scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होमफीचरबाल विवाह रोकने के लिए भंवरी देवी को चुकानी पड़ी बलात्कार से जिंदगी की कीमत, इंसाफ का आज भी है इंतजार

बाल विवाह रोकने के लिए भंवरी देवी को चुकानी पड़ी बलात्कार से जिंदगी की कीमत, इंसाफ का आज भी है इंतजार

कई लोगों ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया है कि 9 महीने की वो नन्हीं दुल्हन भंवरी देवी से कैसे नफरत करने लगी. दिप्रिंट ने पहली बार उस बच्ची का पता लगाया और उससे बात की जो आज 32 साल की है.

Text Size:

जयपुर: प्रदेश के भटेरी गांव में अपने सीलन भरे घर के बरामदे में जूट की खाट पर भंवरी देवी बैठी थीं. बारिश के कारण घर के पीछे खाली पड़ी ज़मीन पूरी तरह पानी से भर चुकी थी, जिसे वो देख रही थीं. भंवरी के घर की उखड़ती झड़ती दीवारें, जंग खा रही खिड़कियां और मौसम की मार झेलता इंटीरियर बता रहा था कि देवी इन दिनों कैसा महसूस कर रही हैं — एक नारीवादी बिलकुल थकी हुई पतझड़ के मौसम की तरह.

1980 और 1990 के दशक के दौरान भंवरी देवी का नाम ग्रामीण नारीवाद के एक नए ब्रांड की तरह था जो बाल विवाह की सदियों पुरानी प्रथा के खिलाफ राजस्थान की लंबी, कठिन लड़ाई का पर्याय बन गया था. उनका नाम 90 के दशक के नारीवादी संघर्षों में शहरी, विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से लेकर ग्रामीण, हाशिए पर रहने वाले समूहों तक एक नए नेतृत्व परिवर्तन के लिए एक मिसाल बन गया था.

1992 में नौ महीने की नवजात के बाल विवाह को रोकने की कोशिश करने पर भंवरी के साथ बलात्कार किया गया था. वो आज, 70 साल की हो चुकी हैं. वो फेमिनिस्ट (नारीवादी), जो ग्रामीण राजस्थान और वहां रहने वालीं महिलाओं के जीवन को बदलना चाहती थी, आज असहाय रूप से अपने बेटों और बेटियों को अपनी ज़मीन और उसके सामूहिक बलात्कार के बाद मिले पैसे के लिए लड़ते हुए देख रही हैं.

उन्हें अपने पति की हरदिन याद आती है.

अपने पति मोहन को याद करते हुए भंवरी की आंखें भर आईं, उन्होंने कहा, “उसके बिना मैं अकेली हूं. अगर वो यहां होते तो अब तक पानी की इस समस्या का समाधान करा चुके होते.”

Bhanwari holding a photo of her husband Mohan Lal Prajapat. He died in 2020 due to cancer.  | Jyoti Yadav | ThePrint
भंवरी के हाथ में उसके पति मोहन लाल प्रजापत की तस्वीर है। 2020 में कैंसर के कारण उनकी मृत्यु हो गई। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

1992 के बाद से ही भंवरी के जीवन की कहानी नौ महीने की बच्ची से अटूट रूप से जुड़ी हुई है. भंवरी ने इस शादी को रोकने की बहुत कोशिश की थी. पुलिस और कार्यकर्ताओं के चले जाने के बाद आखा तीज त्योहार जिसे एक शुभ दिन कहा जाता है, की शाम बच्ची की शादी एक साल के लड़के से की जा रही थी. इस दिन सैकड़ों कम उम्र की लड़कियों की शादी कराई जाती है. उस शादी को रोकने की कोशिश के लिए भंवरी ने ज़िदगी की सबसे बड़ी कीमत चुकाई है. शादी के पांच महीने बाद दुल्हन के रिश्तेदारों ने बदला लेने के लिए भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार किया. उनके संघर्ष और बलात्कार के मुकदमे ने वर्षों तक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बटोरीं.

उनके बलात्कार के मामले के परिणामस्वरूप 1997 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐतिहासिक ‘‘विशाखा दिशानिर्देश’’ बनाए गए, एक ऐसा कानून जो लाखों भारतीय महिलाओं को कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाता है.

लेकिन कई लोगों ने इस बात को नज़रअंदाज कर दिया कि नौ महीने की बच्ची कैसे बड़ी होकर भंवरी देवी से नफरत करने लगी. दिप्रिंट ने पहली बार उस बाल-वधू का पता लगाया, जो अब 32-वर्षीय बाई देवी बन गई हैं. दोनों महिलाएं तब से कई बार आमने-सामने आ चुकी हैं, लेकिन कभी बात नहीं की. वो दोनों दो ध्रुवों के दो छोरों पर खुद को पाती हैं.

तीन दशक पहले दोनों महिलाओं के बीच जो संबंध था, वो अब एक अधूरी नारीवादी क्रांति की फटी-पुरानी कहानी कहता है.

भंवरी देवी कहती हैं, “मैं वो भंवरी देवी नहीं बनना चाहती थी जो मैं बन गई. यह अकेले मेरी लड़ाई नहीं थी. यह सभी महिलाओं के न्याय की लड़ाई थी और मैंने उनमें से प्रत्येक के लिए लड़ाई लड़ी. ”

भटेरी गांव से महज़ 40 किलोमीटर दूर रहने वाली बाई देवी कहती हैं, “मैं भंवरी को मेरे पिता और चाचाओं को जेल भेजने के लिए याद करती हूं. मैं उन्हें हर दिन कोसती हूं.”

इन दशकों में भारत अप्रत्याशित रूप से बदल गया है — ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और एक हलचल भरा मध्यम वर्ग. हालांकि, बाल विवाह की समस्या अभी भी इस समाज में कायम है. यूनिसेफ के अनुसार, अभी भी हर साल 18 साल से कम उम्र की लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी करवा दी जाती है.


यह भी पढ़ें: पुलिस बनी थेरेपिस्ट, टेस्ट्स पर लगा प्रतिबंध- कोटा में छात्रों की आत्महत्या को रोकने में हर कोई जुटा


‘गुर्जर सम्मान को बदनाम किया’

उस वर्ष आखा तीज 5 मई को थी और त्योहार से पहले के पखवाड़े में राजस्थान सरकार ने बाल विवाह को समाप्त करने के लिए एक अभियान चलाया था. भटेरी गांव में राम करण गुर्जर और शांति देवी की दो बेटियों की शादी तय हो गई थी — जिनमें एक वयस्क और एक नवजात थी. उनके घर का रंग रोगन कराया जा रहा था, परिवार शादी की तैयारियों में मशगूल था उसने दौसा शहर से नए कपड़े खरीदे थे और टेंट और मिठाइयों के लिए हलवाई को पैसे भी दे दिए थे.

भंवरी, जो शांति से दूध खरीदती थी, से शादी के बारे में सुना. उसने उसे समझाने की कोशिश की कि वो अपनी नवजात बेटी की शादी न करें.

भंवरी ने शांति से कहा, “आप उसकी शादी पर जो 10,000 रुपये खर्च कर रही हैं, उसे किसी बैंक में जमा किया जा सकता है. जब वो बड़ी हो जाएगी, तो आप उसकी शादी कर देना.” भंवरी को बाद में अपनी अदालती गवाही में शांति को कही यह बात याद आई. इस बात के बाद गुर्जर परिवार ने उन्हें अपने यहां से भगा दिया और दूध बेचना भी बंद कर दिया.

