसंख्या के लिए हेल्थ केयर इंडस्ट्री में विदेशी मजदूर चाहिए. लेकिन हमें यह भी देखना है की भारत में वृद्धों का ख्याल रखने की स्किल का कोई खास विकल्प नहीं है.’

क्या है टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम?

ये प्रोग्राम साल 1993 में शुरू हुआ था. इसको लेकर जापान सरकार का कहना था कि इससे विकासशील देशों को फायदा होगा और उन्हें खेती, निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग में स्किल और ट्रेनिंग मुहैया कराई जाएगी.

तीन साल की इस ट्रेनिंग से विकासशील देशों की इंड्रस्ट्री को फायदा पहुंचाना है. इस प्रोग्राम के तहत 74.5% इंटर्न चीन और वियतनाम के हैं. 2016 में जापान में विदेशों से गए इंटर्न करीब 2 लाख 11 हज़ार 108 थे. पिछले कुछ सालों से भारत भी जापान से अपने व्यापारिक रिश्ते प्रगाढ़ करने में जुटा हुआ है.

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