अगर बेंगलुरू गोथम होता, तो दुष्यंत दुबे बैटमैन होते, कम से कम रेडिट पर शहर के खास प्लेटफॉर्म ‘बेंगलुरू सबरेडिट’ के मुताबिक तो यही सच है. इस प्लेटफॉर्म पर अपने यूजर नाम ‘सेंट ब्रोसेफ’ से चर्चित दुबे ने ऐसा नाम कमाया है कि कोई भी किसी भी समस्या के लिए उनसे इस प्लेटफॉर्म पर ‘कॉन्टैक्ट’ कर सकता है. दुबे कहते हैं, ‘मैं हमेशा अपने सभी दोस्तों के लिए एक ‘ब्रोसेफ’ रहा हूं.
अगर मेरे विस्तृत दायरे में किसी को कोई मदद चाहिए, तो वे मेरे पास आते हैं.’ उन्होंने पिछले साल 11 दिसंबर को रेडिट पर एक पोस्ट डाला, जिसका शीर्षक था: बेंगलुरू में किसी को कभी पुलिस/गुंडे/कोई भी परेशान करे तो मुझे अपना ‘कॉन्टैक्ट’ बनाएं.
सब-रेडिट पर इस पोस्ट को सबसे ज्यादा सराहा गया और अवार्ड (रेडिट पर लाइक जैसा) के समकक्ष) मिला. उनसे कई तरह की मदद मिलती है – सलाह-मशविरा, भावनात्मक सहयोग, सही कनेक्शन और कभी-कभी पैसा भी. लेकिन यह इकलौते शख्स की फौज ऐसा कैसे कर लेती है और क्यों?
बेगलुरू का ‘कॉन्टैक्ट’
ब्रुस वेन के तरह दुबे अरबपति नहीं हैं. महिंद्रा में मार्केटिंग मैनेजर के पद पर कार्यरत दुबे छह साल पहले बेंगलुरू आ गए. वहां उन्होंने स्थानीय नेताओं के कार्यक्रमों में जाना और कई एनजीओ में वॉलेंटियर करना शुरू किया. वे सामाजिक कामों में सक्रिय रहने लगे. इस तरह अपना अच्छा-खासा नेटवर्क तैयार कर लिया.
दुबे कहते हैं, ‘पहले महीने जब मैं यहां आया, तो मुझे एक राजनीतिक आयोजन के बारे में पता चला. मैंने वहां जाकर आयोजकों से पूछा कि क्या उन्हें मदद की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मैं गेट पर रहूं और आने वालों को रास्ता दिखाऊं.’ बकौल उनके, उस दिन उनके करीब 10 राजनीतिक संपर्क बन गए.
वह कार्यक्रम भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का था. वे कहते हैं, ‘मैं ऐसे हर राजनैतिक कार्यक्रमों में जाने लगा और वहां मदद में जुट जाता. मैं इन कार्यक्रमों में नेताओं से किसी मदद की आस में नहीं जाता, बल्कि यह पूछता हूं कि मैं क्या कर सकता हूं.’
दुबे के मुताबिक, संपर्क में आने के उनके इस तरीके से नेता और अधिकारी जरूरत पडऩे पर खुशी-खुशी मदद देने को तैयार हो जाते हैं.
इसी तरह उनका परिचय बेंगलुरू के पूर्व पुलिस कमिशनर भास्कर राव से हुआ, जो हाल ही में आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल हो गए. दुबे का कहना है कि राव ने कमिशनर रहने के दौरान अपने आयोजित कार्यक्रमों के जरिए लोगों तक पहुंचने में उनकी मदद की.
आज, दुबे के पास दोस्तों, पुलिस, नेताओं और एनजीओ का मजबूत नेटवर्क है, जिसके जरिए वे समय-समय पर रेडिट यूजरों की मदद करते हैं.
शहर के हर डीसीपी तक उनकी पहुंच नहीं है और इसी मामले में उनका नेटवर्क काम आता है. वे कहते हैं, ‘मैं लोगों से पूछता हूं कि उनका अपने इलाके के डीसीपी से संपर्क है तो बात करें और मामले को सही दिशा में आगे बढ़ाएं.’