सबसे पहले भंवरी दो सरकारी अधिकारियों रोशन देवी चौधरी और डॉ. प्रीतम पाल को बाल-वधू के परिवार के पास ले गई. जहां उन्हें आक्रोष का सामना करना पड़ा और उनसे शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया गया. बच्चे के चाचा बद्री ने भंवरी को गालियां दीं. वो उन लोगों में से एक था जिन पर बाद में भंवरी से बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था.

अधिकारी चले गए और गांव में पुलिस को भेज दिया गया.

आखा तीज के दिन पुलिस आई. उस नवजात बच्ची को दुल्हन की लाल पोशाक पहनाई गई थी. विवाह की वेदी को पड़ोसी की छत पर शिफ्ट कर दिया गया था.

भंवरी ने कहा, “मैंने पुलिस को नहीं बुलाया. प्रशासन की ओर से पुलिस भेजी गई. वो आए, दावत का आनंद लिया और चले गए.”, लेकिन गुर्जर अब नाराज़ थे और वो उनके पीछे लग गए.

बाई ने कहा, “बड़े होने के दौरान मुझे अपनी शादी के बारे में पता चला. मुझे बताया गया कि मेरे परिवार ने देसी घी की दावत का आयोजन किया था और कैसे भंवरी ने पुलिस को सूचित करके गुर्जरों के सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश की.”


यह भी पढ़ेंः ‘मैंने बच्चों को वीडियो नहीं दिखाया’- ट्रेन गोलीबारी पीड़ित की पत्नी अब आधार को ढाल के रूप में दिखाती है


विरोध से भरी महिला

भारत के नारीवादी आंदोलन और न्यायशास्त्र पर अपनी शादी के बड़े पैमाने पर प्रभाव के बावजूद, बाई का जीवन काफी हद तक लोगों की नज़रों से दूर ही गुज़रा है.

आज बाई देवी खुद एक मां हैं.

वो अपने माता-पिता की नौवीं संतान थी. उनके माता-पिता ने उन्हें एक प्रचलित नाम गल्ला दिया, जिसका अर्थ था ‘रुको, बस’. स्कूल में उनका नाम मन भारी (भारी दिल) रखा गया था. बाद में शादी के बाद वो बाई बन गईं जिसका मतलब सिर्फ लड़की होता है.

2008 में जब वो महज़ 17 साल की थीं, तब वो अपने पति के साथ रहने लगी.

बाई इन दिनों पूरे दिन 40 बीघे कृषि भूमि की बाड़ लगाने का काम करती हैं. उन्होंने हाल ही में खेत पर तीन कमरों का घर भी बनाया है.

32-year-old-Bai-Devi-is-now-a-mother.-Married-at-9-months-old-she-was-sent-to-her-in-laws-house-at-17. | Jyoti Yadav | ThePrint
32 साल की बाई देवी अब मां हैं. 9 महीने की उम्र में शादी कर दी गई और 17 साल की उम्र में उसे ससुराल भेज दिया गया ज्योति यादव | दिप्रिंट

उनके पति हरकेश गुर्जर, जो 10वीं कक्षा तक पढ़े हैं, नमकीन बनाते और बेचते हैं. बाई ने अपने खुरदरे, झुलसे हाथ दिखाते हुए कहा, ‘‘गांव में रहने वाली महिला के लिए काम, काम और सिर्फ काम है.’’

बाई ने अपना वजन कम होने के बारे में शिकायत की और बताया कि कैसे अशोक गहलोत के महंगाई राहत शिविरों से उसके कल्याण योजना कार्डों से थोड़ी मदद मिल रही है, लेकिन उन्होंने कहा कि भटेरी गांव में उनका परिवार घर बनाने, नौकरी पाने और पारिवारिक सम्मान बहाल करने में जुटा है.

बाई ने कहा, “जब मेरी शादी हुई तब मैं सिर्फ नौ महीने की थी. मुझे बताया गया कि शादी के दौरान किसी ने मुझे गोद में उठा लिया था. तब मेरी कोई राय नहीं थी, लेकिन आज मैं कह सकती हूं कि जब आपके कई बच्चे हों तो कम उम्र में शादी करने में कोई बुराई नहीं है.’’ उन्होंने कहा कि उनके पति के परिवार में लड़कियों की भी जल्दी शादी कर दी जाएगी.

बाई ने कहा, “हमारे अपने रीति-रिवाज हैं. अब हम जन्म के समय शादी नहीं करते हैं, लेकिन हम अभी भी अपने बच्चों की शादी कम उम्र में कर देते हैं.’’

बाई का एक बेटा है और वो कहती हैं कि उन्हें राहत है कि उन्हें दहेज के लिए 5 लाख रुपये की व्यवस्था करने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी, लेकिन बाई विरोधाभासों वाली महिला हैं. एक ओर, वो बचपन में ही उनकी शादी करने के लिए अपने माता-पिता का बचाव करती हैं. दूसरी ओर, वो एक दूर की महिला रिश्तेदार के बारे में ईर्ष्या से बात करती है जो राज्य पुलिस अधिकारी बन गई है.’’

बाई 5वीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ पाईं जिसकी वजह से वो खुद को लाचार बताने में भी गुरेज़ नहीं करती हैं.


यह भी पढ़ें: बॉलीवुड और Netflix की फिल्मों से परे, 1992 के अजमेर गैंग रेप की पीड़िताएं अब कोर्ट के बाद लड़ रही हैं प्राइवेसी की लड़ाई


साथिन बनना

बाई की तरह भंवरी देवी भी एक बाल वधू थीं. वे जयपुर के रावसा गांव में कुम्हार परिवार की सबसे बड़ी संतान थीं.

उनके माता-पिता और चार बच्चे बर्तन और गधे बेचकर अपनी जीविका चलाते थे — कुम्हार राजस्थान के हाशिए पर रहने वाले मध्य जाति समूह से हैं जिन्हें ओबीसी कहा जाता है.

भंवरी ने कहा, “गरीब अपने बच्चों को वैसे ही पालते हैं जैसे बिल्लियां अपने बिल्ली के बच्चों को पालती हैं और कुत्ते अपने पिल्लों को पालते हैं. यह वही बात है.’’ बचपन में उन्हें बर्तन धोना, गोबर के उपले बनाना और छोटे-मोटे काम करने पड़ते थे. उन्हें स्कूल नहीं भेजा गया. वो बताती हैं कि अधिकांश दिनों में घर पर गेहूं का आटा नहीं होता था, वो बस बाजरा चबाते थे.’’

उन्होंने कहा, “मेरे और मेरे भाई-बहनों के मुंह में छाले हो जाते थे और हमारे दांतों में दर्द होता था.’’

उन्होंने कहा कि मोहन लाल प्रजापत से उनकी शादी स्वर्ग में नहीं बल्कि गधे के मेले में हुई थी. मेले में उनके पिता दोस्त बन गए और उन्होंने अपने बच्चों से शादी करने का फैसला किया. उनकी शादी पांच साल की उम्र में कर दी गई और जब वे 15 साल की हुईं तो अपने पति के साथ रहने लगीं.

भंवरी ने कहा, “तब से, यह मिट्टी का घर ही मेरा घर रहा है. मैंने अपनी सारी लड़ाइयां यहीं से लड़ीं हैं.’’

Bhanwari Devi in her house in Bhateri. She came to live here with her husband Mohan Lal Prajapat at the age of 15. | Jyoti Yadav | ThePrint
भंवरी देवी भटेरी स्थित अपने घर में। वह 15 साल की उम्र में अपने पति मोहन लाल प्रजापत के साथ यहां रहने आ गईं ज्योति यादव | दिप्रिंट

लेकिन बाई के विपरीत, भंवरी ने उन परंपराओं से भी लड़ाई लड़ी जिनमें वो रची बसी थीं.

उन्होंने कहा, “मैं वो भंवरी देवी नहीं बनना चाहती थी जो मैं बन गई. यह अकेले मेरी लड़ाई नहीं थी. यह सभी महिलाओं के लिए न्याय की लड़ाई थी और मैंने उनमें से प्रत्येक के लिए लड़ाई लड़ी.’’

1985 में किसी समय भंवरी सिर पर पानी का बर्तन लेकर घर लौट रही थीं. तब उन्होंने सुना कि कोई उनका नाम पुकार रहा है. महिला राजस्थान सरकार के महिला विकास कार्यक्रम (डब्ल्यूडीपी) से थी.

A photo of Bhanwari Devi from the 1990s. | Jyoti Yadav | ThePrint
1990 के दशक की भंवरी देवी की एक तस्वीर। | विशेष व्यवस्था द्वारा

डब्ल्यूडीपी की प्रचेता (पर्यवेक्षक) रोशन देवी चौधरी ने भंवरी को बताया, “हम (राजस्थान सरकार की महिला सशक्तिकरण योजना के लिए) महिलाओं का चयन करने आए हैं. आपको एक साथिन (बहन, कॉमरेड या दोस्त) के रूप में चुना गया है.’’

तभी नारीवादी कार्य में उनकी पहली यात्रा राजस्थान के शुष्क, सामंती गांवों में शुरू हुई. यह इलाका राज्य का वो हिस्सा था जिसे कभी भारत का बीमारू बेल्ट कहा जाता था — बीमार राज्य जो गरीब थे और स्वास्थ्य और शिक्षा में पिछड़े थे. यहां महिलाओं को पर्दा करना पड़ता था और उन्हें गांव के बुजुर्गों की बैठकों में बैठने की मनाही थी.

यह एक सरकारी नीति थी जिसने भारत की प्रतिष्ठित ग्रामीण नारीवादी को जन्म दिया, यह बाई की शादी थी जो पितृसत्ता के खिलाफ लड़ाई में भंवरी आकर्षण का केंद्र बन गईं.


यह भी पढ़ें: 1980 का मुरादाबाद नरसंहारः लापता आदमी की कहानी, यादें, एक रात वाली मस्जिद


पीड़ित से कार्यकर्ता तक

1980 के दशक की शुरुआत में राजस्थान सरकार ने महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सदियों पुरानी सामंती प्रथाओं से लड़ने का कठिन कार्य अपने ऊपर लिया. राजस्थान यूनिसेफ की मदद से महिला सशक्तिकरण के लिए एक विशेष कार्यक्रम लाने वाला पहला भारतीय राज्य बना. छोटी लड़कियों को स्कूल भेजना, उनकी कम उम्र में शादी रोकना, बच्चों की संख्या सीमित करना, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा और विधवा पुनर्विवाह कुछ महत्वाकांक्षी लक्ष्य इसमें शामिल थे.

लेकिन यह आसान नहीं होने वाला था. सरकारें शायद ही कभी स्थायी सामाजिक परिवर्तन लाती हैं; अक्सर ज़मीनी स्तर के नेता ही परंपराओं को चुनौती देने का साहस जुटाते हैं.

कार्यक्रम के तीन विभाग थे—प्रशासन, गैर सरकारी संगठन और अनुसंधान. बड़े राज्य के पांच जिलों में ग्रामीण महिला नेताओं की एक सेना की पहचान करना और उसका निर्माण करना गैर सरकारी संगठनों की जिम्मेदारी थी.

भंवरी देवी उनमें से एक थीं.

स्त्री रोग विशेषज्ञ और कार्यक्रम की पूर्व परियोजना निदेशक डॉ. प्रीतम पाल ने कहा, ‘‘सरकार ने कई विकास योजनाएं चलाईं, लेकिन कोई भी योजना सामंती समाज में महिलाओं की यथास्थिति को चुनौती देने में सक्षम नहीं थी.’’, ‘‘हमारे सामने सवाल यह था कि क्या एक अनपढ़ महिला नेता बन सकती है और अन्य महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद कर सकती है.’’

डॉ. पाल 1985 में भंवरी से मिलने भटेरी गांव गईं.

Badri Gurjar is the only one of the five accused that is still alive. Badri says he is confident that the High Court appeal will be in their favour. | Jyoti Yadav | ThePrint
पांच आरोपियों में से बद्री गुर्जर ही एकमात्र ऐसा आरोपी है जो अभी भी जीवित है. बद्री का कहना है कि उन्हें पूरा भरोसा है कि हाईकोर्ट की अपील उनके पक्ष में होगी। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

अधिकारियों ने चयन मानदंड जिसके तहत कुछ नॉर्म्स थे महिला सबसे निचले सामाजिक-आर्थिक स्तर से होनी चाहिए या अपने समुदाय में कुछ प्रभाव रखने वाली या सहानुभूति रखने वाली और कोई लालच न रखने वाली होनी चाहिए का पालन किया गया.

भंवरी ने सभी बक्सों पर सही का निशान लगाया- सहानुभूति, स्पष्टता और स्थिति. सबसे पहले, उसने उन्हें बताया कि वो केवल खेत में दरांती से काम करना जानती है. इसमें कुछ समझाने की ज़रूरत पड़ी. वो जल्द ही 200 रुपये प्रति माह के मामूली वेतन पर सैकड़ों साथिन में शामिल हो गईं.

डॉ. पाल ने कहा कि भंवरी से पहली मुलाकात ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया. वो बताती हैं, “वह अभी-अभी अपने सिर पर भारी चारा लेकर घर आई थी. वह पसीने से भीगी हुई थी, फिर भी वह मेरे लिए पानी लाने के लिए दौड़ी और मुझे देखते ही पंखा झलने लगी.’’

भंवरी जल्द ही अपने तीन साल के सबसे छोटे बच्चे मुकेश को छोड़कर ट्रेनिंग के लिए जयपुर चली गईं. पूरे गांव में बात फैल गई कि भंवरी किसी के साथ भाग गई है.

लेकिन वो शक्तिशाली, नए ज्ञान से सुसज्जित होकर लौटीं, उन्हें पता चल चुका था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा का भाग्य से संबंध नहीं है, बल्कि यह पितृसत्तात्मक संरचना का हिस्सा है. उन्होंने युवा लड़कियों और महिलाओं को संगठित करने के लिए बैठकें आयोजित करना शुरू कर दिया. अपने गांव की एक बालिका वधू ने अपने नए पति के साथ जाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उसके परिवार ने उसे पीटा और भंवरी ने उसे अपने यहां आश्रय दिया.

साथिन के काम ने उनकी अपनी बेटियों के प्रति भी उनका नज़रिया बदल दिया. उनकी बड़ी बेटी स्कूल नहीं जा सकी और कम उम्र में ही उसकी शादी कर दी गई, लेकिन उन्होंने छोटी बेटी के लिए अलग रास्ता तय किया. भंवरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘‘ट्रेनिंग से लौटने के बाद मैंने अपनी छोटी बेटी को स्कूल भेजा.’’ छोटी बेटी रामेश्‍वरी ने बीए और एमए की पढ़ाई की और टीचर बन गईं.

बाल विवाह विरोधी अभियान

महिला समूहों के बीच सामाजिक चेतना की एक नई लहर चल रही थी. 1980 का दशक दहेज के लिए दुल्हनों की हत्याओं का दशक था. ये वो दशक था जब राजस्थान में सती की एक घटना घटी थी जब रूप कंवर उत्साही भीड़ की उपस्थिति में अपने पति की चिता में समा गईं थीं. जयपुर में दहेज के लिए सुधा रानी को जलाकर मार डाला गया. राजस्थान यूनिवर्सिटी की छात्राएं सड़कों पर थीं, प्रदर्शन कर रही थीं, परेड कर रही थीं और धरना दे रही थीं.