फिर वे उनसे संपर्क करने वाले व्यक्ति से कहते हैं कि थाने में जाएं और अपनी बात कहें. अगर डीसीपी से कोई मदद नहीं मिलती है तो अगला कदम पुलिस कमिश्नर के पास जाने का होता है. लेकिन बकौल दुबे, ‘वह नौबत अभी तक नहीं आई.’
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क्या और कैसे करते हैं
हर रोज रेडिट फोरम पर पोस्ट का सैलाब रहता है. उसमें कोई खबर, पालत पश्ुाओं के लिए अनुरोध, स्टार्ट-अप संस्कृति पर कोई विचार, डेटिंग पर सलाह के अलावा ऐसे भी सवाल होते हैं कि कन्नड़ किताबें कहां मिलती हैं या अच्छा-सा कैफे कहां हैं. यही नहीं, बेंगलुरू पुलिस के उत्पीडऩ, घूसखोरी के किस्से भी होते हैं. और जब रेडिट यूजरों से कोई मदद नहीं मिलती तो ‘मिस्टर फिक्स-इट’ आगे आते हैं.
एक यूजर ने सेंट ब्रोशेफ का शुक्रिया अदा करते एक पोस्ट लिखा, ‘आजकल जब भी मैं किसी समस्या में पड़े किसा का पोस्ट देखता हूं, तो मुझे उम्मीद हो जाती है कि यह आदमी जरूर मदद में आगे होगा.’
दुबे का कहना है कि उनके काम के तरीकों में अन्य बातों के अलावा लोगों को एफआइआर लिखने में मदद करनी पड़ती है. हाल में किसी महिला से छेड़छाड़ के मामले में उन्होंने महिला की मदद की और उस जगह का गूगल लोकेशन भेजा, जहां यह वारदात हो रही थी. वे कहते हैं, ‘हम वीडियो कॉल पर मिलते हैं और मैं उनकी मदद करता हूं.’
दुबे का दोस्त समीर उसे पुलिस और कन्नड़ बोलने वाले अन्य लोगों के साथ संवाद करने में मदद करता है। चार साल पहले फेसबुक पर दुबे से मिले समीर ने कहा, ‘वह अपने काम के प्रति जुनूनी है और दूसरों की समस्याओं को हल करने की कोशिश में किसी हद तक जाएगा. हम सामाजिक कार्यों के प्रति हमारे पारस्परिक झुकाव की वजह से जुड़े हैं.’
दो-मॉनिटर सेटअप के साथ, दुबे इंदिरानगर में अपने एक बीएचके वाले घर में अकेले रहते हैं और वहीं से ही सामाजिक कार्य करते हैं. उनके फ्लैट की एक दीवार में पहलवानों की तस्वीर लगी है, तो दूसरी पर चेल्सी फुटबॉल क्लब और मेटल बैंड के दो विशाल पोस्टर हैं. लेकिन एक दीवाल पर सबसे बड़ी जगह पूर्व रक्षा मंत्री और ट्रेड यूनियन लीडर जॉर्ज फर्नांडीस के एक पोस्टर को मिला है. समीर के मुताबिक, वे दुबे की सबसे बड़ी प्रेरणा हैं. समीर ने कहा, ‘उसने मुझसे कहा कि वह फर्नांडिस की तरह लोगों के लिए सुलभ होना चाहता है और हर समय किसी के लिए भी अपने दरवाजे खुले रखना चाहता है.’
दुबे के पास हर दिन करीब दो से तीन ‘केस’ आते हैं. दुबे ने कहा, ‘सप्ताहांत में संख्या बढ़ जाती है क्योंकि पुलिस से संबंधित घटनाएं अधिक होती हैं.’ वे यूजर्स से वॉट्सऐप पर मैसेज करने के लिए कहते हैं. वे कहते हैं, ‘इससे उनकी पहचान की पुष्टि होती है और उनके मोबाइल नंबर से मुझे कुछ भरोसा होता है.’
एक अज्ञात कॉलर की मदद के लिए उनसे संपर्क करने वाले एक रेडिट यूजर ने बताया कि दुबे ने महिला उत्पीड़न के स्थान और अन्य विवरणों का पता लगाया. नाम न छापने की शर्त पर उस महिला ने कहा, ‘उन्होंने शिकायत दर्ज कराने में मेरी मदद की, मुझे बताया कि किस थाने में जाना है, कैसे शिकायत दर्ज करानी है और उसका मजमून क्या होगा.’