साथिन कार्यक्रम ग्रामीण महिलाओं के लिए जागृति का केंद्र बन गया. बाल विवाह की जड़ जमा चुकी प्रथा पर काबू पाने का मौका निकट आ रहा था.

Dr Pritam Pal’s has collected newspaper clippings regarding Bhanwari’s case over the years | By special arrangement
डॉ. प्रीतम पाल ने वर्षों से भंवरी के मामले से संबंधित अखबारों की कतरनें एकत्र की हैं विशेष व्यवस्था द्वारा

उस समय राज्य के मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने बाल विवाह के खिलाफ एक सार्वजनिक अपील जारी की. इसके बाद मुख्य सचिव ने सभी जिला कलेक्टरों को आखा-तीज त्योहार पखवाड़ा को बाल विवाह विरोधी अभियान के रूप में मनाने के लिए लिखा.

अपने गांवों में नियोजित बाल विवाहों की सूची तैयार करने की ज़िम्मेदारी साथिन पर आ गई.

भंवरी ने भी एक ऐसी सूची तैयार की थी जिसमें राम करण गुर्जर और शांति देवी के नौ महीने के शिशु की आने वाली शादी भी शामिल थी.

भंवरी ने कहा, “जब मैं उनके घर गई, तो शांति शादी की तैयारी में व्यस्त थी. मैंने उन्हें कलेक्टर के पत्र के बारे में बताया था.”

नौ महीने की बाई पास ही एक खाट पर थी, भंवरी ने देखा कि बच्ची ने खुद को गंदा कर लिया है और उसकी नाक बह रही है. उन्होंने कहा, “मैं उसे ऐसे नहीं छोड़ सकती थी, मैंने उसे साफ किया और वापस रख दिया.”

गुर्जर लोग उस पर क्रोधित हो गए और वह चली गई.

वर्तमान ग्राम प्रधान वेदराज बैरवा ने कहा कि उस वक्त लोगों को लगा कि भंवरी ने पूरे गांव को शर्मसार कर दिया है.

इस बात पर कुछ बहस हुई कि क्या साथिनों को बाल विवाह को रोकना चाहिए और अपने समुदायों का क्रोध झेलना चाहिए.

डॉ पाल ने कहा, “आईएएस वीएस सिंह कलेक्टर थे. जब उन्होंने हमसे शादी रोकने के लिए कहा तो हमने आदेश का विरोध किया. हमने उन्हें बताया कि कैसे हमारी साथिन गांव में अल्पसंख्यक, गरीब और कमजोर हैं.”, लेकिन लंबी बहस के बाद आखिरकार, उन्होंने कलेक्टर को आगामी बाल विवाहों की एक सूची सौंपी.

साथिनों को मुखबिर के रूप में देखा जाता था और जहां भी वे विरोध करती थीं, उन्हें ग्रामीणों का क्रोध झेलना पड़ता था.

Bhanwari Devi (in yellow dupatta) and other Sathins with Dr Pritam Pal (extreme right) | By special arrangement
डॉ. प्रीतम पाल (सबसे दाएं) के साथ भंवरी देवी (पीले दुपट्टे में) और अन्य साथिन | विशेष व्यवस्था द्वारा

बाल विवाह विरोधी अभियान पूरी तरह से हानिकारक कार्यक्रम साबित हुआ.

डॉ. पाल ने कहा, “परिवारों को पता था कि मुखबिर कौन है. इसलिए हम जानते थे कि इसका उल्टा असर होगा और साथिन को भविष्य में अपना काम करने से रोक दिया जाएगा. आने वाले महीनों में साथिन को अलग-थलग कर दिया गया, उन पर हमला किया गया और उन्हें धमकाया गया. एक मामले में, साथिन और उसके पति को गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया गया.”

लेकिन डेयरी किसानों का समूह भटेरी के गुर्जर परेशान हो गए. वो एक प्रमुख ओबीसी जाति समूह थे और भंवरी का जाति समूह अल्पसंख्यक था. गुर्जर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से कुम्हारों की तुलना में अधिक प्रभावशाली हैं.

भंवरी ने अकल्पनीय और अक्षम्य कार्य किया था — जिसे कई लोग आंतरिक मामला और रीति-रिवाज मानते थे, उसके बारे में बाहरी लोगों से शिकायत करके गांव के सम्मान को धूमिल किया था.

वर्तमान ग्राम प्रधान वेदराज बैरवा ने दिप्रिंट को बताया, “उस समय लोगों ने सोचा कि भंवरी ने पूरे गांव को शर्मसार कर दिया है.” उन्होंने कहा, “भंवरी को संपूर्ण बहिष्कार का सामना करना पड़ा. यहां तक कि ससुराल वालों और उनके परिवार ने उससे बात करना भी बंद कर दिया. किसी ने उसको दूध या आटा नहीं बेचा. जयपुर से डब्ल्यूडीपी कैडर और महिला कार्यकर्ताओं को उनकी दैनिक ज़रूरतों में मदद करने के लिए गांव में डेरा डालना पड़ा. फिर तो भंवरी के खिलाफ धमकियां और भी गंभीर हो गईं.”

राज्य भर की साथिनों को भी बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा था क्योंकि उन्होंने अपने गांवों में बाल विवाह के मामलों को उठाया था. डॉ. पाल ने कहा, “लेकिन भंवरी ने जो झेला वह अकल्पनीय था.”

‘असफल जांच’

धमकियां तो बस शुरुआत थीं. यह आगे चल कर और भी खराब होने वाला था. उसे दंडित करने और अन्य साथिनों के लिए एक उदाहरण के रूप में स्थापित करने की योजना बनाई जा रही थी. 22 सितंबर 1992 को भंवरी और उनके पति मोहन लाल शाम के समय अपने बाजरे के खेत में काम कर रहे थे. वो अपनी भैंस के लिए हरा चारा इकट्ठा कर रहे थे.

भंवरी ने याद करते हुए कहा, “मैंने एक चीख सुनी. मुझे लगा कि मेरे पति को सांप ने काट लिया है. मैं उसकी ओर दौड़ी, लेकिन मैंने देखा कि पांच लोग उसे लाठियों से पीट रहे थे.”

भंवरी ने बाद में 1994 में जयपुर सत्र अदालत में गवाही दी कि गांव के श्रवण शर्मा और बाई के पिता राम करण गुर्जर ने उसके पति को मारा. बाई के दो चाचा बद्री और राम सुख और गांव के समुदाय के नेता और उनके भतीजे ग्यारसा गुर्जर ने उसे पकड़ रखा था. बद्री और ग्यारसा ने बारी-बारी से उसके साथ दुष्कर्म किया.

भंवरी की गवाही में कहा है, “मैंने नीला लहंगा पहना हुआ था जो एक दिन पहले ही धोया था. उन्होंने मुझे रेत पर गिरा दिया. उन्होंने मेरे पैर और घुटने पकड़ लिये. मैं गुहार लगाती रही कि मेरे साथ अन्याय मत करो. उन्होंने मेरी ओढ़नी (दुपट्टा) मेरे मुंह में ठूंस दिया. बलात्कार पांच मिनट तक चला.”

उसने कहा कि वे लोग अंधेरे में गायब हो गये. भागने से पहले, राम सुख ने जबरन उसकी चांदी की बालियां और सोने का पेंडेंट हार छीन लिया. कुछ देर बाद मोहन को होश आया.

Bhanwari stands at the spot where she was gang raped. She lives in the same village as the accused. She saw them build houses, get jobs, marry off their children, and restore their honour while she was boycotted. | Jyoti Yadav | ThePrint
भंवरी उस स्थान पर खड़ी है जहां उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। वह आरोपी के ही गांव में रहती है। उसने उन्हें घर बनाते, नौकरी पाते, अपने बच्चों की शादी करते और अपना सम्मान बहाल करते देखा, जबकि उसका बहिष्कार किया गया था। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

गवाही के अनुसार, “मेरा लहंगा गीला था. मेरी गर्दन और कान बुरी तरह जख्मी हो गये. हम दोनों रो रहे थे.” भंवरी और मोहन उठे और घर की ओर चल दिये. घर में मोहन चारपाई पर गिर पड़ा. भंवरी ने उनसे इस बारे में कुछ करने को कहा. मोहन ने उसे याद दिलाया कि कैसे पहले किसी ग्रामीण ने उनकी मदद नहीं की थी.

निकटतम पुलिस स्टेशन भटेरी से 10 किलोमीटर दूर बस्सी में था.

भंवरी ने बाहर जाकर गांव वालों को जो कुछ हुआ उसके बारे में बताने का फैसला किया. वह दो घरों में गयीं. उसने दो बड़े लोगों को दुष्कर्म के बारे में बताया. लेकिन उन्होंने उससे डब्ल्यूडीपी को सूचित करने के लिए कहा. भंवरी वापस आकर सो गयी.

अगली सुबह, वह मोहन के साथ साइकिल से पाटन गांव के लिए निकल पड़ी, जो उनके गांव से एक किलोमीटर दूर है. वहां उसकी मुलाकात एक अन्य साथिन कृष्णा शर्मा से हुई. फिर वे तीनों जयपुर के लिए सुबह 7 बजे की बस में चढ़ गए. भंवरी और मोहन बस्सी थाने में उतर गए, जबकि कृष्णा जयपुर चली गई.

दोपहर 1 बजे कृष्णा डब्ल्यूडीपी सुपरवाइजर रसीला के साथ बस्सी लौट आई. उसने भंवरी से पूछा कि वह क्या करना चाहती है.

भंवरी ने कहा था, “आज, उनमें से दो ने मेरे साथ बलात्कार किया. कल चार लोग मेरा बलात्कार करेंगे. मैं शोर मचाना चाहती हूं. मैं एफआईआर दर्ज करना चाहती हूं.”

एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन बस्सी के सरकारी अस्पताल में भंवरी की मेडिकल जांच नहीं की गई क्योंकि वहां कोई महिला डॉक्टर मौजूद नहीं थी. इसलिए SHO, रसीला, भंवरी और मोहन एक पुलिस जीप में जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल (SMS) के लिए रवाना हुए. जब वे पहुंचे तो काफी रात हो चुकी थी. डॉ. पाल के मुताबिक, अस्पताल ने मजिस्ट्रेट के पत्र के बिना जांच करने से इनकार कर दिया. भंवरी और उसके पति ने महिला थाने में रात गुजारी.

24 सितंबर को आखिरकार एसएमएस अस्पताल में उसका मेडिकल कराया गया. वह शाम को बस्सी पुलिस स्टेशन लौटी जहां SHO ने उसे अपना लहंगा जमा करने के लिए कहा.

भंवरी ने कहा, “मैंने अपनी लाचारी व्यक्त की क्योंकि मेरे पास पहनने के लिए कोई दूसरा कपड़ा नहीं था.” आख़िरकार उसने इसे पुलिस को दे दिया, और खुद को मोहन की खून से सनी धोती में लपेट लिया. दोनों रात बिताने के लिए चार किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे साथिन के घर पहुंचे.

डॉ. पाल ने न्याय प्रणाली की खामियों पर प्रकाश डालते हुए कहा,“पुलिस ने उसकी गर्दन और कान पर चोट के निशान दर्ज नहीं किए. उसके फटे हुए ब्लाउज़ पर भी किसी का ध्यान नहीं गया. मेडिकल में पहले ही देरी हो चुकी थी.”

महिला समूहों के विरोध के बाद अंततः मामला राज्य सीआईडी को स्थानांतरित कर दिया गया. लेकिन राज्य सीआईडी ने भी अपने कदम पीछे खींच लिए जिससे मामले को सीबीआई को सौंपने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन का एक और दौर शुरू हो गया. जांच एजेंसी ने जनवरी 1993 में कार्यभार संभाला.

सेवानिवृत्त राजनीति विज्ञान प्रोफेसर लाड कुमारी जैन और राजस्थान विश्वविद्यालय महिला संघ (आरयूडब्ल्यूए) के कानूनी प्रकोष्ठ की पूर्व संयोजक ने कहा, “आरोपी से लेकर विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश, सीबीआई तक, सभी पुरुष थे. उनके खिलाफ एक महिला थी, ”

जागोरी के कार्यकर्ता, मुंबई से सहेलिम गांधी पीस फाउंडेशन, एक्शन इंडिया, अंकुर, एफएओ (महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ फोरम), और नैना कपूर जैसे नागरिक स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले वकील, सभी एक साथ आए और पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन की एक श्रृंखला शुरू की. बलात्कार के इर्द-गिर्द चुप्पी तोड़ो एक नारा बन गया.

भंवरी देवी के लिए न्याय की मांग को लेकर महिलाएं सड़कों पर उतर आईं. विरोध प्रदर्शन इतना तेज़ हो गया कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस को इस पर ध्यान देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

साथिन भंवरी के साथ हुए व्यवहार के खिलाफ उठ खड़े हुए और उन्होंने नारे लगाए,इंडिया टुडे पत्रिका ने लिखा, “पहले भंवरी को न्याय दो, फिर गांव में काम लो.” “दूसरा सेक्स जाग गया है.”

यहां तक कि नवगठित राष्ट्रीय महिला आयोग को भी भटेरी गांव में एक तथ्यान्वेषी टीम भेजनी पड़ी. उनकी रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि हुई. भंवरी झूठ नहीं बोल रही थी, ये सुबह की सुर्खियां थीं.

 

सामाजिक बहिष्कार

इस बीच भंवरी देवी के लिए हालात मुश्किल हो गए. यह एक तरह का सामाजिक बहिष्कार था.

सबसे पहले दूध का बहिष्कार तब हुआ जब आखा तीज पर तय शादी से 10 दिन पहले भंवरी का शांति देवी से सामना हुआ. उसने दूध के लिए अन्य गुर्जर घरों में दस्तक दी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह परिवार के लिए दूध लाने के लिए मीलों पैदल चलने लगीं. फिर यह उसे सामाजिक समारोहों में आमंत्रित न करने जैसा हो गया. इसके बाद गांव वालों ने उससे बात करना बंद कर दिया. उन्हें गालियां दी गईं. उसकी बेटी और बेटा, जो किशोर थे, को स्कूल से निकाल दिया गया था.

उनके छोटे बेटे मुकेश ने कहा, जिसे भंवरी के जीवन पर एक फिल्म के बाद कॉलेज से एक साल का ब्रेक लेना पड़ा,“मीडिया, पुलिस और कार्यकर्ता हमारे घर पर जमा हो गए. लेकिन गांव में किसी ने हमसे बात नहीं की. उस समय के निशान अभी भी वहां हैं, ”भंवरी की जिंदगी पर 2000 में बवंडर फिल्म बनाई गई जिसमें भंवरी का किरदार निभाया नंदिता दास ने और इसका निर्देशन किया था जग मुंद्रा ने.

मुकेश ने कहा, “तब तक, यादें धुंधली होने लगी थीं. फिल्म ने इसे वापस ला दिया. और दौसा में मेरे कॉलेज तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया. लोग कहने लगे, अरे देखो, यह भंवरी कुम्हारण का बेटा जा रहा है, . मुझे बस में सीट नहीं मिलती क्योंकि मैं भंवरी का बेटा था.”