दुबे ऑनलाइन फ़ोरम पर लोगों को कॉलेज एप्लिकेशन लिखने या फ़्लैट खोजने में भी मदद करते हैं. वे कभी-कभी इलाज में लोगों की मदद करते हैं और सुसाइड की प्रवृत्ति वाले लोगों की भी काउंसलिंग करते हैं. वे कहते हैं, ‘कभी-कभी लोग बस किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो उनकी सुन सके.’ एक रेडिट यूजर के अनुसार, उन्होंने स्थानीय नगरपालिका से ‘तीन घंटे के भीतर’ बिना कोई रिश्वत दिए स्ट्रीट लाइट ठीक करा दी.
जीवन का नया मोड़
दुबे के पिता राजेश ने बताया कि उनके बेटे का मन 2008 में एक ऑनलाइन सुसाइड वारदात देखने के बाद बदल गया है. दुबे तब 16 साल के थे.
अमेरिका के फ्लोरिडा में एक किशोर ने एक ब्लॉग पोस्ट में घोषणा की थी कि वह अपनी आत्महत्या की लाइव स्ट्रीमिंग करेगा. सोशल मीडिया पर अधिकांश लोगों ने कथित तौर पर उसे ‘उकसाया.’ दुबे ने बताया कि जब तक उन्होंने देखा, किशोरी अपने बिस्तर पर पड़ी थी और बेजान दिखाई दे रही थी. अब 31 साल के दुबे याद करते हैं, ‘चैट सेक्शन उन लोगों से भरा हुआ था, जो उन्हें पसंद कर रहे थे.’ वे कहते हैं कि उन्होंने फ्लोरिडा में स्थानीय पुलिस से संपर्क किया ताकि कोई मदद कर सके. जब तक मदद पहुंची किशोर की मौत हो चुकी थी. दुबे ने कहा कि उसने उनकी आंखें खोल दीं कि पर्दे के पीछे के मुद्दों को आम तौर पर समाज कैसे देखता है.
उन्होंने कहा, ‘स्क्रीन के पीछे क्या हो रहा है उससे लोग पूरी तरह बेखबर हो जाते हैं. जो दिखता है, वह वास्तविक नहीं है.’
दुबे ने उस अनुभव को उत्पीड़न और दुर्व्यवहार से निपटने में लोगों की मदद करने में लगाया. उन्होंने एक बार दो बहनों की मदद की थी जो अपनी मां के बुरा-भला कहने पर घर से भाग गई थीं. वे उन बहनों के साथ थाने गए. उन्होंने कहा, मैंने मां से भी बात की और उन्हें मनाने की कोशिश की. आप कभी नहीं जान सकते कि माजरा क्या है और मैं नहीं चाहता था कि मामला आगे बढ़े.
उन्होंने यह भी जल्द ही महसूस किया कि उन्हें विशेषज्ञों से मदद की आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा, ‘मैं उन चिकित्सकों के पास पहुंचा, जिन्हें मैं जानता था और उन्होंने मुझे तनावग्रस्त लोगों के साथ बात करने के लिए संवेदनशील बनाया.’ बकौल उनके, वे जानबूझकर ‘मुझे अपने भाई समझें’ जैसे बातें कहने से बचते हैं.
ऐसे विशेषज्ञों में एक ऐश्वर्या हैं, जो निमहांस (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज), बेंगलुरू में एमफिल साइकोलॉजी ट्रेनी हैं.
ऐश्वर्य ने कहा, ‘उन्होंने अपने पास आने वाले मामलों के बारे में बताया और पूछा कि वे उनकी बेहतर मदद कैसे कर सकते हैं.’ वे अब उन्हें अक्सर सलाह देती है. हाल ही में एक आदमी दुबे के पास यह शिकायत लेकर आया कि उसे ‘आवाज़ें सुनाई देती हैं.’ ऐश्वर्या ने बताया, ‘मैंने सलाह दी कि उससे कैसे बात की जाए और उसे सही डॉक्टरों के पास भी भेजा.’
ऐश्वर्या दुबे की खूब प्रशंसा करती हैं और कहती हैं कि उनके जैसे लोग मानसिक रोगों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उन्होंने कहा, ‘उनका समाज के बारे जमीनी दृष्टिकोण कुछ ऐसा है जिससे हम चिकित्सकों को सीखने की दरकार है.’