नवंबर 1995 में फैसला सुनाए जाने से पहले आरोपी ने भंवरी से बातचीत करने की कोशिश की.

गांव के बड़े-बूढ़े एकत्र हो गये. वे उसके साथ बलात्कार के आरोपी लोगों को बचाना चाहते थे. गांव के नाम की होने वाली बदनामी से बचाना था. इनमें से कई बुजुर्ग वही थे जिन्होंने बलात्कार के तुरंत बाद उसके बहिष्कार का आह्वान किया था.

भंवरी ने कहा, “उन्होंने एक छोटी सी पंचायत बुलाई और मुझसे बातचीत करने के लिए अपनी पगड़ियां मेरे पैरों पर रख दीं. वे चाहते थे कि मैं अदालत को बताऊं कि मेरे साथ बलात्कार नहीं हुआ. मैंने उनसे सार्वजनिक रूप से अपना अपराध स्वीकार करने को कहा. लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया.” ग्रामीण भारत में पगड़ी को पुरुषों के गौरव और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है.

हालांकि, कोई पछतावा नहीं था.

पगड़ी उतारने का इशारा उन पर सामूहिक दबाव बनाने की नाटकीयता मात्र थी. वे उस दिन भी उसे तरह-तरह के नामों से पुकार रहे थे. उनका गुस्सा शांत नहीं हुआ था. उसका भी नहीं.

डॉ. पाल ने कहा, “पूरे मामले में उन्हें झूठा कहा गया.”

पंचायत के बाद मामला और बिगड़ गया क्योंकि भंवरी पीछे नहीं हट रही थी. गुर्जर समुदाय ने गांव के अन्य जाति समूहों जैसे बैरवा, नाई और नट के साथ एक शक्तिशाली सांठगांठ बनाई.

आरोपियों ने पूरे राज्य में भंवरी के खिलाफ गुर्जर समाज को लामबंद करना शुरू कर दिया.

भंवरी ने कहा, “वे घर के बाहर बैठ गए और चिल्लाए “भंवरी देवी हाय, हाय, हाय”. वे मेरे खून के प्यासे हो गए थे.”

Bhanwari at the award ceremony for the Neerja Bhanot award for bravery | By special arrangement
बहादुरी के लिए नीरजा भनोट पुरस्कार समारोह में भंवरी | विशेष व्यवस्था द्वारा

लेकिन महिला समूह ने भी अपनी पूरी ताकत से इसका प्रतिकार किया. उन्होंने उनके पक्ष में रैली का आह्वान किया. “जब तक सूरज चांद रहेगा, भंवरी तेरा नाम रहेगा”. एक अन्य नारे ने इस विचार को उलट दिया कि बलात्कार होने पर एक महिला का सम्मान ख़त्म हो जाता है. “मूंछ कटी किसकी, नाक कटी किसकी, इज्जत लूटी किसकी? बद्री और ग्यारह की, राजस्थान सरकार की, भटेरी गांव की.”

1993 में राजस्थान में चुनाव होने थे. भंवरी के मामले का इस्तेमाल राज्य पर राजनीतिक आरोप लगाने के लिए किया गया.

मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत ने टिप्पणी की, “धौले बाल वाली महिला से कौन बलात्कार करेगा? ”

कोई भी राजनीतिक दल या नेता गुर्जर वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहता था.

मुख्य आरोपी बद्री गुर्जर ने दिप्रिंट को बताया, ”हमारे विधायक कन्हिया लाल मीणा ने विधानसभा में चुनौती दी कि अगर भंवरी के बलात्कार के आरोप में जरा भी सच्चाई है तो वह इस्तीफा दे देंगे.” गांव में अपनी मोटरसाइकिल के पास बैठे और अपनी मूंछों पर ताव देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें समुदाय जाति के राजनेताओं का समर्थन प्राप्त है.


यह भी पढ़ेंः 2013 और 2018 की तरह राजस्थान में बाड़मेर तेल रिफाइनरी अभी भी एक बड़ा चुनावी मुद्दा क्यों है


मुकदमा और बरी होना

राजस्थान में पुरुषों की रक्षा के लिए राजनेताओं, पुलिस और निर्भीक पितृसत्ता का एक जहरीला मिश्रण खेला गया. दो साल से अधिक समय तक सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी उसी गांव में खुलेआम घूमते रहे.

सीबीआई ने सितंबर 1993 में आरोप पत्र दायर किया. डब्ल्यूडीपी की जिला इकाई द्वारा संकलित एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्यारसा को नवंबर में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन इसके बाद कार्रवाई में सुस्ती आ गई. महिला समूहों द्वारा महीनों तक विरोध करने के बाद ही जनवरी 1994 में श्रवण कुमार को गिरफ्तार किया गया. तीन आरोपी अभी भी खुलेआम घूम रहे थे. बढ़ते दबाव के कारण सीबीआई ने उनके घरों को जब्त करने की घोषणा की. घोषणा के बाद बाकी आरोपियों ने 24 जनवरी को आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें हिरासत में ले लिया गया.

बद्री फरवरी 1994 में जमानत के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय गए. उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए न्यायाधीश एनएम टिबरेवाल ने लिखा, “मुझे विश्वास है कि (आरोपियों में से एक) रामकरण की नाबालिग बेटी, शादी रोकने के प्रयास का बदला लेने के लिए भंवरी देवी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. ” उन्होंने उसी वर्ष जुलाई और दिसंबर में दो बार अपील की, दोनों बार जमानत खारिज कर दी गई.

लेकिन हाई कोर्ट ने 17 दिसंबर 1994 को तीन सह आरोपियों राम सुख, राम करण, श्रवण कुमार की जमानत याचिका मंजूर कर ली.

जब वे जमानत पर बाहर आए तो उन्होंने भंवरी के घर पर लाठियों से हमला किया और उसके पति के साथ मारपीट की.

26 अक्टूबर 1994 को जयपुर सेशन कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ. यह उनके लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. एक वर्ष में एक सौ अस्सी सुनवाईयां हुईं और पांच न्यायाधीश बदले गए. भंवरी न केवल अदालत में पेश होने के लिए बल्कि उसे न्याय दिलाने के लिए आयोजित विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए 40-50 किमी की यात्रा करके जयपुर जाती थी.

Dr Pritam Pal has worked with Bhanwari Devi for the last 3 decades. She recruited Bhanwari as Sathin in 1985. | Jyoti Yadav | ThePrint
डॉ. प्रीतम पाल पिछले तीन दशकों से भंवरी देवी के साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने 1985 में भंवरी को साथिन के रूप में भर्ती किया ज्योति यादव | दिप्रिंट

डॉ. पाल ने कहा, “अदालत में जो हुआ वह शर्मनाक था. एक जज भंवरी पर हंसे. उसके बयानों और जिरह के दौरान कमरे में 17 पुरुष मौजूद रहे होंगे. उनसे पूछा गया कि जब उनके साथ बलात्कार हुआ तो उनके पैर और हाथ किस स्थिति में थे.”

अदालत के दस्तावेज़ों के अनुसार, उससे पूछा गया कि उसके साथ किस स्थिति में बलात्कार किया गया था, क्या बलात्कार के बाद उसे चरमसुख प्राप्त हुआ था, क्या वह बलात्कार के दौरान चिल्लाई थी, क्या उसने अपने बलात्कारियों को अपना पजामा खोलते हुए देखा था और भी बहुत कुछ.

उसके जवाब गांव वालों को लीक कर दिए गए और उन्होंने उसका और भी अधिक मज़ाक उड़ाया.