ब्रोशेफ होना
बकौल दुबे, वे इंटरनेट देख-देख कर ही बड़े हुए हैं. उन्हें कम उम्र से ही कंप्यूटर में दिलचस्पी थी और वे छह साल की ही उम्र से ऑनलाइन पर सक्रिय हो गए. उन्होंने कक्षा 9 के बाद स्कूली पढ़ाई छोड़ दी और दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अपनी स्कूली शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई पूरी की.
उन्होंने लोगों की मदद करने की शुरुआत अपने छोटे सामाजिक दायरे से ही की. जब वे अहमदाबाद में थे, तो मेटल कंसर्ट आयोजित करते थे और इंडी बैंड चलाते थे, लेकिन यह सब कुछ मुफ्त में होता था.
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने नए अवतार के लिए रेडिट का प्लेटफॉर्म क्यों चुना, तो उन्होंने कहा कि उन्हें गुमनाम रखने का वेबसाइट का तरीका पसंद है. उन्होंने कहा, ‘वे गुमनाम हैं इसलिए लोग उनसे अपना दुख-सुख खुलकर साझा कर पाते हैं.’
उन्होंने यह भी कहा कि वे हर महीने 25,000 रुपये ‘मदद पर खर्च करने’ के लिए अलग रख लेते हैं, जैसे कि लोगों के इलाज, मेडिकल बिल या जुर्माने के भुगतान वगैरह में मदद के लिए. पिछले एक साल में, उन्होंने कहा कि उन्होंने अपमानजनक स्थितियों से बाहर निकलने में लोगों की मदद की है या उन लोगों की, जिन्हें घरों से बाहर निकाल दिया गया.
हालांकि दुबे के पास लोगों के लिए अपने घर के दरवाजे खोल देने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है. उन्होंने हाल में ही एक छोटे से अपार्टमेंट के लिए भुगतान किया है, ताकि वे उसे सुरक्षित घर की तरह इस्तेमाल कर सकें.
राजेश दुबे ने कहा कि उनका बेटा पैसे का लालची बिल्कुल नहीं है. वे कहते हैं, ‘लेकिन समस्या यह है कि वह अपने लिए बिलकुल बचत नहीं करता है.’
उनके पिता को उन पर गर्व है लेकिन वे चाहते हैं कि वह खुद पर भी ध्यान दें. वे कहते हैं, ‘जब मैं उससे बात करने की कोशिश करता हूं, तो वह कहता है कि नेटवर्क बनाना अधिक कीमती है। वह कहता है कि क्या पता जिस बच्चे की मैं आज मदद करता हूं, वह कल को एक्जीक्यूटिव बन जाए और वे मेरी मदद को याद रखे.’ उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘एक कारोबारी और एक पिता के नाते उसके काम को समझना मेरे लिए मुश्किल है.’
फिलहाल दुबे लोगों की बेहतर मदद के लिए कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेंट (सीआरएम)-सक्षम वेबसाइट पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि वेबसाइट लोगों को स्थिति को ट्रैक करने की मदद करेगी. दुबे ने रेडिट पर अपनी योजना पोस्ट की, और वेब डेवलपर्स से मैसेज मिला कि वे साइट को मुफ्त में बनाएंगे.
कुछ रेडिट यूजर उनसे राजनीति में उतरने को भी कहते हैं. एक यूजर ने कहा कि चुनाव का ‘सिर्फ एक टिकट पाने के लिए’ 5 करोड़ रुपये तक खर्च करने होंगे, तो दूसरे यूजर ने जवाब दिया, ‘हम क्राउडफंड करेंगे. टैक्स चुकाने से बेहतर, हम अपने बैटमैन के लिए भुगतान करें.’
लेकिन दुबे किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ना चाहते. वे कहते हैं, ‘अगर मैं कहता हूं कि मैं एक संगठन का हिस्सा हूं या एक निश्चित विचारधारा का समर्थन करता हूं, तो लोग मदद करने या मदद मांगने में दिलचस्पी नहीं लेंगे.’
वे कहते हैं, ‘मुझे सिर्फ ‘ब्रूसेफ’ होना पसंद है, जो तटस्थ और पर्सनल है.’
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