बवंडर के पास इन पेचीदा सवालों का संदर्भ है. नंदिता दास द्वारा निभाए गए भंवरी के किरदार से आरोपी के वकील ने पूछा कि क्या बलात्कार के दौरान उसे ऑर्गेज्म हुआ था. दास अपना घूंघट ठीक करते हैं, अपनी आंखों में देखते हैं और कहती हैं, “अगर यह उसकी सहमति के बिना किया जाता है, तो एक महिला से खून बहता है”.

जिस जज ने भंवरी और उसके पति की गवाही दर्ज की थी, वह 1995 में फैसला सुनाने वाले जज नहीं थे. छठे जज जगपाल सिंह ने 15 नवंबर 1995 को सामूहिक बलात्कार के आरोपों से दो आरोपियों को बरी कर दिया. फैसले में उन्हें कम अपराधों जैसे कि हमला और साजिश का दोषी ठहराया.

सेशन कोर्ट ने उन्हें नौ महीने जेल की सजा सुनाई.

जगपाल सिंह के फैसले में चाचा-भतीजा एक साथ रेप नहीं कर सकते जैसी पंक्तियां शामिल थीं; कि भारतीय संस्कृति में यह संभव नहीं है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी का बलात्कार होते देखे; आरोपियों में से एक ब्राह्मण था जबकि बाकी सभी गुर्जर हैं और इस तरह का जाति मिश्रण असंभव है.

भारत के प्रमुख अखबारों ने पहले पन्ने पर “अपराध और दोषमुक्ति”, “न्याय का बलात्कार”, “न्यायालय विपत्ति”, और “नैतिक रूप से प्रतिकूल” जैसी सुर्खियां छापीं.

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वी आर कृष्णा अय्यर ने फैसले को भारतीय अदालतों और संविधान के इतिहास में एक काला दिन बताया.

Graphic: Prajna Ghosh | ThePrint
ग्राफ़िक: प्रज्ञा घोष | दिप्रिंट

डॉ. पाल ने अखबारों की कतरनें एकत्र की हैं जिनमें भंवरी और मामले का जिक्र है. स्थानीय हिंदी अखबारों में से एक ने बताया कि कुछ राजनेताओं ने फैसले का जश्न मनाया. 1996 में, जयपुर में एक गुर्जर विजय रैली आयोजित की गई जहां पांच लोगों का स्वागत किया गया और उन्हें माला पहनाई गई. इस रैली में बीजेपी विधायक कन्हैया लाल मीणा ने भंवरी को वेश्या कहा. रैली में शामिल लोगों ने यह भी कहा कि भंवरी को उन्हें सौंप दिया जाए या जिंदा जला दिया जाए.

‘कोई अपील नहीं’

भंवरी अपील दायर नहीं कर सकी क्योंकि निजी अपील की अनुमति नहीं थी और तत्कालीन राज्य के कानून मंत्री ने ‘कोई अपील नहीं’ की मुहर के साथ फाइल लौटा दी, यह संकेत देते हुए कि इसे आगे नहीं बढ़ाया जाएगा.

ममता जेटली, जो डब्ल्यूडीपी कार्यक्रम का हिस्सा थीं, ने कहा,“भंवरी को अपने पक्ष में सरकार की जरूरत थी. नौकरी करते समय उसके साथ बलात्कार किया गया. लेकिन उनके नियोक्ता, राज्य, ने उन्हें समर्थन देने से इनकार कर दिया था.”

Mamta Jaitley, who worked with the Sathin program for years. She has been an important voice in the women's collective that fought for Bhanwari over the years. | Jyoti Yadav | ThePrint
ममता जेटली, जिन्होंने वर्षों तक साथिन कार्यक्रम के साथ काम किया। वह वर्षों से भंवरी के लिए लड़ने वाली महिला समूह की एक महत्वपूर्ण आवाज़ रही हैं। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

जेटली, कविता श्रीवास्तव के साथ, जो अब पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं; रोशन चौधरी, पूर्व डब्ल्यूडीपी पर्यवेक्षक; डॉ. पवन सुराना, आरयूडब्ल्यूए; और सामाजिक कार्यकर्ता रेणुका पामेचा ने कानून विभाग के सचिवों से मुलाकात की, उनके द्वारा अपील करने से इनकार करने का विरोध किया और मांग की कि इसे उच्च न्यायालय में शीघ्रता से लागू किया जाए.

बरी किए जाने के खिलाफ अपील करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए महिला समूहों की ओर से मार्च, अखबार के कॉलम और बैठकों का एक और दौर चला.

18 जनवरी 1996 को एक अपील दायर की गई थी.

तब से, बलात्कार के चार आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है, और भंवरी के पति की भी, लेकिन मामला अभी भी राजस्थान उच्च न्यायालय में लंबित है.

लाड कुमारी और डॉ. पाल ने कहा कि मामला केवल एक बार सुनवाई के लिए आया है, लेकिन कब आया, यह किसी को याद नहीं है. राजस्थान हाई कोर्ट के ऑनलाइन संग्रह में किसी भी सुनवाई का कोई रिकॉर्ड नहीं है. इसे दोबारा कभी पोस्ट नहीं किया गया. भंवरी अभी भी मामले के सूचीबद्ध होने का इंतजार कर रही हैं.

बद्री ने कहा, “यह तब महिलाओं द्वारा रची गई एक साजिश थी. शायद मैं मर जाऊं लेकिन मैं जानता हूं की अपील पर हाई कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में होगा,” .

लेकिन इस पूरे मामले में भटेरी गांव बंटा हुआ है.

लेकिन बद्री को जेल में देखना भंवरी की आखिरी इच्छा है.

वर्षों से, वकीलों और नागरिक समाज समूहों ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न पर चर्चा करने के लिए जयपुर और दिल्ली में कार्यशालाएं आयोजित कीं, हर बार भंवरी का मामला सामने आया. डॉ. पाल ने कहा, “हमने ऐसे कई मामलों पर चर्चा की जहां महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और सरकार कुछ नहीं कर रही थीं.”

भंवरी के मामले का हवाला देते हुए पांच गैर सरकारी संगठनों ने कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न के संबंध में 1997 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की.

विशाखा बनाम राजस्थान राज्य के नाम से मशहूर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए विशाखा दिशानिर्देश जारी करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया.

दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद बलात्कार कानून को मजबूत करने के साथ-साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को अपराध मानने के लिए कानून बनाने में भारतीय संसद को 16 साल और लग गए.

भंवरी का बदलाव

सत्ताईस साल पहले, भंवरी देवी 189 देशों के उन 30,000 कार्यकर्ताओं और सरकारी नेताओं में शामिल थीं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने बीजिंग, चीन में आयोजित चौथे विश्व महिला सम्मेलन में आमंत्रित किया था.

भंवरी ने याद करते हुए कहा, “मुझे पता चला कि सभी समाजों में महिलाओं को समान व्यवहार का सामना करना पड़ता था और उन्हें कमतर इंसान माना जाता है.”

वह प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समारोह में जाती है; उन्होंने एक महिला पुलिसकर्मी प्रशिक्षण में व्याख्यान दिया है; उन्होंने अंतरजातीय विवाहों की शोभा बढ़ाई; उनके असाधारण साहस, दृढ़ विश्वास और प्रतिबद्धता के लिए उन्हें नीरजा भनोट पुरस्कार और एक लाख रुपये के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी ‘बहादुरी’ के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव ने 25,000 रुपये की राशि से सम्मानित किया था. 2002 में, गहलोत सरकार ने उन्हें जमीन का एक भूखंड आवंटित किया और निर्माण के लिए 40,000 रुपये की राशि मंजूर की.

पिछले कुछ वर्षों में मैं हजारों महिलाओं से मिल चुकी हूं. जब वे मुझे देखती हैं, तो रोती हैं, गले मिलती हैं और बस मुझे देखती रहती हैं.- भंवरी देवी

उनके भाइयों ने उन्हें अपने समुदाय में स्वीकार्यता दिलाने के लिए राव द्वारा दी गई नकदी का इस्तेमाल कुम्हार पंचायत आयोजित करने में किया. लेकिन ऐसे प्रयास निरर्थक थे. उसका अपना कबीला उसके प्रति उदासीन बना रहा. वह याद करती हुई कहती हैं, “जब मेरे पिता की मृत्यु हुई, तो मुझे अंतिम संस्कार की दावत में लोगों के बीच बैठने से रोक दिया गया. मुझे खाना भी नहीं परोसा गया.”

लेकिन उनके जीवन की दिशा अब केवल भटेरी गांव और गुर्जर और कुम्हार वंशों ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया, तक सीमित नहीं थी. उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की. उसे पेंटिंग करने के लिए एक बड़ा कैनवास मिल गया था. भंवरी ने कहा, “मैं पिछले कुछ वर्षों में हजारों महिलाओं से मिल चुकी हूं. जब वे मुझे देखती हैं, रोती हैं, गले मिलती हैं और बस मेरी तरफ देखती हैं,”

अपनी शादीशुदा जिंदगी में भंवरी को अपने पति से संघर्ष करना पड़ा. गैंग रेप के बाद हड़कंप मच गया. डॉ. पाल ने कहा, “मोहन लाल को इस बात पर नैतिक संदेह था कि वे अपने अंतरंग संबंध कैसे बनाए रखेंगे. अपवित्रता के विचार अक्सर उसे सताते रहते थे. लेकिन काउंसलिंग के बाद उसे इस बात का पता चला कि उसकी पत्नी के साथ बलात्कार हुआ था और उसके सामने ही उसके साथ बलात्कार किया गया था. और वह अपनी सच्चाई पर कायम रही,” उन्होंने उन महीनों के दौरान पति की काउंसलिंग को याद किया. वह उनसे लगातार एक पंक्ति दोहराती रही कि भंवरी सोने की तरह शुद्ध हो गई है.

भंवरी ने डॉ. पाल को अपने सबसे अंतरंग विचार बताए – “जीजी, अगर यह उनके सामने नहीं हुआ होता, तो वे भी मुझ पर विश्वास नहीं करते और मुझे छोड़ देते.”

Retired professor Lad Kumari Jain who played a crucial role in Bhanwari's fight for justice. | Jyoti Yadav | ThePrint
सेवानिवृत्त प्रोफेसर लाड कुमारी जैन जिन्होंने भंवरी की न्याय की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

न्याय का इंतजार है

हाल के वर्षों में तबीयत खराब होने के बाद भंवरी ने यात्रा करनी बंद कर दी है. उन्हें मधुमेह है और हाल ही में दिल का दौरा पड़ा था.

वह दर्जनों फाइलों से भरा एक पॉलिथीन बैग रखती है. ये फ़ाइलें उन महिलाओं की हैं जिन्हें दहेज के लिए जलाकर मार दिया गया था, जिन्हें उनके पतियों ने छोड़ दिया था और जो बलात्कार की शिकार थीं.

ग्राम प्रधान वेदराज बैरवा ने कहा, “वर्षों से, पूरे राजस्थान से महिलाएं समर्थन के लिए भंवरी देवी की तलाश में आती रही हैं. यहां तक कि एक बच्चा भी लोगों को उनके घर तक पहुंचा सकता है.” भटेरी गांव अब भंवरी के लिए जाना जाता है.

साथिन के रूप में भंवरी की यात्रा 2021 में समाप्त हो गई. उन्होंने 200 रुपये के वेतन के साथ शुरुआत की और 3,000 रुपये के वेतन के साथ सेवानिवृत्त हुईं. गैर सरकारी संगठन उसके चिकित्सा खर्चों में उसकी मदद करना जारी रखे हुए हैं.

भंवरी ने कहा, “भटेरी में, मैंने सात बाल विवाह रोके. मेरे साथ बलात्कार और हमलों के बाद भी मैं नहीं रुकी.”

लेकिन आज वह पारिवारिक विवाद और उसे थिएटर में तब्दील कर चुकी है.

भंवरी ने कहा, “मेरे बड़े बेटे और बेटी ने मुझे गुर्जरों की लुगाई कहा. मैं उनसे भी निपट चुकी हूं.” उनके साथ हुए बलात्कार से जुड़े ताने अब अक्सर उसके अपने बच्चों द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं.

डॉ. पाल ने चार साल पहले एक बैठक में भंवरी की ओर से प्रस्ताव रखा था कि राज्य को उसे अंत तक साथिन बनाए रखना चाहिए.

Bhanwari with her younger son Mukesh, who lives with her. She has been deeply affected by the family dispute over the land the government gave her as compensation. | Jyoti Yadav | ThePrint
भंवरी अपने छोटे बेटे मुकेश के साथ, जो उसके साथ रहता है। सरकार द्वारा उन्हें मुआवज़े के रूप में दी गई ज़मीन के पारिवारिक विवाद से वह बहुत प्रभावित हुई हैं। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “हम भंवरी के नेतृत्व में भटेरी गांव के ठीक बीच में एक मानवाधिकार केंद्र शुरू करना चाहते थे. उन्होने आगे कहा, साथिन की नौकरी और भंवरी की विरासत का गहरा अर्थ निकालना होगा और ग्रामीण कल्पना पर कब्जा करना होगा. ” लेकिन आंदोलन बिखर गया और यह कभी सफल नहीं हो सका.

अधूरी क्रांति

भंवरी के बलात्कार मामले के बाद, राजस्थान सरकार ने साथिन कार्यक्रम की प्रगति रोक दी. फंड कम हो गए और अन्य कार्यक्रमों में खर्च कर दिए गए.

प्रोफेसर लाड कुमारी जैन ने कहा, “1980 और 1990 के दशक में, महिला आंदोलन ने कम से कम सरकारों से कुछ कानून पारित कराए. लेकिन 2023 में, अगर बलात्कार के दोषी राम रहीम को पैरोल के बाद पैरोल दी जाती है, अगर कुकी महिलाओं को नग्न घुमाया जाता है और अगर बिलकिस बानो के बलात्कारी बाहर होते हैं, तो हर कानून बेमानी हो जाएगा. ”

भंवरी ने जंतर-मंतर पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाली ओलंपिक पदक जीतने वाली महिला पहलवानों और राज्य की प्रतिक्रिया पर टिप्पणी की.
उसने कहा, ”30 साल पहले मुझ पर विश्वास नहीं होता था, लेकिन बेटियों पर आज भी विश्वास नहीं हो रहा है. तीन दशक पहले बलात्कार पर चुप्पी तोड़ने का क्या मतलब है, जब भारतीय बेटियों को अभी भी न्याय नहीं मिला है. ”

फिर उन्होंने शून्य में देखते हुए ठंडी आह भरी और कहा: “जीजी, न्याय तो कोनी मिल्यो. एक बार सरकार की कलम से न्याय मिलना चाहिए.” (दीदी मुझे न्याय नहीं मिला. सरकार को एक बार अपनी कलम से मुझे न्याय देना चाहिए था)

न्यायाधीश जगपाल सिंह द्वारा उसके मामले में लिखी गई अंतिम पंक्ति में निर्देश दिया गया है कि अपील की अवधि समाप्त होने के बाद भंवरी का नीला लहंगा उसे वापस दे दिया जाए.

लेकिन उनका इंतजार अभी लंबा है जो जारी है.

(अनुवाद/ पूजा मेहरोत्रा)

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः मुकदमा, धमकियां, सदमा- POCSO में दोषी बाबा आसाराम बापू के खिलाफ जारी है एक पिता की 10 साल से लड़ाई


 

share & View comments